शनिवार, 13 मई 2023

एक किसी मौची का बेटा।।,खुद को न कभी चमड़े से लपेटा।


एक किसी मौची  का बेटा।।
,खुद को न कभी  चमड़े से लपेटा।

पढ़- लिखकर विद्वान बन गया।
सीना गर्व से वाप का तन गया।।

संस्कृत का अच्छा अध्येयता।
ब्रह्म ज्ञान का बन गया ध्येयता।

विवाह हेतु  ब्राह्मण कोई उद्भट ,कभी न  आया उसके निकट।।
वेदों का भी भाष्य लिख लिया।
सृष्टि का रहस्य किया प्रकट  ।

"और वहीं बगल में शर्मा जी ने
  शोरूम शूज खुलवाया।।

अच्छा खासा धन कमाकर
, एक चमड़ा  उद्योग लगाया।

तभी खोजते हुए वर वहीँ  काशी से  ब्राह्मण आया।

शर्मा शूज शोरूम विवाह के कार्डों पर लिखवाया।
जाति, वर्ण जन्म से निश्चित मेरी समझ में आया।


इस संसार में सभी घटनाओं और  वस्तुओं का अस्तित्व उद्देश्य पूर्ण और सार्थक ही है । भले हीं उनकी उपयोगिता हमारे अनुकूल हो या न हो -

सभी  की क्रियाविधि काल के तन्तुओं से निर्मित‌ प्रारब्ध की डोर से नियन्त्रित है।

परिस्थितियों के वस्त्रों में  जीवन आवृत  है। और डोर वही प्रारब्ध ( भाग्य ) की लगी हुई  है।
इसी लिए अहंकार रहित होकर कर्तव्य करने में ही जीवन की सार्थकता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें