रविवार, 31 मार्च 2019

गुर्ज्जरः और अहीर -


मुझे अपने गुज्जर  भाइयों की वीरता पर नाज़ है ।
क्यों कि गुज्जर भारत ही नहीं एशिया की सबसे घुमक्कड़ और वीर जाती है।
जिसका कहीं किसी से मुकाबला नहीं ।
सुन्दरता की बात होती है तो "गूजरिया" शब्द का सम्बोधन दिया जाता है ।
ईरानी इतिहास कार अलबरुनी, यूनानी इतिहास कार होरोडोटस
गुर्ज्जरः शब्द को जॉर्जिया (गुर्जिस्तान ) में कृषकों के रूप में वर्णित करता है तो चीनी बौद्ध इतिहास कार "ह्वेनसाँग" हूणों की अवर अथवा  स्पेन पुर्तगाल की "आयर" शाखा की सहवर्ती कज्जर के रूप में वर्णन करता है ।
भारतीय संस्कृत ग्रन्थों में गुज्जर का मूल गौश्चर: माना ।
जिसका अर्थ गायों को चराने वाला या गोपालक है।
कहीं कहीं बाद में राजशेखर इनकी वीरता को ध्यान में रखकर गर्(शत्रु) जर (जीर्ण-शीर्ण करने वाला यौद्धा)
के रूप में कर दी ।

गुर्शत्रुकृतताडनंबधोद्यमादिकंवाउज्जरयतियोदेशः।कलिङ्गाःसाहसिकाइतिवद्देशस्थजनेलक्षणेतिज्ञेयम्।)     गुज्जराटदेशः।
इति शब्दरत्नावली॥ कवि राजशेखर
परन्तु वास्तविक व्युत्पत्ति गौश्चर गा चारयति इति गौश्चर: जशत्व सन्धि से गुर्ज्जरः शब्द का विकास ।

गुर्ज्जरः जाट  सायद भारत के सबसे बड़े किसान हैं ।
यहाँं अहीरों का जिक्र इस लिए नहीं किया ।
क्यों कि अहीर और गुज्जर समानार्थक शब्द हैं

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गूर्जर और अहीर जन-जाति - गुर् शत्रुकृतताडनंबधोद्यमादिकंवा उज्जरयतियोदेशः।कलिङ्गाःसाहसिका इतिवद्देशस्थजनेलक्षणेतिज्ञेयम्।) गुज्जराटदेशः।इतिशब्दरत्नावलि॥ शब्दरत्नी वली के रचयिता ने काल्पनिक रूप से गुर्जर शब्द की व्युत्पत्ति की है :--- 'शत्रु का वध करने वाला ' यद्यपि गुर्जर वीर और निर्भीक होते हीे हैं , इसमें कोई सन्देह नहीं ,परन्तु व्युत्पत्ति-आनुमानिक रूप से ही की गयी है । संस्कृत भाषा में और भी गुर्जर जन-जाति के उद्धरण --- प्राप्त हैं । परन्तु बहुत बाद के जो गुर्जर शब्द की व्युत्पत्ति पर स्पष्ट प्रकाश - प्रक्षेपण नहीं करते हैं । गुर्जर :--( गुर्+जॄ + णिच् + अच्)।गुरितिशत्रुकृतताडनादिकंतज्जीर्य्यत्यत्रइतिअधिकरणे अप्। गुर्ज्जरःदेशःतस्यप्रियेतिङीष्।यद्वागुर्ज्जरदेशःप्रियोऽस्याइतिअण्ङीप्च।गुर्ज्जरदेशवासिनीअतोगुर्ज्जरीतिकेचित्।) रागिणीविशेषः।इतिहलायुधः॥इयन्तुभैरवरागस्यरागिणीतिबोध्यम्। यथा सङ्गीतदर्पणेरागविवेकाध्याये।१६। “भैरवीगुर्ज्जरीरामकिरीगुणकिरीतथा।वाङ्गालीसैन्धवीचैवभैरवस्यवराङ्गनाः॥” अस्यागानवेलानिर्णयोयथा तत्रैव।२०। “वेलावलीचमल्लारीवल्लारीसोमगुर्ज्जरी।” इयंहिग्रीष्मऋतौस्वस्वामिनाभैरवरागेणसहगीयते।यथा तत्रैव।२७। “भैरवःससहायस्तुऋतौग्रीष्मेप्रगीयते।” इतिसोमेश्वरमतम्।हनूमन्मतेतु।इयमेवमेघरागस्यस्त्री।यथा तत्रैव।३७। “मल्लारीदेशकारीचभूपालीगुर्ज्जरीतथा।टङ्काचपञ्चमीभार्य्यामेघरागस्ययोषितः॥” इयंपुनारागार्णवमतेपञ्चमरागाश्रयारागिणीत्यवधेयम्।यथा तत्रैव।४०। “ललितागुर्ज्जरीदेशीवराडीरामकृत्तथा।मतारागार्णवेरागाःपञ्चैतेपञ्चमाश्रयाः॥”) _________. ___________. _________ गुर्जर शब्द का यह प्रयोग केवल काव्य-गत है । जो राज शेखर से सम्बद्ध है । राजशेखर (विक्रमाब्द 930- 977 तक) काव्यशास्त्र के पण्डित थे। वे कान्यकुब्ज के गुर्जरवंशीय नरेश महेंद्रपाल एवं उनके बेटे महिन्द्र पाल के गुरू एवं मंत्री थे। उनके पूर्वज भी प्रख्यात पण्डित एवं साहित्य मनीषी रहे थे। काव्यमीमांसा उनकी प्रसिद्ध रचना है। समूचे संस्कृत साहित्य में कुन्तक और राजशेखर ये दो ऐसे आचार्य हैं जो परंपरागत संस्कृत पंडितों के मानस में उतने महत्त्वपूर्ण नहीं हैं जितने रसवादी या अलंकारवादी अथवा ध्वनिवादी हैं। राजशेखर लीक से हट कर अपनी बात कहते हैं, और कुन्तक विपरीत धारा में बहने का साहस रखने वाले आचार्य हैं। राजशेखर महाराष्ट्र देशवासी थे और यायावर वंश में उत्पन्न हुए थे किन्तु उनका जीवन बंगाल में बीता। इनकी माता का नाम शिलावती तथा पिता का नाम दुहिक या दुर्दुक था , और वे महामंत्री थे। इनके प्रपितामह अकालजलद का विरद 'महाराष्ट्रचूड़ामणि' था। राजशेखर की पत्नी चौहान कुल की क्षत्राणी विदुषी महिला थी जिसका नाम अवन्तिसुन्दरी था। महेंद्रपाल के उपाध्याय होने के साथ ये उसके पुत्र महीपाल के भी कृपापात्र बने रहे। इन दोनों नरेशों के शिलालेख दसवीं शताब्दी के प्रथम चरण (९०० ई. और ९१७ ई.) के प्राप्त होते हैं अत: राजशेखर का समय ८८०-९२० ई० के लगभग मान्य है। परन्तु इनके समय तक प्राकृत भाषाओं का बोल-बाला था । गुर्जर शब्द प्रारम्भिक चरण गौश्चर के रूप में रहा जो कालान्तरण में गुर्जर रूप हो गया । गौश्चर शब्द गोपों का विशेषण था । परन्तु यह शब्द ऐैतिहासिक सन्दर्भों में ही रहा है, साहित्य सन्दर्भों में नहीं - ________________________________________ हिन्दी व्रज भाषाओं के कवियों ने गूजर शब्द अहीरों के लिए किया है । जैसे --- संज्ञा पुं० [सं० गुर्जर] [स्त्री० गूजरी, गुजरिया] १. अहीरों की एक जाति ग्वाला । २. क्षत्रियों का एक भेद । संज्ञा स्त्री० [हिं० गूजरी] १. गूजर जाति की स्त्री । ग्वालिन । गोपी । २. धोबियों के नृत्य में स्त्री के रूप में नाचनेवाला । उ०—लो छनछन, छनछन, छनछन, छनछन, नाच गुजरिया हरती मन ।—ग्राम्या०, पृ० ३१ संस्कृत भाषा के विद्वान् मदन- मोहन झा ने अपने हिन्दी कोश में ये उद्धृत किया है। मीरा वाई ने गोपिकाओं के लिए अहीरिणी शब्द का प्रयोग अपने पदों में किया है --- जो ठेठ राजस्थानी रूप है । देखें-- _______________________________________ अच्छे मीठे चाख चाख, बेर लाई भीलणी।। ऐसी कहा अचारवते, रूप नहीं एक रती; नीचे कुल ओछी जात, अति ही कुचीलणी। जूठे फल लीन्हें राम, प्रेम की प्रतीत जाण; ऊच नीच जाने नहीं, रस की रसीलणी। ऐसी कहा वेद पढ़ी, छिन में बिमाण चढ़ी; हरि जूँ सूँ बाँध्यो हेत बैकुण्ठ मैं झूलणी। दासी मीराँ तरै सोइ ऐसी प्रीति करै जोई; पतित-पावन प्रभु गोकुल अहीरणी।।222।। ________________________________________ शब्दार्थ-अचारवती = अचार-विचार से रहने वाली। एक रती = रत्ती भर भी। कुचीलणी = मैंले-कुचैले वस्त्रों वाली। प्रतीति = प्रतीत, विश्वास। रस की रसीलणी = भक्ति का प्रेम-रस की रसिकता। छिन में विमाण चढ़ी = स्वर्ग चली गई। हेत = प्रेम। गोकुल = अहीरणी = गोकुल की ग्वालिन; पूर्व जन्म की गोपी। अब रीति कालीन व्रज के कवियों ने राधा आदि गोपिकाओं को गुजरिया शब्द से सम्बोधित करते हुए वर्णन किया है । इसे भी देखें--- ________________________________________ " खातिर करले नई गुजरिया रसिया ठाडो तेरे द्वार ।। ये रसिया नित द्वार न आवे, प्रेम होय तो दरसन पावे। अधरामृतको भोग लगावे, कर महेमानी अब मत चूक समय न वारंवार ।। _________________________________________ निश्चित रूप से ये पक्तियाँ श्रृंगारिकता की पराकाष्ठा का भी अतिक्रमण करते हुए, अश्लीलता की उद्भावक हो गयी हैं । जो रीति कालीन हैं । गुर्जर जन-जाति का ऐैतिहासिक सन्दर्भों में जो वर्णन है वह यथार्थ की सीमाओं से परे है । देखें--- गुर्जर मुख्यत: उत्तर भारत, पाकिस्तान और अफ़्ग़ानिस्तान में बसे हैं। इस जाति का नाम अफ़्ग़ानिस्तान के राष्ट्रगान में भी आता है। गुर्जरों के ऐतिहासिक प्रभाव के कारण उत्तर भारत और पाकिस्तान के बहुत से स्थान गुर्जर जाति के नाम पर रखे गए हैं, जैसे कि भारत का गुजरात राज्य, पाकिस्तानी पंजाब का गुजरात ज़िला और गुजराँवाला ज़िला और रावलपिंडी ज़िले का गूजर ख़ान शहर। इसको उदाहरण- है । आधुनिक स्थिति में गुर्जर जन-जाति - " प्राचीन काल में युद्ध कला में निपुण रहे गुर्जर मुख्य रूप से खेती और पशुपालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। निश्चित रूप से ये आभीर जन-जाति से सम्बद्ध हैं " गुर्जर अच्छे योद्धा माने जाते थे ,और इसीलिए भारतीय सेना में अभी भी इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है। अभीर शब्द भी अपने इसी निर्भीकता के अर्थ को ध्वनित करता है । अ नकारात्मक उपसर्ग (Prefix) + भीर -- कायर /डरपोंक अर्थात् जो कायर (भीर) नहीं है । वह अभीर है । भारत मे गुर्जर की जनसंख्या लगभग 20 करोड की है। गुर्जर महाराष्ट्र (जलगाँव जिला), दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में फैले हुए हैं। राजस्थान में सारे गुर्जर हिंदू हैं। सामान्यत: गुर्जर हिन्दू, सिख, मुस्लिम आदि सभी धर्मो मे देखे जा सकते हैं। वर्ण-व्यवस्था के समर्थकों ने गुर्जर जन-जाति को शूद्र घोषित करने की चेष्टा की तो ये अपने स्वाभिमान की खातिर मुसलमान ,सिक्ख और ईसाई हो गये । ईसाई मुस्लिम तथा सिख ,गुर्जर, हिन्दू गुर्जरो से ही परिवर्तित हुए थे। पाकिस्तान में गुजरावालां, फैसलाबाद और लाहौर के आसपास इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है। ________________________________________ गुर्जर जन-जाति की उत्पत्ति (Origin of Gourjer tribe) गुर्जर अभिलेखो के हिसाब से ये सूर्यवंशी या रघुवंशी हैं। प्राचीन महाकवि राजशेखर ने गुर्जरों को 'रघुकुल-तिलक' तथा 'रघुग्रामिणी' कहा है। ७ वी से १० वी शतब्दी के गुर्जर शिलालेखो पर सुर्यदेव की कलाकृतियाँ भी इनके सुर्यवंशी होने की पुष्टि करती हैं। परन्तु नन्द और वसुदेव दौनों को हरिवंश पुराण में गोपों के रूप में वर्णित किया गया है । जो यदु वंश की पुरातन शाखा है , और यदु वंश को सोम / चन्द्र वंश से सम्बद्ध कर दिया है पुराण कारों ने, यहूदी जन-जाति के लोग सेमेटिक थे । इज़राएल में अबीर (Abeer) यहूदीयों की एक युद्ध-प्रिय शाखा है। वस्तुत: यह विरोधाभासी वर्णन काल्पनिक उड़ाने मात्र ही हैं । क्योंकि गुर्जर शब्द घोषी अहीरों की ही एक विस्तृत शाखा है । भारतीय गुर्जर जाति मे केवल पाँच गोत्र हूण सरदारों के नाम पर हैं, तथा शेष गुर्जर जाट गोत्रों से संबन्धित हैं। कुछ गुर्जर गोत्र जैसे कि कसाना, खटाना, बिरकेट व घोषी (या घोर्षी), राजपूतों के गोत्र है। भारतीय मानव विज्ञान शास्त्री के॰एस॰ सिंह के अनुसार- “ग्वाल(ग्वाला), डाढ़ोर, यादव, यदुवंशी, अहीर, किशनौत, गुज्जर, गडेरिया इत्यादि जिन्हें सम्मिलित रूप से ज्यादा से ज्यादा ग्वालों कि उपजाति कहा जा सकता है। यह कृष्ण से संबन्धित पौराणिक विरासत व सम्मान से युक्त ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का प्राचीन जाति समुदाय है, जो कि मथुरा - वृन्दावन मूल से उत्पन्न व प्रसारित है। ये लोग हिन्दी देवनागरी लिपि मे लिखते हैं, हिन्दी बोलते हैं व जातिगत अंतरगामी व कुल-गोत्र बहिर्गामी विवाह पद्धति का अनुसरण करते है।” मुस्लिम घोसी भी गुर्जर मूल का दावा करते हैं। मोटे तौर पर, भारत मे अहीर, चरण, गद्दी, गौढ़ा, गुर्जर-घोष या घोसी, घासी, गोवारी, गुज्जर, गुर्जर, ईडुयान, कावुन्दन आदि गोपालकों के रूप में वर्गीकृत किए गए है। खानदेश मे अहीरों के पाँच उप-समुदाय हैं- ग्वालवंशी, भार्वतिया,ढिडांवार (ढिंडोर), घोसी व गुर्जर। क्योंकि प्राचीनत्तम इतिहास में गौश्चर शब्द आभीर जन-जाति का विशेषण है । ________________________________________ "गावश्चारयति इति गौश्चर: कथ्यते आभीरस्य विशेषणम्". ( "संस्कृत प्रागितहास") ______________________________________ राजस्थान में आज भी गुर्जरों को सम्मान से 'मिहिर' बोलते हैं, जिसका अर्थ 'सूर्य' होता है। परन्तु मिहिर शब्द यादव समाज के वृद्ध व्यक्तियों का सम्मान सूचक उपाधि था ,और मिहिर चन्द्र का भी वाचक है। महरा (= बड़ा, श्रेष्ठ)] [स्त्री० महरि] १. व्रज में बोला जानेवाला एक आदर- सूचक शब्द जिसका व्यवहार विशेषतः जमादारों और वैश्यों आदि के सम्बन्ध में होता है। (कभी कभी इस शब्द का व्यवहार केवल श्रीकृष्ण के पालक और पिता नन्द के लिये भी बिना उनका नाम लिए ही होता है)। उदाहरण-- महर विनय दोउ कर जोरे घृत मिष्टान षय बहुत मनाया।—सूरदास पदावली । (ख) फूर आभलाषन को चाखने के माखन लै दाखन मधुर भरे महर मंगाय रे।—दीन । (ग) व्रज की विरह अरु संग महर की कुवरिहि वरत न नेकु लजान।—तुलसी । २. एक प्रकार का पक्षी। उ०— सारो सुवा महर कोकिला। रहसत आइ पपीहा मिला।—जायसी । ३. दे० 'महरा'। उ०—नाऊ बारी महर सब, धाऊ धाय समेत।—रघुराज । ⋙ मिहर- (मिह--किरच् ) १ सूर्य्ये २ अर्कवृक्षे ३ वृद्धे मेदिनी कोश ४ मेघे हेमचन्द्र कोश ५ वायौ, ६ चन्द्रे, विक्रमादित्यसभास्थे नवरत्नमध्यस्थे पण्डितभेदे च शब्दक० । तच्चिन्त्यम् । “धन्वन्तरिक्षपणकामरसिंहशङ्कुवेतालभट्टघटकर्परकालि- दासः । ख्यातो वराहमिहिरो नृपतेः सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नवविक्रमस्य” ज्योतिर्विदाभरणवाक्ये वराहः मिहिराइवेत्येव तत्र समासे वराहमिहिर इत्येकः “वराहमिहिरात्मजेन पृथुयशसा” तत्पुत्रकृतषट्पञ्चा- शिकायामुक्तेः द्वित्वे लल्लूलाल कृत सुखसागर में नन्द को महर कह कर सम्बोधित किया गया है। अन्यत्र भी व्रज के कवियों ने राधा को महर की बेटी कहा है । संज्ञा स्त्री० [हिं० महरेटा] वृषभानु महर की लड़की, श्रीराधिका। उदाहरण- (क) नूपुर की धुनि सुनि रीझत है । महरेटी खोलति न याते जब जब आषु गसि जात।—(कवि रघुनाथ )। (ख) लाली महरेटी के अधर सरसान लागे अधरन बान लागे बतिया रसाल की।—रघुराज । महाराष्ट्र के जादव /जाधव महारों की शाखा भी इन्हीं का रूप है । क्योंकि मराठी भाषा का विकास शौरसेनी प्राकृत से हुआ है। और राजस्थानी व्रज का ही प्राचीनत्तम रूप - कुछ इतिहासकारों के अनुसार गुर्जर मध्य एशिया के कॉकस क्षेत्र (अभी के आर्मेनिया और जॉर्जिया) से आए आर्य योद्धा थे। कुछ विद्वान इन्हे विदेशी भी बताते हैं । क्योंकि गुर्जरों का नाम एक अभिलेख में हूणों के साथ मिलता है, परन्तु इसका कोई एतिहासिक प्रमाण नहीं है। संस्कृत के विद्वानों के अनुसार, गुर्जर शुद्ध संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ 'शत्रु का नाश करने वाला' अर्थात 'शत्रु विनाशक' होता है। प्राचीन महाकवि राजशेखर ने गुर्जर नरेश महिपाल को अपने महाकाव्य में दहाड़ता गुर्जर कह कर सम्बोधित किया है। कुछ इतिहासकार कुषाणों को गुर्जर बताते हैं तथा कनिष्क के रबातक शिलालेख पर अंकित 'गुसुर' को गुर्जर का ही एक रूप बताते हैं। उनका मानना है कि गुशुर या गुर्जर लोग विजेता के रूप में भारत में आये क्योंकि गुशुर का अर्थ 'उच्च कुलीन' होता है। परन्तु प्रबल प्रमाणों के अभाव में ये सारी हास्यास्पद बातें हैं तथा काल्पनिक उड़ाने मात्र हैं । _____________________________________ Georgia -- is the Western exonym for the nation in the Caucasus natively known as Sakartvelo (Georgia)The Russian exonym is Gruziya The native name is derived from the core central Georgian region of Kartli i.e. Iberia of the Classical and Byzantine sources around which the early medieval cultural and political unity of the Georgians was formed. Both the Western and the Russian exonyms are likely derived from the Persian designation of the Georgians, gurğān, from an Old Persian varkâna "land of the wolves" (also reflected in Old Armenian Virk' and a source of the Greco-Roman Iberia). Today the full, official name of the country is "Georgia", as specified in the Georgian constitution which reads "Georgia shall be the name of the State of Georgia." Before the 1995 constitution came into force the country's name was the Republic of Georgia. The Georgian government works actively to remove Russian-derived exonym Gruziya from usage around the world.। ______________________________________ गुर्जर तथा आभीर शब्द विश्व इतिहास में भी सहवर्ती हैं -- "In Greco-Roman geography, Iberia (Ancient Greek: Latin: Hiberia) was an exonym (foreign name) for the Georgian kingdom of Kartli (Georgia), known after its core province, which during Classical Antiquity and the Early Middle Ages was a significant monarchy in the Caucasus, either as an independent state or as a dependent of larger empires, notably the Sassanid and Roman empires. Iberia, centered on present-day Eastern Georgia, was bordered by Colchis in the west, Caucasian Albania in the east and Armenia in the south. Kingdom of Iberia kartlis samepo Vassal of the Seleucid Empire (302–159 BC), the Roman Republic (65–63 BC, 36–32 BC), the Roman Empire (1–117 AD), the Eastern Roman Empire (298-363 AD). Tributary state of Sassanid Persia (252-272 AD), vassal state of Sassanid Persia (363 AD-482 AD, 502-523 AD). Direct Sassanid Persian rule (523-580 AD). c. 302 BC–580 AD Flag of the kingdom after Christianization of Iberia in an early 4th century Colchis and Iberia CapitalArmazi Mtskheta Tbilisi LanguagesGeorgian GovernmentMonarchy Historical eraAntiquity • Pharnavaz I's reignc. 302 BC • Christianization of Iberia during reign of Mirian III326 ? AD/337 ? AD • Direct Sasanian control and abolishment of the monarchy.580 AD Preceded bySucceeded by Achaemenid Empire Colchis Sasanian Iberia Today part of Georgia Turkey Russia Armenia Azerbaijan Its population, the Iberians, formed the nucleus of the Georgians (Kartvelians). Iberia, ruled by the Pharnavazid, Arsacid and Chosroid royal dynasties, together with Colchis to its west, would form the nucleus of the unified medieval Kingdom of Georgia under the Bagrationi dynasty.[ In the 4th century, after the Christianization of Iberia by Saint Nino during the reign of King Mirian III, Christiantity was made the state religion of the kingdom. Starting in the early 6th century AD, the kingdom's position as a Sassanian vassal state was changed into direct Persian rule. In 580, king Hormizd IV (578-590) abolished the monarchy after the death of King Bakur III, and Iberia became a Persian province ruled by a marzpan (governor). The term "Caucasian Iberia" is used to distinguish it from the Iberian Peninsula in Western Europe. Further information: Name of Georgia (country) The provenance of the name "Iberia" is unclear. One theory on the etymology of the name Iberia, proposed by Giorgi Melikishvili, was that it was derived from the contemporary Armenian designation for Georgia, Virkʿ (Armenian: Վիրք, and Ivirkʿ [Իվիրք] and Iverkʿ [Իվերք]), which itself was connected to the word Sver (or Svir), the Kartvelian designation for Georgians. The letter "s" in this instance served as a prefix for the root word "Ver" (or "Vir"). Accordingly, in following Ivane Javakhishvili's theory, the ethnic designation of "Sber", a variant of Sver, was derived from the word "Hber" ("Hver") (and thus Iberia) and the Armenian variants, Veria and Viria. According to another theory, it is derived from a Colchian word, "Imer", meaning "country on the other side of the mountain", that is of the Likhi Range, which divided Colchis and Iberia from each । ग्रीक भाषा में गोर्ज (George) का अर्थ है - गो से सम्बन्ध रखने वाला । अर्थात् कृषक । personal name, from French Georges, Late Latin Georgius, from Greek Georgos "husbandman, farmer," properly an adjective, "tilling the ground," from ge "earth" ( Gaia) संस्कृत भाषा में गो + ergon "work" (from PIE आद्य भारोपीय धातु( root) *werg- "to do"). The name introduced in England by the Crusaders (a vision of St. George played a key role in the First Crusade), but not common until after the Hanoverian succession (18c.). St. George began to be recognized as patron of England in time of Edward III, perhaps because of his association with the Order of the Garter (see garter). His feast day is April 23. The legend of his combat with the dragon is first found in "Legenda Aurea" (13c.). The exclamation by (St.) George! is recorded from 1590। पुर्तगाल की भाषा है और इसके कई भूतपूर्व उपनिवेशों में भी बहुमत भाषा है, जैसे ब्राज़ील। ये हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की रोमांस शाखा में आती है। इसकी लिपि रोमन है। इस भाषा के प्रथम भाषी लगभग २० करोड़ हैं। परिचय----- पुर्तगाली या (पोर्तगाली) नवलातीनी परिवार की भाषा है। इस परिवार की अन्य भाषाएँ स्पेनी, फ्रांसीसी, रूमेनी, लातीनी, प्रोवेंसाली तथा कातालानी हैं। यह लातीनी वोल्गारे (लातीनी अपभ्रंश) का विकसित रूप है जिसे रोमन विजेता अपने साथ लूसीतानिया में लगभग तीसरी शती ईसवी पूर्व में ले गए थे। रोमन विजेताओं की संस्कृति मूल निवासियों की अपेक्षा उच्च थी। उसके प्रभाव के कारण स्थानीय बोलियाँ दब गईं, भौगोलिक नामों तथा कुछ शब्दों (एस्क्वेदों वेइगा) में उनके अवशेष मिलते हैं। पाँचवीं शतीं में आइबीरिया प्रायद्वीप पर बर्बरों का आक्रमण हुआ। आक्रमणकारियों ने विजितों की भाषा को अपनाया। पुर्तगाली की शब्दावली में जर्मन भाषा वर्ग के बहुत ही कम शब्द हैं। प्राय: युद्ध से संबंधित कुछ शब्द मिलते हैं जो महत्वपूर्ण नहीं हैं। आठवीं शती में आइबीरिया पर अरब आक्रमण हुआ। इनका अधिकार पाँच सौ वर्षों तक रहा। यद्यपि आक्रामकों की संस्कृति बहुत उन्नत थी तथापि उन्होंने अपनी भाषा को पुर्तगालियों पर थोपा नहीं। दोनों ही अपनी-अपनी भाषा का प्रयोग करते रहे। ऐसा होने पर भी पुर्तगाली में बहुत से अरबी के शब्द रह गए हैं। ऐसे शब्दों को अरबी के "अल्" उपसर्ग से युक्त होने से आसानी से पहचाना जा सकता है (अल्खूवे अल्मोक्रेवे, अल्मोफारिज़)।..... 13वीं शती की पुर्तगाली नीति कविता पर प्रोवेंसाली का बहुत प्रभाव था। इसलिए कविता को भाषा में अनेक प्रोवेंसाली शब्द प्रयुक्त हुए, किंतु बोलचाल की भाषा में अपेक्षाकृत कम प्रोवेंसाली शब्द मिलते हैं। पुर्तगाली शब्दावली को सबसे अधिक समृद्ध किया स्पेनी और फ्रांसीसी भाषाओं ने। स्पेनी का प्रभाव उनकी भौगोलिक समीपता तथा साहित्यिक समृद्धि, विशेषकर नाट्य साहित्य, के कारण पड़ा। पुर्तगाल पर स्पेन का आधिपत्य (1580-1640) रहना भी प्रभाव का एक कारण है। फ्रांसीसी का प्रभाव में तो पड़ा ही, क्योंकि 11वीं शती में पुर्तगाल के प्रथम राजवंश का प्रतिष्ठाता काउंट ऑव पुर्तगाल बरगंडी का हेनरी था। उसके बाद 18वीं शती से 20वीं शती के आरंभ तक फ्रांसीसी संस्कृति के प्रवेश के कारण फ्रांसीसी भाषा ने पुर्तगाली को प्रभावित किया। आधुनिक युग में यूरोप की अन्य भाषाओं के समान अंग्रेजी का प्रभाव पुर्तगाली पर भी देखा जा सकता है। अमरीकी सभ्यता ने यांत्रिक क्षेत्र में जो प्रगति की, उसका प्रभाव पुर्तगाली भाषा पर भी लक्षित हो रहा है। पुर्तगाली में, विशेषकर कला से संबंधित, अनेक इतालीय शब्द भी हैं। इनमें से अधिकांश शब्द इतालीय साहित्यिक प्रवृत्तियों की सफलता के कारण 16वीं शती में प्रवेश कर गए थे। 16वीं शती के पश्चात् लातीनी साहत्य के अध्ययन की विशेष रूचि के फलस्वरूप साहित्यिक पुर्तगाली पर लातीनी का प्रभाव पड़ा। वाक्यविन्यास तथा शब्दावली दोनों पर लातीनी का प्रभाव पड़ा। लातीनी शब्दों से ही वने फ्रियो, फ्रोजिदो, जैसे सरल शब्दों के रहते आडंबरपूर्ण अस्वाभाविक शब्दों (आंदोलोक्वो, उनबीवागो) का प्रयोग होने लगा। ग्रीक से वैज्ञानिक शब्दावली ली गई। 15वीं शती से ही जो खोजें आरंभ हुई उनके माध्यम से पुर्तगालियों का संपर्क अफ्रीका, एशिया और अमरीका के निवासियों से हुआ। फलस्वरूप अनेक नए शब्द पुर्तगाली में आ गए (कांचिम्बा, वातुक्वे, मांदिओका)। लातीनी और पुर्तगाली की तुलनासंपादित करें लातीनी की तुलना में पुर्तगाली की मुख्य विशेषताएँ निम्न हैं : ध्वनिविषयक अनुनासिक व्यंजन के कारण स्वरों में परिवर्तन - मानूऊमाँओ; पोनितऊपोंए; स्वरमध्यवर्ती अघोष व्यंजनों का घोष हो जाना तऊद, पऊब, चऊज (लाकुऊलागो; सापेरेऊसाबेर); स्वरों के बीच में आनेवाले द और ल व्यंजनों का लोप हो जाना (फीदेऊफैएऊफे; दोलोरेऊदोर; स्वर समुदाय अउ के स्थान पर ओर कभी-कभी ओह हो जाता है (ताउरुऊतोउरोऊतोहरो; आउरुऊओउरो, ओहरो) ; शब्दारंभ में आनेवाले संयुक्त क्ल, फ्ल, प्ल के स्थान पर (क्लावेऊ कावे (शावे) ; फ्लामाऊकामा (सामा) फ्लोरारेऊकोरार (सोरार) हो जाता है; शब्द के मध्यवर्ती वल के स्थान पर ल्ह हो जाता है - ओकुलुऊआल्हो। पुर्तगाली में वाक्यविन्यासात्मक ध्वनिप्रक्रिया ध्यान देने योग्य है : शब्दांत में आनेवाले 'S' का उच्चारण प्राय: ('ship)' के 'श' के समान होता है, किंतु जब उसके पश्चात् और शब्द रहते हैं तब उसका उच्चारण Z (ज़) जैसा होता है, जैसे as में ज़ ; स्वर के पूर्व में रहने से तथा घोष वर्ण के पूर्व उसका उच्चारण (Pleasure )के S जैसा होता है, किंतु अघोष वर्ण के परे S ही रहता है। अहीरों तथा गुर्जरों की एक शाखा को इतिहास कारों ने आयबरिया तथा जॉर्जिया से सम्बद्ध माना है । Old French ire "anger, wrath, violence" (11c.), from Latin ira "anger, wrath, rage, passion," from PIE root *eis- (1), forming various words denoting passion (source also of Greek hieros "filled with the divine, holy," oistros "gadfly," originally "thing causing madness;" Sanskrit esati "drives on," yasati "boils;" Avestan aesma "anger;" Lithuanian aistra "violent passion"). Old English irre in a similar sense is unrelated; it from an adjective irre "wandering, straying, angry," which is cognate with Old Saxon irri "angry," Old High German irri "wandering, deranged," also "angry;" Gothic airzeis "astray," and Latin errare "wander, go astray, angry" (see err ). ________________________________________ This thesis has been written by Yadav Yogesh kumar Rohi belong to village Azad pur district Aligarh ---

शनिवार, 30 मार्च 2019

"पश्चिमीय एशिया में ईश्वर वाची शब्द"

जहोवा ,गॉड , ख़ुदा और अल्लाह आदि ईश्वर वाची शब्दों की व्युत्पत्ति वैदिक देव संस्कृति के अनुयायीयों से भी  सम्बद्ध है। 👇

विचार विश्लेषण :--यादव योगेश कुमार 'रोहि'
जैसे हिब्रू ईश्वर वाची शब्द  यहोवा ( ह्वयति ह्वयते जुहाव जुहुवतुः जुहुविथ जुहोथ ) आद संस्कृत क्रिया-पदों से सम्पृक्त है ।  ह्व धातु से अन्य तद्धित शब्द( निहवः अभिहवः उपहवः विहवः ) आदि उपसर्ग पूर्वक निष्पन्न हैं । "ह्वः का संप्रसारणं रूप "हु" है  " ( आहावः ) "निपानमाहावः'' इति प्रसारणे वृद्धौ निपात्यते निपानमुपकूपं जलाशये यत्र गावः पानार्थमाहूयन्ते ( आह्वा ) "आतश्चोपसर्गे'' इति स्त्रियामङ्ग्याल्लोपः ( आहूतिः संहूतिः ) इति बाहुलकात् क्तिन् वेञादयस्त्रयोऽनुदात्ता उभयतो भाषाः ह्वेञ् स्पर्द्धायां, शब्दे च ह्वयति । ह्वयते । निह्वयते । हूयते । जुहाव । जुहुवे । जुहुवतुः । जुहुवाते । ह्वाता । अह्वास्त ।अह्वत् ।अह्वत । जोहूयते । जुहूषति । जुहूषते । जुहावयिषति । अजूहवत् । प्रह्वः । हूतः । निहवः । हवः । आहवः । हूतिः । मित्रह्वायः ।। ।।  यह्व / YHVH / yod-he-vau-he / יהוה, -- We find, the above word is perhaps used first time in Rigveda Madala (10, 036/01) अर्थात्‌ ऋग्वेद के दशम मण्डल में हम यह्वः शब्द पाते है । संस्कृत यह्वः (पुं.) / यह्वी (स्त्री.) ऋग्वेद 1/036/01 में 👇 प्र वो यह्वं पुरूणां विशां देवयतीनाम् । We find, the above word is perhaps used last time in the Rigveda Madala 10, 110/03.( ऋग्वेद 10/110/03 ) त्वं देवानामसि यह्व होता ... -- The last mention of यह्व / YHVH /yod-he-vau-he is used as an address to Lord Indra, though Rigveda Mandala 1.164.46 clearly explains all these devata are different names and forms of the same Lord (Ishvara) इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमाहुरथो दिव्यः स सुपर्णो गरुत्मान् एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्त्यग्निं यमं मातरिश्वानमाहुः ऋग्वेद (10/110/03 ) Accordingly the above mantra in veda categorically defines 'Who' is 'यह्वः (पुं.)' / YHVH / yod-he-vau-he / יהוה, I strongly feel this the conclusivevidence that puts to rest all further doubt and discussion, / speculation about 'God' _________________________________________
(त्वं देवानामसि यह्व होता )... अर्थात् तुम देवों में यह्व (YHVH) को बुलाने वाले हो ! ... in Sanskrit clearly means that 'यह्वः' is either the priest to 'devata,s' or the one who Himself performed vedika sacrifice especially in Agni / Fire for them. There are at least more than 30 places in entire Rigveda, where 'यह्वः' finds a mention. And the first time we find यह्वीः / 'yahwI:' in Rigveda is here - ऋग्वेद (1.59.04) अर्थात् यह्व YHVH शब्द अग्नि का भी वाचक है - क्योंकि जलती हुई झाड़ियों से मूसा अलैहि सलाम को धर्म के दश आदेश यहोवा से प्राप्त हुए -
**************************************** बृहती इव सूनवे रोदसी गिरो होता मनुष्यो न दक्षः स्वर्वते सत्यशुष्माय पूर्वीवैश्वानराय नृतमाय यह्वीः ॥ Obviously, this 'यह्वीः' is in accusative plural case of 'यह्वी' feminine. --------------------------------------------------------------
यहोवा वस्तुतः फलस्तीन (इज़राएल)के यहूदीयों का ही सबसे प्रधान व राष्ट्रीय देवता था। तथा ( यदु:)यहुदह् शब्द का नाम करण यहोवा के आधार पर हुआ । यहुदह् शब्द का तादात्म्य वैदिक यदु: से पूर्ण रूपेण प्रस्तावित है । परन्तु कालान्तरण में बहुत सी काल्पनिक कथाओं का समायोजन यदु: अथवा यहुदह् के साथ कर दिया गया । अतः फिर ये  दो भिन्न व्यक्तित्वों के रूप में  भासित हुए ! यदु शब्द यज् धातु से उण् उणादि सूत्र प्रत्यय करने पर निर्मित है ।
यदु: ययातिनृपतेः  ज्येष्ठपुत्रे यस्य वंशे श्रीकृष्णवतारः , तस्य गोत्रापत्यमण् बहुषु तस्य लुक्  यदुवंश्ये  दर्शार्हदेशे आभीर देशे च ( हेमचन्द्र संस्कृत कोश ) ______________________________________
यहोवा शब्द के विषय में हिब्रू बाइबिल में उल्लेख है । यहोवा (An:Yahweh) यहूदी धर्म में और इब्रानी भाषा में परमेश्वर का नाम है। यहूदी मानते हैं कि सबसे पहले ये नाम परमेश्वर ने हज़रत मूसा को सुनाया था। ये शब्द ईसाईयों और यहूदियों के धर्मग्रन्थ बाइबिल के पुराने नियम में कई बार आता है।
उच्चारण:-- स्मरण रखें :--कि यहूदियों की धर्मभाषा इब्रानी (हिब्रू) की लिपि इब्रानी लिपि में केवल व्यञ्जन लिखे जा सकते हैं ; और ह्रस्व स्वर तो बिलकुल ही नहीं।  अतः यह शब्द चार व्यञ्जनों से बना हुआ है : י (योद) ה (हे) ו (वाओ) ה (हे), या יהוה अर्थात् :--- (य-ह-व-ह ) इसमें लोग विभिन्न स्वर प्रवेश कराकर इसे विभिन्न उच्चारण रूप देते हैं, जैसे यहोवा, याह्वेह, याह्वेः, जेहोवा, आदि (क्योंकि प्राचीन इब्रानी भाषा लुप्त हो चुकी है)। यहूदी लोग बेकार में ईश्वर (यहोवा) का नाम लेना पाप मानते थे, इसलिये इस शब्द को कम ही बोला जाता था। यह ज़्यादा मशहूर शब्द था "अदोनाइ" (अर्थात मेरे प्रभु)। बाइबिल के पुराने नियम / इब्रानी शास्त्रों में "एल" और "एलोहीम"  तथा "अबीर"  शब्द भी परमेश्वर के लिये प्रयुक्त हुए हैं। पर हैरत की बात ये है कि यहूदी कहते हैं कि वो एक हि ईश्वर को मानते हैं, पर "एलोहीम" शब्द बहुवचन है ! यहोवा ही अल्लाह है। 👇
यहशाहा ४५:१८, में परमेश्वर का सही अर्थ समझाता है। अर्थ:------- यहूदी और ईसाई मानते हैं ,कि यहोवा का शब्दिक अर्थ होता है : "मैं हूँ जो मैं हूँ" -- अर्थात्‌ स्वयंभू परमेश्वर। जब बाइबल लिखी गयी थी, तब यहोवा यह नाम ७००० बार था।
👇 - निर्गमन ३:१५, भजन ८३:१८ ________________________________________
नि:सन्देह यम शब्द का सम्बन्ध यहोवा (य:वह) (YHVH) से है ।  यह वही यहूदीयों का देवता यहोवा है ,जिसने सिनाई पर्वत पर जलती हुई झाड़ियों से मूसा "अलैहि सलाम" को धर्म के दश आदेश दिये थे :-- दस धर्मादेश या दस फ़रमान
( Ten Commandments ) हैं। इस्लाम धर्म,यहूदी धर्म और ईसाई धर्म के वह दस नियम हैं , जिनके बारे में उन धार्मिक परम्पराओं में यह माना जाता है कि वे धार्मिक नेता मूसा को ईश्वर ने स्वयं दिए थे। इन धर्मों के अनुयायीओं की मान्यता है कि यह मूसा को सीनाई पर्वत के ऊपर दिए गए थे। पश्चिमी संस्कृति में अक्सर इन दस धर्मादेशों का ज़िक्र किया जाता है , या इनके सन्दर्भ में बात की जाती है। दस धर्मादेश :----- ईसाई धर्मपुस्तक बाइबिल और इस्लाम की धर्मपुस्तक कुरान के अनुसार यह दस आदेश इस प्रकार थे :--देखें अंग्रेज़ी अनुवाद रूप 👇 अंग्रेज़ी -हिन्दी अनुवाद 1. Thou shalt have no other Gods before me 2. Thou shalt not make unto thee any graven image 3. Thou shalt not take the name of the Lord thy God in vain 4. Remember the Sabbath day, to keep it holy 5. Honor thy father and thy mother 6. Thou shalt not kill 7. Thou shalt not commit adultery 8. Thou shalt not steal 9. Thou shalt not bear false witness 10. Thou shalt not covet __________________________________________
१. तुम मेरे अलावा किसी अन्य भगवान को नहीं मानोगे २. तुम मेरी किसी तस्वीर या मूर्ती को नहीं पूजोगे ३. तुम अपने प्रभु भगवान का नाम अकारण नहीं लोगे ४. सैबथ का दिन याद रखना, उसे पवित्र रखना ५. अपने माता और पिता का आदर करो ६. तुम हत्या नहीं करोगे ७. तुम किसी से नाजायज़ शारीरिक सम्बन्ध नहीं रखोगे ८. तुम चोरी नहीं करोगे ९. तुम झूठी गवाही नहीं दोगे १०. तुम दूसरे की चीज़ें ईर्ष्या से नहीं देखोगे _________________________________________
टिप्पणी :--१ - हफ़्ते के सातवे दिन को सैबथ कहा जाता था ,जो यहूदी मान्यता में आधुनिक सप्ताह का शनिवार का दिन है। जिसे ईसाईयों ने रविवार कर दिया --जो अब अन्ताराष्ट्रीय स्तर पर अवकाश दिवस है । यद्यपि कालान्तरण में मूसा के दशम आदेशों के रूप परिवर्तित हुए परन्तु संख्या दश ही रही । ये नैतिजीवन के आधार व धर्म के मूल थे । भारतीय इतिहास में ई०पू० द्वितीय के समकक्ष पुष्य-मित्र सुंग कालीन में सुमित भार्गव नामक व्यक्ति ने मनुके नाम पर मनुःस्मृति की रचना की तो उसमे धर्म के दश-लक्षण बताऐ 👇 __________________________________________
इसी मनु-स्मृति में धर्म के दस लक्षण गिनाए हैं: __________________________________________ धृति: क्षमा दमोऽस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह:। धीर्विद्या सत्‍यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्‌।। (मनुस्‍मृति- 6 /92) अर्थ :– धृति (धैर्य ), क्षमा (क्षमतावान् बनकर किसी को कई बार क्षमा कर देना ), दम (हमेशा संयम से धर्मं में लगे रहना ), अस्तेय (चोरी न करना ), शौच ( भीतर और बाहर की पवित्रता ), इन्द्रिय - निग्रह (इन्द्रियों को हमेशा धर्माचरण में लगाना ), धी:( सत्कर्मो से बुद्धि को बढ़ाना ), विद्या (यथार्थ ज्ञान लेना ). सत्यम ( हमेशा सत्य का आचरण करना ) और अक्रोध ( क्रोध को छोड़कर शान्त रहना ) याज्ञवल्क्य स्मृति में भी यही भाव कुछ शब्द विन्यास के भेद से इस प्रकार है :--- याज्ञवल्क्य स्मृति में धर्म के नौ (9) लक्षण परिगणित हैं: _____________________________________
अहिंसा सत्‍यमस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह:। दानं दमो दया शान्‍ति: सर्वेषां धर्मसाधनम्‌।। (अहिंसा, सत्य, चोरी न करना (अस्तेय), शौच (स्वच्छता), इन्द्रिय-निग्रह (इन्द्रियों को वश में रखना), दान, संयम (दम), दया एवं शान्ति) बारहवीं सदी में रचित श्रीमद्भागवत के  सप्तम स्कन्ध में सनातन धर्म के तीस लक्षण बतलाये हैं और वे आधुनिक भौतिक वादी युग में बड़े ही महत्त्व के हैं : ___________________________________

सत्यं दया तप: शौचं तितिक्षेक्षा शमो दम:। अहिंसा ब्रह्मचर्यं च त्याग: स्वाध्याय आर्जवम्।। सन्तोष: समदृक् सेवा ग्राम्येहोपरम: शनै:। नृणां विपर्ययेहेक्षा मौनमात्मविमर्शनम्।। अन्नाद्यादे संविभागो भूतेभ्यश्च यथार्हत:। तेषात्मदेवताबुद्धि: सुतरां नृषु पाण्डव।। श्रवणं कीर्तनं चास्य स्मरणं महतां गते:। सेवेज्यावनतिर्दास्यं सख्यमात्मसमर्पणम्।। नृणामयं परो धर्म: सर्वेषां समुदाहृत:। त्रिशल्लक्षणवान् राजन् सर्वात्मा येन तुष्यति।। ________________________________________ महाभारत के महान यशस्वी पात्र विदुर ने धर्म के आठ अंग बताए हैं :-- इज्या (यज्ञ-याग, पूजा आदि), अध्ययन, दान, तप, सत्य, दया, क्षमा और अलोभ। इनमें से प्रथम चार इज्या आदि अंगों का आचरण मात्र दिखावे के लिए भी हो सकता है, किन्तु अन्तिम चार सत्य आदि अंगों का आचरण करने वाला महान बन जाता है। पद्म-पुराण के अनुसार :---👇 ब्रह्मचर्येण सत्येन तपसा च प्रवर्तते। दानेन नियमेनापि क्षमा शौचेन वल्लभ।। अहिंसया सुशांत्या च अस्तेयेनापि वर्तते। एतैर्दशभिरगैस्तु धर्ममेव सुसूचयेत।। (अर्थात ब्रह्मचर्य, सत्य, तप, दान, संयम, क्षमा, शौच, अहिंसा, शान्ति और अस्तेय इन दस अंगों से युक्त होने पर ही धर्म की वृद्धि होती है।)   जिस नैतिक नियम को आजकल  (ethic of Resprosity) कहते हैं उसे भारत में प्राचीन बौद्ध और जैन काल से मान्यता है। सनातन धर्म में इसे 'धर्मसर्वस्वम्" (=धर्म का सब कुछ) कहा गया है: -👇 _______________________________________
श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चाप्यवधार्यताम्। आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्।। (पद्मपुराण, सृष्टि-खण्ड:- (19/357-358) (अर्थ: धर्म का सर्वस्व क्या है ? सुनो ! और सुनकर इसका अनुगमन करो। जो आचरण स्वयं के प्रतिकूल हो, वैसा आचरण दूसरों के साथ नहीं करना चाहिये।) महात्मा बुद्ध के भी यही वचन थे ! _______________________________________
भारतीय देव-संस्कृति ने यम को धर्म का अधिष्ठात्री देवता माना है । यम ही स्वयं धर्म रूप है ; महर्षि पतञ्जलि द्वारा योगसूत्र में वर्णित पाँच यम हैं तो शाण्डिल्य उपनिषद में यम दश रूपों में हैं । १-अहिंसा २-सत्य ३-अस्तेय ४-ब्रह्मचर्य ५-अपरिग्रह शाण्डिल्य उपनिषद द्वारा वर्णित दस यम- १-अहिंसा २-सत्य ३-अस्तेय ४-ब्रह्मचर्य ५-क्षमा ६-धृति ७-दया ८-आर्जव ९-मिताहार १०-शौच ________________________________________
यम के विषय में यूरोपीय आर्य संस्कृति में भी यमीर रूप में लोक- कथाऐं प्राप्त हैं ! देखे:--👇 Ymir In Norse mythology, Ymir, Aurgelmir, Brimir, or Bláinn is the ancestor of all jötnar. Ymir is attested in the Poetic Edda, compiled in the 13th century from earlier traditional material, in the Prose Edda, written by Snorri Sturluson in the 13th century, and in the poetry of skalds. Taken together, several stanzas from four poems collected in the Poetic Edda refer to Ymir as a primeval being who was born from venom that dripped from the icy rivers Élivágar and lived in the grassless void of Ginnungagap. Ymir birthed a male and female from the pits of his arms, and his legs together begat a six-headed being. The gods Odin, Vili and Vé fashioned the Earth (elsewhere personified as a goddess; (Jörð) from his flesh, from his blood the ocean, from his bones the hills, from his hair the trees, from his brains the clouds, from his skull the heavens, and from his eyebrows the middle realm in which mankind lives, Midgard. In addition, one stanza relates that the dwarfs were given life by the gods from Ymir's flesh and blood (or the Earth and sea). In the Prose Edda, a narrative is provided that draws from, adds to, and differs from the accounts in the Poetic Edda. According to the Prose Edda, after Ymir was formed from the elemental drops, so too was Auðumbla, a primeval cow, whose milk Ymir fed from. The Prose Edda also states that three gods killed Ymir; the brothers Odin, Vili and Vé, and details that, upon Ymir's death, his blood caused an immense flood. Scholars have debated as to what extent Snorri's account of Ymir is an attempt to synthesize a coherent narrative for the purpose of the Prose Edda and to what extent Snorri drew from traditional material outside of the corpus that he cites. By way of historical linguistics and comparative mythology, scholars have linked Ymir to Tuisto, the Proto-Germanic being attested by Tacitus in his 1st century AD work Germania and have identified Ymir as an echo of a primordial being reconstructed in Proto-Indo-European mythology.------- _______________________________________
यम: यह्व तथा यह्वती आदि शब्द वैदिक सन्दर्भों में प्राप्त हैं । गॉड शब्द जर्मनिक भाषाओं में यहोवा का ही रूपान्तरण गॉड है । god (Noun) Old English god " supreme being, deity; the Christian God; image of a god; godlike person," from (Proto-Germanic guthan) (source also of Old Saxon, Old Frisian, Dutch god, Old High German got, German Gott, Old Norse guð, Gothic guþ), from PIE (आद्य भारोपीय ) ghut-हूत "👇 __________________________________________ that which is invoked " वह जिसका आह्वान किया जाय "अर्थात् यह्व (YHVH) (source also of Old Church Slavonic zovo "to call," Sanskrit huta-हुता ,यह्व "invoked," an epithet of Yama), from root gheu(e)- "to call, invoke." But some trace it to (PIE) Proto-Indo- European-ghu-to- "poured," from root gheu- "to pour , pour a libation" (source of Greek khein "to pour," also in the phrase khute gaia "poured earth," referring to a burial mound; "Given the Greek facts, the Germanic form may have referred in the first instance to the spirit immanent in a burial mound" [Watkins]. See also Zeus. In either case, not related to good. Popular etymology has long derived God from good; but a comparison of the forms ... shows this to be an error. Moreover, the notion of goodness is not conspicuous in the heathen conception of deity, and in good itself the ethical  Originally a neuter noun in Germanic, the gender shifted to masculine after the coming of Christianity. Old English god probably was closer in sense to Latin numen. A better word to translate deus might have been Proto-Germanic ansuz, but this was used only of the highest deities in the Germanic religion, and not of foreign gods, and it was never used of the Christian God. It survives in English mainly in the personal names beginning in Os I want my lawyer, my tailor, my servants, even my wife to believe in God, because it means that I shall be cheated and robbed and cuckolded less often. ... If God did not exist, it would be necessary to invent him. [Voltaire] God bless you after someone sneezes is credited to St. Gregory the Great, but the pagan Romans (Absit omen) and Greeks had similar customs. God's gift to is by 1938. God of the gaps means "God considered solely as an explanation for anything not otherwise explained by science;" the exact phrase is from 1949, but the words and the idea have been around since 1894. God-forbids was rhyming slang for kids ("children"). God squad "evangelical organization" is 1969 U.S. student slang. God's acre "burial ground" imitates or partially translates German Gottesacker, where the second element means "field;" the phrase dates to 1610s in English but was noted as a Germanism as late as Longfellow. How poore, how narrow, how impious a measure of God, is this, that he must doe, as thou wouldest doe, if thou wert God. _______________________________________ आद्य हिन्द-ईरानी धर्म (Proto-Indo-Iranian religion) से तात्पर्य हिन्द-ईरानी लोगों के उस धर्म से है 'जो वैदिक एवं जरथुस्थ्र धर्मग्रन्थों की रचना के पहले विद्यमान था। दोनों में अनेक मामलों में साम्य है। और वर्ती काल में विपरीतताऐं भी - जैसे, सार्वत्रिक बल 'ऋक्' (वैदिक) तथा अवेस्ता का 'आशा', पवित्र वृक्ष तथा पेय 'सोम' (वैदिक) एवं अवेस्ता में 'हाओम', मित्र (वैदिक), अवेस्तन और प्राचीन पारसी भाषा में 'मिथ्र' बग(वैदिक) मित्र, भग , अवेस्ता एवं प्राचीन पारसी में  ईरानी भाषा की गणना आर्य भाषाओं में ही की जाती है। भाषा-विज्ञान के आधार पर कुछ यूरोपीय विद्वानों का मत है कि आर्यों का आदि स्थान दक्षिण-पूर्वी यूरोप में कहीं था। परन्तु आर्य शब्द को जाति-गत मानना पूर्व-दुराग्रह के अतिरिक्त कुछ नहीं । यहाँं आर्य के स्थान पर देव संस्कृति के अनुयायी कहना समुचित है । विवनघत का पुत्र यिम भारत और ईरान-दोनों की ही शाखा होने के कारण, दोनों देशों की भाषाओं में पर्याप्त साम्य पाया जाता है। परन्तु इसका श्रोत कैनानायटी (कनान देश)संस्कृतियों में विद्यमान यम ही है । यम (यम्म भी) कनानी  (बहुदेववाद) संस्कृति में एक समुद्र का देवता है। यम उगरिटिक संस्कृति में बाल चक्र में बाल के विरोधी की भूमिका निभाता है। यम :–"सागर" के लिए कनानी शब्द है , जो वस्तुत नदियों और समुद्र के उग्रेटिक देवता का एक नाम है। यह (Titpṭ nhr ) "जज नदी " या नहर के नाम से भी जाना जाता है, उद्धृत अंश :– ( Smith (1994), pase 235 वह 'इल्हाम (एलोहीम) या एल के पुत्रों में से एक है, जिसे लेवेंटिन पेंटीहोन का नाम दिया गया है। लेविथान (/ lvivaɪ.əθən/; हिब्रू: לְוָי (תָן, लिवायतन) यहूदी विश्वास से एक समुद्री राक्षस के रूप में एक प्राणी है, जो हिब्रू में जोव की बाइबिल , स्तोत्र, यशायाह की पुस्तक, आदि में उल्लिखित है। और पेंथिहोन शब्द(ग्रीक heνθεον भाषा का है शाब्दिक रूप से "(एक मंदिर) के सभी देवताओं का", "या सभी देवताओं के लिएक नाम" से "पैन = सम्पूर्णसूत्रम् सभी "और os थोस" = भगवान " किसी भी सभी देवताओं का विशेष समूह है बहुदेववादी धर्म, पौराणिक कथा अथवा परम्पराओं का समूह । सभी देवताओं में से, एल के सर्वोपरि होने के बावजूद, यम देवता डैगन के बेटे बाल हैड के खिलाफ विशेष शत्रुता रखता है। यम समुद्र का एक देवता है और उसका महल महासागरों की गहराईयों में है । अथवा बाइबिल के तेहोम से जुड़े रसातल में है। यम आदिम अराजकता का देवता भी है और जो समुद्र की अदम्य और उग्र शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।

💥 उन्हें सत्तारूढ़ तूफानों और वे आपदाओं के रूप में देखा जाता है, और समुद्री व्यापारियों( Phoenicians) के लिए एक महत्वपूर्ण देवत्व था। फोएनशियन सैमेटिक भाषाओं के बोलने वाले समुद्रीय व्यापारी थे । इस लेख में संदर्भों की एक सूची शामिल है, लेकिन इसके स्रोत अस्पष्ट हैं क्योंकि इसमें अपर्याप्त इनलाइन उद्धरण हैं। याम (यम भी) कनानी पैंटी में समुद्र का देवता है। यम उगरिटिक बाल चक्र में बाल के विरोधी की भूमिका निभाता है। यम (יite ym), "सागर" के लिए कनानी शब्द, नदियों और समुद्र के उग्र देवता का एक नाम है। Titpṭ nhr "जज नदी" के नाम से भी जाना जाता है, [1] वह 'इल्हाम (एलोहीम) या एल के पुत्रों में से एक है, जिसे लेवेंटिन पेंटीहोन का नाम दिया गया है। सभी देवताओं में से, एल के चैंपियन होने के बावजूद, यम, डैगन के बेटे बाल हैड के खिलाफ विशेष शत्रुता रखता है। यम समुद्र का एक देवता है और उसका महल महासागरों की गहराई, या बाइबिल के तेहोम से जुड़े रसातल में है। यम आदिम अराजकता का देवता है और समुद्र की शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है, अदम्य और उग्र; उन्हें सत्तारूढ़ तूफानों और वे आपदाओं के रूप में देखा जाता है, और समुद्री Phoenicians के लिए एक महत्वपूर्ण देवत्व था। देवताओं ने यम को स्वर्गीय पर्वत सप्पन (आधुनिक जेबेल अकरा; सप्पन को त्सेफॉन के लिए संकेतात्मक) से निकाला। [उद्धरण वांछित] यास के साथ बाल-हदद की लड़ाई लंबे समय से मेसोपोटामियन पौराणिक कथाओं में चॉस्कैम्प मयटेम के साथ बराबरी की है जिसमें एक देवता एक "ड्रैगन" या समुद्री राक्षस से लड़ता है और उसे नष्ट कर देता है; सात सिर वाले ड्रैगन लोटन उनके साथ निकटता से जुड़े हुए हैं और यम को अक्सर नागिन के रूप में वर्णित किया जाता है। मेसोपोटामियन तियामत [2] और बाइबिल लेविथान दोनों को इस आख्यान के रिफ्लेक्स के रूप में जोड़ा जाता है, [3] जैसा कि ग्रीक पौराणिक कथाओं में टाइफॉन के साथ ज़ीउस की लड़ाई है। [४] बाल चक्र संपादित करें मुख्य लेख: बाल चक्र Ugaritic Baal Cycle में, देवताओं के प्रमुख एल और दूसरी-स्तरीय दिव्यताओं के लिए पिता, हैद-बाल से लड़ने के लिए यम को नियुक्त करता है। फिल ऑफ़ बाइब्लोस की व्याख्या अनुपात में, एल क्रोनस, हैड-बाल से ज़ीउस, यम टू पोसिडन और मोट से हाइड्स से मेल खाती है। KTU 1.2 iii: "राजगद्दी के अपने सिंहासन से, जिसे तू चला जाएगा," अपने प्रभुत्व की सीट से बाहर! आपके सिर पर अयमारी (चालक) हे यम, अपने कंधों के बीच यगारिश (चेज़र), हे जज नाहर हे होरन, खुले यम, होरोन आपके सिर को तोड़ सकता है, -अर्थात-नाम-की-प्रभु तेरी खोपड़ी! स्वर्ग में एक महान युद्ध में कई देवताओं को शामिल करने के बाद, यम ध्वनि से हार गया: और हथियार बाल के हाथ से झर गया, उसकी उंगलियों के बीच से एक रैपर की तरह। यह राजकुमार याम की खोपड़ी पर हमला करता है, न्यायाधीश नाहर की आँखों के बीच। याहम ढह जाता है, वह पृथ्वी पर गिर जाता है; उसके जोड़ों में दर्द होता है और उसकी रीढ़ हिल जाती है। उसके बाद बाल यम को बाहर निकालता है और उसे टुकड़े टुकड़े करता है; वह न्यायाधीश नाहर का अंत करेगा। हदद एक महान दावत रखता है, लेकिन लंबे समय के बाद वह मोत (मौत) से नहीं लड़ता है और अपने मुंह के माध्यम से वह नटवर्ल्ड में उतरता है। फिर भी यम की तरह, मौत भी हार जाती है और ज में। I AB iii प्रभु मृतकों से उत्पन्न होता है: जीवित रहने के लिए ताकतवर बाल है, रिवाइज्ड प्रिंस, मास्टर ऑफ अर्थ है। ” 'एल वर्जिन अनात को कॉल करता है: "सुनके, हे मायके अनत!" तुलनात्मक पौराणिक कथा संपादित करें बाल-हदद के साथ यम के संघर्ष की कथा लंबे समय से मेसोपोटामियन पौराणिक कथाओं में समानताएं, तियामत और एनलिल और बेबीलोनियन मर्दुक के बीच की लड़ाई और तुलनात्मक रूप से तुलनात्मक पौराणिक कथाओं में कैओसकंफ मोटिफ के बीच तुलना की गई है। [२] लेविथान (/ lvivaɪ.əθən/; हिब्रू: לְוָי (תָן, लिवायतन) यहूदी विश्वास से एक समुद्री राक्षस के रूप में एक प्राणी है, जो हिब्रू में बाइबिल की नौकरी, स्तोत्र, यशायाह की पुस्तक, और बुक ऑफ द बुक में उल्लिखित है। अमोस। एक पेंटीहोन (ग्रीक heνθεον पेंटिहोन से, शाब्दिक रूप से "(एक मंदिर) सभी देवताओं का", "या सभी देवताओं के लिए आम" से "पैन पैन-" सभी "और os थोस" भगवान "किसी भी सभी देवताओं का विशेष सेट है बहुदेववादी धर्म, पौराणिक कथा या परंपरा। प्राचीन ग्रीक में यह शब्द ίκηοινίκη, Phoiník t) प्राचीन सेमिटिक भाषाओं को -बोलने वाली भूमध्यसागरीय सभ्यता थी जो लेवंत, विशेष रूप से लेबनान में उपजाऊ वर्धमान के पश्चिम में उत्पन्न हुई थी। आमतौर पर विद्वान इस बात से सहमत हैं कि यह लेबनान के तटीय क्षेत्रों पर केंद्रित था और इसमें उत्तरी इज़राइल, और दक्षिणी सीरिया शामिल थे जो कि अरवाड के रूप में उत्तर तक पहुँचते थे। लेकिन कुछ विवाद यह भी है कि यह कितना दक्षिण में चला गया, सबसे दूर का सुझाव दिया गया क्षेत्र अश्कोनोन है। इसकी उपनिवेश बाद में पश्चिमी भूमध्यसागरीय, जैसे स्पेन में काडीज़ और उत्तरी अफ्रीका और यहां तक ​​कि अटलांटिक महासागर में सबसे विशेष रूप से कार्थेज तक पहुंच गए। यह सभ्यता 1500 ईसा पूर्व और 300 ईसा पूर्व के बीच भूमध्य सागर में फैली हुई थी। ये लोग यम को समुद्रीय देवता के रूप में अपनी सफल जलीय यात्राओं के लिए आराधना करते थे । देवताओं ने यम को स्वर्गीय पर्वत सप्पन (आधुनिक जेबेल अकरा; सप्पन को त्सेफॉन के लिए संकेतात्मक) से निकाला। यम के साथ बाल-हदद की लड़ाई लंबे समय से मेसोपोटामियन पौराणिक कथाओं में वर्णित है । जिसमें एक देवता एक "ड्रैगन" या समुद्री राक्षस से लड़ता है और नष्ट कर देता है; सात सिर वाले ड्रैगन लोटन उनके साथ निकटता से जुड़े हुए हैं और यम को अक्सर नागिन के रूप में वर्णित किया जाता है। मेसोपोटामियन तियामत और बाइबिल लेविथान दोनों को इस आख्यान के रिफ्लेक्स के रूप में जोड़ा जाता है। जैसा कि ग्रीक पौराणिक कथाओं में टाइफॉन के साथ ज़ीउस की लड़ाई है । Ugaritic Baal Cycle में, देवताओं के प्रमुख एल और दूसरी-स्तरीय दिव्यताओं के लिए पिता, हैद-बाल से लड़ने के लिए यम को नियुक्त करता है। फिल ऑफ़ बाइब्लोस की व्याख्याओं के अनुसार:- , एल ,क्रोनस, हैड-बाल , ज़ीउस, यम, पोसिडन और मोट आदि की कहानीयाँ परस्पर मेल खाती है। "राजगद्दी के अपने सिंहासन से, जिसे तू चला जाएगा," अपने प्रभुत्व की सीट से बाहर! आपके सिर पर अयमारी (चालक) हे यम, अपने कंधों के बीच यगारिश (चेज़र), हे जज नाहर हे होरन, खुले यम, होरोन आपके सिर को तोड़ सकता है, -अर्थात-नाम-की-प्रभु तेरी खोपड़ी! स्वर्ग में एक महान युद्ध में कई देवताओं को शामिल करने के बाद, यम ध्वनि से हार गया: बाल-हदद के साथ यम के संघर्ष की कथा लंबे समय से मेसोपोटामियन पौराणिक कथाओं में समानताएं, तियामत और एनलिल (अनिल) और बेबीलोनियन मर्दुक के बीच की लड़ाई और तुलनात्मक रूप से तुलनात्मक पौराणिक कथाओं में कैओसकंफ मोटिफ के बीच तुलना की गई है। इन देशों के प्राचीनतम ग्रन्थ क्रमश: `ऋग्वेद' तथा `जेन्द अवेस्ता' हैं। `जेन्द अवेस्ता' का निर्माण-काल लगभग सदी ई० पु० 800 के  है। जबकि ऋग्वेद समय ई०पू० 1500 वर्ष पूर्व है । `जेन्द' की भाषा पूर्णत: वैदिक संस्कृत की अपभ्रंश प्रतीत होती है तथा इसके अनेक शब्द या तो वैदिक शब्दों से मिलते-जुलते है अथवा पूर्णत: वैदिक के ही हैं। इसके अतिरिक्त `अवेस्ता' में अनेक वाक्य ऐसे हैं, जो साधारण परिवर्तन से वैदिक भाषाओं के बन सकते हैं। संस्कृत और जिन्द में इसी प्रकार का साम्य देखकर प्रोफेसर हीरेन ने कहा है कि जिन्द भाषा का उद्भव संस्कृत से हुआ है। भाषा के अतिरिक्त वेद और अवेस्ता के धार्मिक तथ्यों में भी पर्याप्त समानता पाई जाती है। दोनों में ही एक ईश्वर की घोषणा की गई है। इन दोनों में वरुण को देवताओं का अधिराज माना गया है। वैदिक `असुर' ही अवेस्ता का `अहुर' है। ईरानी `मज्दा' का वही अर्थ है, जो वैदिक संस्कृत में `महत् ' का। वैदिक `मित्र' देवता ही `अवेस्ता' का `मिथ्र' है। वेदों का यज्ञ `अवेस्ता' का `यस्न' है जो अब जश्न हो गया । वस्तुत: यज्ञ, होम, सोम की प्रथाएं दोनों देशों में थीं। अवेस्ता में `हफ्त हिन्दु' और ऋग्वेद में `सप्त-सिन्धु के रूप वर्णन मिलता है । पहलवी और वौदिक संस्कृत लगभग समान `मित्र' और `मिथ्र' की स्तुतियां एक से शब्दों में हैं। प्रचीन काल में दोनों देशों के धर्मो और भाषाओँ की भी एक सी ही भूमिका रही है। ईरान में अखमनी साम्राज्य का वैभव प्रथम दरियस के समय में चरमोत्कर्ष पर रहा। उसने अपना साम्राज्य सिन्धु घाटी तक फैलाया। तब भारत-ईरान में परस्पर व्यापार होता था। भारत से वहां सूती कपड़े, इत्र, मसालों का निर्यात और ईरान से भारत में घोड़े तथा जवाहरात का आयात होता था । दारा ने अपने सूसा के राजप्रासादों में भारतीय सागौन और हाथीदांत का प्रयोग किया तथा भारतीय शैली के मेराबनुमा राजमहलों का निर्माण करवाया। _________________________________________________ ऋग्वेद और अवेस्ता ए जैंद में समान ऋचाऐं -👇 तवाग्ने होत्रं तव पोत्रमृत्वियं तव नेष्ट्रं त्वमग्निदृतायतः । तव प्रशास्त्रं त्वमध्वरीयसि ब्रह्मा चासि गृहपतिश्च नो दमे ॥ Thine is the Herald's task and Cleanser's duly timed; Leader art thou, and Kindler for the pious man. Thou art Director, thou the ministering Priest: thou art the Brahman, Lord and Master in our home. Khuda or Khoda (Persian: خدا‎‎, Kurdish: ‎Xweda,(ज्वदा )स्वत: Xuda, Urdu: ‎خدا) is the Iranian word for "Lord" or "God". Originally, it was used in reference to Ahura Mazda (the god of Zoroastrianism). (Etymology) व्युत्पत्ति- _________________________________________ The word Khuda in Nastaʿlīq script The term derives from Middle Iranian terms xvatay,(स्वत:) xwadag meaning "lord", "ruler", "master", appearing in written form in Parthian kwdy, in Middle Persian kwdy, and in Sogdian kwdy. It is the Middle Persian reflex of older Iranian forms such as Avestan xva-dhata- "self-defined; autocrat", an epithet of Ahura Mazda. The Pashto term Xwdāi (خدای) is an Eastern Iranian cognate. Prosaic usage is found for example in the Sassanid title katak-xvatay to denote the head of a clan or extended household or in the title of the 6th century Khwaday-Namag "Book of Lords", from which the tales of Kayanian dynasty as found in the Shahnameh derive. . (Zoroastrianism) Semi-religious usage appears, for example, in the epithet zaman-i derang xvatay "time of the long dominion", as found in the Menog-i Khrad. The fourth and eighty-sixth entry of the Pazend prayer titled 101 Names of God, Harvesp-Khoda "Lord of All" and Khudawand "Lord of the Universe", respectively, are compounds involving Khuda. Application of khuda as "the Lord" (Ahura Mazda) is represented in the first entry in the medieval Frahang-i Pahlavig. Islamic usage---- In Islamic times, the term came to be used for God in Islam, paralleling the Arabic name of God Al-Malik "Owner, King, Lord, Master". The phrase Khuda Hafiz (meaning May God be your Guardian) is a parting phrase commonly used in Persian, Kurdish and Pashto, as well as in Urdu among South Asian Muslims. It also exists as a loanword, used for God by Muslims in Bengali, Urdu, although the Arabic word Allah is becoming more common as religious scholars have deemed it more appropriate.This change is opposed by those who hold spiritual views such as a -- I've heard argued that khudaa/khodaa is khwa (self) and daw/taw (capable/powerful), that is al qaadir wa muqtadir. Let me speak from an Urdu perspective... I don't think khudaa is only reserved for God in language. We have naa khudaa (captain of a ship) i.e. (naau khodaa,) which I feel means 'lord of the boat'. -आर्यों का आदि देव अरि 👇 ________________________________________ आर्यों के आदि उपास्य अरि: है । जब आर्यों का आगमन स्वीडन से हुआ जिसे प्राचीन नॉर्स माइथॉलॉजी में स्वेरिगी (Sverige) कहा गया है जो उत्तरी ध्रुव प्रदेशों पर स्थित है । जहाँ छ मास का दिवस तथा छ मास की दीर्घ रात्रियाँ नियमित होती हैं । भू- मध्य रेखीय क्षेत्रों में आगमन काल में आर्यों का युद्ध कैल्ट जन जाति के पश्चात् असीरियन लोगों से सामना हुआ था । वस्तुत: आर्य विशेषण जर्मनिक जन-जातियाँ ने अपने वीर और यौद्धा पुरुषों के लिए रूढ़ कर लिया । जर्मन मूल की भाषाओं में यह शब्द अरीर ( Arier) तथा (Arisch) के रूप में एडॉल्फ हिट्लर के समय तक रूढ़ रहा । यही आर्य भारतीय आर्यों के पूर्वज हैं । परन्तु एडॉल्फ हिट्लर ने भारतीय आर्यों को वर्ण-संकर कहा था। जब आर्य सुमेरियन और बैबीलॉनियन तथा असीरियन संस्कृतियों के सम्पर्क में आये । अनेक देवताओं को अपनी देव सूची में समायोजित किया जैसे विष्णु जो सुमेरियन में बियस-न के रूप मे हिब्रूओं के कैन्नानाइटी देव डेगन (Dagan) नर-मत्स्य देव विष: संस्कृत भाषा में मछली का वाचक है । जो यूरोपीय भाषा परिवार में फिश (Fish) के रूप में विद्यमान है । देव संस्कृति के उपासक जर्मनिक जन-जातियाँ से सम्बद्ध आर्यों का युद्ध असीरियन लोगों से दीर्घ काल तक हुआ , असीरी वर्तमान ईराक-ईरान (मैसॉपोटमिया) की संस्कृतियों के पूर्व प्रवर्तक हैं ।असुरों की भाषाओं में अरि: शब्द अलि अथवा इलु हो गया है । परन्तु इसका सर्व मान्य रूप एलॉह (elaoh) तथा एल (el) ही हो गया है । ऋग्वेद के अष्टम् मण्डल के ५१ वें सूक्त का ९ वाँ श्लोक अरि: का ईश्वर के रूप में वर्णन करता है !__________________________________________

"यस्यायं विश्व आर्यो दास: शेवधिपा अरि: तिरश्चिदर्ये रुशमे पवीरवि तुभ्येत् सोअज्यते रयि:|९ _________________________________________
अर्थात्-- जो अरि इस सम्पूर्ण विश्व का तथा आर्य और दास दौनों के धन का पालक अथवा रक्षक है , जो श्वेत पवीरु के अभिमुख होता है , वह धन देने वाला ईश्वर तुम्हारे साथ सुसंगत है । ऋग्वेद के दशम् मण्डल सूक्त( २८ )श्लोक संख्या (१) देखें- यहाँ भी अरि: देव अथवा ईश्वरीय सत्ता का वाचक है ।_________________________________________ " विश्वो ह्यन्यो अरिराजगाम , ममेदह श्वशुरो ना जगाम । जक्षीयाद्धाना उत सोमं पपीयात् स्वाशित: पुनरस्तं जगायात् ।। ऋग्वेद--१०/२८/१ _____________________________________________ ऋषि पत्नी कहती है ! कि सब देवता निश्चय हमारे यज्ञ में आ गये (विश्वो ह्यन्यो अरिराजगाम,) परन्तु मेरे श्वसुर नहीं आये इस यज्ञ में (ममेदह श्वशुरो ना जगाम )यदि वे आ जाते तो भुने हुए जौ के साथ सोमपान करते (जक्षीयाद्धाना उत सोमं पपीयात् )और फिर अपने घर को लौटते (स्वाशित: पुनरस्तं जगायात् ) प्रस्तुत सूक्त में अरि: देव वाचक है । देव संस्कृति के उपासकआर्यों ने और असुर संस्कृति के उपासक आर्यों ने अर्थात् असुरों ने अरि: अथवा अलि की कल्पना युद्ध के अधिनायक के रूप में की थी । सुमेरियन और बैबीलॉनियन तथा असीरियन संस्कृतियों के पूर्वजों के रूप में ड्रयूड (Druids )अथवा द्रविड संस्कृति से सम्बद्धता है । जिन्हें हिब्रू बाइबिल में द्रुज़ कैल्डीयन आदि भी कहा है ये असीरियन लोगों से ही सम्बद्ध हैं।  _________________________________________ हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम को मानने वाली धार्मिक परम्पराओं में मान्यता है ,कि कुरान से पहले भी अल्लाह की तीन और किताबें थीं , जिनके नाम तौरेत , जबूर और इञ्जील हैं । , इस्लामी मान्यता के अनुसार अल्लाह ने जैसे मुहम्मद साहब पर कुरान नाज़िल की थी ,उसी तरह हजरत मूसा को तौरेत , दाऊद को जबूर और ईसा को इञ्जील नाज़िल की थी . यहूदी सिर्फ तौरेत और जबूर को और ईसाई इन तीनों में आस्था रखते हैं ,क्योंकि स्वयं कुरान में कहा है , ------------------------------------------------------------ 1-कुरान और तौरेत का अल्लाह एक है:--- ------------------------------------------------------------- "कहो हम ईमान लाये उस चीज पर जो ,जो हम पर भी उतारी गयी है , और तुम पर भी उतारी गयी है , और हमारा इलाह और तुम्हारा इलाह एक ही है . हम उसी के मुस्लिम हैं " (सूरा -अल अनकबूत 29:46) ""We believe in that which has been revealed to us and revealed to you. And our God and your God is one; and we are Muslims [in submission] to Him."(Sura -al ankabut 29;46 )"وَإِلَـٰهُنَا وَإِلَـٰهُكُمْ وَاحِدٌ وَنَحْنُ لَهُ مُسْلِمُونَ " इलाहुना व् इलाहकुम वाहिद , व् नहनु लहु मुस्लिमून " यही नहीं कुरान के अलावा अल्लाह की किताबों में तौरेत इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि कुरान में तौरेत शब्द 18 बार और उसके रसूल मूसा का नाम 136 बार आया है ! , यही नहीं मुहम्मद साहब भी तौरेत और उसके लाने वाले मूसा पर ईमान रखते थे , जैसा की इस हदीस में कहा है , "अब्दुल्लाह इब्न उमर ने कहा कि एक बार यहूदियों ने रसूल को अपने मदरसे में बुलाया और ,अबुल कासिम नामक व्यक्ति का फैसला करने को कहा , जिसने एक औरत के साथ व्यभिचार किया था . लोगों ने रसूल को बैठने के लिए एक गद्दी दी , लेकिन रसूल ने उस पर तौरेत रख दी । और कहा मैं तुझ पर और उस पर ईमान रखता हूँ और जिस पर तू नाजिल की गयी है , फिर रसूल ने कहा तुम लोग वाही करो जो तौरेत में लिखाहै . यानी व्यभिचारि को पत्थर मार कर मौत की सजा , (महम्मद साहब ने अरबी में कहा "आमन्तु बिक व् मन अंजलक - ‏ آمَنْتُ بِكِ وَبِمَنْ أَنْزَلَكِ ‏"‏ ‏.‏ " _____________________________________ I believed in thee and in Him Who revealed thee. सुन्नन अबी दाऊद -किताब 39 हदीस 4434 इन कुरान और हदीस के हवालों से सिद्ध होता है कि यहूदियों और मुसलमानों का अल्लाह एक ही है और तौरेत भी कुरान की तरह प्रामाणिक है . चूँकि लेख अल्लाह और उसकी पत्नी के बारे में है इसलिए हमें यहूदी धर्म से काफी पहले के धर्म और उनकी संस्कृति के बारे में जानना भी जरूरी है . लगे , और यहोवा यहूदियों के ईश्वर की तरह यरूशलेम में पूजा जाने लगा । __________________________________________ जिस अल्लाह के नाम पर मुफ़्ती मौलाना दुनियाँ में सन्देश देकर फ़तवा जारी करते हैं ,कि अल्लाह नाम का उच्चारण गै़र इस्लाम के लिए हराम व ग़ुनाह है " और फिर इनके शागिर्द सारी दुनिया में जिहादी आतंक फैला कर रोज हजारों निर्दोष लोगों की हत्या करते रहते हैं । परन्तु अल्लाह भी इन जिहादीयों का नहीं है । , क़्योकि इस्लाम से पहले अरब में कोई अल्लाह का नाम भी नहीं जनता था । ______'________________________________________ वहाँ के वद्दू कौम ने यहूदीयों की परम्पराओं को आत्मसात् किया । तौरेत यानि बाइबिल के पुराने नियम में ईश्वर के लिए हिब्रू में " य ह वे ह - (Hahw ) : יהוה‎ "शब्द आया है ,जो एक उपाधि ( epithet ) है . तौरेत में इस शब्द का प्रयोग तब से होने लगा जब" यहूदियों ने यहोवा को इस्राएल और जूडिया का राष्ट्रीय ईश्वर बना दिया था । या:वे शब्द कैन्नानाइटी संस्कृति से हिब्रू परम्पराओं ने आत्मसात् किया ... कैन्नानाइटी संस्कृति में यहोवा का रूप यम (Yam) यम: है । वहाँ "यम" कनानीयों का नदी समुद्र तथा पर्वतों का अधिष्ठात्री देवता था । कैन्नानाइटी संस्कृति में यम का रूप यम्म (Yamm) है , कनानीयों में बहुदेववाद की पृथा विद्यमान थी । कनान संस्कृति में यम शब्द नदी का वाचक है । और समुद्र का भी .. सम्भवत: संस्कृत भाषा में यमुना शब्द वहीं से अवतरित हुआ । अवेस्ता ए जेन्द़ में यिम को विबनघत ( वैदिक रूप विवस्वत्) का पुत्र स्वीकार किया है । परन्तु यहवती तथा यह्व जैसे शब्द ऋग्वेद में वर्णित हैं । कैन्नानाइटी मायथॉलॉजी में यम एल (El) के पुत्र हैं । क्योंकि की पौराणिक कथाओं में यमुना यम की भगिनी है । परन्तु यह तो एक नदी है .. कनान संस्कृति के विषय बता दें कि यह इज़राएल फॉनिशी तथा एमॉराइट जन-जातियाँ कनानीयों की सहवर्ती रही हैं । तथा कनानीयों की भाषा उत्तरीय-पश्चिमीय सैमेटिक भाषा की एक उपशाखा थी । वर्तमान में जो रास- समरा है वही पुरातन काल में यूगेरिट (Ugarit) नामक पत्तन- शहर था । जो उत्तरी सीरिया की मुख्य-भूमि है । हिट्टी और मिश्र से इनका सांस्कृतिक सम्पर्क रहा । कैन्नानाइटी संस्कृति का ही एक रूप यहाँ की संस्कृति थी । यम ही यहाँ का मुख्य देव था । यम को हिब्रू परम्पराओं में इलहम(ilhm) अथवा एलोहिम(Elohim) भी कहा गया है । जिसका अर्थ होता है एल का यम अर्थात् एल का पुत्र यम ... एलोहिम (Elohim) वस्तुत: एक बहुचन संज्ञा है । हिब्रू भाषा में इम (im) प्रत्यय बहुवचन पुल्लिंग संज्ञा बनाने के लिए प्रयुक्त होता है । अत: एलोहिम Elohim अक्काडियन ullu से विकसित हिब्रू इलाह अथवा इलॉही (Elohei)का बहुवचन रूप भी है। प्रथम वार यह शब्द तनख़ अर्थात् हिब्रू बाइबिल सर्वोपरि ईश्वरीय सत्ता का वाचक है... सृष्टि-खण्ड ( Genesis 1:1 ) एल (El) का बहुवचन रूप एलोहिम (Elohim) तनख़ अर्थात् हिब्रू बाइबिल में एलोहिम शब्द 2,570. वार प्रयुक्त है । इलॉही( Elohei) शब्द का अर्थ है ---एल सम्बन्धी अर्थात् ईश्वरीय... अथवा मेरा एल .. Elohei Haelohim.=. "ईश्वरों का ईश्वर" हिब्रू परम्पराओं में ईश्वर के तीन नाम में एल (el) एलॉह (elaoh) तथा बहुवचन रूप (Elaohim) अरब़ी भाषा में अल्लाह शब्द की व्युत्पत्ति- अल् इलाह के द्वारा हुई है । अल् एक सैमेटिक भाषा परिवार में उपसर्ग (Prefix) है जो संज्ञा की निश्चयात्मकता को सूचित करने वाला उपपद (Article) है । अंग्रेजी में "The "एक निश्चयात्मक उपपद है । जैसे अंग्रेज़ी में " The book "को अरब़ी भाषा में कहेंगे अल् किताब़----- अत: अल् इलाह का अर्थ हुआ -- "The God " हिब्रू भाषा में निश्चयात्मक उपपद (Definite Article) वर्तमान में "हा (ha)"है ..स्पेनिश में (el) के रूप में है । ----------------------------------------------------------------- ऐसी भाषाविदों की मान्यता है । हिब्रू भाषा में( el )एल तथा (eloah) एलॉह दो रूप प्रचीन हैं । यह नाम वस्तुत: पारसीयों के यिम से सम्बद्ध है---- जो अवेस्ता ए जेन्द़ में विवनघत का पुत्र है जिसे वेदों में विवस्वत् का पुत्र यम कहा गया है । यम कनानीयों की संस्कृति में पाताल (Abyss) का देवता है ।"

( यम ) कनानी संस्कृति में समुद्र का देवता है ।
तथा उगारिटिक बाल चक्र में यह यम बाल के विरोधी की भूमिका निभाता है। यम "सागर" के लिए कनानी शब्द है, नदियों और सागर के युगिटिक देवता का एक नाम है यम ।
  (nhr )नहर "न्यायाधीश नदी" शीर्षक भी यम के लिए रूढ़ हैं,।
वह 'इल्म ( एलोहिम ) या एल के पुत्रों में से एक है, जो नाम लेवेंटाइन पैंथियन को दिया गया है।
एल के चैंपियन (विजेता)होने के बावजूद सभी देवताओं में से, 
एल का पुत्र यम बाल हदाद के खिलाफ विशेष शत्रुता रखता है।
यम समुद्र का देवता है और उसका महल महासागरों की गहराइयों, या बाइबिल के तहम से जुड़े अस्थियों में है। यम प्रायोगिक अराजकता का देवता है और समुद्र की शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है, untamed & raging;  (अदम्य और उग्र )उन्हें सत्तारूढ़ तूफान और आपदाओं के विनाश के रूप में देखा जाता है।
और यह समुद्री फोएनशियनों के लिए एक महत्वपूर्ण दिव्यता थी। जिन्हें वैदिक सूक्तों में पणि कहा गया है ।
देवताओं ने यम को स्वर्गीय पर्वत सपन से (आधुनिक जेबेल अकरा ; सपन को त्सफोन के लिए जाना जाता है ) से बाहर निकाल दिया।
यम के साथ बाल-हदाद की लड़ाई लंबे समय से मेसोपोटामियन पौराणिक कथाओं में कैओस्कैम्प माईथेम के साथ समझा गया है।
जिसमें एक देवता झगड़ा करता है और " ड्रैगन " या समुद्र के दैत्य को नष्ट कर देता है; सात-सिर वाले ड्रैगन लोटन उनके साथ निकटता से जुड़े हुए हैं।
और यम को प्रायः सांप के रूप में वर्णित किया जाता है
( Mesopotamian Tiamat )
और बाइबिल के लेविथन दोनों को इस कथा के प्रतिबिम्ब के रूप में जोड़ा जाता है,
ग्रीक पौराणिक कथाओं में टायफॉन( तूफान)के साथ ज़ीउस  वैदिक सूक्तों में द्यौस (ज्यूस)की लड़ाई है
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_______________________________________ "Yam is the deity of The sea and his place is in the abyss ..." बाइबिल पाताल अथवा नरक को तेहॉम के रूप में वर्णित करती है । जो वस्तुत: भारतीयों का तमस् अथवा नरक है । यद्यपि नरक सुमेरियन नर्गल तथा ग्रीक नारकॉ (Narco ) और नॉर्स माइथॉलॉजी प्रॉज-एड्डा में नारके है । नॉर्स माइथॉलॉजी में नारके हिम युक्त वह शीत प्रदेश है जहाँ यमीर रहता है ,जो हिम रूप है । _________________________________________ वस्तुत: यहोवा /याह्वे अथवा एलोहिम यहूदीयों का देव है। जिसका पिता "एल" है । जिससे अरब़ी संस्कृति में अल्लाह शब्द का विकास हुआ... __________________________________________ एल देवता फॉनिशियन,सीरियायी, हिब्रू तथा अक्काडियन संस्कृतियों में सर्वोपरि ईश्वरीय सत्ता का वाचक है , अरब़ी संस्कृति में यह इल तथा इलाह दो रूपों में विद्यमान है , जो अक्काडियन इलु से सम्बद्ध है । एमॉराइट तथा अक्काडियन संस्कृतियों में यह शब्द सेमेटिक भाषा से आया ... जिसका सम्बन्ध असीरियन मूल से है । ये असीरियन लोग वेदों में वर्णित असुर ही हैं । संस्कृत भाषा में " र" वर्ण की प्रवृति असुरों की भाषा मे "ल" वर्ण के रूप में होती है ... "अरे अरे सम्बोधनं रूपं अले अले कुर्वन्त: तेsसुरा: पराबभूवु: " -----(यास्क निरुक्त ) ---------------------------------------------------------------- ऋग्वेद १०/१३/८,३,४, तथा शतपथ ब्राह्मण में वर्णित किया गया है कि असुर देवताओं की वाणी का भिन्न रूप में उच्चारण करते थे । अर्थात् असीरियन लोग "र" वर्ण का उच्चारण "ल" के रूप में करते थे । शतपथ ब्राह्मण में वर्णित है " तेsसुरा हे अलयो !हे अलय इति कुर्वन्त: पराबभूवु: पतञ्जलि ने महाभाष्य के पस्पशाह्निक अध्याय में शतपथ ब्राह्मण ग्रन्थ के इस वाक्य को उद्धृत किया है । ------------------------------------------------------------ ऋग्वेद के द्वित्तीय मण्डल के १२६वें सूक्त का पञ्चम छन्द में अरि शब्द आर्यों के सर्वोपरि ईश्वरीय सत्ता का वाचक है: -------------------------------------------------------------- पूर्वामनु प्रयतिमा ददे वस्त्रीन् युक्ताँ अष्टौ-अरि(अष्टवरि) धायसो गा: । सुबन्धवो ये विश्वा इव व्रा अनस्वन्त:श्रव ऐषन्त पज्रा: ।।५।। ------------------------------------------------------------------ ऋग्वेद---२/१२६/५ तारानाथ वाचस्पति ने वाचस्पत्यम् संस्कृत कोश में सन्दर्भित करते हुए.. वर्णित किया है--अरिभिरीश्वरे:धार्य्यतेधा ---असुन् पृ० युट् च । ईश्वरधार्य्ये ।" अष्टौ अरि धायसो गा: " ऋग्वेद १/१२६/ ५/ अरिधायस: " अर्थात् अरिभिरीश्वरै: धार्य्यमाणा "भाष्य । ________________________________________ अरि शब्द के लौकिक संस्कृत मे कालान्तरण में अनेक अर्थ रूढ़ हुए --- अरि :---१---पहिए का अरा २---शत्रु ३-- विटखदिर ४-- छ: की संख्या ५--ईश्वर वाचस्पत्यम् संस्कृत कोश में अरि धामश्शब्दे ईश्वरे उ० विट्खरि अरिमेद:।" सितासितौ चन्द्रमसो न कश्चित बुध:शशी सौम्यसितौ रवीन्दु । रवीन्दुभौमा रविस्त्वमित्रा" इति ज्योतिषोक्तेषु रव्यादीनां ______________________________________ हिब्रू से पूर्व इस भू-भाग में फॉनिशियन और कनानी संस्कृति थी , जिनके सबसे बड़े देवता का नाम हिब्रू में "एल - אל‎ " था । जिसे अरबी में ("इल -إل‎ "या इलाह إله-" )भी कहा जाता था , और अक्कादियन लोग उसे "इलु - Ilu "कहते थे , इन सभी शब्दों का अर्थ "देवता -god " होता है । इस "एल " देवता को मानव जाति ,और सृष्टि को पैदा करने वाला और "अशेरा -" देवी का पति माना जाता था ------------------------------------------------------------- (El or Il was a god aalso known as the Father of humanity and all creatures, and the husband of the goddess Asherah ------------------------------------------------------------ (בעלה של אלת האשרה) .सीरिया के वर्तमान प्रमुख स्थलों में " रास अस शम -رأس‎, "शाम की जगह) करीब 2200 साल ईसा पूर्व एक मिटटी की तख्ती मिली थी , जिसने इलाह देवता और उसकी पत्नी. . अशेरा के बारे में लिखा था , पूरी कुरान में 269 बार इलाह - إله-" " शब्द का प्रयोग किया गया है , और इस्लाम के बाद उसी इलाह शब्द के पहले अरबी का डेफ़िनिट आर्टिकल "अल - ال" लगा कर अल्लाह ( ال اله ) शब्द गढ़ लिया गया है , जो आज मुसलमानों का अल्लाह बना हुआ है । _________________________________________________ इसी इलाह यानी अल्लाह की पत्नी का नाम अशेरा है . अशेरा का परिचय अक्कादिअन लेखों में अशेरा को अशेरथ (Athirath ) भी कहा गया है , इसे मातृृत्व और उत्पादक की देवी भी माना जाता था , यह सबसे बड़े देवता "एल " की पत्नी थी । . इब्राहिम से पहले यह देवी मदयन से इजराइल में आ गयी थी। इस्राइलीय इसे भूमि के देवी भी मानते थे। इजराइल के लोगों ने इसका हिब्रू नाम "अशेरह - (אֲשֵׁרָה‎), " कर दिया ! और यरूशलेम स्थित यहोवा के मंदिर में इसकी मूर्ति भी स्थापित कर दी गयी थी ,अरब के लोग इसे " अशरह (-عشيره ") कहते थे , और हजारों साल तक यहोवा के साथ इसकी पूजा होती रही थी । . -अशेरा अल्लाह की पत्नी अशेरा यहोवा उर्फ़ इलाह यानी अल्लाह की पत्नी है यह बात तौरेत की इन आयतों से साबित होती है । _______________________________________

जो इस प्रकार है------ "HWH came from sinai ,and shone forth from his own seir ,He showed himself from mount Paran ,yes he came among the myriads of Qudhsu at his right hand , his own Ashera indeed , he who loves clan and all his holy ones on his left " __________________________________________

"यहोवा सिनाई से आया , और सेईर से पारान पर्वत से हजारों के बीच में खुद को प्रकाशित किया , दायीं तरफ कुदशु (Qudshu:( Naked Goddess of Heaven and Earth') और उसकी "अशेरा ", और जिनको वह प्रेम करता है वह लोग बायीं तरफ थे " (तौरेत - व्यवस्था विवरण 33 :2 -3 (Deuteronomy 33.2-3,) । यहोवा और उसकी अशेरा का तात्पर्य यहोवा और उसकी पत्नी अशेरा है । तौरेत में अशेरा का उल्लेख अशेरा का उल्लेख तौरेत (Bible)की इन आयतों में मिलता है "उसने बाल देवता की वेदी के साथ अशेरा को भी तोड़ दिया " Judges 6:25). " और उसने अशेरा की जो मूर्ति खुदवाई उसे यहोवा के भवन में स्थापित किया "(2 Kings 21:7 " और जितने पात्र अशेरा के लिए बने हैं उन्हें यहोवा के मंदिर से निकालकर लाओ "2 ) "स्त्रियां अशेरा के लिए परदे बना करती थीं "2 Kings 23:7). "सामरिया में आहब ने अशेरा की मूर्ति लगायी । अशेराह वस्तुत: भारतीय संस्कृति में अपने प्रारम्भिक चरण में स्त्री रूप में है । स्त्री शब्द ही श्री रूप में वेदों में सन्दर्भित हुआ है । रोमन संस्कृति में सेरीज (Ceres)--in ancient (Roman mythology) सुमेरियन संस्कृति में इनन्ना (नना) अथवा ईष्टर(ishtar) वेदों की नना और स्त्री हैं "

Roman religion Ceres was a goddes of agriculture,grain crops , fertility & motherly relationship" in roman mythology... अर्थात् रोमन आर्यों की संस्कृति में सेरीज कृषि धन फसल तथा धन-धान्य की देवी है । सेरीज (Ceres) शब्द... कैल्ट संस्कृति में शेला (Sheila)---celtic fertility goddess .. पूरा नाम शिला ना गिग sheela Na gig... यही शब्द यूरोपीय भाषा परिवार में अॉइष्ट्रस् (Oestrus) पुरानी अंग्रेज़ी में eastre .. आद्य जर्मनिक Austro .. संस्कृत ऊषा .. वेदों में अरि तथा स्त्री शब्द गौण रह गये हैं । वैदिक भाषा में अरि शब्द घर तथा ईश्वर का भी वाचक है ,परन्तु लौकिक संस्कृत में यह शत्रु वाची ही हो गया                    जिस नैतिक नियम को आज ''  (Ethic of Resprosity)कहते हैं उसे भारत में प्राचीन काल से मान्यता तो बुद्ध के सिद्धान्तों से मिली। __________________________________________ श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चाप्यवधार्यताम्। आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्।। (पद्मपुराण,  सृष्टि-खण्ड:- (19/357-358) (अर्थ: धर्म का सर्वस्व क्या है ? सुनो ! और सुनकर इसका अनुगमन करो। जो आचरण स्वयं के प्रतिकूल हो, वैसा आचरण दूसरों के साथ नहीं करना चाहिये।) महात्मा बुद्ध के भी यही वचन थे ! परन्तु पुष्य-मित्र सुंग कालीन ब्राह्मणों का धर्म केवल वर्ण-व्यवस्था गत नियमों का वंश परम्परा गत पालन करने से था । यह धर्म की परिवर्तित रूप था । आप जानते हो जब वस्त्र जब नया होता है । वह शरीर पर सुशोभित भी होता है ; और शरीर की सभी भौतिक आपदाओं से रक्षा भी करता है ।👇 परन्तु कालान्तरण में वही वस्त्र जब पुराना होने पर जीर्ण-शीर्ण होकर चिथड़ा बन जाता है । अर्थात्‌ उसमें अनेक विकार आ जाते हैं । तब उसका शरीर से त्याग देना ही उचित है । परन्तु अचानक नहीं क्यों कि आप नंगे हो जाओगे । हम्हें इसका विकल्पों नवीन वस्त्रों के रूप में करना चाहिए आधुनिक धर्म -पद्धतियाँ केवल उन रूढ़ियों का घिसा- पिटा रूप है --जो बस व्यवसाय वादी ब्राह्मणों के स्वार्थ सिद्ध के विधान मूलक उपक्रम हैं । मन्दिर इनकी आरक्षित पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली दुकानें हैं । देवता भी इनके अनजाने हैं । जितने भी मठ-आश्रम हैं ज्यादातर अय्याशी के ठिकाने हैं। बताओ क्या सर्व-व्यापी ईश्वर मन्दिर में कैद है ? क्या कर्म- काण्ड परक धार्मिक अनुष्ठान करने से ईश्वर के दर्शन हो जाऐंगे ? क्या ईश्वर दान का भूखा है ? क्या ईश्वर ने ब्राह्मणों को अपने मुख से उत्पन्न किया । क्या शूद्र पैरों से उत्पन्न हुए ? ये बैहूदी बाते धर्म की बाते हैं । परन्तु आज इस धर्म की जरूरत नहीं ! आज आवश्यकता है विज्ञान और साम्य मूलक सामाजिक व्यवस्थाओं की ! तुमने राक्षसों को अधर्मी कहा । तुमने असुरों को दुराचारी कहा। जबकि वस्तु स्थित इसके विपरीत है ।👇 वाल्मीकि-रामायण में असुर की उत्पत्ति का उल्लेख :- वाल्मीकि रामायण कार ने वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड सर्ग 45 के 38 वें छन्द में ) सुर-असुर की परिभाषा करते हुये लिखा है- “सुरा पीने वाले सुर और सुरा नहीं पीने वाले असुर कहे गये l” सुराप्रतिग्रहाद् देवा: सुरा इत्याभिविश्रुता:. अप्रतिग्रहणात्तस्या दैतेयाश्‍चासुरा: स्मृता:॥ परन्तु ब्राह्मणों के स्वार्थ परक धर्म ने ही वर्ण-व्यवस्था के विधानो की श्रृंखला में समाज को बाँधने की कृत्रिम चेष्टा की! तो परिमाण स्वरूप समाज अपने मूल स्वरूप से विखण्डित हुआ । इन्होंने ने जाति मूलक वर्ण-व्यवस्था के पालन को ही धर्म कहा समाज में असमानता पनपी --जो वास्तविक परिश्रमी कर्म कुशल अथवा सैनिक या यौद्धा थे । उन्हें शूद्र कहकर उनके अधिकार छीन लिए धर्म का झाँसा देकर  जब्त करलिए गये पढ़ने और लड़ने के अधिकार भी --जो अय्याश अथवा ब्राहमणों के चापलूस थे । उन्हें कृत्रिम क्षत्रिय घोषित कर दिया गया । अन्ध-श्रृद्धा धर्म का पर्याय बन गयी  ! मन्दिर में चढ़ाबे के नाम पर नित्य नियमित अन्ध-भक्तों द्वारा सोने-चाँदी तथा धन चढ़ाया जाता । सोमनाथ की शिव प्रतिमा 200मन स्वर्ण की निर्मित थी । दक्षिण भारतीय इतिहास मन्दिरों में देख लो ! निम्न समझे जाने वाले  वर्गों  से सुन्दर व नव यौवना कन्याएें  देवदासी के रूप में तैनात की जाती तथा मन्दिर के पुजारी  उनके साथ सम्पृक्त होकर अपनी अतृप्त वासनाओं की तृप्ति करते । विदेशी लोग भारत की इस अन्धी श्रृद्धा से परिचित हो गये तब ज्ञात इतिहास में पहले ईरानीयों में दारा प्रथम ने भारत को जाता फिर सिकन्दर ने  फिर सात सौ बारह ईस्वी में अरब से सिन्ध होते हुए :- मोहम्मद विन काशिम ने  तथा फिर महमूद गजनबी 1000ईस्वी तथा अन्त में फिर ईष्ट-इण्डिया कम्पन के माध्यम से अंग्रेजों का आगमन हुआ। ये धर्म ही था जिसने देश को गुलाम बनाया । और ब्राहमणों का धर्म इसके लिए जिम्बेबार था । क्या हम्हें फिर गुलाम बनना है ? धर्म की असली परिभाषा तो बुद्ध ने की 👇 इसे कितने ब्राह्मण मानते हैं ! धर्म की मात्र इतनी सी परिभाषा है कि --जो व्यवहार हम अपने लिए उचित समझते हैं । वही व्यवहार हम दूसरों के भी साथ करें । यह धर्म है । परन्तु ब्राहमणों का धर्म सूत्र कहता है ।कि 👇 ________________________________ दु:शीलो८पि द्विज: पूजयेत् . न शूद्रो विजितेन्द्रिय: क:परीतख्य दुष्टांगा दोहिष्यति शीलवतीं खरीम् पाराशर-स्मृति (१९२) अर्थात्‌ ब्राह्मण यदि व्यभिचारी भी हो तो भी 'वह पूजने योग्य है । जबकि शूद्र जितेन्द्रीय और विद्वान  होने पर भी पूजनीय नहीं । शील वती गधईया से बुरे शरीर वाली गाय भली ... अब बताऐं कि ये धर्म त्यागना चाहिए या नहीं !

________________________________________________ विचार-विश्लेषण--- यादव योगेश कुमार 'रोहि' ग्राम :-आजा़दपुर पत्रालय :-पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़--- सम्पर्क सूत्र --8077160219./ _____________________________________