मंगलवार, 23 जनवरी 2018

पुराणों में विरोधाभासी वर्णन उनकी प्रचीनता को संदिग्ध करता है ।

अहीरों को वास्तविक यदुवंशी सिद्ध करने के लिए केवल एक ऋग्वेद के दशम् मण्डल के ६२वें सूक्त की १० वीं ऋचा ही काफी है । यह ऋचा प्राचीनत्तम भी है ।
जिनमें यदु और तुर्वसु को दास कहा गया है ।और वेदों में दास का अर्थ आर्यों के प्रतिद्वन्द्वी असुरों से है ।
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" उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टी गोपरीणसा यदुस्तुर्वश्च च मामहे। ऋग्वेद १०/६२/१० ।
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अर्थात् यदु और तुर्वसु नामक दौनो दास जो गायों से घिरे हुए हैं गोप हैं हम उन सौभाग्य शाली दौनों दासों की प्रशंसा करते हैं। ऋग्वेद १० /६२ /१०

और यदु पुराणों की बात करें तो महाभारत का खिल-भाग हरिवंश पुराण में वसुदेव को गोप रूप में वर्णित किया गया है ।
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"इति अम्बुपतिना प्रोक्तो वरुणेन अहमच्युत गवां कारणत्वज्ञ :सतेनांशेन जगतीं गत्वा गोपत्वं एष्यति"
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हरिवंश पुराण ब्रह्मा की योजना नामक सौलहवा अध्याय ।

तथा बारहवीं सदी में रचित ग्रन्थ श्री-मद्भगवद् पुराण में दोगला वर्णन उपहास्यास्पद ही है ।
कि जब अर्जुन द्वारिका से वृष्णि वंशीयों गोपों की पत्नीयाें को अपने साथ इन्द्र-प्रस्थ लेकर आता है ।
तब गोप अथवा आभीर अर्जुन को लूट लेते हैं ।
भागवत पुराण में लिखा है ।
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" सो८हं नृपेन्द्र रहित: पुरुषोत्तमेन ।
  सख्या  प्रियेण सुहृदा हृदयेन शून्य: ।।
अध्वन्युरूक्रम परिग्रहम् अंग रक्षन् ।
गौपै: सद्भिरबलेव विनिर्जितो८स्मि ।२०।
(पृष्ट संख्या १७६ )
हे राजन् ! जो मेरे सखा अथवा -प्रिय मित्र ---नहीं नहीं मेरे हृदय ही थे । उन्हीं पुरुषोत्तम से मैं रहित हो गया । कृष्ण की पत्नीयाें को द्वारिका से अपने साथ इन्द्र-प्रस्थ लेकर आर रहा था । परन्तु मार्ग में दुष्ट गोपों ने मुझे एक अबला के समान हरा दिया ।और मैं अर्जुन उनकी रक्षा नहीं कर सका !

महाभारत के मूसल पर्व में गोप के स्थान पर आभीर शब्द का प्रयोग --
ततो लोभ: समभवद् दस्यूनां निहतेश्वरा:।
दृष्टवा स्त्रीयो नीयमाना: पार्थेनैकेन भारत ।४६।
हे भरत नन्दन! एकमात्र अर्जुन के संरक्षण में लायी जाती हुई स्त्रीयों को देख कर वहाँ रहने बाले डाँकूओं के मन मे लोभ उत्पन्न हो गया ।
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ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: ।
आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।। ४७।।
अर्थात् लोभ से जिनकी विवेक शक्ति नष्ट हो गयी ।उन अशुभ दर्शी पापा चारी अहीरों ने परस्पर मिलकर सलाह की ।

(वाल्मीकि-रामायण की भाषा से साम्य )
उग्रदर्शन कर्मणो बहवस्तत्र दस्यवः।
आभीर प्रमुखाः पापाः पिबन्ति सलिलं मम।३३।
यहाँ पापा कर्माणो  तथा उग्र या अशुभ दर्शन दौनो विशेषण समान हैं । जो सिद्ध कर के हैं कि ये अहीरों के विषय में लिखने वाला एक है ।
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अर्थात् लोभ से जिनकी विवेक शक्ति नष्ट हो गयी ।उन अशुभ दर्शी पापा चारी अहीरों ने परस्पर मिलकर सलाह की ।
अयमेको८र्जुनो धन्वी वृद्ध बालं हतेश्वरम्।
नयत्यसमानतिक्रम्य योधाश्चेमे हतौजस: ।४८।
ये अकेला अर्जुन धनुर्धरऔर ये हतोत्साहित सैनिक हम को लांघकर वृद्धों और बालकों  के इस अनाथ समुदाय को लिए जारहे हैं । अत: इनपर आक्रमण करना चाहिए।
ततो यष्टिप्रहरणा दस्यवस्ते सहस्रश: ।
अभ्यधावन्त वृष्णिनां तं जनं लोप्त्रारिण:।४९।
ऐसा निश्चय  करके लूट का मूल उड़ाने वाले वे लट्ठधारी लुटेरे वृष्णि वंशीयों पर हजारों'की संख्या में-- टूट पड़े ।

मिषतां  सर्वयोधानां ततस्ता: प्रमदोत्तमा:।
समन्ततो८वकृष्यन्तकामात् च अन्या: प्रवव्रजु: ।।५९।
सब योद्धाओं के देखते देखते वे डाँकू उन सुन्दर स्त्रीयों को चारो-और से खींच खींच कर ले जाने लगे ।दूसरी स्त्रीयाँ उनके स्पर्श भय से उनकी इच्छा के अनुसार चुपचाप उनके साथ चली गयीं ।
मनो  मे दीर्यते येन चिन्तयानस्य वै मृदु: ।
पश्यतो वृष्णिदाराश्च मम ब्रह्मन् सहस्रश:।।१६।
आभीरैरनुसृत्याजौ हृता: पञ्चनदालयै: ।।
             (मूसल पर्व अष्टम् अध्याय )

क्या इन तथ्यों का उत्तर है आपके पास तो दें

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