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बहुत तेज दौड़े रोहि
जब से हम इस ज़िन्दगी में !
वख़्त भी गुज़ारा नहीं
रहवर की वन्दगी में !!
उम्र वितायी केवल
आदमी ने दरिन्दगी में !!
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जज्वातों की
क़दर कहाँ की तूने
कुर्बानी देदी
रोहि शर्मिन्दगी में!!
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वख़्त से भी मैं कम्बख़्त
जब जब फासिले से पेश आया
उसने रौंदा मेरे सौन्दर्य को !
मेरी बदक़िस्मती
पर तरस न आया !!
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खूबसूरती का पैमाना भी
सबकी नज़रों में ज़ुदा जुदा है !
जरूरतों से तोलतें जिसको .
वही खूबसूरत है
वही उनका ख़ुदा है !!
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मुलाकातों के पानी से .
जिन्दा रहते हैं रिश्तों के शजर !
चाहतों के विना वीरान हैं
केवल मरूस्थल हैं
रोहि ये द़िल के घर !!
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ज़िन्दगी है एक पतंग के मानिन्द रोहि !!
आशाओं की अनन्त डोर से
दुनियाँ के आसमान में
उड़ाता है कोई !!
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कली नाज़ुक है कमसिन .
रोहि हमारी नज़रों में खूबसूरत
हम्हें उसके
मकरन्द की तमन्ना है !
वह हमारी ज़रूरत है !
केवल इस लिए खूबसूरत है !!
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यहाँ जिश्मों की कीमत है !
आदमी की हवश भरी नज़रो में
महिलाऐं सुन्दर है कोमल है !
इस लिए सुरक्षित नहीं हैं घरों में
क्यों औरत एक तिज़ारत है ?
खरीद फ़रोख़्त इनकी दरों में !
ज़िश्म ही ख़जाना उसका
रोहि इन हवशीयों की नज़रो!!
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आशाओं के ये अनन्त सागर .
मञ्जिलें मिलती नहीं इनकी
रोहि इनकी मौजो में आकर !!
मझधार में ही डूबगये
यहाँ कितने खबराकर !!
आशाओं के पड़ाब बहुत हैं !
मञ्जिलें जिसकी नहीं हैं !
जिन्दग़ी है ऐसा सफ़र !!
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~• सामईन और नाज़रीन की ख़िदमत में पेश ए नज़र है ! योगेश कुमार रोहि की जानिब से फलसफ़ा नुमा ये ख़यालाती नज़्म
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ओ३म् !
8979503784 ••••••☎
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मंगलवार, 16 जनवरी 2018
बहुत तेज दौड़े रोहि
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