रविवार, 14 जनवरी 2018

एक कवि की पाखण्ड पर कविता

यहाँ पूजा जाता है लिँग...
और..
योनियोँ मेँ ठूँस दी जाती है-
मोमबत्तियाँ..
प्लास्टिक की बोतलेँ..
कंकड़ पत्थर..
लोहे की सलाखेँ तलक....

चीर दिया जाता है गर्भ..
कर दी जाती है बोटी-बोटी
अजन्मे भ्रूण की..
और भालोँ पर उछाला जाता है दूधमुँहा नवजात....

दौड़ाया जाता है जिस्म कर नंगा सरेबाजार..
बता डायन खीँच ली जाती है सलवार..
और बना देवदासी भोगा जाता है बार बार....

और आप....
मुझे भाषा की श्लीलता अश्लीलता सिखाये जाने को मरे जा रहे है!

मर्यादा के नाम पर-
सच को ढाके-तोपे रखने की यह सांस्कृतिक विरासत रखे अपने पास...

विद्रोह मर्यादा मेँ बने रहना नहीँ..
मर्यादायेँ तोड़ देना है...।

मोनिका जौहरी के चीखते शब्द

रवि।।

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