न चाप्यधर्म: कल्याण बहुपत्नी कृता नृणाम् ।
स्त्रीणाम् अधर्म : सुमहान् भर्तु: पूर्वस्य लंघने ।३६।
कल्याण स्वरूप हृदयेश्वर ! बहुत सी स्त्रीयों से विवाह करने वाले पुरुष को पाप नहीं लगता । परन्तु स्त्रीयों को अपने पहले पति को त्यागने पर भारी पाप लगता है ।
महाभारत आदि पर्व बकवध पर्व १५७ वाँ अध्याय
महाभारत क्या कहता है ।
पुत्रीयों के लिए --
आत्मा पुत्र: सखा भार्या कृच्छ्रं तु दुहिता किल ।
स कृच्छ्रान्मोचयात्मानं मां च धर्मे नियोजय ।११।
अर्थात् - कहा गया है कि पुत्र अपनी आत्मा पत्नी साथ खेलने वाली सखा है । किन्तु पुत्री निश्चित रूप से संकट है अत: आप इस संकट से मुझे बचा लीजिए मुझे धर्म में लगाइए ।
महाभारत आदि पर्व बकवध पर्व १५८ वाँ अध्याय
महाभारत में स्त्रीयों में दुर्गुण बताया ।
ईप्सितश्च गुण: स्त्रीणामेकस्या बहुभर्तृता ।
तं च प्राप्तवती कृष्णा नसा भेदयितुं क्षमा।८।
प्राय: स्त्रीयों का यह अभीष्ट गुण है । कि एक स्त्रीयों में अनेक पुरुषों से सम्बन्ध बनाने की रुचि हो ।और पाणडवों के साथ द्रौपदी को यह लाभ स्वत: प्राप्त हो गया । महाभारत आदि पर्व विदुरागमन राज्यलम्भ पर्व २०१ वाँ अध्याय
महाभारत में स्त्रीयों को केवल भोग्या ही माना है ।
धृतराष्ट्र का दुर्योधन को समझाना -
अन्तर्वेद्यां ददद् वित्तं कामाननुभवन् प्रियान्।क्रीडन् स्त्रीभिर्निरातंक: प्रशाम्य भरतर्षभ ।११।
महाभारत सभा पर्व द्यूत पर्व ५४वाँ अध्याय ।
भरतर्षभ दुर्योधन! तुम यज्ञ में धन दान करो मन को -प्रिय लगने वाले भोग भोगो और निर्भय होकर स्त्रीयों के साथ रमण करते हुए शान्त रहो ।
विदुर का दुर्योधन को समझाना
अत: प्रियं चेदनुकांक्षसे त्वं ।
सर्वेषु कार्येषु हिताहितेषु ।
स्त्रियश्च राजञ्जडपंगुकांश्च।
पृच्छ त्वं वै तादृशांश्चैव सर्वान् ।।
महाभारत सभा पर्व द्यूत पर्व ५४वाँ अध्याय
हे दुर्योधन यदि तुम बुरे फले सभी कार्यो में केवल चिकनी-चुपड़ी बाते ही सुनना चाहते हो ,तो स्त्रीयों मूर्खों पंगुओं तथा उसी तरह के सब मनुष्यों की सलाह लो ।
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