येना॒व तु॒र्वशं॒ यदुं॒ येन॒ कण्वं॑ धन॒स्पृत॑म् ।
रा॒ये सु तस्य॑ धीमहि ॥१८। ऋग्वेद 8/7/18
(येन) (मरुता)- जिस मरुत के द्वारा (तुर्वशम्) तुर्वशु को (यदुम्) यदु को (आव) रक्षा की गयी = अव् =रक्षणे - धातु का लिट्-लकार प्रथम पुरुष एकवचन) उसकी रक्षा की गयी (येन) जिसके द्वारा (धनस्पृतम्) धनाभिलाषी को (कण्वम्) कण्व को (तस्य) उसका (राये) धन के लिये हम अच्छे प्रकार से उस मरुत का ध्यान करते हैं।१८।
उपर्युक्त ऋचा में वर्णन कि जब यदु और तुर्वसु मरुस्थल में भटक रहे थे तब मरुत ने ही उनकी रक्षा की
- धीमहि- यह शब्द "ध्या" धातु के लिङ् लकार का बहुवचन में छान्दस(वैदिक) प्रयोग है।जिसका अर्थ है - ध्यायेमहि= हम सब ध्यान करते हैं।
- हम उस मरुत का ध्यान करते हैं जिसके द्वारा (उन्हें धन प्रदान करने के लिए) तुर्वश, यदु और धन-इच्छुक कण्व की रक्षा की गयी
१-"येन =आत्मीयेन रक्षणेन "तुर्वशम् एतत्संज्ञं "यदुम् एतत्संज्ञं च राजर्षिम् २-"आव तम् रक्षितवान् स्थ । अवतेर्लिटि अन्य पुरुष एकवचने रूपमेतत् । “येन च ३- “धनस्पृतं= धनकामं "कण्वम् ऋषिं रक्षितवान् ४-“तस्य= युष्मदीयं रक्षणं ५-“राये धनार्थं ६- “सु “धीमहि= शोभनं ध्यायाम ॥
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