सोमवार, 22 जनवरी 2018

" महाभारत में दार्शनिक मूढ़ता " महाभारत किसी एक व्यक्ति की रचना नहीं है यह पुष्यमित्र सुंग ई०पू०१८४ के काल में रचित रचना है जिसका लेखक गणेश जी को बना दिया गया ।

संस्वेदजा अण्डजाश्चोद्भिदश्च
सरीसृपा : कृमयो८थाप्सु मत्स्य:।
तथा अश्मानस्तृण काष्ठं च सर्वे दिष्टक्षये स्वयं प्रकृतिं भजन्ति ।११।
(महाभारत आदि पर्व २९ वाँ अध्याय )
स्वेदज ,अण्डजाश्चोद्भिदश्च, उद्भिज्ज, सरीसृप, कृमि तथा जल में रहने वाले मत्स्य आदि जीव तथा पर्वत तृण, काष्ठ - ये सभी प्रारब्ध भोग का सर्वथा क्षय होने पर अपनी प्रकृति को प्राप्त होते हैं।
अब यहाँ जड़ पदार्थ भी प्रारब्ध भोग के भागी मान लिये गये ।
परन्तु प्रारब्ध तो जीवन का परिमाण ( मात्रा) तथा करें का परिणाम है । पत्थर, तिनका तथा लकड़ी का भाग्य से क्या सम्बन्ध ? परन्तु मूढ़ ब्राह्मणों ने यहाँ भी भाग्य को जोड़ दिया । दुर्भाग्य से महाभारत में अच्छी तथा बुरी दौनों बातें का समायोजन हो गया है।
महाभारत में यह कथन मिथ्या है !  कि
अधिका किल नारीणां प्रीतिर्जामातृजा भवेत् ।१२।
(महाभारत आदि पर्व ११४वाँ अध्याय)
स्त्रीयों का दामाद में पुत्र से अधिक स्नेह होता है ।
वास्तविक रूप में यह स्नेह केवल लड़की के कारण से है ;अन्यथा दामाद तो सुसराल मे पिटते देखे गये हैं ।

कामुकता भी हर चीज में इन्हें नजर आयी ।
देखें---
पुरोपवाहिनी तस्य नदीं शुक्तिमतीं गिरि:।
अरोत्सीच्चेतना युक्त: कामात् कोलाहल: किल ।।३५।।
राजा उपरिचर की राजधानी के समीप शुक्तिमती नदी वहती है। एक समय 'कोलाहल' नामक सचेतन पर्वत ने   काम के वश होकर नदी को पकड़ लिया ।
(महाभारत आदि पर्व ६३ वाँ अध्याय )
तस्यां नद्याम् अजनयत् मिथुनं पर्वत: स्वयम् ।
तस्माद्धि विमोक्षणात् प्रीति नदी राज्ञेन्यवेदयत् ।।३७।
और उस नदी के साथ बलात्कार करने पर उस पर्वत ने नदी के गर्भ से एक पुत्र और एक कन्या जुँड़वा रूप से उत्पन्न की ।
पर्वत के अवरोध से मुक्त कराने के कारण राजा उपरिचर को नदी ने अपनी दौनो सन्तान भेंट में देदी ।
अब मूसल पर्व में देखें---
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व्यजानयन्त खरा गोषु करभा८श्वतरीषु च ।
शुनीष्वापि बिडालश्च मूषिका नकुलीषु च।९।
अर्थात् गायों के पेट से गदहे , तथा खच्चरियों के पेट से हाथी ।और कुतिया से बिलोटा 'और नेवलियों के गर्भ से चूहा उत्पन्न होने लगे ।
(महाभारत मूसल पर्व द्वित्तीय अध्याय)
महाभारत मूसल पर्व में कृष्ण की सोलह हजार पत्नियों का का वर्णनभी है ।
-षोडश स्त्रीसहस्राणि वासुदेव परिग्रह ।६।

वाल्मीकि-रामायण भी वाल्मीकि के नाम- पर लिखने वाले यही मूढ़ ब्राह्मण थे ।
जिन्होंने समु्द्र को भी आभीरों को मारने के लिए राम को प्रेरित करता हुआ बताया है ।
तुलसी दास जी भी इसी पुष्य मित्र सुंग की परम्पराओं का अनुसरण करते हुए लिखते हैं -- राम और समुद्र के सम्वाद रूप में..
. "आभीर यवन किरात खल अति अघ रूप जे " वाल्मीकि-रामायण में राम और समुद्र के सम्वाद रूप में वर्णित युद्ध-काण्ड सर्ग २२ श्लोक ३३पर समुद्र राम से निवेदन करता है कि आप अपने अमोघ वाण उत्तर दिशा में रहने वाले अहीरों पर छोड़ दे-- जड़ समुद्र भी राम से बाते करता है ।
कितना अवैज्ञानिक व मिथ्या वर्णन है ................
जड़ समुद्र भी अहीरों का शत्रु बना हुआ है ।

-----------------------------------------------उत्तरेणावकाशो$स्ति कश्चित् पुण्यतरो मम ।
द्रुमकुल्य इति ख्यातो लोके ख्यातो यथा भवान् ।।३२।।
उग्रदर्शनं कर्माणो बहवस्तत्र दस्यव: ।
आभीर प्रमुखा: पापा: पिवन्ति सलिलम् मम ।।३३।।
तैर्न तत्स्पर्शनं पापं सहेयं पाप कर्मभि: ।
अमोघ क्रियतां रामो$यं  तत्र शरोत्तम: ।।३४।।
तस्य तद् वचनं श्रुत्वा सागरस्य महात्मन: ।
मुमोच तं शरं दीप्तं परं सागर दर्शनात् ।।३५।।
          (वाल्मीकि-रामायण युद्ध-काण्ड २२वाँ सर्ग)
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अर्थात् समुद्र राम से बोल प्रभो ! जैसे जगत् में आप सर्वत्र विख्यात एवम् पुण्यात्मा हैं ।
उसी प्रकार मेरे उत्तर की ओर द्रुमकुल्य नामका बड़ा ही प्रसिद्ध देश है ।३२।
वहाँ अाभीर आदि जातियों के बहुत सेमनुष्य निवास करते हैं ।
जिनके कर्म तथा रूप बड़े भयानक हैं ।सबके सब पापी और लुटेरे हैं ।
वे लोग मेरा जल पीते हैं ।३३।
उन पापाचारियों का मेरे जल से स्पर्श होता रहता है ।
इस पाप को मैं नहीं यह सकता हूँ ।
हे राम आप अपने इस उत्तम वाण को वहीं सफल कीजिए ।३४।
महामना समुद्र का यह वचन सुनकर समुद्र के दिखाए मार्ग के अनुसार उसी अहीरों के देश द्रुमकुल्य की दिशा में राम ने वह वाण छोड़ दिया ।३।
वाल्मीकि-रामायण का अन्तिम और सप्तम् काण्ड-१--प्रदण्डिका उत्तर काण्ड तथा महाभारत का अन्तिम मूसल पर्व समान व्यक्तियों की कृत्रिम व तारतम्य विहीन
काल्पनिक रचना है ।
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निश्चित रूप से ब्राह्मण समाज ने राम को आधार बनाकर ऐसी मनगढ़न्त कथाओं का सृजन किया है
जो अवैज्ञानिक ही नहीं अपितु मूर्खता पूर्ण भी है ।
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       संग्राहक-यादव योगेश कुमार'रोहि'ग्राम आजा़दपुर पत्रालय पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़---उ०प्र०

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