रविवार, 29 सितंबर 2019

दुर्गा का सुमेरियन रूप


पुराणों में दुर्गा को यादवी अर्थात् यादव कन्या कहा -
प्रस्तुत हैं उसके कुछ पौराणिक सन्दर्भ :-👇
प्रथम गायत्री माता के विषय में देखें
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                  ।सावित्र्युवाच।
लक्ष्मीर्नाद्यापिचायातिसतीनैवेहदृश्यते।बृहदाग्रायणेहूताशक्राणीगच्छतीत्विह।

नाहमेकाकिनीयास्येयावन्नायान्तिताःस्त्रियः॥ब्रूहिगत्वाविरिञ्चिन्तंतिष्ठत्विहृमुहूर्त्तकम्॥

वदमानांतथाध्वर्य्युस्त्यक्त्वादेवमुपागमत्।सावित्रीव्याकुलादेवीप्रसक्तागृहकर्म्मणि॥

सख्योनाभ्यागतायावत्तावन्नागमनंमम।एवमुक्तोऽस्मिवैदेव !कालश्चाप्यतिवर्त्तते॥

यश्चयोम्यंभवेदत्रतत्कुरुष्वपितामह !।
एवमुक्तेतदावाक्यंकिञ्चित्कोपसमन्वितः॥

पत्नीञ्चान्यांमदर्थन्तुशीघ्रंत्वञ्चसमानय।प्रवर्त्ततेयथायज्ञःकालहीनोनजायते॥

तथाशीघ्रंविधेहित्वंनारींकाञ्चिदुपानय।एवमुक्तस्तथाशक्रोगत्वासर्व्वंधरातलम्॥

स्त्रियोदृष्टास्तुयास्तेनसर्व्वास्तास्तुपरिग्रहाः

आभीरकन्यासुरूपासुभाषाचारुलोचना
॥ददर्शतांसुचार्व्वङ्गींकमलायतलोचनाम्।

कासिकस्यकुतश्चत्वमागतासुभ्रु !
कथ्यताम्॥
एकाकिनीकिमर्थञ्चवीथिमध्येऽवतिष्ठसे।रूपान्विताचसाकन्याशक्रंप्रोवाचवेपती॥गोपकन्याअहंवीर !

विक्रेतुमिहगोरसम्।समागताघृतादीनांप्रगृह्णीष्वयथेप्सितम्॥

एवमुक्तस्तदाशक्रोगृहीत्वातांकरेदृढम्।आनीयतांविशालाक्षींयत्रब्रह्माव्यवस्थितः॥

कमलाक्षींस्फुरद्वाणींपुण्डरीकनिभेक्षणाम्।गान्धर्व्वेणतदाब्रह्माग्रहीतुंमनआदघे॥

प्रभुत्वमात्मनोदानेगोपकन्नाप्यमन्यत।यदेवंमांसुरूपत्वादिच्छत्यादातुमाग्रहात्॥

नास्तिसीमन्तिनीकाचिन्मत्तोधन्यतरायतः।अनेनाहंसमानीतायस्यदृग्गोचरंगता॥

एवंचिन्तापरादीनायावत्सागोपकन्यका।भवत्येषामहाभागागायत्त्रीनामतःप्रभो !

तावदेवमहाविष्णुःप्रोक्तवानिदमुत्तमम्।
अनुग्रहेणदेवेश !

अस्याःपाणिग्रहंकुरु॥गन्धर्व्वेणविवाहेनउपयेमेषितामहः॥

          ॥अस्याध्यानंयथा --
सन्दर्भ - ग्रन्थ👇
पद्म पुराण - सृष्टिखण्ड - स्कन्द पुराण । अग्नि पुराण आदि।

   (अब देखें दुर्गा के विषय में पौराणिक सन्दर्भ)

परन्तु हद की सरहद तो तब खत्म हो गयी जब
इस सुमेरियन कैनानायटी आदि संस्कृतियों में द्रुएगा (Druega) नाम से विख्यात ईश्वरीय सत्ता को
कुछ  रूढ़िवादी मानवों ने अपने पूर्वदुराग्रहों के द्वारा
अपना अशालीनताओं से पूर्ण मनोवृत्ति के अनुकूल चित्रित करने की असफल चेष्टा की !

       जिसे भारतीय पुराणों मे दुर्गा कहा गया ।

शारदीय नवरात्रि के  प्राकृतिक परिवर्तन के प्रतिनिधि पर्व पर  जब सांस्कृतिक आयोजन रूढ़िवादी श्रृद्धा से प्रवण होकर देवता विषयक बन गये   तो जगह-जगह भव्य पाण्डाल सजाये जाने लगे हैं ।

  और वहाँ जोर-जोर से "जय महिषासुर मर्दिनी" के जयकारे लगाये जाते हैं !

कुछ अहंवादी परोक्ष विवादी  जान्यवर  कहते हैं कि दुर्गा वंगाल वैश्या थी और उसने महिषासुर को नौंवी रात धोखे से मार दिया तो मूर्ख चन्द से मेरा प्रश्न है कि
नव दुर्गा का पर्व साल में दो वार क्यो मनाया जाता है ?
क्योंकि महिषासुर तो एक ही वार किसी विशेष ऋतु और विशेष महीने में ही मारा होगा ।
परन्तु ये परोक्ष विवादी जानवर स्वयं को ज्ञान वर
सिद्ध करें मेरे इस प्रश्न का उत्तर देकर
अन्यथा भौंकता बन्द कर दें
क्यों कि किसी की श्रृद्धा पर आघात करना भी जुल्म है ।

और महिषासुर कार्तिक में शरद ऋतु में मारा था ।
या चैत्र में वसन्त ऋतु में
यदि बुद्धि हो तो दुर्गा को वैश्या कहने वाले जान्यवर मनहूस एकजुट होकर इस प्रश्न उत्तर दें !

क्योंकि नव दुर्गा का पर्व वर्ष में दो वार मानाया जाता है।

कुछ रूढ़िवादी प्रमाण प्रस्तुत करने लगे कि दुर्गा आदिवासी महषासुर की हत्यारी थी।

वास्तव में ये मत उन रूढ़िवादी भ्रान्त-चित्त महामानवों का है ।
जो केवल अपने प्रतिद्वन्द्वी की बुराई में अच्छाई का आविष्कार करते हैं ।

परन्तु दुर्गा प्राकृतिक शक्तियों की अधिष्ठात्री देवता है विशेषत: ऋतु सम्बन्धित गतिविधियों की ।
इस विषय में सुमेरियन देवी स्त्री अथवा ईष्टर का वर्णन भी है ।

और इस कारण से वासन्तिक नवदुर्गा शब्द सारदीय नव रात्रि के समानान्तरण है ।

यद्यपि कथाओं में मिथकीयता का समावेश उन्हें चमत्कारिक बना देता है ।

रूढ़िवादी धर्मावलम्बी व्यक्तियों के अनुसार -

नवरात्रि इसीलिये मनायी जाती है ; क्योंकि विश्वास है कि दुर्गा ने इसी नौ दिनों में युद्ध करके महिषासुर का वध किया था ।

अन्वेषणों में अपेक्षित यह बात  है ; कि आखिर तथ्यों के क्या ऐतिहासिक प्रमाण है ?

कि कोई दुर्गा थी, या कोई महिषासुर था ?

यद्यपि भारतीय पुराणों में दुर्गा को महामाया एवं महाप्रकृति माना जाता है ।

जो यादव अथवा गोपों की कन्या के रूप में प्रकट होती है ।

और गायत्री भी इसी प्रकार नरेन्द्र सेन आभीर (अहीर) की कन्या है जो वेदों की अधिष्ठात्री देवी है ।

महिषासुर के विषय में जो भी  जानकारी पौराणिक कथाओं में है, वह मिथक ही प्रतीत होती है!
क्यों कि

देवीपुराण के पञ्चम् स्कन्द में एक कथा आती है ; कि असुरों के राजा रम्भ को अग्निदेव ने वर दिया कि तुम्हारी पत्नी के  एक पराक्रमी पुत्र का जन्म  होगा।

जब एक दिन रम्भ भ्रमण कर रहा था तो उसने एक नवयौवना उन्मत्त  महिषी को  देखा ।

रम्भ का मन उस भैंस पर आ गया और उसने उससे सम्भोग किया ! तब कालान्तरण में रम्भ के वीर्य से गर्भित होकर उसी भैंस( महिषी ) ने महिषासुर को जन्म दिया !

और इस महिषासुर को यादव बताने वाले भ्रमित हैं ।

यद्यपि असुर असीरियन जन-जाति का भारतीय संस्करण है ।

जो साम की सन्तति( वंशज) होने से सोमवंशी हैं ।

परन्तु महिषासुर जैसे काल्पनिक पात्र को हम कैसे यादव मानें ।

क्यों कि इसकी जन्म कथा ही स्वयं में हास्यास्पद व अशालीनताओं से पूर्ण मनोवृत्ति की द्योतक है ।

महिषासुर की काल्पनिक कथा का अंश आगे इस प्रकार है ।👇

कुछ दिनों बाद जब वह महिषी ग्रास चर रही थी तो अकस्मात्  एक भयानक भैसा कहीं आ गया, और वह उस भैंस  से मैथुन करने के लिये उसकी ओर दौड़ा...
रम्भ भी वहीं था, उसने देखा कि एक भैसा मेरी भैंस से  सम्भोग करने का प्रयास कर रहा है!

तो उसकी स्वाभिमानी वृत्ति जाग गयी और वह भैंसे से भिड़ गया।
फिर क्या था, उस भैसे की नुकीली सींगों से रम्भ मारा गया, और जब रम्भ के सेवकों ने उसके शव को चिता पर लेटाया तो उसकी पत्नी पतिव्रता भैंस भी चिता पर चढ़कर रम्भ के साथ सती हो गयी।👅

वास्तव में सतीप्रथा राजपूती काल की उपज है ।
यह कथा भी उसी समय की है ।

यह विचार कर भी आश्चर्य होता है कि किसी जमाने मे भारत मे इतनी पतिव्रता भैंस भी हुआ करती थी जो अपने पति के साथ आत्मदाह कर लेती थी।
👅
अस्तु !... ऐसे ही अनेक मनगड़न्त व काल्पनिक कथाओं का सृजन राजपूती काल में हुआ ।

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महिषासुर से सम्बन्धित एक दूसरी कथा वराहपुराण अध्याय-95 मे भी मिलती है,
जो निम्न है-

विप्रचित नामक दैत्य की एक सुन्दर कन्या थी माहिष्मती! माहिष्मती मायावी-शक्ति से वेष बदलना जानती थी ।

एक दिन वह अपनी सखियों के साथ घूमती हुई एक पर्वत की तराई मे आ गयी, जहाँ एक सुन्दर उपवन था और एक ऋषि (सुपार्श्व) वहीं तप कर रहे थे।

माहिष्मती उस मनोहर उपवन मे रहना चाहती थी, उसने सोचा कि इस ऋषि को डराकर भगा दूँ और अपनी सखियों के साथ यहाँ कुछ दिन विहार करूँ!
यही सोचकर माहिष्मती ने एक भैंस का रूप धारण किया और सुपार्श्व ऋषि को पास आकर उन्हे डराने लगी! ऋषि ने अपनी योगशक्ति से सत्य को जान लिया और माहिष्मती को श्राप दिया कि तू भैंस का रूप धारण करके मुझे डरा रही है तो जाऽऽ ...
मै तुझे श्राप देता हूँ कि तू सौ वर्षों तक इसी भैंस-रूप मे रहेगी!

अब माहिष्मती भैंस बनकर नर्मदा तट पर रहने लगी; वहीं नजदीक सिन्धुद्वीप नामक एक ऋषि तप करते थे। एक दिन जब ऋषि स्नान करने के लिये नर्मदा नदी के तट पर गये तो उन्होने देखा कि वहाँ एक सुन्दर दैत्यकन्या इन्दुमती नंगी होकर स्नान कर रही थी।

उसे नग्नावस्था मे देखकर ऋषि का जल मे ही वीर्यपात हो गया!
माहिष्मती ने उसी जल को पी लिया, जिससे वह गर्भवती हो गयी और कुछ महीनों बाद इसी माहिष्मती भैंस ने महिषासुर को जन्म- दिया ।

महिषासुर की कथा केवल इन्ही दो पुराणों में मिलती है, और दोनो के अनुसार वह भैंस के पेट से पैदा हुआ।

साधारण बुद्धि तो यह मानने को तैयार नही कि एक भैंस किसी व्यक्ति के भ्रूण को जन्म दे सकती है!
अतः इससे स्पष्ट है कि पौराणिक कहानी तो पूरी तरह से काल्पनिक है।

अब बड़ा सवाल यह होता है कि क्या महिषासुर काल्पनिक है!

इतिहासकारों ने भी महिषासुर पर अलग-अलग राय दी है!
कोसम्बी कहते थे कि वह म्हसोबा (महोबा) का था, तो मैसूर के निवासी कहते हैं कि मैसूर का पुराना नाम ही महिष-असुर ही था !

मैसूर मे महिषासुर की एक विशालकाय प्रतिमा भी है।

रही बात दुर्गा की तो उनके बारें मे भी पढ़े तो कुछ अता-पता नही चलता!

एक पुराण कहता है कि दुर्गा कात्यायन ऋषि की पुत्री थी।

दूसरा कहता है कि दुर्गा मणिद्वीप मे रहने वाली जगदम्बा ही थी।

यही नही.. कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि वह चोलवंश की राजकुमारी थी।

अगर दुर्गा को जानने के लिये देवीपुराण पढ़ो तो पूरी पौराणिक-मान्यताऐं ही पलट जाती है!

देवीपुराण मे लिखा है कि अब तक राम-कृष्ण समेत जितने भी अवतार हुये हैं, वह सब दुर्गा के थे, विष्णु के नही!
बल्कि यह पुराण तो कहता है कि विष्णु भी दुर्गा की प्रेरणा से ही जन्मे!

दुर्गा चालीसा मे भी नरसिंह अवतार दुर्गा का कहा गया है।
ये निम्न चौपाई देखें-

"धरा रूप नरसिंह को अम्बा।
प्रकट भई फाड़ कर खम्बा।।
रक्षा करि प्रहलाद बचायो।
हिरनाकुश को स्वर्ग पठायो।।"

जहाँ तक मेरा मानना है तो यह कथा पाखण्ड ही हैं और दुर्गा को प्रतिष्ठित करना या पूजना बेकार मे समय की बर्बादी के अलावा और कुछ नही है!

वैसे भी जो गलती हमारे पूर्वजों ने अज्ञानतावश की है, उसे हम परम्परा मानकर आखिर कब तक दोहरा रहेंगे।

नना ( दुर्गा )वैदिक सन्दर्भों में तो इनन्ना Inanna सुमेरियन सभ्यता में है ।

यह ईश्वरीय शक्ति को पुनर्निदेशित करती है
इनान्ना एक प्राचीन मेसोपोटामियन देवी है जो प्यार, सौंदर्य, लिंग, इच्छा, प्रजनन, युद्ध, न्याय और राजनीतिक शक्ति से जुड़ी है।

उनकी मूल रूप से सुमेर में पूजा की गई थी और बाद में उन्हें अक्कदार नाम के तहत अक्कडियन , बाबुलियों और अश्शूरियों में भी पूजा की थी।

इसे रानी " के रूप में जाना जाता था; और उरुक शहर में ईन्ना मंदिर की संरक्षक देवी थी, जो उसका मुख्य पंथ केंद्र था।
वह वीनस ग्रह से जुड़ी थी।

और उसके सबसे प्रमुख प्रतीकों में शेर और आठ-बिन्दु वाले तारे शामिल थे ।

उसका पति देवम डुमुज़िद (जिसे बाद में तमुज़ के नाम से जाना जाता था) कहा गया ।

और उसका सुक्कल , या व्यक्तिगत परिचर, देवी निनशूबुर (जो बाद में पुरुष देवता पाप्सुकल बन गया) था।

इनान्ना (ईश्वर) स्वर्ग की रानी प्यार, सौंदर्य, लिंग, इच्छा, प्रजनन, युद्ध, न्याय और राजनीतिक शक्ति की अधिष्ठात्री देवी थी ।

निप्पपुर में इनन्ना के मंदिर से एक पत्थर की पट्टिका का टुकड़ा प्राप्त हुआ है जो सुमेरियन देवी, संभवतः इनान्ना ( 2500 ईसा पूर्व) का दिखाई देता  है ।

हित्ताइट पौराणिक कथाओं में: तेशब (भाई) समकक्ष ग्रीक समकक्ष Aphrodite हिंदू धर्म समकक्षदुर्गा कनानी समकक्ष Astarte बेबीलोनियन समकक्षIshtar इनुना की पूजा कम से कम उरुक काल (सदी 4000 ईसा पूर्व -से 3100 ईसा पूर्व) के रूप में की गई थी।

लेकिन अक्कड़ के सरगोन की विजय से पहले उनकी छोटी पंथ थी।

सर्गोनिक युग के बाद, वह मेसोपोटामिया के मंदिरों के साथ सुमेरियन बहुदेवों  में सबसे व्यापक रूप से पूजा देवताओं में से एक बन गई।

इनाना-ईश्वर की पंथ, जो समलैंगिक ट्रांसवेस्टाइट पुजारी और पवित्र वेश्यावृत्ति समेत विभिन्न यौन संस्कारों से जुड़ी हो सकती है।

पूर्वी सेमिटिक-भाषी  लोगों द्वारा जारी की गई थी जो इस क्षेत्र में सुमेरियनों का उत्तराधिकारी बन गए थे।

वह अश्शूरियों द्वारा विशेष रूप से प्यारी थी, जिसने उन्हें अपने स्वयं के राष्ट्रीय देवता अशूर के ऊपर रैंकिंग में अपने देवता में सर्वोच्च देवता बनने के लिए प्रेरित किया ।

इनान्ना-ईश्वर को हिब्रू बाइबल में बताया गया है और उसने फीनशियन देवी स्त्री (एस्त्रेत) को बहुत प्रभावित किया, !
जिसने बाद में ग्रीक देवी एफ़्रोडाइट के विकास को प्रभावित किया।

और ईसाई धर्म के मद्देनजर पहली और छठी शताब्दी ईस्वी के बीच धीरे-धीरे गिरावट तक उसकी पंथ बढ़ती रही,
हालांकि यह अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ऊपरी मेसोपोटामिया के कुछ हिस्सों में उसके अवशिष्ट रूप बचे।
इनना किसी भी अन्य सुमेरियन देवता की तुलना में अधिक मिथकों में दिखाई देता है।

उन्हें अन्य देवताओं के क्षेत्र पर ले जाना शामिल है। माना जाता था कि वह पुरुषों को चुरा लेती थीं, जो ज्ञान के देवता एनकी से सभ्यता के सभी सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं का प्रतिनिधित्व करती थीं।

माना जाता था कि वह आकाश के देवता ए से ईन्ना मंदिर ले गई थी। अपने जुड़वां भाई उतु (जिसे बाद में शमाश के नाम से जाना जाता था) के साथ, इनाना दिव्य न्याय का प्रवर्धक था;

गिलगमेश के महाकाव्य के मानक अक्कडियन संस्करण में, ईश्वर को एक खराब और गर्म सिर वाली महिला फेटेल के रूप में चित्रित किया गया है, जो गिलगाम की मांग करता है।

जब वह मना कर देता है, तो वह स्वर्ग की बुल को उजागर करती है, जिसके परिणामस्वरूप एन्किडू और गिलगमेह की मृत्यु दर उसके मृत्यु के साथ होती है। इनान्ना-ईश्वर की सबसे मशहूर मिथक कुर , प्राचीन सुमेरियन अंडरवर्ल्ड , कुर से लौटने और वापस लौटने की कहानी है जिसमें वह अंडरवर्ल्ड की रानी, ​​अपनी बड़ी बहन ईरेस्किगल के डोमेन पर विजय प्राप्त करने का प्रयास करती है,।

अत: दुर्गा की अवधारणा सुमेरियन पुरालेखों में वर्णित
स्त्री , नना अथवा द्रुएगा का पर्वर्तित रूप है ।

Ishtar ( स्त्री )
मेसोपोटामियन देवी है
: यह लेख एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के संपादक द्वारा लिखित है।
पिछले अद्यतन: 28 अगस्त, 2019 अनुच्छेद इतिहास देखें
वैकल्पिक शीर्षक: इन्ना
मेसोपोटामियन धर्म में ईशर (अशेरा)(अक्कादियन) पुरालेखों में  तो  सुमेरियन लेखों इन्ना (नना), युद्ध की देवी और लैंगिक  प्रेम की देवी है ।

 ईशर पश्चिम सेमिटिक देवी अस्तेर के अकाडियन समकक्ष हैं।

 सुमेरियन पैन्थियॉन (बहुदेववाद) में एक महत्वपूर्ण देवी इन्ना की पहचान ईशर के साथ हुई थी।

लेकिन यह अनिश्चित है कि क्या इन्नना सेमिटिक मूल की है या नहीं,
जैसा कि अधिक संभावना है, ईशर के लिए उसकी समानता की वजह से दोनों की पहचान की जा सकती है।

इन्ना की आकृति में कई परंपराओं को जोड़ दिया गया लगता है: जैसे
वह कभी आकाश देव की बेटी है, तो कभी उसकी पत्नी;
अन्य मिथकों में
वह नन्ना, चंद्रमा के देवता या पवन देवता एनिल की बेटी है।
अपनी शुरुआती अभिव्यक्तियों में वह भंडारगृह से जुड़ी हुई थीं और इस तरह उन्हें खजूर, ऊन, मांस, और अनाज की देवी के रूप में प्रतिष्ठित किया गया; भंडारगृह उसके प्रतीक थे।
श्री का रूपान्तरण यहीं से लक्ष्मी के रूप में हुआ ।

वह बारिश और गरज की देवी भी थी - एक आकाश देवता के साथ उसके संबंध के लिए अग्रणी - और अक्सर शेर के साथ चित्रित किया गया था,
जिसकी गर्जन गड़गड़ाहट से मिलती-जुलती थी।
भारतीय पुराणों मे यही रूप दुर्गा का है

युद्ध में उसके लिए जिम्मेदार शक्ति तूफान के साथ उसके संबंध से उत्पन्न हो सकती है।

 इन्ना भी एक उर्वरता की आकृति थी, और, भंडार गृह की देवी के रूप में और
भगवान दुमूज़ी-अमौशमगलाना की दुल्हन, जिसने खजूर के पेड़ की वृद्धि और मादकता का प्रतिनिधित्व किया, उसे युवा, सुंदर और आवेगी के रूप में चित्रित किया गया - कभी भी मददगार के रूप में या मां
उन्हें कभी-कभी (लेडी ऑफ द डेट क्लस्टर्स )
के रूप में जाना जाता है।

सुमेरियन परम्परा से ईशर की प्राथमिक विरासत प्रजनन क्षमता की भूमिका है;
वह, हालांकि, एक और अधिक जटिल चरित्र में, मृत्यु और आपदा, विरोधाभासी धारणाओं और ताकतों की एक देवी - आग और आग-शमन, आनन्द और आँसू, निष्पक्ष खेल और दुश्मनी से मिथक में घिरा हुआ है।

 अकाडियन ईशर भी एक हद तक, एक सूक्ष्म देवता है, जो शुक्र ग्रह से जुड़ा हुआ है।

शमाश के साथ, सूर्य देव, और चंद्रमा भगवान, वह एक माध्यमिक सूक्ष्म त्रय का निर्माण करते हैं।

 इस अभिव्यक्ति में उसका प्रतीक एक चक्र के भीतर 6, 8, या 16 किरणों वाला एक तारा है।
शुक्र की देवी के रूप में, शारीरिक प्रेम में प्रसन्न, ईशर जनसंपर्क के रक्षक थे
शगुन और आश्रय के संरक्षक।

 उसकी पंथ पूजा में शायद मंदिर की वेश्यावृत्ति शामिल थी।

 प्राचीन मध्य पूर्व में उसकी लोकप्रियता सार्वभौमिक थी, और पूजा के कई केंद्रों में उसने संभवतः
कई स्थानीय देवी-देवताओं की उपासना की थी।

 बाद के मिथक में वह एन, एनिल और एनकी की शक्तियों को लेते हुए क्वीन ऑफ़ द यूनिवर्स के रूप में जानी जाती थी।

एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के संपादक
यह लेख एडम ऑगस्टीन, प्रबंध संपादक द्वारा हाल ही में संशोधित और अद्यतन किया गया था।

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ANCIENT शहर, IRAQ
द्वारा लिखित: एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के संपादक
अनुच्छेद इतिहास देखें
वैकल्पिक शीर्षक: ऐश-शर्क़, असुर, क़ालत शरक़ै, शरक़, क़ालत
अशूर, ने उत्तरी इराक में तिग्रिस नदी के पश्चिमी तट पर स्थित असीरिया की प्राचीन धार्मिक राजधानी, कलूरत शरक़, असुर को भी याद किया। वाल्टर आंद्राई के नेतृत्व में एक जर्मन अभियान (1903–13) द्वारा वहां पहले वैज्ञानिक उत्खनन किए गए थे। अशूर शहर, देश के लिए और प्राचीन अश्शूरियों के प्रमुख देवता पर लागू होने वाला एक नाम था।

आशूर, इराक
नवंबर 2008 में इराक के आशूर के खंडहर में अमेरिकी सैनिक।
अमेरिकी सेना
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गुरू शब्द का प्राचीनत्तम इतिहास -भारोपीय सन्दर्भों में ..

भारोपाय भाषाओं में गुरू शब्द की व्युत्पत्ति और गुरुशिष्य परम्परा के आयाम -
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संसार में ज्ञान और कर्म का सापेक्षिक अनुपात ही जीवन की सार्थकता का कारण है ।
गुरू इसी सार्थकता का ही निमित्त कारण है ।

अन्यथा व्यक्ति एक अभाव में या तो अन्धा है या तो लंगड़ा ।

  गुरू ! की आवश्यकता का अनुभव मनुष्यों ने विशेषत: जीवन की आध्यात्मिक साधना-पद्धति मूलक भूमिकाओं में एक मार्ग दर्शक के रूप में सदीयों से किया ।

गुरू की प्रारम्भिक अवधारणा की बात की जाए तो द्रविड (Druid) संस्कृति इसमें विश्व इतिहास में सबसे अग्रणी हैं ।

परन्तु गुरू शब्द सभी सैमेटिक,
हैमेटिक और भारोपीय संस्कृतियों में विद्यमान है ।

आइए विचार करते हैं कि गुरू
शब्द कितनी प्राचीनत्तम भाषाओं में है ।👇
क्योंकि संसार रूपी नदी की धाराओं से पार करने वाला गुरू ही है ।

आधुनिक परिप्रेक्ष्य में आप किस प्रकार का अनुभव करते हैं ? कि प्राचीन भारतीय गुरु- शिष्य परम्परा में आमूलचूल परिवर्तन हुआ है ।

यदि मान ले कि आप शिक्षक पद के पूर्णत को  प्राप्त करते हैं ।

तो प्राचीन गुरु प्रणाली की किन किन विशेषताओं को आत्मसात करना चाहेंगे ?

प्राचीन भारत में गुरु पद को गौरवान्वित करने के लिए विविध प्रकार की उत्तरदायित्व पूर्ण भूमिकाओं का निर्वहन करना पड़ता था ।

वास्तविक अर्थों में गुरु विद्यालय रूपी उद्यान का सजग और कर्तव्यनिष्ठ माली बनकर विद्यार्थी रूपी लघु पादप अर्थात् पौधे को सम्यक् प्रकार से संस्कार रूपी काट छांट कर उसे उन्नत कोटि में प्रतिष्ठित करता था।

गुरु उसके सभी स्वभाव जन्य विकृतियों का परिमार्जन करता था ।
गुरु ही विद्यार्थी के माता-पिता की पावन कर्तव्य मयी परम्पराओं का सम्पादन करता था ।

गुरु शिष्य में मौखिक संवादों के रूप में शैक्षिक धारा प्रवाहित होती रहती थी ।

आन्तरिक व्याख्यान प्रवचन वाद विवाद तथा अध्ययन विवेचना एवं व्याकरण क्रियाओं के अन्तर्गत रूप स्वर उच्चारण पुनरावृति आदि प्राचीन छात्रों की दैनिक क्रियाओं के अभिन्न अवयव होते थे ।

एक छात्र  छाया के समान उनके कपड़ों में आचरण का अनुगमन करता था ।
वह नित्य भ्रमण काल में छत्र लेकर गुरु के पीछे पीछे चलत था ।
अत: कालान्तरण में शिष्य छात्र भी कहलाया ।

विद्यार्थी / छात्र शिष्य संज्ञा से इसलिए अभिहित किए जाते थे ; क्योंकि गुरु उनके जीवन में उन्हें अनुशासित रहकर उसकी स्वभाव जन्य प्रवृतियों के दमन करने का निर्देशन देता था ।

क्योंकि  संसार रूपी  नदी धाराओं में प्रवृतियों के तीव्र वेग हैं और इन जन्मजात प्रवृतियों का दमन भी संयम है और तैर कर हम इस क्रिया को निभाते हैं ।
तब हमें सफलताओं के किनारों से मिलते हैं ।

गुरु स्वयं में गरिमामय शब्द होता है गुरु शब्द का भार भी शिक्षा जगत में सबसे अधिक है।

संस्कृत भाषा में गुरु शब्द की व्युत्पत्ति उसके गुणों को अनुरोध करते हुए व्याकरणाचार्यों  ने इस प्रकार की है

संस्कृत भाषा में गुरु शब्द की उत्पत्ति व्याकरण आचार्य ने उसके गुणों को अनुवाद करते हुए इस प्रकार की है।

1-गुरुः, पुंल्लिंग (गृणाति उपदिशति वेदादिशास्त्राणि इन्द्रादिदेवेभ्यः इति गुरु: कथ्यते
अर्थात्- जो वद आदि शास्त्रों का देवताओं के लिए उपदेश देता है 'वह बृहस्पतिः गुरु हैं ।
ज्ञानी परस व्युत्पत्ति

2- यद्वा गीर्य्यते स्तूयते देवगन्धर्व्वमनुष्यादिभिः अर्थात् देव मनुष्य और गन्धर्व आदि के द्वारा जिसकी स्तुति गायी जाती है 'वह गुरु है ।
  स्तुति करने वाले स्तौता  परक व्युत्पत्ति

3-गॄ + “कृग्रोरुच्च ।” उणां । १ । २४ । इति उत् ।) बृहस्पतिः ।

💐 From Proto-Indo-Aryan *gr̥Húṣ,
(गिर्हस) from
Proto-Indo-Iranian *gr̥Húš, from

Proto-Indo-European *gʷr̥h₂ús(गिवरहस) (“heavy”).

Cognate with Ancient Greek βαρύς (barús),

Gothic  (kaurus, “burdensome”)भारी,

Latin gravis,

Persian گران‎ (gerân).

प्रोटो-इंडो-आर्यन * grṣHú जिअर्सु /गिअर्सु
from, प्रोटो-इंडो-ईरानी *
grHúš गृहुस् से,

प्रोटो-इंडो-यूरोपियन * g̥rhsús गृहसुस्  ("भारी") से।

प्राचीन ग्रीक ύςαρύς (बरूज),

गोथिक  kaurus (कोरस, "भारी "),

लैटिन ग्रेविस, फारसी انران (gerân) के साथ

quern - चक्की

Old English cweorn "hand-mill, mill,"
from PIE *gwere-na- "millstone"

(source also of Old Norse kvern,

Old Frisian quern,

Old High German quirn,

Gothic quirnus;

Sanskrit grava  "crushing stone;"

Lithuanian girna  "millstone," girnos "hand mills;"

Old Church Slavonic zrunuvi "mills;"

Welsh brevan "hand mill"),

suffixed form of root *gwere-  "heavy."चक्की

पुरानी अंग्रेज़ी  cweorn "हैंड-मिल, मिल,"
पाई से * ग्वेरे-न- "मिलस्टोन"

(पुराने नॉर्स केर्न का स्रोत भी,

 पुरानी फ्रीजियन क्वेर्न

पुराने उच्च जर्मन विचित्र,

गॉथिक quirnus; क्विर्नस्

संस्कृत गृवा "कुचल पत्थर;"

 लिथुआनियाई गिर्ना "मिलस्टोन," गिर्नोस "हैंड मिल्स;"

ओल्ड चर्च स्लावोनिक ज़्रुनवी "मिल्स;"

 वेल्श बरवन "हाथ मिल"),

जड़ का प्रत्यय रूप * gwere- (1) "भारी।"

संज्ञानात्मक रूप भी गुरु शब्द की है ।

आद्य-भारोपीय भाषाओं में "gwere" (gwerə)ग्वेयर क्रिया-मूल है ।

जिसका अर्थ "भारी होना " इसी ग्वेयर शब्द के संयोग से अनेक शब्द बनते हैं ।

It is the  Concept oriented  source of/evidence for its existence is provided by:
Sanskrit guruh गुरुः
"heavy, weighty, venerable;"

Greek baros  "weight," barys "heavy in weight," often with the notion of "strength, force;"

Latin gravis, "heavy, ponderous, burdensome, loaded; pregnant;"

Old English cweorn "quern;"

Gothic kaurus "heavy;"

Lettish gruts "heavy."

*gwere- (2)
gwerə-, Proto-Indo-European root meaning "to favor."

It forms all or part of: agree; bard (n.); congratulate; congratulation;
disgrace; grace; gracious;

grateful; gratify; gratis; gratitude; gratuitous; gratuity; gratulation; ingrate; ingratiate.

It is the hypothetical source of/evidence for its existence is provided by:

Sanskrit grnati गृणाति  "sings, praises, announces;"

Avestan gar- "to praise;"

Lithuanian giriu, girti "to praise, celebrate;"

Old Celtic bardos "poet, singer."

यह इसके अस्तित्व के लिए / सबूत का अवधारणा मूलक स्रोत है:

संस्कृत गुरु "भारी, वजनदार, आदरणीय;"

 ग्रीक बारोस "वजन," बैरीज़ "वजन में भारी," और अक्सर "ताकत, बल" की धारणा के साथ इसका प्रयोग किया जाता है ।

लैटिन ग्रेविस, "भारी, सुंदर, बोझ, भरी हुई, गर्भवती;"

पुरानी अंग्रेजी "cweorn" "क्वर्न;"

गॉथिक कोरस "भारी;"

लेटिश ग्रूट्स "भारी।"

* gwere- (2)

"gwerg-, प्रोटो-इंडो-यूरोपीय मूल अर्थ "का पक्ष लेने के लिए। प्रसंशा करने के लिए"

यह सभी रूपों या का हिस्सा है:
सहमत; bard (संज्ञा ); बधाई देता हूं; बधाई;
अपमान; कृपा; विनीत; आभारी; कृतार्थ; मुक्त; कृतज्ञता; ऐच्छिक; ग्रेच्युटी;
gratulation; 
कृतघ्न; ingratiate।

यह इसके अस्तित्व के लिए / सबूत के अवधारणा मूलक स्रोत हैं:

 संस्कृत गृणाति "गाती है, स्तुति करती है, घोषणा करती है;"

 अवेस्था में  "गर"- "प्रशंसा करने के लिए;"

 लिथुआनियाई "गिरीउ, कीर्ति "प्रशंसा करने के लिए,

 पुराने सेल्टिक भाषा में बार्डोस "कवि, गायक।"

इस "gwere" ग्वेयर क्रिया से निम्न प्रकार के  शब्द बन जाते हैं 🌸

संस्कृत भाषा में गृ= दीप्तौ ,सेचने विज्ञाने स्तुतौ च
आदि अर्थ हैं ।
गॄ=शब्दे
 ( गृणाति जगार )

गृ. घृ. क्षरण,दीप्त्योः 🐩

 - जगर्त्ति जिघर्त्ति (5) घरति घारयतीति गणान्तरपाठात् 14,15

It is the hypothetical source of/evidence for its existence is provided by:

Sanskrit grnati  गृणाति  "sings, praises, announces;"

Avestan gar- "to praise;"

Lithuanian giriu, girti "to praise,
celebrate;"

Old Celtic bardos "poet, singer."

यह इसके अस्तित्व के लिए / सबूत का अवधारणा मूलक स्रोत है:

 संस्कृत  गृणाति "गाती है, स्तुति करती है, घोषणा करती है;"

अवेस्ता :- गर- "प्रशंसा करने के लिए;"

लिथुआनियाई गिरी, कीर्ति "की प्रशंसा करने के लिए,
जश्न;"

पुराने सेल्टिक बार्डोस "कवि, गायक।"

जैसे:- 1-aggravate ;
2-aggravation ;

3-aggrieve

4-bar "भार की इकाई;"
गरिमन्  m. (-मा) 
1. Weight, heaviness. 
2. Venerableness. E. गुरु and इमनिच् aff.

5- bariatric ;

6-baritone ;

7-barium ;

8-barometer ;

9-blitzkrieg ;

10-brig ;

11-brigade ;

12-brigand ;

13-brigantine ;

14-brio ;

15- brut ;

16-brute charivari ;

17-gravamen ;

18-grave ;

19- gravid ;

20-gravimeter ;

21-gravitate ;

22-gravity ;

23-grief grieve kriegspiel ;

24-guru ;

25-hyperbaric ;

26-isobar ;

27-quern ;

28-sitzkrieg।et cet भार

यह शब्द -जब अपने अस्तित्व के साम्य के लिए साक्ष्य स्वयं प्रस्तुत करता है ।

संस्कृत गुरू:"(guruh) शब्द के अर्थ हैं 👇

भारी, आदरणीय; ज्ञान देने वाला ।
यही शब्द " ग्रीक भाषाओं में बैरोस्।
(baros)"वजन" (barys)"भारी", के लिए प्रयोग किया जाता है।

प्राय: "शक्ति या बल" की धारणा के साथ लैटिन भाषाओं में "gravis" ग्रविस्,शब्द का अर्थ  "भारी,
इस शब्द का तादात्म्य-एकरूपता यूरोपीय संस्कृतियों के अनेक शब्दों से स्थापित की जाती है ।

जिसके अनेक अर्थ व्यवहारों का प्रयोग होता है । 👇 , बोझिल, भारित; गर्भवती;" यही शब्द पुरानी अंग्रेजी क्वेर्न "cweorn " प्राचीन जर्मन गोथिक में कॉरुस् ( kaurus) भारी;" तथा (gruts) "भारी" रूप दृष्टव्य हैं।

आद्य-भारोपीय भाषाओं में ग्वेयर शब्द का दूसरा रूप भी "gwere" है ।

(2) gwerə- , प्रोटो-इण्डो-यूरोपीय मूल जिसका अर्थ है "🌱🌷🌼।
" यह शब्द भी अनेक शब्द रूपों का निर्माण करता है । 1-agree ; 2-bard ; 3-congratulate ; 4-congratulation ; 5- disgrace ; 6-grace 7-gracious ; 8-grateful gratify ; 9-gratis ; 10-gratitude gratuitous ; 11-gratuity ; 12-gratulation ingrate ; 13-ingratiate ।

यह सर्व विदित है कि संस्कृत का मिलान यूरोपीय भाषाओं से 90℅ हो जाता है ।
गृणाति (grnati )"गाता है, प्रशंसा करता है ,घोषणा करता है ।

ईरानीयों के धर्म-शास्त्र अवेस्ता ए झेन्द में "gar"-(गार) "प्रशंसा के लिए;"

रूसी परिवार की लिथुआनियाई में गिर्यु (giriu) तथा गिर्ति( girti )"प्रशंसा, जश्न मनाने के लिए;"

ओल्ड सेल्टिक भाषा में "bardos " कवि, गायक।

Word Origin & History late 12c.,
"God's favor or help,"
from Old French grace "pardon, divine grace, mercy; favor, thanks; elegance, virtue" (12c.), from Latin gratia "favor, esteem, regard; pleasing quality, good will, gratitude"
(source of Italian grazia, Spanish gracia), from gratus "pleasing, agreeable," from

PIE root *gwere- "to favor"
(cf. Sanskrit grnati "sings, praises, announces,"

Lithuanian giriu "to praise, celebrate,"

Avestan gar- "to praise").

Sense of "virtue" is early 14c., that of "beauty of form or movement, pleasing quality" is mid-14c. In classical sense, "one of the three sister goddesses
(Latin Gratiæ, Greek Kharites), bestowers of beauty and charm," it is first recorded in English 1579 in Spenser.

The short prayer that is said before or after a meal (early 13c.; until 16c. usually graces) has a sense of "gratitude." Example Sentences forgrace Philothea's tall figure was a lovely union of majesty and grace.
“Seventeen, an it please your grace,” said Stephen, in the gruff voice of his age. Grace and a miracle had made the startling fact palpable and evident. Grace sprang from her chair and began slipping into her wraps.

Grace led the way and the trio ascended to the second story.

"I wish I had your faith in people, Grace," said Emma sincerely.

"The bathroom is at the end of the hall," said Grace gently.

"I'm going to put you in this room for the present, Miss Reynolds," said Grace. A look of surprise, mingled with consternation, sprang into Grace's eyes.
"I hope she's at home," was Grace's anxious thought as she rang the bell.

From Middle English: grace;

from Old French: grace

(Modern French: grâce),
from Latin: grātia "kindness, favor,

esteem" (source of Italian: grazia,

Spanish: gracia); from grātus "pleasing, agreeable";

from Proto-Indo-European: Gwerh- ग्वेर्ह ‎(to praise, welcome”),

(cf. Sanskrit: grnati "sings, praises, announces";

Lithuanian: giriu "to praise,celebrate";

Avestan: gar- "to praise").

Displaced native Middle English: held, hield "grace" (from Old English: held, hyld "grace"); Middle English: este "grace, favour, pleasure"
(from Old English: ēste "grace, kindness, favour");
Middle English: athmede(n)

"grace" (from Old English: ēadmēdu

"grace"); Middle English: are, ore "grace, mercy, honor"

, 🐾 मध्य अंग्रेजी से: अनुग्रह;

पुरानी फ्रांसीसी से: अनुग्रह

(आधुनिक फ्रांसीसी: grâce),

लैटिन से: ग्रामिया "दया, पक्ष, सम्मान"

(इतालवी का स्रोत: grazia,

स्पेनिश: gracia); ग्राटस से "मनभावन, सहमत";

प्रोटो-इंडो-यूरोपियन से: * gtoerH- ("स्तुति, स्वागत"), (cf. संस्कृत: grnati "गाता है, प्रशंसा करता है, घोषणा करता है";

लिथुआनियाई: giriu "प्रशंसा करने के लिए, जश्न मनाने के लिए";

Avestan: gar- " प्रशंसा")।

विस्थापित देशी मध्य अंग्रेजी: आयोजित, "अनुग्रह" (पुरानी अंग्रेजी से: आयोजित, हाइल्ड "अनुग्रह");  मध्य अंग्रेजी: एस्टे "ग्रेस, फेवर, मस्ती" (पुरानी इंग्लिश से: graceste "ग्रेस, दया, उपकार");

🐾यन्त्रोपारोपितकोशांशःअमरकोशः

ग्रावन् पुं। 

पर्वतः 

समानार्थक:महीध्र,शिखरिन्,क्ष्माभृत्,अहार्य,धर,पर्वत,अद्रि,गोत्र,गिरि,ग्रावन्,अचल,शैल,शिलोच्चय,नग,अग,जीमूत,भूभृत्,मरु,अवि 

2।3।1।2।4 

महीध्रे शिखरिक्ष्माभृदहार्यधरपर्वताः॥ अद्रिगोत्रगिरिग्रावाचलशैलशिलोच्चयाः॥ 

अवयव : पाषाणः,पर्वताग्रः,मेखलाख्यपर्वतमध्यभागः,पर्वतनिर्गतशिलाखण्डः 

: मेरुपर्वतः, लोकालोकपर्वतः, लङ्काधिष्ठानपर्वतः, पश्चिमपर्वतः, उदयपर्वतः, हिमवान्, निषधपर्वतः, विन्ध्यापर्वतः, माल्यवान्, परियात्रकपर्वतः, गन्धमादनपर्वतः, हेमकूटपर्वतः, पर्वतसमीपस्थाल्पपर्वतः 

पदार्थ-विभागः : , द्रव्यम्, पृथ्वी, अचलनिर्जीवः, स्थानम्, प्राकृतिकस्थानम्

ग्रावन् पुं। 

पाषाणः 

समानार्थक:पाषाण,प्रस्तर,ग्रावन्,उपल,अश्मन्,शिला,दृषद् 

2।3।4।1।3 

पाषाणप्रस्तरग्रावोपलाश्मानः शिला दृषत्. कूटोऽस्त्री शिखरं शृङ्गं प्रपातस्त्वतटो भृगुः॥ 

: पतितस्थूलपाषाणः, पर्वतनिर्गतशिलाखण्डः 

पदार्थ-विभागः : , द्रव्यम्, पृथ्वी

वाचस्पत्यम्

'''ग्रावन्'''¦ पु॰ ग्रसते ग्रस--ड ग्रः आवनति वन--संभक्तौ विच्कर्म॰। 

१ प्रस्तरे, 

२ पर्व्वते, अमरः 

३ मेघे घिश्वः। 

३ दृढे त्रि॰ शब्दर॰। 
“श्रोता ग्रावाणोविदुषो नयज्ञम्” यजु॰ 

२६ । 
“मूर्द्ध्नि ग्राव्णां जर्जरानिर्झरौवाः” माघः। 
“ग्रावसु संमुखेष्वधिनिदधातिक्षत्रं वै सोमोविशोग्रावाणः” शत॰ व्रा॰ 

शब्दसागरः

ग्रावन्¦ mfn. (-वा-वा-व) Hard, solid. m. (-वा) 
1. A stone or rock. 
2. A mountain. 
3. A cloud. E. ग्रसते ग्रस ड ग्रः आवनति वन सम्भक्तौ विच् कर्म |

Apte

ग्रावन् [grāvan], a. Hard, solid. -m.

A stone or rock; किं हि नामैतदम्बुनि मज्जन्त्यलाबूनि ग्रावाणः संप्लवन्त इति Mv.1; अपि ग्रावा रोदित्यपि दलति वज्रस्य हृदयम् U.1.28; Śi.4.23.

A mountain.

A cloud.

Monier-Williams

ग्रावन् m. a stone for pressing out the सोम(originally 2 were used RV. ii , 39 , 1 ; later on 4 [ S3a1n3khBr. xxix , 1 ] or 5 [Sch. on S3Br. etc. ]) RV. AV. VS. S3Br.

ग्रावन् m. a stone or rock MBh. iii , 16435 Bhartr2. S3is3. BhP. etc.

ग्रावन् m. a mountain L.

ग्रावन् m. a cloud Naigh. i , 10

ग्रावन् m. = ग्राव-स्तुत्Hariv. 11363

ग्रावन् mfn. hard , solid L.

Vedic Rituals Hindi

ग्रावन् पुल्लिङ्गः 
सोमलता के सवनार्थ प्रयुक्त प्रस्तर को ग्रावन्  कहते थे

मूल रूप से देखें ऋ.वे. 2.39.1 (ग्रावाणेव तदिदर्थं जरेथे), बाद में इनकी संख्या 4 हो गई, शांखा. ब्रा. 29.1; अथवा पाँच पत्थरों का उल्लेख किया गया है, श.ब्रा. 3.5.4.24 भाष्य; वास्तव में 4 ‘ग्रावन्’ एवं एक उपांशु-सवन‘, का.श्रौ.सू. 8.5.28; वै.श्रौ.सू. 11.9;

कुछ लोगों के मतानुसार ’उपांशुसवन के अतिरिक्त ‘ग्रावन्’ की संख्या पाँच होती है, मा.श्रौ.सू. 2.3.1.21. लघु-सवन (क्षुल्लकाभिषव) के समय अध्वर्यु सोम के डण्ढलों को केवल उपांशु सवन से ही कूटता है,

आप.श्रौ.सू. 12.1०.2; बौ.श्रौ.सू. 7.5; CH 153. महासवन (महाभिषव) के समय ‘अभिषवणचर्म’ के चारों ओर बैठे हुए चारों ऋत्विज् अपने-अपने पत्थरों से सोम के डण्ढल पर प्रहार करते हैं, और उन पर जल छिड़कते हैं;

का.श्रौ.सू. 9.5.1 (उपविष्टयोरभिषुण्वन्ति चत्वारः पर्युपेशनसार्मथ्यात्); CH 158; वे प्रत्येक एक अरत्नि के बराबर एवं तीक्ष्ण धार वाले होते हैं, का.श्रौ.सू. 1.3.36; भाष्य. ग्रावमुख (ग्राव्णः मुखम्) ‘ग्रावन्’-संज्ञक सवन-प्रस्तर का सामने वाला भाग, बौ.श्रौ.सू. 7.6 ग्रावस्तुत्

प्रस्तुति करण यादव योगेश कुमार "रोहि"
8077160219.../