दानं स्वधर्मो नियमो यमश्च श्रुतं च कर्माणि च सद्व्रतानि। सर्वे मनोनिग्रहलक्षणान्ताः परो हि योगो मनसः समाधिः॥
~ श्रीमद्भागवतमहापुराण/११.२३,४६
श्लोक 11.23.45 |
"दानं स्वधर्मो नियमो यमश्च श्रुतं च कर्माणि च सद्व्रतानि । सर्वे मनोनिग्रहलक्षणान्ता: परो हि योगो मनस: समाधि: ॥ ४५ ॥ |
शब्दार्थ |
दानम्—दान देना; स्व-धर्म:—अपने नियत कर्तव्य करते रहना; नियम:—दैनिक जीवन के नियम; यम:—आध्यात्मिक अभ्यास के प्रमुख नियम; च—तथा; श्रुतम्—शास्त्रों को सुनना; च—तथा; कर्माणि—पुण्यकर्म; च—तथा; सत्—शुद्ध; व्रतानि— व्रत; सर्वे—सभी; मन:-निग्रह:—मन को वश में करना; लक्षण—से युक्त; अन्ता:—उनका लक्ष्य; पर:—परम; हि—निस्सन्देह; योग:—दिव्य ज्ञान; मनस:—मन का; समाधि:—समाधि में ब्रह्म का ध्यान ।. |
अनुवाद |
दान, धर्म, यम तथा नियम, शास्त्रों का श्रवण, पुण्यकर्म तथा शुद्ध बनाने वाले व्रत—इन सबका अन्तिम लक्ष्य मन का दमन है। निस्सन्देह, ब्रह्म में मन की एकाग्रता ही सर्वोच्च योग है। |
दान, अपने धर्मका पालन, नियम, यम, वेदाध्ययन, सत्कर्म, ब्रह्मचर्यादि श्रेष्ठ व्रत—इन सबका अन्तिम फल यही है कि मन एकाग्र हो जाय, श्रीभगवान् में लग जाय। मनका समाहित हो जाना ही परम योग है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें