सोमवार, 22 जनवरी 2018

महाभारत में आभीर वर्णन तथा वार्ष्णेय वर्णन -

शूद्राभीरगणाश्चैव ये चाश्रित्य सरस्वतीम् ।
वर्तयन्ति च ये मत्स्यैर्ये च पर्वतवासिन: ।।१०।
महाभारत सभा पर्व के अन्तर्गत दिग्विजय पर्व३२वाँ अध्याय ।
सरस्वती नदी के किनारे निवास करने वाले जो शूद्र आभीर गण थे । मत्स्य जीवी धीवर जाति के लोग थे ।तथा पर्वतों पर निवास करने वाले दूसरे दूसरे मनुष्य थे सब नकुल ने जीत लिए।
न्द्र कृष्टैर्वर्तयन्ति धान्यैर्ये च नदीमुखै: ।
समुद्रनिष्कुटे जाता: पारेसिन्धु च मानवा:।११।
तो वैरामा : पारदाश्च आभीरा : कितवै: सह ।
विविधं बलिमादाय रत्नानि विधानि च।१२।
महाभारत सभा पर्व के अन्तर्गत द्यूत पर्व ५१वाँ अध्याय ।
अर्थात् जो समु्द्र तटवर्ती गृहोद्यान में तथा सिन्धु के उस पार रहते हैं ।वर्षा द्वारा इन्द्र के पैंदा किये हुए तथा नदी के जल से उत्पन्न धान्यों द्वारा निर्वाह करते हैं ।वे वैराम ,पारद, आभीर ,तथा कितव जाति के लोग नाना प्रकार के रत्न एवं भेंट सामग्री बकरी भेड़ गाय सुवर्ण ऊँट फल तैयार किया हुआ मधु लि बाहर खड़े हुए हैं ।

चीनञ्छकांस्तथा चौड्रान् बर्बरान् वनवासिन: ।२३
वार्ष्णेयान् हार हूणांश्च कृष्णान् हैमवतांस्तथा ।
नीपानूपानधिगतान्विविधान्  द्वारा वारितान् ।२४।
अर्थात् चीन शक ओड्र वनवासी बर्बर वार्ष्णेय, हार हूण , कृष्ण हिमालय प्रदेशों के समीप और अनूप देशों से अनेक राजा भेंट देने के लिए आये ।

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