"ओ३म्" शब्द की व्युत्पत्ति- एक वैश्विक विश्लेषण यादव योगेश कुमार 'रोहि' के द्वारा
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प्राचीन भारतीय देव संस्कृतियों की मान्यताओं के अनुसार इस ओ३म्' के उच्चारण प्रभाव से सम्पूर्ण भाषा की आक्षरिक सम्पत्ति (syllable prosperity) यथावत् रहती है। ओघम् का मूर्त प्रारूप (🌞) सूर्य के आकार या सादृश्य पर था। जैसी कि प्राचीन पश्चिमीय संस्कृतियों की भी ये मान्यताऐं हैं। वास्तव में ओघम् (ogham) से बुद्धि उसी प्रकार नि:सृत होती है- जैसे सूर्य से उसका प्रकाश प्राचीन मध्य मिश्र के लीबिया प्रान्त में तथा थीब्ज में यही (आमोन् रा) (ammon- ra )के रूप में था। यद्यपि कुछ ईसाई और इस्लामिक विद्वान (अमोन रा) और आमीन का कोई सम्बन्ध भले ही न मानते हों।
परन्तु अमोन रा का प्रारम्भिक रूप अमोन है जो मिश्र की संस्कृति और सभ्यता का सबसे प्रतिष्ठित देव है । वह मिश्र में भाषा कविता और साहित्य संरक्षण के देव है। जो वस्तुत: भारतीय मिथकों में भी ओ३म् शब्द का विकास क्रम कुछ ऐसा ही है। ओ३म् एक अनाहत नाद है । जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में निरन्तर गुञ्जायमान है । सूर्य में नें निरन्तर यह ओ३म् ध्वनि निनादित है। -़ रवि सूर्रय का विशेषण इसी कारण से है क्यों कि रव नाद का वाचक शब्द है। रवि का के तादात्मय मिश्र के "रा" से प्रस्तावित है। आधुनिक अनुसन्धानों के अनुसार भी अमेरिकीय अन्तरिक्ष यान -प्रक्षेपण संस्थान के वैज्ञानिकों ने भी सूर्य में अजस्र रूप से निनादित "ओ३म् प्लुत स्वर का श्रवण किया है । पाणिनि ने "ओ३म् शब्द को धातुज मानकर उसकी व्युत्पत्ति "अव् धातु से उणादि "मन् प्रत्यय परक की है ।
१-
रक्षण,२-गति,३-कान्ति,४-प्रीति,५-तृप्ति,६-अवगम,७-प्रवेश,८-श्रवण,९-स्वाम्यर्थ,१०-याचना,११-क्रिया,१२-इच्छा,१३-दीप्ति,१४-अवाप्ति, १५-आलिङ्गन,१६-हिंसा,१७-दान,१८-भाग,१९- वृद्धिषु। इनमें रक्षण कान्ति दीप्ति अवाप्ति और वृद्धि आदि अर्थ ईश्वरीय सत्ताओं के वाचक हैं। और रवि संज्ञा भी है ।
ओ३म् इस समग्र सृष्टि के आदि में प्रादुर्भूत एक अनाहत निरन्तर अनुनिनादित नाद है । ऐसा लगता कि उस अनन्त सत्ता का जैसे प्रकृति से साक्षात् संवाद है । (ॐ ) शब्द को भारतीयों ने सर्वाधिक पवित्र शब्द तथा ईश्वर का वाचक माना ,उस ईश्वर का वाचक जो अनन्त है । यजुर्वेद के अध्याय ४०की १७ वीं ऋचा में कहा गया है "ओम खम् ब्रह्म ओम ही नाद ब्रह्म है। प्राचीन भारतीय संस्कृति में सूर्य का वाचक रवि शब्द भी है । मिश्र की संस्कृति में जिसे रा रहा गया है ।
लैटिन भाषा में (omnis) सम्पूर्णता का वाचक है। रविः अदादौ रु शब्दे । रू धातु का परस्मैपदीय प्रथम पुरुष एक वचन का रूप है रौति अर्थात् जो ध्वनि करता है । (रूयते स्तूयते इति रवि:। रु + “ अच इः ।“ उणाणि सूत्र ४।१३८। इति इः) सूर्य्यः अर्कवृक्षः। इत्यमरःकोश ॥
सूर्य्यस्य भोग्यं दिनं वार रूपम् ॥
यथा “ रवौ वर्ज्ज्यं चतुःपञ्च सोमे सप्त द्बयं तथा “इत्यादिवारवेलाकथने समयप्रदीपः ॥
पौराणिक ग्रन्थों में रविः शब्द की काल्पनिक व्युपत्ति की गयी है वह भी अव् धातु से । देखें ''रवि'' ¦ पु॰ (अव्--इन् रुट्च्)१ सूर्य्ये । ज२ अर्कवृक्षे च“अचिरात्तु प्रकाशेन अवनात् स रविः स्मृतः” मत्स्यपुराणतन्नामनिरुक्तिः। अर्थात् मत्स्य पुराण में रवि शब्द की व्युत्पत्ति करते हुए बताया है कि दीर्घ काल से प्रकाश के द्वारा जो रक्षा करता है वह रवि है ।
अव् धातु का एक अर्थ -रक्षा करना भी है ।
वस्तुत यह व्युत्पत्ति आनुमानिक व काल्पनिक है वस्तुस्थिति तो यह है कि रवि ध्वनि-परक विशेषण है। रवि संज्ञा का विकास "रौति इति -रवि यहशब्द रु-शब्दे धातु से व्युत्पन्न है । अर्थात् सूर्य के विशेषण ओ३म्'और -रवि ध्वनि अनुकरण मूलक हैं। सैमेटिक -- सुमेरियन ,हिब्रू आदि संस्कृतियों में हैमेटिक "ओमन् शब्द "आमीन के रूप में है। तथा रब़ का अर्थ नेता तथा महान होता हेै। जैसे रब्बी यहूदीयों का धर्म गुरू है ।अरबी भाषा में रब़ -- ईश्वर का वाचक है। अमोन तथा रा प्रारम्भ में पृथक पृथक देव थे। और दौनों सूर्य सत्ता के वाचक थे । मिश्र की संस्कृति में ये दौनों कालान्तरण में एक रूप होकर (अमॉन रॉ ) में परिवर्तित हो गये और अत्यधिक पूज्य हुए ! क्योंकी प्राचीन मिश्र के लोगों की मान्यता थी कि (अमोन-रॉ) ही सारे विश्व में प्रकाश और ज्ञान का प्रसारण है। मिश्र की परम्पराओ से ही यह शब्द मैसोपोटामिया की सैमेटिक हिब्रु आदि परम्पराओं में निर्यात होकर प्रतिष्ठित हुआ जो क्रमशः यहूदी ( वैदिक यदुः ) के वंशज थे । इन्हीं से ईसाईयों में आमेन (Amen ) तथा ईसाईयों से अ़रबी भाषा में आमीन् !! (ऐसा ही हो ) एक स्वीकारात्मक अव्यय के रूप में धार्मिक रूप इबादतो में प्रतिष्ठित हो गया। इतना ही नहीं जर्मन लोग मनु के वंशज ओ३म् का सम्बोधन omi /ovin के रूप में अपने ज्ञान के देव वॉडेन ( woden) के लिए करते थे। क्यों कि वह भी ज्ञान का संरक्षक देव था।
जो भारतीयों में बुध ज्ञान का देवता था इसी बुधः का दूसरा सम्बोधन जर्मन वर्ग की भाषासओं में (OUVIN ) ऑविन भी था। यही (woden) ही अंग्रेजी में (Goden) होते हुए अन्त में आज( God ) बन गया है।जिससे कालान्तर में गॉड (god )शब्द बना है। जो फ़ारसी में (ख़ुदा) के रूप में प्रतिष्ठित हैं।यद्यपि कुछ यूरोपीय भाषाविद् गॉड शब्द की व्युत्पत्ति आदि जर्मनिक शब्द -guthan- गुथान से मानते हैं यह उनका अनुमान ही है । ऑक्सफोर्ड एटिमोलॉजी इंग्लिश डिक्शनरी में गॉड(God) शब्द की व्युत्पत्ति क्रम निम्नलिखित रूप में दर्शाया गया है। "Old English god "supreme being the Christian God word; from Proto-Germanic word *guthan (गुथान) its too (source also of Old Saxon, Old Frisian, Dutch god, Old High German got, German Gott, Old Norse guð, Gothic guþ), which is of uncertain origin; perhaps from Proto Indo Europion- *ghut-घुत "that which is invoked-"जिसका आह्वान किया गया हो (who has been summoned) जिसे आहूत किया गया हो। (source also of Old Church Slavonic zovo "to call," Sanskrit huta- "invoked," an epithet of Indra) from root *gheu(e)- "to call, invoke." The notion could be "divine entity summoned to a sacrifice."
हिब्रू भाषा का यहोवा शब्द भी सम्भवत: वैदिक यह्व: का प्रतिरूप है। जिसकी व्युत्पत्ति अनिश्चित सी है। सस्कृत कोशकार भी यह्व: शब्द की व्युत्पत्ति का विवरण सन्तोष जनक रूप में उद्धृत नही करते हैं। वाचस्पत्यम् कोशकार यह्व: शब्द को यज्- धातु परक मानकर यज्ञ धातु में उणादि प्रत्यय वन् लगाकर करता है। जबकि ह्वे-आह्वान करना धातु यह्व में स्पष्ट परिलक्षित है। शब्दकोशीय व्युत्पत्ति देंखे-
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यह्व: (यजतीति - यज + वन्= शेवायह्वजिह्वाग्रीवाप्वामीवाः । “ उणादि १ । १५४ । इति वन्प्रत्ययेन निपातितः । ) यक्षमानः । इत्युणादिकोषः ॥ (त्रि महान् । यथा ऋग्वेदे । ३। १ । १२। “ उदुस्रिया जनिता यो जजानापां गर्भो नृतमो यह्वो अग्निः । “ यह्वो महान् । “ इति तद्भाष्ये सायणः ॥
परन्तु " यह्व:य ह्वयते -जिस का आह्वान किया गया हो- "त्वं देवानामसि यह्व होता स एनान्यक्षीषितो यजीयान् ॥३॥ ऋग्वेद-10/110/3
"अबो॑ध्य॒ग्निः स॒मिधा॒ जना॑नां॒ प्रति॑ धे॒नुमि॑वाय॒तीमु॒षासं॑ ।य॒ह्वा इ॑व॒ प्र व॒यामु॒ज्जिहा॑नाः॒ प्र भा॒नवः॑ सिस्रते॒ नाक॒मच्छ॑ ॥१।।(ऋग्वेद -5/1/1)
वस्तुत: यहाँ उस यहोवा का वर्णन है जो सिनाई पर्वत पर मूसा को जलती झाड़ियो
में से आवाज देता है। जिसमें अग्नि का भी गुण है और आह्वान करने वाले का भी ।
विदित हो कि गॉड शब्द ; पुरानी इंग्लिश "सर्वोच्च अस्तित्व, अथवा ईश्वर का वाचक है।; ईसाई गॉड प्रोटो-जर्मनिक ★-guthan- (गुथान) जो कि (ओल्ड सैक्सन, ओल्ड फ़्रिसियाई, डच में गॉड, है। ओल्ड हाई जर्मन गॉट, जर्मन गॉट, ओल्ड नॉर्स गुड, गॉथिक गुउ का भी स्रोत) , जो अनिश्चित मूल का है; शायद मूल भारोपीय धातु ( मूल) हूत(ह्वे--क्त संप्रसारणम् । "जो आह्वान किया जाता है" से
(ओल्ड चर्च स्लावोनिक ज़ोवो का स्रोत भी "कॉल करने के लिए," संस्कृत हुता- "आमंत्रित," है जो इंद्र का एक विशेषण भी है )
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परन्तु गॉड शब्द की यह व्युत्पत्ति भी आनुमानिक व सिद्धान्त विहीन ही है। सम्भव यह भी है कि संस्कृत भाषा मे स्वतस्( स्व+तसिल्-) से फारसी ख़ुदा और खुद शब्द विकसित हुए हों और ख़ुदा ही अंग्रेजी में गॉड हो गया है।
सीरिया की सुरीली संस्कृति में यह ओ३म् शब्द ऑवम् ( aovm ) हो गया है। वेदों में (ओमान्) शब्द बहुतायत से "रक्षक" के रूप में आया है । यद्यपि ओ३म् एक विस्मयादि बोधक अव्यय भी है। इसी का दूसरा नाम प्रणव है।
ओङ्कारः, पुं० (ओम् + कार प्रत्ययः ) प्रणवः । इत्यमरः कोश॥ (यथाह स्मृतिः जेेैसा कि स्मृतिग्रन्थों में कहा है गया है।
“ओङ्कारः पूर्व्वमुच्चार्य्यस्ततो वेदमधीयते” “ओङ्कारश्चाथशब्दश्च द्वावेतौ ब्रह्मणः पुरा ।
कण्ठं भित्त्वा विनिर्ज्जातौ तस्मान्माङ्गलिकावुभौ”। इति व्याकरणटीकायां दुर्गादासःकृत।
व्याकरण टीकाकार दुर्गादास लिखते है कि "(ओङ्कार) तथा "(अथ) ये दौनों शब्द पूर्व काल में ब्रह्मा के कण्ठ के भेदन करके उत्पन्न हुए अत: ये मांगलिक हैं। परन्तु यह भारतीय संस्कृति में तो यह भी मान्यता है। कि शिव (ओ३म्) ने ही पाणिनी को ध्वनि समाम्नाय के रूप में चौदह माहेश्वर सूत्रों की वर्णमाला प्रदान की !
जिससे सम्पूर्ण भाषा व्याकरण का निर्माण हुआ ।
पाणिनी पणि अथवा ( phoenici) पुरोहित थे जो मेसोपोटामिया की सैमेटिक शाखा के ही लोग थे। ये लोग द्रविडों से सम्बद्ध थे।
और इन्होंने ही देश - दुनिया को भाषाओं का उपहार दिया। वस्तुत: यहाँ इन्हें द्रुज संज्ञा से अभिहित किया गया था । द्रविडों को कही ड्रूयूड तो कहीं द्रुज भी कहा गया है। यह द्रुज जनजाति प्राचीन इज़राएल जॉर्डन लेबनॉन में तथा सीरिया में आज तक प्राचीन सांस्कृतिक मान्यताओं को सञ्जोये हुए है। भले ही ईसाईयत और इस्लामिक प्रभावों से इनमें कुछ भौतिक परिवर्तन हुआ हो।
परन्तु द्रुजों की जो प्राचीन मान्यत थी वह आज भी है कि आत्मा अमर है तथा मनुष्य का पुनर्जन्म कर्म फल के भोग के लिए होता है ।
ठीक यही मान्यता बाल्टिक सागर के तटवर्ति ( द्रयूड- पुरोहितों( druid prophet,s ) में प्रबल रूप में मान्य थी ! विदित हो कि फॉनिशियन ही वैदिक कालीन पणि लोग थे जो समुद्री यात्राओं द्वारा दूर देशों में व्यापार करते थे। द्रविड पहले पुरोहित थे जिन्होंने द्रव अथवा पदार्थ के साथ वृक्षों का भी जीवन विश्लेषण किया। द्रविड फॉनिशयनों के सहवर्ती या उनसे सम्बन्धित थे। केल्ट ,वेल्स ब्रिटॉनस् आदि ने इस वर्णमाला को द्रविडों से ग्रहण किया था और द्रविडों ने पणियों अथवा फॉनिशियनें से ग्रहण किया।
(द्रविड द्रव + विद -- समाक्षर लोप से "द्रविड" शब्द का विकास हुआ .) ऊँ एक प्लुत स्वर है जो सृष्टि का आदि कालीन प्राकृतिक ध्वनि रूप है जिसमें सम्पूर्ण वर्णमाला समाहित है। इसके अवशेष एशिया - माइनर की पार्श्ववर्ती आयोनिया ( प्राचीन यूनान ) की संस्कृति में भी प्राप्त हुए है। यूनानी देव संस्कृति अनुयायी थे ज्यूस( द्यौस) और पॉसीडन ( पूषण अथवा विष्णु) की साधना के अवसर पर अमोनॉस (amonos) का उच्चारण करते थे। दर असल "
एम्मोन" मिस्र के संप्रभु सूर्य-देव की ग्रीक और रोमन अवधारणा का नाम (
Amun)(शाब्दिक रूप से "छिपा हुआ" कहा जाता है), भी "
Amen"-Ra". यह वे जीवन के देवता, मेढा के सिर वाले देवत्व के साथ भ्रमित थे, जिनकी लीबिया में एक शानदार अभयारण्य में पूजा की जाती थी।
ज्यूस( द्योस) बृहस्पति का नामान्तरण है तो पॉसीडन वैदिक देव (पूषण )का नामान्तरण है।
ओक या बलूत के जंगलों में घूमने वाले उपदेशक और ओक या बलूत के पेड़ को ही द्रव कहा जाता है ग्रीक भाषा में द्रविड वन्य संस्कृति के प्रसारक के रूप में कार्य करते थे।ये द्रव को जानते थे इस लिए इनको द्रविद-द्रविड कहा गया।
वर्ष में एक बार ये द्रविड़ आल्पस पर्वत के परम्परागत रूप से उत्तर-पूर्व में किसी पवित्र स्थल पर इकट्ठा होते थे। इस प्रकार के धार्मिक वार्षिक सम्मेलन प्राचीनत्तम फ्रॉन्स( गॉल-Gaul) देश में भी होते थे । जहाँ अनातोलिया से लेकर आयरलैंड तक के द्रविड़ इकट्ठा होकर अपना प्रमुख पुरोहित चुनते थे। वहीं सब प्रतिनिधियों के बीच नीति विषयक बातें होती थीं। समस्त विवादों का, जो उन्हें सौंपे जाते, वे सम्यक् निर्णय करते थे। ये वैसे ही सम्मेलन थे जैसे भारत में कुंभ मेले के अवसर पर सन्तों मनीषियों द्वारा होते थे। वे साधारणतया अपने कर्मकाण्ड एवं पठन-पाठन बस्ती से दूर निर्जन जंगल में करते थे। द्रविड़ आत्मा की अनश्वरता और पुनर्जन्म पर दृढ़ विश्वास करते थे ,और मानते थे कि आत्मा एक शरीर से दूसरे नवीन शरीर (कलेवर) में प्रवेश करती है। इन देवमूर्तियों का वे पूजन भी करते थे। आंग्ल विश्वकोश के अनुसार- 'बहुत से विद्वान यह विश्वास करते हैं कि भारत के हिंदु ब्राह्मण और पश्चिमी प्राचीन सभ्यता के सेल्टिक 'द्रविड़' एक ही हिंदु-यूरोपीय पुरोहित वर्ग के अवशेष हैं।'
सेल्टिक सभ्यता के द्रविड़ (द्रुइड) के बारे में विद्वानों ने प्रारंभिक खोजों में 'उनके समय, उनकी दंतकथाओं, मान्यताओं, और धारणाओं आदि के अध्ययन से यही निष्कर्ष निकाला कि वे भारत से आए दार्शनिक पुरोहित थे। वे भारत के ब्राह्मण थे अथवा भारत में यूरोपीय देशों से भारत में आये थे, जो उत्तर में साइबेरिया ('शिविर' देश) रूस से लेकर सुदूर पश्चिम आयरलैंड तक पहुँचे, जिन्होंने भारतीय सभ्यता को पश्चिम के सुदूर छोर तक पहुँचाया।' श्री पुरूषोत्तम नागेश ओक ने अपनी पुस्तक 'वैदिक विश्व-राष्ट्र का इतिहास' में यह संकेत किया है जो कि उनका अपना पूर्वाग्रह ही है (देखें- अध्याय २३ और २४ पर इनका विवरण दिया है ), हैं।
वे उस समाज के पुरोहित, अध्यापक, गुरू, गणितज्ञ, वैज्ञानिक, पंचांगकर्ता, खगोल ज्योतिषी, भविष्यवेत्ता, मंत्रद्रष्टा, वंदपाठी, धार्मिक क्रियाओं की परिपाटी चलाने वाले; प्रायश्चित आदि का निर्णय लेने वाले गुरूजन थे। यूरोप में उस शब्द का उच्चारण 'द्रुइड' रूढ़ है।'
भारतीय पुराणों में जिस ओ३म् (ऊँ) शब्द के उच्चारण करने पर शूद्र अथवा निम्न समझी जाने वाली जन-जातियाें की जिह्वा का रूढि वादी परम्पराओं के अनुगामी पुरोहितों द्वारा उच्छेदन तक करने का विधान पारित किया गया था। उसी ओ३म् शब्द का प्रादुर्भाव उसी द्रविड संस्कृति से हुआ जो आज शूद्र वर्ण में समाहित कि गयी हैं। जिनके लिए उनका "ओ३म् शब्द के उच्चारण पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया हो । आज हम उस शब्द की जन्म-कुण्डली खोलेंने का प्रयास करेंगे -सर्वप्रथम हम यह प्रकाशिका कर दें कि द्रविड शब्द यूरोपीय इतिहास में ड्रयूड् नाम से (Druid) हैं। और यही लोग प्राचीनत्तम विश्व में द्रव- ( जल, वायु आकाश , अग्नि और वनस्पति) के विद-वेत्ता थे तथा वन्य संस्कृतियों के सूत्रधार व जन्मदाता थे ।
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सर्व-प्रथम हम विचार करते हैं "ओ३म्" शब्द के विकास की पृष्ठ-भूमि पर- विश्व इतिहास के सांस्कृतिक अन्वेषणों के उपरान्त कुछ तथ्यों से हम अवगत हुए । जैसे -सैल्ट जन जाति के धर्म साधना के रहस्य मय धार्मिक अनुष्ठानों में इसी ओघम (OGHUM) शब्द का हुंकार नुमा उच्चारण आध्यात्मिक और तान्त्रिक क्रियाओं को प्रभावात्मक बनाने के लिए दृढता से उच्चारण विधान किया जाता था । तो इसी के समानान्तरण मिश्र , असीरिया , असीरिया स्वीडन या जर्मनिक ,आयोनिया , हिब्रूू सुमेरियन, बैबीलोनियन आदि में भी कुछ अन्तर के साथ यह शब्द विद्यमान था।
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ड्रयूडस(Druids) संस्कृति के विश्वास करने वालों का मत था ! कि इस प्रकार आउ-मा (Ow- ma) अर्थात् जिसे भारतीय आर्यों ने "ओ३म्" रूप में साहित्य ,कला और ज्ञान के उत्प्रेरक और रक्षक के रूप में प्रतिष्ठित किया है।
अर्थात् प्राचीन भारतीय देव संस्कृति के अनुयायीयों की मान्यताओं के अनुसार सम्पूर्ण भाषा की आक्षरिक सम्पत्ति ( syllable prosperity ) ओ३म् के उच्चारण से यथावत् रहती है ! इसी लिए धार्मिक पास के प्रारम्भ और समापन पर ओ३म् का उच्चारण अनिवार्य है।
ये ड्रयूडस् पुरोहित भी इसी प्रकार की भारतीयों के समान मान्यता स्थापित किए हुए थे।
प्राचीनत्तम फ्रॉन्स की संस्कृतियों में 'ओघम्' का मूर्त प्रारूप 🌞 सूर्य के आकार के सादृश्य पर था। जैसा कि प्राचीन पश्चिमीय संस्कृतियों की मान्यताऐं भी हैं । वास्तव में ओघम् (ogham )से बुद्धि उसी प्रकार नि:सृत होती है जैसे सूर्य से उसका प्रकाश । प्राचीन मध्य मिश्र के लीबिया प्रान्त में तथा थीब्ज में भी द्रविड संस्कृति का यही ऑघम शब्द (आमोन् -रा) ( ammon - ra ) के रूप में था । जो वस्तुत: ओ३म् -रवि के तादात्मयी
रूप में प्रस्तावित है। किसी भी संस्कृत के प्रतिष्ठित वैय्याकरणिक के द्वारा रवि शब्द की व्युत्पत्ति ध्वनि-विवृति मूलक रूप में नहीं की गयी। 'परन्तु हमारी मान्यता तो रवि ( सूर्य) के ध्वनि अनुकरण मूलक रूप पर आग्रहीत थी।
आधुनिक अनुसन्धानों के अनुसार भी अमेरिकीय अन्तरिक्ष यान - प्रक्षेपण संस्थान (नासा)
के वैज्ञानिकों ने भी सूर्य में अजस्र रूप से निनादित "ओ३म्" प्लुत स्वर का श्रवण किया है ।
वस्तुत: हर गतिशील चीज में ध्वनि होना स्वाभाविक ही है। सुमेरियन एवं सैमेटिक हिब्रू आदि परम्पराओं में रब़ अथवा रब्बी शब्द का अर्थ - नेता तथा महान एवं गुरू होता हेै ! जैसे रब्बी यहूदीयों का धर्म गुरू है। अरबी भाषा में रब़ ईश्वर का वाचक है । क्यों कि नेता अथवा मार्गदर्शक ईश्वर का प्रतिनिधित्व करता है।जैसा कि अरबी वाक्य- "रब्बुल अल अलामीन" का मतलब " ईश्वर सम्पूर्ण संसार का रक्षक है ।
अमीन शब्द (अरबी:जुबान में है ( آمین) आमीन का शाब्दिक अर्थ है "ऐसा हो सकता है" या "ऐसा ही है"। यह भाषाई तौर पर एक "स्वीकृति बोधक अव्यय" है । अरबी हिब्रू और संस्कृत में भी आमीन का यही अर्थ है।
मुसलमानों में शब्द आमिन का प्रयोग आमतौर पर उसी शब्द के साथ किया जाता है जिसका अर्थ है "मुझे जवाब दें", और वाक्यांश "इलाही अमीन" (अरबी: الهی آمین; अर्थ: हे मेरे भगवान ! मुझे जवाब दें) कुरान शरीफ की आयतों को पढ़ते समय इबादत की ताकीद के लिए आमीन ( ऐसा ही हो) का उच्चारण आज तक किया जाता है
आधुनिक काल में यह आमीन सम्बोधन सैमेटिक परम्पराओं के अनुयायी( यहूदी, ईसाई और इस्लामिक )लोगों के बीच बहुत आम है।
इसका उपयोग अंग्रेजी में अमेन के रूप में किया जाता है (अर्थ: तो यह हो -it be so)है। वस्तुत: अमेन हिब्रू बाइबिल में वर्णित रूप है ।
शिया शरीयत में, प्रार्थनाओं में कुरान 1 (सूर अल-हम्द) को पढ़ने के बाद "अमीन" न कहने पर कि प्रार्थना को शरीयती तौर पर अमान्य कर दिया गया है। इसी लिए "आमीन" कहना अनिवार्य है।
हिब्रू परम्पराओं से ही यह अरब की रबायतों में कायम हुआ। और हिब्रू में, शब्द "अमीन" को सबसे पहले "सही" और "सत्य" नामक विशेषण के रूप में उपयोग किया जाता था,।
लेकिन ईसाई धर्मगुरु यशायाह की किताब के मुताबिक इसका उपयोग संज्ञा के रूप में किया जाता था। यह शब्द फिर हिब्रू में एक (invariant) ऑपरेटर (अर्थात्, "वास्तव में" और "निश्चित रूप से")के अर्थ में परिवर्तित हो गया।
इतिहास की पहली पुस्तक वेद और किंग्स बुक्स जैसी पहली पुस्तक में इस शब्द की घटना से पता चलता है। कि यह शब्द यहूदी प्रार्थनाओं और अनुष्ठानों में चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से पहले भी इस्तेमाल किया गया था।
प्राचीन यहूदी परम्परा में, इस शब्द का उपयोग प्रार्थना की शुरुआत या प्रार्थना के अन्त में किया गया था।
अब यहूदी यादवों का ही वैदिक तथा पश्चिमी इतर रूप था । ये लोग गाय और बैल की पूजा करते थे। यहूदियों की प्रार्थनाओं, और भजनों के अन्त में इस आमीन की पुनरावृत्ति प्रासंगिक सामग्रियों की पुष्टि और समर्थन हेतु दोनों रूपों में थी , और आमीन उम्मीद की अभिव्यक्ति थी कि हर कोई अमेन का उल्लेख करने के दौरान अभ्यास के आशीर्वाद साझा कर सकता है।
अमेन ( आमीन) का मिलान वेल्श संस्कृति के अवेन (Awen)से भी प्रस्तावित है । अमेन के विषय में पूर्व में वर्णन कर चुके हैं ।
तलमूद और अन्य यहूदी परम्पराओं की अवधि में, यह महत्वपूर्ण था कि विभिन्न स्थितियों में "आमीन" शब्द का उपयोग कैसे किया जाए, और ऐसा माना जाता था कि भगवान की किसी भी प्रार्थना के लिए "आमीन" कहना होता है जो जिससे ईश्वर को सम्बोधित किया जाता है।
यहूदी परम्पराओं को ईसाई चर्चों में अपना रास्ता मिला। "अमीन" शब्द का प्रयोग नए नियम में 119 बार किया गया था, जिनमें से 52 मामले यहूदी धर्म में इसका उपयोग कैसे किया जाता था उससे सम्बन्धित है।
नए नियम के माध्यम से, आमून शब्द ने दुनिया की लगभग सभी मुख्य भाषाओं में प्रवेश किया।
शब्द, अमीन, जैसा कि नए नियम में प्रयोग किया गया है, उसमें इसके चार अर्थ हैं -
" पावती और अनुमोदन; एक प्रार्थना में समझौता या भागीदारी, और किसी के प्रतिज्ञा की अभिव्यक्ति। दिव्य प्रतिक्रिया का अनुरोध, जिसका अर्थ है: "हे भगवान! स्वीकार करें या जवाब दें !" अर्थात् एवं अस्तु !(निश्चय ही एसा हो )एक प्रार्थना या प्रतिज्ञा की पुष्टि, जिसका अर्थ है: "तो यह हो" (आज शब्द को दो अर्थों को इंगित करने के लिए प्रार्थनाओं के अंत में उपयोग किया जाता है)।एक विशेषता या यीशु मसीह का नाम ।अरबी में चूंकि इस्लाम के उद्भव से पहले यहूदी धर्म और नाज़रेन ईसाई धर्म दोनों अरब प्रायद्वीप में प्रसारित थे। इसलिए यह संभव है कि मक्का और मदीना समेत अरब, इससे परिचित थे, हालांकि जहालत( अज्ञान) काल की कविताओं में इसका कोई निशान नहीं मिला है।
यह शब्द कुरान में नहीं होता है, लेकिन प्रारंभिक मुस्लिम शब्द से निश्चित रूप से परिचित थे।
पैगंबर मुहम्मद ने शब्द का प्रयोग किया, लेकिन ऐसा लगता है कि शुरुआती मुस्लिम शब्द के अर्थ के बारे में निश्चित नहीं थे, क्योंकि पैगंबर ने उन्हें एक स्पष्टीकरण और शब्द की व्याख्या दी (यह कहकर कि "अमीन एक है अपने वफादार सेवकों पर दिव्य डाक टिकट ")।
और 'अब्द अल्लाह बी. अल-अब्बास " ने शब्द का व्याकरणिक विवरण देने की पहली कोशिश की। कुरान के निष्कर्षों में
यह शब्द कुरान 10:88 और 89 के मंजिलों (उत्थानों) में उल्लिखित है।
कुरान के लगभग सभी exegetes के अनुसार, जब पैगंबर मूसा (ए) फिरौन को शाप दिया, वह और उसके भाई, भविष्यवक्ता हारून (ए) , शब्द अमेन उद्धृत किया। 'परन्तु मूसा यहूदियों के पैगम्बर थे मुसलमानों के नहीं । मूसा प्रार्थना में आमीन का हवाला देते हुए कहते हैं।
सुन्नी मुस्लिम इस शब्द का हवाला देते हैं, अमीन, प्रार्थना में कुरान 1 को कविता के जवाब के रूप में पढ़ने के बाद, "हमें सही मार्ग दिखाएं", (कुरान, 1: 6)। यदि उपासक अपनी प्रार्थना व्यक्तिगत रूप से कहता है, तो वे स्वयं को इस शब्द का हवाला देते हैं, और यदि वे एक मंडली में प्रार्थना कहते हैं, जब प्रार्थना के नेता कुरान 1 को पढ़ना समाप्त कर देते हैं, तो सभी अनुयायियों ने एक साथ आमीन को उद्धृत करते हैं।
शिया न्यायविदों का कहना है कि प्रार्थना में अमीन का हवाला देते हुए यह अमान्य है, क्योंकि यह प्रार्थना में एक विधर्मी अभ्यास है जिसे पैगंबर की परंपरा में पुष्टि नहीं माना जाता है।
टिप्पणियाँ-
↑ यशायाह 65:16
↑ धन्य है यहोवा, इस्राएल का परमेश्वर, अनन्तकाल से अनन्तकाल तक। "तब सभी लोगों ने कहा"
आमीन!
पाणिनीय धातु पाठ में अव् धातु के अनेक अर्थ हैं
अव्-- --१ रक्षक २ गति ३ कान्ति४ प्रीति ५ तृप्ति ६ अवगम ७ प्रवेश ८ श्रवण ९ स्वामी १० अर्थ ११ याचन १२ क्रिया १३ इच्छा १४ दीप्ति १५ अवाप्ति १६ आलिड्.गन १७ हिंसा १८ आदान १९ भाव वृद्धिषु ( १/३९६/ भाषायी रूप में ओ३म् एक अव्यय ( interjection) है ।
जिसका अर्थ है -- ऐसा ही हो ! ( एवमस्तु !) it be so इसका अरबी़ तथा हिब्रू रूप है आमीन् ।
लौकिक संस्कृत में ओमन् ( ऊँ) का अर्थ--- औपचारिकपुष्टि करण अथवा मान्य स्वीकृति का वाचक है ---
मालती माधव ग्रन्थ में १/७५ पृष्ट पर-- ओम इति उच्यताम् अमात्यः" तथा साहित्य दर्पण --- द्वित्तीयश्चेदोम् इति ब्रूम १/""
ईरानीयों 'ने भी ओ३म्' शब्द को अपने मिथकों में स्थापित किया ।
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