असृजत् पह्लवान् पुच्छात् प्रस्रवाद् द्रविडाञ्छकान् (द्रविडान् शकान्)।
योनिदेशाच्च यवनान् शकृत: शबरान् बहून् ।३६।
मूत्रतश्चासृजत् कांश्चित् शबरांश्चैव पार्श्वत: ।
पौण्ड्रान् किरातान् यवनान् सिंहलान् बर्बरान् खसान् ।३७।
नन्दनी गाय ने पूँछ से पह्लव उत्पन्न किये । तथा धनों से द्रविड और शकों को । योनि से यूनानीयों को और गोबर से शबर उत्पन्न हुए। कितने ही शबर उसके मूत्र ये उत्पन्न हुए उसके पार्श्व-वर्ती भाग से पौंड्र किरात यवन सिंहल बर्बर और खसों की -सृष्टि ।३७।
चिबुकांश्च पुलिन्दांश्च चीनान् हूणान् सकेरलान्।
ससरज फेनत: सा गौर् म्लेच्छान् बहुविधानपि ।३८।
इसी प्रकार गाय ने फेन से चिबुक पुलिन्द चीन हूण केरल आदि बहुत प्रकार के म्लेच्छों की उत्पत्ति हुई ।
महाभारत आदि पर्व चैत्ररथ पर्व १७४वाँ अध्याय
भीमोच्छ्रितमहाचक्रं बृहद्अट्टाल संवृतम् ।
दृढ़प्राकार निर्यूहं शतघ्नी जालसंवृतम् ।
तोपों से घिरी हुई यह नगरी बड़ी बड़ी अट्टालिका वाली है ।
महाभारत आदि पर्व विदुरागमन राज्यलम्भ पर्व ।१९९वाँ अध्याय ।
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