प्रवृत्तिस्तत्र चाख्याता यत्र भीमस्य लुब्धकै:।
क्षेप युक्तैर्वचोभिश्च धर्मराजस्य धीमत:। २८४।
प्रजाति समुत्थितो यत्रधार्तराष्ट्रो८त्यमर्षण:।
भीमेन गदया युद्धं तत्रासौ कृतवान् सह ।।२८५।
(महाभारत आदि पर्व)
किन्तु लोधों ने भीमसेन से दुर्योधन की यह चेष्टा बतला दी ।तब धर्म राज के आक्षेप युक्त वचनों से अत्यधिक क्रोध में भर कर धुर्योधन सरोवर से बाहर निकला और भीम से गदा युद्धं किया ।
यह प्रसंग सल्य पर्व में है ।
कलश: सागर ।
बलं ददामि सर्वेषां कमैर्तद् ये समास्थिता:।
क्षोभ्यतामं कलश: सर्वैर्मन्दर: परिवर्त्यताम् ।३१।
महाभारत आदि पर्व आस्तीक पर्व १८वाँ अध्याय।
जो लोग इस कार्य में लगे हुए हैं मैं उनको शक्ति देरहा हूँ। सभी -पूरी शक्ति से मन्दरांचल को घुमावैं और सागर को क्षुब्ध करदें ।
मेकला द्राविडा लाटा : पौण्ड्रा: कान्वशिरास्तथा ।
शौण्डिका दरदा दार्वाश्चौरा : शबराबर्बरा :।१७।
किराता यवनाश्चैव तास्ता: क्षत्रिय जातय: ।
वृषलत्वमनुप्राप्ता ब्राह्मणानाम् अमरषणात्।१९।
मेकला द्राविडा लाटा पौण्ड्रा कान्वशिरा शौण्डिका दरदा दार्वाश्चौरा शबराबर्बरा किरात यवन ये सब पहले क्षत्रिय थे ।परन्तु ब्राह्मणों से वैर करने से शूद्र हो गये ।
महाभारत अनुशासन पर्व दानधर्म पर्व ३५ वाँ अध्याय
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें