सोमवार, 2 जनवरी 2023

कैवर्त्ताभीरशबरा ये चान्ये म्लेच्छजातयः।वर्षाग्रतः प्रवक्ष्यामि नामतश्चैव तान्नृपान् ।। ३७.२६५ ।।



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        अध्यायः ३७
          वेदव्यासः

  1.       

तस्य ते तनयाः सर्वे क्षेत्रजा मुनिसम्भवाः।
सम्भूता दीर्घतमसः सुदेण्णायां महौजसः ।। ३७.३४ ।।
                     ऋषय ऊचुः।
कथं बलेः सुताः पञ्च जनिताः क्षेत्रजाः प्रभो।
ऋषिणा दीर्घतमसा एतन्नो ब्रूहि पृच्छताम् ।। ३७.३५ ।।
                   सूत उवाच।।
अशिजो नाम विख्यात आसीद्धीमानृषिः पुरा।
भार्या वै ममता नाम बभूवास्य महात्मनः। ३७.३६।
अशिजस्य कनीयांस्तु पुरोधा यो दिवौकसाम्।
बृहस्पतिर्बृहत्तेजा ममतां सोऽभ्यपद्यत।३७.३७।

उवाच ममता तन्तु बृहस्पतिमनिच्छती।
अन्तर्वत्न्यस्मि ते भ्रातुर्ज्येष्ठस्याष्टमिता इति। ३७.३८।
अयं हि मे महागर्भो रोचतेऽति बृहस्पते।
अशिजं ब्रह्म चाभ्यस्य षडङ्गं वेदमुद्गिरन् ।। ३७.३९ ।।
अमोघरेतास्त्वञ्चापि न मां भजितुमर्हसि।
अस्मिन्नेव गते काले यथा वा मन्यसे प्रभो ।। ३७.४० ।।
एवमुक्तस्तया सम्यग् बृहत्तेजा बृहस्पतिः।
कामात्मानं महात्मा च नात्मानं सोऽभ्यधारयत् ।। ३७.४१ ।।
सम्बभूवैव धर्मात्मा तया सार्द्धं बृहस्पतिः।
उत्सृजन्तं तदा रेतो गर्भस्थः सोऽभ्यभाषत ।। ३७.४२ ।।
नो स्नातको न्यसेद्ध्यस्मिन् द्वयोर्नेहास्ति सम्भवः।
अमोघरेतास्त्वञ्चापि पूर्वञ्चाहमिहागतः ।। ३७.४३ ।।
शशाप तं तदा क्रुद्ध एवमुक्तो बृहस्पतिः।
आशिजन्तं सुतं भ्रातुर्गर्भस्थं भगवानृषिः ।। ३७.४४ ।।
यस्मात्त्वमीदृशे काले सर्वभूतेप्सिते सति।
मामेवमुक्तवान् मोहात्तमो दीर्घं प्रवेक्ष्यसि ।। ३७.४५ ।।
ततो दीर्घतमा नाम शापादृषिरजायत।
अथाशिजो बृहत्कीर्त्तिर्बृहस्पतिरिवौजसा ।। ३७.४६ ।।
ऊर्द्ध्वरेतास्ततश्चापि न्यवसद्भ्रातुराश्रमे।
गोधर्मं सौरभेयात्तु वृषभाच्छ्रुतवान् प्रभो ।। ३७.४७ ।।
तस्य भ्राता पितृव्यस्तु चकार भवनं तदा।
तस्मिन् हि तत्र वसति यदृच्छाभ्यागतो वृषः ।। ३७.४८ ।।
दर्शार्थमाहृतान् दर्भांश्चचार सुरभीवृतः।
जग्राह तं दीर्घतमा विस्फुरन्तञ्च श्रृङ्गयोः ।। ३७.४९ ।।
स तेन निगृहीतस्तु न चचाल पदात्पदम्।
ततोऽब्रवीद्वृषस्तं वै मुञ्च मां बलिनां वर ।। ३७.५० ।।
न मयासादितस्तात बलवंस्त्वद्विधः क्वचित्।
त्र्यम्बकं वहता देवं यतो जातोऽस्मि भूतले ।। ३७.५१ ।।
मुञ्च मां बलिनां श्रष्ठ प्रीतस्तेऽहं वरं वृणु।
एवमुक्तोऽब्रवीदेनं जीवस्त्वं मे क्व यास्यसि ।। ३७.५२ ।।
तेन त्वाहं न मोक्ष्यामि परस्वाहं चतुष्पदम्।
ततस्तं दीर्घतमसं स वृषः प्रत्युवाच ह ।३७.५३ ।।

नास्माकं विद्यते तात पातकं स्तेयमेव वा।
भक्ष्याभक्ष्यं न जानीमः पेयापेयञ्च सर्वशः ।। ३७.५४ ।।
कार्याकार्यं न वै विझो गम्यागम्यं तथैव च।
न पाप्मानो वयं विप्र धर्मो ह्येषां गवां स्मृतः ।। ३७.५५ ।।
गवां नाम स वै श्रुत्वा संभ्रान्तस्त्वनुमुच्य तम्।
भक्त्या चानुश्रविकया गोषु तं वै प्रसाद यत् ।। ३७.५६ ।।


प्रसादिते गते तस्मिन् गोधर्मं भक्तितस्तु तम्।
मनसैव तदादत्ते तन्निष्ठस्तत्परायणः।३७.५७।

ततो यवीयसः पत्नीमौतथ्यस्याभ्यमन्यत।
विचेष्टमानां रुदतीं दैवात् स मूढचेतनः।३७.५८।

अवलेपन्तु तं मत्वा शरद्वांस्तस्य नाक्षमत्।
गोधर्मंवै बलं कृत्वा स्नुषां स सममन्यत ।३७.५९।

विपर्ययन्तु तं दृष्ट्वा शरद्वान् प्रत्यचिन्तयत्।
भविष्यमर्थं ज्ञात्वा च महात्मा च न मृत्युताम् ।। ३७.६० ।।
प्रोवाच दीर्घतमसं क्रोधात् संरक्त लोचनः।
गम्यागम्यं न जीनीषे गोधर्मात् प्रार्थयत् स्नुषाम् ।। ३७.६१ ।।
दुर्वृत्तस्त्वं त्यजाम्येव गच्छ त्वं स्वेन कर्मणा।
यस्मात्त्वमन्धो वृद्धश्च भर्त्तव्यो दुरनुष्ठितः।
तेनासि त्वं परित्यक्तो दुराचारोऽसि मे मतिः। ३७.६२।

ततः प्रसादयामास पुनस्तमृषिसत्तमम्।
बलिर्भार्यां सुदेष्णां च भर्त्सयामास वै प्रभुः ।। ३७.७५ ।।

पुनश्चैनामलंकृत्य ऋषये प्रत्यपादयत्।
तां स दीर्घतमा देवीमब्रवीद्यदि मां शुभे।३७.७६ ।।

दध्ना लवणमिश्रेण स्वब्य(व्य)क्तं नग्नकं तथा।
लिहिष्यस्यजुगुप्सन्ती ह्यापादतलमस्तकम् ।। ३७.७७ ।।
ततस्त्वं प्राप्स्यसे देवि पुत्रांश्च मनसेप्सितान्।
तस्य सा तद्वचो देवी सर्वं कृतवती तथा।३७.७८।

अपानञ्च समासाद्य जुगुप्सन्ती न्यवर्जयत्।
तामुवाच ततः सर्षिर्यत्ते परिहृतं शुभे।
विनापानं कुमारं त्वं जनयिष्यसि पूर्वजम् ।। ३७.७९ ।।

ततस्तं दीर्घतमसं सा देवी प्रत्युवाच ह।
नार्हसि त्वं महाभाग पुत्रं दातुं ममेदृशम् ।३७.८०।


                ।ऋषिरुवाच।।
तवापराधो देव्येष नान्यथा भवितानु वै ।
देवी दानीञ्च ते पुत्रमहं दास्यामि सुव्रते।३७.८१ ।।


तस्यापानं विना चैव योग्याभावो भविष्यति।
तां स दीर्घतमाश्चैव कुक्षौ स्पृष्ट्वेदमब्रववीत् ।। ३७.८२ ।।

प्राशितं दधि यत्तेऽद्य ममाङ्गाद्वै शुचिस्मिते ।
तेन ते पूरितो गर्भः पौर्णमास्यामिवोदधिः ।। ३७.८३ ।।
भविष्यन्ति कुमारास्ते पञ्च देवसुतोपमाः।
तेजस्विनः पराक्रान्ता यज्वानो धार्मिकास्तथा ।। ३७.८४ ।।
ततोङ्गस्तु सुदेष्णाया ज्येष्ठपुत्रो व्यजायत।
वङ्गस्तस्मात्कलिङ्गस्तु पुण्ड्रो ब्रह्मस्तथैव च ।। ३७.८५ ।।
वंशभाजस्तु पञ्चैते बलेः क्षेत्रेऽभवंस्तदा।
इत्येते दीर्घतमसा बलेर्दत्ताः सुताः पुरा।३७.८६।

प्रजास्त्वपहतास्तस्य ब्रह्मणा कारणं प्रति।
अपत्या मात्यदारेषु स्वेषु मा भून्महात्मनः ।। ३७.८७ ।।
ततो मनुष्ययोन्यां वै जनयामास स प्रजाः।
सुरभिर्दीर्घतमसमथ प्रीतो वचोऽब्रवीत्।३७.८८ ।।

विचार्य यस्माद्गोधर्म्मं त्वमेवं कृतवानसि ।
तेन न्यायेन मुमुचे ह्यहं प्रीतोस्मि तेन ते।३७.८९ ।।

तस्मात्तव तमो दीर्घं निस्तुदाम्यद्य पश्य वै।
बार्हस्पत्यञ्च यत्तेऽन्यत्पापं सन्तिष्ठते तनौ ।। ३७.९० ।।
जरामृत्युभयञ्चैव आघ्राय प्रणुदामि ते।
ह्याघ्रातमात्रः सोऽपश्यत सद्यस्तमसि नाशिते ।। ३७.९१ ।।
आयुष्मांश्च युवा चैव चक्षुष्मांश्च ततोऽभवत्।
गवा दीर्घतमाः सोऽथ गौतमः समपद्यत ।। ३७.९२
।।


ततो मरुद्भिरानीय पुत्रस्तु स बृहस्पतेः।
सङ्क्रामितो भरद्वाजो मरुद्भिः क्रतुभिर्विभुः ।। ३७.१३५ ।।
तत्रैवोदारहन्तीदं भरद्वाजस्य धीमतः।
जन्मसङ्क्रमणञ्चैव मरुद्भिर्भरताय वै ।। ३७.१३६ ।।
पत्न्यामासन्नगर्भायामशिजः संस्थितः किलः।
भ्रातुर्भार्यां स दृष्ट्वाथ बृहस्पतिरुवाच ह।
अलंकृत्य तनुं स्वान्तु मैथुनं देहि मे शुभे ।। ३७.१३७ ।।

_______
एवमुक्ताऽब्रवीदेन मन्तर्वत्नी ह्यहं विभो।
गर्भः परिणतश्चायं ब्रह्म व्याहरते गिरा।३७.१३८ ।

अमोघरेतास्त्वञ्चापि धर्मश्चैव विगर्हितः।
एवमुक्तोऽब्रवीदेनां स्मयमानो बृहस्पतिः ।। ३७.१३९ ।।

विनयो नोपदेष्टव्यस्त्वया मम कथञ्चन।
हर्षमाणः प्रसह्यैनां मैथुनायोपचक्रमे।३७.१४०।

ततो बृहस्पतिं गर्भो हर्षमाणमुवाच ह।
सन्निविष्टो ह्यहं पूर्वमिह तात बृहस्पते।३७.१४१ ।।

अमोघरेताश्च भवान्नावकाशोऽस्ति च द्वयोः।
एवमुक्तः स गर्भेण कुपितः प्रत्युवाच ह ।। ३७.१४२ ।।

यस्मान्मामीदृशे काले सर्वभूतेप्सिते सति।
प्रतिषेधसितत्तस्मात् तमो दीर्घं प्रवेक्ष्यसि ।। ३७.१४३ ।।

पादाभ्यान्तेन तच्छन्नं मातुर्द्वारं बृहस्पतेः।
तद्रेतस्तु तयोर्मध्ये निवार्यः शिशुकोऽभवत् ।। ३७.१४४ ।।

सद्यो जातं कुमारन्तं दृष्ट्वाऽथ ममताऽब्रवीत्।
गमिष्यामि गृहं स्वं वै भरद्वाजं बृहस्पते ।। ३७.१४५ ।।

एवमुक्त्वा गतायां स पुत्रन्त्यजति तत्क्षणात्।
भरस्व बाढमित्युक्तो भरद्वाजस्ततोऽभवत् ।। ३७.१४६ ।।

मातापितृभ्यां संत्यक्तं दृष्ट्वाथ मरुतः शिशुम्।
गृहीत्वैनं भरद्वाजं जग्मुस्ते कृपया ततः ।। ३७.१४७।

तस्मिन् काले तु भरतो मरुद्भिः क्रतुभिः क्रमात्।
काम्यनैमित्तिकैर्यज्ञैर्यजते पुत्रलिप्सया।३७.१४८।

यदा स यजमानो वै पुत्रान्नासादयत् प्रभुः ।
यज्ञं ततो मरुत्सोमं पुत्रार्थे पुनराहरत् । ३७.१४९।

तेन ते मरुतस्तस्य मरुत्सोमेन तोषिताः।
भरद्वाजं ततः पुत्रं बार्हस्पत्यं मनीषिणम् ।। ३७.१५० ।।

भरतस्तु भरद्वाजं पुत्रं प्राप्य तदाब्रवीत्।
प्रजायां संहृतायां वै कृतार्थोऽहं त्वया विभो ।। ३७.१५१ ।।

पूर्वन्तु वितथं तस्य कृतं वै पुत्रजन्म हि।
ततः स वितथो नाम भरद्वाजस्तथाऽभवत् ।। ३७.१५२ ।।

तस्माद्दिव्यो भरद्वाजो ब्राह्मण्यात् क्षत्रियोऽभवत्।
द्विमुख्यायननामा स स्मृतो द्विपितृकस्तु वै ।। ३७.१५३ ।।

ततोऽथ वितथे जाते भरतः स दिवं ययौ।
वितथस्य तु दायादो भुवमन्युर्बभूव ह ।। ३७.१५४।


< वायु पुराण | उत्तरार्ध

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अध्याय 37
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वायु पुराण/
____
 
                सुता ने कहा।
प्राचीन काल में आशिजा नाम के एक प्रसिद्ध बुद्धिमान ऋषि थे
महान ऋषि की ममता नाम की एक पत्नी थी 37.36।।
आशिजा में सबसे छोटा आकाशीय ग्रहों का अग्रदूत था
महान तेज के बृहस्पति मेरे पास आए 37.37।।
ममता ने कहा, बृहस्पति नहीं चाहते।
मैं गर्भवती हूँ और तुम्हारे बड़े भाई की आठवीं पुत्री हूँ। 37.38।।
___________
हे बृहस्पति मुझे यह महान गर्भवती स्त्री अच्छी लगती है
उन्होंने अशिजा और ब्रह्मा का अभ्यास किया और छह वेदों का उच्चारण किया। 37.39।
ये अचूक हैं और आपको भी मेरी पूजा नहीं करनी चाहिए।
हे प्रभु जो कुछ भी आप इस पिछले समय में सोचते हैं 37.40।।
इस प्रकार उसके महान वैभव के बृहस्पति ने संबोधित किया
महात्मा अपने को काम आत्मा नहीं समझते थे 37.41।।
धर्मी बृहस्पति उसके साथ प्रकट हुए
जब वह अपना वीर्य छुड़ा रहा था तब गर्भवती स्त्री ने उस से बातें की 37.42।

किसी कुंवारे को इसे नहीं लगाना चाहिए। दोनों की कोई संभावना नहीं है।
ये अचूक रक्त हैं और आप और मैं यहां पहले भी आ चुके हैं 37.43।।
इस प्रकार संबोधित करने पर बृहस्पति क्रोधित हो गए और उन्हें श्राप दे दिया
दिव्य ऋषि अपने भाई के गर्भ में अपने पुत्र को आशीर्वाद दे रहे थे 37.44।

क्योंकि आप ऐसे समय में हैं जब सभी प्राणी वांछित हैं।
उन्होंने मुझसे कहा कि इस प्रकार भ्रम से तुम लंबे समय तक अंधेरे में प्रवेश करोगे 37.45।

तब दीर्घात्मा नामक एक शापित ऋषि का जन्म हुआ।
_____
तब आशिज महान यश के बृहस्पति के समान शक्तिशाली हो गया 37.46।।
तब वे अपने भाई के आश्रम में रहने लगे
हे भगवान मैंने सौरभेय से वृषभ से गौ धर्म के बारे में सुना 37.47।
उसके भाई और चचेरे भाई ने तब घर बनाया था।
संयोग से आया हुआ एक बैल वहां रहता है 37.48।।
__________________
 
 37.134।
तब मरुतों ने उसे उठा लिया और वह बृहस्पति का पुत्र बना
पराक्रमी भारद्वाज पर मरुतों ने यज्ञ करते हुए आक्रमण किया था 37.135।
बुद्धिमान भारद्वाज की यह उदार हत्या है।
मरुतों का जन्म और भरत में संक्रमण 37.136।।
बच्चा पत्नी के पेट में था
तब बृहस्पति ने अपने भाई की पत्नी की ओर देखा और कहा
अपने शरीर को सजाओ और मुझे अपनी कामुकता दो, हे शुभ। 37.137।
इस प्रकार सम्बोधित करते हुए, हे स्वामी, मैं एक मन्त्र की पत्नी हूँ।
भ्रूण और रूपांतरित शरीर शब्दों के साथ ब्रह्म का उच्चारण करते हैं 37.138।
ये अचूक हैं और आपकी और धार्मिकता की निंदा की जाती है
इस प्रकार संबोधित बृहस्पति ने मुस्कुराते हुए उसे संबोधित किया 37.139।
आप मुझे किसी भी तरह से विनम्रता न सिखाएं
इससे खुश होकर वह उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाने लगा 37.140।
______________________________
तब गर्भ ने प्रसन्न होकर बृहस्पति से कहा
हे प्रिय बृहस्पति मैं यहाँ पहले ही बस चुका हूँ 37.141।
आप अचूक हैं और दोनों के लिए कोई जगह नहीं है
इस प्रकार गर्भवती महिला द्वारा संबोधित उन्होंने गुस्से से जवाब दिया 37.142।
क्योंकि ऐसे समय में, जब सभी प्राणी इसकी इच्छा रखते हैं।
इसलिए तुम लम्बे समय के लिए अंधकार में प्रवेश करोगे 37.143।
बृहस्पति की माता का द्वार उनके चरणों से ढका हुआ था
उन दोनों के बीच उस आदमी का खून अजेय था और बच्चे का जन्म हुआ। 37.144।
________________
तुरंत पैदा हुए युवा लड़के को देखकर ममता ने कहा
हे बृहस्पति मैं भारद्वाज के साथ अपने घर जाऊंगा 37.145।
यह कहकर उसने अपने पुत्र के जाते ही उसे तुरंत त्याग दिया
भारद्वाज ने 'हां' कहा और फिर उनका जन्म हुआ। 37.146।
मरुतों ने बालक को उसके माता-पिता द्वारा परित्यक्त देखा
फिर वे कृपापूर्वक उसे भारद्वाज के पास ले गए और चले गए। 37.147।
____________________________
उस समय भरत ने मरुतों के साथ बारी-बारी से यज्ञ किया
पुत्र प्राप्ति के लिए वह अपनी इच्छाओं के लिए यदा-कदा यज्ञ करता है 37.148।
जब भगवान यज्ञ कर रहे थे, तब वे अपने पुत्र के पास नहीं पहुंचे।
तब मारुत्सोमा ने अपने पुत्र के लिए फिर से बलिदान वापस ले लिया 37.149।
मरुत्सोम उस मरुत्सोमा से संतुष्ट थे
तब उनके भरद्वाज नाम का एक पुत्र हुआ जो बरहस्पत्य नाम के एक ऋषि थे 37.150।
भरत ने अपने पुत्र भारद्वाज के पास जाकर उनसे कहा।
हे स्वामी, मैं संतुष्ट हूँ कि आपने मेरी प्रजा का नाश किया है 37.151।
पूर्व में उन्हें व्यर्थ में एक पुत्र उत्पन्न हुआ था
तब वितथ नाम के उस भारद्वाज का जन्म हुआ 37.152।
इसलिए दिव्य भारद्वाज ब्राह्मण से क्षत्रिय बन गए।
उन्हें द्विमुखयायन के नाम से भी जाना जाता है और उन्हें द्विपितृका के नाम से जाना जाता है। 37.153।।
तब निराश होकर भरत स्वर्गलोक चले गए।
वितथ का पौत्र पृथ्वी पर क्रोधित हो गया 37.154।।
___________________________________


इंद्र का जन्म हनुमान से हुआ था जो इंद्र के समान शक्तिशाली थे।
अश्विनी-कुमारों और मद्रिजों के साथ देव और नकुल 37.241।।


                ऋषियों ने कहा:
हे महान आत्मा हम लोगों के भविष्य के बारे में सुनना चाहते हैं
हे सारथी आपने राजाओं के साथ भविष्य का वर्णन किया है 37.256।।
जो भी कर्म स्थापित होगा और जो भी राजा उत्पन्न होंगे
वर्षा होने से पहले ही मुझे उन राजाओं के नाम बता दो 37.257।

समय और युग का माप गुण और दोष होंगे।
लोगों के सुख-दुख में धर्म में वासना में और धन में 37.258।।
यह सब कुछ मुझसे पूछने वालों को विस्तारपूर्वक बताओ
इस प्रकार मुनियों ने बुद्धिमानों में श्रेष्ठ सारथि को संबोधित किया
उसने उन्हें वह सब कुछ बताया जो उसके साथ हुआ था जैसा उसने देखा और सुना था 37.259।।
                सुता ने कहा।।
जैसा कि यह सब अद्भुत कर्मों के व्यास ने मुझे बताया है।
कलियुग और मन्वन्तर भी आने वाले हैं। 37.260।।
मेरी बात सुनो क्योंकि मैं तुम्हें वह सब बताता हूं जो अभी आना बाकी है।
अब मैं उन वृपाओं का वर्णन करूँगा जो उत्पन्न होंगे। 37.261।।
और ऐलास, और इक्ष्वाकु, और सौद्युम्न, राजा भी।
जिनके खेतों में यह शुभ इक्ष्वाकु स्थापित है 37.262।।
मैं उन सभी राजाओं का उल्लेख करूंगा जिन्हें मैं भविष्य में पढ़ूंगा
उनसे और उनसे परे और अन्य जो पृथ्वी के राजा उत्पन्न होंगे 37.263।।
क्षत्रिय, परशव, शूद्र और वे भी जो ब्राह्मण हैं।
यवनों के साथ अन्धे शक और पुलिन्द तूलिक 37.264।
कैवर्त, अभीरा, शाबारा और म्लेच्छों की अन्य सभी जातियाँ।
वर्षा होने के पूर्व मैं उन राजाओं का नाम लेकर वर्णन करूँगा 37.265।
वह वर्तमान में नागरिकों का राजा है जो अधीसमाओं में सबसे काला है
भविष्य में मैं उसके पीछे चलने वाले राजाओं का वर्णन करूँगा 37.266।।
अधिसमा कृष्ण का पुत्र अवश्य ही निर्वाकर होगा।
नागासाहवा के उस शहर में जिसे गंगा बहा ले गई थी।
वह उस आरामदायक वस्त्र को छोड़कर कौशाम्बी में निवास करेगा। 37.267।।
उनके पुत्र भविष्यदुष्ण का नाम उष्ण से चित्ररथ रखा गया
शुचिद्रथ से चित्ररथ और शुचिद्रथ से वृतिमन उत्पन्न हुए 37.268।
सुषेण बहुत शक्तिशाली और प्रसिद्ध होगा।
सुषेण से सुतीर्थ नाम का एक राजा आएगा 37.269।।
सुतीर्थ से रुचा का जन्म होगा और उससे त्रिचक्ष का जन्म होगा
त्रिचक्ष का पोता सुखीबाला होगा 37.270।
भावी राजा सुखीबाला का पुत्र भी डूब गया
राजा के यहां परिप्लुत का पुत्र भी उत्पन्न होगा 37.271।
तब बुद्धिमान सुनय पुरुषों का राजा बनेगा।
बुद्धिमान का पुत्र भी डंडे का अधिकारी होगा। 37.272।
वह राजदंड-वाहक और शत्रुहीन का रक्षक है।
ये पच्चीस राजा पूर्वजों के वंशज होंगे 37.273।
यहाँ वंशावली के इस श्लोक को ब्राह्मणों ने गाया है जो पूर्वजों को जानते हैं।
ब्राह्मण और क्षत्रिय के गर्भ का देवताओं और ऋषियों द्वारा सम्मान किया जाता है 37.274।
एक उद्धारकर्ता प्राप्त करने के बाद राजा को कलियुग में एक संस्था प्राप्त होगी
यह पूर्वजों का वंश है जिसका ठीक-ठीक वर्णन किया गया है। 37.275।
पांडु के पुत्र बुद्धिमान और महान अर्जुन के लिए।
अब मैं ऊपर इक्ष्वाकुओं के महापुरुषों का वर्णन करूँगा। 37.276।।
बृहद्रथ के पौत्र वीर राजा बृहतक्षय थे।
तब उसका पुत्र क्षय हुआ और उसका पुत्र क्षय हुआ। 37.277।
बछड़ों के झुंड से, प्रतिव्यूह, उसका पुत्र, दिवाकर।
और राजा जो वर्तमान में अयोध्या नगरी में निवास कर रहे हैं 37.278।।
सूर्य के सहदेव की अपार ख्याति होगी
सहदेव का पौत्र बृहदस्व होगा 37.279।
उसके भानुरथ नाम का एक पुत्र और प्रतितस्व नाम का एक पुत्र होगा
प्रतितस्व का पुत्र भी सुबोध होगा 37.280।
सहदेव के पुत्र सुनक्षत्र थे 37.281।।
सुनक्षत्र का किन्नर शत्रुओं का संहार करेगा
अंतरीक्ष नाम के किन्नर का एक महान पुत्र होगा 37.282।
अंतरिक्ष से, सुपर्णा, और सुपर्णा से, मित्रजीत।
उनके पुत्र भारद्वाज को सदाचारी कहा जाता है
उसका कृतंजय नाम का एक धर्मात्मा पुत्र होगा
कृतंजय का पुत्र व्रत था और उसका पुत्र रणंजय था। 37.283।।
_______________
भविता सञ्जयश्चापि वीरो राजा रणञ्जयात्।
सञ्जयस्य सुतः शाक्यः शाक्याच्छुद्धोदनोऽभवत् ।। ३७.२८४ ।।
संजय भी रणंजय से वीर राजा बनेंगे।
संजय का पुत्र शाक्य था और शाक्य से शुद्धोधन उत्पन्न हुआ। 37.284।

शुद्धोदनस्य भविता शाक्यार्थे राहुलः स्मृतः।
प्रसेनजित्ततो भाव्यः क्षुद्रको भविता ततः। ३७.२८५।
राहुल को शाक्य के लिए याद किया जाता है जो शुद्ध भोजन का होगा
प्रसेनजित का जन्म होगा और फिर क्षुद्रक का जन्म होगा 37.285।
क्षुद्रकात्क्षुलिको भाव्यः क्षुलिकात्सुरथः स्मृतः।
सुमित्रः सुरथस्यापि अन्त्यश्च भविता नृपः ।। ३७.२८६ ।।

क्षुुद्रक से क्षुलिक हुआ और क्षुलिक से सुरथ हुआ और सुर का भी  अंतिम राजा भी होगा 37.286।।

महानन्दिसुतश्चापि शूद्रायां कालसंवृतः।
उत्पत्स्यते महापद्मः सर्वक्षत्रान्तरे नृपः ।। ३७.३२० ।।
महानंदी के पुत्र का जन्म भी एक शूद्र स्त्री से हुआ था
सभी क्षत्रियों के अन्तर में महापद्म नाम का एक राजा उत्पन्न होगा 37.320।।

ततःप्रभृति राजानो भविष्याः शूद्रयोनयः।
एकराट् स महापद्म एकच्छत्रो भविष्यति ।। ३७.३२१ ।।
तब से राजा शूद्र वंश के होंगे।
वह महाकमल राजा और छत्र बनेगा 37.321।।
अष्टा विंशतिवर्षाणि पृथिवीं पालयिष्यति।
सर्वक्षत्रहृतोद्धृत्य भाविनोऽर्थस्य वै बलात् ।। ३७.३२२ ।।
वह अट्ठाईस वर्ष तक पृथ्वी पर राज्य करेगा।
उसने उन सभी क्षत्रियों को जबरन उठा लिया, जिन्होंने उसकी भविष्य की संपत्ति छीन ली थी 37.322।

सहस्रास्तत्सुता ह्यष्टौ समा द्वादश ते नृपाः।।
महापद्मस्य पर्याये भविष्यन्ति नृपाः क्रमात् ।। ३७.३२३ ।।
उसके आठ हजार पुत्र और उसके बराबर बारह राजा हुए
एक के बाद एक राजा महान कमल को सफल करेंगे 37.323।

उद्धरिष्यति तान् सर्वान् कौटिल्यो वै द्विरष्टभिः।
भुक्त्वा महीं वर्षशतं नन्देन्दुः स भविष्यति ।। ३७.३२४ ।।

कौटिल्य उन सभी को अट्ठाईस से बचा लेंगे।
सौ वर्ष तक पृथ्वी को भोगने के बाद वह नन्देन्दु  बनेगा 37.324।

चन्द्रगुप्तं नृपं राज्ये कौटिल्यः स्थापयिष्यति।
चतुर्विंशत्समा राजा चन्द्रगुप्तो भविष्यति ।। ३७.३२५ ।।
कौटिल्य राजा चंद्रगुप्त को राज्य में स्थापित करेगा
राजा चंद्रगुप्त की आयु चौबीस वर्ष की होगी 37.325।

भविता भद्र सारस्तु पञ्चविंशत्समा नृपः।
षड्विंशत्तु समा राजा ह्यशोको भविता नृषु ।। ३७.३२६ ।।
हे कोमल सारा राजा पच्चीस वर्ष की होगी
राजा छब्बीस वर्ष तक मनुष्यों के शोक से रहित रहेगा 37.326।।

तस्य पुत्रः कुनालस्तु वर्षाण्यष्टौ भविष्यति।
कुनाल सूनुरष्टौ च भोक्ता वै बन्धुपालितः ।। ३७.३२७ ।।
उनका बेटा कुणाल आठ साल का होगा।
कुणाल के आठ बेटे थे और उनका पालन-पोषण उनके रिश्तेदारों ने किया 37.327।


ये कलियुग में वर्णित इक्ष्वाकु हैं।
वे कलियुग में महान शक्तियों के साथ जन्म लेंगे।
वे बहादुर थे और सत्यवादी और आत्म-नियंत्रित थे 37.287।
यहाँ वंशावली का यह पद नबियों द्वारा उद्धृत किया गया है।
इक्ष्वाकुओं का यह वंश सुमित्रा के साथ समाप्त हो जाएगा
सुमित्रा प्राप्त करने के बाद राजा कलियुग में संस्था को प्राप्त होगा
इसे मानव क्षेत्र और गंदगी के रूप में वर्णित किया गया है। 37.288।।
इसके ऊपर से मैं मगध और बृहद्रथ का वर्णन करूँगा।
जरासंध के वंश में और सहदेव के वंश में शासन करने वाले राजा 37.289।
अतीत, वर्तमान और भविष्य और इसी तरह।
अब मैं प्राथमिकताओं का वर्णन करूँगा और जैसा मैं आपको बताता हूँ, मुझे सुनेंगे 37.290।।
भारत में लड़ाई में सहदेव मारे गए
उनके पुत्र सोमाधि एक शाही ऋषि थे जो सगिरी व्रज में रहते थे 37.291।।
उसने पाँच सौ आठ वर्षों तक राज्य किया
उनका श्रुतश्रवा नाम का एक पुत्र था जो चौंसठ वर्ष का था
अयुतायु ने छब्बीस वर्षों तक राज्य किया।
सौ वर्षों तक बिना शत्रुओं के पृथ्वी का भोग करने के बाद वे चल बसे 37.292।।
वह पाँच सौ वर्ष और छह अच्छे कर्मों के लिए पृथ्वी पर पहुँचे
बृहतकर्मा ने तेईस वर्षों तक राज्य पर शासन किया। 37.293।।
सेनाजीत अभी भी इसका उतना ही लुत्फ उठा रहा है।
श्रुतंजय चालीस वर्ष का होगा 37.294।
उसके पास शक्तिशाली भुजाएँ, महान बुद्धि और भयानक पराक्रम था।
राजा ने पच्चीस वर्षों तक पृथ्वी पर शासन किया 37.295।
वह आठ सौ पचास वर्ष तक राज्य में रहेगा।
अट्ठाईस वर्ष पूरे होंगे और क्षेम राजा होगा। 37.296।।
पराक्रमी पृथ्वी के चौंसठ राज्यों को प्राप्त करेंगे
वह पांच साल तक धार्मिकता का अगुवा रहेगा 37.297।
राजा स्वयं आठ सौ पचास वर्ष तक इसका भोग करेगा।
सुव्रत अड़तीस वर्षों तक राज्य करेगा 37.298।
अड़तालीस एक शक्तिशाली सेना होगी।
तब सुमति की आयु तैंतीस वर्ष की होगी 37.299।।
तब सुचाल बाईस वर्ष तक राज्य का भोग करेगी।
तत्पश्चात राजा सुनेत्र चालीस वर्ष तक शासन करेंगे 37.300।
सत्यजीत तिरासी वर्षों तक पृथ्वी के राज्य का भोग करेगा।
जब यह मुझे मिलेगा तब मैं पैंतीस वर्ष का हो जाऊंगा और मैं वीर विजेता हो जाऊंगा। 37.301।।
अरिंजय पचास वर्षों तक पृथ्वी पर पहुंचेगा
ये बत्तीस राजा महारथी होंगे 37.302।।
वे पृथ्वी पर एक हजार वर्ष तक राज्य करेंगे
वे इन बड़े-बड़े रथों पर बिना यज्ञ के सवार थे 37.303।
ऋषि अपने स्वामी को मार डालेगा और अपने पुत्र को समर्पित करेगा
जैसा कि क्षत्रियों ने देखा, ऋषि को जबरन प्रबुद्ध किया गया 37.304।
वह एक साम्प्रदायिक सामंत होगा और भविष्य में न्याय से रहित होगा।
वह श्रेष्ठ पुरुष तेईस वर्ष तक राजा रहेगा 37.305।
तब राजा चौबीस वर्ष तक पालनहार रहेगा
राजा पचास वर्षों के लिए विशाखा यूप रहेगा। 37.306।
राज्य इकतीस वर्षों के लिए अजगर का होगा।
उसका वर्त्तिवर्धन नाम का एक पुत्र होगा जो बीस वर्ष का होगा 37.307।
उनके पाँच पुत्र हुए जो अड़तीस सौ तेजस्वी होने वाले थे।
उन्हें मारकर उनका सारा यश शिशुनाक हो जाएगा 37.308।
उनका पुत्र वाराणसी के गिरिव्रज पहुंचेगा
बच्चे की नाक चालीस साल की होगी। 37.309।।
उसके शक रंग का एक पुत्र होगा जो छत्तीस वर्ष का होगा
तत्पश्चात राजा क्षेमवर्मा बीस वर्षों तक शासन करेगा 37.310।।
राजा पच्चीस वर्ष का होगा और उसका कोई शत्रु नहीं होगा।
तब क्षत्रियों को चालीस वर्ष के बराबर का राज्य प्राप्त होगा 37.311।
राजा विविसार अट्ठाईस वर्ष के होंगे।
राजा पच्चीस वर्ष तक तमाशबीन रहेगा 37.312।
इस प्रकार राजा तैंतीस वर्ष का होगा
उस राजा ने कुसुमह्वय को पृथ्वी का सर्वश्रेष्ठ नगर कहा
चौथे वर्ष में वह गंगा के दक्षिणी तट पर इसका प्रदर्शन करेगा 37.313।।
भावी राजा नंदीवर्धन बयालीस वर्ष का होगा
तैंतालीस महान नंदी होंगे। 37.314।
ये दस राजा हैं जो शिशु होंगे
ये तीन साल बासठ साल से ज्यादा हो गए हैं। 37.315।
तब तक अन्य राजा शिशु नाक वाले होंगे।
साथ में राजा और क्षत्रियों के रिश्तेदार भी मौजूद रहेंगे 37.316।
चौबीस इक्ष्वाकु और पच्चीस पांचाल।
चौबीस कालक थे और चौबीस हैहय थे। 37.317।।
बत्तीस कलिंग और पच्चीस शक।
कौरव और मैथिली छब्बीस और अट्ठाईस थे। 37.318।
सुरसा में तेईस और बाईस होत्र होते हैं।
पृथ्वी के सब राजा एक साथ होंगे 37.319।
__________________________________

महानन्दिसुतश्चापि शूद्रायां कालसंवृतः।
उत्पत्स्यते महापद्मः सर्वक्षत्रान्तरे नृपः ।। ३७.३२० ।।
महानंदी के पुत्र का जन्म भी एक शूद्र स्त्री से हुआ था
सभी क्षत्रियों के अन्तर में महापद्म नाम का एक राजा उत्पन्न होगा 37.320।।

ततःप्रभृति राजानो भविष्याः शूद्रयोनयः।
एकराट् स महापद्म एकच्छत्रो भविष्यति ।। ३७.३२१ ।।
तब से राजा शूद्र वंश के होंगे।
वह महाकमल राजा और छत्र बनेगा 37.321।।
अष्टा विंशतिवर्षाणि पृथिवीं पालयिष्यति।
सर्वक्षत्रहृतोद्धृत्य भाविनोऽर्थस्य वै बलात् ।। ३७.३२२ ।।
वह अट्ठाईस वर्ष तक पृथ्वी पर राज्य करेगा।
उसने उन सभी क्षत्रियों को जबरन उठा लिया, जिन्होंने उसकी भविष्य की संपत्ति छीन ली थी 37.322।

सहस्रास्तत्सुता ह्यष्टौ समा द्वादश ते नृपाः।।
महापद्मस्य पर्याये भविष्यन्ति नृपाः क्रमात् ।। ३७.३२३ ।।
उसके आठ हजार पुत्र और उसके बराबर बारह राजा हुए
एक के बाद एक राजा महान कमल को सफल करेंगे 37.323।

उद्धरिष्यति तान् सर्वान् कौटिल्यो वै द्विरष्टभिः।
भुक्त्वा महीं वर्षशतं नन्देन्दुः स भविष्यति ।। ३७.३२४ ।।

कौटिल्य उन सभी को अट्ठाईस से बचा लेंगे।
सौ वर्ष तक पृथ्वी को भोगने के बाद वह नन्देन्दु  बनेगा 37.324।

चन्द्रगुप्तं नृपं राज्ये कौटिल्यः स्थापयिष्यति।
चतुर्विंशत्समा राजा चन्द्रगुप्तो भविष्यति ।। ३७.३२५ ।।
कौटिल्य राजा चंद्रगुप्त को राज्य में स्थापित करेगा
राजा चंद्रगुप्त की आयु चौबीस वर्ष की होगी 37.325।

भविता भद्र सारस्तु पञ्चविंशत्समा नृपः।
षड्विंशत्तु समा राजा ह्यशोको भविता नृषु ।। ३७.३२६ ।।
हे कोमल सारा राजा पच्चीस वर्ष की होगी
राजा छब्बीस वर्ष तक मनुष्यों के शोक से रहित रहेगा 37.326।।

तस्य पुत्रः कुनालस्तु वर्षाण्यष्टौ भविष्यति।
कुनाल सूनुरष्टौ च भोक्ता वै बन्धुपालितः ।। ३७.३२७ ।।
उनका बेटा कुणाल आठ साल का होगा।
कुणाल के आठ बेटे थे और उनका पालन-पोषण उनके रिश्तेदारों ने किया 37.327।

बन्धुपालितदायादो दशमानीन्द्रपालितः।
भविता सप्तवर्षाणि देववर्म्मा नराधिपः ।। ३७.३२८ ।।
उनके रिश्तेदारों द्वारा उठाए गए दादा को दसवें राजा ने पाला था।
देववर्मा सात वर्षों तक मनुष्यों का राजा रहेगा 37.328।

राजा शतधरश्चाष्टौ तस्य पुत्रो भविष्यति।
बृहदश्वश्च वर्षाणि सप्त वै भविता नृपः ।। ३७.३२९ ।।
राजा शतधर के आठ पुत्र होंगे।
बृहदस्व सात वर्ष तक राजा रहेगा 37.329।

इत्येते नव भूपा ये भोक्ष्यन्ति च वसुन्धराम्।
सप्तत्रिंशच्छतं पूर्णं तेभ्यस्तु गौर्भविष्यति ।। ३७.३३० ।।
ये नौ राजा हैं जो पृथ्वी पर राज्य करेंगे
उनमें से सैंतीस सौ पूर्ण एक गाय होगी। 37.330।।

पुष्पमित्रस्तु सेनानीरुद्धृत्य वै बृहद्रथम्।
कारयिष्यति वै राज्यं समाः षष्टिं सदैव तु ।। ३७.३३१ ।।
पुष्पमित्र ने अपनी सेना हटा ली और बृहद्रथ पर चढ़ गया
वह साठ वर्ष तक राज्य पर सदा राज्य करेगा 37.331।




पुष्पमित्रसुताश्चाष्टौ भविष्यन्ति समा नृपाः।
भविता चापि तज्ज्येष्ठः सप्तवर्षाणि वै ततः ।। ३७.३३२ ।।
वसुमित्रः सुतो भाव्यो दशवर्षाणि पार्थिवः।
ततो ध्रुकः समा द्वे तु भविष्यति सुतश्च वै ।। ३७.३३३ ।।
भविष्यन्ति समास्तस्मात्तिस्र एव पुलिन्दकाः।
राजा घोषसुतश्चापि वर्षाणि भविता त्रयः ।। ३७.३३४ ।।
ततो वै विक्रमित्रस्तु समा राजा ततः पुनः।
द्वात्रिंशद्भविता चापि समा भागवतो नृपः ।। ३७.३३५ ।।



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पुष्पमित्र के आठ पुत्र समान राजा होंगे
वह सात साल बाद उनका सबसे बड़ा बेटा भी होगा 37.332।।
वसुमित्र का पुत्र दस वर्ष तक राजा रहेगा
तब ध्रुव का जन्म दो वर्ष के लिए होगा और उसके एक पुत्र होगा 37.333।
इसलिए केवल तीन पुलिंदक होंगे
राजा घोषा का बेटा भी तीन साल तक सत्ता में रहेगा 37.334।
फिर विक्रमीत्र साम के राजा बने और फिर
राजा बत्तीस वर्ष तक प्रभु का भक्त रहेगा। 37.335।।
उसका एक पुत्र होगा जिसके पास दस के बराबर शान्त भूमि होगी।
पहाड़ों के ये दस राजा इस धरती पर राज करेंगे 37.336।
सौ पूरे और उनमें से दस या दो या क्या जाएगा।
लेकिन वासुदेव, सांसारिक राजा, बचपन से ही एक शरारती राजा थे। 37.337।।
चोटियों पर होगी देवताओं की भूमि और दूसरा राजा
वह उतने ही समय के लिए नौ गर्दनों का राजा होगा। 37.338।।
उसका पुत्र भूतिमित्र चौबीस वर्ष का होगा।
वह बारह वर्ष का होगा और राजा नारायण होगा। 37.339।
सुशर्मा और उसका बेटा दस साल के होंगे
ये राजा कन्थायन के ब्राह्मण थे जिन्होंने चार चोटियों का अनुष्ठान किया था 37.340।।
पैंतालीस साष्टांग सामंत हों
उनके प्रत्यावर्तन के समय एक लहर होगी। 37.341।
फिर उसने कन्थायन को उठा लिया और सुशर्मा को विवश कर दिया
फिर उसने चोटियों की शेष शक्ति को नष्ट कर दिया
आंध्र जाति के सिंधुका को यह धरती विरासत में मिलेगी 37.342।।
सिंधु का राजा तेईस वर्ष का होगा।
भाटा आठ वर्ष का होगा और उसके बाद दस का होगा 37.343।
उसका पुत्र श्री सतकर्णी होगा और वह महान होगा।
पांच सौ छह बराबर सात कान होंगे। 37.344।।
उसके दस पुत्र होंगे जो उसके पैरों से बंधे रहेंगे
चौबीस साल छह साल के बराबर होगा। 37.345।
नेमिकृष्ण पच्चीस वर्ष के होंगे
फिर पूरे एक साल तक हेलो राजा रहेगा 37.346।
पाँच या सात शक्तिशाली राजा होंगे
भावी पुत्रीक्षेन इक्कीस वर्ष तक उसके बराबर रहेगा। 37.347।
सातकर्णी एक वर्ष तक राजा रहेगा।
वह अट्ठाईस वर्ष तक भगवान शिव का स्वामी रहेगा। 37.348।।
और हे गौतमी के पुत्र राजा, पुरुषों में इक्कीस के बराबर है।
राजा यज्ञश्री और सातकर्ण्य ने इक्कीस वर्षों तक शासन किया। 37.349।।
छ: ही होंगे, अत: विजया राजा के तुल्य होगी।
उसके दंडश्री और सातकर्णी नाम के तीन पुत्र हुए 37.350।
पुलोवा भी सात अन्य के बराबर होगी
ये वे तीस राजा हैं जो पृय्वी पर राज्य करेंगे 37.351।
चार सौ पांच छह और इतने पर
पांच आंध्र स्थापित किए गए और उनके राजवंश फिर से बराबर हो गए। 37.352।।
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आठ यवन और चौदह तुषार होंगे
तेरह मरुन्दा और अठारह मौना 37.354।।
आन्ध्र एक सौ दो सौ वर्षों तक इस भूमि का उपभोग करेंगे।
शक तीन सौ अस्सी वर्ष तक पृथ्वी को भोगेंगे 37.355।
यवनों ने अस्सी वर्षों तक भूमि का उपभोग किया
कहा जाता है कि पृथ्वी पांच सौ वर्षों से जमी हुई है 37.356।
तेरह सौ चौवन होंगे।
मारुंड और म्लेच्छों की अन्य जातियों को शूद्रों के साथ होना था 37.357।।

तीन सौ ग्यारह म्लेच्छ खायेंगे।
कुछ देर बाद बैलों को शूल हो गया 37.358।।

तब कोलीकिले से विंध्य की शक्ति होगी
वह छियासठ वर्ष बचाएगा और पृथ्वी पर पहुंचेगा 37.359।।
बैलों और दिशाओं और भविष्य को सुनें।
शेष सर्पों के पुत्र स्वरपुरंजय थे 37.360।।
सर्प जाति का नेता राजा भोक्ता होगा।
सदाचंद्र चंद्रमा का दूसरा भाग है और नखावन चंद्रमा का दूसरा भाग है। 37.361।
धनधर्म को चौथा चौबीसवाँ भी कहा गया है।
भूतिनंदा तब वैदेश में भी होंगे। 37.362।
अंगों के बगीचे के अंत में एक हनीमून होगा
उनके छोटे भाई का नाम नंदी था और वह प्रसिद्ध थे 37.363।
उसके वंश में तीन राजा होंगे
उसकी पुत्री शिशुको नगर में राजा बनी 37.364।
विंध्यशक्ति का पुत्र भी प्रवीर नाम का एक पराक्रमी योद्धा था।
वे साठ साल तक स्वर्णनगरी का आनंद उठाएंगे 37.365।।
वे वाजपेय और पूर्ण वरदानों और उपहारों के साथ यज्ञ करेंगे।
उसके चार पुत्र होंगे जो राजा होंगे 37.366।।
पूर्वकाल में विन्ध्यकों के वंश में तीन बाह्लीक राजा हुए
सुप्रतीका और नाभिरा जीवन के तीस वर्ष का आनंद लेंगे 37.367।
शाक्यमा नाम का एक राजा था जो भैंसों का राजा था
तेरह होंगे फूल सखा और पत्ता सखा। 37.368।
मेकला में सात उत्कृष्ट राजा होंगे
कोमलता में शक्तिशाली राजा होंगे 37.369।
बुद्धिमानों को मेघा कहा जाता है लेकिन नौ
भविष्य में नैषध के सभी राजा राजा बनेंगे 37.370।
वे नल वंश में पैदा हुए थे और पराक्रमी और शक्तिशाली थे
मगध के पराक्रमी विश्वस्फनी का जन्म होगा 37.371।।
वह सारी पृथ्वी का नाश करेगा, और दूसरी जातियां बनाएगा।
कैवर्त और पंचक और पुलिंद और ब्राह्मण 37.372।।
राजा उन्हें विभिन्न देशों में वैभव के साथ स्थापित करेंगे।
विश्वस्फनी एक शक्तिशाली योद्धा था और युद्ध में विष्णु के समान मजबूत था। 37.373।
पुरुषों के राजा, विश्वस्फनीर को क्लेबा के काम की तरह कहा जाता है।
वह क्षत्रियों का नाश करके दूसरा क्षत्रिय बना देगा। 37.374।।
एक बार फिर देवताओं को पितरों और ब्राह्मणों को तृप्त कर लिया
वह पराक्रमी जाह्नवी के तट पर पहुँचा और अपना शरीर त्याग दिया। 37.375।
लेकिन वह अपने शरीर को त्याग देगा और इंद्र की दुनिया में जाएगा।
नवानाका के राजा चंपावती नगरी का आनंद उठाएंगे 37.376।।
सुंदर नगरी मथुरा में सात नागों का वास होगा
अनुगंगा, प्रयाग, साकेत और मगध।
गुप्त के वंशज इन सभी जनपदों का भोग करेंगे 37.377।
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निषाद और यदुक, शशि, वे कालाटोपक।
वे रत्नों और अनाज से पैदा हुए इन सभी काजलों का आनंद लेंगे। 37.378।।
कोशल और चंद्रपौंड्रा अपने समुद्रों के साथ तांबे से लिपटे हुए हैं
वे देवताओं द्वारा संरक्षित चंपा के सुंदर शहर का भी आनंद लेंगे 37.379।
कलिंग और भैंस और इंद्र के निवास
गुहा इन सभी जनपदों पर शासन करेंगे 37.380।
सुनहरा हाथी स्त्रियों और परभक्षियों के राज्य को निगल जाएगा
ये सब राजा एक ही समय होंगे 37.381।
वे थोड़े अनुग्रह, झूठ, बड़े क्रोध और अधर्म के हैं।
यवन यहाँ धर्म वासना और धन में रहेंगे 37.382।
उन्हें राजा का ताज नहीं पहनाया जाएगा
वे राजा युग के दोषों से दुष्ट होंगे 37.383।
महिलाओं को जबरन मारकर और एक-दूसरे को मार कर।
शेष कलियुग में राजा पृथ्वी का भी आनंद लेंगे। 37.384।
वे राजवंश हैं जो उठे हैं, और वे उठे और सेट हुए हैं।
समय आने पर वे यहाँ विकल्प के रूप में होंगे क्योंकि पृथ्वी को देखा जा रहा है। 37.385।
वे धार्मिकता वासना और धन से रहित होंगे
नगर और गाँव उनके साथ मिश्रित थे और म्लेच्छों के रीति-रिवाज हर जगह थे 37.386।।
वे उन लोगों को नष्ट कर देंगे जो विपरीत दिशा में काम कर रहे हैं
तब राजा लोभी और झूठे होंगे 37.387।
फिर बहुविवाह के युग में उनके पिछले विकल्प में।
वह अपनी लंबी उम्र, सुंदरता, ताकत और सुनने की क्षमता से धीरे-धीरे टूटती जा रही थी। 37.388।
इस प्रकार ब्रह्मांड के स्वामी लोगों के बीच वन में चले गए।
समय बीतने के साथ राजा नष्ट हो जाते हैं 37.389।
कल्कि द्वारा पराजित किए गए सभी म्लेच्छ हर जगह जाएंगे
वे हर तरह से बेहद अधार्मिक और विधर्मी हैं 37.390।
कलियुग में जब राजाओं का नाद खो जाता है और संध्या उसका आलिंगन कर लेती है
वे प्रजा जो धार्मिकता खो जाने पर विवाह से थोड़ा विहीन रह गई 37.391।
वे असहाय, बेदम और बीमारी और शोक से पीड़ित थे।
वे सूखे से मारे गए और एक दूसरे को मार कर 37.392।
खबर छोड़ने के लिए अनाथ भयभीत और दुखी थे
वे अपने शहरों और गांवों को छोड़कर वनवासी बन जाएंगे। 37.393।
इस प्रकार जब राजा नष्ट हो गए तो लोगों ने अपने घरों को छोड़ दिया
जब स्नेह खो जाता है तो ऐसे मित्र खोजना कठिन होता है जो अपना स्नेह खो चुके हों 37.394।
वे वर्ण और आश्रम से विचलित हो गए हैं और एक भयानक मिश्रण में प्रवेश कर गए हैं
तब लोग नदियों और पहाड़ों के सेवक होंगे 37.395।।
नदियाँ समुद्र और पहाड़ों के किनारों की सेवा करती हैं
अंग कलिंग वंगा कश्मीर काशी और कोशल 37.396।।
ऋषि के अंत में मनुष्य पर्वत घाटियों में शरण लेंगे।
हिमालय की पूरी पीठ और खारे पानी के किनारे 37.397।
कुलीन लोग म्लेच्छों के साथ जंगलों पर आक्रमण करेंगे
हिरण मछली पक्षी जंगली जानवर और कीड़े
लोग शहद, सब्जियों, फलों और जड़ों पर जीवित रहेंगे 37.398।।
छाल के पत्ते और विभिन्न प्रकार की छाल और हिरण की खाल
वे स्वयं को बना लेंगे और ऋषियों के समान ही जीवन व्यतीत करेंगे। 37.399।
वे लकड़ी के कोन से बीज और भोजन भी नीचे ले जाते थे
वे बकरी और गधे और ऊँट की देखभाल करेंगे। 37.400 ₹।
जल के लिए जलधाराओं के भरोसे लोग नदियों में रहेंगे
पृथ्वीवासी अपने व्यवहार से एक दूसरे को परेशान कर रहे थे। 37.401।।
वे अत्यधिक सम्मानित, विषयों से रहित और पवित्रता से रहित थे।
ऐसा ही तब होगा जब मनुष्य अधर्म के प्रति समर्पित होंगे। 37.402।
लोग गरीबों और गरीबों की धार्मिकता का पालन करते हैं
कोई भी तब जीवन के तेईस वर्ष से अधिक नहीं होता है। 37.403।
कमजोर, कामुक सुखों से ग्रस्त, वृद्धावस्था से अभिभूत।
वे पत्ते, जड़ और फल खाते थे और छाल तथा काली मृगचर्म के वस्त्र पहनते थे। 37.404।
वे आजीविका की तलाश में पृथ्वी पर घूमेंगे
कलियुग के अंत में लोग इस समय तक पहुँच चुके हैं 37.405।
कलियुग के उस दिव्य हजार वर्षों में जो समाप्त हो चुका है
बाकी कलियुग के साथ नष्ट हो जाएंगे
सांयकाल का भाग पूरा हो जाएगा और शेष का जीर्णोद्धार हो जाएगा। 37.406।।
जब चंद्रमा और सूर्य तिष्य और बृहस्पति के समान स्थिति में होते हैं
वे एक रात में भर जाएंगे और फिर यह कृतयुग होगा। 37.407।
मैंने तुम्हें पूरी वंशावली क्रम से बता दी है
अतीत और वर्तमान भी और भविष्य भी 37.408।
उनके जन्म तक महान देवताओं के अभिषेक से उनकी जांच की गई थी
इसे एक हजार साल और पंद्रह साल के रूप में समझा जाना है 37.409।
प्रमाण यह है कि ऐसा है और यह महाकमलों के बीच है।
उनके बीच की दूरी आठ सौ छत्तीस बराबर है 37.410।।
इस समय के बाद जिन आन्ध्रों का उल्लेख किया जाना है
पुराणों को जानने वाले भविष्य के संतों द्वारा उनकी गणना की गई थी 37.411।
तब सप्तर्षियों ने रानी से उलटी दिशा में कहा
आपको सत्ताईस सौ वाले आंध्र के बारे में फिर से सोचना चाहिए। 37.412।
पूरे नक्षत्र में सत्ताईस।
सात ऋषि बारी-बारी से एक सौ रहते हैं
यह दिव्य संख्या में सप्त ऋषियों की आयु है 37.413।
वह साठ दिव्य दिन और सात दिव्य दिन हैं
उन्हीं से सप्तऋषियों का दिव्य काल प्रारंभ होता है 37.414।
लेकिन सात ऋषियों में से जो उत्तर दिशा में पूर्व दिशा में दिखाई देते हैं
फिर मैदान के बीच में एक मैदान दिखाई देता है जो आसमान के बराबर है 37.415।
इसलिए सात ऋषियों को आकाश में एक सौ के बराबर समझना चाहिए।
यह सितारों और ऋषियों के योग का प्रमाण है 37.416।
परीक्षित के समय सप्तर्षि माघ में थे।
मेरी राय में वे आंध्र के चौबीसवें हिस्से में होंगे। 37.417।।
हालाँकि, ये तब प्रकृति से गंभीर रूप से अभिभूत होंगे।
वे सब के सब असत्य से, धर्म से, वासना से और धन से नष्ट हो गए 37.418।
फिर वर्णाश्रम में सुनने और याद करने के आराम धर्म में
कमजोर और भ्रमित भगवान शिव को प्राप्त करेंगे 37.419।
और शूद्रों को ब्राह्मणों के साथ जोड़ा जाएगा।
ब्राह्मण शूद्रों के यज्ञकर्ता हैं और शूद्र मन्त्रों के स्रोत हैं। 37.420।।
ब्राह्मण जो व्यवसाय की इच्छा रखते हैं, वे तब स्वयं को उनके सामने प्रस्तुत करेंगे।
धीरे-धीरे सभी लोग दूर जा रहे थे 37.421।
थका हुआ अवशेष युग के अंत में क्षय हो जाएगा।
उसी दिन जिस दिन भगवान कृष्ण स्वर्ग में चढ़े थे 37.422।
कलियुग की संख्या सुनो जो आ गया है
यहां मानव संख्या में तीन लाख हैं
काली को साठ हजार साल तक चलने वाला भी कहा जाता है 37.423।।
हालाँकि, दिव्य हजार वर्षों में, उस शाम के हिस्से का उल्लेख है।
और जब वह थक जाएगी, तब जो कुछ उस ने किया है वह फिर से हो जाएगा। 37.424।
ऐला और इक्ष्वाकु वंश का उल्लेख मतभेदों के साथ किया गया है
इक्ष्वाकु को एक क्षत्रिय के रूप में याद किया जाता है जो सुमित्रा के अंत में मर गया 37.425।
सोमा वंश को जानने वाले जानते हैं कि ऐला एक क्षत्रिय और शांतिप्रिय है।
ये विवस्वान के पुत्र हैं जिनका उल्लेख किया गया है और जो उनकी कीर्ति को बढ़ाते हैं। 37.426।
अतीत और वर्तमान के साथ-साथ वे जो अभी तक नहीं आए हैं।
वंश में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का उल्लेख मिलता है। 37.427।
हर युग में हजारों महापुरुष गुजरे हैं।
प्रत्येक परिवार में नामों की संख्या बहुत बड़ी है। 37.428।
मैंने बार-बार इसका जिक्र नहीं किया है
वैवस्वत काल में निमि वंश का अंत हो जाता है 37.429।
उसी काल में, जिसे युग कहा जाता है, क्षत्रिय प्राप्त होंगे।
मैं तुम को वैसा ही बताऊंगा, और जैसा मैं कहता हूं, वैसा ही तुम को सुनूंगा। 37.430।
इन्हें पूर्वजों का राजा और इक्ष्वाकु भी माना जाता है
वह महान योगबल से संपन्न होकर काल्पा गाँव में बस गया 37.431।
सुवर्चस सोम के पुत्र होंगे और इक्ष्वाकु उनके पुत्र होंगे
ये दोनों चौबीसवें युग में क्षत्रियों के अग्रगण्य थे। 37.432।
न ही बीसवें युग में सोम वंश की शुरुआत होगी।
देवपिरसा की पत्नी राजा ऐलादी होगी 37.433।
ये दोनों चारों युगों में क्षत्रियों को प्राप्त होंगे।
इस प्रकार इसे हर जगह समझा जाना चाहिए लेकिन बच्चों की विशेषताओं के लिए 37.434।
थके हुए कलियुग में, लेकिन उस भविष्य में, निर्मित युग में।
त्रेतायुग की शुरुआत में फिर से उनके साथ सात ऋषि थे 37.435।
ये दोनों गोत्रों और क्षत्रियों के प्रवर्तक होंगे
द्वापर भाग में क्षत्रिय ऋषि मुनियों के पास नहीं रहते 37.436।
समय में, कृतयुग में, और थके हुए त्रेतायुग में, फिर से।
वे फिर से ब्राह्मणों और क्षत्रियों के बीज बनेंगे। 37.437।
ब्रह्मांड में रहने वाली इन सभी चीजों के बारे में भी यही सच है।
सप्तर्षि राजाओं सहित हर युग में संतान प्राप्ति के लिए 37.438।
ब्राह्मणों ने कहा है कि क्षत्रिय का नाता तोड़ना है।
आपने सात मानवों के वंशजों के बारे में भी सुना होगा 37.439।
युगों की परंपरा और ब्राह्मणों और क्षत्रियों की उत्पत्ति।
जो शामिल हैं उनका विनाश उनकी भागीदारी के समान है 37.440।।
सप्तर्षि जानते हैं कि वे दीर्घायु हों और नष्ट हों।
संयोजन के इस क्रम से ऐलेक्ष्वाकु वंश के ब्राह्मण 37.441।।
त्रेता में उत्पन्न होना और कलियुग में फिर से क्षय होना।
वे मन्वंतरों के अंत तक युगों के नाम का पालन करते हैं 37.442।।
जब जमदग्नि के पुत्र राम ने कोई क्षत्रिय नहीं छोड़ा
सभी राजवंश क्षत्रियों और पृथ्वी के शासकों द्वारा बनाए गए थे।
मैं दोनों वंशों के कार्यों का भी वर्णन करूँगा 37.443।।
इक्ष्वाकुओं के आनंद, ऐला का स्वभाव बदल जाता है।
राजाओं को रैंकों में विभाजित किया गया था और इसलिए अन्य क्षत्रिय राजा थे। 37.444।
ऐल वंश के प्रसिद्ध राजा इक्ष्वाकुओं के भी राजा थे
उनमें से एक सौ पवित्राओं के परिवारों द्वारा पूरे किए गए थे 37.445।।
भोजों की चौड़ाई भोजों की चौड़ाई से दोगुनी अनुमानित है।
चौंतीस क्षत्रिय को दिशाओं के अनुसार चार भागों में बांटा गया है। 37.446।।
जो उनमें घटी वही बातें कह रहे हैं, उनकी भी सुनो।
एक सौ प्रतिविंध्य, एक सौ सर्प और एक सौ घोड़े थे। 37.447।
धृतराष्ट्र और जनमेजय, एक सौ अस्सी।
ब्रह्मा द्वारा उन्हें एक सौ वीर पुरुष दिए गए थे 37.448।।
फिर एक सौ पुरोम थे, जैसे श्वेत काश और कुश।
इसके बाद अन्य हजार ऐसे हैं जिन्होंने सौ बिंदुओं को पार किया है। 37.449।
उन सभी ने घोड़े की बलि दी और लाखों उपहार दिए।
इस प्रकार सैकड़ों और हजारों शाही ऋषियों का निधन हो गया 37.450 ₹।
मनु और वैवस्वत मनु के वर्तमान काल में जो कुछ भी हुआ
कहा जाता है कि उन्हीं के कहने से उनके वंशज इस संसार में उत्पन्न हुए 37.451।
क्या उनके वंशजों की वंशावली के बारे में विस्तार से बताना संभव है
यानी सैकड़ों वर्षों में भी भूत और भविष्य के उपयोग से। 37.452।।
वैवस्वत के अंतराल में अट्ठाईस युग बीत चुके हैं।
इन वचनों को सुनो जो राजर्षियों के साथ सिखाए गए थे 37.453।।
और चौवालीस अन्य जो राजाओं के संग रहेंगे।
फिर वैवस्वत के अंत में विशिष्ट युगों का पता चलता है 37.454।
मैंने तुम्हें यह सब संक्षेप में और विस्तार से बता दिया है
फिर, प्रचुरता के कारण, वे युगों के साथ नहीं हो सकते। 37.455।।
ययाति के ये पच्चीस पुत्र राजाओं के हितैषी हैं।
मैंने उन लोगों का भी उल्लेख किया है जो मेरे संसार को बनाए रखते हैं 37.456।
और उसे इस संसार की सर्वोत्तम और दुर्लभ वस्तुएँ प्राप्त होती हैं।
वह दीर्घ आयु, यश, धन, पुत्र और अनंत स्वर्ग को प्राप्त करता है। 37.457।
धारण करने और सुनने से वे लोकों को धारण करते हैं।
हे ब्राह्मणों मैंने तुम्हें माया के तीसरे चरण का वर्णन इस प्रकार किया है
मैं विस्तार से और पूर्वता के क्रम में और क्या कह सकता हूं? 37.458।

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यह श्रीमहापुराण के अनुषंगपद का सैंतीसवाँ अध्याय है, जो पवन द्वारा बोला गया है। 37।। यह परिशिष्ट है।*

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सप्तैव तु भविष्यन्ति दशाभीरास्ततो नृपाः।
सप्त गर्दभिनश्चापि ततोऽथ दश वै शकाः। ३७.३५३।

अनुवाद:-
तब सात राजा होंगे और दश अहीर होंगे
सात गर्दभि और फिर दस शक। 37.353।


तान् सर्वान् कीर्त्तयिष्यामि भविष्ये पठितान्नृपान्।
तेभ्यः परे च ये चान्ये उत्पत्स्यन्ते महीक्षितः। ३७.२६३।

मैं उन सभी राजाओं का उल्लेख करूंगा जिन्हें मैं भविष्य में पढ़ूंगा
उनसे और उनसे परे और अन्य जो पृथ्वी के राजा उत्पन्न होंगे 37.263।।

क्षत्राः पारशवाः शूद्रास्तथा ये च द्विजातयः।
अन्धाः शकाः पुलिन्दाश्च तूलिका यवनैः सह । ३७.२६४।

क्षत्रिय, परशव, शूद्र और वे भी जो ब्राह्मण हैं।
यवनों के साथ अन्धे शक और पुलिन्द तूलिक 37.264।

कैवर्त्ताभीरशबरा ये चान्ये म्लेच्छजातयः।
वर्षाग्रतः प्रवक्ष्यामि नामतश्चैव तान्नृपान् ।। ३७.२६५ ।।

अनुवाद:-कैवर्त, अभीर, शबर और म्लेच्छों की अन्य सभी जातियाँ। वर्षा होने के पूर्व मैं उन राजाओं का नाम लेकर वर्णन करूँगा 37.265।

अधिसामकृष्णः सोऽयं साम्प्रतं पौरवान्नृपः।
तस्यान्ववाये वक्ष्यामि भविष्ये तावतो नृपान् ।। ३७.२६६ ।।

अधिसामकृष्णपुत्रो निर्वक्रे भविता किल।
गङ्गयापहृते तस्मिन्नगरे नागसाह्वये।
त्यक्त्वा च तं सुवासञ्च कौशाम्ब्यां स निवत्स्यति ।। ३७.२६७ ।।
भविष्यदुष्णस्तत्पुत्र उष्णाच्चित्ररथः स्मृतः।
शुचिद्रथश्चित्ररथाद्‌वृतिमांश्च शुचिद्रथात् ।। ३७.२६८ ।।
सुषेणो वै महावीर्यो भविष्यति महायशाः।
तस्मात्सुषेणाद्भविता सुतीर्थो नाम पार्थिवः ।। ३७.२६९ ।।
रुचः सुतीर्थाद्भविता त्रिचक्षो भविता ततः।
त्रिचक्षस्य तु दायादो भविता वै सुखीबलः ।। ३७.२७० ।।
सुखीबलसुतश्चापि भाव्यो राजा परिप्लुतः।
परिप्लुतसुतश्चापि भविता सुनयो नृपः ।। ३७.२७१ ।।
मेधावी सुनयस्याथ भविष्यति नराधिपः।
मेधाविनः सुतश्चापि दण्डपाणिर्भविष्यति ।। ३७.२७२ ।।
दण्डपाणेर्निरामित्रे निरामित्राच्च क्षेमकः।
पञ्चविंशनृपा ह्येते भविष्याः पूर्ववंशजाः ।। ३७.२७३ ।।
अत्रानुवंशश्लोकोऽयं गीतो विप्रैः पुराविदैः।
ब्रह्मक्षत्रस्य यो योनिर्वंशो देवर्षिसत्कृतः ।। ३७.२७४ ।।
क्षेमकं प्राप्य राजानं संस्थां प्राप्स्यति वै कलौ।
इत्येष पौरवो वंशो यथावदनुकीर्त्तितः।३७.२७५ ।।
धीमतः पाण्डुपुत्रस्य ह्यर्जुनस्य महात्मनः।
अत ऊर्द्ध्वं प्रवक्ष्यामि इक्ष्वाकूणां महात्मनाम् ।। ३७.२७६ ।।
बृहद्रथस्य दायादो वीरो राजा बृहत्क्षयः ।
ततः क्षयः सुतस्तस्य वत्सव्यूहस्ततः क्षयात् ।। ३७.२७७ ।।
वत्सव्यूहात्प्रतिव्यूहस्तस्य पुत्रो दिवाकरः।
यश्च सांप्रतमध्यास्त अयोध्यां नगरीं नृपः ।। ३७.२७८ ।।
दिवाकरस्य भविता सहदेवो महायशाः।
सहदेवस्य दायादो बृहदश्वो भविष्यति।३७.२७९।
तस्य भानुरथो भाव्यः प्रतीताश्वश्च तत्सुतः।
प्रतीताश्वसुतश्चापि सुप्रतीतो भविष्यति ।। ३७.२८० ।।
सहदेवः सुतस्तस्य सुनक्षत्रश्च तत्सुतः। ३७.२८१।
किन्नरस्तु सुनक्षत्राद्भविष्यति परंतपः।
भविता चान्तरिक्षस्तु किन्नरस्य सुतो महान् ।। ३७.२८२ ।।
अन्तरिक्षात्सुपर्णस्तु सुपर्णाच्चाप्यमित्रजित्।
पुत्रस्तस्य भरद्वाजो धर्मी तस्य सुतः स्मृतः।
पुत्रः कृतञ्जयो नाम धर्मिणः स भविष्यति।
कृतञ्जयसुतो व्रातो तस्य पुत्रो रणञ्जयः ।। ३७.२८३ ।।
भविता सञ्जयश्चापि वीरो राजा रणञ्जयात्।
सञ्जयस्य सुतः शाक्यः शाक्याच्छुद्धोदनोऽभवत् ।। ३७.२८४ ।।
शुद्धोदनस्य भविता शाक्यार्थे राहुलः स्मृतः।
प्रसेनजित्ततो भाव्यः क्षुद्रको भविता ततः। ३७.२८५।
क्षुद्रकात्क्षुलिको भाव्यः क्षुलिकात्सुरथः स्मृतः।
सुमित्रः सुरथस्यापि अन्त्यश्च भविता नृपः ।। ३७.२८६ ।।

एते ऐक्ष्वाकवाः प्रोक्ता भवितारः कलौ युगे।
बृहद्बलान्वये जाता भवितारः कलौ युगे।
शूराश्च कृतविद्याश्च सत्यसन्धा जितेन्द्रियाः ।। ३७.२८७ ।।
अत्रानुवंशश्लोकोऽयं भविष्यज्ञैरुदाहृतः।
इक्ष्वाकूणामयं वंशः सुमित्रान्तो भविष्यति।
सुमित्रं प्राप्य राजानं संस्थां प्राप्स्यति वै कलौ।
इत्येतन्मानवं क्षेत्रमैलञ्च समुदाहृतम्।३७.२८८ ।।
अत ऊर्द्ध्वं प्रवक्ष्यामि मागधेयान्बृहद्रथान्।
जरासन्धस्य ये वंशे सहदेवान्वये नृपाः ।। ३७.२८९ ।।
अतीता वर्त्तमानाश्च भविष्याश्च तथा पुनः।
प्राधान्यतः प्रवक्ष्यामि गदतो मे निबोधत ।। ३७.२९० ।।
संग्रामे भारते तस्मिन् सहदेवो निपातितः।
सोमाधिस्तस्य तनयो राजर्षिः सगिरिव्रजे ।। ३७.२९१ ।।
पञ्चाशतं तथाष्टौ च समा राज्यमकारयत्।
श्रुतश्रवाः चतुःषष्टिसमास्तस्य सुतोऽभवत्।
अयुतायुस्तु षड्विंशं राज्यं वर्षाण्यकारयत्।
समाः शतं निरामित्रो महीं भुक्त्वा दिवङ्गतः ।। ३७.२९२ ।।
पञ्चाशतं समाः षट् च सुकृत्तः प्राप्तवान्महीम्।
त्रयोविंशं बृहत्कर्मा राज्यं वर्षाण्यकारयत् ।। ३७.२९३ ।।
सेनाजित्साम्प्रतं चापि एतां वै भुज्यते समाः।
श्रुतञ्जयस्तु वर्षाणि चत्वारिंशद्भविष्यति ।। ३७.२९४ ।।
महाबाहुर्महाबुद्धिर्महाभीमपराक्रमः।
पञ्चत्रिंशत्तु वर्षाणि महीं पालयिता नृपः ।। ३७.२९५ ।।
अष्टपञ्चा शतं चाब्दान् राज्ये स्थास्यति वै शुचिः।
अष्टाविंशत्समाः पूर्णाः क्षेमो राजा भविष्यति ।। ३७.२९६ ।।
भुवतस्तु चतुःषष्टीराज्यं प्राप्स्यति वीर्य्यवान्।
पञ्चवर्षाणि पूर्णानि धर्मनेत्रो भविष्यति ।। ३७.२९७ ।।
भोक्ष्यते नृपतिश्चैव ह्यष्टपञ्चाशतं समाः।
अष्टात्रिंशत्समा राज्यं सुव्रतस्य भविष्यति ।। ३७.२९८ ।।
चत्वारिंशद्दशाष्टौ च दृढसेनो भविष्यति।
त्रयस्त्रिंशत्तु वर्षाणि सुमतिः प्राप्स्यते ततः ।। ३७.२९९ ।।
द्वाविंशतिसमा राज्यं सुचलो भोक्ष्यते ततः।
चत्वारिंशत्समा राजा सुनेत्रो भोक्ष्यते ततः ।। ३७.३०० ।।
सत्यजित्पृथिवीराज्यं त्र्यशीतिं भोक्ष्यते समाः।
प्राप्येमां वीरजिच्चापि पञ्चत्रिंशद्भविष्यति ।। ३७.३०१ ।।
अरीञ्जयस्तु वर्षाणि पञ्चाशत्प्राप्स्यते महीम्।
द्वात्रिंशच्च नृपा ह्येते भवितारो बृहद्रथाः ।। ३७.३०२ ।।
पूर्णं वर्षसहस्रं वै तेषां राज्यं भविष्यति।
बृहद्रथेष्वतीतेषु वीतहोत्रेषु वर्तिषु ।। ३७.३०३ ।।
मुनिकः स्वामिनं हत्वा पुत्रं समभिषेक्ष्यति।
मिषतां क्षत्रियाणां हि प्रद्योतो मुनिको बलात् ।। ३७.३०४ ।।
स वै प्रणतसामन्तो भविष्ये नयवर्ज्जितः ।
त्रयोविंशत्समा राजा भविता स नरोत्तमः ।। ३७.३०५ ।।
चतुर्विंशत्समा राजा पालको भविता ततः।
विशाखयूपो भविता नृपः पञ्चाशतीं समाः ।। ३७.३०६ ।।
एकत्रिंशत्समा राज्यमजकस्य भविष्यति।
भविष्यति समा विंशत्तत्सुतो वर्त्तिवर्द्धनः ।। ३७.३०७ ।।
अष्टात्रिंशच्छतं भाव्याः प्राद्योताः पञ्च ते सुताः।
हत्वा तेषां यशः कृत्स्नं शिशुनाको भविष्यति ।। ३७.३०८ ।।
वाराणस्यां सुतस्तस्य संप्राप्स्यति गिरिव्रजम्।
शिशुनाकस्य वर्षाणि चत्वारिंशद्भविष्यति ।। ३७.३०९ ।।
शकवर्णः सुतस्तस्य षट्‌त्रिंशच्च भविष्यति।
ततस्तु विंशतिं राजा क्षेमवर्मा भविष्यति ।। ३७.३१० ।।
अजातशत्रूर्भविता पञ्चविंशत्समा नृपः।
चत्वारिंशत्समा राज्यं क्षत्रौजाः प्राप्स्यते ततः ।। ३७.३११ ।।
अष्टाविंशत्समा राजा विविसारो भविष्यति।
पञ्चविंशत्समा राजा दर्शकस्तु भविष्यति ।। ३७.३१२ ।।
उदायी भविता तस्मात्त्रयस्त्रिंशत्समा नृपः।
स वै पुरवरं राजा पृथिव्यां कुसुमाह्वयम्।
गङ्गाया दक्षिणे कूले चतुर्थेऽब्दे करिष्यति ।। ३७.३१३ ।।
द्वाचत्वारिंशत्समा भाव्यो राजा वै नन्दिवर्द्धनः।
चत्वारिंशत्त्रयञ्चैव महा नन्दी भविष्यति ।। ३७.३१४ ।।
इत्येते भवितारौ वै शैशुनाका नृपा दश।
अतानि त्रीणि वर्षाणि द्विषष्ट्यभ्यधिकानि तु ।। ३७.३१५ ।।
शैशुनाका भविष्यन्ति तावत्कालं नृपाः परे।
एतैः सार्द्धं भविष्यंति राजानः क्षत्रबान्धवाः ।। ३७.३१६ ।।
ऐक्ष्वाकवाश्चतुर्विंशत्पाञ्चालाः पञ्चविंशतिः।
कालकास्तु चतुर्व्विंशच्चतुर्व्विंशत्तु हैहयाः ।। ३७.३१७ ।।
द्वात्रिंशद्वै कलिङ्गास्तु पञ्चविंशत्तथा शकाः।
कुरवश्चापि षड्विंशदष्टाविंशति मैथिलाः ।। ३७.३१८ ।।
शूरसे नास्त्रयोविंशद्वीतिहोत्राश्च विंशतिः।
तुल्यकालं भविष्यन्ति सर्व एव महीक्षितः ।। ३७.३१९ ।।
महानन्दिसुतश्चापि शूद्रायां कालसंवृतः।
उत्पत्स्यते महापद्मः सर्वक्षत्रान्तरे नृपः ।। ३७.३२० ।।
ततःप्रभृति राजानो भविष्याः शूद्रयोनयः।
एकराट् स महापद्म एकच्छत्रो भविष्यति ।। ३७.३२१ ।।
अष्टा विंशतिवर्षाणि पृथिवीं पालयिष्यति।
सर्वक्षत्रहृतोद्धृत्य भाविनोऽर्थस्य वै बलात् ।। ३७.३२२ ।।
सहस्रास्तत्सुता ह्यष्टौ समा द्वादश ते नृपाः।।
महापद्मस्य पर्याये भविष्यन्ति नृपाः क्रमात् ।। ३७.३२३ ।।
उद्धरिष्यति तान् सर्वान् कौटिल्यो वै द्विरष्टभिः।
भुक्त्वा महीं वर्षशतं नन्देन्दुः स भविष्यति ।। ३७.३२४ ।।
चन्द्रगुप्तं नृपं राज्ये कौटिल्यः स्थापयिष्यति।
चतुर्विंशत्समा राजा चन्द्रगुप्तो भविष्यति ।। ३७.३२५ ।।

भविता भद्र सारस्तु पञ्चविंशत्समा नृपः।
षड्विंशत्तु समा राजा ह्यशोको भविता नृषु ।। ३७.३२६ ।।
तस्य पुत्रः कुनालस्तु वर्षाण्यष्टौ भविष्यति।
कुनाल सूनुरष्टौ च भोक्ता वै बन्धुपालितः ।। ३७.३२७ ।।
बन्धुपालितदायादो दशमानीन्द्रपालितः।
भविता सप्तवर्षाणि देववर्म्मा नराधिपः ।। ३७.३२८ ।।
राजा शतधरश्चाष्टौ तस्य पुत्रो भविष्यति।
बृहदश्वश्च वर्षाणि सप्त वै भविता नृपः ।। ३७.३२९ ।।
इत्येते नव भूपा ये भोक्ष्यन्ति च वसुन्धराम्।
सप्तत्रिंशच्छतं पूर्णं तेभ्यस्तु गौर्भविष्यति ।। ३७.३३० ।।
पुष्पमित्रस्तु सेनानीरुद्धृत्य वै बृहद्रथम्।
कारयिष्यति वै राज्यं समाः षष्टिं सदैव तु ।। ३७.३३१ ।।

पुष्पमित्रसुताश्चाष्टौ भविष्यन्ति समा नृपाः।
भविता चापि तज्ज्येष्ठः सप्तवर्षाणि वै ततः ।। ३७.३३२ ।।
वसुमित्रः सुतो भाव्यो दशवर्षाणि पार्थिवः।
ततो ध्रुकः समा द्वे तु भविष्यति सुतश्च वै ।। ३७.३३३ ।।
भविष्यन्ति समास्तस्मात्तिस्र एव पुलिन्दकाः।
राजा घोषसुतश्चापि वर्षाणि भविता त्रयः ।। ३७.३३४ ।।
ततो वै विक्रमित्रस्तु समा राजा ततः पुनः।
द्वात्रिंशद्भविता चापि समा भागवतो नृपः ।। ३७.३३५ ।।
भविष्यति सुतस्तस्य क्षेमभूमिः समा दश।
दशैते तुङ्गराजानो भोक्ष्यन्तीमां वसुन्धरम् ।। ३७.३३६ ।।
शतं पूर्णं दश द्वे च तेभ्यः किं वा गमिष्यति।
अपार्थिवसुदेवन्तु बाल्याद्व्यसनिनं नृपम् ।। ३७.३३७ ।।
देवभूमिस्ततोऽन्यश्च श्रृङ्गेषु भविता नृपः।
भविष्यति समा राजा नव कण्ठायनस्तु सः ।। ३७.३३८ ।।
भूतिमित्रः सुतस्तस्य चतुर्व्विंशद्भविष्यति।
भविता द्वादश समास्तस्मान्नारायणो नृपः ।। ३७.३३९ ।।
सुशर्म्मा तत्सुतश्चापि भविष्यति समा दश।
चतुरस्तुङ्गकृत्यास्ते नृपाः कण्ठायना द्विजाः ।। ३७.३४० ।।
भाव्याः प्रणतसामन्ताश्चत्वारिंशच्च पञ्च च।
तेषां पर्य्यायकाले तु तरन्धा तु भविष्यति ।। ३७.३४१ ।।
कण्ठायनमथोद्धृत्य सुशर्म्माणं प्रसह्य तम्।
श्रृङ्गाणां चापि यच्छिष्टं क्षययित्वा बलं तदा।
सिन्धुको ह्यन्ध्रजातीयः प्राप्स्यतीमां वसुन्धराम् ।। ३७.३४२ ।।
त्रयोविंशत्समा राजा सिन्धुको भविता त्वथ।
अष्टौ भातश्च वर्षाणि तस्माद्दश भविष्यति ।। ३७.३४३ ।।
श्रीसातकर्णिर्भविता तस्य पुत्रस्तु वै महान्।
पञ्चाशतं समाः षट् च सातकर्णिर्भविष्यति ।। ३७.३४४ ।।
आपादबद्धो दश वै तस्य पुत्रो भविष्यति।
चतुर्व्विंशत्तु वर्षाणि षट् समा वै भविष्यति ।। ३७.३४५ ।।
भविता नेमिकृष्णस्तु वर्षाणां पञ्चविंशतिम्।
ततः संवत्सरं पूर्णं हालो राजा भविष्यति ।। ३७.३४६ ।।
पञ्च सप्तक राजानो भविष्यन्ति महाबलाः।
भाव्यः पुत्रिकषेणस्तु समाः सोऽप्येकविंशतिम् ।। ३७.३४७ ।।
सातकर्णिर्वर्षमेकं भविष्यति नराधिपः।
अष्टाविंशत्तु वर्षाणि शिवस्वामी भविष्यति ।। ३७.३४८ ।।
राजा च गौतमीपुत्र एकविंशत्समा नृषु।
एकोनविंशतिं राजा यज्ञश्रीः सातकर्ण्यथ ।। ३७.३४९ ।।
षडेव भविता तस्माद्विजयस्तु समा नृपः।
दण्डश्रीः सातकर्णी च तस्य पुत्रः समास्त्रयः ।। ३७.३५० ।।
पुलोवापि समाः सप्त अन्येषाञ्च भविष्यति ।
इत्येते वै नृपास्त्रिंशदन्ध्रा भोक्ष्यन्ति ये महीम् ।। ३७.३५१ ।।
समाः शतानि चत्वारि पञ्च षड्वै तथैव च।
अन्ध्राणां संस्थिताः पञ्च तेषां वंशाः समाः पुनः ।। ३७.३५२ ।।
सप्तैव तु भविष्यन्ति दशाभीरास्ततो नृपाः।
सप्त गर्दभिनश्चापि ततोऽथ दश वै शकाः। ३७.३५३।

यवनाष्टौ भविष्यन्ति तुषारास्तु चतुर्दश।
त्रयोदश मरुण्डाश्च मौना ह्यष्टादशैव तु।३७.३५४।
अन्ध्रा भोक्ष्यन्ति वसुधां शते द्वे च शतं च वै।
शतानि त्रीण्यशीतिञ्च भोक्ष्यन्ति वसुधां शकाः ।। ३७.३५५ ।।
अशीतिञ्चैव वर्षाणि भोक्तारो यवना महीम्।
पञ्चवर्षशतानीह तुषाराणां मही स्मृता ।।
३७.३५६ ।।
शतान्यर्द्धचतुर्थानि भवितारस्त्रयोदश।
मरुण्डा वृषलैः सार्द्धं भाव्यान्या म्लेच्छजातयः ।। ३७.३५७ ।।
शतानि त्रीणि भोक्ष्यन्ति म्लेच्छा एकादशैव तु।
तच्छन्नेन च कालेन ततः कोलिकिला वृषाः ।। ३७.३५८ ।।
ततः कोलिकिलेभ्यश्च विन्ध्यशक्तिर्भविष्यति।
समाः षण्णवतिं त्रात्वा पृथिवीं च समेष्यति ।। ३७.३५९ ।।
वृषान् वै दिशकांश्चापि भविष्याश्च निबोधत।
शेषस्य नागराजस्य पुत्रः स्वरपुरञ्जयः ।। ३७.३६० ।।
भोगी भविष्यते राजा नृपो नागकुलोद्वहः।
सदाचन्द्रस्तु चन्द्रांशो द्वितीयो नखवांस्तथा ।। ३७.३६१ ।।
धनधर्मा ततश्चापि चतुर्थो विंशजः स्मृतः।
भूतिनन्दस्ततश्चापि वैदेशे तु भविष्यति ।। ३७.३६२ ।।
अङ्गानां नन्दनस्यान्ते मधुनन्दिर्भविष्यति।
तस्य भ्राता यवीयांस्तु नाम्ना नन्दियशाः किल ।। ३७.३६३ ।।
तस्यान्वये भविष्यन्ति राजानस्ते त्रयस्तु वै।
दोहित्रः शिशुको नाम पुरिकायां नृपोऽभवत् ।। ३७.३६४ ।।
विन्ध्यशक्तिसुतश्चापि प्रवीरो नाम वीर्यवान् ।
भोक्ष्यन्ति च समाः षष्टिं पुरीं काञ्चनकाञ्च वै ।। ३७.३६५ ।।
यक्ष्यन्ति वाजपेयैश्च समाप्तवरदक्षिणैः।
तस्य पुत्रास्तु चत्वारो भविष्यन्ति नराधिपाः ।। ३७.३६६ ।।
विन्ध्यकानां कुलेऽतीते नृपा वै बाह्लिका स्त्रयः।
सुप्रतीको नभीरस्तु समा भोक्ष्यति त्रिंशतिम् ।। ३७.३६७ ।।
शक्यमा नाम वै राजा माहिषीनां महीपतिः।
पुष्पमित्रा भविष्यन्ति पट्टमित्रास्त्रयोदश ।। ३७.३६८ ।।
मेकलायां नृपाः सप्त भविष्यन्ति च सत्तमाः।
कोमलायान्तु राजानो भविष्यन्ति महाबलाः ।। ३७.३६९ ।।
मेघा इति समाख्याता बुद्धिमन्तो नवैव तु।
नैषधाः पार्थिवाः सर्व्वे भविष्यन्त्यामनुक्षयात् ।। ३७.३७० ।।
नलवंशप्रसूतास्ते वीर्यवन्तो महाबलाः।
मागधानां महावीर्यो विश्वस्फानिर्भविष्यति ।। ३७.३७१ ।।
उत्साद्य पार्थिवान् सर्व्वान्सोऽन्यान् वर्णान् करिष्यति।
कैवर्त्तान् पञ्चकांश्चैव पुलिन्दान् ब्राह्मणांस्तथा ।। ३७.३७२ ।।
स्थापयिष्यन्ति राजानो नानादेशेषु तेजसा।
विश्वस्फानिर्महासत्त्वो युद्धे विष्णुसमो बली ।। ३७.३७३ ।।
विश्वस्फानिर्नरपतिः क्लीबा कृतिरिवोच्यते।
उत्सादयित्वा क्षत्रन्तु क्षत्रमन्यत् करिष्यति ।। ३७.३७४ ।।
देवान् पितॄंश्च विप्रांश्च तर्पयित्वा सकृत्पुनः।
जाह्नवीतीरमासाद्य शरीरं यस्यते बली ।। ३७.३७५ ।।
संन्यस्य स्वशरीरन्तु शक्रलोकं गमिष्यति।
नवनाकास्तु भोक्ष्यन्ति पुरीं चम्पावतीं नृपाः ।। ३७.३७६ ।।
मथुराञ्च पुरीं रम्यां नागा भोक्ष्यन्ति सप्त वै।
अनुगङ्गं प्रयागञ्च साकेतं मगधांस्तथा।
एताञ्जनपदान् सर्व्वान् भोक्ष्यन्ते गुप्तवंशजाः ।। ३७.३७७ ।।

________________
निषधान् यदुकांश्चैव शैशी तान् कालतोपकान्।
एताञ्जनपदान् सर्व्वान् भोक्ष्यन्ति मणिधान्यजाः ।। ३७.३७८ ।।

अनुवाद:- निषाद और यदुक, शशि, वे कालातोपक।
वे रत्नों और अनाज से पैदा हुए इन सभी काजलों जनपदो को भोग करेंगे। 37.378।।

कोशलांश्चान्ध्रपौण्ड्रांश्च ताम्रलिप्तान् ससागरान्।
चम्पां चैव पुरीं रम्यां भोक्ष्यन्ति देवरक्षिताम् ।। ३७.३७९ ।।
कालिङ्गा महिषाश्चैव महेन्द्रनिलयाश्च ये।
एताञ्जनपदान् सर्व्वान् पालयिष्यति वै गुहः ।। ३७.३८० ।।
स्त्रीराष्ट्रं भक्ष्यकांश्चैव भोक्ष्यते कनकाह्वयः।
तुल्यकालं भविष्यन्ति सर्वे ह्येते महीक्षितः ।। ३७.३८१ ।।
अल्पप्रसादा ह्यनृता महाक्रोधाः ह्यधार्मिकाः।
भविष्यन्तीह यवना धर्मतः कामतोऽर्थतः ।। ३७.३८२ ।।
नैव मूर्द्धाभिषिक्तास्ते भविष्यन्ति नराधिपाः।
युगदोषदुराचारा भविष्यन्ति नृपास्तु ते ।। ३७.३८३ ।।
स्त्रीणां बलवधेनैव हत्वा चैव परस्परम्।
भोक्ष्यन्ति कलिशेषे तु वसुधां पार्थिवास्तथा ।। ३७.३८४ ।।
उदितोदितवंशास्ते उदितास्तमितास्तथा ।
भविष्यन्तीह पर्याये कालेन पृथिवीक्षितः ।। ३७.३८५ ।।
विहीनास्तु भविष्यन्ति धर्म्मतः कामतोऽर्थतः।
तैर्विमिश्रा जनपदा म्लेच्छाचाराश्च सर्वशः ।। ३७.३८६ ।।
विपर्य्ययेन वर्त्तन्ते नाशयिष्यन्ति वै प्रजाः।
लुब्धानृतरताश्चैव भवितारस्तदा नृपाः।३७.३८७ ।।

तेषां व्यतीते पर्याये बहुस्त्रीके युगे तदा।
लवाल्लवं भ्रश्यमाना आयूरूपबलश्रुतैः ।। ३७.३८८ ।।

तथा गतास्तु वै काष्ठां प्रजासु जगतीश्वराः ।
राजानः सम्प्रणश्यन्ति कालेनोपहतास्तदा ।। ३७.३८९ ।।

कल्किनोपहताः सर्वे म्लेच्छा यास्यन्ति सर्वशः।
अधार्मिकाश्च तेऽत्यर्थं पाषण्डाश्चैव सर्वशः ।। ३७.३९० ।।

प्रनष्टे नृपशब्दे च सन्ध्याश्लिष्टे कलौ युगे।
किंञ्चिच्छिष्टाः प्रजास्ता वै धर्म्मे नष्टेऽपरिग्रहाः ।। ३७.३९१ ।।

असाधना हताश्वासा व्याधिशोकेन पीडिताः।
अनावृष्टिहताश्चैव परस्परवधेन च ।। ३७.३९२ ।।

अनाथा हि परित्रस्ता वार्त्तामुत्सृज्य दुःखिताः।
त्यक्त्वा पुराणि ग्रामांश्च भविष्यन्ति वनौकसः ।। ३७.३९३ ।।
एवं नृपेषु नष्टेषु प्रजास्त्यक्त्वा गृहाणि तु।
नष्टे स्नेहे दुरापन्ना भ्रष्टस्नेहाः सुहृज्जनाः ।। ३७.३९४ ।।
वर्णाश्रमपरिभ्रष्टाः सङ्करं घोरमास्थिताः।
सरित्पर्वतसेविन्यो भविष्यन्ति प्रजास्तदा ।। ३७.३९५।

सरितः सागरानूपान् सेवन्ते पर्वतानि च।
अङ्गान् कलिङ्गान् वङ्गांश्च काश्मीरान् काशिकोशलान् ।। ३७.३९६ ।।
ऋषिकान्तगिरिद्रोणीः संश्रयिष्यन्ति मानवाः।
कृत्स्नं हिमवतः पृष्ठं कूलं च लवणाम्भसः ।। ३७.३९७ ।।
अरण्यान्यभिपत्स्यन्ति ह्यार्य्या म्लेच्छजनैः सह।
मृगैर्मीनैर्विहङ्गैश्च श्वापदैस्तक्षुभिस्तथा।
मधुशाकफलैर्मूलैर्वर्त्तयिष्यन्ति मानवाः ।। ३७.३९८ ।।
चीरं पर्णञ्च विविधं वल्कलान्यजिनानि च।
स्वयं कृत्वा विवत्स्यन्ति यथा मुनिजनास्तथा ।। ३७.३९९ ।।
बीजान्नानि तथा निम्नेस्वीहन्तः काष्ठशङ्कुभिः।
अजैडकं खरोष्ट्रञ्च पालयिष्यन्ति यत्नतः ।। ३७.४०० ।।
नदीर्वत्स्यन्ति तोयार्थे कूलमाश्रित्य मानवाः।
पार्थिवान् व्यवहारेण विबाधन्तः परस्परम् ।। ३७.४०१ ।।
बहुमन्याः प्रजाहीनाः शौचाचारविवर्जिताः।
एवं भविष्यन्ति नरास्तदाधर्म्मे व्यवस्थिताः ।। ३७.४०२ ।।
हीनाद्धीनांस्तथा धर्म्मान् प्रजाः समनुवर्त्तते।
आयुस्तदा त्रयोविंशं न कश्चिदतिवर्त्तते ।। ३७.४०३ ।।
दुर्बला विषयग्लाना जरया संपरिप्लुताः।
पत्रमूलफलाहाराश्चीरकृष्णाजिनाम्बराः ।। ३७.४०४ ।।
वृत्त्यर्थमभिलिप्सन्तश्चरिष्यन्ति वसुन्धराम्।
एतत्कालमनुप्राप्ताः प्रजाः कलियुगान्तके ।। ३७.४०५ ।।
क्षीणे कलियुगे तस्मिन् दिव्ये वर्षसहस्रके।
निःशेषास्तु भविष्यन्ति सार्द्धं कलियुगेन तु।
ससन्ध्यांशे तु निःशेषे कृतं वै प्रतिपत्स्यते ।। ३७.४०६ ।।
यदा चन्द्रश्च सूर्य्यश्च तथा तिष्यबृहस्पती।
एकरात्रे भरिष्यन्ति तदा कृतयुगं भवेत् ।। ३७.४०७ ।।
एष वंशक्रमः कृत्स्नं कीर्तितो वो यथाक्रमम्।
अतीता वर्त्तमानाश्च तथैवानागताश्च ये ।। ३७.४०८ ।।
महादेवाभिषेकात्तु जन्म यावत्परिक्षितः।
एतद्वर्षसहस्रन्तु ज्ञेयं पञ्चादशदुत्तरम् ।। ३७.४०९ ।।
प्रमाणं वै तथा चोक्तं महापद्मान्तरं च यत्।
अन्तरं तच्छतान्यष्टौ षट्‌त्रिंशच्च समाः स्मृताः ।। ३७.४१० ।।
एतत्कालान्तरं भाव्या अन्ध्रान्ता ये प्रकीर्त्तिताः।
भविष्यैस्तत्र सङ्ख्याताः पुराणज्ञैः श्रुतर्षिभिः ।। ३७.४११ ।।
सप्तर्षयस्तदा प्राहुः प्रतीपे राज्ञि वै शतम्।
सप्तविंशैः शतैर्भाव्या अन्ध्राणां ते त्वया पुनः ।। ३७.४१२ ।।
सप्तविंशतिपर्य्यन्ते कृत्स्ने नक्षत्रमण्डले।
सप्तर्षयस्तु तिष्ठन्ति पर्यायेण शतं शतम्।
सप्तर्षीणां युगं ह्येतद्दिव्यया सङ्ख्यया स्मृतम् ।। ३७.४१३ ।।
सा सा दिव्या स्मृता षष्टिर्दिव्याह्नाश्चैव सप्तभिः ।
तेभ्यः प्रवर्त्तते कालो दिव्यः सप्तर्षिभिस्तु तैः ।। ३७.४१४ ।।
सप्तर्षीणान्तु ये पूर्वा दृश्यन्ते उत्तरादिशि।
ततो मध्येन च क्षेत्रं दृश्यते यत्समं दिवि ।। ३७.४१५ ।।
तेन सप्तर्षयो युक्ता ज्ञेया व्योम्नि शतं समाः।
नक्षत्राणामृषीणाञ्च योगस्यैतन्निदर्शनम् ।। ३७.४१६ ।।
सप्तर्षयो मघायुक्ताः काले पारिक्षिते शतम्।
अन्ध्रांशे स चतुर्व्विशे भविष्यन्ति मते मम ।। ३७.४१७ ।।
इमास्तदा तु प्रकृतिर्व्यापत्स्यन्ति प्रजा भृशम्।
अनृतोपहताः सर्वा धर्मतः कामतोऽर्थतः ।। ३७.४१८ ।।
श्रौतस्मार्त्ते प्रशिथिले धर्मे वर्णाश्रमे तदा।
शङ्करं दुर्बलात्मानः प्रतिपत्स्यन्ति मोहिताः ।। ३७.४१९ ।।
संसक्ताश्च भविष्यन्ति शूद्राः सार्द्धं द्विजातिभिः।
ब्राह्मणाः शूद्रयष्टारः शूद्रा वै मन्त्रयोनयः ।। ३७.४२० ।।
उपस्थास्यन्ति तान् विप्रास्तदा वै वृत्तिलिप्सवः ।
लवं लवं भ्रस्यमानाः प्रजाः सर्वाः क्रमेण तु ।। ३७.४२१ ।।
क्षयमेव गमिष्यन्ति क्षीणशेषा युगक्षये।
यस्मिन् कृष्णो दिवं यातस्तस्मिन्नेव तदा दिने ।। ३७.४२२ ।।
प्रतिपन्नः कलियुगस्तस्य सङ्ख्यां निबोधत।
सहस्राणां शतानीह त्रीणि मानुषसङ्ख्यया।
षष्टिं चैव सहस्राणि वर्षाणामुच्यते कलिः ।। ३७.४२३ ।।
दिव्ये वर्षसहस्रन्तु तत्सन्ध्यांशं प्रकीर्त्तितम्।
निःशेषे च तदा तस्मिन् कृतं वै प्रतिपत्स्यते ।। ३७.४२४ ।।
ऐल इक्ष्वाकुवंशश्च सह भेदैः प्रकीर्त्तितौ।
इक्ष्वाकोस्तु स्मृतः क्षत्रः सुमित्रान्तं विवस्वतः ।। ३७.४२५ ।।
ऐलं क्षत्रं क्षेमकान्तं सोमवंशविदो विदुः।
एते विवस्वतः पुत्राः कीर्त्तिताः कीर्त्तिवर्द्धनाः ।। ३७.४२६ ।।
अतीता वर्त्तमानाश्च तथैवानागताश्च ये।
ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः शूद्राश्चैवान्वये स्मृताः ।। ३७.४२७ ।।
युगे युगे महात्मानः समतीताः सहस्रशः।
बहुत्वान्नामधेयानां परिसंख्या कुले कुले ।। ३७.४२८ ।।
पुनरुक्ता बहुत्वाच्च न मया परिकीर्त्तिता।
वैवस्वतेऽन्तरे ह्यस्मिन् निमिवंशः समाप्यते ।। ३७.४२९ ।।
एवायान्तु युगाख्यायां यतः क्षत्रं प्रपत्स्यते ।
तथा हि कथयिष्यामि गदतो मे निबोधत ।। ३७.४३० ।।
देवापिः पौरवो राजा इक्ष्वाकोश्चैव यो मतः।
महायोगबलोपेतः कलापग्राममास्थितः ।। ३७.४३१ ।।
सुवर्च्चाः सोमपुत्रस्तु इक्ष्वाकोस्तु भविष्यति।
एतौ क्षत्रप्रणेतारौ चतुर्विंशे चतुर्युगे ।। ३७.४३२ ।।
न च विंशे युगे सोमवंशस्यादिर्भविष्यति।
देवापिरसपत्नस्तु ऐलादिर्भविता नृप:।३७.४३३ ।।
क्षत्रप्रापर्त्तकौ ह्येतौ भविष्येते चतुर्युगे।
एवं सर्वत्र विज्ञेयं सन्तानार्थे तु लक्षणम् ।। ३७.४३४ ।।
क्षीणे कलियुगे तस्मिन् भविष्ये तु कृते युगे।
सप्तर्षिभिस्तु तैः सार्द्धमाद्ये त्रेतायुगे पुनः ।। ३७.४३५ ।।
गोत्राणां क्षत्रियाणाञ्च भविष्येते प्रवर्त्तकौ।
द्वापरांशे न तिष्ठन्ति क्षत्रिया ऋषिभिः सह ।। ३७.४३६ ।।
काले कृतयुगे चैव क्षीणे त्रेतायुगे पुनः।
बीजार्थन्ते भविष्यन्ति ब्रह्मक्षत्रस्य वै पुनः ।। ३७.४३७ ।।
एवमेव तु सर्वेषु तिष्ठन्तीहान्तरेषु वै ।
सप्तर्षयो नृपैः सार्द्धं सन्तानार्थं युगे युगे ।। ३७.४३८ ।।
क्षत्रस्यैव समुच्छेदः सम्बन्धो वै द्विजैः स्मृतः।
मन्वन्तराणां सप्तानां सन्तानाश्च श्रुताश्च ते ।। ३७.४३९ ।।
परम्परा युगानाञ्च ब्रह्मक्षत्रस्य चोद्भवः।
यथा प्रवृत्तिस्तेषां वै प्रवृत्तानां तथा क्षयः ।। ३७.४४० ।।
सप्तर्षयो विदुस्तेषां दीर्घायुष्ट्वाक्षयन्तु ते।
एतेन क्रमयोगेन ऐलेक्ष्वाक्वन्वया द्विजाः ।। ३७.४४१ ।।

उत्पद्यमानास्त्रेतायां क्षीयमाणे कलौ पुनः।
अनुयान्ति युगाख्यां तु यावन्मन्वन्तरक्षयः ।। ३७.४४२ ।।
जामदग्न्येन रामेण क्षत्रे निरवशेषिते।
कृते वंशकुलाः सर्वाः क्षत्रियैर्वसुधाधिपैः।
द्विवंशकरणाश्चैव कीर्त्तयिष्ये निबोधत।३७.४४३।
ऐलस्येक्ष्वाकुनन्दस्य प्रकृतिः परिवर्त्तते।
राजानः श्रेणिबद्धास्तु तथान्ये क्षत्रिया नृपाः ।। ३७.४४४ ।।
ऐलवंशस्य ये ख्यातास्तथैवैक्ष्वाकवा नृपाः ।
तेषामेकशतं पूर्णं कुलानामभिषेकिनाम् ।। ३७.४४५ ।।
तावदेव तु भोजानां विस्तारो द्विगुणः स्मृतः ।
भजते त्रिंशकं क्षत्रं चतुर्धा तद्यथादिशम् ।। ३७.४४६ ।।
तेष्वतीताः समाना ये ब्रुवतस्तान्निबोधत।
शतं वै प्रतिविन्ध्यानां शतं नागाः शतं हयाः ।। ३७.४४७ ।।
धृतराष्ट्राश्चैकशतमशीतिर्जनमेजयाः।
शतञ्च ब्रह्मदत्तानां शीरिणां वीरिणां शतम् ।। ३७.४४८ ।।
ततः शतं पुरोमानां श्वेतकाशकुशादयः ।
ततोऽपरे सहस्रं वै येऽतीताः शतबिन्दवः ।। ३७.४४९ ।।
ईजिरे चाश्वमेधैस्ते सर्वे नियुतदक्षिणैः ।
एवं राजर्षयोऽतीताः शतशोऽथ सहस्रशः ।। ३७.४५० ।।
मनोर्वैवस्वतस्यास्मिन् वर्त्तमानेऽन्तरे तु ये ।
तेषां निबोधतोत्पन्ना लोके सन्ततयः स्मृताः ।। ३७.४५१ ।।
नु शक्यं विस्तरं तेषां सन्तानानां परम्परा।
तत्पूर्वापरयोगेन वक्तुं वर्षशतैरपि ।। ३७.४५२ ।।

अष्टाविंशद्युगाख्यास्तु गता वैवस्वतेऽन्तरे।
एता राजर्षिभिः सार्द्धं शिष्टा यास्ता निबोधत ।। ३७.४५३ ।।
चत्वारिंशच्च ये चैव भविष्याः सह राजभिः।
युगाख्यानां विशिष्टास्तु ततो वैवस्वतक्षये ।। ३७.४५४ ।।
एतद्वः कथितं सर्व्वं समासव्यासयोगतः।
पुनरुक्तं बहुत्वाच्च न शक्यन्तु युगैः सह ।। ३७.४५५ ।।
एते ययातिपुत्राणां पञ्चविंशा विशां हिताः।
कीर्त्तिताश्चामिता ये मे लोकान् वै धारयन्त्युत ।। ३७.४५६ ।।

लभते च वरेण्यञ्च दुर्लभानिह लौकिकान्।
आयुः कीर्त्तिं धनं पुत्रान् स्वर्गं चानन्त्यमश्नुते ।। ३७.४५७ ।।
धारणाच्छ्रवणाच्चैव ते लोकान् धारयन्त्युत।
इत्येष वो मयो पादस्तृतीयः कथितो द्विजाः।
विस्तरेणानुपूर्व्वी च किम्भूयो वर्त्तयाम्यहम् ।। ३७.४५८ ।।
इति श्रीमहापुराणे वायुप्रोक्ते अनुषङ्गपादो नाम सप्तत्रिंशोऽध्यायः ।। ३७ ।। इत्यनुषङ्गपादः ।।*



< वायु पुराण | उत्तरार्ध


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वायु पुराण/


____


 
                सुता ने कहा।
प्राचीन काल में आशिजा नाम के एक प्रसिद्ध बुद्धिमान ऋषि थे
महान ऋषि की ममता नाम की एक पत्नी थी 37.36।।
आशिजा में सबसे छोटा आकाशीय ग्रहों का अग्रदूत था
महान तेज के बृहस्पति मेरे पास आए 37.37।।
ममता ने कहा, बृहस्पति नहीं चाहते।
मैं गर्भवती हूँ और तुम्हारे बड़े भाई की आठवीं पुत्री हूँ। 37.38।।
___________
हे बृहस्पति मुझे यह महान गर्भवती स्त्री अच्छी लगती है
उन्होंने अशिजा और ब्रह्मा का अभ्यास किया और छह वेदों का उच्चारण किया। 37.39।
ये अचूक हैं और आपको भी मेरी पूजा नहीं करनी चाहिए।
हे प्रभु जो कुछ भी आप इस पिछले समय में सोचते हैं 37.40।।
इस प्रकार उसके महान वैभव के बृहस्पति ने संबोधित किया
महात्मा अपने को काम आत्मा नहीं समझते थे 37.41।।
धर्मी बृहस्पति उसके साथ प्रकट हुए
जब वह अपना वीर्य छुड़ा रहा था तब गर्भवती स्त्री ने उस से बातें की 37.42।

किसी कुंवारे को इसे नहीं लगाना चाहिए। दोनों की कोई संभावना नहीं है।
ये अचूक रक्त हैं और आप और मैं यहां पहले भी आ चुके हैं 37.43।।
इस प्रकार संबोधित करने पर बृहस्पति क्रोधित हो गए और उन्हें श्राप दे दिया
दिव्य ऋषि अपने भाई के गर्भ में अपने पुत्र को आशीर्वाद दे रहे थे 37.44।

क्योंकि आप ऐसे समय में हैं जब सभी प्राणी वांछित हैं।
उन्होंने मुझसे कहा कि इस प्रकार भ्रम से तुम लंबे समय तक अंधेरे में प्रवेश करोगे 37.45।

तब दीर्घात्मा नामक एक शापित ऋषि का जन्म हुआ।
_____
तब आशिज महान यश के बृहस्पति के समान शक्तिशाली हो गया 37.46।।
तब वे अपने भाई के आश्रम में रहने लगे
हे भगवान मैंने सौरभेय से वृषभ से गौ धर्म के बारे में सुना 37.47।
उसके भाई और चचेरे भाई ने तब घर बनाया था।
संयोग से आया हुआ एक बैल वहां रहता है 37.48।।
__________________
 
 37.134।
तब मरुतों ने उसे उठा लिया और वह बृहस्पति का पुत्र बना
पराक्रमी भारद्वाज पर मरुतों ने यज्ञ करते हुए आक्रमण किया था 37.135।
बुद्धिमान भारद्वाज की यह उदार हत्या है।
मरुतों का जन्म और भरत में संक्रमण 37.136।।
बच्चा पत्नी के पेट में था
तब बृहस्पति ने अपने भाई की पत्नी की ओर देखा और कहा
अपने शरीर को सजाओ और मुझे अपनी कामुकता दो, हे शुभ। 37.137।
इस प्रकार सम्बोधित करते हुए, हे स्वामी, मैं एक मन्त्र की पत्नी हूँ।
भ्रूण और रूपांतरित शरीर शब्दों के साथ ब्रह्म का उच्चारण करते हैं 37.138।
ये अचूक हैं और आपकी और धार्मिकता की निंदा की जाती है
इस प्रकार संबोधित बृहस्पति ने मुस्कुराते हुए उसे संबोधित किया 37.139।
आप मुझे किसी भी तरह से विनम्रता न सिखाएं
इससे खुश होकर वह उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाने लगा 37.140।
______________________________
तब गर्भ ने प्रसन्न होकर बृहस्पति से कहा
हे प्रिय बृहस्पति मैं यहाँ पहले ही बस चुका हूँ 37.141।
आप अचूक हैं और दोनों के लिए कोई जगह नहीं है
इस प्रकार गर्भवती महिला द्वारा संबोधित उन्होंने गुस्से से जवाब दिया 37.142।
क्योंकि ऐसे समय में, जब सभी प्राणी इसकी इच्छा रखते हैं।
इसलिए तुम लम्बे समय के लिए अंधकार में प्रवेश करोगे 37.143।
बृहस्पति की माता का द्वार उनके चरणों से ढका हुआ था
उन दोनों के बीच उस आदमी का खून अजेय था और बच्चे का जन्म हुआ। 37.144।
________________
तुरंत पैदा हुए युवा लड़के को देखकर ममता ने कहा
हे बृहस्पति मैं भारद्वाज के साथ अपने घर जाऊंगा 37.145।
यह कहकर उसने अपने पुत्र के जाते ही उसे तुरंत त्याग दिया
भारद्वाज ने 'हां' कहा और फिर उनका जन्म हुआ। 37.146।
मरुतों ने बालक को उसके माता-पिता द्वारा परित्यक्त देखा
फिर वे कृपापूर्वक उसे भारद्वाज के पास ले गए और चले गए। 37.147।
____________________________
उस समय भरत ने मरुतों के साथ बारी-बारी से यज्ञ किया
पुत्र प्राप्ति के लिए वह अपनी इच्छाओं के लिए यदा-कदा यज्ञ करता है 37.148।
जब भगवान यज्ञ कर रहे थे, तब वे अपने पुत्र के पास नहीं पहुंचे।
तब मारुत्सोमा ने अपने पुत्र के लिए फिर से बलिदान वापस ले लिया 37.149।
मरुत्सोम उस मरुत्सोमा से संतुष्ट थे
तब उनके भरद्वाज नाम का एक पुत्र हुआ जो बरहस्पत्य नाम के एक ऋषि थे 37.150।
भरत ने अपने पुत्र भारद्वाज के पास जाकर उनसे कहा।
हे स्वामी, मैं संतुष्ट हूँ कि आपने मेरी प्रजा का नाश किया है 37.151।
पूर्व में उन्हें व्यर्थ में एक पुत्र उत्पन्न हुआ था
तब वितथ नाम के उस भारद्वाज का जन्म हुआ 37.152।
इसलिए दिव्य भारद्वाज ब्राह्मण से क्षत्रिय बन गए।
उन्हें द्विमुखयायन के नाम से भी जाना जाता है और उन्हें द्विपितृका के नाम से जाना जाता है। 37.153।।
तब निराश होकर भरत स्वर्गलोक चले गए।
वितथ का पौत्र पृथ्वी पर क्रोधित हो गया 37.154।।
___________________________________




इंद्र का जन्म हनुमान से हुआ था जो इंद्र के समान शक्तिशाली थे।
अश्विनी-कुमारों और मद्रिजों के साथ देव और नकुल 37.241।।




                ऋषियों ने कहा:
हे महान आत्मा हम लोगों के भविष्य के बारे में सुनना चाहते हैं
हे सारथी आपने राजाओं के साथ भविष्य का वर्णन किया है 37.256।।
जो भी कर्म स्थापित होगा और जो भी राजा उत्पन्न होंगे
वर्षा होने से पहले ही मुझे उन राजाओं के नाम बता दो 37.257।

समय और युग का माप गुण और दोष होंगे।
लोगों के सुख-दुख में धर्म में वासना में और धन में 37.258।।
यह सब कुछ मुझसे पूछने वालों को विस्तारपूर्वक बताओ
इस प्रकार मुनियों ने बुद्धिमानों में श्रेष्ठ सारथि को संबोधित किया
उसने उन्हें वह सब कुछ बताया जो उसके साथ हुआ था जैसा उसने देखा और सुना था 37.259।।
          सुता ने कहा।।
जैसा कि यह सब अद्भुत कर्मों के व्यास ने मुझे बताया है।
कलियुग और मन्वन्तर भी आने वाले हैं। 37.260।।
मेरी बात सुनो क्योंकि मैं तुम्हें वह सब बताता हूं जो अभी आना बाकी है।
अब मैं उन वृपाओं का वर्णन करूँगा जो उत्पन्न होंगे। 37.261।।
और ऐलास, और इक्ष्वाकु, और सौद्युम्न, राजा भी।
जिनके खेतों में यह शुभ इक्ष्वाकु स्थापित है 37.262।।
मैं उन सभी राजाओं का उल्लेख करूंगा जिन्हें मैं भविष्य में पढ़ूंगा
उनसे और उनसे परे और अन्य जो पृथ्वी के राजा उत्पन्न होंगे 37.263।।
क्षत्रिय, परशव, शूद्र और वे भी जो ब्राह्मण हैं।
यवनों के साथ अन्धे शक और पुलिन्द तूलिक 37.264।
कैवर्त, भीरा, शाबारा और म्लेच्छों की अन्य सभी जातियाँ।
वर्षा होने के पूर्व मैं उन राजाओं का नाम लेकर वर्णन करूँगा 37.265।
वह वर्तमान में नागरिकों का राजा है जो अधीसमाओं में सबसे काला है
भविष्य में मैं उसके पीछे चलने वाले राजाओं का वर्णन करूँगा 37.266।।
अधिसमा कृष्ण का पुत्र अवश्य ही निर्वाकर होगा।
नागासाहवा के उस शहर में जिसे गंगा बहा ले गई थी।
वह उस आरामदायक वस्त्र को छोड़कर कौशाम्बी में निवास करेगा। 37.267।।
उनके पुत्र भविष्यदुष्ण का नाम उष्ण से चित्ररथ रखा गया
शुचिद्रथ से चित्ररथ और शुचिद्रथ से वृतिमन उत्पन्न हुए 37.268।
सुषेण बहुत शक्तिशाली और प्रसिद्ध होगा।
सुषेण से सुतीर्थ नाम का एक राजा आएगा 37.269।।
सुतीर्थ से रुचा का जन्म होगा और उससे त्रिचक्ष का जन्म होगा
त्रिचक्ष का पोता सुखीबाला होगा 37.270।
भावी राजा सुखीबाला का पुत्र भी डूब गया
राजा के यहां परिप्लुत का पुत्र भी उत्पन्न होगा 37.271।
तब बुद्धिमान सुनय पुरुषों का राजा बनेगा।
बुद्धिमान का पुत्र भी डंडे का अधिकारी होगा। 37.272।
वह राजदंड-वाहक और शत्रुहीन का रक्षक है।
ये पच्चीस राजा पूर्वजों के वंशज होंगे 37.273।
यहाँ वंशावली के इस श्लोक को ब्राह्मणों ने गाया है जो पूर्वजों को जानते हैं।
ब्राह्मण और क्षत्रिय के गर्भ का देवताओं और ऋषियों द्वारा सम्मान किया जाता है 37.274।
एक उद्धारकर्ता प्राप्त करने के बाद राजा को कलियुग में एक संस्था प्राप्त होगी
यह पूर्वजों का वंश है जिसका ठीक-ठीक वर्णन किया गया है। 37.275।
पांडु के पुत्र बुद्धिमान और महान अर्जुन के लिए।
अब मैं ऊपर इक्ष्वाकुओं के महापुरुषों का वर्णन करूँगा। 37.276।।
बृहद्रथ के पौत्र वीर राजा बृहतक्षय थे।
तब उसका पुत्र क्षय हुआ और उसका पुत्र क्षय हुआ। 37.277।
बछड़ों के झुंड से, प्रतिव्यूह, उसका पुत्र, दिवाकर।
और राजा जो वर्तमान में अयोध्या नगरी में निवास कर रहे हैं 37.278।।
सूर्य के सहदेव की अपार ख्याति होगी
सहदेव का पौत्र बृहदस्व होगा 37.279।
उसके भानुरथ नाम का एक पुत्र और प्रतितस्व नाम का एक पुत्र होगा
प्रतितस्व का पुत्र भी सुबोध होगा 37.280।
सहदेव के पुत्र सुनक्षत्र थे 37.281।।
सुनक्षत्र का किन्नर शत्रुओं का संहार करेगा
अंतरीक्ष नाम के किन्नर का एक महान पुत्र होगा 37.282।
अंतरिक्ष से, सुपर्णा, और सुपर्णा से, मित्रजीत।
उनके पुत्र भारद्वाज को सदाचारी कहा जाता है
उसका कृतंजय नाम का एक धर्मात्मा पुत्र होगा
कृतंजय का पुत्र व्रत था और उसका पुत्र रणंजय था। 37.283।।
_______________
संजय भी रणंजय से वीर राजा बनेंगे।
संजय का पुत्र शाक्य था और शाक्य से शुद्धोधन उत्पन्न हुआ। 37.284।
राहुल को शाक्य के लिए याद किया जाता है जो शुद्ध भोजन का होगा
प्रसेनजित का जन्म होगा और फिर क्षुद्रक का जन्म होगा 37.285।
ज़रा से ज़रा है और ज़रा से रथ कहा जाता है।
सुमित्रा सुरथ का अंतिम राजा भी होगा 37.286।।
ये कलियुग में वर्णित इक्ष्वाकु हैं।
वे कलियुग में महान शक्तियों के साथ जन्म लेंगे।
वे बहादुर थे और सत्यवादी और आत्म-नियंत्रित थे 37.287।
यहाँ वंशावली का यह पद नबियों द्वारा उद्धृत किया गया है।
इक्ष्वाकुओं का यह वंश सुमित्रा के साथ समाप्त हो जाएगा
सुमित्रा प्राप्त करने के बाद राजा कलियुग में संस्था को प्राप्त होगा
इसे मानव क्षेत्र और गंदगी के रूप में वर्णित किया गया है। 37.288।।
इसके ऊपर से मैं मगध और बृहद्रथ का वर्णन करूँगा।
जरासंध के वंश में और सहदेव के वंश में शासन करने वाले राजा 37.289।
अतीत, वर्तमान और भविष्य और इसी तरह।
अब मैं प्राथमिकताओं का वर्णन करूँगा और जैसा मैं आपको बताता हूँ, मुझे सुनेंगे 37.290।।
भारत में लड़ाई में सहदेव मारे गए
उनके पुत्र सोमाधि एक शाही ऋषि थे जो सगिरी व्रज में रहते थे 37.291।।
उसने पाँच सौ आठ वर्षों तक राज्य किया
उनका श्रुतश्रवा नाम का एक पुत्र था जो चौंसठ वर्ष का था
अयुतायु ने छब्बीस वर्षों तक राज्य किया।
सौ वर्षों तक बिना शत्रुओं के पृथ्वी का भोग करने के बाद वे चल बसे 37.292।।
वह पाँच सौ वर्ष और छह अच्छे कर्मों के लिए पृथ्वी पर पहुँचे
बृहतकर्मा ने तेईस वर्षों तक राज्य पर शासन किया। 37.293।।
सेनाजीत अभी भी इसका उतना ही लुत्फ उठा रहा है।
श्रुतंजय चालीस वर्ष का होगा 37.294।
उसके पास शक्तिशाली भुजाएँ, महान बुद्धि और भयानक पराक्रम था।
राजा ने पच्चीस वर्षों तक पृथ्वी पर शासन किया 37.295।
वह आठ सौ पचास वर्ष तक राज्य में रहेगा।
अट्ठाईस वर्ष पूरे होंगे और क्षेम राजा होगा। 37.296।।
पराक्रमी पृथ्वी के चौंसठ राज्यों को प्राप्त करेंगे
वह पांच साल तक धार्मिकता का अगुवा रहेगा 37.297।
राजा स्वयं आठ सौ पचास वर्ष तक इसका भोग करेगा।
सुव्रत अड़तीस वर्षों तक राज्य करेगा 37.298।
अड़तालीस एक शक्तिशाली सेना होगी।
तब सुमति की आयु तैंतीस वर्ष की होगी 37.299।।
तब सुचाल बाईस वर्ष तक राज्य का भोग करेगी।
तत्पश्चात राजा सुनेत्र चालीस वर्ष तक शासन करेंगे 37.300।
सत्यजीत तिरासी वर्षों तक पृथ्वी के राज्य का भोग करेगा।
जब यह मुझे मिलेगा तब मैं पैंतीस वर्ष का हो जाऊंगा और मैं वीर विजेता हो जाऊंगा। 37.301।।
अरिंजय पचास वर्षों तक पृथ्वी पर पहुंचेगा
ये बत्तीस राजा महारथी होंगे 37.302।।
वे पृथ्वी पर एक हजार वर्ष तक राज्य करेंगे
वे इन बड़े-बड़े रथों पर बिना यज्ञ के सवार थे 37.303।
ऋषि अपने स्वामी को मार डालेगा और अपने पुत्र को समर्पित करेगा
जैसा कि क्षत्रियों ने देखा, ऋषि को जबरन प्रबुद्ध किया गया 37.304।
वह एक साम्प्रदायिक सामंत होगा और भविष्य में न्याय से रहित होगा।
वह श्रेष्ठ पुरुष तेईस वर्ष तक राजा रहेगा 37.305।
तब राजा चौबीस वर्ष तक पालनहार रहेगा
राजा पचास वर्षों के लिए विशाखा यूप रहेगा। 37.306।
राज्य इकतीस वर्षों के लिए अजगर का होगा।
उसका वर्त्तिवर्धन नाम का एक पुत्र होगा जो बीस वर्ष का होगा 37.307।
उनके पाँच पुत्र हुए जो अड़तीस सौ तेजस्वी होने वाले थे।
उन्हें मारकर उनका सारा यश शिशुनाक हो जाएगा 37.308।
उनका पुत्र वाराणसी के गिरिव्रज पहुंचेगा
बच्चे की नाक चालीस साल की होगी। 37.309।।
उसके शक रंग का एक पुत्र होगा जो छत्तीस वर्ष का होगा
तत्पश्चात राजा क्षेमवर्मा बीस वर्षों तक शासन करेगा 37.310।।
राजा पच्चीस वर्ष का होगा और उसका कोई शत्रु नहीं होगा।
तब क्षत्रियों को चालीस वर्ष के बराबर का राज्य प्राप्त होगा 37.311।
राजा विविसार अट्ठाईस वर्ष के होंगे।
राजा पच्चीस वर्ष तक तमाशबीन रहेगा 37.312।
इस प्रकार राजा तैंतीस वर्ष का होगा
उस राजा ने कुसुमह्वय को पृथ्वी का सर्वश्रेष्ठ नगर कहा
चौथे वर्ष में वह गंगा के दक्षिणी तट पर इसका प्रदर्शन करेगा 37.313।।
भावी राजा नंदीवर्धन बयालीस वर्ष का होगा
तैंतालीस महान नंदी होंगे। 37.314।
ये दस राजा हैं जो शिशु होंगे
ये तीन साल बासठ साल से ज्यादा हो गए हैं। 37.315।
तब तक अन्य राजा शिशु नाक वाले होंगे।
साथ में राजा और क्षत्रियों के रिश्तेदार भी मौजूद रहेंगे 37.316।
चौबीस इक्ष्वाकु और पच्चीस पांचाल।
चौबीस कालक थे और चौबीस हैहय थे। 37.317।।
बत्तीस कलिंग और पच्चीस शक।
कौरव और मैथिली छब्बीस और अट्ठाईस थे। 37.318।
सुरसा में तेईस और बाईस होत्र होते हैं।
पृथ्वी के सब राजा एक साथ होंगे 37.319।
महानंदी के पुत्र का जन्म भी एक शूद्र स्त्री से हुआ था
सभी क्षत्रियों में महापद्म नाम का एक राजा उत्पन्न होगा 37.320।।
_________
तब से राजा शूद्र वंश के होंगे।
वह महाकमल राजा और छत्र बनेगा 37.321।।
वह अट्ठाईस वर्ष तक पृथ्वी पर राज्य करेगा।
उसने उन सभी क्षत्रियों को जबरन उठा लिया, जिन्होंने उसकी भविष्य की संपत्ति छीन ली थी 37.322।
उसके आठ हजार पुत्र और उसके बराबर बारह राजा हुए
एक के बाद एक राजा महान कमल को सफल करेंगे 37.323।
कौटिल्य उन सभी को अट्ठाईस से बचा लेंगे।
सौ वर्ष तक पृथ्वी को भोगने के बाद वह नन्द का चन्द्रमा बनेगा 37.324।
कौटिल्य राजा चंद्रगुप्त को राज्य में स्थापित करेगा
राजा चंद्रगुप्त की आयु चौबीस वर्ष की होगी 37.325।
हे कोमल सारा राजा पच्चीस वर्ष की होगी
राजा छब्बीस वर्ष तक मनुष्यों के शोक से रहित रहेगा 37.326।।
उनका बेटा कुणाल आठ साल का होगा।
कुणाल के आठ बेटे थे और उनका पालन-पोषण उनके रिश्तेदारों ने किया 37.327।
उनके रिश्तेदारों द्वारा उठाए गए दादा को दसवें राजा ने पाला था।
देववर्मा सात वर्षों तक मनुष्यों का राजा रहेगा 37.328।
राजा शतधर के आठ पुत्र होंगे।
बृहदस्व सात वर्ष तक राजा रहेगा 37.329।
ये नौ राजा हैं जो पृथ्वी पर राज्य करेंगे
उनमें से सैंतीस सौ पूर्ण एक गाय होगी। 37.330।।
पुष्पमित्र ने अपनी सेना हटा ली और बृहद्रथ पर चढ़ गया
वह साठ वर्ष तक राज्य पर सदा राज्य करेगा 37.331।
पुष्पमित्र के आठ पुत्र समान राजा होंगे
वह सात साल बाद उनका सबसे बड़ा बेटा भी होगा 37.332।।
वसुमित्र का पुत्र दस वर्ष तक राजा रहेगा
तब ध्रुव का जन्म दो वर्ष के लिए होगा और उसके एक पुत्र होगा 37.333।
इसलिए केवल तीन पुलिंदक होंगे
राजा घोषा का बेटा भी तीन साल तक सत्ता में रहेगा 37.334।
फिर विक्रमीत्र साम के राजा बने और फिर
राजा बत्तीस वर्ष तक प्रभु का भक्त रहेगा। 37.335।।
उसका एक पुत्र होगा जिसके पास दस के बराबर शान्त भूमि होगी।
पहाड़ों के ये दस राजा इस धरती पर राज करेंगे 37.336।
सौ पूरे और उनमें से दस या दो या क्या जाएगा।
लेकिन वासुदेव, सांसारिक राजा, बचपन से ही एक शरारती राजा थे। 37.337।।
चोटियों पर होगी देवताओं की भूमि और दूसरा राजा
वह उतने ही समय के लिए नौ गर्दनों का राजा होगा। 37.338।।
उसका पुत्र भूतिमित्र चौबीस वर्ष का होगा।
वह बारह वर्ष का होगा और राजा नारायण होगा। 37.339।
सुशर्मा और उसका बेटा दस साल के होंगे
ये राजा कन्थायन के ब्राह्मण थे जिन्होंने चार चोटियों का अनुष्ठान किया था 37.340।।
पैंतालीस साष्टांग सामंत हों
उनके प्रत्यावर्तन के समय एक लहर होगी। 37.341।
फिर उसने कन्थायन को उठा लिया और सुशर्मा को विवश कर दिया
फिर उसने चोटियों की शेष शक्ति को नष्ट कर दिया
आंध्र जाति के सिंधुका को यह धरती विरासत में मिलेगी 37.342।।
सिंधु का राजा तेईस वर्ष का होगा।
भाटा आठ वर्ष का होगा और उसके बाद दस का होगा 37.343।
उसका पुत्र श्री सतकर्णी होगा और वह महान होगा।
पांच सौ छह बराबर सात कान होंगे। 37.344।।
उसके दस पुत्र होंगे जो उसके पैरों से बंधे रहेंगे
चौबीस साल छह साल के बराबर होगा। 37.345।
नेमिकृष्ण पच्चीस वर्ष के होंगे
फिर पूरे एक साल तक हेलो राजा रहेगा 37.346।
पाँच या सात शक्तिशाली राजा होंगे
भावी पुत्रीक्षेन इक्कीस वर्ष तक उसके बराबर रहेगा। 37.347।
सातकर्णी एक वर्ष तक राजा रहेगा।
वह अट्ठाईस वर्ष तक भगवान शिव का स्वामी रहेगा। 37.348।।
और हे गौतमी के पुत्र राजा, पुरुषों में इक्कीस के बराबर है।
राजा यज्ञश्री और सातकर्ण्य ने इक्कीस वर्षों तक शासन किया। 37.349।।
छ: ही होंगे, अत: विजया राजा के तुल्य होगी।
उसके दंडश्री और सातकर्णी नाम के तीन पुत्र हुए 37.350।
पुलोवा भी सात अन्य के बराबर होगी
ये वे तीस राजा हैं जो पृय्वी पर राज्य करेंगे 37.351।
चार सौ पांच छह और इतने पर
पांच आंध्र स्थापित किए गए और उनके राजवंश फिर से बराबर हो गए। 37.352।।
तब सात राजा होंगे जो भयानक होंगे
सात गधे और फिर दस शक। 37.353।
आठ यवन और चौदह तुषार होंगे
तेरह मरुन्दा और अठारह मौना 37.354।।
आन्ध्र एक सौ दो सौ वर्षों तक इस भूमि का उपभोग करेंगे।
शक तीन सौ अस्सी वर्ष तक पृथ्वी को भोगेंगे 37.355।
यवनों ने अस्सी वर्षों तक भूमि का उपभोग किया
कहा जाता है कि पृथ्वी पांच सौ वर्षों से जमी हुई है 37.356।
तेरह सौ चौवन होंगे।
मारुंड और म्लेच्छों की अन्य जातियों को शूद्रों के साथ होना था 37.357।।
तीन सौ ग्यारह म्लेच्छ खायेंगे।
कुछ देर बाद बैलों को शूल हो गया 37.358।।
तब कोलीकिले से विंध्य की शक्ति होगी
वह छियासठ वर्ष बचाएगा और पृथ्वी पर पहुंचेगा 37.359।।
बैलों और दिशाओं और भविष्य को सुनें।
शेष सर्पों के पुत्र स्वरपुरंजय थे 37.360।।
सर्प जाति का नेता राजा भोक्ता होगा।
सदाचंद्र चंद्रमा का दूसरा भाग है और नखावन चंद्रमा का दूसरा भाग है। 37.361।
धनधर्म को चौथा चौबीसवाँ भी कहा गया है।
भूतिनंदा तब वैदेश में भी होंगे। 37.362।
अंगों के बगीचे के अंत में एक हनीमून होगा
उनके छोटे भाई का नाम नंदी था और वह प्रसिद्ध थे 37.363।
उसके वंश में तीन राजा होंगे
उसकी पुत्री शिशुको नगर में राजा बनी 37.364।
विंध्यशक्ति का पुत्र भी प्रवीर नाम का एक पराक्रमी योद्धा था।
वे साठ साल तक स्वर्णनगरी का आनंद उठाएंगे 37.365।।
वे वाजपेय और पूर्ण वरदानों और उपहारों के साथ यज्ञ करेंगे।
उसके चार पुत्र होंगे जो राजा होंगे 37.366।।
पूर्वकाल में विन्ध्यकों के वंश में तीन बाह्लीक राजा हुए
सुप्रतीका और नाभिरा जीवन के तीस वर्ष का आनंद लेंगे 37.367।
शाक्यमा नाम का एक राजा था जो भैंसों का राजा था
तेरह होंगे फूल सखा और पत्ता सखा। 37.368।
मेकला में सात उत्कृष्ट राजा होंगे
कोमलता में शक्तिशाली राजा होंगे 37.369।
बुद्धिमानों को मेघा कहा जाता है लेकिन नौ
भविष्य में नैषध के सभी राजा राजा बनेंगे 37.370।
वे नल वंश में पैदा हुए थे और पराक्रमी और शक्तिशाली थे
मगध के पराक्रमी विश्वस्फनी का जन्म होगा 37.371।।
वह सारी पृथ्वी का नाश करेगा, और दूसरी जातियां बनाएगा।
कैवर्त और पंचक और पुलिंद और ब्राह्मण 37.372।।
राजा उन्हें विभिन्न देशों में वैभव के साथ स्थापित करेंगे।
विश्वस्फनी एक शक्तिशाली योद्धा था और युद्ध में विष्णु के समान मजबूत था। 37.373।
पुरुषों के राजा, विश्वस्फनीर को क्लेबा के काम की तरह कहा जाता है।
वह क्षत्रियों का नाश करके दूसरा क्षत्रिय बना देगा। 37.374।।
एक बार फिर देवताओं को पितरों और ब्राह्मणों को तृप्त कर लिया
वह पराक्रमी जाह्नवी के तट पर पहुँचा और अपना शरीर त्याग दिया। 37.375।
लेकिन वह अपने शरीर को त्याग देगा और इंद्र की दुनिया में जाएगा।
नवानाका के राजा चंपावती नगरी का आनंद उठाएंगे 37.376।।
सुंदर नगरी मथुरा में सात नागों का वास होगा
अनुगंगा, प्रयाग, साकेत और मगध।
गुप्त के वंशज इन सभी जनपदों का भोग करेंगे 37.377।
________________
निषाद और यदुक, शशि, वे कालाटोपक।
वे रत्नों और अनाज से पैदा हुए इन सभी काजलों का आनंद लेंगे। 37.378।।
कोशल और चंद्रपौंड्रा अपने समुद्रों के साथ तांबे से लिपटे हुए हैं
वे देवताओं द्वारा संरक्षित चंपा के सुंदर शहर का भी आनंद लेंगे 37.379।
कलिंग और भैंस और इंद्र के निवास
गुहा इन सभी जनपदों पर शासन करेंगे 37.380।
सुनहरा हाथी स्त्रियों और परभक्षियों के राज्य को निगल जाएगा
ये सब राजा एक ही समय होंगे 37.381।
वे थोड़े अनुग्रह, झूठ, बड़े क्रोध और अधर्म के हैं।
यवन यहाँ धर्म वासना और धन में रहेंगे 37.382।
उन्हें राजा का ताज नहीं पहनाया जाएगा
वे राजा युग के दोषों से दुष्ट होंगे 37.383।
महिलाओं को जबरन मारकर और एक-दूसरे को मार कर।
शेष कलियुग में राजा पृथ्वी का भी आनंद लेंगे। 37.384।
वे राजवंश हैं जो उठे हैं, और वे उठे और सेट हुए हैं।
समय आने पर वे यहाँ विकल्प के रूप में होंगे क्योंकि पृथ्वी को देखा जा रहा है। 37.385।
वे धार्मिकता वासना और धन से रहित होंगे
नगर और गाँव उनके साथ मिश्रित थे और म्लेच्छों के रीति-रिवाज हर जगह थे 37.386।।
वे उन लोगों को नष्ट कर देंगे जो विपरीत दिशा में काम कर रहे हैं
तब राजा लोभी और झूठे होंगे 37.387।
फिर बहुविवाह के युग में उनके पिछले विकल्प में।
वह अपनी लंबी उम्र, सुंदरता, ताकत और सुनने की क्षमता से धीरे-धीरे टूटती जा रही थी। 37.388।
इस प्रकार ब्रह्मांड के स्वामी लोगों के बीच वन में चले गए।
समय बीतने के साथ राजा नष्ट हो जाते हैं 37.389।
कल्कि द्वारा पराजित किए गए सभी म्लेच्छ हर जगह जाएंगे
वे हर तरह से बेहद अधार्मिक और विधर्मी हैं 37.390।
कलियुग में जब राजाओं का नाद खो जाता है और संध्या उसका आलिंगन कर लेती है
वे प्रजा जो धार्मिकता खो जाने पर विवाह से थोड़ा विहीन रह गई 37.391।
वे असहाय, बेदम और बीमारी और शोक से पीड़ित थे।
वे सूखे से मारे गए और एक दूसरे को मार कर 37.392।
खबर छोड़ने के लिए अनाथ भयभीत और दुखी थे
वे अपने शहरों और गांवों को छोड़कर वनवासी बन जाएंगे। 37.393।
इस प्रकार जब राजा नष्ट हो गए तो लोगों ने अपने घरों को छोड़ दिया
जब स्नेह खो जाता है तो ऐसे मित्र खोजना कठिन होता है जो अपना स्नेह खो चुके हों 37.394।
वे वर्ण और आश्रम से विचलित हो गए हैं और एक भयानक मिश्रण में प्रवेश कर गए हैं
तब लोग नदियों और पहाड़ों के सेवक होंगे 37.395।।
नदियाँ समुद्र और पहाड़ों के किनारों की सेवा करती हैं
अंग कलिंग वंगा कश्मीर काशी और कोशल 37.396।।
ऋषि के अंत में मनुष्य पर्वत घाटियों में शरण लेंगे।
हिमालय की पूरी पीठ और खारे पानी के किनारे 37.397।
कुलीन लोग म्लेच्छों के साथ जंगलों पर आक्रमण करेंगे
हिरण मछली पक्षी जंगली जानवर और कीड़े
लोग शहद, सब्जियों, फलों और जड़ों पर जीवित रहेंगे 37.398।।
छाल के पत्ते और विभिन्न प्रकार की छाल और हिरण की खाल
वे स्वयं को बना लेंगे और ऋषियों के समान ही जीवन व्यतीत करेंगे। 37.399।
वे लकड़ी के कोन से बीज और भोजन भी नीचे ले जाते थे
वे बकरी और गधे और ऊँट की देखभाल करेंगे। 37.400 ₹।
जल के लिए जलधाराओं के भरोसे लोग नदियों में रहेंगे
पृथ्वीवासी अपने व्यवहार से एक दूसरे को परेशान कर रहे थे। 37.401।।
वे अत्यधिक सम्मानित, विषयों से रहित और पवित्रता से रहित थे।
ऐसा ही तब होगा जब मनुष्य अधर्म के प्रति समर्पित होंगे। 37.402।
लोग गरीबों और गरीबों की धार्मिकता का पालन करते हैं
कोई भी तब जीवन के तेईस वर्ष से अधिक नहीं होता है। 37.403।
कमजोर, कामुक सुखों से ग्रस्त, वृद्धावस्था से अभिभूत।
वे पत्ते, जड़ और फल खाते थे और छाल तथा काली मृगचर्म के वस्त्र पहनते थे। 37.404।
वे आजीविका की तलाश में पृथ्वी पर घूमेंगे
कलियुग के अंत में लोग इस समय तक पहुँच चुके हैं 37.405।
कलियुग के उस दिव्य हजार वर्षों में जो समाप्त हो चुका है
बाकी कलियुग के साथ नष्ट हो जाएंगे
सांयकाल का भाग पूरा हो जाएगा और शेष का जीर्णोद्धार हो जाएगा। 37.406।।
जब चंद्रमा और सूर्य तिष्य और बृहस्पति के समान स्थिति में होते हैं
वे एक रात में भर जाएंगे और फिर यह कृतयुग होगा। 37.407।
मैंने तुम्हें पूरी वंशावली क्रम से बता दी है
अतीत और वर्तमान भी और भविष्य भी 37.408।
उनके जन्म तक महान देवताओं के अभिषेक से उनकी जांच की गई थी
इसे एक हजार साल और पंद्रह साल के रूप में समझा जाना है 37.409।
प्रमाण यह है कि ऐसा है और यह महाकमलों के बीच है।
उनके बीच की दूरी आठ सौ छत्तीस बराबर है 37.410।।
इस समय के बाद जिन आन्ध्रों का उल्लेख किया जाना है
पुराणों को जानने वाले भविष्य के संतों द्वारा उनकी गणना की गई थी 37.411।
तब सप्तर्षियों ने रानी से उलटी दिशा में कहा
आपको सत्ताईस सौ वाले आंध्र के बारे में फिर से सोचना चाहिए। 37.412।
पूरे नक्षत्र में सत्ताईस।
सात ऋषि बारी-बारी से एक सौ रहते हैं
यह दिव्य संख्या में सप्त ऋषियों की आयु है 37.413।
वह साठ दिव्य दिन और सात दिव्य दिन हैं
उन्हीं से सप्तऋषियों का दिव्य काल प्रारंभ होता है 37.414।
लेकिन सात ऋषियों में से जो उत्तर दिशा में पूर्व दिशा में दिखाई देते हैं
फिर मैदान के बीच में एक मैदान दिखाई देता है जो आसमान के बराबर है 37.415।
इसलिए सात ऋषियों को आकाश में एक सौ के बराबर समझना चाहिए।
यह सितारों और ऋषियों के योग का प्रमाण है 37.416।
परीक्षित के समय सप्तर्षि माघ में थे।
मेरी राय में वे आंध्र के चौबीसवें हिस्से में होंगे। 37.417।।
हालाँकि, ये तब प्रकृति से गंभीर रूप से अभिभूत होंगे।
वे सब के सब असत्य से, धर्म से, वासना से और धन से नष्ट हो गए 37.418।
फिर वर्णाश्रम में सुनने और याद करने के आराम धर्म में
कमजोर और भ्रमित भगवान शिव को प्राप्त करेंगे 37.419।
और शूद्रों को ब्राह्मणों के साथ जोड़ा जाएगा।
ब्राह्मण शूद्रों के यज्ञकर्ता हैं और शूद्र मन्त्रों के स्रोत हैं। 37.420।।
ब्राह्मण जो व्यवसाय की इच्छा रखते हैं, वे तब स्वयं को उनके सामने प्रस्तुत करेंगे।
धीरे-धीरे सभी लोग दूर जा रहे थे 37.421।
थका हुआ अवशेष युग के अंत में क्षय हो जाएगा।
उसी दिन जिस दिन भगवान कृष्ण स्वर्ग में चढ़े थे 37.422।
कलियुग की संख्या सुनो जो आ गया है
यहां मानव संख्या में तीन लाख हैं
काली को साठ हजार साल तक चलने वाला भी कहा जाता है 37.423।।
हालाँकि, दिव्य हजार वर्षों में, उस शाम के हिस्से का उल्लेख है।
और जब वह थक जाएगी, तब जो कुछ उस ने किया है वह फिर से हो जाएगा। 37.424।
ऐला और इक्ष्वाकु वंश का उल्लेख मतभेदों के साथ किया गया है
इक्ष्वाकु को एक क्षत्रिय के रूप में याद किया जाता है जो सुमित्रा के अंत में मर गया 37.425।
सोमा वंश को जानने वाले जानते हैं कि ऐला एक क्षत्रिय और शांतिप्रिय है।
ये विवस्वान के पुत्र हैं जिनका उल्लेख किया गया है और जो उनकी कीर्ति को बढ़ाते हैं। 37.426।
अतीत और वर्तमान के साथ-साथ वे जो अभी तक नहीं आए हैं।
वंश में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का उल्लेख मिलता है। 37.427।
हर युग में हजारों महापुरुष गुजरे हैं।
प्रत्येक परिवार में नामों की संख्या बहुत बड़ी है। 37.428।
मैंने बार-बार इसका जिक्र नहीं किया है
वैवस्वत काल में निमि वंश का अंत हो जाता है 37.429।
उसी काल में, जिसे युग कहा जाता है, क्षत्रिय प्राप्त होंगे।
मैं तुम को वैसा ही बताऊंगा, और जैसा मैं कहता हूं, वैसा ही तुम को सुनूंगा। 37.430।
इन्हें पूर्वजों का राजा और इक्ष्वाकु भी माना जाता है
वह महान योगबल से संपन्न होकर काल्पा गाँव में बस गया 37.431।
सुवर्चस सोम के पुत्र होंगे और इक्ष्वाकु उनके पुत्र होंगे
ये दोनों चौबीसवें युग में क्षत्रियों के अग्रगण्य थे। 37.432।
न ही बीसवें युग में सोम वंश की शुरुआत होगी।
देवपिरसा की पत्नी राजा ऐलादी होगी 37.433।
ये दोनों चारों युगों में क्षत्रियों को प्राप्त होंगे।
इस प्रकार इसे हर जगह समझा जाना चाहिए लेकिन बच्चों की विशेषताओं के लिए 37.434।
थके हुए कलियुग में, लेकिन उस भविष्य में, निर्मित युग में।
त्रेतायुग की शुरुआत में फिर से उनके साथ सात ऋषि थे 37.435।
ये दोनों गोत्रों और क्षत्रियों के प्रवर्तक होंगे
द्वापर भाग में क्षत्रिय ऋषि मुनियों के पास नहीं रहते 37.436।
समय में, कृतयुग में, और थके हुए त्रेतायुग में, फिर से।
वे फिर से ब्राह्मणों और क्षत्रियों के बीज बनेंगे। 37.437।
ब्रह्मांड में रहने वाली इन सभी चीजों के बारे में भी यही सच है।
सप्तर्षि राजाओं सहित हर युग में संतान प्राप्ति के लिए 37.438।
ब्राह्मणों ने कहा है कि क्षत्रिय का नाता तोड़ना है।
आपने सात मानवों के वंशजों के बारे में भी सुना होगा 37.439।
युगों की परंपरा और ब्राह्मणों और क्षत्रियों की उत्पत्ति।
जो शामिल हैं उनका विनाश उनकी भागीदारी के समान है 37.440।।
सप्तर्षि जानते हैं कि वे दीर्घायु हों और नष्ट हों।
संयोजन के इस क्रम से ऐलेक्ष्वाकु वंश के ब्राह्मण 37.441।।
त्रेता में उत्पन्न होना और कलियुग में फिर से क्षय होना।
वे मन्वंतरों के अंत तक युगों के नाम का पालन करते हैं 37.442।।
जब जमदग्नि के पुत्र राम ने कोई क्षत्रिय नहीं छोड़ा
सभी राजवंश क्षत्रियों और पृथ्वी के शासकों द्वारा बनाए गए थे।
मैं दोनों वंशों के कार्यों का भी वर्णन करूँगा 37.443।।
इक्ष्वाकुओं के आनंद, ऐला का स्वभाव बदल जाता है।
राजाओं को रैंकों में विभाजित किया गया था और इसलिए अन्य क्षत्रिय राजा थे। 37.444।
ऐल वंश के प्रसिद्ध राजा इक्ष्वाकुओं के भी राजा थे
उनमें से एक सौ पवित्राओं के परिवारों द्वारा पूरे किए गए थे 37.445।।
भोजों की चौड़ाई भोजों की चौड़ाई से दोगुनी अनुमानित है।
चौंतीस क्षत्रिय को दिशाओं के अनुसार चार भागों में बांटा गया है। 37.446।।
जो उनमें घटी वही बातें कह रहे हैं, उनकी भी सुनो।
एक सौ प्रतिविंध्य, एक सौ सर्प और एक सौ घोड़े थे। 37.447।
धृतराष्ट्र और जनमेजय, एक सौ अस्सी।
ब्रह्मा द्वारा उन्हें एक सौ वीर पुरुष दिए गए थे 37.448।।
फिर एक सौ पुरोम थे, जैसे श्वेत काश और कुश।
इसके बाद अन्य हजार ऐसे हैं जिन्होंने सौ बिंदुओं को पार किया है। 37.449।
उन सभी ने घोड़े की बलि दी और लाखों उपहार दिए।
इस प्रकार सैकड़ों और हजारों शाही ऋषियों का निधन हो गया 37.450 ₹।
मनु और वैवस्वत मनु के वर्तमान काल में जो कुछ भी हुआ
कहा जाता है कि उन्हीं के कहने से उनके वंशज इस संसार में उत्पन्न हुए 37.451।
क्या उनके वंशजों की वंशावली के बारे में विस्तार से बताना संभव है
यानी सैकड़ों वर्षों में भी भूत और भविष्य के उपयोग से। 37.452।।
वैवस्वत के अंतराल में अट्ठाईस युग बीत चुके हैं।
इन वचनों को सुनो जो राजर्षियों के साथ सिखाए गए थे 37.453।।
और चौवालीस अन्य जो राजाओं के संग रहेंगे।
फिर वैवस्वत के अंत में विशिष्ट युगों का पता चलता है 37.454।
मैंने तुम्हें यह सब संक्षेप में और विस्तार से बता दिया है
फिर, प्रचुरता के कारण, वे युगों के साथ नहीं हो सकते। 37.455।।
ययाति के ये पच्चीस पुत्र राजाओं के हितैषी हैं।
मैंने उन लोगों का भी उल्लेख किया है जो मेरे संसार को बनाए रखते हैं 37.456।
और उसे इस संसार की सर्वोत्तम और दुर्लभ वस्तुएँ प्राप्त होती हैं।
वह दीर्घ आयु, यश, धन, पुत्र और अनंत स्वर्ग को प्राप्त करता है। 37.457।
धारण करने और सुनने से वे लोकों को धारण करते हैं।
हे ब्राह्मणों मैंने तुम्हें माया के तीसरे चरण का वर्णन इस प्रकार किया है
मैं विस्तार से और पूर्वता के क्रम में और क्या कह सकता हूं? 37.458।

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यह श्रीमहापुराण के अनुषंगपद का सैंतीसवाँ अध्याय है, जो पवन द्वारा बोला गया है। 37।। यह परिशिष्ट है।*



तेभ्योऽपरेऽपि ये त्वन्ये ह्युत्पत्स्यन्ते नृपाः पुनः।
क्षत्राः पराशवाः शूद्रास्तथान्ये ये महीश्वराः।। ५०.७५ ।।

अन्धाः शकाः पुलिन्दाश्च चूलिका यवनास्तथा।
कैवर्त्ताभीरशवरा ये चान्यम्लेच्छसम्भवाः।।
पर्य्यायतः प्रवक्ष्यामि नामतश्चैव तान्नृपान्।। ५०.७६ ।।

अधिसोमकृष्णश्चैतेषां प्रथमं वर्त्तते नृपः।
तस्यान्ववाये वक्ष्यामि भविष्ये कथितान्नृपान्।। ५०.७७ ।।

त्यक्त्वा विवक्षुर्नगरं कौशाम्ब्यान्तु निवत्स्यति।
भविष्याष्टौ सुतास्तस्य महाबलपराक्रमाः।। ५०.७९ ।।
मत्स्य पुराण अध्याय 50-
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हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 22 श्लोक 31-35
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हतस्‍त्‍वरिष्‍टो बलवान् नि:श्रृंगश्‍च कृतो व्रजे।
अबालो बाल्‍यमास्‍थाय रमते शिशुलीलया।।31।।

प्रबन्‍ध: कर्मणामेवं तसय गोव्रजवासिन:।
संनिकृष्‍टं भयं चैव केशिनो मम च ध्रुवम्।।32।।

भू‍तपूर्वश्‍च मे मृत्‍यु: सततं पूर्वदैहिक:।
युद्धाकांक्षी च स यथा तिष्‍ठतीह ममाग्रत:।।33।।

क्‍व च गोपत्‍वमशुभं मानुष्‍यं मृत्‍युदुर्बलम्।
क्‍व च देवप्रभावेण क्रीडितव्‍यं व्रजे मम।।34।।

कहाँ तो अशुभ गोपत्‍व और मौत की दुर्बलता धारण करने वाला मानव-शरीर तथा कहाँ उसका मेरे व्रज में रहकर देवतुल्‍य प्रभाव से अद्भुत क्रीड़ा करना। अहो! कितने आश्चर्य की बात है कि यह कोई देवता अपने स्‍वरूप को नीच गोपवेष में छिपाकर श्‍मशान में स्थित हुई अग्नि के समान यहाँ रम रहा है। सुना जाता है कि पूर्वकाल में विष्णु ने देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिये वामन रूप धारण करके राजा बलि के हाथ से इस पृथ्‍वी को छीन लिया था। उन्‍हीं प्रभावशाली विष्‍णु ने सिंह का-सा रूप बनाकर दानवों के पितामह हिरण्यकशिपु का वध कर डाला था। इसी तरह पूर्वकाल में रुद्र (रूपधारी विष्‍णु) ने अचिन्‍त्‍य रूप का आश्रय लेकर श्वेताचल के शिखर पर स्थित हो त्रिपुर का नाश करके दैत्‍यों को वहाँ से नीचे गिरा दिया था। बृहस्‍पति के पुत्र कच ने दार्दुरी माया में प्रविष्‍ट होकर शुक्राचार्य को अपनी प्रतिज्ञा से विचलित कर दिया था। उन्‍होंने ही दैत्‍यों के जगत में ‘अनावृष्टि’ उत्‍पन्‍न कर दी थी। (जिससे दैत्‍यों की बड़ी भारी हानि हुई।[1] ये कच भी विष्‍णु की ही विभूति थे)।



अहो नीचेन वपुषाच्‍छादयित्‍वाऽऽत्‍मनो वपु:।
कोऽप्‍येष रमते देव: श्‍मशानस्‍थ इवानल:।।35।।


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गीताप्रेस गोरखपुर संस्करण सभापर्व-  अध्याय-29/8 तथा बम्बई संस्करण अध्याय ३५/९



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