शनिवार, 23 दिसंबर 2017

प्रेम की परिभाषा :---- यादव योगेश कुमार'रोहि'की गवेषणाओं पर आधारित

आओ ! हम और तुम ! मोहब्बत को दो शब्दों में परिभाषित करने की चेष्टा करें !
" वास्तव में मोहब्बत एक
             ख़ूबसूरत लगने वाला छलावा है ।
परन्तु यह जरूरत है
                हर इन्साँ की  यह मेरा दाबा है ।।
जिसे आप ख़ूबसूरती कहते हो आश़िक
        वह केवल प्रवृत्तियों का एक उमड़ता लावा है
और ये तो उमड़ेगा ही क्योंकि संसार की इससे आभा है

प्रेम वस्तुत: स्वभाव नहीं एक प्रवृत्ति है ।स्भाव तो इन्सान बदल भी
सकता है परन्तु,
प्रवृत्तियों को कभी नहीं ।
जैसे सी.पी.यू. का सिस्टम सॉफ्टवेयर तथा एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर होते हैं । उसी प्रकार हमारी प्रवृत्तियाँ और स्व भाव ।
एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर को तो हम बदल सकते हैं परन्तु सिस्टम सॉफ्टवेयर को नहीं ।
______________________________________
प्रेम ही सृष्टि का  मूल है ।
       इसका भी एक अद्भुत उसूल है ।
टूट जाते तन्हाईयों में वे सब
       जो कहते हैं कि मोहब्बत एक भूल है ।
मोहब्बत एक आवेश भी है ।
            ईश्वरीय सत्ता का अवशेष भी है ।
हुश़्न की सलाई मोहब्बत के धागे ।
     जीवन का पट बुनते हुए जागे ।।
यह इन्साँ भी अपने नाम को सार्थक करता है ।
कन्या प्रेम चाहती है , किशोर इसके सौन्दर्य पे मरता है
और कहता है :--
" तू हुश़्न की मलिका ! बाला ( बालिके)
                          मैं इश़्क शाहँशाह ।
तुझको ज़रूरत है मेरी ,
                        मुझको भी तेरी चाह !!
और आगे भी ...
वीरान सी जिन्द़गी है मोहब्बत भी जगी है ।
तुझको ढूढ़ती है मेरी निगा़ह ।
तुझसे ही होगा अब मेरा निकाह ।।

__________________________________________
come ! I and me  ! Try to define love in two words!
"In fact, love is a beautiful euphemism, but it is the need of every human being that it is my press,
which is called beauty, it is only a tendency of trends.
Man can change the nature, never trends.
Like the C.P.U. Are system software and application software.
We can change the application software but not the system software.
_________________________________________
Love is the root of creation.
       It also has a wonderful principle.
All those who are broken
       Who says that love is a mistake.
Love is also a passion.
      There is also a remnant of divine power.
Thush of Brightness's Salai (weaver stick) Mohabbat (love)
     Waking the way of life ...
This also makes his name meaningful.
Virgo wants love, Teen dies of beauty
And he says, "You are the guean of Hushn ( Beautyness )!
Bala ( infatuated Girlfriend ) I'm Ishq ShahnShah (emperor of libidos)
You need me, I want you too!
And further ...
Heroine is alive, love is alive too.
I find you, my eyes
Only you will be my wife bridge ..
____________________________________
  इष् :----इच्छायाम्.  अर्थात् इच्छा करने में
 केचिदुदितं पठन्ति तस्य च प्रयोजनमिड्विकल्पे छविधौ चोदितोऽनुवाद इति,
तद्विधानेऽपि तथा पठतो दैवादिकक्रैयादिकयोस्तौ न भवत इत्याहुः न च क्त्वायामिड्विकल्पः प्रयोजनं, "तीषसह'' इति तादाविड्विकल्पनात् ये त्वनुदितं पठन्ति ते "तीषसह'' इत्यत्राकारमात्रविकरणेन सहिना साहचर्य्यात्तादृशस्तौदादिक एव ग्रहीष्यतइतीतरयोरग्रहणमाहुः तथा "इषुगमियमां छ'' इत्यत्रापि "क्सस्याचि'' इत्यतोऽचीत्यनुवर्तते, तच्च "ष्ठिवुक्लमु'' इत्यतोऽनुवृत्तेन शितीत्यनेन विशेष्यतइति शिति विधीयमानं छत्वमपि तौदादिकस्यैव सम्भवति नेतरयोरित्याहुः ( इच्छति, इच्छेत् ) "इच्छार्थेभ्यो विभाषा वर्तमाने'' इति लिङ्लटौ ( इयेष, ईषतुः, ) पिति तु परत्वाद् गुणे कृते "अभ्यासस्यासवर्णे'' इतीयङ् अन्यत्र सवर्णदीर्घः ( एषिता एष्ठा एषिष्यति इच्छतु इच्छेत् ऐषीत् इच्छा ) "हच्छा'' इति शप्रत्ययो यगभावश्च निपात्यते ( इष्टिः ) इति बाहुलकात् क्तिच् "तितुत्र'' इतीड्निषेधः ( एषणी ) करणे ल्युट् ( इच्छुः ) "बिन्दुरिच्छुः'' इत्युप्रत्ययान्तो निपात्यते ( एषित्वा, इष्ट्वा ) "तीषसह'' इतीड्विकल्पः, "न क्त्वासेङ्'' इत्यकित्त्वम् (इष्टः इष्टवान् ) "यस्य विभाषा'' इत्यन्ट्त्विम् इष्यतीति श्यनि गतम( 70)
________________________________________
वाञ्छायाम् तुदा० पर० सक० सेट् वेट् क्त्वः । १ इच्छति, “इच्छामि संबर्द्धितमाज्ञयाते” कुमा० । इच्छेत् “यदीच्छे- द्विपुलान् भोगान्” मल० त० पु० । “राजान्तेवासि- याज्येभ्यः सीदन्नोच्छेद्धनं क्षुधा” या० स्मृ० । ऐच्छत् ऐषीत् “ऐषीः पुनर्जन्मजयाय यत्त्वम्” भट्टिः इयेष “इयेष सा कर्त्तुमबन्ध्यमात्मनः” कुमा० ईषतुः । इच्छन् “किमच्छन् कस्य कामाय किमर्थमनुसंज्वरेत्” श्रुतिः । एषिता--ऐष्टा एषित्वा--इष्ट्वा । भावे श इच्छा “आत्मजन्या भवेदिच्छा” न्यायका० । इष्टः “इष्टोऽसि मे सखा चेति” गीता । कर्मणि इष्यते “त्रिरात्राच्छुद्धिष्यते” स्मृतिः । एष्टव्यः एषितव्यः । “एष्टव्या बहवः पुत्रायद्येकोऽपि गयां व्रजेत्” पु० । अनु + अन्वेषणे । “तं खलन्त इवान्वीषुः” शत० ब्रा० । “हन्त तमात्मानमन्विच्छामो यमन्वेष्टा” छा० उ० । “अनु- पदसन्वेष्टा” पा० “वयं तत्त्वान्वेषात् मधुकर! हतस्त्वं खलु कृती” शकु० प्रति + प्रतिग्रहे प्रतीच्छति (प्रतिगृह्णाति) । “ततः प्रतीच्छ प्रहरेति वादिनी” नैष० “स्नुषां प्रतीच्छ मे कन्याम्” प्राप्तौ च “बुद्धौ शरणमन्विच्छ” गीता । स्वार्थे णिच् वेदे० नि० गुणाभावः । इषयति “इच्छंस्तदा- स्तरायेष मदन्त इपयेम ज्योतिः” ऋ० १, १८५, ९ । “इषयेम इच्छाम” भा० । परि + अन्वेषणे च परीच्छति (अन्विष्यति) “भगवन्तं वा अहमेभिरार्त्विज्यैः पर्य्यैषिषम्” छा० उ० । अभि + मस्मगिच्छायाम् अभोष्टम् ।
(इच्छतीति इषियुधीति मक् ।) कामदेवः । वसन्तकालः । इति सिद्धान्तकौमुद्यामुणादिवृत्तिः ॥ [कालः । इति हेमचन्द्रः ॥
--------------------------------------------------------------
-------------------------------------------------- ------------
The Indian-Iranian family's metal (the basic form of verb) walks in, walks, receives, follows, seeks, finds etc. Prices are embodied. These omnipotent verbs and stages in the word Ishq are present in sight ...
Words of love are the meaning of the word love. This word is also in Arabic and also in Persian.
Some linguists consider the Indo-Iranian family not to be the word of the Semitic language family. If seen, this word is just short of the Semantic language family and more of the Indo-Iranian family.
 Due to the etymology of the word there is no mantra. Mohamed Hadrian Maliyyi, the famous astronomer and linguist of Iranian origin, has counted the important reasons for Ishk-e-Indo-Indo-Iranian.
Aus verb-origin of the word in the language of Indo-Aryan language is proposed.....
भारतीय-ईरानी परिवार की धातु ( क्रिया का मूल रूप )इष्  में चलना, फिरना, प्राप्त करना, अनुसरण करना, तलाश करना, ढूंढना आदि भाव सन्निहित हैं। इश्क शब्द में ये समग्र क्रियाएं और अवस्थाएं विद्यमान दृष्टि-गोचर होती हैं…
श्क शब्द के मायने होते हैं प्रेम। यह शब्द अरबी में भी है और फारसी में भी।
कुछ भाषाशास्त्री इसे सेमेटिक भाषा परिवार का शब्द न मानते हुए इंडो-ईरानी परिवार का मानते हैं। देखा जाए तो यह शब्द सिर्फ सेमेटिक भाषा परिवार का कम और इंडो-ईरानी परिवार का ज्यादा है।
शब्द की व्युत्पत्ति पर आमराय नहीं है। ईरानी मूल के प्रसिद्ध खगोलविज्ञानी और भाषाशास्त्री मोहम्मद हैदरी मल्येरी ने इश्क शब्द के इंडो-ईरानी होने के महत्वपूर्ण कारण गिनाए हैं।
भारोपीय आर्यों की भाषा में ऑस क्रिया-मूल शब्द का तादात्म्य इसी से प्रस्तावित है ।
(aus)- ऑस ---
Proto-Indo-European root meaning
"to shine," especially of the dawn. It forms all or part of: austral; Australia; Austria; Austro-; Aurora; east; Easter; eastern; eo-; Ostrogoth.............
It is the hypothetical source of/evidence for its existence is provided by: Sanskrit usah "dawn;" Greek eos "dawn;" Latin Aurora "goddess of dawn," auster "south wind;" Lithuanian ausra "dawn;" Old English east "east.".
अर्थात्
* ऑस-(Aus)
प्रोटो-इंडो-यूरोपियन मूल का है । "चमकने के लिए," इस अर्थ में  विशेष रूप से प्राय: कालीन प्रभा "
इसी से ऑस्त्रिया स्त्री इष्ट जैसे  सभी या इसके कुछ हिस्सों का निर्माण होता  है: ऑस्ट्रेलियाई; ऑस्ट्रेलिया; ऑस्ट्रिया; Austro-; अरोड़ा; पूर्व; ईस्टर; पूर्व का; eos-; ओस्टगोथ।
यह इसके अस्तित्व के लिए / सबूत के काल्पनिक स्रोत है, द्वारा प्रदान किया गया है: संस्कृत उष् "सुबह;"
उष् :--दाहे
 - ओषति उषविदजागुरन्यतरस्याम् (तु 0 3138) इति लिट्याम् वा-ओषाञ्चकार, उवोष उणादावुल्का, उल्मुकम्, उलपः सूक्ष्मलताभिधानम्, उल्वं जरायुः उषिकुषिगर्तिभ्यस्थन् उ0 24) ओष्ठः इण्षिञ्जिदीङुष्यविभ्यो नक् (उ0 32) उष्णः उषिखनिभ्यां कित् (उ0 4162) उष्ट्रः उष्ट्री उषः कित् (4234) उषाः असुन् (दश0 उ0 949) उषः प्रभातम् 675
यूनानी ईऑस "सुबह;" लैटिन अॉरोऱा "भोर की देवी", "दक्षिण हवा;" लिथुआनियाई ऑशुरा "सुबह"; पुरानी अंग्रेजी पूर्व "पूर्व "
Etymology---
Latin [Term?], from Ancient Greek Πρίαπος (Príapos).
Pronunciation-
: /pɹaɪˈeɪpəs/
Proper noun-
Priapus संस्कृत प्रेयस्
(Greek mythology)
The son of Aphrodite and Dionysus, god of procreation, and guardian of gardens and vineyards; personification of the phallus.
Derived term
Derived terms
priapic
priapically
priapism
priapismic
son of Aphrodite and Dionysus
व्युत्पत्ति---
लैटिन [अवधि?], प्राचीन ग्रीक से Πρίαπος (प्रियोपस्
Priapus
(ग्रीक पौराणिक कथाओं) एफ़्रोडाइट और डायोनिसस का बेटा, प्रजनन के देवता, और बागानों और दाख की बारियां के संरक्षक; लिंग का अवतार
व्युत्पन्न शर्तों
priapic
priapically
priapism
priapismic
एफ़्रोडाइट और डायोनिसस का पुत्र
एफ्रोडाइट संस्कृत भाषा प्रीति आप्रीति का सम्बन्धी है ।
ग्रीक: (Ἀφροδίτη Aphrodítē) प्रेम, सौंदर्य, इन्द्रीयों काआनन्द और प्रजनन की प्राचीन ग्रीक देवी है। वह देवी ग्रह वीनस के साथ पहचानी जाती है वीनस रोम की सौन्दर्य तथा प्रेम की देवी है । जिसके साथ एफ्रोडाइट का तादात्म्य बड़े पैमाने पर समन्वित हो गया था।
एफ़्रोडाइट के प्रमुख प्रतीकों में मैंहदी, गुलाब, कबूतर, गौरय्या, और हंस शामिल हैं।
Aphrodite
अर्थात् प्रेम, सौंदर्य और कामुकता की अधिष्ठात्री देवी होमर के काव्य- ग्रन्थों में वर्णित:---
माता-पिता यूरेनस अर्थात् भारतीय पुराणों में वर्णित वरुण या ज़ीउस ( द्यौस)  तथा जियाे (पृथ्वी)
एफ़्रोडाइट का पन्थ फोनेशियन देवी अस्टारटे  से जुड़ा था, जो पूर्वी सेमेटिक देवता ईश्तेर के एक सम्प्रदाय थे, जिसका पंथ इनाने में सुमेरियन पंथ पर आधारित था।
भारतीय संस्कृति में जिसे स्त्री (easter) उस्र उषा तथा श्री से साम्य ..
एफ्रोडाइट के मुख्य पंथ केन्द्रों में साइथेरा, साइप्रस, कुरिन्थ और एथेंस थे।
लैकोनिया में, उसे एक योद्धा देवी के रूप में पूजा की गई थी कुछ शहरों में उनके पन्थ में पवित्र वेश्यावृत्ति शामिल हो सकती है..
हैसियोड के थियोजनी में, एफ़्रोडाइट का जन्म यूरेनस के जननाटन द्वारा निर्मित फोम (एफ़्रॉस) से साइथेरा के तट से हुआ है।
जिसका उनके पुत्र क्रोनस ने काटा और समुद्र में फेंक दिया।
होमर के इलियड में, हालांकि, वह ज़ीउस और डियोन की बेटी है।
प्लेटो, अपने सैम्पोसियम  में, ये दावा करते हैं कि ये दो मूल वास्तव में अलग-अलग संस्थाओं से जुड़े हैं: एफ़्रोडाइट हेरियाया (एक उत्कृष्ट, "स्वर्गीय" एफ़्रोडाइट) और एफ़्रोडाइट पेंडमोस (एफ़्रॉडाइट "सभी लोगों के लिए आम") वे कहते हैं ।
कि एफ़्रोडाइट में कई अन्य उपन्यास थे, प्रत्येक एक ही देवी के एक अलग पहलू पर बल देते थे, या एक अलग स्थानीय पंथ द्वारा प्रयोग किया जाता था।
इस प्रकार वह साइटेरेआ (साइथेरा की महिला) और साइप्रस (साइप्रस की लेडी) के नाम से भी जाना जाता है, दोनों जिनमें से उनका जन्म होने का दावा किया गया था।

ग्रीक पौराणिक कथाओं में, अफ्रोडाइट का विवाह होपैस्टस से हुआ था,
जो कि लोहार और धातु के कामकाज के देवता थे। इसके बावजूद, एफ़्रोडाइट अक्सर उसके साथ विश्वासघाती थी और उसके कई प्रेमी थे; होमर ओडिसी महाकाव्य में, वह युद्ध के देवता एरिस के साथ व्यभिचार के कार्य में पकड़ा गयी है।
होमेरिक भजन से एफ़्रोडाइट में, वह नश्वर चरवाहा( Anchises seduces) एफ़्रोडाइट नश्वर चरवाहा अदोनिस की सरोगेट मां और प्रेमिका भी थी , जो एक जंगली सूअर द्वारा मारा गया था। एथेना और हेरा के साथ, एफ़्रोडाइट तीन देवीओं में से एक थी, जिनके समक्ष ट्रोजन युद्ध (ट्रॉय के लोगों से युद्ध) की शुरुआत में हुई थी।
एफ़्रोडाइट पश्चिमी कला में महिला सौंदर्य के प्रतीक के रूप में चित्रित किया गयी है । और पश्चिमी साहित्य के कई कार्यों में दिखाई दी है। वह आधुनिक न्योगैगन धर्मों में एक प्रमुख देवता के तौर पर  है, जिसमें चर्च ऑफ एफ़्रोडाइट, विस्को, और हेलेनिस्मोस शामिल हैं।
शब्द-साधन (व्युत्पत्ति-)
हेसियस एफ़्रोोडीस (ἀφρός) को  "समुद्र-फोम" से उत्पन्न हुआ मानता है । एफ़्रोोडीट का नाम "फोम से उदय" के रूप में व्याख्या करता है।  माइकल जांडा, इसे वास्तविक के रूप में स्वीकार करते हैं, फोम से एक इंडो-यूरोपियन म्यूथेम के रूप में जन्म की कहानी का दावा करते हैं।
यौगिक के दूसरे हिस्से को विभिन्न प्रकार के * -odítē "भटकावा"  या * -dítē "उज्ज्वल" के रूप में विश्लेषण किया गया है।
जांदा, बाद के साथ सहमत, नाम के अर्थ को "जो कि फोम (महासागर के) से चमकता है" के रूप में व्याख्या करता है, यह नाम ईस के उपन्यास, भोर देवी के रूप में माना जाता है। इसी तरह, वित्स्कोक ने एक इंडो-युरोपियन परिसर * अबाऊर- "बहुत" और * डेसी- "चमकने के लिए" प्रस्तावित किया, और ईओस का भी उल्लेख किया।  अन्य विद्वानों ने तर्क दिया है कि इन अनुमानों की संभावना नहीं है क्योंकि एफ्रोडाइट के गुण ईस और वैदिक दोनों देवताओं उषाओं से पूरी तरह अलग हैं |
संस्कृत भाषा में  मार स्मर काम देव के वाचक हैं ।
amourous
व्युत्पत्ति ----
(14 वीं शताब्दी) लैटिन अमोर ("प्रेम") से लैटिन अमरे ("प्यार") से संबंधित मध्यकालीन लैटिन अमॉरोसस् के पुराने फ्रांसीसी अमोरोस, अमोरियस से साम्य फ्रांसीसी एमौरेक्स ("प्यार में") की तुलना करें ।
संस्कृत भाषा में रति आर: तथा रास  जैसे शब्दों का जन्म ग्रीक शब्द इरॉस से हुआ है ।
अतः कृष्ण से रास शब्द जोड़ कर पुराण कारों ने अपनी काम भावनओं का ही अभिव्यञ्जन किया है ।
इरॉस शब्द को ग्रीक भाषा में देखें---
एरोस (संज्ञा)
प्यार के देवता।, ग्रीक ईरोस (बहुवचन), "प्यार का भगवान या व्यक्तित्व", "प्यार से प्यार", "प्यार से प्यार", erassai  संस्कृत भाषा में  हर्ष् क्रिया मूल का विकास "प्यार करने के लिए, इच्छा," जो अनिश्चित मूल के है

"स्व-संरक्षण और यौन सुख से आग्रह" की फ्रॉडियन भावना 1 9 22 से है। प्राचीन ग्रीक ने प्यार के चार तरीके अलग-अलग: ईराओ "प्यार में होना, जुनूनी या यौन इच्छा करना;" phileo "के लिए प्यार है;" agapao "के लिए संबंध है, के साथ संतुष्ट हो;" और स्टर्गो, विशेष रूप से माता-पिता और बच्चों या एक शासक और उनकी प्रजा के प्यार के लिए इस्तेमाल किया ।
erato (आरति रति )
म्यूज़ जो गृहिणी कविता की अध्यक्षता करती थी , जो ग्रीक erastos से शाब्दिक रूप से ". प्रेमिका ", "प्यारे, प्यारे, आकर्षक," ईरान के मौखिक विशेषण "प्रेम करने के लिए, प्यार में होना"
औरत का मूल रूप संस्कृत आर्तवी से साम्य दर्शनीय है।
अरबी भाषा में वुर( वॉर ) वुरा जैसे शब्दों का जन्म
ऑराह से हुआ ।
--------------------------------------------------------------
अराह (अरबी: عورة) एक शब्द इस्लाम में प्रयोग किया जाता है ।
जो शरीर के अंतरंग भागों को दर्शाता है, पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए, जो कपड़ों के साथ कवर किया जाना चाहिए। अराह को उजागर करना इस्लाम में गैरकानूनी है और उसे पाप माना जाता है। अराह की सटीक परिभाषा इस्लामिक विचारों के विभिन्न स्कूलों के बीच भिन्न-भिन्न है।
पैगंबर हजरत मौहम्मद साहिब नेे कहा, कि " किसी भी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति के अराह को नज़र नहीं लेना चाहिए, और कोई औरत को दूसरी महिला के अराह को नहीं देखना चाहिए।"
 न तो पुरुषों और न ही महिलाओं को किसी भी समय अपने जननांगों को उजागर करना चाहिए । जब तक गोपनीयता में पुरुषों और महिलाओं को हर समय उन कपड़ों को पहनना चाहिए जो ढीले हैं और सामग्री से बना है जो त्वचा के रंग और अन्य (पुरुष या महिला) के आकार को देखने के लिए पर्याप्त पारदर्शी नहीं है। इतना ही नहीं, उन्हें उनके लिए उन गैरकानूनी लोगों के अराह से उनकी नजर को भी सुरक्षित रखना चाहिए।
      (इस्लामी तालीमी लुग़त )
हे आदम के बच्चों, हमने आपके निजी भागों को छुपाने के लिए और अलंकरण के रूप में कपड़े पहन लिए हैं। लेकिन धार्मिकता के कपड़े - यह सबसे अच्छा है यह अल्लाह के संकेतों से है कि शायद वे याद करेंगे
- [07:26]
पति और पत्नी के बीच कोई अरोड़ा नहीं है इस्लाम में इस संबंध में कोई प्रतिबंध नहीं है कि एक औरत अपने पति को निजी में किस शरीर का हिस्सा दिखा सकती है।
 एक व्यक्ति का अराह नाभि और घुटनों के बीच के शरीर के अंग को सन्दर्भित करता है, जिसे सार्वजनिक और प्रार्थना के दौरान भी कवर किया जाना चाहिए।
महिला जाग अधिक जटिल मुद्दा है ।
और यह स्थिति के अनुसार बदलता है:

हे पैगंबर, अपनी पत्नियों और अपनी बेटियों और विश्वासियों की स्त्रियों को अपने बाहरी वस्त्रों के ऊपर [भाग] नीचे लाने के लिए कहो। यह अधिक उपयुक्त है कि उन्हें जाना जाएगा और दुर्व्यवहार नहीं किया जाएगा। और कभी अल्लाह क्षमाकरने वाला  और दयालु हो।

- [33:59]
 अनुष्ठान की प्रार्थना में: एक महिला को उसके पूरे शरीर को कवर करना चाहिए, जिससे उसके चेहरे और उसके हाथ को कलाई से उंगलियों के आधार तक छोड़ देना चाहिए। उसे अपने माथे और ठोड़ी के नीचे के क्षेत्र का हिस्सा भी शामिल करना चाहिए।
गोपनीयता में: यह अनुशंसा की जाती है कि कोई व्यक्ति अपने या अपने यौन अंगों को तब भी कवर करता है जब अकेले निजी में।
ऐसे अपवाद हैं जैसे स्नान करने या बाथरूम जाने पर।
अन्य महिलाओं में: अन्य महिलाओं के बीच एक महिला का अराह पुरुष के अराहा (उसके नाभि से घुटनों तक) के समान है। गैर मुस्लिम महिलाओं के सामने अराह बहस का मुद्दा है। कुछ विद्वानों का कहना है कि महिलाओं को सभी को हाथ और चेहरे से ढंकना चाहिए, जबकि सबसे पसंदीदा राय के अनुसार, एक मुस्लिम महिला दूसरी मुस्लिम महिलाओं के सामने जितनी ज्यादा मुसलमान महिला के सामने प्रकट हो सकती है
एक महरम के सामने: एक महिला अपने चेहरे, सिर, गर्दन, हाथ, अंगों, पैरों और बछड़ों को बाकी को कवर करते हुए दिखा सकती है।
नर बच्चों के सामने: यदि बच्चा समझता है कि अराह क्या है, तो उसे एक महिला के सामने उसके अरोहरा को उजागर करने के लिए अनुमति नहीं माना जाता है।
गैर-महरम के सामने पुरुषों: उसके चेहरे और हाथों को छोड़कर महिला का पूरा शरीर उसके अराह का हिस्सा है, इसलिए वह उसके शरीर के अंग हैं, जिन्हें प्रार्थना के दौरान और सार्वजनिक रूप से व्यवस्थित किया जाना चाहिए।
अबू हुरैरा आर.ए. द्वारा सुनाई गई, पैगंबर मुहम्मद स्वंय ने कहा, "नर्क के denizens के बीच दो प्रकार हैं जिन्हें मैं कभी नहीं देखा है, जो एक बैल की पूंछ की तरह चाबुक उठाता है, और वे लोगों के साथ उनको दंड देते हैं। (दूसरा एक) महिला कश्यतन 'एरियायट: जो अपने कपड़े पहने हुए होने के बावजूद नग्न होंगे, जो गलत रास्ते पर लेटे जाते हैं और अपने बालों के ऊंचे कूबड़ों की तरह दूसरों के साथ छेड़खानी करते हैं। ये महिलाएं स्वर्ग में नहीं आतीं, और वे अपनी गन्ध को समझ नहीं पाएंगी, हालांकि इसकी सुगंध ऐसी और ऐसी दूरी से (बहुत दूर से) माना जा सकता है ।
------------------------------------------------------------------
भारतीय सूफी सन्तों ने प्रेम को ईश्वरीय भक्ति का मानक निर्धारित किया है ।
मेरे अपने मत के अनुसार :---
प्रेम की यथार्थ परिभाषा )
जहाँ आधार- प्रेम का नहि ,
                वहाँ लोभ- स्वार्थ व्यापार ||
शरीर के प्रति आकर्षण ,
                        सद्गुण का नहीं विचार ||
सद्गुण का नहीं विचार
          - प्रेम वह क्षणिक है" रोहि "
कर्तव्यों को कहाँ , वहन कर पाता मोहि ?
__________________________________
लोभ के भँवर मोह के गोते ,
                       जीवन गुजरे रोते रोते 
नहीं सम्बल पाता कोई ,
                               बड़ी तेज ये धार  !
थोड़ी सी मौज़ो में पड़कर ,
                  जीवन की किश़्ती डुबोहि !
वासनाओं की उद्वेलित लहरें |
                              हमारे टूटे सब पतवार,
अब भीसंयम से ना तैरे हम. 
                                  तो डूब जायें मझधार !! *********************** ****************
अर्थात् जहाँ प्रेम के नाम पर
लोभ से प्रेरित स्वार्थ के सारे व्यवहार सम्पन्न होते हैं ! वह प्रेम नहीं है ! हमारी संस्कृति में प्रेम भक्ति का पर्याय है --- और भक्ति है आत्म - समर्पण की पवित्र अहंकार शून्य भावना ---
इसमें गुणानुवाद का बाहुल्य है ....रूप का नहीं...
🌺🌺🌺🌺🌺🌺
हम फूल की रंगत के नहीं
महज खुशुबू के दिवाने हैं !
जमाने के लोगो से कह दो .
हमारे अब नये ठिकाने हैं!!
🌻🌻🌻🌻🌻🌻
प्रेम के सम्बन्ध में जो पाश्चात्य धारणाऐं हैं
वह उनकी ही संस्कृति के अनुरूप हैं-----
________________,____________________
प्रेम के लिए अंग्रेजी में लव love शब्द
का प्रयोग असंगत है ..लव तो केवल लोभः और वासना का विशेषण है .....
भारतीय आध्यात्मिकता में प्रेम का भाव तत्व- ज्ञान का वाचक है .
" जैसा की भगवान् सन्त कबीर ने कहा है ...
पोथी पढ़ पढ़ जग मरा ,
     भया न पण्डित कोय !
ढ़ाई आखर प्रेम के ,
      पढ़े सो पण्डित होय !!
*************,******
विचार- विश्लेषक योगेश कुमार रोहि
ग्राम :-आजादपुर
पत्रालय :-पहाड़ीपुर जनपद :-अलीगढ़ (उ०प्र०)
सम्पर्क
8077160219 ... ..
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~­~~~
यह पाश्चात्य संस्कृति का वासना मयी प्रदूषण है ...यहाँ प्रेम भी वस्तुतत: - लोभ व वासना का अभिव्ञ्जक हो गया है
,वास्तव में भारोपीय भाषा परिवार का लव. Love शब्द संस्कृत भाषा में लुभःअथवा लोभः के रूप में प्रस्तावित है ..जोकि लैटिन में लिबेट Libet तथा लुबेट Lubet के रूप में विद्यमान है ..जिसका संस्कृत में लुब्ध ( लुभ् + क्त )
भूतकालिक  कर्मणि कृदन्त रूप से व्युत्पन्न होता है ...संस्कृत भाषा में लुभः / लोभः का अभिधा मूलक अर्थ है ..काम की तीव्रता अथवा वासना की उत्तेजना ..
वस्तुतः लोभः में प्रत्यक्ष तो लाभ दिखाई देता है परन्तु परोक्षतः व्याज सहित हानि है
अंग्रेजी भाषा में यह शब्द Love लव शब्द के रूप में है ...
तथा जर्मन में लीव Lieve है
ऐंग्लो -सैक्शन अथवा पुरानी अंग्रेजी में Lufu लूफु के रूप में है
यह तो सर्व विदित है कि यूरोपीय संस्कृति में वासना का उन्मुक्त ताण्डव है ..
.....जबकि प्रेम निः स्वार्थ रूप से आत्म समर्पण का भाव है प्रेम तो भक्ति है
राधा वस्तुतः प्रेम अर्थात् भक्ति की अधिष्ठात्री देवी थी . और कृष्णः ज्ञान योग के द्वारा कर्षण करने बाले आभीर शिरोमणि तत्कालीन यादव समाज के महानायक थे .
संस्कृत भाषा में राधा का अर्थ ही प्रेम , भक्ति और सिद्धि है ..और आज के नवयुवक और नव युवतियाँ पूर्णतः प्रेम के नाम पर दिग्भ्रमित है ..
...अतः ये नव युवक व युवतीयाँ लोभ और वासना के पुजारी ....
प्रेम के तत्व को ये क्या समझ सकते है ?...मित्रों मेरे इस वक्तव्य पर प्रतिक्रिया दें !  ☎☎☎
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
काम भाव से अब मुक्त नहिं
            गाँव शहर घर द्वार  !
विचर रहे देखो कहीं
       पार्कों में गलबहियाँ डारि |
पार्कों में गलबहियाँ डारि
     हाइ प्रॉफाइल विद्यार्थी
विद्या की अरथी को
          आज ढ़ो रहा विद्यार्थी  !
स्कूल या इश्क़ हॉल हैं
अब कहाँ ज्ञान की आरती !
जो विद्या अँधेरे में दिया
       बनाकर जीवन सारथी
हमने नकल उनका कर डाली
जिनकी संस्कृतियों थी एक गाली
मैकाले की सह- शिक्षा प्रणाली
          रोहि हम सबको  बेकार थी
  उस भोग - लिप्सा की संस्कृति में .
        बन गये हम सब  स्वार्थी !!
________________________
वह प्रेम नहीं है जहाँ केवल रूप सौन्दर्य की महत्ता हो
गुण सौन्दर्य की कोई मूल्यांकन न हो
हमारी संस्कृति में प्रेम भक्ति का पर्याय है --- और भक्ति है आत्म - समर्पण की पवित्र अहंकार शून्य भावना --- इसमें गुणानुवाद का बाहुल्य है ....रूपाकर्षण का नहीं... 🌺🌺🌺🌺🌺🌺
हम फूल की रंगत के नहीं ।
     महज खुशुबू के दिवाने हैं !
जमाने के लोगो से कह दो रोहि
              . हमारे अब नये ठिकाने हैं!
🌻🌻🌻🌻🌻🌻
प्रेम के सम्बन्ध में जो पाश्चात्य धारणाऐं हैं वह उनकी ही संस्कृति के अनुरूप हैं----- ________________,__ प्रेम के लिए अंग्रेजी में लव love शब्द का प्रयोग असंगत है ..लव तो केवल लोभः और वासना का विशेषण है ..... भारतीय आध्यात्मिकता में प्रेम का भाव तत्व- ज्ञान का वाचक है .... ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~­~~~
यह पाश्चात्य संस्कृति का वासना मयी प्रदूषण है ...यहाँ प्रेम - लोभ व वासना का अभिव्ञ्जक हो गया है ,वास्तव में भारोपीय भाषा परिवार का लव. Love शब्द संस्कृत भाषा में लुभःअथवा लोभः के रूप में प्रस्तावित है ..जोकि लैटिन में लिबेट Libet तथा लुबेट Lubet के रूप में विद्यमान है ..जिसका संस्कृत में लुब्ध ( लुभ् + क्त ) भूतकालिक कृदन्त रूप व्युत्पन्न होता है ...संस्कृत भाषा में लुभः / लोभः का अभिधा मूलक अर्थ है ..काम की तीव्रता अथवा वासना की उत्तेजना .. वस्तुतः लोभः में प्रत्यक्ष तो लाभ दिखाई देता है परन्तु परोक्षतः व्याज सहित हानि है अंग्रेजी भाषा में यह शब्द Love लव शब्द के रूप में है ... तथा जर्मन में लीव Lieve है ऐंग्लो -सैक्शन अथवा पुरानी अंग्रेजी में Lufu लूफु के रूप में है यह तो सर्व विदित है कि यूरोपीय संस्कृति में वासना का उन्मुक्त ताण्डव है ।
जबकि प्रेम निः स्वार्थ रूप से आत्म समर्पण का भाव है प्रेम तो भक्ति है राधा वस्तुतः प्रेम अर्थात् भक्ति की अधिष्ठात्री देवी थी . और कृष्णः ज्ञान योग के द्वारा कर्षण करने बाले आभीर शिरोमणि तत्कालीन आभीर समाज के महानायक थे . संस्कृत भाषा में राधा का अर्थ ही प्रेम , भक्ति और सिद्धि है ..और आज के नवयुवक और नव युवतियाँ पूर्णतः प्रेम के नाम पर दिग्भ्रमित है ।
.. ...अतः ये नव युवक व युवतीयाँ लोभ और वासना के पुजारी ....
प्रेम के तत्व को ये क्या समझ सकते है ?...मित्रों मेरे इस वक्तव्य पर प्रतिक्रिया दे।
काम भाव से अब मुक्त नहिं गाँव शहर घर द्वार ! विचर रहे देखो कहीं पार्कों में गलबहियाँ डारि | पार्कों में गलबहियाँ डारि हाइ प्रॉफाइल विद्यार्थी विद्या की अरथी को आज ढ़ो रहा विद्यार्थी ! स्कूल या इश्क़ हॉल हैं अब कहाँ ज्ञान की आरती ! जो विद्या अँधेरे में दिया बनाकर जीवन सारथी मैकाले की सह- शिक्षा प्रणाली बिल्कुल बेकार थी भोग - लिप्सा की संस्कृति में . बनते है छात्र जहाँ स्वार्थी !!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें