परन्तु जब 2018 ईस्वी सन् में इस छत्र की राजस्थान के पुरातत्व विभाग ने कार्बन डेटिंग करवाई तो यह मात्र 300 वर्ष पुरानी निकली।
दर असल कार्बन तिथि निर्धारण एक रसायनिक प्रक्रिया है।
कार्बन-१४ द्वारा कालनिर्धारण की विधि (कार्बन-१४ डेटिंग) का प्रयोग पुरातत्व-जीव विज्ञान में जंतुओं एवं पौधों के प्राप्त अवशेषों के आधार पर जीवन काल, समय चक्र का निर्धारण करने में किया जाता है। इसमें कार्बन-१२ एवं कार्बन-१४ के मध्य अनुपात निकाला जाता है। कार्बन के दो स्थिर अरेडियोधर्मी समस्थानिक: कार्बन-१२ (12C) और कार्बन-१३ (१३C) होते हैं। इनके अलावा एक अस्थिर रेडियोधर्मी समस्थानिक (१३C) के अंश भी पृथ्वी पर मिलते हैं। अर्थात कार्बन-१४ का एक निर्धारित मात्रा का नमूना ५७३० वर्षों के बाद आधी मात्रा का हो जाता है। ऐसा रेडियोधर्मिता क्षय के कारण होता है। इस कारण से कार्बन-१४ पृथ्वी से बहुत समय पूर्व समाप्त हो चुका होता, यदि सूर्य की कॉर्मिक किरणों के पृथ्वी के वातावरण की नाइट्रोजन पर प्रभाव से और उत्पादन न हुआ होता।
यह छत्र कृष्ण के समय का नहीं माना जा सकता क्योंकि द्वापर युग में मनुष्यों की लंबाई और चौड़ाई आज के मुकाबले दो गुनी होती थी। द्वापर में औसत व्यक्ति की आयु २०० वर्ष होती थी और लम्बाई १० फुट के समकक्ष होती थी।
स्वयं कृष्ण भी द्वापर के अन्त उत्पन्न हुए थे यद्यपि कृष्ण की मृत्यु प्रारब्ध वश एक बहेलिए के तीर से हुई ।तब कृष्ण की आयु 125 वर्ष की थी।
परन्तु भाटी राजपूतों द्वारा बताऐ गये कृष्ण के छत्र को देखकर तो यह भी न लगता आज का साधारण बालक भी इस में ठीक से बैठ सके। जैसलमेर स्टेट के अभी के उत्तराधिकारी बृजराज सिंह भाटी से बात चीत में उन्होंने मेघाडम्बर छत्र को मात्र अफवाह कहा है।
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