रविवार, 31 दिसंबर 2023

बुद्ध का ब्राह्मणवाद -

महात्मा बुद्ध सच्चे अर्थों  वही थे जो श्रीमद्भगवद्गीता में कृष्ण हैं।
परन्तु जैसे कृष्ण के नाम पर अनेक कुत्सिताऐं आरोपित की गयीं उसी प्रकार बुद्ध के नाम पर भी की गयीं हैं आज चाहें बुद्ध के नाम पर भिक्षा माँगने वाले हों या कृष्ण के नाम पर सभी एक ही  तरह के लोग हैं।

ब्राह्मण वाद की  जिस गन्दिगी को साफ करने के लिए गौतम से महात्‍मा बुद्ध बने और कालान्तर में उसी गन्दिगी में वे और उनके अनुयायी भी फँस गये इसमें बौद्ध धर्म की महानता कहाँ रही ?

यादवों को ब्राह्मणवाद की गन्दिगी दिखाने और उससे दूर रहने की बात करने वाले  यादव शक्ति का सम्पादन करने वाले "चंद्रभूषण  यादव"  अब बौद्ध भिखारी बन गये हैं।

वर्ष 2023 के 31 दिसम्बर के आखिरी रात में कुशीनगर के एक  थाई मन्दिर में जाकर थाइलैंड के बौद्घ भिक्षुओं के बीच बुद्ध वंदना व पूजन -अर्चना के बाद ये बौद्ध भिक्षु बन गये ।

बौद्ध धर्म में आज वही सब है   जिसके विरोध करने लिए  कभी  बौद्ध धर्म का   जन्म हुआ था।

आज बौद्ध होने वाले नव युवक - नास्तिक , माँसभक्षण करने वाले,  और व्यभिचार को जीवन सम्मत मानने वाले  हैं।

परन्तु बौद्ध भिक्षु बन कर लाल वस्त्र धारण करना, क्या आज के ब्राह्मण बाद की नकल नहीं है।-

बौद्ध धर्म में कुछ भी अब ऐसा नहीं जो ब्राह्मण वाद के कर्मकाण्ड मूलक धर्म में न हो।
बुद्ध वास्तव में कितने तात्विक अथवा साम्यवाद के दृष्टा थे ।
यह बात बौद्ध धर्म के ग्रन्थों में तो नहीं मिलती है।

नव बौद्ध जिस प्रकार आज कृष्ण के चरित्र का ब्राह्मण वादी मानसिकता के अनुरूप वर्णन करते हैं 
वह सत्य नहीं है।

अगर बात महिला-सम्मान की हो तो सबसे पहले मैदान मे भीमवादी नवबौद्ध कूद पड़ते हैं, और गौतमबुद्ध तथा आम्रपाली की कहानी सुनाकर बताते हैं कि बुद्ध महिलाओं को कितना सम्मान करते थे।

वैसे बुद्ध ने महिलाओं के बारे मे अपने उपदेशों मे काफी घृणित बातें भी कहीं हैं, पर धूर्त नवबौद्ध उसे छुपाने का प्रयास करते हैं।

त्रिपिटक (सुत्तपिटक) के अंगुतर निकाय, पाँचवां निपात (द्वितीय पण्णासक, निवरण वर्ग, माता-पुत्त सुत्त) मे बुद्ध भिक्षुओं को सम्बोधित करते हुये कहते हैं कि

 "भिक्षुओ! उससे भी बात कर लेना जिसके हाथ में तलवार हो, जो पिशाच हो, और तो और जहरीले सांप के पास भी बैठ जाना, पर कभी अकेली स्त्री से बात मत करना।

जो बुद्धिहीन पुरुष होता है उसे स्त्री अपनी नजरों से, अपने मुस्कुराहट से और अपनी नग्नता से बांध लेती है। स्त्री चाहे फूली हुई हो, या मृतावस्था में हो तब भी उसके पास न बैठे।"


उक्त कथन से ज्ञात होता है कि बुद्ध महिलाओं के बारे मे कितने अच्छे और सकारात्मक विचार रखते थे?

वास्तविकता यह है कि इसमें महिलाएँ दोषी नहीं आदमी की कामुक मानसिकता है जिसका शमन उसने नहीं किया है।

आगे इसी अंगुत्तर निकाय के दीर्घ चारिका वर्ग-9/10 मे बुद्ध कहते हैं-
"भिक्षुओं! काले सांप के पाँच दोष होते हैं! वह गंदा, बदबूदार, आलसी, डरावना और मित्रद्रोही होता है। इसी प्रकार स्त्रियों मे भी यही पाँचों अवगुण होते हैं! स्त्रियाँ गन्दी, बदबूदार, आलसी, डरावनी और मित्रद्रोहिणी होती हैं।"

इसके अगले उपदेश मे बुद्ध फिर कहते हैं कि "भिक्षुओं! काले सांप के अन्य पाँच दुर्गुण यह होते हैं कि वह क्रोधी, द्वेषी, घोर-विषैला, दुष्ट-जिह्वा वाला और मित्रद्रोही होता है। 

इसी प्रकार स्त्रियाँ भी क्रोधी, द्वेषी, दुष्ट जिह्वा वाली (चुगल-खोरनी) और मित्र-द्रोहिणी होती हैं, तथा अत्यन्त कामुक होने की वजह से घोर विषैली भी होती हैं।"

अब भीमवादी जिस बुद्ध को महिला-सम्मान का सिम्बल बताते हैं, वही बुद्ध अपने उपदेशों मे स्त्रियों की तुलना जहरीले सर्प से करते थे।

वे महिलाओं को क्रोधी, चुगल-खोरनी, विषैली, बदबूदार और अत्यन्त कामुक तक कहते थे।
भारत मे अक्सर लोगों को यह जरूर पता होगा कि श्रीकृष्ण की कितनी पत्नियाँ थी, या मोहम्मद साहब के पास कितनी बीवियाँ थी, पर शायद कम ही लोग यह जानते होंगे की गौतम बुद्ध (युवराज सिद्धार्थ) की कितनी पत्नियाँ थी?

 गौतम बुद्ध जब राजमहल मे थे तब उनके रनिवास (हरम) मे कितनी रानियाँ थी?

 सच बात यह है कि बुद्ध भी बुद्ध होने से पहले एक राजकुमार थे, तो दूसरे राजाओं या राजकुमारों जैसे अय्याशी वाले शौक उन्हे भी हुये होंगे! 

वैसे भी कहा जाता है कि जब व्यक्ति सारी अय्याशी कर लेता है, तभी उसका मोह इससे भंग होता है। गौतम बुद्ध के साथ भी ऐसा ही हुआ होगा।

 बौद्ध धर्म की नींव रखने से पहले गौतम अय्याश थे। बौद्ध ग्रंथ ललितविस्तर अध्याय-12 (शिल्पसंदर्शनपरिवर्त, चित्र-1-2) के अनुसार गौतम बुद्ध के रनिवास मे उनकी पत्नि के अलावां चौरासी हजार स्त्रियाँ थी। 


ललितविस्तर मे इस अध्याय के अतिरिक्त भी और कई जगह लिखा है कि बुद्ध चौरासी हजार स्त्रियों के साथ खेलते-कूदते तथा लोक-व्यवहार करते थे।

लेकिन बुद्ध के चमचे खासकार भीमयानी इसे झुठलाने के लिये यह कहेंगे की ललितविस्तर तो महायानियों का ग्रंथ है, अतः हम इसके प्रमाण नही मानते। 

तो मै बताना चाहूँगा कि तिब्बत, चीन, जापान, कोरिया और मंगोलिया मे ललितविस्तर ही बौद्धधर्म का मूलग्रंथ है। दूसरी बात बिना ललितविस्तर के कोई भी बौद्ध गौतम की जीवनी नही जान सकता, क्योंकि त्रिपिटक बुद्ध की जीवनी नही, बल्कि उनका उपदेश है।


उदाहरण के लिये ऐसा समझ लो कि क्या कोई हिन्दू गीता पढ़कर कृष्ण का जीवन-चरित्र समझ सकता है, उसके लिये उसे महाभारत या पुराणों को पढ़ना पड़ेगा, क्योंकि गीता कृष्ण की कथा नही बल्कि उनका उपदेश है। 

ठीक ऐसे ही त्रिपिटक भी बुद्ध के उपदेशों का संग्रह है।

रही बात थेरवादियों (हीनयान) के जिस त्रिपिटक को भीमयानी बौद्ध सर्वोपरि ग्रंथ मानते हैं, उसमे भी बुद्ध की एक से अधिक पत्नियों का वर्णन है।

सुत्तपिटक के खुद्दकनिकाय (बुद्धवंस, चित्र-3-4) मे गौतमबुद्ध ने स्वयं कहा है कि मेरे अन्तःपुर मे चालीस हजार स्त्रियाँ थी, और उनमे भद्रकञ्चना (यशोधरा) मेरी पटरानी थी।

 कहने का अर्थ यह हुआ कि बुद्ध भी गृहस्थ-त्याग से पहले उतने ही बड़े अय्याश थे, जितने दूसरे धर्मों के धुरंधर लोग थे।

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