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~तन्हा तू इस पथ पर अकेला .
तन्हा इस दुनियाँ से जाना !
फिर बाँधता है क्यों ख़जाना !
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रोहि अब संकल्प ले ले !
अज्ञानता में तूने पहले .
बालकों से खेल खेले .....
क्या अर्जित किया तूने अभी तक.
अरे सब छूट जाते हैं ये मेले !
सब मेल ये तब तक ही प्यारे .
हो पास कौड़ी धेला अाना !
तू तन्हा इस पथ पर अकेला .
तन्हा इस दुनिया से जाना !!
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संसार की नदिया सनातन !
ये ज़िन्दगी है एक नौका !
तेज प्रवृत्तियों के प्रवाह हैं ...
वासनाओं का प्रचण्ड झोका ..!
कर्म और ज्ञान की ले पतवारें!!
तैरकर संयम से
जिसने भी प्रवाह रोका !!
स्वाभाविकता के वेगो में .
सदीयों से वहता ज़माना .
फिर मञ्जिलें मिलती नहीं हैं
बस वहते ही वहते है जाना !!
तन्हा तू इस पथ पर अकेला .
तन्हा इस दुनियाँ से जाना !!
फिर बाँधता है क्यों ख़जाना !!
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हसीन ये खूबसूरत बालाऐं
यही कयामत और ब़लाऐं ..
तितलियों सी रंगीन रोहि
मुसाफिर भूल जाते हैं राहें !!
ये दोष तो इनका नहीं है ।
अपने मन को ही क्यों न समझाऐं
इच्छाओं के पढ़ावों पर ही
क्यों ढूँढ़ते हो तुम ठिकाना !
यह पढ़ाब है एक मुसाफिर खाना ..!
तन्हा तू इस पथ पर अकेला .
तन्हा इस दुनिया से जाना ..
फिर बाँधता है क्यों खजाना ..
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आत्मा मरती नहीं ये
मरता तो केवल ये तन है .
कर्म से संसार रोहि ..
कर्म एक परिवर्तन है !
काल परिवर्तन कर्म मय
दुःख-सुख इस संसार की लय .
मुग्ध होकर यह ना जाना !!
तन्हा तू इस पथ पर अकेला .
तन्हा इस दुनियाँ से जाना
फिर बाँधता है क्यों ख़जाना.
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जीवन की यात्रा अनन्त है
इसकी मञ्जिल भी न कोई !!
आशाओं के पढ़ाब बहुत हैं .
वहीं ठहर जाते है बटोही !!
ये दुनियाँ आशाओं
का अनन्त सागर !
यहाँ डूब जाता है
अक्सर हर कोई !!
किनारों को वही पाते हैं केवल
जो संयम से तैर पाते हैं रोहि !!
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............आध्यात्मिक विचारक --- यादव योगेश कुमार रोहि ..✍✍✍✍✍✍.8077160219.☎☎
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