मातुःसेवा मुक्तिकरो माता बहुविधा मता।
स्तनदात्री गर्भधात्री भक्ष्यदात्री गुरुप्रिया ।६।
स्तनदात्री गर्भधात्री भक्ष्यदात्री गुरुप्रिया ।६।
अभीष्टदेवपत्नी च पितुः पत्नी च कन्यकाः।
सगर्भा भगिनी चापि पुत्रपत्नी प्रियाप्रसूः।७।
सगर्भा भगिनी चापि पुत्रपत्नी प्रियाप्रसूः।७।
मातुर्माता पितुर्माता सोदरस्य प्रिया तथा ।
मातुः पितुश्च भगिनी मातुलानी तथैव च।८।
मातुः पितुश्च भगिनी मातुलानी तथैव च।८।
जनानां वेदविहिता मातरः षोडश स्मृताः।
ता वै पूज्या नमस्कार्याः सेव्याः स्तुत्याः सुपुत्रकैः।९।
तासां त्वाशीर्वचोऽप्यत्र पुत्रं रक्षति किल्बिषात्।
तासां सेवा कृता येन स याति ब्रह्म शाश्वतम्। 1.109.१०।
साम्प्रतं जगतां माता विष्णुमाया सनातनी।।
सर्वाद्या विष्णुमाया च सर्वदा विष्णुमङ्गला ।३१ ।।
सर्वाद्या विष्णुमाया च सर्वदा विष्णुमङ्गला ।३१ ।।
शैलेन्द्रपत्नी गर्भे सा चालभज्जन्म भारते ।।
दारुणं च तपस्तप्त्वा सम्प्रापच्छङ्करं पतिम् ।। ३२ ।।
ब्रह्मादितृणपर्य्यन्तं सर्वं मिथ्यैव कृत्रिमम् ।।
सर्वे कृष्णोद्भवाः काले विलीनास्तत्र केवलम् ।। ३३ ।।
कल्पे कल्पे जगन्माता माता मे प्रतिजन्मनि ।।
यज्जन्ममायया बद्धो नित्यः सृष्टिविधावहम् ।। ३४।
प्रकृतेरुद्भवास्सत्यं जगत्यां सर्वयोषितः ।।
काश्चिदंशाः कलाः काश्चित्कलांशांशेन काश्चन ।। ३६ ।।
कृत्तिका ज्ञानवत्यश्च योगिन्यः प्रकृतेः कलाः ।।
स्तनैश्च संवर्द्धितोऽहमुपहारेण सन्ततम् ।। ।। ३६।
तासामहं पोष्यपुत्रो मदम्बाः पोषणादिमाः ।।
तस्याश्च प्रकृतेः पुत्रो गतस्त्वत्स्वामिवीर्य्यतः ।। ३७।
न गर्भजोऽहं शैलेन्द्रकन्याया नन्दिकेश्वर ।।
सा च मे धर्मतो माता तथेमाः सर्वसम्मताः ।। ३८।
स्तनदात्री गर्भधात्री भक्ष्यदात्री गुरुप्रिया ।।
अभीष्टदेवपत्नी च पितुः पत्नी च कन्यकाः।।३९।।
सगर्भकन्या भगिनी पुत्रपत्नी प्रियाप्रसूः ।।
मातुर्माता पितुर्माता सोदरस्य प्रिया तथा ।।४०।।
मातुः पितुश्च भगिनी मातुलानी तथैव च ।।
जनानां वेदविहिता मातरः षोडश स्मृताः ।।४१।।
इमाश्च सर्वसिद्धिज्ञाः परमैश्वर्य्यसंयुताः ।।
न क्षुद्रा ब्रह्मणः कन्यास्त्रिषु लोकेषु पूजिताः ।। ४२।
विष्णुना प्रेरितस्त्वं च शम्भोः पुत्रसमो महान् ।।
गच्छ यामि त्वया सार्द्धं द्रक्ष्यामि सुरसंचयम् ।।४३।।
इति श्रीब्रह्मवैवर्त्ते महापुराणे तृतीये गणेशखण्डे नारदनारायणसंवादे नन्दिकार्त्तिकेयसंवादो नाम पञ्चदशोऽध्यायः ।। १५ ।।
इति श्रीब्रह्मवैवर्त्ते महापुराणे तृतीये गणेशखण्डे नारदनारायणसंवादे नन्दिकार्त्तिकेयसंवादो नाम पञ्चदशोऽध्यायः ।। १५ ।।
ब्रह्म वैवर्त पुराण
गणपतिखण्ड: अध्याय 14-15
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जो सनातनी विष्णुमाया सबकी आदि, सर्वस्व प्रदान करने वाली और विश्व का मंगल करने वाली हैं, उन्हीं जगज्जननी ने इस समय भारतवर्ष में शैलराज की पत्नी के गर्भ से जन्म धारण किया है और दारुण तपस्या करके शंकर को पतिरूप में प्राप्त किया है। ब्रह्मा से लेकर तृणपर्यन्त सारी सृष्टि कृत्रिम है, अतएव मिथ्या ही है।
सभी श्रीकृष्ण से उत्पन्न हुए हैं और समय आने पर केवल श्रीकृष्ण में ही विलीन हो जाते हैं। प्रत्येक कल्प में सृष्टि के विधान में मैं नित्य होते हुए भी माया से आबद्ध होकर जन्म-धारण करता हूँ, उस समय प्रत्येक जन्म में जगज्जननी पार्वती मेरी माता होती हैं।
जगत में जितनी नारियाँ हैं, वे सभी प्रकृति से उत्पन्न हुई हैं।
उनमें से कुछ प्रकृति की अंशभूता हैं तो कुछ कलात्मिका तथा कुछ कलांश के अंश से प्रकट हुई हैं।
ये ज्ञानसम्पन्ना योगिनी कृत्तिकाएँ प्रकृति की कलाएँ हैं। इन्होंने निरन्तर अपने स्तन के दूध तथा उपहार से मेरा पालन-पोषण किया है। अतः मैं उनका पोष्य पुत्र हूँ और पोषण करने के कारण ये मेरी माताएँ हैं।
साथ ही मैं उनके प्रकृतिदेवी (पार्वती) का भी पुत्र हूँ; क्योंकि तुम्हारे स्वामी शंकर जी के वीर्य से उत्पन्न हूँ। नन्दिकेश्वर! मैं गिरिराजनन्दिनी के गर्भ से उत्पन्न नहीं हुआ हूँ, अतः जैसे वे मेरी धर्ममाता हैं, वैसे ही ये कृत्तिकाएँ भी सर्वसम्मति से मेरी धर्म-माताएँ हैं; ।
क्योंकि स्तन पिलाने वाली (धाय), गर्भ में धारण करने वाली (जननी), भोजन देने वाली (पाचिका), गुरुपत्नी, अभीष्ट देवता की पत्नी, पिता की पत्नी (सौतेली माता), कन्या, बहिन, पुत्रवधू, पत्नी की माता (सास), माता की माता (नानी), पिता की माता (दादी), सहोदर भाई की पत्नी, माता की बहिन (मौसी), पिता की बहिन (बूआ) तथा मामी– ये सोलह मनुष्यों की वेद विहित माताएँ कहलाती हैं।[1]
ये कृत्तिकाएँ सम्पूर्ण सिद्धियों की ज्ञाता, परमैश्वर्यसम्पन्न और तीनों लोकों में पूजित हैं। ये क्षुद्र नहीं है, बल्कि ब्रह्मा की कन्याएँ हैं।
तुम भी सत्त्वसम्पन्न तथा शम्भु के पुत्र के समान हो और विष्णु ने तुम्हें भेजा है; अतः चलो, मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ।
वहाँ देवसमुदाय का दर्शन करूँगा।
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ब्रह्मवैवर्त पुराण से प्रस्तुत है।
स्तनदात्री गर्भधात्री
भक्ष्यदात्री
गुरुप्रिया ।
अभीष्टदेवपत्नी च पितुः पत्नी च कन्यका।
सगर्भजा च या भगिनी स्वामीपत्नी प्रियाप्रसूः।
मातुर्माता पितुर्माता सोदरस्य प्रिया तथा।
मातुः पितुष्च भगिनी मातुलानी तथैव च।
जनानाम वेदविहिता मातरः षोडश स्मृताः।
अर्थात 16 प्रकार की माता होती है_
दूध पिलाने वाली _धाय
गर्भ धारण करने वाली
भोजन देने वाली
गुरुपत्नी
इष्टदेव की पत्नी
सौतेली मां
सौतेली मां की पुत्री
सगी बड़ी बहन
स्वामी की पत्नी
सास
नानी
दादी
सगे बड़े भाई की पत्नी
मौसी
बुआ
और मामी
ये सब मिलकर 16 माताएं होती है ।
ब्रह्मवैवर्त पुराण,गणपतीखंड
अध्याय 15/41 से 43
जय हिंद
वंदे मातराम
सुमंत कुमार यादव *जौरा*
अहीर आश्रम ,कुशीनगर
उत्तर प्रदेश।
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