शनिवार, 13 जनवरी 2018

यदु को हमारे शासन में करो ! इन्द्र से पुरोहितों की ऐसी प्रार्थना !

येन  महानघ्न्या जघनमश्विना येन सुरा ।
येनाक्षा अभ्यषिच्यन्त तेनेमां वर्चसावतम् ।३६।
                                        अथर्ववेद १५/१/३६
अथर्ववेद में इतिहासस्य च वै स पुराणस्य च गाथानां चनाराशंसीनां च प्रियं धाम भवति य एवं वेद ।१२।
                            अथर्ववेद का० १५/अ०१ सू० ६
इस बात को जानने वाला इतिहास पुराण गाथाओं का प्रियधाम होता है ।

स विशो ८नु व्यचलत् ।१। तं सभा च समितिश्च सेना च सुरा चानुव्यचलन ।२।
सभायाश्च वै स समितेश्च सेनायाश्च सुरायाश्च प्रियं धाम भवति य एवं वेद । अथर्ववेद (का०१५ अ०२ सूक्त ९ )
उसने प्रजाओं के अनुकूल व्यवहार किया सभा समिति सेना और सुरा उसके अनुकूल हो गये।
इस प्रकार जानने वाला समित सभा सेना और सुरा का -प्रिय धाम होता है ।

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प्रियास इत् ते मघवन्नभिष्टौ 
        नरो मदेम शरणे सखाय:।
नि तुर्वशं नि यादवं शिशीहि
        अतिथिग्वाय शंस्यं करिष्यन् ।। ऋग्वेद ७/१९/८ में भी यही ऋचा
अथर्ववेद (काण्ड २० /अध्याय ५/ सूक्त ३७/ ऋचा ७
हे इन्द्र ! तुम्हारे मित्र रूप यजमान हम
अपने घर में प्रसन्नता से रहें।
तुम अतिथिगु को सुख प्रदान करो ।
और तुम तुर्वसु और यादवों को क्षीण करने वाले हो ।
ऋग्वेद में अर्थ किया हे ! इन्द्र तुम अतिथि की सेना करने सुदास को सुखी करो । और तुर्वसु और यदु को अपने अधीन करो ।

और भी देखें--- अया वीति परिस्रव यस्त इन्दो मदेष्वा ।
अवाहन् नवतीर्नव ।१। पुर: सद्य इत्थाधिये दिवोदासाय शम्बरं अध त्यं तुर्वशुं यदुम् ।२। (ऋग्वेद ७/९/६१/ की ऋचा १-२)
हो सोम !  तुम्हारे किस रस ने दासों के निन्यानवे पुरों  (नगरों) को तोड़ा था । उसी रस से युक्त होकर इन्द्र के पाने के लिए प्रवाहित होओ। १।
शम्बर के नगरों को तोड़ने वाले सोम रस ने ही  तुर्वसु सन्तान तुर्को तथा यदु की सन्तान यादवों को  शासन (वश)में किया ।

सत्यं तत् तुर्वशे यदौ विदानो अह्नवाय्यम् । व्यानट् तुर्वशे शमि । ऋग्वेद ८/४६/२७
हे इन्द्र! तुमने यादवों के प्रचण्ड कर्मों  को सत्य मान कर संग्राम में अह्नवाय्यम् को प्राप्त कर डाला ।
अह्नवाय्य :- ह्नु--बा० आय्य न० त० । निह्नवाकर्त्तरि । “सत्यं तत्तुर्वशे यदौ विदानो अह्नवाय्यम्” ऋ० ८, ४५, २७
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किम् अंगत्वा मघवन् भोजं आहु: शिशीहि मा शिशयं
त्वां श्रृणोमि अथर्ववेद का० २०/७/ ८९/३/
हे इन्द्र तुम भोगने वाले हो ।
तुम शत्रु को क्षीण करने वाले हो ।
मुझे क्षीण न करो ।

वेद मेंअश्लील ता
तद् इन्द्राव आ भर येना दसिष्ठ कृत्वने ।
द्विता कुत्साय शिश्नथो नि चोदय ! ऋग्वेद ८/२४/२५
चोदयति चोदना, चोद्यम् 55

यदु एेसे स्थान पर रहते हैं ।
जहाँ ऊँटो का बाहुल्य है ।
शतमहं तिरिन्दरे सहस्रं वर्शावा ददे ।
राधांसि यादवानाम्
त्रीणि शतान्यर्वतां सहस्रा दश गोनाम् ददुष्पज्राय साम्ने ४६। उदानट् ककुहो दिवम् उष्ट्रञ्चतुर्युजो ददत् ।श्रवसा याद्वं जनम् ।४८।१७।
यदु वंशीयों में परशु के पुत्र तिरिन्दर से सहस्र संख्यक धन मैने प्राप्त किया !
ऋग्वेद ८/६/४६

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संग्राहक-यादव योगेश कुमार'रोहि'ग्राम आजा़दपुर पत्रालय पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़---उ०प्र०

ऋतं वोचे नमसा पृच्छ्यमानस्तवाशसा जातवेदो यदीदम्
त्वमस्य क्षयसि यद्ध विश्वं दिवि यदु द्रविणं यत् पृथिव्याम् ।।११। ऋग्वेद १/५/११

द्विर्य पञ्च जीजनन् त्वसंवसाना : स्वसारो अग्नि मानुषीषु विक्षु। ऋ ० १/६/८ स्वसृ - स्त्री
उत् त्या तुर्वशा यदू अस्नातारा शचिपति : ।
                  इन्द्रो विद्वाँ अपारयत् ।।१७।।
ऋग्वेद-४/३१/१७
अर्थात् शचि पति इन्द्र नें यदु और तुर्वसु को संकट (विद्वाँ )से पार किया ।
त्वमपो यदवे तुर्वन्नाया८रमय: सुदुघा पार इन्द्र
ऋग्वेद ५/३२/७
अर्थात् हे इन्द्र तुमने यदु और तुर्वसु को हमसे बहुत दूर समुद्र के पार कर दिया ।

यदु और तुर्वसु समु्द्र पार रहते हैं  ऋग्वेद में इसके प्रमाण ---
प्र यत् समुद्रमतिं शूर पर्षि पारया तुर्वसुं यदुं स्वस्ति
।१२। ऋग्वेद ६/२०/१२
हे इन्द्र ! तु समु्द्र लाँघने में सफल होते हो ! तब समुद्र के पार रहने वाले यदु और तुर्वसु को समु्द्र के पार भगाते हो ।

अव गिरेर् दासं शम्बरं हन् प्रावो  दिवोदासं चित्राभिरूती ।५। ऋग्वेद ६/२६/५/
हे इन्द्र तुमने दास शम्बर को पर्वत से नीचे गिराकर मारा और दिवोदास की रक्षा की ।
हरप्पा का वर्णन
वधीदिन्द्रो वरशिखस्य शेषो८भ्यावर्तिने चायमानाय शिक्षन्।
वृची वतो यद् हरियूपीयायां हन् पूर्वज अर्धे भियसापरो दर्त् ।।ऋ० ६/२७/५

ऋग्वेद में मितन्नीयों का वर्णन देखें---
स वह्निभिर्ऋक्वभिर्गोषु शश्वन् मितज्ञुभि: पुरुकृत्वा जिगाय।ऋ०६/३२/३

कहीं कहीं वर्णन है कि  जो यदु और तुर्वसु को दूर देशों से यहाँ लाये  थे । वे इन्द्र हमारे मित्र हों नीचे देखें---
य आनयत् परावत: सुनीती तुर्वशं यदुम् । इन्द्र: स नो युवा सखा ।।ऋ० ६/४५/१

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