सर एक मानद उपाधि है । सर (sir) पुरुषों के लिए अंग्रेजी में एक औपचारिक सम्मानजनक संबोधन है। जो उच्च मध्य युग में साइर (sire) से लिया गया है। दोनों ही शब्द पुराने फ्रांसीसी सीउर (Sieur)"- से निकले हैं, जिसका अर्थ होता है- (स्वामी)।
फ्रेंच बोलने वाले नॉर्मन्स लोगों द्वारा यह शब्द इग्लैंड लायी गया था, और जो अब केवल "(sire) के अर्थ के रूप में फ्रेंच में मौजूद हैं। सर का उपयोग शूरवीर शीर्षक वाले पुरुषों के लिए किया जाता है, अक्सर शिष्टता के निर्देशों के तहत भी इसका प्रयोग होता था।
इसके अतिरिक्त, बाद के आधुनिक काल से लेकर अब तक , सर का उपयोग श्रेष्ठ सामाजिक स्थिति तथा सैन्य श्रेणी के व्यक्ति को संबोधित करने के लिए एक सम्मानजनक सम्बोधन के रूप में किया जाता रहा है।
सर (Sir) सम्मानजनक शीर्षक सीनियर(Senior) शब्द से निकला है इसी सम्बन्धित; सिग्नॉर शब्द के साथ-साथ विकसित साइर, एक सामंती स्वामी को भी संदर्भित करता था।
दोनों ही शब्द वल्गर लैटिन के सियोर- (seior) शब्द से प्राप्त हुए हैं। जोकि लैटिन के (senior) सेनियर शब्द से व्युत्पन्न हैं।
सेनेक्स (senex) का कर्मकारक रूप सिग्नॉर( seigneur) है । जबकि senex का का तुलनात्मक रूप (Comparative digree of Adjective) Senior शब्द है ।
senex-( Positive degree of Adjective)है। पुराना व्यक्ति- और Senior - Comparative degree of Adjective (अधिक पुराना व्यक्ति) है। और इसका Superlative form of adjective में senissimus(सेनिसिमस) सबसे पुराना व्यक्ति। ये इसके अर्थों का विकासक्रम है।
French- sire, this word from Vulgar Latin *seior (“lord, elder”) this word too from Latin senior (“older, elder”) senior word is comparative form of senex (“old”)।
विदित हो कि (Senior) के विकसित रूप Sir (सर) शब्द ' को पहली बार लिखित दस्तावेजों के रूप में ईस्वी सन् 1297 में अंग्रेजी में एक ( यौद्धा/सामन्त) के सम्मान के विशेषण के रूप में प्रलेखित किया गया था।
और बाद में एक बैरोनेट अर्थात् परम्परा प्राप्त छोटे नवाब अथवा (उपसामंत) को ( Sir) शब्द से सम्मानित किया गया। Sir शब्द फ्रेंच सायरे (sire)का ही एक प्रकार ही था, जो पहले से ही कम से कम 1205 ईस्वी में (139 वर्षों के बाद) से अंग्रेजी में इस्तेमाल किया गया था।
सन् 1362 से इसका प्रयोग 'महत्वपूर्ण बुजुर्ग व्यक्ति के लिए होने लगा'।
सर थॉमस ट्रौब्रिज, प्रथम बैरोनेट, जिनके बैरोनेट के रूप में उनकी स्थिति से प्राप्त 'सर' का उपयोग करने का अधिकार प्राप्त हुआ।
लैटिन के सैनेक्स (Senex) के सजातीय रूप में
जिनकी चित्त वृत्ति शान्त होकर सात्विक हुई वह सन्त हैं
आध्यात्मिक मनन करने से मुनि और ज्ञान का सैद्धान्तिक स्थापन करने से ऋषि हैं।
तमाम भारोपीय वर्ग की भाषाओं में इस शब्द की कुण्डली खोजा सकती है।
सबसे पहले हम वैदिक कालीन सना: शब्द को इसका सजातीय रूप में पाते हैं ।
जिसका अर्थ होता है पुराना-
पाणिनीय धातुपाठ में षण् (सन)- सम्भक्तौ= श्रद्धा या सम्मान करना या पूजा करने के अर्थ में वैदिक धातु है। भारोपीय भाषा का सन्त शब्द ईसाई और भारतीय समाज में वही सम्मान प्राप्त किये हुए है जो कोरपोरेट जगत में "सर" शब्द को प्राप्त है। दौनों शब्द यद्यपि सजातीय हैं। एक ने गृहस्थ जीवन अपनाया तो दूसरे ने सन्यासी का
सन्- धातु में कर्तरि क्त(त) प्रत्यय लगाने से बनता है सन्त- (सन्+क्त) = सन्त: शब्द पुजारी या आध्यात्मिक साधक का वाचक है। ईसाई Saint( सेण्ट-) शब्द स्पष्ट ही संस्कृत सन्त कि रूपान्तरण है।
Etymology
The term saint is derived from the Latin word sanctus, meaning "holy" or "consecrated." This is, in turn, a direct translation of the Greek word "άγιος" (hagios), which also means "holy." In its original scriptural usage it simply means "holy" or "sanctified." In this form, it can be applied to a "holy" person, a place (άγιον όρος, "The Holy Mountain," Athos), a thing—such as Scripture itself (αγιογράφικα, "Holy Writing")—or even God (άγιον πνεύμα, "The Holy Spirit"). However, the early Christians began to use the term "Saint" more narrowly to refer to specific, exemplary individuals.[1]
The earliest known occurrence of άγιος as "saint" (in the modern sense) seems to be in the Shepherd of Hermas, a gnostic text authored sometime in the second century.
शब्द-व्युत्पत्ति-
सन्त शब्द लैटिन शब्द सैंक्टस से लिया गया है, जिसका अर्थ है "पवित्र" या consecrated "पवित्रा"। बदले में, यह ग्रीक शब्द "άγιος" (hagios) का सीधा अनुवाद है, जिसका अर्थ "पवित्र" भी है। अपने मूल शास्त्र के उपयोग में इसका अर्थ केवल "पवित्र" या "पवित्र" है। इस रूप में, इसे एक "पवित्र" व्यक्ति, एक जगह (άγιον όρος, "द होली माउंटेन," एथोस), एक चीज़ - जैसे कि खुद इंजील (αγιογράφικα, "होली राइटिंग") - या यहाँ तक कि भगवान ( άγιον πνεύμα, "पवित्र आत्मा")। हालांकि, शुरुआती ईसाइयों ने विशिष्ट, अनुकरणीय व्यक्तियों को संदर्भित करने के लिए "संत" शब्द का अधिक संकीर्ण रूप से उपयोग करना शुरू किया। [1]
"संत" (आधुनिक अर्थ में) के रूप में άγιος की सबसे पहली ज्ञात घटना हेर्मस के शेफर्ड में प्रतीत होती है, जो दूसरी शताब्दी में कभी-कभी लिखी गई एक ज्ञानवादी पाठ है
इसी प्रकार ग्रीक शब्द एञ्जेलस्(Angeles) भी वैदिक अंगिरस् का रूपान्तरण है।
Etymology of aengel
- this word
From Middle English (angel,) aungel, ængel, engel, and too this word from Old English anġel, ænġel, enġel, enċġel (“angel, messenger”), that too-
from Proto-West Germanic *(angil,) borrowed from Latin angelus, itself from Ancient Greek ἄγγελος (ángelos, “messenger”);
and also in part from Anglo-Norman angele, angle, from the same Latin source.
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The religious sense of the Greek word first appeared in the Septuagint as a translation of the Hebrew word( מַלְאָךְ (malʾāḵ,)= “messenger”) or יהוה מַלְאָךְ (malʾāḵ YHWH, “messenger of YHWH”).
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Use of the term in some churches to refer to a church official derives from interpreting the "angels" of the Seven churches of Asia in Revelation as being bishops or ministers rather than angelic beings.
एंजेल की व्युत्पत्ति
- यह शब्द
मध्य अंग्रेजी से (एंजेल,) एंजेल, एंजेल, एंजेल, और यह शब्द पुरानी अंग्रेजी एंजेल, ænġel, enġel, enċġel ("एंजेल, मैसेंजर") से भी है, वह भी-
प्रोटो-वेस्ट जर्मेनिक *(एंजिल) लैटिन एंजलस से उधार लिया गया है, जो खुद प्राचीन ग्रीक ἄγγελος (एंगेलोस, "मैसेंजर") से लिया गया है;
और आंशिक रूप से एंग्लो-नॉर्मन एंजेल, एंगल, उसी लैटिन स्रोत से।
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ग्रीक शब्द का धार्मिक अर्थ सबसे पहले सेप्टुआजेंट में हिब्रू शब्द ( מַלְאָךְ (malʾāḵ,)= "दूत") या יהוה מַלְאָךְ (malʾāḵ YHWH, "YHWH के दूत") के अनुवाद के रूप में प्रकट हुआ।
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चर्च के एक अधिकारी को संदर्भित करने के लिए कुछ चर्चों में शब्द का उपयोग रहस्योद्घाटन में एशिया के सात चर्चों के "स्वर्गदूतों" की व्याख्या करने से प्राप्त होता है, जो स्वर्गदूतों के बजाय बिशप या मंत्री होते हैं
निम्न ऋचा में सना शब्द प्राचीनता का मानक है।
सना पुराणमध्येम्यारान्महः पितुर्जनितुर्जामि तन्नः।
देवासो यत्र पनितार एवैरुरौ पथि व्युते तस्थुरन्तः॥९॥
“सना=- सनातनं “पुराणं ।
सना शब्द के सजातीय रूप निम्न हैं।
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It is the conceptual source of/evidence for its existence is provided by Indo europion languages.यह अपने अस्तित्व के लिए वैचारिक स्रोत/साक्ष्य है जो भारतीय यूरोपीय भाषाओं द्वारा प्रदान किया गया है।
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1-Sanskrit -sanah (सना:) "old;"
2-Avestan -hana= "old,"
3-Old Persian -hanata- "old age,
lapse of time-(समय का बीतना)" 4-Armenian -hin= "old;"
5-Greek -Senos= "old, (पिछले वर्ष का) of last year;"
6- Latin -senilis= "of old age,पुरानी उम्र का " senex ="old, old man;"
7-Lithuanian -senas= "old," senis "an old man;"
8-Gothic -sineigs ="old" (used only of persons), sinistra "elder, senior;"
9- Old Norse -sina "dry standing grass from the previous year;"
10-Old Irish- sen,= Old
11-Welsh -hen ="old."
12-प्रोटो-सेमिटिक * सनत- एक वर्ष का समय। मजबूत। आयु ।
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सर एक सामन्त या छोटे सामन्त के सम्मान का शीर्षक (17 वीं सदी तक। पुजारियों का एक शीर्षक था।
*सेन-
प्रोटो-इंडो-यूरोपीय रूट का अर्थ है "पुराना।"
यह सभी या इसका हिस्सा बनता है :
यह इसके अस्तित्व का काल्पनिक स्रोत/साक्ष्य है:
परन्तु आज ऐसे विद्वान भी भारतीय धरा पर प्रतिष्ठित हैं जो सर की व्युत्पत्ति भारतीय भाटों की ज्योतिष गणना से करते हैं ।उन्हों अंगरेजों को गाली देने के भाव से (Sir) शब्द की व्युत्पत्ति
'Slave I Remain' के (संक्षेपीकरण) के रूप में करत है।
सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर की जा रही है जिसमें दावा किया गया है कि अंग्रेजी शब्द (SIR)- 'स्लेव आई रेमेन' का संक्षिप्त नाम है।
दावे के मुताबिक, ' अंग्रेज अपने शासन के दौरान चाहते थे कि सभी भारतीय उन्हें सर कहकर संबोधित करें।' आइए इस लेख के जरिए इस दावे की पड़ताल करते हैं।
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Herr
German equivalent of Mister (but also used without a name), 1650s, originally "nobler, superior," from Middle High German = herre, from Old High German= herro, comparative of hēr
"noble, worthy, important, exalted,"
; perhaps in this usage a loan-translation of Latin {senior} in the High German area that spread into other Germanic languages. Hence also Herrenvolk ="master race," the concept of the German people in Nazi ideology.
संत
सारे प्राचीन उपनिषद् साहित्य में 'संत' शब्द तैत्तिरीय_उपनिषद् में ही प्राप्त होता है। परंतु संत की जो परिभाषा दी गई है, वह बहुत संकुचित व सीमित है तथा उस में अच्छाई या सत् का पूरी तरह अभाव है। कहा है कि जो व्यक्ति कहता है कि ब्रह्म नहीं' (असत्) है, वह स्वयं भी असत् हो जाता है - अस्तित्वहीन हो जाता है। जो कहता है कि वह है ( सत ), उसे लोग 'संत' (सन्मार्ग पर स्थित — #संतं_साधुमार्गस्थम्, तै. उप. 2-6 पर शांकरभाष्य) कहते हैं।
ब्रह्म के हक में, बिना उस का अस्तित्व सिद्ध हुए, वोट डालने वाले को सन्मार्ग (अच्छे मार्ग) पर स्थित कहना एक पूर्वाग्रह है। कोई आदमी अच्छा है या बुरा, इस का आधार केवल यह बात नहीं हो सकती कि वह ब्रह्म का अस्तित्व मानता है या नहीं आज भी दुनिया में बहुसंख्यक लोग आस्तिक हैं और हर जेल में बंद चोरों, हत्यारों, बलात्कारियों, आतंकियों, अपहरणकर्ताओं में 99 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जो ईश्वर, देवीदेवता आदि को मानने वाले हैं। आतंकी तो 100 प्रतिशत ईश्वर विश्वासी हैं तो क्या इन सब को इस आधार पर 'संत' माना जाए कि ये ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास करते हैं? जो लोग उपनिषदों को आदर्श ग्रंथ, पूज्य ग्रंथ, अभ्रांत व निर्भ्रात ज्ञान के भंडार, आर्षज्ञान के सागर आदि बताते नहीं अघाते, उन का तो यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि वे ऐसे हर चोर, आतंकी, बलात्कारी, अपहरणकर्ता, तस्कर, हत्यारे आदि को 'संत' ही समझें, संत ही कहें और तदनुसार ही उन के प्रति व्यवहार करें यदि उन्हें कोई आपति हो तो उपनिषत्कारों व ऋषियों के दरवाजे पर दस्तक दें।
प्रस्तुति करण :- यादव योगेश कुमार "रोहि"
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