जय श्री कृष्णा मित्रों... आज में महाभारत के मूसल पर्व की चर्चा करूँगा जिसमें ऋषि दुर्वाशा श्राप के कारण यदुवंशियो के वृष्णि,अन्धक,भोज और सेनों में संघर्ष हुआ और एक वंश का नाश हो गया, इस संघर्ष के बाद श्री कृष्ण और बलदाऊ जी एक वृक्ष के नीचे लेटे थे तब एक सर्प ने बलदाऊ जी को डस लिया और भगवान् श्री हरी के कोमल चरणों को देखकर एक बहेलिये ने सोचा की हिरन है और बाण चला दिया श्री कृष्ण ने ये लीला रची थी और वो परम धाम को गमन कर गए। जब ये समाचार इन्द्रप्रस्थ पहुंचा तो व्याकुल युधिष्ठिर ने तत्काल अर्जुन को द्वारका (आधुनिक गुजरात में स्थित ) भेजा ..जहाँ उन्हें सबके शव ही मिले..केवल स्त्रियाँ,बच्चे और वृद्ध ही द्वारका में बचे थे। अर्जुन ने श्री कृष्ण और बलदेव जी का दाह-संस्कार अपने द्वारा पूर्ण किया ..शेष सब लोगों को इकठ्ठा कर इंदप्रस्थ के लिए प्रस्थान किया, जिसमें बच्चे बूढ़े और स्त्रियाँ ही थे..काफिला आगे बढ़ा ,उनके द्वारका छोड़ते ही द्वारका भी समुद्र में डूब गयी...ये काफिला जब पंचनद क्षेत्र यानि की पंजाब- हरियाणा पंहुचा तो एक जगह थके हारे लोगों ने डेरा लगा लिया ..वहीँ रहने वाले आभीरों(अहीरों) ने जब इस स्त्रियों और धन संपदा से भरे काफिले को देखा तो उन्होंने सोचा की ये तो सु-अवसर है क्योंकि सब लोग थके हारे हैं और केवल एक धनुर्धारी अर्जुन है ,, उन्होंने इकट्ठे होकर इस काफिले पर लाठी-डाँडो के साथ हमला कर स्त्रियों और सम्पदा को लूट लिया अर्जुन की शक्ति भी काम नही आयी। कहतें हैं न.." पुरुष बलि नहीं होत है ,समय होत बलवान,अहीरन लूटी गोपिका वही अर्जुन ,वही बाण!" ततो लोभः समभवद दस्युनाम निहितेश्वरा दृष्टता सत्रियो नीयमानाह पार्थनेकम भारत/ (महाभारत,मूसल पर्व,७-४४) अर्थ-जब इस प्रकार से उन दस्युओं ने स्त्रियों और निराश्रितों के साथ अकेले पार्थ, को देखा तो लोभवश अपने निहित को साधने की सोचने लगे. ततस तो पापकर्मानो लोभोपहतचेतसः आभीरा मन्ययाम समेत्य शुभदर्शना. (महाभारत,मूसलपर्व,७-४५) अर्थ-तब पापकर्मों में, लोभ में चित्त रखते हुए उन आभीरों ने इसे सु-अवसर समझा., ये आभीर(अहीर) सरस्वती और पंजाब के क्षेत्र में रहते थे। महाभारत में एक जगह इनका और वर्णन है शूद्राभीर गणाश्चेव ये आश्रितम सरस्वतीम/२.३२.१०,महाभारत. ---शूद्र आभीर गण सरस्वती के क्षेत्र में आश्रित हैं. शेष बचे कूचे लोगों के साथ अर्जुन इन्द्रप्रस्थ पहुंचे और शीघ्र ही राज पाट त्याग कर हिमालय प्रस्थान कर गए जिन बच्चों को अपने साथ द्वारका से लाये थे उनसे यदुवंश फिर बढ़ा! महाभारत कि ये घटना प्रत्यक्ष प्रमाण है की उस समय अहीर अलग और शूद्र व दस्यु थे। ये यादव बेसहारों पे हमला करने वाले डाकू, अब खुद ही यादव बन गए! ये घटना भी रेवाड़ी के इलाके में हुयी थी! ये अहीर तो यादवों के कुल का नाश करने वालें हैं, लुटेरे और डाकू। जय श्री कृष्णा!
उत्तर -----Yogesh Rohi
महानुभाव ये महाभारत के प्रक्षिप्त अंश है ।
क्योंकि गोप शब्द स्वयं आभीर का पर्याय है देखें--- .. हरिवंश पुराण ... ब्रह्म की योजना नामक छटा अध्याय ...
महाभारत में बुद्ध को नास्तिक कहा है ।
जवकि भागवत पुराण में विष्णवि का अवतार ...
देखें--- नमो बुद्धाय शुद्धाय दैत्य दानव द्रोहिणे...
भागवत पुराण ...प्रथम स्कन्ध
और वाल्मीकि रामायण में बुद्ध को चोर तथा नास्तिक राम के द्वारा कहलवाया गया
अयोध्या काण्ड १०९ वें सर्ग ३४ वाँ श्लोक प्रमाण--- "यथा ही चोर स तथा हि बुद्धस्तथागतं नास्तिकमत्र विद्धि"
रामायण और महाभारत बाद में नये सिरे से पुष्यमित्र सुंग ई०पू०१८४ के समकालिक नये सिरे से लिपि- बद्ध किये गये
ऋग्वेद के दशम् मण्डल के ६२वें सूक्त का १०वाँ श्लोक प्रमाण है कि
कृष्ण के आदि पुरुष यदु
को दास कहा है।
देखें--- "उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टी गोपरीणसा यदुस्तुर्वश्च च मामहे----"
यादव को ब्राह्मण समाज द्वारा कभी भी क्षत्रिय नहीं माना गया ...
इसका कारण भी यदु का दास होना ही है ।
महाभारत में प्रमाण मय ढूँढ़ो ऋग्वेद में प्रमाण है ।
दस से दस्यु शब्द विकसित हुआ।
जिसका अर्थ होता है दासता की वेणियाँ तोड़कर विद्रोही करने वाला ..
आभीर ही नास्तिक यादव हैं इसका प्रमाण तो हिब्रू बाइबिल तथा क़ुरान में भी है
यदु वंश का वर्णन यहूदी वंश के रूप में है
उत्तरी भारतीय जादौन ठाकुर लिखने वाले जादौन/गादौन पठान हैं
अफ़्ग़ानिस्तान में...
जो मुसलमान होकर भी स्वयं को यहूदी ही बताते है....
ठाकुर और पठान दौनो शब्द
दौनो शब्द संस्कृत भाषा में स्थायुकर:
तथा पृक्तन् देखें--- ऋग्वेद का द्वित्तीय मण्डल.....
अत: अहीरों के खिलाफ लिखने के लिए वेदों से प्रमाण दो ...
महाभारत तो बौद्ध काल के बाद की रचना है ।
कथाऐं प्राचीन हो सकती हैं परन्तु इनमें भी बहुत सी विरोधाभासी कथाओं का समायोजन है ......
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योगेश कुमार रोहि ग्राम आजा़दपुर पत्रालय पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़---
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