स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य ..यथार्थ के धरा तल पर प्रतिष्ठित एक आधुनिक शोध है। – प्रस्तुत शोध — योगेश कुमार रोहि के द्वारा प्रमाणित श्रृंखलाओं पर आधारित है !
भरत जन जाति
भरत जन जाति यहाँ की पूर्व अधिवासी थी संस्कृत साहित्य में भरत का अर्थ जंगली या असभ्य किया है।
और भारत देश के नाम करण का कारण अथवा आधार भी यही भरत जन जाति थी।
भारतीय वैदिक भाषा बोलने वाले लोग प्रमाणतः जर्मन आर्यों की ही शाखा थे।
जैसे यूरोप में पाँचवीं सदी में जर्मन के ऐञ्जीलस( अङ्गिरस्) कबीले के आर्यों ने ब्रिटिश के मूल निवासी ब्रिटों को परास्त कर ब्रिटेन को एञ्जीलस – लेण्ड अर्थात्- इंग्लेण्ड नाम कर दिया था
और ब्रिटिश नाम भी रहा जो कि उसका मौलिक और पुरातन नाम है ।
इसी प्रकार भारत नाम भी आगत देव संस्कृति के अनुयायीयों से पुरातन है।
दुष्यन्त और शकुन्तला पुत्र भरत की कथा बाद में इस देश की अस्मिता से जोड़ दी गयी ।
जैन साहित्य में एक भरत ऋषभ देव परम्परा में थे। जिसके नाम से भारत शब्द बना। ऐसी मान्यताऐं भी जैनियों में हैं ।
____________________________________
स्वर्ग कहा है? Where is Heaven (Swarg)?
आर्य कौन थे ?
आज से दश सहस्र ( दस हज़ार ) वर्ष पूर्व मानव सभ्यता की व्यवस्थित संस्था सुर अथवा देव जनजाति का प्रस्थान स्वर्ग से भू- मध्य रेखीय स्थल अर्थात् आधुनिक भारत में हुआ था। जिसमे उसके प्रव्रजन काल मे और मार्ग में अनेक देश संस्कृति और जलवायवीय परिस्थितियों का संगम हुआ।
देव संस्कृति के अनुयायीयों का भारत आगमन का समय ई०पू० १५०० से १२०० तक निर्धारित है ।यद्यपि अवान्तर – यात्रा काल में सुमेरियन तथा बैवीलॉनियन संस्कृतियों से भी देव संस्कृति के अनुयायीयों ने साक्षात्कार किया ।
जहाँ से इनकी देव सूची— में विष्णु देव का समायोजन हुआ।
SUMER ORIGIN OF VISHNU IN NAME AND FORM 83 is evidently a variant spelling of the Sumerian Pi-es’ or Pish for ” Great Fish ” with the pictograph word-sign of Fig, 19. —
Sumerian Sun-Fish as Indian Sun-god Vishnu.
डेगन
डैगन , फसल उर्वरता के पश्चिम सेमिटिक देवता, डैगन की वर्तनी भी है , जो पूरे प्राचीन मध्य पूर्व में बड़े पैमाने पर पूजे जाते थे । डेगन "अनाज" के लिए हिब्रू और युगैरिटिक सामान्य संज्ञा थी और भगवान डेगन हल के प्रसिद्ध आविष्कारक थे। उनके पंथ को लगभग 2500 ईसा पूर्व के रूप में प्रमाणित किया गया है , और रास शामरा (प्राचीन युगरिट ) में पाए गए ग्रंथों के अनुसार भी , वह भगवान के पिता थे बाल । डेगन का रास शामरा में एक महत्वपूर्ण मंदिर था, और फिलिस्तीन में, जहां उन्हें विशेष रूप से पलिश्तियों के देवता के रूप में जाना जाता था, उनके पास कई अभयारण्य थे, जिनमें आशेर (यहोशू 19:27), गाजा (न्यायियों 16:) में बेथ-दागोन शामिल थे। 23), और अशदोद (1 शमूएल 5:2-7)। रास शामरा में, डेगन जाहिरा तौर पर एल , सर्वोच्च देवता के बाद दूसरे स्थान पर था। हालांकि वनस्पति के देवता के रूप में उनके कार्यों को लगभग 1500 बीसी द्वारा बल में स्थानांतरित कर दिया गया लगता है ।
From an eighteen th-centuiy Indian image (after Moor’s Hindoo Pantheon).
Note the Sun-Cross pendant on his necklace. He is given four arms to carry his emblems : la) Disc of the Fiery Wheel {weapon) of the Sun, (M Club or Stone-mace (Gada or Kaumo-daki) 1 of the Sky-god Vanma, (c) Conch-shell (S’ank-ha), trumpet of the Sea-Serpent demon, 1 (d) Lotus (Pad ma) as Sun- flower.* i. Significantly this word ” Kaumo-daki ” seems to be the Sumerian Qum, ” to kill or crush to pieces ” (B., 4173 ; B.W.. 193) and Dak or Daggu ” a cut stone ” (B., 5221, 5233). a. ” Protector of the S’ankha (or Conch) ” is the title of the first and greatest Sea- Serpent king in Buddhist myth, see my List of Naga (or Sea-Serpent) Kings in Jour. Roy. Asiat. Soc, Jan, 1894. 3. On the Lotus as symbol of heavenly birth, see my W.B.T., 338, 381, 388.
84 INDO-SUMERIAN SEALS DECIPHERED Fish joined to sign ” great.” 1 This now discloses the Sumerian origin not only of the ” Vish ” in Vish-nu, but also of the English ‘* Fish,” Latin ” Piscis,” etc.— the labials-ओष्ठ से उच्चरित अक्षर की ध्वनि B, P, F and V being freely interchangeable in the Aryan family of languages.
Origin of Vishnu : विष्णु शब्द का मूल
The affix nu in ” Vish-nu ” is obviously the Sumerian Nu title of the aqueous form of the Sun-god S’amas and of his father-god la or In-duru इन्द्र: (Indra) as ” God of the Deep.गहराई के देव ” ‘ It literally defines them as ” The lying down, reclining or bedded ” (god) 3 or ” drawer or pourer out of water.” ‘ It thus explains the common Indian representation of Vishnu as reclining upon the Serpent of the Deep amidst the Waters, and also seems to disclose the Sumerian origin of the Ancient Egyptian name Nu for the ” God of the Deep.” 5 Thus the name
”Vish-nu ” is seen to be the equivalent of the Sumerian Pisk-nu,(पिस्क- नु ) and to mean ” The reclining Great Fish (-god) of the Waters ” ;
incarnations ” as the “striding” Sun-god in the heavens. Indeed the Sumerian root Pish or Pis for ” Great Fish ” still survives in Sanskrit as Fts-ara विसार: ” fish.”
* M., 6741, 6759 ; B., 8988. s B., 8990-1, 8997. 4 lb., 8993. 5 This Nu is probably a contraction for Nun, or ” Great Fish,” a title of the god la (or Induru) इन्द्ररु of the Deep (B., 2627). Its Akkad synonym of Naku, as “drawer or pourer out of Water,” appears cognate with the Anu(n)-«aAi, or ” Spirits of the Deep,” and with the Sanskrit Ndga or ” Sea-Serpent.” • M.W.D., 1000. The affix ara is presumably the Sanskrit affix ra, added to roots to form substantives, just as in Sumerian the affix ra is similarly added (cp., L.S.G., 81).इस प्रकार यह नाम उन कई उदाहरणों में से एक और उदाहरण देता है जो I 1 ऑन साइन T.D., 139; बीडब्ल्यू, 303संकेत को "बढ़ी हुई मछली" कहा जाता है {कुआ-गुनु, यानी, खड़-गानु, बी, 6925), जिसमें महत्वपूर्ण रूप से सुमेरियन व्याकरणिक शब्द गुनु का अर्थ है "बढ़ा हुआ" जैसा कि संयुक्त संकेतों पर लागू होता है, मूल रूप से संस्कृत व्याकरणिक के समान है। टर्म गुट.ए (= "बहु-प्लाइड या सहायक," एमडब्ल्यूडी, 357)जो डिप्थोंग्स बनाने वाले आधारों में बढ़े हुए तत्वों पर लागू होता है, और इस प्रकार संस्कृत और सुमेरियन व्याकरणिक शब्दावली की पहचान भी प्रकट करता है।
परन्तु अपनी इन इन्होंने प्रारम्भिक स्मृतियों को सँजोए रखा ।
स्वर्ग और नरक की धारणाऐं सुमेरियन संस्कृति में शियोल और नरगल के रूप में अवशिष्ट रहीं ,
सुमेरियन लोगों ने शियॉल नाम से एक काल्पनिक लोक की कल्पना की थी । जहाँ मृत्यु के बाद आत्माऐं जाती हैं । सम्भवत; भारतीय पुराणों में नरक यहीं उद्धृत किया गया है। ग्रीक शब्द "नारको" भी दृष्टव्य है।
Ancient Greek ναρκόω (narkóō, “tobe numb”)from (νάρκη) -nárkē, “numbness, -प्राचीन यूनानी शब्द-ναρκόω (नारको, ="सुन्न होना") तथा (νάρκη) -नारके, "सुन्नता, से विकसित रूप- संस्कृत धातुपाठ- नड्(नर्) नल् -बन्धने। के रूप में विद्यमान है।
यह तथ्य अपने आप में यथार्थ होते हुए भी रूढ़िवादीजन समुदाय की चेतनाओं में समायोजित होना कठिन है !! फिर भी प्रमाणों के द्वारा इस तथ्य को सिद्ध किया गया है ! यह नवीन शोध यादव योगेश कुमार "रोहि" की दीर्घ कालिक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक साधनाओं का परिणाम है । विश्व इतिहास में यह अब तक का सबसे नवीनत्तम और अद्भुत शोध है !
निश्चित रूप से रूढ़िवादी जगत् के लिए यह शोध एक बबण्डर सिद्ध होगा ; बुद्धि जीवीयों तक यह सन्देश न पहँच पाए इस हेतु के लिए अनिष्ट कारी शक्तियों ने अनेक विघ्न उत्पन्न किए हैं !
तीन वार यह विघ्न उत्पन्न हुआ है ! पूरा सन्देश डिलीट कर दिया गया है परन्तु वह कारक अज्ञात ही था जिसके द्वारा यह संदेश नष्ट किया गया था फिर ईश्वर की कृपा निरन्तर बनी रही।
ब्राह्मण संस्कृति का प्रादुर्भाव देवों अथवा स्वरों { सुरों} से हुआ है।
"ब्राह्मण संस्कृति का प्रादुर्भाव देवों अथवा स्वरों {सुरों} से हुआ है।
सत्य पूछा जाए तो आर्य शब्द जन-जाति सूचक विशेषण नहीं है।
केवल सुर जन-जाति का अस्तित्व जर्मनिक जन-जातियाें की पूर्व शाखा के रूप में नॉर्स कथाओं में वर्णित हैं ये त्वष्टा (डच )के वंशज हैं । यह भारतीय संस्कृति की दृढ़ मान्यता है ,सुर { स्वर } जिस स्थान { रज} पर पर रहते थे उसे ही स्वर्ग कहा गया है —
“स्वरा सुरा वा राजन्ते यस्मिन् देशे तद् स्वर्गम् कथ्यते “ स्वर्ग शब्द की व्युत्पत्ति भी इसी रूप में हुई …यहाँ छःमहीने का दिन और छःमहीने की रातें होती हैं वास्तव में आधुनिक समय में यह स्थान स्वीडन { Sweden} है जो उत्तरी ध्रुव पर हैमर पाष्ट Hiemr के समीप स्थित है।
हीम व्युत्पत्ति
पश्चिमी फ़्रिसियाई शब्द हीम प्रोटो-इंडो-यूरोपियन * ḱei-, प्रोटो-इंडो-यूरोपियन * ḱoy-, और बाद में प्रोटो-जर्मनिक * हैमाज़ (होम। हाउस। विलेज) से आया है।
हीम के शब्द मूल का विस्तृत विवरण
*देई- | प्रोटो-इंडो-यूरोपियन (ine-pro) | झूठ बोलना, स्टोर करना, परिचित होना, स्थित होना; शिविर, बस्ती; दोस्ताना; उसी घर से |
*बॉय- | प्रोटो-इंडो-यूरोपियन (ine-pro) | |
*टोयोमोस | प्रोटो-इंडो-यूरोपियन (ine-pro) | |
*हैमाज़ | प्रोटो-जर्मनिक (जेम-प्रो) | घर। मकान। गांव। |
हेम | पुराने फ़्रिसियाई (ofs) | |
Heim | पश्चिमी फ़्रिसियाई (तलना) |
हीम के समान मूल वाले शब्द
जिस स्थिति में 6 महीने दिन और 6 महीने की रात होती है वह केवल ध्रुवों पर ही हो सकता है क्योंकि पृथ्वी अपनी धुरी पर झुकी हुई है।
जो ध्रुव सूर्य से दूर (सूर्य की विपरीत दिशा में) होता है वह सूर्य के सामने आने तक पूर्ण अंधकार में रहता है।
इस प्रकार हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि ध्रुवों पर स्थित देशों में 6 माह दिन और 6 माह की रात होती है।
इसलिए इन क्षेत्रों के निकटवर्ती देशों में ऐसे मामले हैं जैसे अलास्का, अंटार्कटिका, नॉर्वे आदि।
नॉर्वे, यूरोप का सबसे उत्तरी बसा हुआ क्षेत्र, लगभग 19 अप्रैल से 23 अगस्त तक सूर्यास्त नहीं होता है। चरम स्थल ध्रुव हैं, जहां सूर्य आधे वर्ष तक लगातार दिखाई दे सकता है। मार्च के अंत से सितंबर के अंत तक 6 महीने के लिए उत्तरी ध्रुव पर आधी रात का सूरज रहता है।
प्राचीन नॉर्स भाषाओं में स्वीडन को ही स्वरगे { Svirge } कहा है ..भारतीय आर्यों को इतना स्मरण था कि उनके पूर्वज सुर { देव} उत्तरी ध्रुव के समीप स्वेरिगी में रहते थे इस तथ्य के भारतीय सन्दर्भ भी विद्यमान् हैं बुद्ध के परवर्ती काल खण्ड में लिपि बद्ध ग्रन्थ मनु स्मृति में वर्णित है ।
अहो रात्रे विभजते सूर्यो मानुष देैविके !! देवे रात्र्यहनी वर्ष प्र वि भागस्तयोःपुनः || अहस्तत्रोदगयनं रात्रिः स्यात् दक्षिणायनं —— मनु स्मृति १/६७ ...अर्थात् देवों और मनुष्यों के दिन रात का विभाग सूर्य करता है मनुष्य का एक वर्ष देवताओं का एक दिन रात होता है अर्थात् छः मास का दिन .जब सूर्य उत्तारायण होता है !
और छःमास की ही रात्रि होती है जब सूर्य दक्षिणायनहोता है ! प्रकृति का यह दृश्य केवल ध्रुव देशों में ही होता है !
वेदों का उद्धरण भी है।।
हमारे वीर{आर्य}उत्तर में हुए
..इतना ही नहीं भारतीय पुराणों मे वर्णन है कि
...कि स्वर्ग उत्तर दिशा में है!!
वेदों में भी इस प्रकार के अनेक संकेत हैं ..
अस्माकमिन्द्रःसमृतेषु ध्वजेष्वस्माकं या इषवस्ता जयन्तु । अस्माकं वीरा उत्तरे भवन्त्वस्माँ उ देवा अवता हवेषु।११।
ऋग्वेद १०/१०३/११
अदिते मित्र वरुणोत मृळ यद्वो वयं चकृमा कच्चिदागः ।
उर्वश्यामभयं ज्योतिरिन्द्र मा नो दीर्घा अभि नशन्तमिस्राः ॥१४॥ऋग्वेद २/२७/१४
हे (अदिते) सूर्य ! (इन्द्र) (मित्र) (उत) और (वरुण) (मृळ) सुखी करो (यत्) जो (वः) तुम्हारा (कश्चित्) कुछ (उरु) बड़ा (आगः) अपराध (वयम्) हम (चकृम) करें (अभयम्) भयरहित (ज्योतिः) प्रकाशयुक्त दिन को (अश्याम्) प्राप्त होऊँ और (नः) हमारी (दीर्घाः) लम्बी- (तमिस्राः) रात्रीयाँ (मा) (न) (नशन्) नष्ट न करे। ॥१४॥
सायण का भाष्य:-
उत अपि च हे अदिते मित्र वरुण आमन्त्रितं पूर्वमविद्यमानवदिति पूर्व पूर्वस्यामन्त्रितस्याविद्यमानवद्भावात्सर्वेषां षाष्ठिकमामन्त्रितस्येत्याद्युदात्तत्वम् यूयं प्रत्येकं मृळ अस्माकमुपरि दयां कुरु रक्षेत्यर्थः यंत्यद्यपि वयं वो युष्माकं कच्चित् किञ्चिदागोपराधं चकृम -अकर्म तथापि मृळेत्यर्थः हे इन्द्र परमैश्वर्योपेतादित्य उरु विस्तीर्ण अक्षयं भयरहितं ज्योतिस्त्वदीयं प्रकाशं ज्ञानात्मकं वा अश्यां अहं प्राप्नुयाम् दीर्घा विस्तृतास्तमिस्रास्तमसायुक्ता निशाः ज्योत्स्ना तमिस्रा शृङ्गिणेति निपात्यते ता नोस्मान् माभिनशन् आभिमुख्येन व्याप्नुवन्तु॥१४।
वैदिक काल के ऋषि उत्तरीय ध्रुव से निम्मनतर प्रदेश बाल्टिक सागर के तटों पर अधिवास कर रहे थे , उस समय का यह वर्णन है।कि लम्बी रातें हम्हें अभिभूत न करें वैदिक पुरोहित भय भीत रहते थे, कि प्रातः काल होगा भी अथवा नहीं , क्यों कि रात्रियाँ छः मास तक लम्बी रहती थीं ।..
रात्रिर्वै चित्रवसुख्युष्ट़इ्यै वा एतस्यै पुरा
ब्राह्मणा अभैषुः-तैत्तीरीयसंहित्ता १,५,७,५
अर्थात् चित्रवसु रात्रि है अतः ब्राह्मण भयभीत है कि सुबह(व्युष्टि)न होगी।आशंका है ध्यातव्य है कि
ध्रुवबिन्दुओं पर ही दिन रात क्रमशः छः छः
महीने के होते है। परन्तु उत्तरीय ध्रुव से नीचे क्रमशः
चलने पर भूमध्यरेखा पर्यन्त स्थान भेद से दिन
रात की अवधि में
भी भेद हो जाता है .
और यह अन्तर चौबीस घण्टे से लेकर
छः छः महीने का हो जाता है | अग्नि और सूर्य की महिमा आर्यों को
उत्तरीय ध्रुव के शीत प्रदेशों में ही हो गयी थी !!
अतः अग्नि - अनुष्ठान वैदिक सांस्कृतिक
परम्पराओं का अनिवार्यतः अंग था .जो
परम्पराओं के रूप में यज्ञ के रूप में रूढ़ हो गया।
स्वर्ग कहा है ? Where is Heaven ( Swarg)?
पण्डित , ब्राह्मण और पुरोहित कौन हैं ? और ये कहाँ से आये ?
Origin and Etymology of brahman)
Middle English (Bragman )inhabitant of India,
from Latin +Bracmanus,) from Greek (Brachman,) from Sanskrit brāhmaṇa of the Brahman caste, from brahman Brahman
First Known Use: 15th century
( ब्राह्मण शब्द का मूल व उसकी व्युत्पत्ति-)
ब्राह्मण वर्ण का वाचक है । भारतीय पुराणों में ब्राह्मण का प्रयोग मानवीय समाज में सर्वोपरि रूप से निर्धारित किया है । यह शब्द सम्बद्ध है ग्रीक "ब्रचमन" तथा लैटिन "ब्रैक्समेन" मध्य अंग्रेज़ी का "बगमन "
भारतीय पुरोहितों का मूल विशेषण ब्राह्मण है ।
इसका पहला यूरोपपीय ज्ञात प्रयोग: 15 वीं शताब्दी में है ।
अंग्रेज़ी भाषा में ब्रेन (Brain) मस्तिष्क का वाचक है ।
संस्कृत भाषा में तथा प्राचीन -- भारोपीय रूप ब्रह्मण है।
मस्तिष्क ( संज्ञा ) का रूप :-----ब्रह्मण
ऋग्वेद के १०/९०/१२
ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीत् बाहू राजन्यकृत: ।
उरू तदस्ययद् वैश्य पद्भ्याम् शूद्रोऽजायत।।
अर्थात् ब्राह्मण विराट-पुरुष के मुख से उत्पन्न हुए
और बाहों से राजन्य ( क्षत्रिय)उरु ( जंघा) से वैश्य तथा पैरों से शूद्र उत्पन्न हुए ।
____________________________________
यद्यपि यह ऋचा पाणिनीय कालिक ई०पू० ५०० के समकक्ष है ।
परन्तु यहाँ ब्राह्मण को विद्वान् होने से मस्तिष्क-ब्रेन कहना सार्थक था ।
यूरोपीय भाषा परिवार में विद्यमान ब्रेन (Brain)
उच्च अर्थ में, "चेतना और मन का अवयव," पुरानी अंग्रेजी (ब्रेजेगन) "मस्तिष्क", तथा प्रोटो-जर्मनिक * (ब्रैग्नाम )
(मध्य जर्मन (ब्रीगेन )के स्रोत भी यहीं से हैं ,
भौतिक रूप से ब्रेन " कोमल , भूरे रंग का पदार्थ, एक कशेरुका का कपाल गुहा है "
पुराने फ़्रिसियाई और डच में (ब्रीन), यहाँ इसका व्युत्पत्ति-अनिश्चितता से सम्बद्ध, शायद भारोपीय-मूल * मेरगम् (संज्ञा)- "खोपड़ी, मस्तिष्क"
(ग्रीक ब्रेखमोस)
"खोपड़ी के सामने वाला भाग, सिर के ऊपर")।
लेकिन भाषा वैज्ञानिक लिबर्मन लिखते हैं कि मस्तिष्क "पश्चिमी जर्मनी के बाहर कोई स्थापित संज्ञा नहीं है ।तथा यह और ग्रीक शब्द से जुड़ा नहीं है। अधिक है तो शायद, वह लिखते हैं, कि इसके व्युत्पत्ति-सूत्र भारोपीयमूल के हैं । * bhragno "कुछ टूटा हुआ है। परन्तु यह शब्द संस्कृत भाषा में प्राप्त भारोपीय धातु :--- ब्रह् से सम्बद्ध है ।
ब्रह् अथवा बृह् धातु का अर्थ :---- तीन अर्थों में रूढ़ है ।
१- वृद्धौ २- प्रकाशे ३- भाषे च
_______________________________________
बृह् :--शब्दे वृद्धौ च - बृंहति बृंहितम बृहिर् इति दुर्गः अबृहत्, अबर्हीत् बृंहेर्नलोपाद् बृहोऽद्यतनः (?)
16वी सदी से तारीखें "बौद्धिक शक्ति" का आलंकारिक अर्थ अथवा14 सदी के अन्त से है; यूरोपीय भाषा परिवार में प्रचलित शब्द ब्रेगनॉ
जिसका अर्थ है "एक चतुर व्यक्ति"
इस अर्थ को पहली बार (1914 )में दर्ज किया गया है। मस्तिष्क पर कुछ करने के लिए "बेहद उत्सुक या रुचि रखने वाला "
मस्तिष्क की गड़बड़ी "स्मृति का अचानक नुकसान या विचार की ट्रेनिंग, तार्किक रूप से सोचने में अचानक असमर्थता" (1991) से (मस्तिष्क-विकार) (1650) से "तर्कहीन या अपवर्जित प्रयास" के रूप में रूढ़ है
"सिर" के लिए एक पुराना अंग्रेज़ी शब्द था ब्रेगमन ।ब्रैग्लोका, जिसका अनुवाद "मस्तिष्क लॉकर" के रूप में किया जा सकता है।
मध्य अंग्रेजी में, ब्रेनस्कीक (पुरानी अंग्रेज़ी ब्रैगेन्सोक) का अर्थ "पागल,स से जुड़ता है।"
_________________________________________
मस्तिष्क :---
"दिमाग को निर्देशन करने के लिए,"14 वीं सदी, मस्तिष्क ।
braining।
brame
See also: Brame and bramé
English:--
Etymology:-
From Middle English brame, from Old French brame, bram (“a cry of pain or longing; a yammer”), of Germanic origin, ultimately from Proto-Germanic *bramjaną (“to roar; bellow”), from Proto-Indo-European *bʰrem- (“to make a noise; hum; buzz”).
__________________________________________
तुलना करें
Old High German breman (“to roar”), रवर्
Old English bremman (“to roar”).
More at brim. Compare breme.
Noun:---
brame (uncountable)...
(obsolete) intense passion or emotion; vexation....
Spenser, The Fairie Queene,
(Book III, Canto II, 52)
अग्निम् ईडे पुरोहितम् यज्ञस्य देवम् ऋतुज्यं होतारं रत्नधातव।।(ऋग्वेद १/१/१ )अग्नि के लिए २००सूक्त हैं ।
अग्नि और वस्त्र देवोपासकों की अनिवार्य आवश्यकताऐं थी। वास्तव में तीन लोकों का तात्पर्य पृथ्वी के तीन रूपों से ही था।
उत्तरीय ध्रुव उच्चत्तम स्थान होने से स्वर्ग है ! जैसा कि जर्मन आर्यों की मान्यता थी। उन्होंने स्वेरिकी या स्वेरिगी को अपने पूर्वजों का प्रस्थान बिन्दु माना यह स्थान आधुनिक स्वीडन { Sweden} ही था। प्राचीन नॉर्स भाषाओं में स्वीडन का ही प्राचीन नाम स्वेरिगे { Sverige } है ! यह स्वेरिगे Sverige } देव संस्कृति का आदिम स्थल था, वास्तव में स्वेरिगे Sverige ..शब्द के नाम करण का कारण भी उत्तर पश्चिम जर्मनी आर्यों की स्वीअर { Sviar } नामकी जन जाति थी .अतः स्वेरिगे शब्द की व्युत्पत्ति भी सटीक है।
"Sverige is The region of sviar ! This is still the formal Names for Sweden in old Swedish Language..Etymological form ….(Svea =( स्वः} + Rike – Region रीजन अर्थात् रज = स्थान .. तथा शासन क्षेत्र | संस्कृत तथा ग्रीक /लैटिन शब्द लोक के समानार्थक है “रज् प्रकाशने अनुशासने च”पुरानी नॉर्स- (Risa )गॉथिक भाषा में (Reisan)- अंग्रेजी में (Rise) .. पाणिनीय धातु पाठ .देखें …लैटिन फ्रेंच तथा जर्मन वर्ग की भाषाओं में लैटिन ही आधरमूलक भाषा है।-Regere = To rule अनुशासन करना ..इसी का present perfect रूप Regens ,तथ regentis आदिशब्द निष्पन्न हैं। Regence = goverment =राज प्रणाली। .जर्मनी भाषा में Rice तथा reich रूप राजा के ही हैं !! पुरानी फ्रेंच में -Regne -reign तथा रोमन-(लैटिन) रूप -Regnum = to rule इनका तादात्म्य संस्कृत शब्द राज से सम्बन्ध है ।
रजते | रजेते | रजन्ते |
लोक शब्द लैटिन फ्रेंच आदि में -Locus के रूप में है जिसका अर्थ होता है प्रकाश और स्थान ..तात्पर्य स्वर अथवा सुरों ( आर्यों ) का राज ( अनुशासन क्षेत्र ) ही स्वर्ग (स्वः +रज )..समाक्षर लोप से सान्धिक रूप हुआ स्वर्ग उत्तरीय ध्रुव पर स्थित पृथ्वी का वह उच्चत्तम भू – भाग है जहाँ छःमास का दिन और छःमास की दीर्घ रात्रियाँ होती हैं ।
भौगोलिक तथ्यों से यह प्रमाणित हो गया है दिन रात की एसी दीर्घ आवृत्तियाँ केवल ध्रुवों पर ही होती हैं इसका कारण पृथ्वी अपने अक्ष ( धुरी ) पर २३ १/२ ° अर्थात् तैईस सही एक बट्टे दो डिग्री अंश दक्षिणी शिरे पर झुकी हुई है | अतः उत्तरीय शिरे पर उतनी ही उठी हुई है ! और भू- मध्य स्थल दौनो शिरों के मध्य में है ..पृथ्वी अण्डाकार रूप में सूर्य का परिक्रमण करती है जो ऋतुओं के परिवर्तन का कारण है अस्तु ..स्वर्ग को ही संस्कृत के श्रेण्य साहित्य में पुरुः और ध्रुवम् भी कहा है पुरुः शब्द प्राचीनत्तम भारोपीय शब्द है जिसका ग्रीक / तथा लैटिन भाषाओं में Pole रूप प्रस्तावित है । पॉल का अर्थ हीवेन Heaven या Sky है Heaven = to heave उत्थान करना उपर चढ़ना । संस्कृत भाषा में भी उत्तर शब्द यथावत है जिसका मूल अर्थ है अधिक ऊपर।
स्वर्ग कहा है? Where is Heaven ( Swarg)?
Utter– Extreme = अन्तिम उच्चत्तम विन्दु ।
Utter– Extreme = अन्तिम उच्चत्तम विन्दु ।
अपने प्रारम्भिक प्रवास में स्वीडन ग्रीन लेण्ड ( स्वेरिगे ) आदि स्थलों परआर्य लोग बसे हुए थे । , यूरोपीय भाषा में भी इसी अर्थ को ध्वनित करता है ।
हम बताऐं की नरक भी यहीं स्वीलेण्ड ( स्वर्ग) के दक्षिण में स्थित था ।-–
Narke ( Swedish pronunciation) is a swedish traditional province or landskap situated in Sviar-land in south central …sweden
नरक शब्द नॉर्स के पुराने शब्द नार( Nar )
से निकला है, जिसका अर्थ होता है – संकीर्ण अथवा तंग (narrow )
ग्रीक भाषा में नारके Narke तथा narcotic जैसे शब्दों का विकास हुआ ।
ग्रीक भाषा में नारके Narke शब्द का अर्थ जड़ ,सुन्न ( Numbness, deadness है ।
संस्कृत भाषा में नड् नल् तथा नर् जैसे शब्दों का मूल अर्थ बाँधना या जकड़ना है ।
इन्हीं से संस्कृत का नार शब्द जल के अर्थ में विकसित हुआ ।
संस्कृत धातु- पाठ में नी तथा नृ धातुऐं हैं आगे ले जाने के अर्थ में – नये ( आगे ले जाना ) नरयति / नीयते वा इस रूप में है ।
अर्थात् गतिशीलता जल का गुण है ।
स्वर्ग का संक्षिप्त विवरण
स्वर्ग का राजा | इंद्र ( Andre or Andrew in europian culture) |
स्वर्ग की अप्सरा | मेनका |
धर्म / संस्कृति | सुर |
भारत में इनका धर्म /संस्कृति | वैदिक / सुर |
वर्तमान में स्वर्ग वाली भूमि कहां है | स्वीडन ( जिसे वहां की प्राचीन नोर्स भाषा में (swirge) कहा जाता है ) |
स्वर्ग ( स्वीडन ) में रात दिन | ध्रुवीय प्रदेशों में छः महीने का दिन और छः महीने की रात होती है। अतः पृथ्वी के अन्य भागों पर व्यतीत एक साल ध्रुवीय प्रदेशों के एक दिन के बराबर होता है। |
इनके वंशज | कुछ ब्राह्मण ( वशिष्ठ, जमदग्नि, गौतम आदि गोत्रों वाले ) |
नोट | अत्रि ऋषी का सम्बंध वैदिकों से नहीं , आर्यों से है। आर्य असुर संस्कृति मानते थे जबकि वैदिक सुर संस्कृति |
“इस देश के इतिहास का सबसे बड़ा झूठ ये है कि इतिहासकारों ने वैदिक / सुर संस्कृति मानने वालों को आर्य घोषित कर दिया। जो की एक सफेद झूठ है। आर्यों का सम्बंध असुर संस्कृति से है ना की देव संस्कृति से”
ब्राह्मणों के सिवा कोई देवताओं के वंशज नही है सब असुरों के वंशज हैं। ब्राह्मणों में भी असुरों के वंशज मोजूद हैं। देवता तुच्छ थे इस बात को नकारा नहीं जा सकता
नरक क्या है ? उत्तर दिशा के वाचक नॉर्थ शब्द नार मूलक ही है
क्योंकि यह दिशा हिम और जल से युक्त है ।
भारोपीय धातु स्नर्ग *(s)nerg- To turn, twist अर्थात् बाँधना या लपेटना से भी सम्बद्ध माना जाता है
परन्तु जकड़ना बाँधना ये सब शीत की गुण क्रियाऐं हैं ।
निश्चित रूप से नरक स्वर्ग ( स्वीलेण्ड)या स्वीडन के दक्षिण में स्थित था !
स्वर्ग का और नरक का वर्णन तो हमने कर दिया
परन्तु भारतीय संस्कृति में जिसे स्वर्ग का अधिपति माना गया उस इन्द्र का वर्णन न किया जाए तो
पाठक- गण हमारे शोध को कल्पनाओं की उड़ान
और निराधर ही मानेंगे —-
अत: हम आपको ऐसी अवसर ही प्रदान नहीं करेंगे।
इंद्र की कौन था ? Who was Indra?
यूरोपीय पुरातन कथाओं में इन्द्र को एण्ड्रीज (Andreas) के रूप में वर्णन किया गया है ।
जिसका अर्थ होता है शक्ति सम्पन्न व्यक्ति ।
स्वर्ग कहाँ है? Where is Heaven ( Swarg)?
संस्कृत भाषा में 1. ज्ञातिः (जाति बन्धु)
(यथा मनुः । ५।१०४ ।
“ न विप्रं स्वेषु तिष्ठत्सु मृतं शूद्रेण नाययेत् ।
अस्वर्ग्या ह्याहुतिः सा स्यात् शूद्रसंस्पर्शदूषिता ॥ “ ) आत्मा । इत्यमरः । ३। ३ । २१०॥
(यथा रघुः । २। ५५ ।
“सेयं स्वदेहार्पणनिष्क्रयेण न्याय्या मय मोचयितुं भवत्तः ॥ “ विष्णुः ।
इति महाभारतम् । १३ । १४९ । ११७
और जर्मनिक वर्ग की भाषाओं में निर्मित शब्द
स्वीडिश (स्वीडिश: स्वीवर; पुराना नॉर्स: Svir की प्रतिक्रियात्मक pronominal root swi से, “स्वयं के अर्थ में ।
[ स्वर जनजातियों / रिश्तेदारों का वाचक शब्द भी ]”;
—पुरानी अंग्रेज़ी: स्वॉनस) थे एक उत्तर जर्मनिक जनजाति ।
वैदिक स्वर या सुर से प्रतरूपित
इस जनजाति के बारे में लिखने पहला लेखक रोमन इतिहास कार टैसिटस है,।
Swedish anus
There is no anus more famous than Swanus
जो अपने जर्मनिया ऐैतिहासिक ग्रन्थ में 98 ई०सन् से स्वेन्स जन-जाति का उल्लेख करता है। इतिहासकार जॉर्डन, छठी शताब्दी में, स्वेन्स और स्वॉन्स का उल्लेख करते हैं।
शुरुआती स्रोतों जैसे कि सागों, विशेष रूप से हेमस्किंगला के अनुसार, “
सुर स्वीडन की एक शक्तिशाली जनजाति थे” जिनके राजाओं ने देव फ्रायर से अपने वंश के प्रादुर्भाव का दावा किया था।
वाइकिंग एज (समुद्रीय डॉकूओं का युग ) के दौरान वे वारांगियन उपसमुच्चय, वाइकिंग्स के आधार का गठन करते थे ;
जो पूर्व की ओर यात्रा करते थे । अर्थात् भू-मध्य-रेखीय देशों में –
और अधिक जानकारी के लिए
(रस (ऋषि ) ‘लोगों को देखें)।
जैसा कि स्वीडिश राजाओं के वर्चस्व में वृद्धि हुई, जनजाति का नाम अधिक सामान्यतः मध्य युग के दौरान लागू किया जा सकता था ;
ताकि गीता, ज्यूट ,जीटा को भी शामिल किया जा सके।
बाद में इसका मतलब यह था कि केवल गेट्स की जगह स्वेलैंड में मूल आदिवासियों के रहने वाले लोग ही थे।
आधुनिक उत्तरी जर्मनिक भाषाओं में, विशेषण के रूप में स्वीवेन और उसके बहुवचन (svenskar )नाम (svear )जगह ले ली है ।
और आज, स्वीडन के सभी नागरिकों को निरूपित करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
स्वीडन के मूल निवासी सुर थे ।
आदिवासी स्वीडन (स्वीवेर) और आधुनिक स्वीडन (स्वेन्स्कोर) के बीच अन्तर 20 वीं शताब्दी के शुरुआती दिनों में प्रभावी रहा है, ।
जब नॉर्डिक फैमिल्जेबोक ने कहा कि स्वीवेर ने लगभग स्वीडिश लोगों के नाम के रूप में स्वीवेर को बदल दिया था। तात्पर्य यह कि स्वर (सुर) देवता यहीं स्वीडन में रहते थे । क्योंकि —पुरानी नॉर्स माइथॉलॉजी में स्वीडन को स्वर्ग (Sveriki ) कहा गया है
यद्यपि यह भेद आधुनिक नार्वेजियन, डेनिश और स्वीडिश, आइसलैंडिक और फ़रोइज़ में सम्मिलित नहीं है, आधुनिक स्वीडन के शब्दों के रूप में स्विटिरियर (आइसलैंडिक) या Svar स्वर (फ़रोइज़) और सेन्स्किर (आइसलैंडिक) या स्वेन्स्करार (फिरोज़ी) के बीच अंतर नहीं है। सभी पर्याय वाची रूप हैं
शब्द-साधन अथवा व्युत्पत्ति-मूलक विश्लेषण की दृष्टि से –रूप है स्यूनेस
रोमन लेखक टेसिटस जर्मनिया पुस्तक में यही रूप दिखाई देता है ।
स्वर्ग कहा है? Where is Heaven ( Swarg)?
एक समान रूप से इसी तरह के रूप, स्वेन (जैसे), पुरानी अंग्रेज़ी में और हैम्बर्ग-ब्रेमेन आर्चबिशप के बारे में एडम ऑफ ब्रेमेन के गेस्टा हैम्बुर्गेंसिस परिषद के पेंटिफ्रिमेन्ट में पाए जाते हैं, जो सुएऑन्स को चिह्नित करते हैं।
संस्कृत भाषा का स्वामी शब्द का अर्थ भी स्वयं अथवा सॉन मूलक है ।
अधिकांश विद्वान सहमत हैं कि सूएनेस और नामित साक्षांकित जर्मन रूप उसी प्रोटो-इंडो-यूरोपीय आत्मक्षेपी प्रोटोमनी जड़, * Swi से लैटिन सूस के रूप में प्राप्त होता है।
जिससे कालान्तरण में स्वर सुर तथा स्वामी जैसे स्वतन्त्रता मूलक शब्दों का जन्म हुआ ।
स्वी (Swi )शब्द का अर्थ “खुद का, स्वयम् का (जनजाति)” होना चाहिए ।
स्वजन अपनी जाति होना चाहिए ।
जो कि भारोपीय संस्कृतियों में सुर हैं ।
आधुनिक स्कैंडिनेवियाई में, एक ही मूल शब्दों में प्रकट होती है जैसे स्काइगर (भाई कानून के दायरे में ) और svägerska (बहू-भाभी)।
शूबेन (स्वाबिया) नाम की इस दिन के लिए संरक्षित जर्मनिक जनजाति सुएबी नामक एक ही मूल और मूल अर्थ पाए गए हैं।
ध्वन्यात्मक विकास का विवरण भिन्न प्रस्तावों के बीच अलग-अलग होता है।
नोरिएन (19 20) ने प्रस्तावित किया कि सूओनेस एक लैटिन प्रोटो- इण्डो-जर्मनिक स्वेहिनीज़ है,
जो पीआईई( piee) रूट से आता है * स्विह- “अपना स्वयं का”।
प्रपत्र * स्विहिनाज में उल्फ़िला में ‘गॉथिक बनें * स्वहिंस, जो बाद में सुएहंस के रूप में होगा जो कि जॉर्डन ने गेटिका में स्वीडन के नाम के रूप में उल्लेख किया था। परिणाम स्वरूप
, प्रोटो-नॉर्स फॉर्म * सफ़हानीज होता था, जो पुराने नॉर्स में ध्वनि-परिवर्तन के बाद पुराने पश्चिम नार्स स्वीवार और पुरानी पूर्व नॉर्स वायर्ड के परिणामस्वरूप थे।
वर्तमान में, हालांकि, “स्वयं के” के लिए रूट * swih के बजाय * s (w)i के रूप में पुनर्निर्माण किया जाता है, और यह सूइनेस के लिए पहचानित मूल है ।
पॉकरनी के 1959 इन्डोगर्मिंस एटिज़ोलॉजिस्ट वॉर्टरबुच में और 2002 में नॉर्डिक भाषाएं: ओस्कर बंडले द्वारा संपादित उत्तर जर्मनिक भाषाओं के इतिहास की एक अंतरराष्ट्रीय पुस्तिका l
* वी •भी •वी•। फ्रिसेन (19 15) द्वारा उद्धृत प्रपत्र है,
जो रूपों का मूल रूप से एक विशेषण, प्रोटो-जर्मनिक
* स्वेनीज, जिसका अर्थ है “समान” के रूप में माना जाता है।
तो गॉथिक का स्वरूप
*स्वियन और एच में सुएहंस में एक एपेंथेन्सिस होता।
प्रोटो-नॉर्स प्रपत्र तब भी होगा,
* स्वेनीज, जो कि ऐतिहासिक रूप से साक्षांकित रूपों के रूप में भी होता।
द रनस्टोन डीआर 344 स्केन्डिनेविया में केवल नाम से जाना जाने वाला सबसे पहले जीवित उदाहरणों में से एक है (केवल रनस्टोन डॉ 216, बियोवुल्फ़ और शायद गेटिका पहले भी हैं)।
यह नाम एक परिसर का हिस्सा बन गया, जो पुराना पश्चिम नॉर्स में स्वविजोज़ (“सावेर लोगों”, पुरानी पूर्व नॉर्स स्वेद्यूउड और पुरानी अंग्रेज़ी में स्वेदियोड में था। यह परिसर स्थानीय स्थानों में चलाया जाता है I suiþiuþu (Runeston)
” श्वेयर लोक” स्वर्ग Sveriki लोक पुरानी पूर्व नॉर्स स्वीवेड में और पुरानी अंग्रेज़ी में स्वेदियोड।
यह परिसर स्थानीय स्थानों में सुपारी (रनस्टोन सो एफव 19 48; 28 9, एस्पा लूट, सोडरमैनलैंड) में एक रनिंग के रूप में दिखाई देता है। एक सुइइयुउ (रनस्टोन डीआर 344, सिमिस , स्कैनिया) और ओ सुओआइयू (रनस्टोन डीआर 216, टर्स्टेड, लॉलैंड)।
13 वीं सदी के डैनिश स्रोत स्क्रिप्लेट्स रीरम डाणिकारम में एक जगह का उल्लेख किया गया है जिसका नाम लिट्लए स्वेथुथ है, जो शायद स्टॉकहोम के निकट द्वीप स्वेर्गेज (स्वीडन) है।
जॉर्डस के गेटिका (6 वीं शताब्दी) में स्यूतिडी होना। एक ही जर्मन राष्ट्र के समान नामकरण वाले गॉथ थे, जिनके नाम * गूटों (सीएफ सुएहंस) ने फार्म गट-þudauda बनाया था।
संस्कृत भाषा में स्वर् स्वर्ग का वाचक है ।
स्वृ–विच् । १ स्वर्गे अमरः “यन्न दुःखेन संभिन्नं न च ग्रस्तमनन्तरम् ।
अभिलाषोपनीतञ्च तत्सुखं स्वः- पदास्पदम्” इत्युक्ते दुःखासंभिन्ने २ सुखसन्ताने ३ परलोके ४ आकाशे ५ शोभने च शब्दच० ।
दुःखासंभिन्नत्वं च स्वावच्छेदकशरीरानवच्छिन्नत्वं तेन दुःखासमान- कालीने सुखे नातिव्याप्तिः ।
स्वर्गः, पुं, (स्वरिति गीयते इति । मै + कः । यद्वा, सुष्टु अर्ज्यते इति । अर्ज अर्जने + घञ् । शङ्कादित्वात् कुत्वम् ।) देवतानामालयः । तत्- पर्य्यायः । स्वः २ नाकः ३ त्रिदिवः ४ त्रिदशा- अयः ५ सुरलोकः ६ द्योः ७ द्यौ ८ त्रिपि-ष्टपम् ९ । इत्यमरः । १ । १ । ६ ॥
शब्दसागरः
स्वर्ग m. (-र्गः) Heaven, INDRA’S
एक दूसरा यौगिक स्वेवीरिकी था, या पुरानी अंग्रेज़ी में स्वेरिस, जिसका अर्थ है “सूयनेस के दायरे” स्विडिश में स्वीडिश के लिए यह अब भी औपचारिक नाम है, स्वेवारिक और इसके वर्तमान नाम स्वेरेगे की उत्पत्ति “के” के साथ पुराने रूप “स्वेरिके” में बदलकर “ग” में बदल गई।
गांला उप्साला यह सुर( स्वीअर) जनजाति का मुख्य धार्मिक और राजनीतिक केंद्र था।
उनका प्राथमिक आवास पूर्वी स्वीडन में था।
उनके प्रदेशों में बहुत जल्दी में वेस्टरमेनलैंड, सोडरमैनलैंड और नारके के प्रांतों में शामिल किया गया था, ।
जो कि मैलारेन घाटी में था, जो कि द्वीपों की एक बड़ी संख्या के साथ एक खाड़ी का गठन किया था।
यह क्षेत्र स्कैंडिनेविया के सबसे उपजाऊ और घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है।
उनके इन प्रदेशों को स्वीवेनैंड स्वर्ग Sveriki कहा जाता था – “स्वीडन-भूमि” (“द वॉयज ऑफ़ ओथरेयर” में इतिहास के सात पुस्तकों में: स्वोलैंड),
स्यूथियोड – “स्वीडन-लोग” (बियोवुल्फ़: स्वेदियोड [इसलिए स्वीडन]), एसवीइवेल्दी या स्वेराइक – “स्वीडन-क्षेत्र” (बियोवुल्फ़: स्विरोइस)। गॉटलैंड में गीता के साथ राजनीतिक एकीकरण, एक प्रक्रिया जो 13 वीं सदी तक पूरी नहीं हुई थी, कुछ समकालीन इतिहासकारों द्वारा स्वीडिश साम्राज्य के जन्म के रूप में माना जाता है ।
हालांकि स्वीडिश साम्राज्य उनके नाम पर स्वीडिश में स्वीडिश में स्वेरिगे, सेवेआ राईक – सियोनस के राज्य अर्थात्
गम्ला उप्साला में एसिस्टर पंथ केंद्र, स्वीडन का धार्मिक केंद्र था और जहां स्वीडिश राजा ने बलिदान (ब्लाकों) के दौरान एक पुजारी के रूप में सेवा की थी। उपसला भी उप्साला öd का केंद्र था, जो शाही संपदा का नेटवर्क था जो 13 वीं शताब्दी तक स्वीडिश राजा और उनकी अदालत को वित्तपोषित करता था।
कुछ विवाद चाहे सूओनेस के मूल डोमेन वास्तव में अपसला में थे, अपप्लैंड का गढ़, या यदि शब्द सामान्यतः स्वीवलैंड में सभी जनजातियों के लिए इस्तेमाल किया गया था, उसी प्रकार पुराने नॉर्वे के अलग-अलग प्रांतों को सामूहिक रूप से नॉर्मान्नी के रूप में संदर्भित किया गया था।
इतिहास ———-
इस जनजाति का इतिहास समय की झींसी पड़ जाती है। नॉर्स पौराणिक कथाओं और जर्मनिक किंवदंती के अलावा, केवल कुछ स्रोत उनका वर्णन करते हैं और इसमें बहुत कम जानकारी है
रोमनों
हेड्रियन के तहत रोमन साम्राज्य (117-38 का शासन किया), केंद्रीय स्वीडन के रहने वाले सूओनेस जर्मनिक जनजाति का स्थान दिखा रहा है
स्वर्ग कहाँ है ? Where is Heaven ( Swarg)?
गाइस कॉर्नेलियस टैसिटस
1 सदी के ए से दो स्रोत हैं जो सूइनेस की बात करते हुए उद्धृत करते हैं। सबसे पहले एक प्लिनी द एल्डर ने कहा था कि रोमनों ने सींबिक प्रायद्वीप (जटलैंड) को गोल कर दिया था, जहां कादेशीय खाड़ी (कैटेगाट?) था।
इस खाड़ी में कई बड़े द्वीप थे, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध स्कैतिनाविया (स्कैंडिनेविया) था।
उन्होंने कहा कि द्वीप का आकार अज्ञात था, लेकिन इसके एक भाग में 500 गांवों में हिल्लेवियनुम नम्र नामक जनजाति का नाम था, और वे अपने देश को अपनी ही दुनिया का मानते थे।
क्या इस पाठ के टिप्पणीकारों पर हमला है कि यह बड़ा जनजाति भावी पीढ़ी के लिए अज्ञात है, जब तक कि यह एक साधारण गलत वर्तनी या Illa Svionum gente के misreading नहीं था। यह समझ में आता है, क्योंकि एक बड़ी स्कैंडिनेवियाई जनजाति का नाम सूइनेस रोमनों के लिए जाना जाता था।
टैसिटस जर्मनिया 44, 45 में 98 ईस्वी में लिखा है कि Suiones जहाजों कि दोनों सिरों में एक माथा था) के साथ एक शक्तिशाली जनजाति (प्रतिष्ठित अपने हथियार और पुरुषों के लिए है, लेकिन उनके शक्तिशाली बेड़े के लिए न केवल) थे। उन्होंने आगे कहा कि सूयनेस धन से बहुत प्रभावित थे, और राजा इस प्रकार पूर्ण था। इसके अलावा, सूओनेस ने आमतौर पर हथियार नहीं उठाए थे, और एक गुलाम द्वारा हथियारों की रक्षा की गई थी।
टैटिटस के सूएनेस के बारे में उल्लेख के बाद, स्रोत 6 वीं शताब्दी तक स्कैनडिनेविया अभी भी पूर्व-ऐतिहासिक समय में थे, उनके बारे में उनके बारे में चुप हैं कुछ इतिहासकारों ने कहा है कि यह दावा करना संभव नहीं है कि एक सतत स्वीडिश जातीयता टेसिटस के सूइनेस में वापस आती है।
इस दृष्टिकोण के अनुसार इतिहास के विभिन्न चरणों के दौरान एक जातीय नाम और जातीय प्रवचन के दिग्भ्रमित रूप से काफी भिन्नता है।
जोर्डेन्स——
कल्पद्रुमः
स्वम्, पुं, क्ली, (स्वन शब्दे + अन्येभ्योपीति डः ।) धनम् । इत्यमरः । ३ । ३ । २१० ॥ (यथा, मनुः । ८ । ४१७ । “विस्रब्धं ब्राह्मणः शूद्रात् द्रव्योपादनमाचरेत् । नहि तस्यास्ति किञ्चित् स्वं भर्त्तृहार्य्यधनो हि सः ॥”
स्वम्, त्रि, आत्मीयम् । इत्यमरः । ३ । २१० ॥ (यथा, कथासरित्सागरे । २६ । १०५ । “मया त्वद्य प्रवेष्टव्या स्वा तनुश्च पुरी च सा ॥”)
स्वः, पुं, ज्ञातिः (यथा, मनुः । ५ । १०४ । “न विप्रं स्वेषु तिष्ठत्सु मृतं शूद्रेण नाययेत् । अस्वर्ग्या ह्याहुतिः सा स्यात् शूद्रसंस्पर्श- दूषिता ॥”) आत्मा । इत्यमरः । ३ । ३ । २१० ॥ (यथा, रघुः । २ । ५५ । “सेयं स्वदेहार्पणनिष्क्रयेण न्याय्या मय मोचयितुं भवत्तः ॥” विष्णुः । इति महाभारतम् । १३ । १४९ । ११७ ॥)
अमरकोशःस्व पुं। सगोत्रः समानार्थक:सगोत्र,बान्धव,ज्ञाति,बन्धु,स्व,स्वजन,दायाद- 2।6।34।2।5
समानोदर्यसोदर्यसगर्भ्यसहजाः समाः। सगोत्रबान्धवज्ञातिबन्धुस्वस्वजनाः समाः॥
पदार्थ-विभागः : समूहः, द्रव्यम्, पृथ्वी, चलसजीवः, मनुष्यः
स्व पुल्लिंग
आत्मा -समानार्थक:क्षेत्रज्ञ,आत्मन्,पुरुष,भाव,स्व
3।3।212।1।1
स्वो ज्ञातावात्मनि स्वं त्रिष्वात्मीये स्वोऽस्त्रियां धने। स्त्रीकटीवस्त्रबन्धेऽपि नीवी परिपणेऽपि च॥
: परमात्मा, अन्तरात्मा
पदार्थ-विभागः : , द्रव्यम्, आत्मा
स्व पुं-नपुं।
धनम्- समानार्थक:पण,स्व,वसु
3।3।212।1।1
स्वो ज्ञातावात्मनि स्वं त्रिष्वात्मीये स्वोऽस्त्रियां धने। स्त्रीकटीवस्त्रबन्धेऽपि नीवी परिपणेऽपि च॥
पदार्थ-विभागः : धनम्
स्व वि।
आत्मीयम्
समानार्थक:निज,अन्तर,स्व
3।3।212।1।1
स्वो ज्ञातावात्मनि स्वं त्रिष्वात्मीये स्वोऽस्त्रियां धने। स्त्रीकटीवस्त्रबन्धेऽपि नीवी परिपणेऽपि च॥
पदार्थ-विभागः : , द्रव्यम्
वाचस्पत्यम्
”’स्व”’¦ न॰ स्यन–ड।
१ धने अमरः।
२ आत्मनि
३ ज्ञातौ च पु॰अमरः।
४ आत्मीये त्रि॰। आत्मनि आत्मोये चार्थेऽस्यसर्वनामता।
शब्दसागरः
स्व¦ Pron. mfn. (-स्वः-स्वा-स्वं) Own. Subst. m. (-स्वः)
1. A kinsman.
2. The soul.
3. Wealth.
4. Self-identity, individuality. mn. (-स्वः-स्वं)
1. Wealth, property.
2. (In algebra,) Plus, or affirmative quantity. f. (-स्वा) Pron. Adj.
1. Belonging to oneself.
2. Of one’s own tribe or family.
3. Natural, original. E. स्वन् to sound, aff. ड; or वू to send or order, व aff.
Apte
स्व [sva], pron. a.
One’s own, belonging to oneself, often serving as a reflexive pronoun; स्वनियोगमशून्यं कुरु Ś.2; प्रजाः प्रजाः स्वा इव तन्त्रयित्वा 5.5; oft. in comp. in this sense; स्वपुत्र, स्वकलत्र, स्वद्रव्य.
Innate, natural, inherent, peculiar, inborn; सूर्यापाये न खलु कमलं पुष्यति स्वामभिख्याम् Me.82; Ś.1.19; स तस्य स्वो भावः प्रकृतिनियतत्वादकृतकः U. 6.14.
Belonging to one’s own caste or tribe; शूद्रैव भार्या शूद्रस्य सा च स्वा च विशः स्मृते Ms.3.13;5.14.
स्वः One’s own self.
स्व n. (in alg. ) plus or the affirmative quantity W. [ cf. Gk. ? ; Lat. se , sovos , suus ; Goth. sik ; Germ. sich etc. ](N.B. in the following comp. -o own stands for one’s own).
स्व Nom. P. स्वति( pf. स्वाम्-आस)= स्व इवा-चरति, he acts like himself or his kindred Vop. xxi , 7.
Purana index
–the third loka; Sva was uttered and divaloka came of; where Gandharvas, Apsaras, यक्षस्, Guhyakas, and नागस् live; intervening between सूर्य and Dhruva. Br. II. १९. १५५; २१. २१; IV. 2. २६-7; वा. १०१. १७-41.
Vedic Rituals Hindi
स्व पु.
(यजमान का) अपना भाई, का.श्रौ.सू. 15.5.28।
आंद्रेयस -थिसली में नदी-देवता पेनियस का पुत्र था, जिनसे बोईओतिया में ओर्कोमेनोस के बारे में उस देश को आंद्रेईस कहा जाता था । एक अन्य परिच्छेद में पोसानियास एंड्रस की बात करता है (हालांकि, यह अनिश्चित है कि क्या उसका मतलब वही आदमी है जो पूर्व के रूप में है) उस व्यक्ति के रूप में जिसने पहले एंड्रोस द्वीप का उपनिवेश किया था । डियोडोरस सिकुलस के अनुसार , आंद्रेस रदामंथिस के जनरलों में से एक थे , जिनसे उन्हें बाद में एक द्वीप के रूप में एंड्रोस कहा जाता था। बीजान्टियम के स्टेफनस , कॉनन और. ओविड इसे पहले कॉलोनाइज़र एंड्रस कहते हैं न कि आंद्रेस।
आंद्रेयस को आम तौर पर एक याक की सवारी करते हुए चित्रित किया जाता है।
और कभी-कभी महिलाओं को अपने कंधे पर ले जाने के लिए अपने बैग में महिलाओं को इकट्ठा करने के लिए प्रतिष्ठित किया जाता है।
राधामंथिस, मिनोस और एआकोस (एकस) मृतकों के न्यायाधीश थे।
ये हैड्स के तीन देवता मंत्री थे। वे मूल रूप से नश्वर पुरुष थे, भगवान ज़्यूस के पुत्र, जिन्हें पृथ्वी पर कानून और व्यवस्था स्थापित करने के लिए पुरस्कार के रूप में मृत्यु में अपना स्थान दिया गया था।
व्यक्तिगत रूप से, आइकोस हेड्स की चाबियों का संरक्षक था और यूरोप के पुरुषों का न्यायाधीश, रदामंथिस एलिसन (एलीसियम) का स्वामी और एशिया के पुरुषों का न्यायाधीश था, और मिनोस तीसरे और अंतिम मत का न्यायाधीश था। कुछ ट्रिप्टोलेमोस के अनुसार चौथे न्यायाधीश थे जिन्होंने रहस्यों की शुरूआत की आत्माओं की अध्यक्षता की थी।
आइकोस नाम ग्रीक शब्द ऐआक्टोस और एयाज़ो , "रोना" और "विलाप" से लिया गया था। अन्य नामों की व्युत्पत्ति अस्पष्ट है।
तीन न्यायाधीशों के नश्वर जीवन को इस पृष्ठ पर विस्तृत नहीं किया गया है, केवल बाद के जीवन में उनकी भूमिका।
न्यायाधीशों का परिवार
एएकस (एआकोस) के माता-पिता
ज़ीउस और आइजीना (हेसियोड कैटलॉग फ़्रैग 53, पिंडर इस्थमियन 8, पिंडर नेमीन 7, कोरिन्ना फ़्रैग 654, बैकिलाइड्स फ़्रैग 9, अपोलोडोरस 3.156, पोसानियास 2.29.2, डियोडोरस सिकुलस 4.72.1, एंटोनिनस लिबरालिस 38, हाइगिनस फेबुला 52, ओविड मेटामोर्फोसेस 13.25 , नॉनस डायोनिसियाका 13.201)
मिनोस और राधामंथिस के माता-पिता
ज़ीउस और यूरोपा (हेसियोड कैटलॉग फ्रैग 19, एशिलस फ्रैग 50 और विभिन्न अन्य स्रोत)
विश्वकोश
राधामनतस् ज़्यूस और यूरोपा का एक बेटा, और क्रेते के राजा मिनोस का भाई (होमर। इलियड xiv। 322)
या, दूसरों के अनुसार, हेफेस्टस का एक बेटा (पॉज़। viii। 53। § 2)। अपने भाई के डर से वह बोओतिया में ओकलिया भाग गया, और वहाँ अल्कमेने से शादी कर ली। जीवन भर अपने न्याय के परिणामस्वरूप, वह अपनी मृत्यु के बाद, निचली दुनिया के न्यायाधीशों में से एक बन गया, और एलीसियम में अपना निवास बना लिया। (अपोलोड। iii. 1. § 2, ii. 4. § 11; होमर। ओडीसी। iv. 564, vii. 323; पिंड। ओल। ii। 137।)
AEACUS (Aiakos - वैदिर रूप -इक्ष्वाकु ), ज़ीउस( द्यौस) और एजिना का एक बेटा, नदी-देवता एसोपस की एक बेटी। वह ओनोन या ओएनोपिया के द्वीप में पैदा हुआ था, जहां एजिना को ज़्यूस द्वारा अपने माता-पिता के क्रोध से बचाने के लिए ले जाया गया था, और बाद में इस द्वीप को एजिना कहा जाता था।
(अपोलोद। iii. 12. § 6; हाइगिन. फैब. 52; पॉस. ii. 29. § 2; कॉम्प. नॉन. डायोनिस. vi. 212; ओव. मेट. vi. 113, vii. 472, और सी।) .
उनकी मृत्यु के बाद एआकस हेड्स में तीन न्यायाधीशों में से एक बन गया (Ov. Met. xiii. 25; Hor. Carm. ii. 13. 22), और प्लेटो के अनुसार ( Gorg. p. 523; Apolog. p. 41 की तुलना करें; इसोक्रेट ।5) विशेष रूप से यूरोपीय लोगों के रंगों के लिए। कला के कामों में उन्हें एक राजदंड और पाताल की चाबियों का प्रतिनिधित्व किया गया था। (अपोलोद। iii. 12. § 6; पिंड। इस्तम। viii। 47, और सी।)
स्रोत: ग्रीक और रोमन जीवनी और पौराणिक कथाओं का शब्दकोश।
शास्त्रीय साहित्य उद्धरण
मिनोस और राधामंथिस का पितृत्व
हेसियोड, महिलाओं के टुकड़े की सूची 19 (होमर के इलियड 12.292 पर विद्वानों से) (ट्रांस। एवलिन-व्हाइट) (ग्रीक महाकाव्य C8th या C7th BC):
"उसने [यूरोपा] [ज़ीउस द्वारा] गर्भ धारण किया और तीन बेटों, मिनोस, राधामंथिस सर्पेडोन और को जन्म दिया। ।"
हेसिओड, महिलाओं के टुकड़े की सूची 19A (ऑक्सिरहाइन्चस पपाइरी से):
"[यूरोपा] ने क्रोनोस (क्रोनस) [ज़ीउस] के सर्वशक्तिमान पुत्र, धनी पुरुषों के गौरवशाली नेताओं - मिनोस द शासक, और सिर्फ रदामंथिस और कुलीन सर्पेडोन के बेटे को जन्म दिया। निर्दोष और मजबूत।"
एशेकिलस, फ्रैगमेंट 50 यूरोपा (पेपाइरस से) (ट्रांस. स्माइथ) (ग्रीक त्रासदी C5वीं ई.पू.):
"ज़ीउस ने मेरे [यूरोपा] को मेरे वृद्ध पिता से चोरी करने में सफलता प्राप्त की।
प्रसव में तीन बार मैंने स्त्री जाति की पीड़ा को सहा। इन शक्तिशाली प्रत्यारोपणों में से सबसे पहले मैंने मिनोस को जन्म दिया था। दूसरा, मैंने राधामंथिस को जन्म दिया, वह जो मेरे पुत्रों में से मृत्यु से मुक्त है [अर्थात एलिसन (एलीसियम) में ले जाया गया]; फिर भी, हालांकि वह जीवित है, मेरी आंखें उसे देखती नहीं।"
मृतकों के न्यायाधीश
होमर, ओडिसी 11. 568 ff (ट्रांस। शेवरिंग) (ग्रीक महाकाव्य C8th BC):
"[ओडिसी अंडरवर्ल्ड की अपनी यात्रा का वर्णन करता है:] 'मैंने ज़्यूस के बेटे मिनोस को एक सुनहरा राजदंड पकड़े और मृतकों के बीच निर्णय सुनाते देखा। वह बैठ गया, और उसके चारों ओर अन्य लोग बैठे या हाइड्स के विशाल-द्वार वाले घर में खड़े हो गए, इस न्याय के स्वामी से कानून के कड़े वाक्यों की मांग की।'"
पिंडर, ओलंपियन ओड 2. 55 ff (ट्रांस। कॉनवे) (ग्रीक गीत C5th BC):
और सुनहरे फूल जलते हैं, कुछ जल पर पोषित होते हैं, अन्य शानदार वृक्षों पर भूमि पर; और उनके हाथों पर गुंथे हुए पुष्पांजलि और फूलों के मुकुट हैं, राधामंथिस के न्यायोचित फरमानों के तहत, जिनके पास महान पिता [क्रोनोस (क्रोनस)], रिया के पति, देवी के दाहिने हाथ में उनकी सीट है, जो सबसे ऊंचा सिंहासन रखती हैं। "
प्लेटो, गोर्गियास 523ए और 524बी एफएफ (ट्रांस लैम्ब) (ग्रीक दार्शनिक सी4थ बीसी):
"अब क्रोनोस (क्रोनस) के समय में मानव जाति के संबंध में एक कानून था, और यह आज भी देवताओं के बीच है, कि हर आदमी जिसने एक न्यायपूर्ण और पवित्र जीवन व्यतीत किया है, वह अपनी मृत्यु के बाद धन्य द्वीप ( नेसोई मकरोन ) के लिए प्रस्थान करता है), और बीमार को छोड़कर सभी सुखों में रहता है; लेकिन जो कोई भी अन्यायपूर्ण और दुष्टता से रहता है वह प्रतिशोध और तपस्या के कालकोठरी में जाता है, जिसे आप जानते हैं, वे टार्टारोस कहते हैं। इन लोगों में से क्रोनोस (क्रोनस) के समय में न्यायाधीश थे, और ज़्यूस के शासनकाल में अभी भी देर से - जीवित पुरुष उस दिन जीवित लोगों का न्याय करने के लिए जब प्रत्येक को अपनी अंतिम सांस लेनी थी; और इस प्रकार मामलों का निर्णय गलत तरीके से किया जा रहा था। इसलिए प्लूटन (प्लूटन) [हैड्स] और धन्य द्वीपों के ओवरसियर ज़्यूस के पास इस रिपोर्ट के साथ आए कि उन्होंने पुरुषों को या तो निवास के अयोग्य पाया। तब ज़्यूस ने कहा: 'नहीं,' उसने कहा, 'मैं इन कार्यवाही को रोक दूंगा। मामलों का अब वास्तव में बुरा फैसला किया जाता है और यह इसलिए है क्योंकि जिन पर मुकदमा चल रहा है, उनके कपड़ों में मुकदमा चलाया जाता है, क्योंकि उन्हें जीवित रखा जाता है। अब कई, 'उन्होंने कहा, 'जिनके पास दुष्ट आत्माएँ हैं, वे अच्छे शरीर और पूर्वजों और धन में लिपटे हुए हैं, और उनके फैसले पर कई गवाह इस बात की गवाही देते हैं कि उनका जीवन न्यायपूर्ण रहा है। अब, न्यायाधीश न केवल अपने साक्ष्य से चकित होते हैं, बल्कि उसी समय जब वे न्याय करने के लिए बैठते हैं, तो अपनी आत्मा को आँखों और कानों के पर्दे और पूरे शरीर में ढके हुए होते हैं। इस प्रकार ये सब उनके लिए एक बाधा हैं, उनकी खुद की आदतें जजों की तुलना में कम नहीं हैं। ठीक है, सबसे पहले,' उन्होंने कहा, 'हमें उनकी मृत्यु के पूर्वज्ञान पर रोक लगानी चाहिए; इसके लिए वे वर्तमान में जानते हैं। हालाँकि, उनमें इसे रोकने के लिए प्रोमेथियस को पहले ही शब्द दिया जा चुका है। इसके बाद उन्हें परखने से पहले उन सभी चीजों से मुक्त कर देना चाहिए; क्योंकि उन्हें अपना परीक्षण मृत खड़ा करना होगा। उनका न्यायी भी नंगा, मुर्दा होना चाहिए, अपनी मृत्यु के तुरंत बाद प्रत्येक की आत्मा को देखते हुए, अपने सभी रिश्तेदारों से वंचित और पृथ्वी पर उस बेहतरीन व्यूह को पीछे छोड़ दिया, ताकि न्याय न्यायपूर्ण हो सके। अब मैं ने यह सब तुम्हारे साम्हने जानकर, अपके पुत्रोंको न्यायी नियुक्त किया है; एशिया से दो, मिनोस और रदामंथिस, और एक यूरोप, आइकोस (एकस) से। जब उनका जीवन समाप्त हो जाएगा, तब वे सड़क के बंटवारे के समय घास के मैदान में न्याय करेंगे, जहां से दो मार्ग निकलते हैं, एक धन्य द्वीप को जाता है (नेसोई मकारोन ), और दूसरा टार्टारोस को। और जो एशिया से आएंगे, वे रदामंथिस को परखेंगे, और जो यूरोप से आएंगे, आइकोस; और मिनोस को मैं अंतिम निर्णय का विशेषाधिकार दूंगा, यदि अन्य दो को कोई संदेह हो; कि मानव जाति की इस यात्रा पर निर्णय सर्वोच्च रूप से न्यायपूर्ण हो सकता है। . .'
जब किसी मनुष्य की आत्मा को शरीर से अलग कर दिया जाता है, तो उसके सभी प्राकृतिक उपहार और उसके विभिन्न प्रयासों के परिणामस्वरूप उस आत्मा में जोड़े गए अनुभव उसमें प्रकट होते हैं। सो जब वे अपने न्यायी के साम्हने पहुंचे, अर्थात रदामंथी के साम्हने के आसिया, तो ये रदामंथी उसके साम्हने बैठ गए, और यह न जानते हुए, कि वह किस का है, एक एक के मन को जांचते हैं; नहीं, अक्सर जब वह महान राजा या किसी अन्य राजकुमार या शक्तिशाली को पकड़ लेता है, तो वह अपनी आत्मा की पूरी अस्वस्थता को महसूस करता है, जो चारों ओर संकट से घिरा हुआ है, और घावों का एक समूह है, चोट और अन्याय का काम; जहां प्रत्येक कार्य ने अपनी आत्मा पर अपनी गंध छोड़ी है, जहां सब झूठ और पाखंड के माध्यम से गड़बड़ा गया है, और कुछ भी सीधे पोषण के कारण नहीं है जो सत्य को नहीं जानता: या, एक निरंकुश पाठ्यक्रम के परिणाम के रूप में दुस्साहस, दुस्साहस और असंयम, वह आत्मा को असमानता और कुरूपता से भरा हुआ पाता है। यह देखकर वह उसे अपमान में सीधे हिरासत के स्थान पर भेज देता है, जहां उसके आने पर उचित कष्टों को सहना पड़ता है। और यह उचित है कि प्रत्येक व्यक्ति जो दूसरे के द्वारा उचित रूप से उस पर लगाए गए दंड के अधीन है, या तो उसे बेहतर बनाया जाए और इससे लाभ उठाया जाए, या बाकी लोगों के लिए एक उदाहरण के रूप में सेवा की जाए, ताकि अन्य लोग उसके द्वारा सहे जा रहे कष्टों को देखकर डर के मारे खुद में सुधार कर सकें। जिन लोगों को देवताओं और मनुष्यों से मिलने वाले दंड से लाभ होता है, वे वे हैं जिन्होंने उपचारात्मक अपराध किए हैं; लेकिन फिर भी यह दर्द की कड़वाहट के माध्यम से है कि वे यहाँ और हैड्स (नीदरलैंड) दोनों में अपना लाभ प्राप्त करते हैं; क्योंकि अन्य किसी रीति से अधर्म से छुटकारा नहीं हो सकता। परन्तु उन लोगों में से जिन्होंने घोर पाप किया है और ऐसे अपराधों के परिणामस्वरूप वे लाइलाज हो गए हैं, उनमें से बने उदाहरण हैं; अब उन्हें स्वयं लाभ नहीं होता है, क्योंकि वे असाध्य हैं, बल्कि अन्य लोगों को लाभ होता है जो उन्हें अपने अपराधों के लिए अब तक के सबसे बड़े, सबसे तीव्र और सबसे भयानक कष्टों से गुज़रते हुए देखते हैं, वास्तव में नरक की कालकोठरी में उदाहरणों के रूप में लटकाए जाते हैं, एक तमाशा और समय-समय पर आने वाले ऐसे गलत काम करने वालों के लिए एक सबक। . .
इसलिए, जैसा कि मैं कह रहा था, जब भी जज रदामंथिस को ऐसे व्यक्ति से निपटना होता है, तो वह उसके बारे में और कुछ नहीं जानता, न तो वह कौन है और न ही किस वंश का है, लेकिन केवल यह कि वह एक दुष्ट व्यक्ति है और यह मानने पर वह उसे दूर टार्टारोस भेज देता है, पहले उस पर यह दिखाने के लिए एक निशान लगाता है कि क्या वह इसे एक इलाज योग्य या लाइलाज मामला मानता है; और जब मनुष्य वहां पहुंचता है, तो जो उचित है वही सहता है। कभी-कभी, जब वह किसी अन्य आत्मा को देखता है जिसने सत्य के साथ एक पवित्र जीवन व्यतीत किया है, एक निजी व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति का।
वह प्रशंसा से अभिभूत हो जाता है और इसे आइल्स ऑफ द ब्लेस्ट ( नेसोई मकरोन ) में भेज देता है). और बिल्कुल वैसा ही आइकोस (आइकस) की प्रक्रिया है: इन दोनों में से प्रत्येक अपने हाथ में एक छड़ी रखता है क्योंकि वह निर्णय देता है; लेकिन मिनोस पर्यवेक्षक के रूप में बैठता है, जो सुनहरे राजदंड से प्रतिष्ठित होता है, जैसा कि होमर में ओडीसियस बताता है कि उसने उसे कैसे देखा - 'एक सुनहरा राजदंड पकड़े हुए, मृतकों के लिए कयामत बोल रहा है।'
अब मेरे हिस्से के लिए, कल्लिक्ल्स (कैलिकल्स), मैं इन खातों से आश्वस्त हूं, और मैं विचार करता हूं कि मैं अपने जज को कैसे दिखा सकता हूं कि मेरी आत्मा सबसे अच्छे स्वास्थ्य में है। . . जब आप अपने जज [आइकोस] के सामने आइगिना (एजीना) के बेटे के पास जाते हैं, और वह आपको पकड़ता है और आपको घसीटता है, तो आप चौंकेंगे और चक्कर महसूस करेंगे जैसे मैं यहाँ करता हूँ, और कोई शायद आपको दे देगा, हाँ , कान पर एक अपमानजनक बक्सा, और आपके साथ हर तरह का दुर्व्यवहार करेगा। हालाँकि, आप शायद इसे एक बूढ़ी पत्नी की कहानी मानते हैं और इसे तुच्छ समझते हैं।"
प्लेटो, फेडो 107सी एफएफ:
"यह कहा जाता है कि मृत्यु के बाद, प्रत्येक व्यक्ति की टटलरी जीनियस (डेमन ), जिसे उसे जीवन में आवंटित किया गया था, उसे उस स्थान पर ले जाता है जहां मृत एक साथ इकट्ठा होते हैं [यानी डायमोनगाइड प्लेटो के हेमीज़ गाइड ऑफ़ द डेड के समकक्ष है]; फिर उनका न्याय किया जाता है [यानी मृतकों के न्यायाधीशों द्वारा] और दूसरी दुनिया में उस मार्गदर्शक के साथ प्रस्थान करते हैं जिसका काम इस दुनिया से आने वालों का संचालन करना है; और जब वे अपना हक प्राप्त कर लेते हैं और नियत समय तक रह जाते हैं, तो एक अन्य मार्गदर्शक उन्हें कई लंबे समय के बाद वापस लाता है [अर्थात वे दूसरे शरीर में पुनर्जन्म लेते हैं]। और यात्रा वैसी नहीं है जैसा टेलीफॉस ऐस्काइलोस (एशेकिलस) के नाटक में कहता है; क्योंकि वह कहते हैं कि एक सरल मार्ग हाइड्स (निचली दुनिया) की ओर जाता है, लेकिन मुझे लगता है कि रास्ता न तो सरल है और न ही एकल, क्योंकि अगर ऐसा होता, तो गाइड की कोई आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि कोई भी किसी भी जगह का रास्ता नहीं छोड़ सकता था केवल एक सड़क थी। लेकिन वास्तव में मार्ग के अनेक कांटे और अनेक घुमावदार प्रतीत होते हैं; यह मैं पृथ्वी पर [अर्थात् रहस्य पंथों] पर प्रचलित संस्कारों और समारोहों से अनुमान लगाता हूं। अब अर्दली और ज्ञानी आत्मा अपने पथ-प्रदर्शक का अनुसरण करती है और उसकी परिस्थितियों को समझती है; लेकिन आत्मा जो शरीर की इच्छा रखती है, जैसा कि मैंने पहले कहा, इसके बारे में और दृश्य दुनिया में एक लंबे समय के लिए [यानी एक भूतिया भूत के रूप में], और बहुत प्रतिरोध और कई कष्टों के बाद हिंसा और साथ दूर ले जाया जाता है इसकी नियुक्त प्रतिभा द्वारा कठिनाई (डायमन )। और जब यह उस स्थान पर पहुंचती है जहां अन्य आत्माएं होती हैं, तो वह आत्मा जो अशुद्ध है और गलत काम करती है, दुष्ट हत्याएं या अन्य कर्मों के समान और संबंधित आत्माओं के कार्यों को करने से बचा जाता है और सभी से दूर हो जाता है, और कोई भी नहीं इसके साथी या इसके मार्गदर्शक बनने के लिए तैयार है, लेकिन यह कुछ निश्चित समय के दौरान, पूरी तरह से घबराहट में अकेला भटकता है, जिसके बाद इसे अपने उपयुक्त आवास [यानी उदास हैड्स] में ले जाया जाता है। लेकिन आत्मा जो पवित्रता और धार्मिकता में जीवन से गुजरी है, वह देवताओं को साथी और मार्गदर्शक के रूप में पाती है, और अपने उचित आवास [यानी एलीसियम] में रहने के लिए जाती है।
SOURCES
GREEK
- Homer, The Odyssey - Greek Epic C8th B.C.
- Hesiod, Catalogues of Women Fragments - Greek Epic C8th - 7th B.C.
- Pindar, Odes - Greek Lyric C5th B.C.
- Aeschylus, Fragments - Greek Tragedy C5th B.C.
- Aristophanes, Frogs - Greek Comedy C5th - 4th B.C.
- Plato, Apology - Greek Philosophy C4th B.C.
- Plato, Gorgias - Greek Philosophy C4th B.C.
- Plato, Phaedo - Greek Philosophy C4th B.C.
- Apollodorus, The Library - Greek Mythography C2nd A.D.
- Greek Papyri III Poseidippus, Fragments - Greek Elegiac C2nd B.C.
- Diodorus Siculus, The Library of History - Greek History C1st B.C.
- Pausanias, Description of Greece - Greek Travelogue C2nd A.D.
- Plutarch, Lives - Greek Historian C1st - 2nd A.D.
- Philostratus, Life of Apollonius of Tyana - Greek Biography C2nd A.D.
- Nonnus, Dionysiaca - Greek Epic C5th A.D.
ROMAN
- Ovid, Metamorphoses - Latin Epic C1st B.C. - C1st A.D.
- Virgil, Aeneid - Latin Epic C1st B.C.
- Propertius, Elegies - Latin Elegy C1st B.C.
- Horace, Odes - Latin Poetry C1st A.D.
- Seneca, Hercules Furens - Latin Tragedy C1st A.D.
- Seneca, Troades - Latin Tragedy C1st A.D.
- Statius, Thebaid - Latin Epic C1st A.D.
- Statius, Silvae - Latin Poetry C1st A.D.
BIBLIOGRAPHY
इन्द्र की सत्यता
Andreas – son of the river god peneus and founder of orchomenos in Boeotia—–
——-
Andreas Ancient Greek – German was the son of river god peneus in Thessaly
from whom the district About orchomenos in Boeotia was called Andreas in Another passage pousanias speaks of Andreas( it is , however uncertain whether he means the same man as the former) as The person who colonized the island of Andros ….
अर्थात् इन्द्र थेसिली में एक नदी देव पेनियस का पुत्र था
जिससे एण्ड्रस नामक द्वीप नामित हुआ ..
_____________________________
“डायोडॉरस के अनुसार ..”
ग्रीक पुरातन कथाओं के अनुसार एण्ड्रीज (Andreas)
रॉधामेण्टिस (Rhadamanthys) से सम्बद्ध था रॉधमेण्टिस ज्यूस तथा यूरोपा का पुत्र और मिनॉस (मनु) का भाई था ।
ग्रीक पुरातन कथाओं में किन्हीं विद्वानों के अनुसार एनियस (Anius) का पुत्र एण्ड्रस( Andrus)
के नाम से एण्ड्रीज प्रायद्वीप का नामकरण हुआ ..जो अपॉलो का पुजारी था ।
परन्तु पूर्व कथन सत्य है ।
ग्रीक भाषा में इन्द्र शब्द का अर्थ
शक्ति-शाली पुरुष है ।
जिसकी व्युत्पत्ति- ग्रीक भाषा के ए-नर (Aner)
शब्द से हुई है ।
जिससे एनर्जी (energy) शब्द विकसित हुआ है।
संस्कृत भाषा में अन् श्वसने प्राणेषु च
के रूप में धातु विद्यमान है ।जिससे प्राण तथा अणु जैसे शब्दों का विकास हुआ…
कालान्तरण में संस्कृत भाषा में नर शब्द भी इसी रूप से व्युत्पन्न हुआ….
वेल्स भाषा में भी नर व्यक्ति का वाचक है ।
फ़ारसी मे नर शब्द तो है ।
परन्तु इन्द्र शब्द नहीं है ।
वेदों में इन्द्र को वृत्र का शत्रु बताया है ।
जिसे केल्टिक माइथॉलॉजी मे ए-बरटा(Abarta)कहा है । जो दनु और त्वष्टा परिवार का सदस्य है इन्द्रस् देवों का नायक अथवा वीर यौद्धा था । भारतीय पुरातन कथाओं में त्वष्टा को इन्द्र का पिता बताया है ।
Abarta की कहानी की खोज करें और आयरिश किंवदंती से इस गूढ़ व्यक्ति से मिलें
द स्टोरी ऑफ़ एबार्टा एंड द परसूट ऑफ़ द गिला डेकेयर एंड हिज़ हॉर्स।
क्या आपने कभी सोचा है कि हमें यह नाम कहां से मिला? यह सवाल अक्सर हमसे पूछा जाता है क्योंकि यह एक असामान्य नाम है। गॉलवे में एक नदी है जिसे अबार्टघ कहा जाता है , और काउंटी वॉटरफ़ोर्ड में अबार्टैक के नाम से एक टाउनलैंड है , जिसे रेव कैनन पावर ' पीट या पुडल-एबाउंडिंग प्लेस' के रूप में अनुवादित करता है । यह आयरिश पुरातत्वविदों के लिए बहुत उपयुक्त है, लेकिन यह वह जगह नहीं है जहाँ से हमारा अबर्ता आया था। हमसे 2013 में आयरिश टाइम्स के फ्रैंक मैकनेली ने संपर्क किया था, जो हमारे नाम को लेकर उत्सुक थे। उसे पीडब्लू जॉयस द्वारा 'अबार्ता' नामक प्रथा का वर्णन मिला था' - 'प्रथा को अब्रता कहा जाता था, उन्होंने कहा, और यहां तक कि शब्द भी प्राचीन था। यह अब आयरिश में उपयोग नहीं किया गया था, लेकिन इसे पूर्व में "किसी काम के पूरा होने पर एक कार्यकर्ता द्वारा दिया गया आशीर्वाद" कहा जाता था। जैसे, यह "1,000 वर्ष से अधिक" पीछे चला गया। मेहनत पूरी होने का वरदान, और कीचड़ भरे पोखर? वास्तव में हमारे लिए सब बहुत उपयुक्त है, लेकिन हमने अपना अबर्ता एक अजीब पुरानी आयरिश कहानी में पाया।
Abarta, [या Abartach], एक गूढ़ आकृति है जो फ़िओन मैक कमहिल और फ़िएना को घेरने वाली कहानियों के फेनियन चक्र में दिखाई देती है। वह मुख्य रूप से द परसूट ऑफ़ द गिला डेकेयर एंड हिज़ हॉर्स कहानी में दिखाई देते हैं ।
कहानी बताती है कि कैसे अबर्ता फिन को अपनी चालाकी से प्रभावित करना चाहता था ताकि उसे फियाना की सदस्यता के लिए माना जा सके। वह फिन और फियाना तक आया और 'गिला डेकेयर' के रूप में सामने आया, जिसका अर्थ है 'आलसी नौकर', [पाठ में ऐसा प्रतीत होता है कि 'आलसी' भाग कुछ प्रति-सहज रूप से इसका मतलब यह नहीं है कि नौकर आलसी है एक, बल्कि यह कि उसका स्वामी वह है जो आलसी होने का जोखिम उठा सकता है क्योंकि गिला डेकार सारा काम करेगा]। ऐसा प्रतीत होता है कि एबार्टा ने फियाना को थोड़ा सनकी और खुशमिजाज पाया है, और वह नहीं जो उसने महान योद्धाओं के एक प्रसिद्ध बैंड से उम्मीद की थी।
अबर्ता को पता चला कि अगर उसके पास घोड़ा है तो उसे दोगुना भुगतान किया जाएगा, इसलिए उसने तुरंत अपने घोड़े को बुलाया। यह एक विशाल, खूंखार जानवर था, और एक बार जब इसे अपने लगाम से मुक्त किया गया तो इसने फियाना के सभी घोड़ों को बेरहमी से मार डाला। जैसा कि आप कल्पना कर सकते हैं, यह फियाना के बीच एक सीसे के गुब्बारे की तरह नीचे चला गया। हालाँकि, हालांकि वे नाराज थे, वे अबार्ता के घोड़े के आकार और उग्रता से थोड़े प्रभावित भी दिखाई देते हैं। फियाना में से एक उसकी पीठ पर चढ़ गया, हालांकि वह एक शक्तिशाली योद्धा था, वह घोड़े को हिला नहीं सका। फियाना का एक अन्य सदस्य मदद करने के लिए उसके पीछे कूद गया, फिर से घोड़ा अप्रभावित था और उसने हिलने से इनकार कर दिया। यह तब तक जारी रहा जब तक कि फियाना के कम से कम चौदह घोड़े की पीठ पर नहीं चढ़ गए। यह देखकर अबर्ता ने फिन और फियाना को सबक सिखाने का फैसला किया।
फिन और शेष फियाना ने पीछा करना शुरू कर दिया, क्योंकि अबर्टा ने आयरलैंड के बवंडर दौरे पर फियाना का नेतृत्व किया, मुंस्टर के ऊपरी इलाकों में सलिभ लुआचरा से, सुंदर कोरका धुइभने (डिंगल प्रायद्वीप) और समुद्र के उस पार दूसरी दुनिया तक।
काफी परेशानी के बाद, उन्होंने अंततः अबर्ता को पकड़ लिया और उसे अपने दौरे को समाप्त करने और अब कुछ थके हुए योद्धाओं को फियाना वापस करने के लिए मजबूर कर दिया। सजा में, उन्होंने अबर्ता को फिन को उसके अपने प्यारे लोगों में से चौदह दिए, और कहानी के एक संस्करण में अबर्ता को खुद अपने घोड़े की पूंछ पकड़कर उसी दौरे पर घसीटने के लिए मजबूर किया गया, जैसा कि नील के कैथरीन जैकमैन द्वारा ऊपर खूबसूरती से चित्रित किया गया है। कहीं अधिक प्रतिभाशाली बहन।
एक संसाधनपूर्ण चरित्र के रूप में, जिसने लोगों को जादुई स्थानों पर भ्रमण करने का आनंद लिया, अबर्ता हम जो करना चाहते थे, उसके लिए एक अच्छा मैच लग रहा था। कुछ जगहों पर उन्हें ' कर्मों का कर्ता ' भी कहा जाता है , हम निश्चित रूप से उनमें से कुछ को भी करने की कोशिश करना पसंद करते हैं - और इसलिए हमें लगा कि वह हमारी कंपनी को प्रेरित करने के लिए उतना ही अच्छा नाम होगा!
शम्बर को ऋग्वेद के द्वित्तीय मण्डल के सूक्त १४ / १९ में कोलितर कहा है पुराणों में इसे
दनु का पुत्र कहा है । जिसे इन्द्र मारता है । ऋग्वेद में इन्द्र पर आधारित २५० सूक्त हैं । यद्यपि कालान्तरण मे सुरों के नायक
को ही इन्द्र उपाधि प्राप्त हुई ...
अत: कालान्तरण में भी जब आर्य भू- मध्य रेखीय भारत भूमि में आये … जहाँ भरत अथवा वृत्र की अनुयायी व्रात्य ( वारत्र )नामक जन जाति पूर्वोत्तरीय स्थलों पर निवास कर रही थी …
जो भारत नाम का कारण बना …
इन से आर्यों को युद्ध करना पड़ा …
भारत में भी यूरोप से आगत आर्यों की सांस्कृतिक मान्यताओं में भी स्वर्ग उत्तर में है ।
और नरक दक्षिण में है । स्मृति रूप में अवशिष्ट रहीं।और विशेष तथ्य यहाँ यह है कि नरक के स्वामी यम हैं। यह मान्यता भी यहीं से मिथकीय रूप में स्थापित हुई ।नॉर्स माइथॉलॉजी प्रॉज-एड्डा में नारके का अधिपति यमीर को बताया गया है ।
यमीर यम ही है ।हिम शब्द संस्कृत में यहीं से विकसित है। यूरोपीय लैटिन आदि भाषाओं में हीम( Heim)
शब्द हिम के लिए यथावत है।
नॉर्स माइथॉलॉजी प्रॉज-एड्डा में यमीर (Ymir)
Ymir is a primeval being , who was born from venom that dripped from the icy – river ……
earth from his flesh and from his blood the ocean , from his bones the hills from his hair the trees from his brains the clouds from his skull the heavens from his eyebrows middle realm in which mankind lives”_
___________________________________
(Norse mythology prose adda)
अर्थात् यमीर ही सृष्टि का प्रारम्भिक रूप है।
यह हिम नद से उत्पन्न , नदी और समुद्र का अधिपति हो गया ।
पृथ्वी इसके माँस से उत्पन्न हुई ,इसके रक्त से समुद्र और इसकी अस्थियाँ पर्वत रूप में परिवर्तित हो गयीं इसके वाल वृक्ष रूप में परिवर्तित हो गये ,मस्तिष्क से बादल और कपाल से स्वर्ग और भ्रुकुटियों से मध्य भाग जहाँ मनुष्य रहने लगा उत्पन्न हुए ऐसी ही धारणाऐं कनान देश की संस्कृति में थी
वहाँ यम को यम रूप में ही ..नदी और समुद्र का अधिपति माना गया है। जो हिब्रू परम्पराओं में या: वे अथवा यहोवा हो गया
उत्तरी ध्रुव प्रदेशों में …
जब शीत का प्रभाव अधिक हुआ तब नीचे दक्षिण की ओर ये लोग आये जहाँ आज बाल्टिक सागर है,
यहाँ भी धूमिल स्मृति उनके ज़ेहन ( ज्ञान ) में विद्यमान् थी ।
बाल्टिक सागर के तट वर्ती प्रदेशों पर दीर्घ काल तक क्रीडाएें करते रहे .पश्चिमी बाल्टिक सागर के तटों पर इन्हीं आर्यों अर्थात् देव संस्कृति के अनुयायीयों ने मध्य जर्मन स्केण्डिनेवीया द्वीपों से उतर कर बोल्गा नदी के द्वारा दक्षिणी रूस .त्रिपोल्जे आदि स्थानों पर प्रवास किया आर्यों के प्रवास का सीमा क्षेत्र बहुत विस्तृत था ।
आर्यों की बौद्धिक सम्पदा यहाँ आकर विस्तृत हो गयी थी जिसे जर्मन आर्यों ने मेनुस् Mannus कहा आर्यों के पूर्व – पिता के रूप में प्रतिष्ठित थे
मेन्नुस mannus थौथा (त्वष्टा)— (Thautha ) की प्रथम सन्तान थे !
मनु के विषय में रोमन लेखक टेकिटस
(tacitus) के अनुसार—-
Tacitus wrote that mannus was the son of tuisto and
The progenitor of the three germanic tribes —ingeavones–Herminones and istvaeones …
.https://dbpedia.org/page/Mannus
______________
in ancient lays, their only type of historical tradition they celebrate tuisto , a god brought forth from the earth they attribute to him a son mannus, the source and founder of their people and to mannus three sons from whose names those nearest the ocean are called ingva eones , those in the middle Herminones, and the rest istvaeones some people inasmuch as anti quality gives free rein to speculation , maintain that there were more tribal designations-
Marzi, Gambrivii, suebi and vandilii-__and that those names are genuine and Ancient Germania
____________________________________________
Chapter 2
ग्रीक पुरातन कथाओं में मनु को मिनॉस (Minos)कहा गया है ।
जो ज्यूस तथा यूरोपा का पुत्र तथा क्रीट का प्रथम राजा था
जर्मन जाति का मूल विशेषण डच (Dutch)था ।
जो त्वष्टा नामक इण्डो- जर्मनिक देव पर आधारित है ।
टेकिटिस लिखता है , कि
Tuisto ( or tuisto) is the divine encestor of German peoples
ट्वष्टो tuisto—tuisto— शब्द की व्युत्पत्ति- भी जर्मन भाषाओं में
*Tvai—-” two and derivative *tvis –“twice ” double” thus giving tuisto—
The Core meaning — double
अर्थात् द्वन्द्व — अंगेजी में कालान्तरण में एक अर्थ
द्वन्द्व- युद्ध (dispute / Conflict )भी होगया
यम और त्वष्टा दौनों शब्दों का मूलत: एक समान अर्थ था
इण्डो-जर्मनिक संस्कृतियों में ..
मिश्र की पुरातन कथाओं में त्वष्टा को (Thoth) अथवा tehoti ,Djeheuty कहा गया
जो ज्ञान और बुद्धि का अधिपति देव था ।
____________________________________
आर्यों में यहाँ परस्पर सांस्कृतिक भेद भी उत्पन्न हुए विशेषतः जर्मन आर्यों तथा फ्राँस के मूल निवासी गॉल ( Goal ) के प्रति जो पश्चिमी यूरोप में आवासित ड्रूयूडों की ही एक शाखा थी अथवा ड्रयूड जिनके पुरोगित थे l
जो देवता (सुर ) जर्मनिक जन-जातियाँ के थे लगभग वही देवता ड्रयूड पुरोहितों के भी थे ।
यही ड्रयूड( druid ) भारत में द्रविड कहलाए।
इन्हीं की उपशाखाऐं वेल्स wels केल्ट celt तथा ब्रिटॉन Briton के रूप थीं जिनका तादात्म्य (एकरूपता ) भारतीय जन जाति क्रमशः भिल्लस् ( भील ) किरात तथा भरतों से प्रस्तावित है ये भरत ही व्रात्य ( वृत्र के अनुयायी ) कहलाए आयरिश अथवा केल्टिक संस्कृति में वृत्र का रूप अवर्टा ( Abarta ) के रूप में है यह एक देव है जो थौथा thuatha(जिसे वेदों में त्वष्टा कहा है।और दि –दानन्न ( वैदिक रूप दनु ) की सन्तान है Abarta an lrish / celtic god amember of the thuatha त्वष्टाः and De- danann his name means = performer of feats अर्थात् एक कैल्टिक देव त्वष्टा और दनु परिवार का सदस्य वृत्र या Abarta जिसका अर्थ है कला या करतब दिखाने बाला देव यह अबर्टा ही ब्रिटेन के मूल निवासी ब्रिटों Briton का पूर्वज और देव था इन्हीं ब्रिटों की स्कोट लेण्ड (आयर लेण्ड ) में शुट्र— (shouter )नाम की एक शाखा थी , जो पारम्परिक रूप से वस्त्रों का निर्माण करती थी ।
वस्तुतःशुट्र फ्राँस के मूल निवासी गॉलों का ही वर्ग था , जिनका तादात्म्य भारत में शूद्रों से प्रस्तावित है , ये कोल( कोरी) और शूद्रों के रूप में है ।
जो मूलत: एक ही जन जाति के विशेषण हैंं।
एक तथ्य यहाँ ज्ञातव्य है कि प्रारम्भ में जर्मन आर्यों और गॉलों में केवल सांस्कृतिक भेद ही था जातीय भेद कदापि नहीं ।
क्योंकि आर्य शब्द का अर्थ यौद्धा अथवा वीर होता है ।
यूरोपीय लैटिन आदि भाषाओं में इसका यही अर्थ है । बाल्टिक सागर से दक्षिणी रूस के पॉलेण्ड त्रिपोल्जे आदि स्थानों पर बॉल्गा नदी के द्वारा कैस्पियन सागर होते हुए भारत ईरान आदि स्थानों पर इनका आगमन हुआ ।
आर्यों के ही कुछ क़बीले इसी समय हंगरी में दानव नदी के तट पर परस्पर सांस्कृतिक युद्धों में रत थे ।
भरत जन जाति यहाँ की पूर्व अधिवासी थी संस्कृत साहित्य में भरत का अर्थ जंगली या असभ्य किया है ।
और भारत देश के नाम करण कारण यही भरत जन जाति थी ।
आगत भारतीय प्रमाणतः जर्मन आर्यों की ही शाखा थे जैसे यूरोप में पाँचवीं सदी में जर्मन के ऐञ्जीलस कबीले के आर्यों ने ब्रिटिश के मूल निवासी ब्रिटों को परास्त कर ब्रिटेन को (एञ्जीलस) –लेण्ड अर्थात् इंग्लेण्ड कर दिया था
और ब्रिटिश नाम भी रहा जो पुरातन है ।
इसी प्रकार भारत नाम भी आगत आर्यों से पुरातन है
दुष्यन्त और शकुन्तला पुत्र भरत की कथा बाद में जोड़ दी गयी जैन साहित्य में एक भरत ऋषभ देव परम्परा में थे।
जिसके नाम से भारत शब्द बना।
keywords: स्वर्ग कहा है?, स्वर्ग और नरक में क्या अंतर है ? बताइए, स्वर्ग का मालिक कौन है,स्वर्ग में कौन जाता है,स्वर्ग की प्राप्ति कैसे होती है?
संदर्भ :
- स्वर्ग की खोज और देवों का रहस्य . ….यथार्थ के धरा तल पर प्रतिष्ठित एक आधुनिक शोध है। http://vivkshablogspot.blogspot.com/2018/05/blog-post_12.html
- Ctesias https://en.wikipedia.org/wiki/Ctesias
- Mannus | German mythology | Britannica https://www.britannica.com/topic/Mannus
- Bharata chakravartin https://en.wikipedia.org/wiki/Bharata_chakravartin
- Provinces of Sweden https://en.wikipedia.org/wiki/Provinces_of_Sweden
- नरक निवारण चतुर्दशी- यदि जाना चाहते हैं स्वर्ग तो ऐसे करें शिवपूजन https://patrika.com/jabalpur-news/if-you-want-to-go-to-heaven-do-shivpugn-on-26-january-1495094/
- Swanus – Urban Dictionary https://www.urbandictionary.com/define.php?term=Swanus
- सुरों का निवास स्थान स्वर्ग आज का स्वीडन ! एक शोध श्रृंखला अन्वेषक:– यादव योगेश कुमार ‘रोहि’ https://shabd.in/post/63883/-4952086
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें