वास्तव में भारोपीय भाषा परिवार का लव. (Love) शब्द संस्कृत भाषा में (लुभः)अथवा (लोभः)लुभ--आकाङ्क्षायां भावे "घञ्" प्रत्यय) तथा लुब्ध(लुभ्-क्त प्रत्यय) का ही एक रूपान्तरण है और यह इस रूप में प्रस्तावित भी है।
रोम की सांस्कृतिक भाषा लैटिन में लिबेट (Libet) तथा लुबेट (Lubet) इन दो रूपो में संस्कृत का लोभ- लुब्ध शब्द ही प्रतिभासित है। जिसका संस्कृत में लुब्ध ( लुभ् + क्त )
भूतकालिक कर्मणि कृदन्त रूप से व्युत्पन्न होता है । संस्कृत भाषा में लुभः / लोभः का अभिधा मूलक अर्थ है। काम की तीव्रता अथवा वासना की उत्तेजना।
वस्तुतः लोभः में प्रत्यक्ष तो लाभ तो दिखाई देता है परन्तु परोक्षतः व्याज सहित हानि है
अंग्रेजी भाषा में यह शब्द Love लव शब्द के रूप और अर्थ में रूढ़ है।
तथा जर्मन भाषा में लीव (Lieve) है
ऐंग्लो -सैक्शन अथवा पुरानी अंग्रेजी में (Lufu) लूफु के रूप में है
यह तो सर्व विदित है कि यूरोपीय संस्कृति में वासना का उन्मुक्त ताण्डव है। जबकि भारतीय संस्कृति आध्यात्म मूलक है। जिसमें वासना की उन्मुक्त उदण्डता का कोई स्थान नहीं है। यद्यपि लोभ और प्रेम हैं तो एक ही परिवार के परन्तु जो भेद ज्योति और ज्वाला में चिन्तन और चिन्ता में प्रकाश और चमक में अथवा स्वच्छता और पवित्रता में सूक्ष्म रूप से है वही अन्तर -भेद प्रेम और लोभ में हो गया है । जब प्रेम निः स्वार्थ रूप से आत्म समर्पण का भाव है तब इसका नाम भक्ति है। परन्तु समर्पण में भी सूक्ष्म आत्मकल्याण का स्वार्थ है। यह सात्विक स्वार्थ है ।और यही प्रेम जब केवल अपनी तुष्टि के निमित्त ही किसी दूसरे के प्रति हो तब यह लोभ अथवा वासना नाम से जाना जाता है। अत: लव प्रेम शब्द का स्थान नहीं ले सकता ।
भूतकालिक कर्मणि कृदन्त रूप से व्युत्पन्न होता है । संस्कृत भाषा में लुभः / लोभः का अभिधा मूलक अर्थ है। काम की तीव्रता अथवा वासना की उत्तेजना।
वस्तुतः लोभः में प्रत्यक्ष तो लाभ तो दिखाई देता है परन्तु परोक्षतः व्याज सहित हानि है
अंग्रेजी भाषा में यह शब्द Love लव शब्द के रूप और अर्थ में रूढ़ है।
तथा जर्मन भाषा में लीव (Lieve) है
ऐंग्लो -सैक्शन अथवा पुरानी अंग्रेजी में (Lufu) लूफु के रूप में है
यह तो सर्व विदित है कि यूरोपीय संस्कृति में वासना का उन्मुक्त ताण्डव है। जबकि भारतीय संस्कृति आध्यात्म मूलक है। जिसमें वासना की उन्मुक्त उदण्डता का कोई स्थान नहीं है। यद्यपि लोभ और प्रेम हैं तो एक ही परिवार के परन्तु जो भेद ज्योति और ज्वाला में चिन्तन और चिन्ता में प्रकाश और चमक में अथवा स्वच्छता और पवित्रता में सूक्ष्म रूप से है वही अन्तर -भेद प्रेम और लोभ में हो गया है । जब प्रेम निः स्वार्थ रूप से आत्म समर्पण का भाव है तब इसका नाम भक्ति है। परन्तु समर्पण में भी सूक्ष्म आत्मकल्याण का स्वार्थ है। यह सात्विक स्वार्थ है ।और यही प्रेम जब केवल अपनी तुष्टि के निमित्त ही किसी दूसरे के प्रति हो तब यह लोभ अथवा वासना नाम से जाना जाता है। अत: लव प्रेम शब्द का स्थान नहीं ले सकता ।
- मूल भारोपीय शब्द -
"मूलशब्द"
*lewbʰ-
"व्युत्पन्न शब्द-
- *लुब-ये-ती ( तु-वर्तमान )
- *lowbʰ-éye-ti ( प्रेरक )
- *lubʰ-एह₁-(तु)-ती ( स्थिर )
- *lewbʰ-os
- *एल(ई)उब-एह₂
- *लब-ओम
- *लब-टू-एस
- प्रोटो-इंडो-ईरानी:
- प्रोटो-इंडो-आर्यन:
- संस्कृत: लुब्ध ( लुब्धा ) ( आगे के वंशजों के लिए देखें )
- प्रोटो-इंडो-आर्यन:
- प्रोटो-इंडो-ईरानी:
- अवर्गीकृत गठन:
जड़संपादन करना
*lewbʰ-
- काटने के लिए
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