प्रश्न :-ध्यान किसे कहते हैं ?
उत्तर:---ध्यान एक क्रिया है जिसमें व्यक्ति अपने मन को चेतना की एक विशेष अवस्था में लाने का प्रयत्न करता है। ध्यान का उद्देश्य कोई लाभ प्राप्त करना हो सकता है या ध्यान करना अपने-आप में एक लक्ष्य हो सकता है।
'ध्यान' से अनेकों प्रकार की क्रियाओं का बोध होता है। इसमें मन को विशान्ति देने की सरल तकनीक से लेकर आन्तरिक ऊर्जा या जीवन-शक्ति (की, प्राण आदि) का निर्माण तथा करुणा, प्रेम, धैर्य, उदारता, क्षमा आदि गुणों का विकास आदि सब समाहित हैं।
अलग-अलग सन्दर्भों में 'ध्यान' के अलग-अलग अर्थ हैं। ध्यान का प्रयोग विभिन्न धार्मिक क्रियाओं के रूप में अनादि काल से किया जाता रहा है।
यौगिक ध्यान-
महर्षि पतंजलि के योगसूत्र में ध्यान भी एक सोपान है।
चित्त को एकाग्र करके किसी एक वस्तु पर केन्द्रित कर देना ध्यान कहलाता है।
प्राचीन काल में ऋषि मुनि भगवान का ध्यान करते थे। ध्यान की अवस्था में ध्यान करने वाला अपने आसपास के वातावरण को तथा स्वयं को भी भूल जाता है। ध्यान करने से आत्मिक तथा मानसिक शक्तियों का विकास होता है। जिस वस्तु को चित में बांधा जाता है उस में इस प्रकार से लगा दें कि बाह्य प्रभाव होने पर भी वह वहाँ से अन्यत्र न हट सके, उसे ध्यान कहते है।
ध्यान से लाभ ---
ऐसा पाया गया है कि ध्यान से बहुत से मेडिकल एवं मनोवैज्ञानिक लाभ होते हैं।
बेहतर स्वास्थ्य
शरीर की रोग-प्रतिरोधी शक्ति में वृद्धि
रक्तचाप में कमी
तनाव में कमी
स्मृति-क्षय में कमी (स्मरण शक्ति में वृद्धि)
वृद्ध होने की गति में कमी
उत्पादकता में वृद्धि
मन शान्त होने पर उत्पादक शक्ति बढती है; लेखन आदि रचनात्मक कार्यों में यह विशेष रूप से लागू होता है।
आत्मज्ञान की प्राप्ति
ध्यान से हमे अपने जीवन का उद्देश्य समझने में सहायता मिलती है। इसी तरह किसी कार्य का उद्देश्य एवं महत्ता का सही ज्ञान हो पाता है।
छोटी-छोटी बातें परेशान नहीं करतीं
मन की यही प्रकृति (आदत) है कि वह छोटी-छोटी अर्थहीन बातों को बड़ा करके गंभीर समस्यायों के रूप में बदल देता है। ध्यान से हम अर्थहीन बातों की समझ बढ जाती है; उनकी चिन्ता करना छोड़ देते हैं; सदा बडी तस्वीर देखने के अभ्यस्त हो जाते हैं।
चिंता से छुटकारासंपादित करें
वैज्ञनिकों के अनुसार ध्यान से व्यग्रता का ३९ प्रतिशत तक नाश होता है और मस्तिष्क की कार्य क्षमता बढ़ती है। बौद्ध धर्म में इसका उल्लेख पहले से ही मिलता है।
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प्रश्न - (ब)योग में स्वरों की संख्या कितनी है- ?
उत्तर:-में नहीं फँसता और फँस भी जाए तो आसानी से विपरीत परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाकर बाहर निकल जाता है।
स्वर योग (Tone Yoga) में बहुत से रहस्य छुपे हैं. भारतीय संस्कृति में स्वर योग (Tone Yoga) पर बहुत से एक्सपेरिमेंट हुए हैं और बहुत से असाध्य रोगों का सफल इलाज भी हुआ है पर ये तभी हो सकता है जब आप स्वर योग (Tone Yoga) को अच्छी तरह समझ लें .
स्वर योग (Tone Yoga) को समझने के लिए आपको एक example देते हैं मान लीजिये जैसे ही आपको छींकें आरम्भ होती हैं।
जुकाम का नोटिस मिलता है ऐसे लक्षण विशेष भास होने पर रोग विशेष के आक्रमण की शंका हुआ करती है। शारीरिक रोग इस बात का चिन्ह हैं कि शरीर में कहीं कुछ अपूर्णता या दुर्बलता है अथवा भौतिक प्रकृति विरोधी शक्तियों के स्पर्श के लिये कहीं से खुली है हुई तो यह स्पष्ट है कि रोग बाहर से हमारे अन्दर आते हैं। जब ये आते हैं तभी यदि कोई इनके आने का अनुभव कर सके और इनके शरीर में प्रवेश करने के पहले ही इन्हें दूर फेंक देने की शक्ति और अभ्यास उसमें हो जाय तो ऐसा व्यक्ति रोग से मुक्त रह सकता है जब यह आक्रमण अन्दर से उठता हुआ दिखाई देता है तो समझना यही चाहिये कि आया तो बाहर से है पर अब चेतना में प्रवेश करने के पहले पकड़ा नहीं जा सका, इस प्रकार रोग शरीर को आक्राँत कर लेता है इस भौतिक शरीर में रोग घुसने के पहले ही इसे रोक दिया जा सकता है, और यह क्रिया स्वर योग (Tone Yoga) द्वारा सरलता तथा सफलतापूर्वक की जा सकती है
स्वर योग (Tone Yoga) कैसे काम करता है ?
यहाँ यह शंका हो सकती है कि स्वर योग (Tone Yoga) में ऐसी क्या खूबी है, समाधान यह है कि समस्त रोग शरीर में सूक्ष्म चेतना और सूक्ष्म शरीर के ज्ञान तन्तुमय या प्राण भौतिक कोष द्वारा प्रवेश करते हैं। जिसे भी सूक्ष्म शरीर का ज्ञान है अथवा सूक्ष्म चेतना से सचेतन है वह रोगों को रास्ते में ही अटका सकता है, हाँ यह सम्भव हो सकता है कि निद्रावस्था में अथवा अचेतन अवस्था में जब कि आप असावधान हैं कोई कोई रोग आकस्मिक आक्रमण करें दे प्रायः शत्रु इसी प्रकार वार करते हैं किन्तु फिर भी आँतरिक साधन द्वारा प्रथम आत्मरक्षा के लिये शत्रु प्रहार को वहीं रोक कर वहाँ से भगाया जा सकता है। स्वर योग (Tone Yoga) द्वारा रोग के लक्षणों का तनिक भी आभास न होने पर भविष्य का ज्ञान होकर उससे बचने का भी उपाय हो सकता है।
इच्छा शक्ति (WillPower ) के दो भेद हैं ऑटो सजेशन (Auto Suggestions)और सैल्फ सजेशन (Self Suggestions) । अर्थात् झाड़ फूँक, तंत्र, मंत्र आदि द्वारा दूसरों को भला चंगा करना ऑटो सजेशन है। स्वर योग (Tone Yoga) सैल्फ सजेशन है।
स्वर योग (Tone Yoga) शरीर क्रियाओं को संतुलित और स्थिर रखने की एक प्राचीन विद्या है। इससे स्वस्थता को अक्षुण्ण बनाए रखना सरल -संभव हो जाता है। योग के आचार्यों के अनुस्वार यह एक विशुद्ध विज्ञान है, जो यह बतलाता है कि निखिल ब्रह्मांड में संव्याप्त भौतिक शक्तियों से मानव शरीर किस प्रकार प्रभावित होता है।
सूर्य, चंद्र अथवा अन्यान्य ग्रहों की सूक्ष्म रश्मियों द्वारा शरीरगत परमाणुओं में किस प्रकार की हलचल उत्पन्न होती है। काया की जब जैसी स्थिति हो, तब उससे वैसा ही काम लेना चाहिए-यही स्वर योग (Tone Yoga) का गूढ़ रहस्य है। इतना होते हुए भी यह मनुष्य की सृजन शक्ति में हस्तक्षेप नहीं करता, वरन उसे प्रोत्साहित ही करता है।
स्वर योग (Tone Yoga) के अनुसार प्राण के आवागमन के मार्गों को नाड़ी कहते हैं। शरीर में ऐसी नाडि़यों की संख्या 72 हजार मानी जाती है।
इनको नसें न समझना चाहिए। यह प्राणचेतना प्रवाहित होने के सूक्ष्मतम पथ हैं। नाभि में इस प्रकार की नाडि़यों का एक गुच्छक है। इसमें इड़ा, पिंगला, सुषुम्णा, गांधारी, हस्तिजिह्वा, पूषा यशस्विनी, अलंबुसा, कुहू तथा शंखिनी (Ida, Pingala , Susumna , Gandhari , Hstijihwa , Pusha yashaswini , Alnbusa , Kuhu and Shankini) नामक दस नाडि़यां हैं। यह वहां से निकलकर देह के विभिन्न हिस्सों में चली जाती हैं।
इनमें से प्रथम तीन को प्रमुख माना गया है। स्वर योग (Tone Yoga) में इड़ा को चंद्र नाड़ी या चंद्र स्वर भी कहते हैं।
यह बाएं नथुने में है पिंगला को सूर्य नाड़ी अथवा सूर्य कहा गया है। यह दाएं नथुने में है।
सुषुम्णा को ‘वायु’ कहते हैं जो दोनों नथुनों के मध्य स्थित है। जिस प्रकार संसार में सूर्य और चंद्र नियमित रूप से अपना-अपना कार्य नियमित रूप से करते हैं। शेष अन्य नाडि़यां भी भिन्न-भिन्न अंगों में प्राण संचार का कार्य करती हैं।
स्वर योग (Tone Yoga) नाक के छिद्र से ग्रहण किया जाने वाला श्वास है, जो वायु के रूप में होता है। श्वास ही जीव का प्राण है और इसी श्वास को स्वर कहा जाता है।
स्वर के चलने की क्रिया को उदय होना मानकर स्वरोदय
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