शनिवार, 23 जून 2018

मनुस्मृति कितनी पुरानी पुस्तक है यह तो मै शायद नही बता सकता, पर इतना जरूर कह सकता हूँ कि यह ग्रंथ रामायण और महाभारत से प्राचीन है!

एक विरोधाभासी रचना

मनुस्मृति कितनी पुरानी पुस्तक है यह तो मै शायद नही बता सकता, पर इतना जरूर कह सकता हूँ कि यह ग्रंथ रामायण और महाभारत से प्राचीन है!
मनुस्मृति मे कहीं भी राम और कृष्ण का कोई उल्लेख नही है, परन्तु रामायण के किष्किंधाकाण्ड मे राम ने स्वयं मनुस्मृति की प्रशंसा की है, तो महाभारत के शान्तिपर्व और अनुशासन पर्व मे भीष्म पितामह ने इस ग्रंथ का गुणगान किया है!

मनुस्मृति निश्चित ही किसी काल मे सनातन धर्म की सबसे मान्य पुस्तक थी, लेकिन इस किताब मे मनु ने कई श्लोक ऐसे लिखे हैं, जो उन्ही के अन्य श्लोकों का ठीक उलट है!
आइऐ, कुछ ऐसे ही श्लोकों पर नजर डालते हैं-
मनुस्मृति-3/56 मे मनु ने नारियों के सम्मान मे यह बड़ी बात कही है-
"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।"
अर्थात- जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवताओं का वास होता है, और जहाँ नारियाँ कष्ट पाती है, वहाँ समृद्धि नही होती!
यहाँ तो मनु ने बड़ी उत्तम बात लिखी, पर नौवां अध्याय शुरू होते ही मनु कहते हैं कि नारियों को स्वतंत्रता मत दो, नारियां कामुक होती है!
यही नही मनु ने अध्याय-8/371 मे लिखा है-
"भर्तारं लङ्घयेद्या स्त्री ज्ञाति गुणदर्पिता।
तां श्वाभिः खादयेद्राजा संस्थाने बहुसंस्थिते।।"
अर्थात- अपनी सुन्दरता और बाप-दादा के धन पर यदि स्त्री घमण्ड करे तो उसे सबके सामने कुत्ते से नोचवा डालें।

जरा सोचो कि पहले नारियों को पूजने की बात करने वाले मनु अब कुत्ते से नोचवाने की सलाह दे रहे है!

मनु का दूसरा विरोधाभास यह है कि उन्होने अध्याय-9/104 मे कहा है कि-
"ऊर्ध्वं पितुश्च मातुश्च समेत्य भ्रातरः समम् ।
भजेरन्पैतृकं रिक्थमनीशास्ते हि जीवतोः।।"
अर्थात- माता-पिता की मृत्यु के बाद सभी भाई धन-सम्पत्ति को बराबर-बराबर बांट लें, माता-पिता के जीते जी उन्हे धन बांटने का कोई अधिकार नही।
इस श्लोक मे मनु पैतृक सम्पत्ति मे सभी भाइयों को बराबर को अधिकार बता रहे हैं, पर इसका ठीक अगला ही श्लोक उन्होने गांजे के नशे मे लिखा और मनु अध्याय-9/105 मे लिखते हैं-
"ज्येष्ठ एव तु गृह्णीयान्पित्र्यं धनमशेषतः।
शेषास्तमुपजीवेयुर्यथैव पितरं तथा।।"
अर्थात- भाइयों मे जो सबसे श्रेष्ठ हो, वो पिता की सम्पूर्ण धन-सम्पत्ति को ग्रहण करे, शेष भाई उसे पितातुल्य मानकर उसके अधीन रहें!

अब ये पागलपन देखो.... पहले तो उन्होने सम्पत्ति मे सभी भाइयों का बराबर अधिकार बताया, पर अगले ही श्लोक मे कहा कि सारी सम्पत्ति बड़े भाई की है!

आगे मनु  ने मनुस्मृति-8/123-124 मे लिखा है कि राजा केवल क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र को दण्ड दे, क्योंकि स्वायम्भायु मनु ने जो दण्ड विधान बताया है, वह केवल इन्ही तीन वर्णों के लिये है, ब्राह्मण के लिये नही।
लेकिन कुछ आगे बढ़ते ही मनु की अक्ल फिर ठिकाने आयी और इसी आठवें अध्याय के श्लोक-337/338 मे मनु लिखते हैं कि यदि शूद्र चोरी करे तो उससे आठ गुना, वैश्य करे तो सोलह गुना, क्षत्रिय करे तो बत्तीस गुना और ब्राह्मण करे तो उसे चौंसठ गुना या एक सौ अट्ठाइस गुना दण्ड दें!

मनु केवल इतने ही विरोधाभासी नही थे! मनु के अनुसार मांस नही खाना चाहिये, अतः मांस खाने से रोकने के लिये मनु ने लोगों को डराया है और मनुस्मृति-5/55 मे लिखा है-
"मांस भक्षयिताऽमुत्र यस्य मांसमिहाद्म्यहम् ।
एतन्मांसस्य मांसत्व प्रवदन्ति मनीषिणः।।"
अर्थात- जो मनुष्य इस लोक मे जिसका मांस खाता है, परलोक मे वह उसका भी मांस खाता है, यही मांस का मांसत्व है।
लेकिन इसी अध्याय मे उन्होने मांस खाना अनिवार्य भी कहा है!
इसी अध्याय के श्लोक-5/35 मे मनु कहते हैं-
"नियुक्तस्तु यथान्यायं यो मांसं नात्ति मानवः।
स प्रेत्य पशुतां याति संभावनेकविंशशतिम् ।।"
अर्थात- जो विधि नियुक्त होने पर भी मांस नही खाता, वह मरने के बाद इक्कीस जन्म तक पशु होता है!

सोचों! कि मनु कैसे आदमी थे, पहले कह रहे हैं कि मांस नही खाओगे तो पशुयोनि मे जाओगे, और बाद बता रहे हैं कि तुम जिसका मांस खाओगे, वो तुम्हारा भी मांस खायेगा!

मनु ने इतनी ही नही, और भी कई विरोधाभासी बातें कही हैं, जैसे-
मनु ने मनुस्मृति-10/65 मे लिखा है-
"शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम।"
अर्थात- अपने कर्मो से ब्राह्मण शूद्र और शूद्र ब्राह्मणत्व को प्राप्त होता है!
पर इसी अध्याय के श्लोक 10/73 मे मनु लिखते हैं कि ब्राह्मण और शूद्र कभी समान नही हो सकते, अर्थात यहाँ उन्होने वर्ण-परिवर्तन को नकार दिया है।

मनु के ऐसा लिखने के पीछे केवल दो ही कारण हो सकते है-
पहला तो यह कि वो बहुत घटिया किस्म गांजा पीते थे!
दूसरा कि वो बड़े भुलक्कड़ थे, पीछे क्या लिखा है, उसे भूलकर आगे ठीक उसका विपरीत लिख देते थे!

#मनुस्मृति_और_कुरान

अगर कुरान और मनुस्मृति का सूक्ष्मता से अध्ययन किया जाये तो ऐसा लगता है कि जैसे अल्लाह और मनु मे कुछ सांठ-गांठ जरूर थी, क्योंकि दोनो के विचार कई मामले मे एक जैसे ही है!

अल्लाह जहाँ कुरान-16/71 मे कहते हैं कि मुसलमानों को दूसरों पर बड़ाई का अधिकार है, तो मनु भी 1/100 मे लिखते हैं कि ब्राह्मण सबसे श्रेष्ठ है, अतः सारी पृथ्वी उसी की है!

अल्लाह जहाँ स्त्रियों को पर्देयोग्य समझते हैं तो मनु भी मनुस्मृति-9/2 मे लिखते हैं- "अस्वतन्त्रः स्त्रियः कार्याः पुरुषैः स्वैर्दिवानिशम्।"
अर्थात- पुरुष द्वारा अपने स्त्रियों को कभी स्वतंत्रता नही देनी चाहिये।

अल्लाह का मानना है कि एक पुरुष की गवाही दो स्त्रियों के बराबर है, तो मनु ने स्त्रियों की गवाही ही खारिज कर दी है!
अल्लाह तो कम से कम दो स्त्री बराबर एक पुरुष मानते हैं, पर मनु ने तो इन्हे मान्यता ही नही दी है!
मनु कहते हैं-
"एकोऽलुब्धस्तु साक्षी स्याद् बह्वच्य शुच्योऽपि न स्त्रियः।
स्त्रीबुद्धेरस्थिरत्वात्तु दोषैश्चान्येऽपि ये वृताः"
                                             मनुस्मृति-8/77
अर्थात- एक निर्लोभी पुरुष भी साक्षी हो सकता है, परन्तु अनेक स्त्रियां पवित्र होने पर भी साक्षी नही हो सकती, क्योंकि स्त्रियों की बुद्धि चंचल होती है! और अन्य मनुष्य भी जो दोषों से घिरें हैं, साक्षी होने के योग्य नही होते।

            अल्लाह की नजर मे स्त्रियाँ खेती हैं, तो आश्चर्य की बात है कि मनु का भी यही मानना है!
मनुस्मृति-9/33 मे लिखा है-
"क्षेत्रभूता स्मृता नारी बीजभूतः स्मृत पुमान।
क्षेत्रबीजसमायोगात् सम्भवः सर्वदेहिनाम् ।।"
अर्थात- स्त्री को खेत (क्षेत्र) और पुरुष को बीज (अनाज) रूप माना गया है, खेत और बीज के मिलन से जीवों की उत्पत्ति होती है।
बल्कि मनु ने 9/41 मे कहा है कि पराये खेत मे पुरुष को अपना बीज नही बोना चाहिये, और 9/49 मे कहते हैं-
"येऽक्षेत्रिणो बीजवन्तः परक्षेत्रप्रवापिणः।
ते वै सस्यस्य जातस्य न लभन्ते फलं क्वचित् ।।"
अर्थात- जिसके पास खेत (स्त्री) नही है, वह दूसरे के खेत मे बीज बोता है तो उसमे उत्पन्न धान्य (बालक) को वह पाने का अधिकारी नही है।

अल्लाह स्त्रियों के द्वारा व्यभिचार के प्रति बड़े सख्त थे, तो मनु भी पीछे नही थे, बल्कि अगर स्त्री व्यभिचार कर ले तो मनु ने उसकी शुद्धि का मंत्र भी बताया है!
मनु ने 9/20 मे लिखा है-
अगर कोई स्त्री की पर-पुरुष से व्यभिचार कर लेती है तो उसकी शुद्धि के लिये मनु ने एक मंत्र भी बताया है, जो निम्न है-
"यन्मे माता प्रलुलुभे विचरन्त्यपतिव्रता।
तन्मे रेतः पिता वृक्तामित्यस्यैतन्निदर्शनम् ।।"
इस मंत्र का अर्थ है - 'मेरी माता ने अपवित्रता पूर्वक घूमते हुये पराये घर मे जाकर पर पुरुष की इच्छा की, अतः उसके दूषित रज को मेरे पिता शुद्ध करें'
मनु का यह भी दावा है कि यह वेदमंत्र है।

वैसे कई मामले मे मनु अल्लाह से भी दो कदम बढ़कर थे, जैसे स्त्री विधवा विवाह!
मनु का मानना था कि विधवा का पुनः विवाह नही होना चाहिये! मनु ने बाकयदा 9/65 मे इसे लिखा भी है-
"नोद्वाहिकेषु मन्त्रेषु नियोगः कीर्त्यते क्वचित् ।
न विवाहविधावुक्तं विधवावेदनं पुनः।।"
अर्थात- विवाह के वेदमंत्रों मे नियोग का कही उल्लेख नही है, और न ही विवाह विषयक शास्त्रों मे विधवा विवाह का उल्लेख है।

अल्लाह का मानना था कि जो अपना धर्म छोड़ता है वह जहन्नुम मे जाता है, तो मनु के विचार भी ऐसे ही थे!
अल्लाह ने कुरान-17/39 मे कहा है कि-" अल्लाह के साथ किसी और को न पूजना, अन्यथा नर्क मे डाल दिये जाओगे"
अब मनु ने भी 4/81 मे लिखा है-
"यो ह्यस्य धर्ममाचष्टे यश्चैवादिशति व्रतम् ।
सोऽसंवृतं नाम तमः सह तेनैव मज्जति।।"
अर्थात- दूसरे धर्म का उपदेश और व्रत का जो पालन करता है, वह उस शूद्र सहित असंवृत नामक अंधकारमय नरक मे जा गिरता है!

अब कुछ लोग सोचेगें कि क्या मनु के समय मे दूसरा धर्म भी था, तो मै बता दूँ कि उस काल मे दस्युधर्म था, जो रक्ष संस्कृति को मानते थे और मनुस्मृति मे इसका व्याख्यान भी है!
मनु ने तो 5/89 मे यह भी कहा है कि जिन्होने अपना धर्म त्याग दिया हो, उन्हे जलाञ्जलि भी नही देनी चाहिये।

बहुविवाह की बात भी केवल कुरान ही नही करता, मनु ने भी एक से अधिक विवाह को उचित माना है!
मनु के अनुसार पहली पत्नि की इच्छा के विपरीत भी पुरुष को दूसरा विवाह करना चाहिये, और अगर पत्नि विरोध करे तो उसे त्याग देना चाहिये!
मनु का यह श्लोक देखें...
"अधिविन्ना तु या नारी निर्गच्छेद्रुषिता गृहात् ।
सा सद्यः संनिरोध्दव्या त्याज्या वा कुलसन्निधौ।।"
                                          मनुस्मृति-9/83
अर्थात- दूसरा व्याह करने पर यदि पहली स्त्री रुष्ठ होकर घर से भागे तो उसे पकड़कर घर मे बन्द कर देना चाहिये, या उसे उसके मायके पहुँचा देना चाहिये।

यही नही मनु तो कुरान की ही तरह बालविवाह को भी जायज मानते थे! मनु ने 9/88 मे लिखा है-
"उत्कृष्ठायाभिरूपाय वराय सदृशाय च।
अप्राप्तामपि तां तस्मै कन्यां दद्याद्यथाविधिः।।
अर्थात- उत्तम कुल और सुन्दर वर मिल जाये तो कन्या के विवाह योग्य न होने पर भी ऐसे वर से उसका विवाह विधिवत कर देना चाहिये।

मनुस्मृति के और भी आदेश कुरान के जैसे ही है, जैसे- मनु 7/96 मे कहते हैं कि जो सैनिक दासी को युद्ध मे जीतकर लाता है, उस पर उसी का अधिकार है!
यह ठीक वैसे ही है, जैसे अल्लाह कहते हैं कि युद्ध मे मिली लौडी हलाल है!
आगे मनु 7/194 मे लिखते हैं कि शत्रु के अन्दर खौफ पैदा करने के लिये उसके अन्न, जलायश जला दो और राज्य मे घेरा डालो, यह ठीक उसी तरह है जिस तरह अल्लाह आदेश देते हैं कि मूर्तिपूजकों की घात मे बैठो, और काफिरों के अन्दर धाक पैदा कर दो!

और भी बहुत सारी समानताऐं हैं मनुस्मृति तथा कुरान मे, जिसे लिखने पर पोस्ट बहुत बड़ा हो जायेगा।

6 टिप्‍पणियां:

  1. योगेश जी जिस कुरआन की सूरा ओर आयात को आपने अपने ब्लॉग मे डाला है उसमे तोवो बात कहीं भी नही लिखी जो आपने कहीं?


    (और ख़ुदा ही ने तुममें से बाज़ को बाज़ पर रिज़क (दौलत में) तरजीह दी है फिर जिन लोगों को रोज़ी ज्यादा दी गई है वह लोग अपनी रोज़ी में से उन लोगों को जिन पर उनका दस्तरस (इख्तेयार) है (लौन्डी ग़ुलाम वग़ैरह) देने वाला नहीं (हालॉकि इस माल में तो सब के सब मालिक गुलाम वग़ैरह) बराबर हैं तो क्या ये लोग ख़ुदा की नेअमत के मुन्किर हैं)
    अल कुरआन सुरा 16 आयात 71

    यह वो आयात है जिसका reference आप ने उपर दिया है लगता है आप का ज्ञान भी whatsapp यूनिवर्सिटी से लिया हुआ है

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    1. जिनको ख़ुद अल्लाह शब्द का meaning नहीं पता वो दूसरे को whatsapp University का ज्ञाता बोल रहा है! चूतियां कहीं का

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  2. मनु स्मृति में तुमने अधिक बात झूठ बोला हे कई स्लोक तुमने भ्रांति फैलाने के लिए जोड़ा है । जो साफ पता चलता है । मनु स्मृति दुनिया की सबसे अच्छी बुक है।

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  3. Dikkat manu me nhi aur naa hi mausmriti me thi dikkat tumhare jaise lutere mughlo me thi jinhone usme ulta sidha bhut kuch likha taaki hindu aapas me hi ladd ke mrrrr jaay samjhta hoon मै


    अंग्रेज़ भी व्ही थे जिहोन नालंदा यूनिवर्सिटी जलादी ताकि हिन्दू सनातन धर्म को भ्रष्ट और उसमे फुट दाली जा सकी

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  4. Read vishuddh manusmriti. Aapki menhant waste ho gayi sari 😂 😂 😂

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  5. श्रीमान ज्यादा बुद्धुजीवी ना बने,ओर मनुस्मृति को ध्यान से पढे । किस परिप्रेक्ष्य में क्या बात कही है वो पता करो पहले । आ जाते हो अपना मोलाना वाले ज्ञान को फैलाने

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