तं देवकी च भद्रा रोहिणी मदिरा तथा ।
अन्वारोहन्त च तदा भर्तारं योषितां वरा:।।१८
अर्थात् युवतियों में श्रेष्ठ देवकी,भद्रा, रोहिणी और मदिरा ---ये सबकी सब अपने पति की चिता पर आरूढ़ होने को तैयार हो गयीं।
अनुजग्मुश्च तं वीरं देवस्यता वै स्वलंकृता: ।
स्त्रीसहस्रै: परिवृता वधूभिश्च सहस्रश: ।।२२।
वीर वसुदेव की पत्नीयाँ वस्त्रों तथा आभूषणों से सजधज कर हजारों पुत्रवधूओं और अन्य स्त्रीयों के साथ अपने पति की अरथी के पीछे पीछे चलरहीं थी ।
यस्तु देश: प्रियस्तस्य जीवतो८भून्महात्मन:।
तत्रैनमुपसंकल्प्य पितृमेधं प्रचक्रिरे ।।२३।
महात्मा वसुदेव को अपने जीवन काल में जो स्थानों विशेष -प्रिय था ।वहीं ले जाकर अर्जुन आदि ने उनका दाह संस्कार किया ।
तं चिताग्नि गतं वीरं शूर पुत्रं वरांगना : ।
ततो ८न्वारुरुह: पत्न्यश्चतस्र: पतिलोकगा: ।।२४।
चिता की प्रज्वलित स्थित वसुदेव के साथ पहले कही गयी चारौ पत्नीयाँ चिता पर बैठ कर पतिलोक को चली गयीं ।
पुत्राश्चान्धकवृष्णीनां सर्वे पार्थमनुव्रता:।
ब्राह्मणा : क्षत्रिया वैश्या: शूद्राश्चैव महाधना:।।३७।
दशषट् च सहस्राणि वसुदेवावरोधनम् ।
पुरुस्कृत्य ययुर्वज्रं पौत्रं कृष्णस्य धीमत:।३८।
अन्धक और वृष्णि वंश के समस्त बालक अर्जुन में श्रृद्धा रखते थे ।वे तथा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा महाधनी शूद्र और कृष्ण की सोलह हजार रानीयाँ -- सब की सब बुद्धिमान कृष्ण के पौत्र वज्र को आगे करके चल रहे थे ।
बहूनि च सहस्राणि प्रयुतान्यर्बुदानि च ।
भोज वृष्ण्यन्धक स्त्रीणां हतनाथानि निर्ययु:।३९।
तत्सागरसमप्रख्यं वृष्णि चक्रंमहर्धिमत्।
उवाह रथीनां श्रेष्ठ:पार्थ: परपुरञ्जय: ।४०।
अर्थात् भोज वृष्णि अन्धक कुल की अनाथ स्त्रीयों की संख्या कई हजारों,लाखों और अरबों तक पहुँच गयी ।
वे सब द्वारिका पुरी से बाहर निकली। वृष्णि वंश का वह महान समृद्ध शाली मण्डल महासागर के समान प्रतीत होता था । शत्रु नगरी पर विजय पाने वाले रथीयों में श्रेष्ठ अर्जुन उसे अपने साथ लेकर चला ।
निर्याते तु जने तस्मिन् सागरो मकरालय: ।
द्वारिकां रत्नसम्पूर्णो जलेनप्लावयत् तदा ।४१।
अर्थात् उस जन समुदाय के निकलते ही नगरों और खड़ियालों के निवास स्थान समु्द्र ने रत्नों से भरा -पूरी द्वारिका को जल में डबो दिया । वस्तुत यह अस्वाभाविक वर्णन है।
स पञ्चनदमासाद्य धीमानतिसमृद्धिमत् ।
देशे गोपशु धान्याढ्ये निवासमकरोत् प्रभु ।।४५।
चलते चलते बुद्धिमान और सामर्थ्य शाली अर्जुन ने अत्यधिक समृद्ध शाली पंजाब में पहुँच कर ,जो गौ ,पशु तथा धनधान्य से सम्पन्न था ।ऐसे प्रदेशों में पढ़ाब डाला
ततो लोभ: समभवद् दस्यूनां निहतेश्वरा:।
दृष्टवा स्त्रीयो नीयमाना: पार्थेनैकेन भारत ।४६।
हे भरत नन्दन! एकमात्र अर्जुन के संरक्षण में लायी जाती हुई स्त्रीयों को देख कर वहाँ रहने बाले डाँकूओं के मन मे लोभ उत्पन्न हो गया ।
ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस: ।
आभीरा मन्त्रामासु: समेत्याशुभ दर्शना: ।।
अर्थात् लोभ से जिनकी विवेक शक्ति नष्ट हो गयी ।उन अशुभ दर्शी पापा चारी अहीरों ने परस्पर मिलकर सलाह की ।
अयमेको८र्जुनो धन्वी वृद्ध बालं हतेश्वरम्।
नयत्यसमानतिक्रम्य योधाश्चेमे हतौजस: ।४८।
ये अकेला अर्जुन धनुर्धरऔर ये हतोत्साहित सैनिक हम को लांघकर वृद्धों और बालकों के इस अनाथ समुदाय को लिए जारहे हैं ।अत: इनपर आक्रमण करना चाहिए।
ततो यष्टिप्रहरणा दस्यवस्ते सहस्रश: ।
अभ्यधावन्त वृष्णिनां तं जनं लोप्त्रारिण:।४९।
ऐसा निश्चय करके लूट का मूल उड़ाने वाले वे लट्ठधारी लुटेरे वृष्णि वंशीयों पर हजारों'की संख्या में-- टूट पड़े ।
मिषतां सर्वयोधानां ततस्ता: प्रमदोत्तमा:।
समन्ततो८वकृष्यन्तकामात् च अन्या: प्रवव्रजु: ।।५९।
सब योद्धाओं के देखते देखते वे डाँकू उन सुन्दर स्त्रीयों को चारो-और से खींच खींच कर ले जाने लगे ।दूसरी स्त्रीयाँ उनके स्पर्श भय से उनकी इच्छा के अनुसार चुपचाप उनके साथ चली गयीं ।
हार्दिक्य तनयं पार्थो नगरे मार्तिकावते ।
भोजराज कलत्रं च हृतशेषं नरोत्तम:।।६९।
कृत वर्मा के पुत्र को और भोजराज के परिवार की अपहरण से बची हुईं स्त्रीयों को अर्जुन ने मार्तिकावत नगर में बसा दिया ।
रुक्मणी त्वथ गान्धारी शैव्या हैमवतीत्यपि ।
देवीं जाम्बवती चैव विविशुर्जातवेदसम् ।।७३।
रुक्मणी , गान्धारी ,शैव्या हैमवती तथा जाम्बवती देवी ने पति लोक की प्राप्ति के लिए अग्नि में प्रवेश किया।
सत्यभामा तथैवान्या देव्य: कृष्णस्य सम्मता :।
वनं प्रविविशू राजंस्तास्ये कृतनिश्चया: ।।७५।।
राजन्! श्री कृष्ण प्रिया सत्यभामा तथा अन्य रानियाँ
तपस्या का निश्चय करके वन में चलीं गयीं ।७४।
मनो मे दीर्यते येन चिन्तयानस्य वै मृदु: ।
पश्यतो वृष्णिदाराश्च मम ब्रह्मन् सहस्रश:।।१६।
आभीरैरनुसृत्याजौ हृता: पञ्चनदालयै: ।।
(मूसल पर्व अष्टम् अध्याय )
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