शनिवार, 23 दिसंबर 2017

भोसड़ी शब्द का इतिहास ----

गृञ्जनः  (शूद्रः )(यथा मनौ । ४ / १४० “
नाज्ञातेन समं गच्छेन्नैको न वृषलैः सह ॥
“ अस्य नामनिरुक्तिर्यथा तत्रैव । ८ / १६
“ वृषो हि भगवान् धर्म्मस्तस्य यः कुरुते ह्यलम् ।
वृषलं तं विदुर्द्देवास्तस्माद्धर्म्मं न लोपयेत् । ) चन्द्रगुप्तराजः
वाजी । इति मेदिनी ॥ अधार्म्मिकः । इति जटाधरः ॥
अर्थात् वृषल चन्द्र गुप्त मौर्य का विशेषण था ।
वह बौद्ध विचार धाराओ से प्रभावित हुआ था ।
वृषल शब्द का स्त्री लिंग रूप वृषली से भोसड़ी शब्द का विकास हुआ है ।
“पितुर्गेहे च नारी रजः पश्यत्यसंस्कृता ।
भ्रूणहत्या पितुस्तस्याः सा कन्या वृषली स्मृता”
इत्युक्तायां पितृगृंहे दृष्टरजस्कायामनूढ़ायां १
कन्यायाम् ।
पिता के घर जो स्त्री रजस्वला और संस्कार हीन
होकर भ्रूण हत्या करती है वह पिता की कन्या वृषली कही जाती है ।
वृषल + भार्य्यायां जातौ वा ङीष् ।
२ वृषलजातिस्त्रियां
३ तद्भार्य्यायाञ्च । “ब्रह्महा वृषलीपतिः” इति “वृषली- फेनपीतस्य” इति च मनुःस्मृति ।
इस गाली का जन्म ई०पू० ३४० में हुआ ।

यह सम्पूर्ण सन्दर्भित सामग्री , यादव - योगेश कुमार 'रोहि' की गवेषणाओं पर आधारित हैं ।
अत: समस्त उद्धरण भी उन्हीं के  पास संरक्षित है ।
कोई भी सज्जन सम्पर्क कर सकता है ।
अपनी जिज्ञासा तृप्ति हेतु --- इस प्रकार शुभ हो !
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This complete reference material, Yadav- Yogesh Kumar Rohi is based on the research of  himself
Therefore, all the citations are also protected by them.
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शनकैस्तु क्रियालोपदिनाः क्षत्रिय जातयः।
वृषलत्वं गता लोके ब्राह्मणा दर्शनेन च॥
पौण्ड्रकाशचौण्ड्रद्रविडाः काम्बोजाः भवनाः शकाः ।
पारदाः पहल्वाश्चीनाः किरताः दरदाः खशाः॥ -मनुसंहिता (1-/43-44)

अर्थात ब्राह्मणत्व की उपलब्धि को प्राप्त न होने के कारण उस क्रिया का लोप होने से पोण्ड्र, चौण्ड्र, द्रविड़ काम्बोज, भवन, शक, पारद, पहल्व, चीनी किरात, दरद व खश ये सभी क्षत्रिय जातियां धीरे-धीरे शूद्रत्व को प्राप्त हो गईं।

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