आधुनिक काल में रूढि वादी लोग अहीरों को यह कह कर कोसते रहते हैं कि अहीरों नें यदुवंशी कृष्ण की 16000 पत्नीयाें को अर्जुन को परास्त कर लूट लिया था । अब वही अहीर यादव बनते हैं ! " वस्तुत उपर्युक्त कथन रूप रूपेण असंगत मिथ्या व विरोधाभासी है ।
देखिए ! कैसे ? पहली बात यह कि
गोप ,अहीर तथा यादव परस्पर पर्याय वाची विशेषण शब्द हैं ।
गोप विशेषण गो- पालन करने वाला होने से वृत्ति( व्यवसाय )परक है । यदु को भी वेदों में गो - चारण करते हुए वर्णित किया गया है ।
उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टी गोपरीणसा यदुस्तुर्वश्च च मामहे। (10/62/10 ऋग्वेद)
अहीर शब्द प्राकृत भाषाओं में प्रचलित आभीर संस्कृत रूप तथा अबीर हिब्रू एवं ईरानी रूप का ही एक प्रतिरूप है।
अभीर शब्द का अर्थ निडर , अथवा निर्भीक होता है ।
---जो कि वीरता का प्राण है । यह विशेषण स्वभाव ( प्रवृत्ति गत) है। और यादव विशेषण यदोर्पत्यं इति यादवा: के रूप में वंश गत विशेषण है ।
इस लिए विरोधीयों का यह कहना मूर्खता पूर्ण व हास्यास्पद ही है कि अहीरों ने यादव लिखने शुरु कर दिया । सन् 1922 में उससे पहले सब अहीर थे ।
मात्र बकवास ही है ।
और अहीरों अथवा गोपों ने गुजरात के प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर गोपियों या कृष्ण की स्त्रीयों को क्यों लूटा था ?
इस घटना की पृष्ठ-भूमि का प्रारूप यह है कि
"जब अर्जुन और दुर्योधन दौनों विपक्षी यौद्धा ;
जब कृष्ण के पास युद्ध में लिए सहायता माँगने के लिए गये तो ;
श्री कृष्ण ने उन दौनों से यह कह कह कर प्रस्तावित किया कि " आप दौनों ही मेरे लिए समान रूप में हो !
आपकी युद्धीय स्तर पर सहायता के लिए :-
एक ओर तो मेरी गोपों (यादवों )की नारायणी सेना होगी !
और दूसरी और ---मैं स्वयं नि:शस्त्र रहुँगा !
दौनों विकल्पों में जो अच्छा लगे उसका आप दौनों चयन कर लो !
तब स्थूल बुद्धि दुर्योधन ने कृष्ण की नारायणी गोप - सेना को चयन किया !
और अर्जुन ने स्वयं कृष्ण को !
गोप अर्थात् अहीर निर्भीक यदुवंशी यौद्धा तो थे ही इसमें कोई सन्देह नहीं !
इसी लिए दुर्योधन ने उन गोपों का ही नारायणी सेना के रूप में चुनाव किया !
अत: नारायणी सेना के अहीर (यादव) दुर्योधन के पक्ष में थे ।
और समस्त यादव यौद्धा तो अर्जुन से तो पहले से ही क्रुद्ध थे !
क्योंकि यादवों की वीरता को धता बता कर अर्जुन ने दोखे (छल) से बलराम की बहिन सुभद्रा का अपहरण कर लिया था ।
कहते हैं कि इस अपहरण के लिए कृष्ण की सहमति थी परन्तु ये तो यादवों अथवा समस्त गोपों के पौरुष को ललकारना ही था
और गोप अथवा यादव इसे यदु वंश का अपमान समझ रहे थे ।
यही कारण था कि ; गोपों (अहीरों)ने अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर लूट लिया था ।
क्योंकि नारायणी सेना के ये यौद्धा दुर्योधन के पक्ष में थे
और यादव अथवा अहीर स्वयं ही ईश्वरीय शक्तियों (देवों) के अंश थे तब प्रभास क्षेत्र में अर्जुन इनका मुकाबला कैसे करता ?
यादव किसी के साथ विश्वास घात कभी नहीं करते थे ।
इनकी युद्ध - नीति भी सबसे भिन्न थी ।
क्यों कि यह क्षात्र-धर्म के विरुद्ध भी था ।
गर्ग संहिता अश्व मेध खण्ड अध्याय 60,41,में यदुवंशी गोपों ( अहीरों) की कथा सुनने और गायन करने से मनुष्यों के सब पाप नष्ट हो जाते हैं ; एेसा वर्णन है ।
महाभारत के मूसल पर्व में आभीर शब्द के रूप में ---जो अहीरों के द्वारा अर्जुन को परास्त कर लूट लेने की घटना वर्णित की गयी है ।
निश्चित रूप से मूल भाव से मेल नहीं खाती है ।
क्योंकि यहाँ अर्जुन और यादवों (गोपों) के युद्ध की पृष्ठ-भूमि का वर्णन नहीं है ! कि गोपों ने अर्जुन को परास्त कर क्यों लूटा ?
केवल द्वेष वश अहीरों के विरोधीयों ने अहीरों को यदुवंशीयों की स्त्रीयों को लूटने वाला लुटेरा ही वर्णित कर और अहीरों को अशुभ-दर्शी तथा पापकर्म करने वाला लोभी के रूप में वर्णन करना महाभारत कार की अहीरों के प्रति विकृतिपूर्ण अभिव्यक्ति मात्र है ।
अथवा ये प्रक्षिप्त (नकली) जोड़-तोड़ कर दी गयी है । वैसे भी महाभारत एक व्यक्ति की तो रचना है नहीं क्योंकि महाभारत में बहुत सी काल्पनिक मनगढ़न्त व हास्यास्पद बातें भी हैं । अस्तु !
इसी अहीरों और अर्जुन वाली घटना को भागवतपुराणकार ने भी आभीर के स्थान पर गोप शब्द के प्रयोग द्वारा गोपों को दुष्ट विशेषण के द्वारा अभिव्यक्ति किया है ।
अहीरों अथवा गोपों ने अर्जुन सहित कृष्ण की 16000 गोपिकाओं के रूप में पत्नियों को लूटा था
निश्चित रूप से गोपों द्वारा अर्जुन को परास्त करने की घटना तो घटित हुई होगी परन्तु गोपिकाओं को लूटना यह अतिरञ्जना ( अतिश्योक्ति )ही है ।
ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतस ।
आभीरा मन्त्रामासु समेत्यशुभ दर्शना ।।
अर्थात् उसके बाद उन सब पाप कर्म करने वाले लोभ से युक्त अशुभ दर्शन अहीरों ने अापस में सलाह करके एकत्रित होकर वृष्णि वंशीयों गोपों की स्त्रीयों सहित अर्जुन को परास्त कर लूट लिया ।।
महाभारत मूसल पर्व का अष्टम् अध्याय का यह 47 श्लोक है।
निश्चित रूप से यहाँ परनिश्चित रूप से यहाँ पर युद्ध की पृष्ठ-भूमि का वर्णन ही नहीं है ।
और इसी बात को बारहवीं शताब्दी में रचित ग्रन्थ -भागवत पुराण के प्रथम अध्याय स्कन्ध एक में श्लोक संख्या 20 में आभीर शब्द के स्थान पर गोप शब्द के प्रयोग द्वारा अर्जुन को परास्त कर लूट लेने की घटना का वर्णन किया गया है ।
इसे भी देखें---
______
"सो८हं नृपेन्द्र रहित: पुरुषोत्तमेन
सख्या प्रियेण सुहृदा हृदयेन शून्य: ।।
अध्वन्युरूक्रम परिग्रहम् अंग रक्षन् ।
गौपै: सद्भिरबलेव विनिर्जितो८स्मि ।२०।
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हे राजन् ! जो मेरे सखा अथवा प्रिय मित्र ---नहीं ,नहीं मेरे हृदय ही थे ; उन्हीं पुरुषोत्तम कृष्ण से मैं रहित हो गया हूँ । कृष्ण की पत्नीयाें को द्वारिका से अपने साथ इन्द्र-प्रस्थ लेकर आर रहा था ।
परन्तु मार्ग में दुष्ट गोपों ने मुझे एक अबला के समान हरा दिया।
और मैं अर्जुन कृष्ण की गोपिकाओं अथवा वृष्णि वंशीयों की पत्नीयाें की रक्षा नहीं कर सका!
(श्रीमद्भगवद् पुराण अध्याय
एक श्लोक संख्या २०)
पृष्ठ संख्या --१०६ गीता प्रेस गोरखपुर संस्करण देखें-
महाभारत के मूसल पर्व में गोप के स्थान पर आभीर शब्द का प्रयोग सिद्ध करता है।
कि गोप शब्द ही अहीरों का विशेषण है।
हरिवंश पुराण यादवों का गोप (अहीर) अथवा आभीर
रूप में ही वर्णन करता है ।
यदुवंशीयों का गोप अथवा आभीर विशेषण ही वास्तविक है ; क्योंकि गोपालन ही इनकी शाश्वत वृत्ति (कार्य) वंश परम्परागत रूप से आज तक अवशिष्ट रूप में मिलता है ।
महाभारत के खिल-भाग हरिवंश पुराण में नन्द ही नहीं अपितु वसुदेव को गोप ही कहा गया है।
और कृष्ण का जन्म भी गोप (आभीर)के घर में बताया है ।
प्रथम दृष्ट्या तो ये देखें-- कि वसुदेव को गोप कहा है।
यहाँ हिन्दी अनुवाद भी प्रस्तुत किया जाता है ।
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"इति अम्बुपतिना प्रोक्तो वरुणेनाहमच्युत ।
गावां कारणत्वज्ञ:कश्यपे शापमुत्सृजन् ।२१
येनांशेन हृता गाव: कश्यपेन महर्षिणा ।
स तेन अंशेन जगतीं गत्वा गोपत्वमेष्यति।२२
द्या च सा सुरभिर्नाम अदितिश्च सुरारिण:
ते८प्यमे तस्य भार्ये वै तेनैव सह यास्यत:।।२३
ताभ्यां च सह गोपत्वे कश्यपो भुवि संस्यते।
स तस्य कश्यस्यांशस्तेजसा कश्यपोपम: ।२४
वसुदेव इति ख्यातो गोषु तिष्ठति भूतले ।
गिरिगोवर्धनो नाम मथुरायास्त्वदूरत: ।२५।
तत्रासौ गौषु निरत: कंसस्य कर दायक:।
तस्य भार्याद्वयं जातमदिति सुरभिश्च ते ।२६।
देवकी रोहिणी देवी चादितिर्देवकी त्यभृत् ।२७।
सतेनांशेन जगतीं गत्वा गोपत्वं एष्यति।
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गीता प्रेस गोरखपुर की हरिवंश पुराण 'की कृति में
श्लोक संख्या क्रमश: 32,33,34,35,36,37,तथा 38 पर देखें---
अनुवादक पं० श्री राम नारायण दत्त शास्त्री पाण्डेय "राम" "ब्रह्मा जी का वचन " नामक 55 वाँ अध्याय।
उपर्युक्त संस्कृत भाषा का
अनुवादित रूप इस प्रकार है
:-हे विष्णु ! महात्मा वरुण के ऐसे वचनों को सुनकर तथा इस सन्दर्भ में समस्त ज्ञान प्राप्त करके भगवान ब्रह्मा ने कश्यप को शाप दे दिया और कहा
।२१। कि हे कश्यप अापने अपने जिस तेज से प्रभावित होकर वरुण की उन गायों का अपहरण किया ।
उसी पाप के प्रभाव-वश होकर तुम भूमण्डल पर तुम अहीरों (गोपों) का जन्म धारण करें ।२२।
तथा दौनों देव माता अदिति और सुरभि तुम्हारी पत्नीयाें के रूप में पृथ्वी पर तुम्हरे साथ जन्म धारण करेंगी।२३।
इस पृथ्वी पर अहीरों ( ग्वालों ) का जन्म धारण कर महर्षि कश्यप दौनों पत्नीयाें अदिति और सुरभि सहित आनन्द पूर्वक जीवन यापन करते रहेंगे ।
हे राजन् वही कश्यप वर्तमान समय में वसुदेव गोप के नाम से प्रसिद्ध होकर पृथ्वी पर गायों की सेवा करते हुए जीवन यापन करते हैं।
मथुरा के ही समीप गोवर्धन पर्वत है; उसी पर पापी कंस के अधीन होकर वसुदेव गोकुल पर राज्य कर रहे हैं।
कश्यप की दौनों पत्नीयाें अदिति और सुरभि ही क्रमश: देवकी और रोहिणी के नाम से अवतीर्ण हुई हैं
२४-२७।(उद्धृत सन्दर्भ --)
यादव योगेश कुमार' रोहि' की शोध श्रृंखलाओं पर आधारित---
पितामह ब्रह्मा की योजना नामक ३२वाँ अध्याय पृष्ठ संख्या २३० अनुवादक -- पं० श्रीराम शर्मा आचार्य " ख्वाजा कुतुब संस्कृति संस्थान वेद नगर बरेली संस्करण)
अब कृष्ण को भी गोपों के घर में जन्म लेने वाला बताया है ।
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गोप अयनं य: कुरुते जगत: सार्वलौकिकम् ।
स कथं गां गतो देशे विष्णुर्गोपर्त्वमागत: ।।९।
अर्थात्:-जो प्रभु भूतल के सब जीवों की
रक्षा करनें में समर्थ है ।
वे ही प्रभु विष्णु इस भूतल पर आकर गोप (आभीर) क्यों हुए ? अर्थात् अहीरों के घर में जन्म क्यों ग्रहण किया ? ।९।
हरिवंश पुराण "वराह ,नृसिंह आदि अवतार नामक १९ वाँ अध्याय पृष्ठ संख्या १४४ (ख्वाजा कुतुब वेद नगर बरेली संस्करण)
सम्पादक पण्डित श्री राम शर्मा आचार्य और इतना ही नहीं समस्त ब्राह्मणों की आराध्या ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सत्ता गायत्री भी नरेन्द्र सेन अहीर की कन्या हैं ।
और उसका वर्णन भी आभीर तथा गोप शब्द के पर्याय वाची रूप में वर्णित किया है ।
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कुछ मूर्ख रूढ़ि वादी ब्राह्मणों ने यादवों के प्रति द्वेष स्वरूप गलत रूप में प्रस्तुत किया है।
क्योंकि अर्जुन और यादवों (गोपों)के मध्य पूर्व युद्ध की पृष्ठ-भूमि को वर्णित ही नहीं किया है ।
यादवों की किसी कन्या का अपहरण उस समय उनकी प्रतिष्ठा का विषय था ।
अब गोपों ने भी एक स्त्री के अप हरण में अर्जुन के साथ चलने वाली हजारों स्त्रीयों का अपहरण किया ! और वे स्त्रीयाँ वृष्णि वंशी गोपों की पत्नी रूप में गोपिकाऐं ही थीं ।
तो इसमें अहीर और यादव कहाँ अलग अलग वर्णित हुए हैं ?
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और इसी लिए कुछ मूर्खों को अहीरों के विषय में यह कहने का अवसर मिल जाता है कि " अहीरों ने गोपिकाओं सहित प्रभास क्षेत्र में अर्जुन को परास्त कर लूट लिया था ।
परन्तु जिसे द्वेष वश कुछ रूढ़ि वादीयों ने इस घटना को गलत रूप में प्रस्तुत किया है ।
कि जैसे अहीरों ने अर्जुन सहित यदुवंशी गोपिकाओं को लूट लिया था।
तो ये बकवास चलने वाली नहीं है ।
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और राज पूत इस बात को अहीरों के यादव न होने के रूप में प्रमाण के तौर पर पेश भी करते हैं ।
और मूर्ख स्वयं को यदुवंशी होने की दलील देते हैं।
तो ये सब उनकी मानसिक विक्षिप्तता है ।
महाभारत के विक्षिप्त (नकली )मूसल पर्व के अष्टम् अध्याय का वही श्लोक यह है 😃और जिसका प्रस्तुति करण ही गलत है ।
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दूसरी अहीरों के खिलाफ यह दलील दी जाती है कि
राम ने महात्मा समु्द्र के कहने पर उत्तर दिशा में स्थित द्रुमकुल्य देश में अहीरों को राम ने समु्द्र के कहने पर मार दिया था ।
अब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि जब राम ने अहीरों को मार दिया और सम्पूर्ण अहीर नष्ट भी हो गये तो फिर ये अहीर आज कहाँ से आ गये ?
क्योंकि राम का मारा हुआ रावण अभी तक नहीं आया विद्वत्व की पोल खुल गयी है ।
जिन्होंने योजना बद्ध विधिइसका तात्पर्य है कि अहीर रावण से भी प्रबल हैं
निश्चित रूप इन विरोधाभासी तथ्यों से ब्राह्मणों के से समाज में ब्राह्मण वर्चस्व स्थापित कर के लिए सारे -ग्रन्थों पर व्यास की मौहर लगाकर अपना ही स्वार्थ सिद्ध किया है ।
ये सारी हास्यास्पद व विकृतिपूर्ण अभिव्यञ्जनाऐं पुष्यमित्र सुंग के अनुयायी ब्राह्मणों की हैं।
समाज में अव्यवस्था उत्पन्न करने में इनके आडम्बरीय रूप का ही योगदान है ।
तुलसी दास जी भी इसी पुष्य मित्र सुंग की परम्पराओं का अनुसरण करते हुए लिखते हैं ।
राम चरित मानस के युद्ध काण्ड में राम और समुद्र के सम्वाद रूप में अहीरों के वध करने के लिए राम को दिया गया समुद्र सुझाव -
तुलसी दास ने वाल्मीकि-रामायण को उपजीव्य मान कर ही राम चरित मानस की रचना की है ।
रामचरितमानस में भी तुलसीदास ने लिखा है कि " आभीर, यवन, । किरात ,खस, स्वपचादि अति अधरुपजे। अर्थात् अहीर, यूनानी बहेलिया, खटिक, भंगी आदि पापयो को हे प्रभु तुम मार दो
वाल्मीकि-रामायण में राम और समुद्र के सम्वाद रूप में वर्णित युद्ध-काण्ड सर्ग २२ श्लोक ३३पर इसी का मूल विद्यमान है देखें---
समुद्र राम से निवेदन करता है ! हे प्रभु आप अपने अमोघ वाण उत्तर दिशा में रहने वाले अहीरों पर छोड़ दे--और उन अहीरों को नष्ट कर दें..
जड़ समुद्र भी राम से बाते करता है ।
और राम समु्द्र के कहने पर सम्पूर्ण अहीरों को अपने अमोघ वाण से त्रेता युग-- में ही मार देते हैं ।
परन्तु अहीर आज भी कलियुग में जिन्दा होकर ब्राह्मण और राजपूतों की नाक में दम किये हुए हैं ।
उनके मारने में रामबाण भी चूक गया ।
निश्चित रूप से यादवों (अहीरों) के विरुद्ध इस प्रकार से लिखने में ब्राह्मणों की धूर्त बुद्धि ही दिखाई देती है।
कितना अवैज्ञानिक व मिथ्या वर्णन है ।
जड़ समुद्र भी अहीरों का शत्रु बना हुआ है जिनमें चेतना नहीं हैं फिर भी ;ब्राह्मणों ने राम को भी अहीरों का हत्यारा' बना दिया ।
और हिन्दू धर्म के अनुयायी बने हम हाथ जोड़ कर इन काल्पनिक तथ्यों को सही मान रहे हैं। भला हो हमारी बुद्धि का जिसको मनन रहित श्रृद्धा (आस्था) ने दबा दिया । और मन गुलाम हो गया पूर्ण रूपेण अन्धभक्ति का ! आश्चर्य ! घोर आश्चर्य !
" उत्तरेणावकाशो$स्ति कश्चित् पुण्यतरो मम ।
द्रुमकुल्य इति ख्यातो लोके ख्यातो यथा भवान् ।।३२।।उग्रदर्शनं कर्माणो बहवस्तत्र दस्यव: ।
आभीर प्रमुखा: पापा: पिवन्ति सलिलम् मम ।।३३।।तैर्न तत्स्पर्शनं पापं सहेयं पाप कर्मभि: ।
अमोघ क्रियतां रामो$यं तत्र शरोत्तम: ।।३४।।
तस्य तद् वचनं श्रुत्वा सागरस्य महात्मन: ।
मुमोच तं शरं दीप्तं परं सागर दर्शनात् ।।३५।।
(वाल्मीकि-रामायण युद्ध-काण्ड २२वाँ सर्ग)
अर्थात् समुद्र राम से बोला हे प्रभो ! जैसे जगत् में आप सर्वत्र विख्यात एवम् पुण्यात्मा हैं ।उसी प्रकार मेरे उत्तर की ओर द्रुमकुल्य नामका बड़ा ही प्रसिद्ध देश है ।३२।
जिनके कर्म और रूप बड़े भयानक हैं ।
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प्रस्तुति करण- यादव योगेश कुमार 'रोहि'
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