मत्स्यपुराण -अध्यायः (१२)
तथेत्युक्तास्ततस्तेस्तु जग्मुर्वैवस्वतात्मजाः।
इक्ष्वाकोश्चाश्वमेधेन चेलः किम्पुरुषोऽभवत्।। १२.११ ।।
इक्ष्वाकोश्चाश्वमेधेन चेलः किम्पुरुषोऽभवत्।। १२.११ ।।
बुधस्य भवने तिष्ठन्निलो गर्भधरोऽभवत्।। १२.१२ ।।
अजीजनत् पुत्रमेकमनेक गुणसंयुतम्।
बुधश्चोत्पाद्य तं पुत्रं स्वर्लोकमगमत्ततः।। १२.१३ ।।
इलस्य नाम्ना तद्वर्षमिलावृतमभूत्तदा।
सोमार्कवंशयोरादाविलोऽभून्मनुनन्दनः।। १२.१४ ।।
एवं पुरूरवाः पुंसोरभवद्वंशवर्द्धनः।
इक्ष्वाकुरर्कवंशस्य तथैवोक्तस्तपोधनाः।। १२.१५ ।।
इलः किम्पुरुषत्वे च सुद्युम्न इति चोच्यते।
पुनः पुत्रत्रयमभूत् सुद्युम्नस्यापराजितम्।। १२.१६ ।।
उत्कलो वै गयस्तद्वद्धरिताश्वश्च वीर्य्यवान्।
उत्कलस्योत्कला नाम गयस्यतु गयामता।। १२.१७
हरिताश्वस्य दिक्पूर्वो विश्रुता कुरुभिः सह।
प्रतिष्ठानेऽभिषिच्याथ स पुरूपवसं सुतम्।। १२.१८ ।।
प्रतिष्ठानेऽभिषिच्याथ स पुरूपवसं सुतम्।। १२.१८ ।।
जिसके परिणामस्वरूप इल किम्पुरुष हो गये।वहाँ थे वीरवर एक मास पुरुषरूपमें रहकर पुनः एक मास स्त्री हो जाते थे। बुधके भवनमें स्त्रीरूपसे रहते समय इलने गर्भ धारण कर लिया था। उस गर्भसे अनेक गुणोंसे सम्पन्न एक पुत्र उत्पन्न हुआ। उस पुत्रको उत्पन्नकर बुध भूलोकसे पुन: स्वर्गलोकको चले गये॥ 13॥
तभीसे इलके नामपर उस वर्षका नाम इलावृत पड़ गया। इस प्रकार चन्द्रवंश और सूर्यवंशके आदिमें सर्वप्रथम मनु-नन्दन इल ही राजा हुए थे।१४।
तपोधन ऋषियो! जैसे इलकी पुरुषावस्थामें उत्पन्न हुए राजा पुरूरवा चन्द्रवंशकी वृद्धि करनेवाले थे, वैसे ही महाराज इक्ष्वाकु सूर्य वंशके विस्तारक कहे गये हैं। १५।
किम्पुरुषयोनिमें रहते समय इल | सुधुन नामसे कहे जाते थे उन के पुनः उत्कल, गय और पराक्रमी हरिताश्व नामक तीन अपराजेय पुत्र उत्पन्न हुए थे।
इलने (अपने इन चारों पुत्रोंमेंसे) उत्कलको उत्कल (उड़िसा), गयको गयाप्रदेश और हरिताश्वको कुरुप्रदेशकी सीमावर्तिनी पूर्व दिशाका प्रदेश (राज्य) समर्पित किया।
तत्पश्चात् अपने ज्येष्ठ पुत्र पुरुरवाका प्रतिष्ठानपुरमें अभिषेक करके वे स्वयं दिव्य फलाहारका उपभोग करनेके लिये इलावृतवर्षमें चले गये। (सुद्युम्नके बाद) मनुके ज्येष्ठ पुत्र इक्ष्वाकु मध्यदेशके अधिकारी हुए।
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इला ऋग्वेद में 'अन्न' की अधिष्ठातृ' मानी गई हैं, यद्यपि सायण के अनुसार उन्हें पृथिवी की अधिष्ठातृ मानना अधिक उपयुक्त है। वैदिक साहित्य में इला को मनु को मार्ग दिखलानेवाली एवं पृथ्वी पर यज्ञ का विधिवत् नियमन करनेवाली कहा गया है। इला के नाम पर ही जम्बूद्वीप के नवखंडों में एक खंड इलावृत वर्ष कहलाता है। महाभारत तथा पुराणों की परंपरा में इला को बुध की पत्नी एवं पुरूरवा की माता कहा गया है।
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