शनिवार, 22 फ़रवरी 2020

घर घर की घटना अजब ,अजब बनी हालात

घर घर की घटना अजब ।
अजब बनी हालात ।

एक बार कोई महानुभाव ।
कोलेब में रहते गात ।

स्टार मेकर पर करते ।
 महिलाओं संग मुलाकात ।

सुना रहे थे पत्नी को 
अपने स्वरों की सौगात ।

पत्नी जरि कौयला भई ,
सुन पर तिरियन की बात ।

कोलर पकड़ रगड़ पति को 
धरि दीनी दो लात ।


और पूछती इतनी देर तक
कहाँ बिताते रात ।

कई दिनों से दूर दूर तुम ,
पका रहे ये खिचड़ी गुमसुम ।
आ ! मैं खबाऊँ तोय भात ।

कभी हम्हें नहीं बताया कुछ भी 
कहाँ कहाँ हो जात ।

इतनी बड़े दोखे में मुझको 
दिया बड़ा आघात ।

बैकाबू पत्नी हो आई 
'रोहि' बिगड़ गये हालात ।

पोल खुली बन कटपुटली 
पति करै निहोरे पात ।

पाँय पकड़ लीने पत्नी के 
फिर जोड़ रहा वह हाथ ।।


(यादव योगेश कुमार 'रोहि')

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020

नारायणी सेना के वीरों ने पंजाब में अर्जुन को परास्त कर दिया था ..

कारण एक सुभद्रा का हरण ।।
वह भी चुपके से न किया रण।।

 नारायणी सेना के यौद्धा शान्त 
कारण था  कृष्ण का संरक्षण ।

जब कृष्ण भी अर्जुन के साथ नहीं।।
तब अर्जुन की औकात नहीं ।।

सब असहाय बाल और स्त्रियाँ हैं
यादव स्त्रियों के नाथ नहीं ।

ले जा रहा सैकड़ों अबला जन को ,
ये निर्लज्ज बेहया दीठा है ।

जो लोभी लालची और कामी ,
यौवन उनको अति मीठा है।

अपने यदुकुल के सम्मान हेतु ।
जब गोपों ने हुंकार भरी ।

अर्जुन जान बचाकर भागा 
सब रह गयी वीरता धरी धरी ।।

फिर नारायणी सेना के वीरों ने ।
धो डाला लकुट अहीरों नें ।।

इन नारायणी सेना के गोपों ने ।
अर्जुन को दमकर पीटा था ।

पंजाब देश की सीमा से ,
ले जाकर दूर घसीटा था ।।

भागवत पुराण का लेख पढ़ो 
नारी सम्मान के लिए लड़ो ।।

सो८हं नृपेन्द्र रहित: पुरुषोत्तमेन 
सख्या प्रियेण सुहृदा हृदयेन 
शून्य: ।
अध्वन्युरूक्रम परिग्रहम् अंग रक्षन् ।।
गौपै: सद्भिरबलेव विनिर्जितो८स्मि।।
(भागवत पुराण 1/1/20)

परन्तु महाभारत कथा ।
जिसमें नहीं कुछ यथा यथा ।।

ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहत चेतस।
आभीरा मन्त्रामासु समेत्याशुभ दर्शना।।

पर बात इस तरह होती तो 
सच और सम्यक् वर्णन होता ।

अहीर कभी बागी नहीं होते ।
दोखे से नहीं है समझौता ।।

यदा बहुसंख्यिका स्त्रिय: साकं अर्जुनेन गमयन्ती  पञ्चनद प्रदेशे ।

ततस्ते बहूत्कट भट कर्माणो ।
अपमानविक्षत चेतस ।।

आभीरा वीरा चिन्तयामासु समेत्य
भञ्जनो वर्जना।।

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       प्रस्तुति-करण:-  यादव योगेश कुमार 'रोहि'

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

राजपूत पुंडीर ओर गुर्जर -

राजपूत पुंडीर ओर गुर्जर -

पुण्डीर राजपूतों की एक शाखा या गोत्र कहा जाता है।जो अपनी उत्पत्ति के बारे में अनेक शब्द व्युपत्तियों का उद्धरण देते हैं ।
  कुछ  कहते हैं की वो महाराज पुण्डरीक के वंश से हैं जो रामायण के श्री राम के पुत्र कुश का पौत्र थे ।
और कुछ का कहना है की वो कुल्लू के महाऋषि पुण्डरीक के वंश से हैं जो सफेद नाग का रूप में विद्यमान हैं।

और कई लोग दाबा करते है की पुण्डीर संस्कृत के शब्द पुरन्दर  से बना है जिसका अर्थ शत्रु के पुरोंका विनाशक
विदित हे कि विकल्प सत्य का द्योतक नहीं ।

पुंड्र देश (बिहार का एक भाग)। ३. पुंड्र देश के वसुदेव का पुत्र जो 'मिथ्या वासुदेव' कहलाया। दे० 'पौंड्रक'। ५. मनु के अनुसार एक जाति जो पहले क्षत्रिय थी पर पीछे संस्कारभ्रष्ट होकर वृषलत्व को प्राप्त हो गई थी। दे० 'पुंड्र—९'।

भारत के एक भाग प्राचीन नाम जो इतिहास पुराणादि में मिलता है।
जो विहार के अन्तर्गत है ।
महाभारत के अनुसार अंग, बंग, कलिंग, पुंड्र और सुह्म, आदि बलि के इन पाँच पुत्रों के नाम पर देशों के नाम पड़े
यह एक प्राचीन जाति थी विशेषत: —इस जाति का उल्लेक ऐतरेय ब्राह्मण में इस प्रकार है कि— विश्वामित्र के सौ पुत्रौं में से पचास तो मधुच्छदा से बड़े और पचास छोटे थे।
विश्वामित्र ने जब शुन शेप का अभिषेक किया तब ज्येष्ठ पुत्र बहुत असंतुष्ट हुए।
इसपर विश्वामित्र ने उन्हें शाप दिया कि तुम्हारे पुत्र अंत्यज होगे।
अंघ्र, पुंड्र, शवर, इत्यादि उन्ही पुत्रों के वंशज हुए जिनकी गिनती दस्युओं में हुई।
पिण्डारी शब्द का विकास भी इसी प्रकार है
महाभारत में एक स्थान पर यवन, किरात, गांधार, चीन, शवर आदि दस्यु जातियों के साथ पौंड्रकों का नाम भी है।
पर दुसरे स्थान पर 'पौंड्रकों' और सुपुंड्रकों में भेद किया है।
पौंड्रकों और पुंड़्रों को तो अंग, बंग, गय आदि के साथ शास्त्रधारी क्षत्रिय लिखा है जिन्होंने युधिष्ठिर के लिये बहुत साधन इकट्ठा किया था।
उनके जाने पर युधिष्ठिर के द्धारपाल ने उन्हें नहीं रोका था।
पर वंग कलिंग, मगध, ताम्रलिप्त आदि के साथ सुपुंड्रकों का द्वारपाल द्वारा रोका जाना लिखा है जिससे वे वृषलत्वप्राप्त क्षत्रिय जान पड़ते है।

मनुस्मृति में जिन पौंड्रकों का उल्लेख है वे भी संस्कारभ्रष्ट क्षत्रिय थे जो म्लेच्छ हो गए थे।
इससे पौंड्र या पुंड्र सुपुंड्रों से भिन्न और क्षत्रिय प्रतीत होते हैं।
महाभारत कर्णपर्व में भी कुरु, पांचाल, शाल्व, मत्स्य, नैनिष, कलिंग मागध आदि शाश्वत धर्म जाननेवाले महात्माओं के साथ पौंड्रों का भी उल्लेख है, आदिपर्व में बलि के पाँच पुत्रों (अंग वंग आदि) में जिस पुंड्र का नाम है उसी के वंशज संभवतः ये पुंड्र या पौड्र हों।

ब्रह्मांड और मत्स्य पुराण के अनुसार पुंड्र लोग प्राच्य (पुरबी भारत के) थे, पर विष्णु पुराण में और मार्कडेय पुराण में उन्हें दाक्षिणात्य लिखा है।

पुण्डर  कौन हैं  इसकी सही खोज अंग्रेज़ी इतिहास कार "डेनज़िल इब्बेटसन" ने भारत के पुराने ऐैतिहासिक दस्तावेजो के आधार पर की है उनके मुताबित पंडित दक्षिण भारत के पुंद्र(पण्डा)  ब्राह्मण हैं।

जिनका तेलिंगाना(आंध्र प्रदेश)के जसमोर इलाके मे राज था।
इनके बुजुर्ग तलिंगाना से बंगाल चले गए थे ओर इन्हें बांग तिलंगाना कहा जाने लगा।

बांग तिलंगानाओ का एक समृद्ध परिवार कुरुक्षेत्र की यात्रा पर आया था जो उस वक़्त दिल्ली के चौहानो के अधीन था।
उत्तर भारत के लोग उस वक़्तों मे दक्षिण के ब्राह्मणों की इज़्ज़त किया करते थे।

कई कारणों से चौहानो ने यात्रा पर आये इन बांग तलिंगाओ को कुरुक्षेत्र के पास जागीर देकर यही बसा दिया जहाँ से ये लोग पुंद्र से पुंडीर हो गये ।

यहां इनका मुख्य गढ़ इन्ही के नाम से पुण्डरी या पुन्दरक था।
सांभार ओर हाबरी भी इनका गढ़ था।
आज कल भी इनकी मुख्य गोत्र ब्राह्मणों वाली ही हैं जैसे पुलसत्या,पाराशर, ओर भार्गव, राजपूत या ओर किसी जाती वाली गोत्र इनमे नही है।

इनका राज दिल्ली के चौहान गुर्जरों पर ही निर्भर करता था।
उनको ये लोग अपनी लडकिया भी शादी मे देते थे।पृथ्वीराज चौहान की एक रानी भी पुंडीर थी।

पुण्डरी के राजा होने के कारण अर्थात राजा के पुत्र होने के कारण ओर चौहान गुर्जरो से रिश्तेदारी होने के कारण इनको भी राजपूत कहा जाने लगा,ओर राजपूतो के दूसरे वंशो मे जो चौहान गुर्जरो के अधीन था ।
उनमे भी इनको स्वीकार किया इस प्रकार राजपूतों में एक ओर ऐसा वंश शामिल हो गया जो

कुरुक्षेत्र के इलाके मे मंधार गोत्र के गुर्जरो की चारागाह थी जहा वो अपने पशुओ के साथ रहता था।

मंधार गोत्र के गुर्जरो ने पुंडीर की गुलामी से इनकार कर दिया ओर कोई भी कर देने से इनकार कर दिया।

इस बात पर पुंडीर जो ब्राह्मण थे उन्होंने चौहानो से गुहार लगाई ओर चौहानो की मदद से मंधारो पर फौजी कार्यवाही की।

आम तौर पर तीन जगहों की लड़ाई के ऐैतिहासिक  ज़िक्र मिलता है जो पुंडीर ओर मंधार गुर्जरो के बीच हुई मंधारो को इलाका छोड़ना पड़ा, मांधरो ने इलाका छोड़ दिया पर पुंडीरो की गुलामी नही स्वीकार की।

मुहम्मद गौरी से हुई जंग में कई पुंडीर पृथ्वीराज चौहान की तरफ से लड़े ओर मारे भी गए।

चौहानों का राज दिल्ली मे खत्म होने के बाद उनकी नज़रें उनके अधीन राजाओ की जगीरो को अपने कब्जे मे लेने की थी इस वजह से उनकी पुंडीर से भी अनबन हुई ओर पुंडीर को कुरुक्षेत्र छोड़कर देहरादून ओर सहारनपुर में आबाद इलाको मे जाना पड़ा।

कुरुक्षेत्र का यह इलाका चौहानों के पल्ले भी नही पड़ा,क्योंकि रियासत डिडवारहा के जिंदेढ़ गुर्जर इस इलाके मे प्रभावशाली हो रहे थे।

पुंडीर के गढ़ पुंड्रक में आज भी जिंदेढ़ गुर्जर हावी है कुछ खटाना गुर्जर भी यहा रह रहे है।

देहरादून ओर सहारनपुर के इलाके में फिर पुंडीर का वास्ता गुज्जरों से ही पड़ गया।

1750-1775 के लगभग सरदार भगेल सिंह के अधीन सिक्खो ने दून के इलाके मे मारकाट मचा रखी थी जिसका फायदा पुन्डीरों ओर गुर्जरों को भी हो रहा था।मजबूरी मे गढ़वाल के राजा ललित शाह जिसके अधीन देहरादून भी था सिक्खो, गुर्जरों ओर पुंडीर को जागीरें देकर शांति बहाल कर रहा था।

पहले उसकी कोशिश पुंडीर ओर गुर्जरों को सिक्खो के खिलाफ खड़ा करने की थी जो कामयाब नही हुई क्योंकि बहुत से पुंडीर ओर गुर्जर भी सिक्ख बन चुके थे ओर सिख टुकड़ियों के साथ दून पर हमलावर थे।आखिर ललित शाह ने गुलाब सिंह पुंडीर से अपनी लड़की की शादी करके 12 गांव की जागीर उसे दे दी।गढ़वाल के राजा से संबंध हो जाने से पुंडीर इस इलाके की राजनीतिक तौर पर मजबूत कॉम बन गई थी।

जब नेपाल के जरनैल अमर सिंह थापा ने इस इलाके मे पेशकदमी की तो पुन्दीरो ने लंढौरा के गुर्जर राजा रामदयाल सिंह से मदद की गुहार की।

रामदयाल सिंह की गुर्जर फौज ने पुन्दीरो को अमरसिंह थापा के कहर से बचाया।

1803 मे अंग्रेजी फौज ने पुन्दीरो को विजयगढ़ के किले से निकाल कर अपना गुलाम बना लिया।

पुंडीर पूरी तरह अंग्रेजो की गुलामी करने लगा।

पुन्दीरो के प्रभाव के समय में जो गुर्जर उनकी मुलाज़मत में था अपने को भी प्रभावशाली कहलाने के लिए पुंडीर लगाने लगा।

पुन्दीरो ने गुर्जरो से युद्ध कला ओर भी कुछ सीखा उसका ज़िक्र कभी किसी ओर पोस्ट मे करूँगा।

1857 मे जब इलाके के गुर्जर ओर राघड़ बगावत पर था तो मुजफ्फरनगर के पुन्ड़ीरों ने अंग्रेजो के खिलाफ हो रहे विद्रोह को दबाने के लिए 200 प्यादे फौजी दिए, अकराबाद के पुंडीरों ने अंग्रेजी फौजी कल 500 सवार ओर 5000 प्यादे फौजी दिए,सिकंदर राव परगाना के पुंडीर ने 400 सवार ओर 4000 प्यादे दिए जो सारे गुज्जरों ओर रांघड़ों के विद्रोह को दबाने के लिए इस्तेमाल किये गए।कुंदन सिंह पुंडीर को सिकंदरा राव तहसील को बागियों से बचाने की जिम्मेदारी दि गई थी जहां उसने रांघड़ आबादी पर जुल्म किये।

नारायण सिंह पुंडीर अंग्रेजो के खिलाफ था,उसने अपने बेटो मेहताब सिंह ओर मंगल सिंह के साथ अंग्रेजो के खिलाफ बगावत की पर उसकी फौज में तमाम गुर्जर ओर रांघड़ शामिल थे।

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धर्म की आड़ में उसूल कुछ सदियों सदियों पुराने हैं।प्रसाद वितरण करने वालों में भी अब तो ज़हर खुराने हैं ।।

धर्म की आड़ में  उसूल कुछ 

सदियों सदियों पुराने हैं।

प्रसाद वितरण करने वालों में भी 

अब तो ज़हर खुराने हैं ।।

धर्म की चादर ओढ़कर मन्दिर में ,

आसन लगाऐ बैठे व्यभिचारी ।

अब मन्दिर ही मक्कारों के असली ठिकाने हैं ।

शराफत को अब कमजोरी समझते हैं लोग "रोहि"

निघोरेपन में अब कुछ और फरेबी पहचाने हैं।

ईमानदारी जहालत के मायने

हाल ये किस्मत के आयने।।

असलीयत के चहरें धूमिल

मुखौंटों का दौर सच कुछ और 

व्यापारीयों के बच्चे भी  जनम से सयाने हैं ।

पसीना है महनत का रस 

गरीबों पर न आता तरस ।।

महनत है कमजोर की हालत 

नेता करता है भूखों से अब भी 

लोकतन्त्र में बोट देने की बकालत।

प्रयास सहित भुगतना पढ़ता है खामियाजा।

विरोधी खयालों का दूर तक नहीं चलता साझा।।

पर नहीं बदलता फरेबी अपनी बुरी लत।

इसके  दिन तो और भी बुरे आने हैं ।
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संस्कृति के रूप में अब नंगापन है 

किडनैप और फिर रेप क्षत-विक्षत तन है 

 लड़कियाँ क्यों महफूज नहीं घर में 

उनकी अस्मिता  क्यों नहीं सलामत है ।

यह तो मानवता का घोर पतन है ।

ये सब इसलिए अधिक होता है ।

वतन के मुहाफिजों का 

गद्दारों से समझौता है ।

लोकतन्त्र की यज्ञ वेदी पर यज मानी 

जिसमें  कौऔं कुत्तों को न्यौता  है ।।

भूखा उदर लिए हीनपन 

चिथडे़ दो तन से लपेटे हैं।

शासन दु:शासन बना हुआ 

नेता नींद में लेटे हैं ।

 बिलख बिलख कोई  रोता है ।
जब दर्द किसी को होता है ।
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युवावर्ग में बेरोजगारी  तंगी भारी रोजगार  की 

भौतिक साधन शून्य हो गये जुगाड़ 'न पैदावार की 

बर्बाद हो गये हम ,जीवन छाए हैं ग़म ।।

 बर्बाद हो गये हम ,जीवन छाए हैं ग़म ।।

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आज देश में भगदड़ है सर्वत्र दबंगों का गण है 

जनता में दश में नौ भ्रष्ट सन्तों में भरी अकड़ हैं।।

साधु महातमा चिलमची राजनैतिक गलियारों में 

कन्याऐं विचित्र वस्त्रों में घूमें गलबहिंयाँ डारे यारों में 

महिलाओं के श्रृंँगार प्रसाधन और पति के पास नहीं धन।

विपदा है  पति लाचार की ।

युवावर्ग में बेरोजगारी  तंगी भारी रोजगार  की 

भौतिक साधन शून्य हो गये जुगाड़ 'न पैदावार की 

बर्बाद हो गये हम ,जीवन छाए ग़म ।।

बर्बाद  हो गये हम ,जीवन छाए ग़म ।।

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 जो ईमान के मुहाफिज हैं 

बेकाबिज फर्ज परस्त सिहरे ।

उनका जीवन अभाव ग्रस्त ,

वे हताश हवाश हीनत्व भरे ।

ये समय बड़ा भीषण है रण है- 

सबको चिन्ता है हार की ,

युवावर्ग में बेरोजगारी भारी तंगी रोजगार  की 

भौतिक साधन शून्य हो गये जुगाड़ 'न पैदावार की 

बर्बाद  हो गये हम ,जीवन छाए ग़म ।।

बर्बाद  हो गये हम ,जीवन छाए ग़म ।।

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इस तरह बिगड़ती हालातें 

नेताओं की झूँठी हैं बातें ।

चेहरे पर चेहरे लगे हुए 

आशंकित करती हैं घातें ।

बड़ी रात हुई हम जगे हुए ।

फिर भी महनत में लगे हुए ।

हालत देखी सरकार की 

युवावर्ग में बेरोजगारी भारी तंगी रोजगार  की 

भौतिक साधन शून्य हो गये जुगाड़ 'न पैदावार की 

बर्बाद  हो गये हम ,जीवन छाए ग़म ।।

बर्बाद  हो गये हम ,जीवन छाए ग़म ।।

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इन राहों से स्पष्ट है ।।

आगे भी कष्ट ही कष्ट है ।।

हर बुरी ख़बर सुनते क्षण क्षण 

ये सारा तन्त्र ही भ्रष्ट है ।

विश्वास आस्था गये उखड़।।

कर्तव्य भावों का उन्मूलन ,

अधिकारों के लिए तू रहा झगड़।

कर्तव्य जिसके रहे नहीं 

वो बात 'न करे अधिकार की ,

युवावर्ग में बेरोजगारी  तंगी भारी रोजगार  की 

भौतिक साधन शून्य हो गये जुगाड़ 'न पैदावार की 

बर्बाद  हो गये हम ,जीवन में छाए ग़म ।।

बर्बाद हो गये हम ,जीवन में छाए ग़म ।।

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रस तो अन्य छै: और भी हैं 

पर मिठास ही रस के करीब है ।

जो शरीफ है मजलूम है ।

 वो जमाने की नजर में गरीब है ।।

भलाई करने पर मिलते हैं 

सौ उलाहने जमाने से ।

 हकीकत  पता चल जाती है 

 हर किसी को आजमाने से ।

सबका व्यवहार और हाव-भाव

एक व्याख्या है 'रोहि' विचार की 

युवावर्ग में बेरोजगारी  तंगी भारी रोजगार  की 

भौतिक साधन शून्य हो गये जुगाड़ 'न पैदावार की 

बर्बाद हो गये हम ,जीवन में छाए ग़म ।।

बर्बाद हो गये हम ,जीवन में छाए ग़म ।।

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जहालत से भरी इस दुनियाँ में

ये रिवाज भी बड़े अजीब हैं ।

संवेदनाऐं सूख गयीं 

 ऐसे मेरे हुए लोग भी वो जीव हैं ।।

विचार-प्रवाह :- यादव योगेश कुमार "रोहि "

शनिवार, 1 फ़रवरी 2020

वतन के मुहाफिजों का फसाना...

धर्म की आड़ में  उशूल कुछ 
सदियों सदियों पुराने हैं।
प्रसाद वितरण करने वालों में भी 
अब ज़हर खुराने हैं ।।
धर्म की चादर ओढ़कर मन्दिर में ,
आसन लगाऐ बैठे व्यभिचारी ।
इन मन्दिरों में अब निकम्मे और मक्कारों के ठिकाने हैं ।

शराफत को अब कमजोरी समझते हैं लोग "रोहि"
निघोरेपन में अब कुछ और फरेबी पहचाने हैं।

ईमानदारी जहालत के मायने 
हाल से किस्मत के आयने।।
असलीयत के चहरें धूमिल
मुखौंटों का दौर सच कुछ और 
व्यापारीयों के बच्चे भी जैस जनम से सयाने है ।

पसीना है महनत का रस 
गरीबों पर न आता तरस ।।
महनत को कमजोरों की हालत 
नेता करता है भूखों से अब भी 
लोकतन्त्र में बोट देने की बकालत।
 ।।
प्रयास सहित भुगतना पढ़ता है खामियाजा।
विरोधी खयालों का दूर तक नहीं चलता साझा।।

पर नहीं बदलता फरेबी अपनी बुरी लत।
इसके  दिन तो और भी बुरे आने हैं ।

संस्कृति के रूप में अब नंगापन है 
किडनैप और फिर रेप क्षत-विक्षत तन है 
 लड़कियाँ क्यों महफूज नहीं घर में 
उनकी अस्मिता  क्यों नहीं सलामत है ।

ये सब इसलिए अधिक होता है ।
वतन के मुहाफिजों का 
गद्दारों से समझौता है ।
लोकतन्त्र की यज्ञ वेदी पर यज मानी 
मैं कौऔं कुत्तों को न्यौता  है ।।
भूखा और लिए हीनपन 
भूखे पेट चिथडे़ दो तन से लपेट
 बिलख बिलख कोई  रोता है ।