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जीवन में सपने भी देखे
सब सोच लिया है जी भर के !
कई बार हुए हैं हम जीवित
इच्छाओं की खातिर मर के !!
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चला आ रहा ये क्रम कबसे .
ये इच्छा फिर भी अधूरी हैं !
जीवन के क्षण भी पूर्ण हुए
और श्वाँसे भी लगभग पूरी हैं !
प्रारब्ध प्रवृत्तियों की ज़द में !
पर नैतिकता की सरहद में !
देखे लिए प्रयोग बहुत कर के !!
जीवन में सपने भी देखे.
सब सोच लिया है जी भर के !
कई वार हुए हम जीवित
इच्छाओं की ख़ातिर मर के !!
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ये इच्छा मन - सागर की लहरें !
यह आद्योपान्त समीक्षा की !
जिन पर हम कब तक यों तैरें !
प्रायौगिकता जटिल परीक्षा की !
बुलबुले और लहरो की संहिता
एक कणिका हैं रोहि शिक्षा की .
मन की संसृति में वही स्वप्न !
झाँकी जो दबी हुई इच्छा थी !
ये प्रयोग हठी हुई लीक्षा के !
अभिनय भी किए बहु रुप धर के .
जीवन में सपने भी देखे.
सब सोच लिए हैं जी भर के .
कई बार हुए हैं हम जीवित .
इच्छाओं की ख़ातिर मर के
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वख़्त की अनन्त राहों पर .
होकर सवार आहों पर !
जैसे ज़िन्दगी कोई मुसाफिर है
छूट गये हैं अब हमसे जो ..
उनसे मिलना कहाँ फिर है ..!
मित्र भी फिर. छूट जाते पीछे
तन्हा ही चलना आख़िर है ..
तय करने पड़ते हैं ख़ुद ही ...
राहें फिर तन्हा होती हैं सफर की
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जैसे जैसे वो हमको भूल जाते है.
हम उनसे बहुत दूर चले जाते हैं
इस सफर में कहाँ साथ हैं रोहि
जो हर शैं थी ! कहने को अपने घर की !!
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अपने मन में रोहि
जिसने यह ठान ली है !
दुःख की कड़ीयों से
भी उसने कुछ पहचान ली है !
ज़ेहन में तज़वीज हों
जिसके द़िल में ज़ज्बा ..!
उसको फिर हिला नहीं सकती .
रोहि इस ज़माने की हवा !
तूफाँन आँधीयों में भी
चट्टान जो दृढ़ शिखर है !!
उसके अरमान फौलाद हैं !
उसे तूफानों का कहाँ डर है ....
गिरते गिरते भी सम्हल गया है
बड़ी फुर्ती से जो कई मर्तबा !!
जेह़न मे तज़वीज़ हो दिल में जज्वा !!
अरमान भी बुलन्द हैं
जोश भी है जिसका जँवा !
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मुड़ कर नहीं देखता
वह पीछे फिर ठहर कर के !!
जीवन में सपने भी देखे ..
सब सोच लिया है जी भर के .
कई वार हम जीवित हुए हैं
इच्छाओं की ख़ातिर मर के ../
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दार्शनिक व कवि यादव योगेश कुमार 'रोहि' की मसिधर से.. 8077160219../.
ग्राम-आज़ादपुर पत्रालय-पहाड़ीपुर
जनपद अलीगढ़ उ०प्र० ..
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जय श्री कृष्ण !
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