सोमवार, 13 मार्च 2023

' अध्याय-तृत्तीय-

"आर्य और वीर शब्दों का विकास परस्पर सम्मूलक धाराओं से है।


एक समय लगभग ई०पू० द्वित्तीय सदी में संस्कृत के विद्वानों ने गोपालक (चरावाहों) के एक समुदाय की वीरता और भयंकरताप्रवृत्ति को दृष्टि गत करके उनका 'अभीरु' अथवा 'अभीर' नामकरण किया।

यहाँं के पुरोहितों को इनके मूल नाम "आवीर" / अबीर में 'अभीर' शब्द की ध्वनि सुनायी दी।
अभीर शब्द हिब्रू-भाषाओं में उसकी मूल क्रिया बीर/ बर से विकसित है। वीर का सम्प्रसारित रूप आर्य, 
जर्मन भाषाओं में अरीर "Arier" के रूप में तो ग्रीक भाषाओं में  "Aber" के रूप में भी स्वीकृत  हैं। यह सब रूपों में आर्य शब्द ही है।

Arier = (strong, genitive Ariers, plural Arier, feminine Arierin)

(ethnography, archaic) Aryan (member of the Caucasian or Indo-European people) quotations ▼

एरियर = (मजबूत, संबंधकारक एरियर, बहुवचन एरियर, स्त्रीलिंग एरीरिन)

(नृवंशविज्ञान, पुरातन) आर्यन (कोकेशियन या इंडो-यूरोपीय लोगों के सदस्य थे▼

वस्तुत यह शब्द आर्य्यर् ही है । इसका इतर रूप आभीर शब्द संस्कृत में सम्पादित किया गया। प्राकृत, अपभ्रंश, और पालि आदि भाषाओं में यह शब्द आहिर और अहीर हो गया है ।

और उसी का समूह वाचक रूप आभीर कर दिया गया है (अभीर +अण्) = आभीर ।

दुर्भाग्य से अब कुछ रूढ़िवादी पुरोहितों के शिष्य गण अहीर की व्युत्पत्ति (अहि + ईर )= अहीर के रूप में कर रहे हैं ; यह व्युत्पत्ति यदुवंश दर्पण कार ने काल्पनिक व मनगड़न्त रूप से की इसे कुछ अहीर जो पुराणों से प्रभावित हैं। सही कर के  देखते हैं ।

परन्तु यदुवंश दर्पण में इसका कोई भी सन्दर्भ या उद्धरण श्रोत नहीं है ।

परन्तु अहीर शब्द के रूप से सन्तुष्ट न होकर
अब के कुछ रूढ़िवादी पुरोहितों ने "अधीर" का तद्भव रूप ही "अहीर" कर दिया है ।

और आप जानते ही हो की "अधीर" तो धैर्य हीन या मूर्ख ही होता है ।

इसी लिए अब राधा प्रकाशन आगरा से प्रकाशित राजकुमारी शर्मा द्वारा सम्पादित एक हिन्दी पुस्तक में एक मुहावरा
अहीर होने का अर्थ किया गया है "मूर्ख होना"।

और वाक्य में अहीर शब्द का प्रयोग दर्शाया है ।जैसे वाक्य- "विनायक तो निरा अहीर है" इसी प्रकार विहार प्रदेश की राजधानी पटना से प्रकाशित अरविन्द कुमार लेखक के द्वारा

ल्यूसेण्ट हिन्दी का समग्र व्याकरण " नामक पुस्तक में भी "अहीर होने का अर्थ मूर्ख होना किया गया है । इनकी नजरों में  अहीकों का ईमानदार होना अहीरों का  मूर्ख होना ही हैं।

"दुश्मन कभी भी अपना शत्रु समझे जाने वाले लोगों में गुण नहीं देखता उसे केवल बुराई ही दिखती है ।
परन्तु हम यहाँं निश्पक्ष समतल पर अहीर शब्द के पूर्ववर्ती रूपों का निरूपण करेंगे - कि इस शब्द का मूल रूप क्या था।👇


"आर्य और वीर शब्दों का विकास
परस्पर सम्मूलक है।"

पश्चिमीय एशिया तथा यूरोप की  समस्त भाषाओं में ये दौनों "आर्य्य" और "वीर"  येे दौंनो शब्द प्राप्त हैं ।

परन्तु  आर्य शब्द वीर  शब्द का ही सम्प्रसारित अथवा परिवर्तित  रूप है । अत: वीर शब्द ही  प्रारम्भिक है

पाणिनीय अष्टाध्यायी- १।१।४५ प्रथमावृत्तिः सूत्रम्॥ इग्यणः-सम्प्रसारणम्॥१।१।४४

पदच्छेदः॥ इक् १।१ यणः ६।१ सम्प्रसारणम् १।१

हिन्दी अर्थः=यणः प्रत्याहार के =(य् व् र् ल्) वर्णों के स्थान पर क्रमश: "इक् प्रत्याहार के (इ उ ऋ ऌ) वर्णों का  हो जाना ही सम्प्रसारण है  ।

उदाहरण-सम्प्रसारण Propagation) भाषाविज्ञान का एक सिद्धान्त है। जैसे संस्कृत वक्ष का "उक्ष" "वच्" का लिट्लकार रूप "उवाच" हो जाता है।

सूचना - सम्प्रसारणम् इति यणादेशस्य विपरीतप्रक्रिया । यणादेशे इक्-वर्णस्य स्थाने यण्-वर्णः आदेशरूपेण विधीयते । तद्विवरीतम् कार्यम् सम्प्रसारणे भवति ।

सूचना - सम्प्रसारणम् इति यणादेशस्य विपरीतप्रक्रिया । यणादेशे इक्-वर्णस्य स्थाने यण्-वर्णः आदेशरूपेण विधीयते । तद्विवरीतम् कार्यम् सम्प्रसारणे भवति ।

वच्+रक्त= उक्तः, । स्वप् + क्तः= सुप्तः ॥ यज्+क्त= इष्टः,। वीर= उ-ईर-(आर्) सम्प्रसारित रूप "र का उर होना सन् प्रसरण  है।

 उसी प्रकार वीर का आर्य्य होना सम्प्रसारण (Propagation) है ।

दौनों शब्दों की व्युपत्ति पर एक सम्यक् विश्लेषण -यादव योगेश कुमार 'रोहि' के सांस्कृतिक शोधों पर आधारित है।_____________________________________यह लेख सांस्कृतिक और ऐैतिहासिक अवधारणाओं पर तो आधारित है ही ।          यह  वर्तमान इतिहास कारों की दुराग्रहों से निर्मुक्त एक सम्यक् गवेषणा को निर्देशित भी करता है ।

"आर्य" और "आर्यन" के अन्य उपयोगों के लिए, आर्य शब्द का प्रयोग ईरानीयों के धर्म ग्रन्थों में विशेषत: "अवेस्ता ए जैन्द "में देेखा जा सकता है ।

परन्तु "वीर शब्द भी  परवर्ती काल में "आर्य शब्द के समानान्तरण  प्रचलन में रहा है ।
प्रस्तुत है एक संक्षिप्त विवेचना---👇____________________________________

"आर्यन" (ग्रीक रूप ɛəriən ) एक विशेषण शब्द है जिसका उपयोग कालान्तरण ई०पू० छठी शताब्दी भारत-ईरानी लोगों द्वारा आत्म-पदनाम के रूप में किया जाता रहा है ।

इस शब्द का उपयोग भारत में वैदिक काल के सिन्धु नदी के तटवर्ती  लोगों द्वारा जातीय स्तर के रूप में किया जाने लगा था। जो मूलत: पशुपालक थे ।

परन्तु उसमें भी वीरता का भाव ही प्रतिध्वनित हुआ है । परन्तु इसको जातिगत रूप देने में  पाश्चात्य इतिहास विदों का बड़ा योगदान है ।

प्रारम्भिक सन्दर्भों में "आर्य शब्द "यौद्धा का वाचक था ।
और बहुत बाद में पाश्चात्य इतिहास विदों ने "आर्य शब्द का प्रयोग देव-संस्कृति के अनुयायी यूरोपीय इण्डो-जर्मन जन-जातियों के लिए किया ।

ट्रॉय और यूनानीयों के युद्ध काल में इस शब्द का प्रयोग नहीं हो पाया था।
ट्रॉय युद्ध का समय ई०पू० बारहबीं सदी तक
रहा। परन्तु यूनानीयों का युद्ध का देव अरेज(Ares) था।

एरेस(Árēs) प्राचीन यूनानी :    युद्ध और साहस की यूनानी देवता है। वह बारह ओलंपियनों में से एक है, और ज़ीउस( बृहस्पति) और हेरा का पुत्र है।

ट्रॉय का युद्ध जो मुख्यत: दो समान संस्कृतियों के अनुयायीयों का युद्ध था।

ये थे आयोनियन (यूनानी) और ट्रॉय वासी
--जो मध्य-एशिया (अनातोलिया) का तुर्की देश था।

यहाँं मृतक यौद्धाओं का दाह-संस्कार आँखों पर दो स्वर्ण सिक्का रख कर पार लौकिक यात्रा के लिए यौद्धा --जो वीरगति को प्राप्त हो गया उसके लिए कामनाऐं की जाती थी । और बारह दिनों तक मृतक का शोक होना भारतीयों के ही समान था।

इन तथ्यों के लिए यूनानी महाकवि होमर ई०पू० अष्टम सदी के इलियड और ऑडिसी महाकाव्य को इतिहास के शौकीन लोग  देखें-
कालान्तरण में यूनानीयों ने सैमेटिक देवता "एल" (El)तथा कनानी देव "इलु" के आधार पर "अरिस्" (Aries)
युद्ध देवता की परिकल्पना की थी।

--जो वैदिक ऋचाओं में "अरि" के रूप में  ईश्वर का  वाची है ।
दरअसल प्रारम्भ में "अरि" युद्ध का ही देवता था ।
-जब लोग कबीलों के रूप रहते और युद्ध ही जिनको प्रेय- और श्रेय था। इसी वैदिक देव के आधार पर आर्य्य- शब्द का विकास हुआ।

"यहाँं से आर्य शब्द की परिकल्पना वीर अथवा यौद्धा के रूप में हुई।

भारतीय और यूरोपीय लोग बाल्टिक सागर पर अपने आव्रजन काल से पूर्व एक साथ थे।
अर्थात्‌ जर्मनिक जन-जाति और भारत में आगत देव संस्कृति के अनुयायी दोन । ने मनु को ही अपना पूर्वज माना है।

असीरियन जन-जाति में प्राय: यौद्धा वर्ग स्वयं के लिए इस "आर्य" शब्द का प्रयोग करता था। और ईरानी संस्कृति में भी इसका  यही रूप  तीरंदाजों के अर्थ में रूढ़ हो गया ।

और कालान्ततरण में  यौद्धा वर्ग के साथ-साथ भौगोलिक क्षेत्र को सन्दर्भित करने के लिए भी आर्य्य शब्द का प्रयोग किया जाने लगा ।

जहांँ भारत में आर्य शब्द देव संस्कृति पर आधारित है।
वहीं निकटतम ईरानी लोगों ने अवेस्ता शास्त्र में स्वयं के लिए एक जातीय लेबल (स्तर)के रूप में आर्यन शब्द का उपयोग किया है। जो असुर संस्कृति के अनुयायी थे।

और इस शब्द के आधार पर देश के ईरान (आर्यन) नाम की व्युत्पत्ति निर्धारित हुई ईरान का ही अन्य नाम फारस है।

19 वीं शताब्दी में यह माना जाता था कि आर्यन भी सभी प्रोटो-इंडो-यूरोपियन द्वारा उपयोग किए जाने वाले आत्म-पदनाम था ।
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परन्तु इस सिद्धान्त को  अब पीछे छोड़ दिया गया है। क्यों कि यह भ्रान्ति मूलक अवधारणा  थी ।
भारोपीय तथा सैमेटिक युद्ध के देवता अरि: से आर्य्य शब्द का विकास हुआ।

अरि शब्द के लौकिक संस्कृत भाषा में केवल शत्रु अर्थ ही रूढ़ है। परन्तु  वैदिक काल में "अरि" ईश्वर का वाचक था।

कुछ विद्वान बताते भी हैं कि, प्राचीन काल में भी, "आर्यन" होने का विचार धार्मिक, सांस्कृतिक और भाषाई था,
नस्लीय कभी  नहीं।
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19 वीं शताब्दी में पश्चिमी विद्वानों द्वारा ऋग्वेद में गलत व्याख्या किए गए सन्दर्भों पर चित्रण करते हुए, "आर्यन" शब्द को  एक यूरोपीय विद्वान"आर्थर डी गोबिनाऊ" के कार्यों के माध्यम से एक नस्लीय श्रेणी के रूप में अपनाया गया था ।

जिनकी विचारधारा "गोरे व श्वेत" उत्तरी यूरोपीय "आर्यों के विचार पर आधारित थी " जो स्थानीय आबादी के साथ नस्लीय मिश्रण के माध्यम से अपमानित होने से पहले, दुनिया भर में स्थानान्तरित हो गया था।

और सभी प्रमुख सभ्यताओं की स्थापना में समाविष्ट हो गया था। भारत में भी आर्य शब्द को विश्व विद्यालय और शिक्षा संस्थानों में यूरोपीय तर्ज पर ही अर्थन्यास किया जाता है ।

इतिहास लेखक "ह्यूस्टन स्टीवर्ट चेम्बरलेन "के कार्यों के माध्यम से, इतिहास कार "गोबिनेउ" के विचारों ने बाद में नाजी नस्लीय विचारधारा को भी प्रभावित किया,
जिसमें "आर्यन लोग" को अन्य मूलवादी नस्लीय समूहों के लिए बेहतर रूप से श्रेष्ठ माना गया,  यह विचार भी उन्नीसवीं सदी की बाद है।
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इस नस्लीय विचारधारा के नाम पर किए गए अत्याचारों ने शिक्षाविदों को भी  "आर्यन" शब्द से बचने के लिए प्रेरित किया है। अर्थात इनकी अवधारणाओं में आर्य आक्रमणकारी थे।
जिसे ज्यादातर मामलों में "भारत-ईरानी" द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है।

यह शब्द अब केवल "इण्डो-आर्य भाषा" के सन्दर्भ में दिखाई देता है।
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व्युत्पत्ति मूलक दृष्टि कोण से आर्य शब्द हिब्रू बाइबिल में वर्णित एबर से  भी पूर्ण रूपेण सम्बद्ध है ।👇
--जो एक सैमेटिक पूर्व पुरुष से भी सम्बद्ध है
तथा ईश्वर के पाँच नामों में से एक अबीर का रूपान्तरण है।

लैटिन वर्ग की भाषा आधुनिक फ्राञ्च में आर्य शब्द (Arien)  तथा( Aryen )दौनों रूपों में विद्यमान है।
इधर दक्षिणी अमेरिक की ओर पुर्तगाली तथा स्पेनिश भाषाओं में यह शब्द आरियो (Ario) के रूप में विद्यमान है।

पुर्तगाली में इसका एक रूप ऐरिऐनॉ (Ariano) भी है और फिन्नो-उग्रियन शाखा की फिनिश भाषा में (Arialainen ) ऐरियल-ऐनन के रूप में है। रूस की उप शाखा पॉलिस भाषा में यह शब्द (Aryika) के रूप में है।

लैटिन से प्रभावित कैटालन भाषा में (Ari )तथा (Arica) दौनों रूपों में आर्य शब्द ही विद्यमान है।

स्वयं रूसी भाषा में आरिजक (Arijec) अथवा आर्यक के रूप में यह आर्य शब्द है विद्यमान है।

इधर पश्चिमीय एशिया की सैमेटिक शाखा आरमेनियन तथा हिब्रू और अरबी भाषा में भी यह आर्य शब्द क्रमशः (Ariacoi ) तथा (Ari ) तथा अरबी भाषा में हिब्रू प्रभाव से  म-आरि. M (ariyy तथा अरि  इन दौनो रूपों में है ।

तथा ताज़िक भाषा में ऑरियॉयी (Oriyoyi )रूप में है इधर बॉल्गा नदी के मुहाने वुल्गारियन संस्कृति में आर्य शब्द ऐराइस् (Arice )के रूप में है। वेलारूस की भाषा में (Aryeic) तथा (Aryika) दौनों रूपों में; 

पूरबी एशिया की जापानी ,कॉरीयन और चीनी भाषाओं में बौद्ध धर्म के प्रभाव से आर्य शब्द Aria–iin..के रूप में है । आर्य शब्द के विषय में इतने तथ्य अब तक हमने दूसरी संस्कृतियों से उद्धृत किए हैं।

खोज अभी भी जारी है ।                              सत्य को जानने की तैयारी है ।

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परन्तु जिस भारतीय संस्कृति का प्रादुर्भाव देव संस्कृति के उपासक आर्यों की संस्कृति से हुआ ।

उनका वास्तविक चित्रण होमर ने ट्रॉय युद्ध के सन्दर्भों में-  ई०पू० 800 के समकक्ष "इलियड" और "ऑडेसी" महाकाव्यों में ही कर दिया है;

विचार किया जाए तो होमर के महाकाव्य इलियड और ऑडिसी से प्रेरित होकर भारत में रामायण और महाभारत -जैसे महाकाव्य  ई०पू० द्वितीय सदी की पुष्य-मित्र सुंग कालीन पुरोहितों ने अनेक अवान्तर भेदों और कल्पना प्रवण रूप में वैदिक किंवदन्तियों के आधार पर निर्मित किये।

"ग्राम संस्कृति के जनक देव संस्कृति के अनुयायी यूरेशियन लोग थे।
तथा नगर संस्कृति के जनक द्रविड अथवा ड्रयूड (Druids) लोग।
इतिहास कार यही कहते हैं ।
परन्तु यह मिथक अब मिथ्या ही सिद्ध है।

परन्तु ग्राम संस्कृतियों का प्रादुर्भाव हुआ चरावाहों अथवा आर्य्यों की चारावाही संस्कृति से
उस के विषय में हम कुछ आगे कहते हैं ।👇

विदित हो कि यह समग्र तथ्य यादव योगेश कुमार 'रोहि' के शोधों पर आधारित हैं।
अत: इस ज्ञान के श्रोत भी उन्हीं के संज्ञान में हैं।

भारोपीय आर्यों के सभी सांस्कृतिक शब्द समान ही हैं स्वयं आर्य शब्द का धात्विक-अर्थ (Essential Mean) है- आरम् धारण करने वाला वीर है ।

संस्कृत तथा यूरोपीय भाषाओं में आरम् (Arrown) =अस्त्र तथा शस्त्र धारण करने वाला यौद्धा अथवा वीर को भ कहते हैं |

"आर्य शब्द की व्युत्पत्ति( Etymology "

संस्कृत की अर् (ऋृ) धातु मूलक है— अर् धातु के तीन अर्थ सर्व मान्य हैं  धातु पाठ में  ।

१–गमन करना (to go)
२– मारना (to kill )
३– हल चलाना (अरम्) to plough  ….
४– पशुचारण करना ।
संस्कृत में ऋ (अर्) धातु का पशुचारण करना अर्थ काल के प्रवाह में  धूमिल होगा ; यूरोपीय भाषाओं में तो यह अवशिष्ट है ।
इसी अर् धातु से विकसित शब्द लैटिन तथा ग्रीक भाषाओं में क्रमशः "Araval" तथा "Aravalis" हैं ।

"Harrow शब्द मध्य इंग्लिश रूप (Harwe) है।
जिसके अर्थ" कृषि कार्य करना "।

प्राचीन विश्व में सुसंगठित रूप से कृषि कार्य करने वाले प्रथम मानव ये चरावाहे आर्य ही थे।
परन्तु ये आर्य्य /वीर कौन थे ?
इस नाम के आधार पर ऐैतिहासिक भ्रान्तियों का बोलवाला है ।

ये आर्य्य इण्डो हिब्रू संस्कृतियों के प्रवर्तक आबीर मार्शल आर्ट के जनक अबीर -आयार लोग थे ।

इस तथ्य के प्रबल प्रमाण भी हमारे पास हैं !
पाणिनि तथा इनसे भी पूर्व ..कार्त्सकृत्सन धातु पाठ में …ऋृ (अर्) धातु कृषिकर्मे गतौ हिंसायाम् च। के रूप में परस्मैपदीय रूप है —-ऋणोति अरोति

वा अन्यत्र 'ऋृ' गतौ धातु पाठ .३/१६ प० इयर्ति -जाता है। वास्तव में संस्कृत की अर् धातु का तादात्म्य.( identity) यूरोप की सांस्कृतिक भाषा लैटिन की क्रिया -रूप इर्रेयर Errare = to Go से प्रस्तावित है।

जर्मन भाषा में यह शब्द आइरे (irre =togo )के रूप में है ; और पुरानी अंग्रेजी में जिसका प्रचलित रूप एर (Err) है ।

इसी "अर्" धातु से विकसित शब्द लैटिन तथा ग्रीक भाषाओं में क्रमशः "Araval" तथा "Aravalis" हैं ।

अर्थात् कृषि कार्य भी ड्रयूडों की वन मूलक संस्कृति से अनुप्रेरित है।
क्यों कि संसार के प्रथम द्रव विद (वेत्ता) द्रविड ही थे ।

देव संस्कृति के उपासक आर्यों की संस्कृति ग्रामीण जीवन मूलक है और कृषि विद्या के जनक आर्य थे
ये बाते  किस प्रकार तोड़ी मरोड़ी गयी ।
ये विचारणीय है।

परन्तु आर्य विशेषण पहले असुर संस्कृति के अनुयायी ईरानीयों का था।

यह बात आंशिक सत्य है क्योंकि बाल्टिक सागर के तटवर्ती ड्रयूडों (Druids) की वन मूलक संस्कृति से जर्मनिक जन-जातियाँ से सम्बद्ध इस देव संस्कृति के उपासक आर्यों ने यह प्रेरणा ग्रहण की।

सर्व-प्रथम अपने द्वित्तीय पढ़ाव में मध्य -एशिया में ही कृषि कार्य आरम्भ कर दिया था।
मध्य-एशिया को ही अनातोलिया अथवा तुर्की कहा जाता है।

देव संस्कृति के उपासक लोग भी स्वभाव से ही युद्ध-प्रिय व घुमक्कड़ थे।
घोड़े रथ इनके -प्रिय वाहन थे ।
इन्हींके समानान्तरण अबीर या कहें आयर जन-जातियों के लोग कुशल चरावाहों के रूप में यूरोप तथा सम्पूर्ण एशिया की धरा पर अपनी महान सम्पत्ति गौओं के साथ कबीलों के रूप में यायावर जीवन व्यतीत करते थे।यहीं से इनकी ग्राम - सभ्यता का विकास हुआ था।____________________________________

अपनी गौओं के साथ साथ विचरण करते हुए जहाँ जहाँ भी ये विशाल ग्रास-मेदिनी (घास के मैदान ) देखते उसी स्थान पर अपना पढ़ाव डाल देते थे।

संस्कृत भाषा में ग्राम शब्द की व्युत्पत्ति इसी व्यवहार मूलक प्रेरणा से हुई। क्यों कि अब भी संस्कृत तथा यूरोप की सभी भाषाओं में ग्राम शब्द का मूल अर्थ ग्रास-भूमि तथा घास ही है।

Greek ग्रीक भाषा में प्रचलित शब्द  (gramma) =written letter, जिससे ही ग्रामर grammar शब्द का विकास हुआ।

 फ्रेंच अथवा जर्मन - में ग्राफी -graphie, -letter का वाचक शब्द भी संस्कृत गृभ( ग्रस्) का ही विकसित रूप है।

ग्रीक में ग्रामा का अन्य रूप -graphia ( letter) भी है। जिसका सम्बन्ध मूल भरोपीय धातु- गर्भ-से है। PIE root *gerbh- "to scratch, carve

West Germanic *kerbanan (source also of Old Frisian -kerva, Middle Dutch and Dutch- kerven, German kerben- "to cut, notch"), from PIE root *gerbh- "to scratch,"

इसी सम्बन्धित शब्द यूरोपीय भाषाओं में ग्रास शब्द विकसित रूप है।

Old English græs, gærs "herb, plant, grass," 

from Proto-Germanic *grasan (source also of Old Frisian gers "grass, turf सं- दर्भ-दाभ), kind of grass,"

Old Norse, Old Saxon, Dutch, Old High German, German, Gothic gras, Swedish gräs"grass") which, according to Watkins, is from PIE *ghros- "young shoot, sprout," 

from root *ghre- "to grow, become green," thus related to grow and green, but not to - Latin grāmen "grass, plant, herb."


 * ghre- "बढ़ने के लिए, हरा हो जाता है," इस प्रकार बढ़ने और हरे रंग से संबंधित है, लेकिन लैटिन ग्रेमेन "घास, पौधे, जड़ी बूटी" से नहीं। लेकिन बाउटकान ग्रामन को एकमात्र विश्वसनीय संज्ञेय मानता है और एक सब्सट्रेट उत्पत्ति का प्रस्ताव करता है

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इसी सन्दर्भ में यह तथ्य भी प्रमाणित है कि द्रविड जिसे कैल्टिक/सैल्टिक संस्कृति में द्रूयूद (Druid) कहा गया है। यूरोपीय देव सस्कृति के अनुयायियों के ही समानांतर थे 

देव संस्कृति के जिन उपासकों ने भी स्वयं को आर्य कहना प्रारम्भ कर दिया ।
ये थे द्रूयूदों (Druid) के समानान्तरण जर्मनिक जन-जाति के थे।

बाद में यूरोपीय इतिहास में ये ही आर्य ही ज्ञान और लेखन क्रिया के विश्व में द्रविडों के बाद द्वित्तीय प्रकाशक थे । 

ग्राम शब्द संस्कृत की ग्रस्= भोजन करना- धातु मूलक है:—(ग्रस् + मन् )प्रत्यय आदन्तादेश ग्रस् धातु का ही अपर रूप 'ग्रह् भी है ।

जिससे ग्रह शब्द का निर्माण हुआ है जिसका अर्थ रूढ़ हुआ अर्थात् जहाँ खाने के लिए कुछ मिले वह घर है "। इसी ग्रस् धातु का वैदिक रूप… गृभ्  है ; गृह ही ग्रास है।

गृह + वेदे हस्य भः । गृहे “न्यु भ्रियन्ते यशसो गृभादा” ऋ० ७।२१।२ गृभात् =गृहात्”

भारत एक कृषि प्रधान संस्कृति से सम्बन्धित देश है। भारत की आत्मा गाँवों में और गाँवों की आत्मा किसानों के हृदय में बसती है।
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अंग्रेजी शब्द "आर्यन" (मूल रूप से "एरियन" लिखा गया)--जो  संस्कृत शब्द आर्य से लिया गया था।

प्राचीन रोमन धर्म और मिथक में, युद्ध के देवता के रूप में "मार" (लैटिन: Mārs, [ma]rs]) का वर्णन है। जो रोमन संस्कृति में युद्ध का देवता था और यही  कृषि संरक्षक भी था।

जो प्रारंभिक रोम की विशेषता थी।
वह केवल बृहस्पति के लिए दूसरे स्थान पर था और वह रोमन सेना के धर्म में सैन्य देवताओं में सबसे प्रमुख था। उनके अधिकांश त्योहार मार्च, (लैटिन मार्टियस) नाम के महीने में और अक्टूबर में आयोजित किए जाते थे।

जो सैन्य अभियान के लिए मौसम की शुरुआत करते थे और खेती के लिए मौसम का अन्त करते थे।
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चौथी शताब्दी ईसा पूर्व के हेलेनिस्टिक ग्रीक मॉडल का उपयोग करते हुए इस रोमन युद्ध देवता का तादात्म्य-
ग्रीक( यूनानी) अरिस् "Aries"  किया गया।

माता-पिता के रूप में दौनों पुरा-कथाओं ग्रीक और रोमन में क्रमश द्योस ( ज्यौस) - बृहस्पति और हेरा तथा बृहस्पति और जूनो का वर्णन है। ग्रीक संस्कृति के प्रभाव में, मंगल ग्रह की पहचान ग्रीक देवता एरेस के साथ हुई।

जिनके मिथकों की रोमन साहित्य और कला में मंगल के नाम से पुन: व्याख्या की गई।
लेकिन मंगल ग्रह का चरित्र और गरिमा उनके ग्रीक समकक्षों से मौलिक रूप से भिन्न थी।

Ares (/ esriːz /; प्राचीन यूनान में युद्ध का ग्रीक देवता है।
वह ज़ीउस और हेरा के बेटेके रूप में वर्णित है।
बारह ओलंपिक में से एक हैं।
ग्रीक साहित्य में, वह अक्सर अपनी बहन के विपरीत युद्ध के शारीरिक या हिंसक और अदम्य पहलू का प्रतिनिधित्व करता है।
बख्तरबंद एथेना, जिसके कार्यों में बुद्धि की देवी के रूप में सैन्य रणनीति और सेनापती शामिल हैं।

एरेस
युद्ध का देवता:- यूनानी लोग एरेस के प्रति उभयलिंगी थे: हालाँकि उन्होंने युद्ध में सफलता के लिए आवश्यक भौतिक वीरता को अपनाया, वह एक खतरनाक शक्ति थी,

"युद्ध में विनाशकारी,  और मनुष्य-वध करने वाला।"  उनके पुत्र फोबोस (डर) और डीमोस (आतंक) और उसके प्रेमी, या बहन, एन्यो (डिस्कोर्ड) अपने युद्ध रथ पर उसके साथ थे।
इलियड में, उसके पिता ज़ीउस ने उसे बताया कि वह उसके लिए सबसे अधिक घृणा करने वाला देवता है। एरेस के साथ जुड़ाव एक खतरनाक, या सैन्यीकृत गुणवत्ता वाले स्थानों और वस्तुओं का समर्थन करता है।
युद्ध देवता के रूप में उनके मूल्य को संदेह में रखा गया है: ट्रोजन युद्ध के दौरान, एरेस हार की तरफ था, जबकि एथेना, अक्सर ग्रीक कला में नाइके (विजय) को अपने हाथ में पकड़े हुए, विजयी यूनानियों का पक्ष लेती थी।

वैदिक ऋचाओं में अरि  शब्द ईश्वर की यौद्धिक शक्तियों का वाहक है।
देव संस्कृति के उपासक जर्मनिक जन-जातियाँ से सम्बद्ध आर्यों का  युद्ध असीरियन लोगों से दीर्घ काल तक हुआ , असीरी  वर्तमान ईराक-ईरान (मैसॉपोटमिया) की संस्कृतियों के पूर्व प्रवर्तक हैं।
जिन्हें भारतीय पुराणों में असुर कहा गया है ।
--जो सोमवंशी या सैमेटिक जन-जातियों से सम्बद्ध हैं।

असुरों की भाषाओं में अरि: शब्द अलि अथवा इलु हो गया है ।
परन्तु इसका सर्व मान्य रूप एलॉह (elaoh) तथा एल (el) ही हो गया है ।

ऋग्वेद के अष्टम् मण्डल के  51 वें सूक्त का 9 वाँ श्लोक
अरि: का ईश्वर के रूप में वर्णन करता है ।
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"यस्यायं विश्व आर्यो दास: शेवधिपा अरि: तिरश्चिदर्ये रुशमे पवीरवि तुभ्येत् सो अज्यते रयि:|9।____________________________________अर्थात्-- जो अरि इस  सम्पूर्ण विश्व का तथा आर्य और दास दौनों के धन का पालक अथवा रक्षक है जो श्वेत पवीरु के अभिमुख होता है ,

वह धन देने वाला ईश्वर तुम्हारे साथ सुसंगत है ।
ऋग्वेद के दशम् मण्डल सूक्त( २८ )
श्लोक संख्या (१)
देखें- यहाँ भी अरि: देव अथवा ईश्वरीय सत्ता का वाचक है ।
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"विश्वो ह्यन्यो अरिराजगाम ,
               ममेदह श्वशुरो ना जगाम ।
जक्षीयाद्धाना उत सोमं पपीयात्
              स्वाशित: पुनरस्तं जगायात् ।।
ऋग्वेद--१०/२८/१,

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ऋषि पत्नी कहती है !  कि  सब देवता निश्चय हमारे यज्ञ में आ गये (विश्वो ह्यन्यो अरिराजगाम,)
परन्तु मेरे श्वसुर नहीं आये इस यज्ञ में (ममेदह श्वशुरो ना जगाम )यदि वे आ जाते तो भुने हुए  जौ के साथ सोमपान करते (जक्षीयाद्धाना उत सोमं पपीयात् )और फिर अपने घर को लौटते (स्वाशित: पुनरस्तं जगायात् )
प्रस्तुत सूक्त में अरि: देव वाचक है ।
देव संस्कृति के उपासकआर्यों ने और असुर संस्कृति के उपासक आर्यों ने अर्थात् असुरों ने अरि: अथवा अलि की कल्पना युद्ध के अधिनायक के रूप में की थी।

सुमेरियन और बैबीलॉनियन तथा असीरियन संस्कृतियों के पूर्वजों के रूप में ड्रयूड (Druids)अथवा द्रविड संस्कृति से सम्बद्धता है।जिन्हें हिब्रू बाइबिल में द्रुज़ कैल्डीयन आदि भी कहा है ये असीरियन लोगों से ही सम्बद्ध हैं।

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आर्य शब्दः 18 वीं शताब्दी में सभी यूरोपीय इतिहास कारों के द्वारा उपयोग किया जाने वाला "आत्म-पदनाम" माना जाता है ।

भारत-यूरोपीय लोग प्राय: इस शब्द का अधिक प्रयोग करते रहे हैं ।

आर्य शब्द का ऐैतिहासिक प्रचलित रूप -
आर्य शब्द के सबसे शुरुआती रूप से प्रमाणित सन्दर्भित रूप 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में बेहिस्तून शिलालेख ईरान में प्राप्त होता है। जो स्वयं को "आर्य [भाषा या लिपि]"  में लिखा गया है।

जैसा कि अन्य सभी पुरानी ईरानी भाषा के उपयोग के मामले में भी है, शिलालेख की आर्यता "ईरानी" के अलावा कुछ भी संकेत नहीं देती है।

फिलोलॉजिस्ट (भाषा वैज्ञानिक) "जेपी मैलोरी" का तर्क है कि "एक जातीय पदनाम के रूप में, यह शब्द [आर्यन] भारत-ईरानियों तक सबसे उचित रूप से सीमित है।

और सबसे हाल ही में बाद वाले लोगों के लिए जहां यह अभी भी ईरान देश को अपना नाम देता है"
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संस्कृत भाषा में आर्य शब्द का प्रयोग -
प्रारम्भिक वैदिक साहित्य में,(संस्कृत: आर्यावर्त, आर्यों का निवास) शब्द उत्तरी भारत को दिया गया था ।

जहां भारत-आर्य संस्कृति पर आधारित थी।
मनुःस्मृति -(2.22) नाम आर्यावर्त को पूर्वी (बंगाल की खाड़ी) से पश्चिमी सागर (अरब सागर) तक हिमालय और विंध्य पर्वत के बीच का मार्ग निर्धारित कर करता है।

प्रारम्भिक रूप में इस शब्द को वैदिक देवताओं (विशेष रूप से इन्द्र) की पूजा करने वाले लोगों के लिए नामित करने के लिए राष्ट्रीय नाम के रूप में उपयोग किया गया था ।
और वैदिक संस्कृति में (जैसे बलिदान, यज्ञ का प्रदर्शन) के सन्दर्भ में प्रयोग किया गया था।
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प्रोटो-इण्डो-ईरानी
संस्कृत शब्द प्रोटो-इण्डो-ईरानी लोगों के लिए ज़ैद अवेस्ता में  "एयर्या"  के रूप में 'आदरणीय' तथा वीर के अर्थ में है ।

और पुरानी फारसी आर्य शब्द भी है ।

ईरानी भाषाओं में, मूल आत्म-पहचानकर्ता "एलन" और "आर्यन" जैसे जातीय नामों पर रहता है।
इसी तरह, ईरान का नाम आर्यों की भूमि / स्थान के लिए फारसी शब्द है।

प्रोटो-इण्डो-ईरानी शब्द को प्रोटो-इण्डो-यूरोपीय उत्पत्ति के लिए अनुमानित किया गया है।

जबकि "स्झेमेरेनी" पाश्चात्य इतिहास विद के अनुसार यह संभवतया उग्रेटिक  आरी शब्द से साम्य रखता है ।
या उससे नि:सृत है ।

इसे प्रोटो-इण्डो-यूरोपीय रूट(मूल) शब्द को हेरोस (haerós) "के अर्थों के साथ"
अपने स्वयं के (जातीय) समूह, सहकर्मी,स्वतन्त्र व्यक्ति "के सदस्यों के साथ-साथ आर्य के भारत-ईरानी अर्थ के साथ नियत किया गया है।
इससे व्युत्पन्न शब्द थे !👇
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"It has been postulated the Proto-Indo-European root word is haerós with the meanings "members of one's own (ethnic) group, peer वीर , freeman"

as well as the Indo-Iranian meaning of Aryan. Derived from it were words like..the Hittite prefix arā- meaning member of one's own group, peer, companion and friend;

Old Irish aire, meaning "freeman" and "noble"

Gaulish personal names with Ario-
Avestan airya- meaning Aryan, Iranian in the larger sense..

Old Indic ari- meaning attached to, faithful, devoted person and kinsman..

Old Indic aryá- meaning kind, favourable, attached to and devoted..

Old Indic árya- meaning Aryan, faithful to the Vedic religion..👇

The word *haerós itself is believed to have come from the root *haer- meaning "put together". The original meaning in Proto-Indo-European had a clear emphasis on the "in-group status"
as distinguished from that of outsiders, particularly those captured and incorporated into the group as slaves. While in Anatolia, the base word has come to emphasize personal relationship, in Indo-Iranian the word has taken a more ethnic meaning.
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हित्ताइट उपसर्ग अरा- जिसका मतलब किसी के अपने समूह, साथी, और मित्र का सदस्य है।

पुरानी आयरिश भाषा में आइर (आयर ), जिसका अर्थ है :- अभिजात अथवा स्वतन्त्र (आवारा) और "महान" Old Irish (aire), meaning "freeman" and "noble"

एरियो- के साथ व्यक्तिगत नाम गॉलिश (प्राचीन फ्राँन्स की भाषा ) में तथा ईरानीयों के धर्म-ग्रन्थ
अवेस्ता में एेर्या (airya )है ।

जिसका अर्थ है आर्यन, ईरानी बड़े अर्थ में
ओल्ड इण्डिक प्राचीन भारतीय भाषा में एरि-अर्थात्, वफादार, समर्पित व्यक्ति और रिश्तेदार से जुड़ा हुआ है।

माना जाता है कि  हेरोस शब्द स्वयं मूल हायर-अर्थ "एक साथ रखे" से आया है।

प्रोटो-इण्डो-यूरोपीय में मूल अर्थ "इन-ग्रुप स्टेटस" पर स्पष्ट जोर दिया गया था।

जो बाहरी लोगों की ओर से विशिष्ट था, विशेष रूप से उन लोगों को पकड़ा गया और समूह में गुलामों के रूप में शामिल किया गया था।

अनातोलिया (एशिया-माइनर) की भाषाओं में यह मूल मूल शब्द व्यक्तिगत सम्बन्धों पर जोर देने के लिए आया है, ।
भारत-ईरानी में इस शब्द ने अधिक जातीय अर्थ ग्रहण कर लिया है।

सम्भवतया इसी भावना से जर्मन , हर्मन अथवा आर्यन का अर्थ भ्रातृत्व है ।👇

इस सन्दर्भ में कई अन्य विचारकों की समीक्षा, और प्रत्येक के साथ विभिन्न समस्याओं को विश्लेषित "ओसवाल्ड स्झेमेरेनी द्वारा दिया जाता है।

नाज़ियों ने नस्लीय अर्थ में लोगों का वर्णन करने के लिए "आर्यन" शब्द का प्रयोग किया।

नाज़ी के आधिकारिक अल्फ्रेड रोसेनबर्ग का मानना ​​था कि नॉर्डिक जाति प्रोटो-आर्यों से निकली थी।
जिन्हें उनका मानना ​​था कि उत्तरी जर्मन मैदान पर प्रागैतिहासिक रूप से रहते थे ।

और आखिरकार अटलांटिस के खोए महाद्वीप से निकल गए थे।
नाजी नस्लीय सिद्धान्त के अनुसार,"आर्यन" शब्द ने जर्मनिक लोगों का वर्णन किया।

हालांकि, "आर्यन" की एक संतोषजनक परिभाषा नाजी जर्मनी के दौरान समस्याग्रस्त रही।

नाज़ियों को सबसे पुराना आर्य माना जाता है जो "नॉर्डिक रेस" भौतिक आदर्श से संबंधित हैं, जिन्हें नाजी जर्मनी के दौरान "मास्टर रेस" के नाम से जाना जाता है।

हालांकि नाजी नस्लीय सिद्धान्तकारों का भौतिक आदर्श आम तौर पर लंबा था।

निष्पक्ष बालों वाली और हल्की आंखों वाले नॉर्डिक व्यक्ति, ऐसे सिद्धांतकारों ने इस तथ्य को स्वीकार किया कि बाल और आंखों का रंग काफी हद तक नस्लीय श्रेणियों के भीतर मौजूद था।

उदाहरण के लिए, एडॉल्फ हिटलर और कई नाजी अधिकारियों के पास इसके प्रमाण के तौर पर काले बाल थे । और उन्हें अभी भी नाज़ी नस्लीय सिद्धान्त के तहत आर्यन जाति के सदस्य माना जाता था।

क्योंकि किसी व्यक्ति के नस्लीय प्रकार का निर्धारण केवल एक परिभाषित करने के बजाय किसी व्यक्ति में कई विशेषताओं की पूर्वनिर्धारितता पर निर्भर करता है सुविधा। 👇
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The Nazis used the word "Aryan" to describe people in a racial sense.
The Nazi official Alfred Rosenberg believed that the Nordic race was descended from Proto-Aryans, who he believed had prehistorically dwelt on the North German Plain and who had ultimately originated from the lost continent of Atlantis.
According to Nazi racial theory, the term "Aryan" described the Germanic peoples. However, a satisfactory definition of "Aryan" remained problematic during Nazi Germany.
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The Nazis considered the most purest Aryans to be those that belonged to the "Nordic race" physical ideal, known as the "master race" during Nazi Germany.Although the physical ideal of the Nazi racial theorists was typically the tall, fair-haired and light-eyed  Nordic individual, such theorists accepted the fact that a considerable variety of hair and eye colour existed within the racial categories they recognised. For example, Adolf Hitler and many Nazi officials had dark hair and were still considered members of the Aryan race  under Nazi racial doctrine, because the determination of an individual's racial type depended on a preponderance of many characteristics in an individual rather than on just one defining feature."
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सितंबर 19 35 में, नाज़ियों ने नूर्नबर्ग कानून पारित किया।
सभी आर्यन रीच नागरिकों को अपने आर्यन वंश को साबित करने की आवश्यकता थी, एक तरह से बपतिस्मा प्रमाण पत्र के माध्यम से सबूत प्रदान करके अहनेनपास प्राप्त करना था कि सभी चार दादा दादी आर्यन वंश के थे।

दिसंबर 19 35 में, नाज़ियों ने जर्मनी में आर्यन जन्म दर गिरने और नाजी यूजीनिक्स को बढ़ावा देने के लिए लेबेन्सबोर्न की स्थापना की।

भारतीय / संस्कृत साहित्य में आर्य शब्द का अर्थ
संस्कृत और संबंधित भारतीय भाषाओं में, आर्य का अर्थ है "वह जो महान कर्म करता है, एक महान व्यक्ति"। (Āryvarta )"आर्यों का निवास" संस्कृत साहित्य में उत्तर भारत के लिए एक आम नाम है।

मनु-स्मृति (2.22) नाम "पूर्वी सागर से पश्चिमी सागर तक हिमालय और विंध्य पर्वत के बीच का क्षेत्र को आर्यावर्त" नाम दिया जाता है।

भारतीय उपमहाद्वीप में विभिन्न संशोधनों के साथ शीर्षक आर्य का उपयोग किया गया था।

लगभग 1 ईसा पूर्व की कलिंग के सम्राट खरावेला को उड़ीसा के भुवनेश्वर में उदयगिरी और खंडागिरी गुफाओं के हाथीगुम्फा शिलालेखों में एक आर्य के रूप में जाना जाता है।

10 वीं शताब्दी में गुर्जर-प्रतिहार शासकों को "आर्यवार्त के महाराजाधिराज" शीर्षक दिया गया था।

जो निश्चित रूप से जॉर्जियाई अथवा गुर्जिस्तान के निवासी थे ।

जिनका माउण्ट आबू पर राजपूत करण हुआ ।
रामायण और महाभारत में, आर्य को हनुमान समेत कई पात्रों के लिए सम्मानित माना जाता है।

परन्तु यहाँ यह नाम केवल वीरता सूचक है ।
जातिगत कदापि नहीं वैसे भी वाल्मीकि रामायण बौद्ध काल के बाद की रचना है ।

पूरे यूरोप और मध्य पूर्व में 500 ईसा पूर्व में भारत-यूरोपीय भाषाओं में आर्य शब्द मिलता है ।

यद्यपि हुर्रियन शब्द में सुर रूप अधिक ध्वनित होता है परन्तु कुछ विद्वान इसे आर्यन शब्द का तद्भव मानने के पक्षधर हैं ।
ईरानी साहित्य आर्य शब्द-
पुरानी इंडो-आर्य में आर्य से जुड़े कई अर्थों के विपरीत, पुरानी फारसी शब्द का केवल जातीय अर्थ है।

यह भारतीय उपयोग के विपरीत है, जिसमें कई माध्यमिक अर्थ विकसित हुए हैं, अर्थात् आत्म-पहचानकर्ता के रूप में अर्थ का अर्थ ईरानी उपयोग में संरक्षित है, इसलिए "ईरान" शब्द है।
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The Avesta clearly uses airya/airyan as an ethnic name (Vd. 1; Yt. 13.143-44, etc.), where it appears in expressions such as airyāfi; daiŋˊhāvō "Iranian lands, peoples", airyō.šayanəm "land inhabited by Iranians", and airyanəm vaējō vaŋhuyāfi; dāityayāfi; "Iranian stretch of the good Dāityā", the river Oxus, the modern Āmū Daryā.
Old Persian  sources also use this term for Iranians. Old Persian which is a testament to the antiquity of the Persian language and which is related to most of the languages/dialects spoken in Iran including modern Persian, the Kurdish languages, and Gilaki makes it clear that Iranians referred to themselves as Arya.

The term "Airya/Airyan" appears in the royal Old Persian inscriptions in three different contexts:
एयरी  का अर्थ "ईरानी" था, और ईरानी anairya  मतलब था और "गैर-ईरानी" का मतलब है। आर्य को ईरानी भाषाओं में एक नृवंशविज्ञान के रूप में भी पाया जा सकता है, उदाहरण के लिए, एलन और फारसी ईरान और ओस्सेटियन  इर / आयरन यह नाम आर्यन के समतुल्य है।

जहां ईरान का मतलब है "आर्यों की भूमि," और सस्सिद काल के बाद से उपयोग में हैं
पुरानी फारसी जो फारसी भाषा की पुरातनता का प्रमाण है और जो आधुनिक फारसी, कुर्द भाषा और गिलकी समेत ईरान में बोली जाने वाली अधिकांश भाषाओं / बोलियों से संबंधित है ।
यह स्पष्ट करती है कि ईरानियों ने स्वयं को आर्य के रूप में संदर्भित किया है।

"एयर्या / एयरयान" शब्द शाही पुराने फारसी शिलालेखों में तीन अलग-अलग संदर्भों में दिखाई देता है:

बेहिस्तून में दारा प्रथम के शिलालेख के पुराने फारसी संस्करण की भाषा के नाम के रूप में
पर्शिपोलिस से शिलालेख में नकम-ए-रोस्तम और सुसा (डीएनए, डीएसई) और ज़ेरेक्स I
में शिलालेखों में दारा प्रथम की जातीय पृष्ठभूमि के रूप में वर्णित है ।
(Behistun )वहिस्तून शिलालेख के (Elamite )एलम भाषा संस्करण में, आर्यों के भगवान, अहुरा मज्दा की परिभाषा के रूप में।

उदाहरण के लिए डीएनए और डीएस दारा और जेरेक्स में खुद को "एक अमेमेनियन, एक फारसी का एक फारसी पुत्र और आर्यन स्टॉक के आर्यन" के रूप में वर्णित किया गया है।

यद्यपि दारा ने अपनी भाषा को  आर्य भाषा कहा, आधुनिक विद्वान इसे पुराने फारसी के रूप में संदर्भित करते हैं क्योंकि यह आधुनिक फारसी भाषा की पूर्वज है।

ग्रीक स्रोतों द्वारा पुरानी फारसी और अवेस्ता के  साक्ष्य की पुष्टि की गई है।
यूनानी इतिहास कार हेरोडोटस ने अपने इतिहास में ईरानी Medes मदीयन के बारे में टिप्पणी की है कि: "इन Medes को  सभी लोगों द्वारा ईमानदारी से बुलाया गया था;"पृष्ठ संख्या (7.62)।

अर्मेनियाई स्रोतों में, पार्थियन, मेडीयन और फारसियों को सामूहिक रूप से आर्यों के रूप में जाना जाता है।
[रोड्स के यूडेमस दमसियस के साथ (प्लैटोनिस परमेनिडेम 125 बीआईएस में डबिटेशंस एट सॉल्यूशंस)

यह "मागी और ईरानी (एरियन) वंशावली के सभी लोगों को संदर्भित करता है; डायोडोरस सिकुलस (1.94.2) ज़ोरोस्टर (ज़थ्रास्टेस) को अरियानो में से एक मानता है।
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भूगोलकार स्ट्रैबो, अपनी भूगोल में, मेद, फारसी, बैक्ट्रीशियन और सोग्डियन की एकता का उल्लेख करते हैं:

एरियाना का नाम फारस और मीडिया के एक हिस्से के साथ-साथ उत्तर में बैक्ट्रियन और सोग्डियनों तक भी बढ़ाया गया है;
इनके लिए लगभग एक ही भाषा बोलती है, लेकिन थोड़ी भिन्नताएं होती हैं।

-भूगोल, पृष्ठ संख्या (15.8)
शापुर के आदेश द्वारा निर्मित त्रिभाषी शिलालेख हमें एक और स्पष्ट विवरण देता है।
इस्तेमाल की जाने वाली भाषा पार्थियन, मध्य फारसी और ग्रीक हैं। ग्रीक में शिलालेख कहता है:
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"tou Arianon ethnous eimi despotes" जो अनुवाद करता है ! "मैं आर्यों का राजा हूं"।
मध्य फारसी शापौर में कहते हैं: "मैं ईरान शहर का भगवान हूं" और पार्थियन में वह कहता है: "मैं आर्यन शहर का स्वामी हूं"।
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रब्बाक में कुषाण साम्राज्य के संस्थापक कनिष्क द ग्रेट का बैक्ट्रियन भाषा (एक मध्य ईरानी भाषा)में  शिलालेख, जिसे 1993 में बागानान के अफगानिस्तान प्रांत में एक अप्रत्याशित स्थान में खोजा गया था।
स्पष्ट रूप से इस पूर्वी ईरानी भाषा को आर्य के रूप में संदर्भित करता है।
इस्लामिक युग के बाद भी 10 वीं शताब्दी के इतिहासकार हमज़ा अल-इस्फाहनी के काम में आर्यन (ईरान) शब्द का स्पष्ट उपयोग देख सकता है।
अपनी मशहूर पुस्तक "द हिस्ट्री ऑफ़ प्रोपेट्स एंड किंग्स" में, अल-इस्फहानी लिखते हैं, "आर्यन जिन्हें पार भी कहा जाता है, इन देशों के बीच में है और इन छह देशों में इसका चारों ओर घिरा हुआ है ।
क्योंकि दक्षिण पूर्व चीन, उत्तर में है तुर्कों में, मध्य दक्षिण भारत है, मध्य उत्तर रोम है, और दक्षिण पश्चिम और उत्तर पश्चिम सूडान और बर्बर भूमि है।

19 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, कुछ लोगों के बीच, "आर्यन जाति" की धारणा नॉर्डिसिज्म से निकटता से जुड़ी हुई थी, जिसने अन्य सभी लोगों पर उत्तरी यूरोपीय नस्लीय श्रेष्ठता को जन्म दिया।
इस "मास्टर रेस" आदर्श ने नाजी जर्मनी के "आर्यननाइजेशन" कार्यक्रमों को दोनों में शामिल किया, जिसमें "आर्यन" और "गैर-आर्यन" के रूप में लोगों का वर्गीकरण सबसे अधिक जोरदार रूप से यहूदियों को छोड़ने के लिए निर्देशित किया गया था।

द्वितीय विश्व युद्ध 1944 के अंत तक, 'आर्यन' शब्द नाज़ियों द्वारा नस्लीय विचारधाराओं और अत्याचारों के साथ कई लोगों से जुड़ा हुआ था।

इतिहास ---
अवेस्ता में वर्णित शब्द आर्य का प्रयोग प्राचीन फारसी भाषा ग्रंथों में किया जाता है, उदाहरण के लिए 5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व से बेहिस्तून के शिलालेख में, जिसमें फारसी राजा दारायस द ग्रेट( दारा प्रथम) और ज़ेरेक्स को "आर्यन स्टॉक के आर्यों" (आर्य आर्य चिसा) के रूप में वर्णित किया गया है।
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इस शिलालेख में देवता अहुरा मज़दा को "आर्यों का देवता" और प्राचीन फारसी भाषा के रूप में "आर्यन" के रूप में संदर्भित किया जाता है।

इस अर्थ में शब्द भाषाई, सांस्कृतिक और धार्मिक पहलुओं सहित प्राचीन ईरानियों की कुलीन संस्कृति को भी  संदर्भित करता है।
इस शब्द में जोरोस्ट्रियन धर्म का एक केंद्रीय स्थान भी है जिसमें "आर्यन विस्तार" (एयर्याना वेजाह) को ईरानी लोगों के पौराणिक मातृभूमि और दुनिया के केंद्र के रूप में वर्णित किया गया है। जो वस्तुत: आज का अजर-बेजान है ।
सॉवियत रूस का सदस्य देश

वैदिक साहित्य में आर्य शब्द-
ऋग्वेद में 34 ऋचाओं में आर्य शब्द का प्रयोग 36 बार किया जाता है।
तलगेरी के अनुसार (2000, ऋग् वेद ए हिस्टोरिकल एनालिसिस) "ऋग्वेद के विशेष वैदिक आर्य इन पुरूषों में से एक वर्ग थे, जिन्होंने खुद को भारत कहा।

" इस प्रकार, तालगेरी के अनुसार, यह संभव है कि एक बिंदु पर आर्य ने एक विशिष्ट जनजाति का उल्लेख किया था।

जबकि शब्द अंततः एक जनजातीय नाम से प्राप्त हो सकता है, पहले से ही ऋग्वेद में यह एक धार्मिक भेदभाव के रूप में प्रकट होता है, जो उन लोगों को अलग करता है जो ऐतिहासिक वैदिक धर्म से संबंधित नहीं हैं, बाद में हिंदू धर्म में उपयोग का प्रस्ताव देते हैं, जहां शब्द धार्मिक धार्मिकता या पवित्रता को दर्शाने के लिए आता है।

ऋग्वेद 9.63.5 में, आर्य "महान, पवित्र, धर्मी" का उपयोग अरवन के विपरीत "उदार, ईर्ष्यापूर्ण, शत्रुतापूर्ण" के विपरीत नहीं किया जाता है:

संस्कृत महाकाव्य में आर्य शब्द आमतौर पर नैतिक अर्थो में प्रयुक्त है ।

आर्य और अनार्य मुख्य रूप से भारतीय महाकाव्य में नैतिक भावना के सन्दर्भ में उपयोग किए जाते हैं।
लोगों को आम तौर पर आर्य या अनार्य को उनके व्यवहार के आधार पर कहा जाता है।
आयरिश भाषा में भारतीयों के समान अनार्य या अनाड़ी
शब्द प्रचलित है 👇

Irish Etymology
1 From an- +‎ airí.
Noun-
anairí f (genitive singular anairí, nominative plural anairithe)
undeserving, ungrateful, person
Declension
genitive singular feminine of anaireach (“heedless, careless, inattentive”)
comparative degree of anaireach
Mutation
Irish mutation
RadicalEclipsiswith h-prothesiswith t-prothesis
anairín-anairíhanairínot applicable
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आर्य आमतौर पर धर्म का अनुसरण करते हैं।
यह ऐतिहासिक रूप से भारत वर्षा या विशाल भारत में रहने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए लागू होता है।

महाभारत के अनुसार, एक व्यक्ति का व्यवहार (धन या शिक्षा नहीं) निर्धारित करता है कि क्या वह आर्य कहा जा सकता है। आयरिश भाषा में और भी पौराणिक समानताऐं हैं

Surviving Irish tales – resemblances – themes, stories, names in sagas of Indian Vedas [Sanskrit – start of 1st millennium BC]. Being – emerges as Mother Goddess of Celts = Danu (Anu in Old Irish) cognate with Don (Old Welsh). Emerges in literature of Vedas, Persia, Hittites.
Danu = ‘divine waters’.

European rivers acknowledge her. Story associated with Danuvius = first great Celtic river. Thus >myths about Boyne (from goddess Boann). and Shannon (from the goddess Sionan). Hindu goddess Ganga – Ganges.

Celts plus Hindus – worshipped in sacred rivers + votive offerings. Vedic myth = Danu – appears in deluge story = The Churning of the Ocean.

Resemblances – Irish culture and Hindu culture. Language – Old Irish law texts (the Fenechus or Brehon Laws) and the Vedic Laws of Manu. The Vedas = 4 books 1000-500 BC. Sanskrit root – vid + ‘knowledge’. Old Irish = vid = ‘0bservation’, ‘perception’, ‘knowledge’. Therefore roots of – compared Celtic druid = dru-vid – ‘thorough knowledge’.

Similarities – Old Irish and Sanskrit. Arya (freeman) = Sanskrit, and aire (a noble) in Old Irish. Naib (good) in Sanskrit, and noeib (holy) in Old Irish. Therefore – naomh = saint. Minda (physical defect) – Sanskrit > menda (one who stammers) – Old Irish.  Namas (respect) – Sanskrit > nemed (respect, priviledge) – Old Irish. Badhura (deaf) – Sanskrit > bodhar (deaf) – Old Irish. Borrowed by 18th century English = ‘bother’.

Raj (king) > Irish ri > continental rix > Latin rex.

Germanic group – developed another word – i.e., cyning, Koenig, king. But – retained in English as reach = Indo-European cconcept of king as one who – reaches or stretches out his hand to protect his people. This concept = found in many Indo-European myths.😂

Rig Vedas – sky god Dyaus = stretches forth his long hand. Cognate – Latin deus, Irish dia, Slavonic devos.  Means – ‘the bright one’. A sun-deity significance. Dyaus = Dyaus-Pitir = Father Dyaus. In Greek > Zeus. In Latin > Jovis-Pater (Father Jove). Julius Caesar observed Celts had a Dis–Pater (a father god). Irish reference = Ollathair = the All Father. Ollathair = sky god, the role given to Lugh.

Lugh – in Welsh myth = Lleu (Bright One). Lugh Lamhfada = Irish (Lugh of the Long Hand) = stretching and reaching. Llew Llaw Gyffes = Welsh (Lleu of the Skilfull Hand).

Boann – goddess = ‘cow-white’ > River Boyne. Mother to Aonghus Og – love god = guou-vinda (cow finder). Vedic name – Govinda = epithet for Krishna. Hindu name today. Motifs – sacred cow/bull = easily found in Celtic (particularly Irish) + Vedic/Hindu myths. Gualish god – Esus > equates with Asura (the powerful) and as Asvopati = epithet for Indra. Gualish – Ariomanus > cognate with Vedic Aryaman.

Horse rituals – once common with Indo-Europeans > Irish myth and ritual + Vedic sources. “The kingship ritual of symbolic union of horse and ruler survives in both.” Dates – when Indo-Europeans domesticated horses – thus helped commence expansions. Horses = power. Therefore proficient – agriculture, pastoralism, warriors.

Ireland – ritual of symbolic union of mare and king – mentioned by Geraldus Cambrensis [Typographica Hibernia]. = 11th century. India – similar symbolic ritual of stallion and queen = myth of Saranyn in Rig Veda.

The ‘Act of Truth’. Ancient Irish text Auraicept Moraind – could be mistaken for a passage in the Upanishad. [See: Dillon, M. ‘The Hindu Act of Truth in Celtic Tradition’, Modern Philology, Feb 1947].

Symbolism  – Irish myth = Mochta’s Axe (when heated in a fire of blackthorn, would burn a liar but not the opposite), or – Luchta’s iron (= same quality), or Cormac mac Art’s cup (= 3 lies and it fell apart) – 3 truths > whole again. All = counterparts in the Chandagya Upanishad.

Cosmological terms =comparisons – Celtic, Vedic culture. Similarities – Hindu, Celtic calendar, e.g., Coligny Calendar. Original computation + astronomical observations + calculation, therefore put at 1100 BC.

Celts = astrology – based on 27 lunar mansions = naks😂

-ईरानी तथा संस्कृत भाषा में प्रचलित शब्द वीर यूरोपीय भाषा में प्रचलित( wiHrás )से प्रोटो-इंडो-यूरोपीय रूप से नि: सृत है ।
wiHrós से संस्कृत वीर ( vīrá ) से आयात किया हुआ है।  ग्रीक रूप ʋiːɾ उइर/ वीर • ( vīr ) वीर , नायक , सेनानी , जो बहादुर है ।
wiHrás से , प्रोटो-इंडो-ईरानी  wiHrás से , प्रोटो-इंडो-यूरोपीय wiHrós से ।

अवेस्तान  ( वीरा ) , लैटिन वीर ( " पुरुष " ) , लिथुआनियाई výras विरास, पुरानी आयरिश फेर , पुराना नॉर्स verr , गोथिक  ( वेयर ) , ओस्सेटियन ир इर   ओस्सेटियन " ) के साथ संज्ञेय , पुरानी अंग्रेज़ी wer ( अंग्रेजी wer )।

1700 ईसा पूर्व - 1200 ईसा पूर्व ,ऋग्वेद में नायक या पति के अर्थ में आर्य्य तथा वीर शब्द का प्रयोग प्राप्त होता है ।

पाली: भाषा में वीरा सौरसानी प्राकृत:  ( वीरा ) हिंदी: बीर ) → हिन्दी: वीर ( वीर ) → इंडोनेशियाई: विरा → जावानीज: विरा → कन्नड़: विवेर ( वीरा ) → मलय: विरा → मराठी: वीर ( वीर )

लेडो-लेमोस द्वारा प्रस्तावित 'वर्जिन शब्द' की व्युत्पत्ति भी वीरांगना का तद्भव रूप है ।

अहिरों का ऐतिहासिक परिचय "अहिरों को अबीर रूप में पश्चिमी एशिया की प्राचीन संस्कृतियों में मार्शल आर्ट के संस्थापक के रूप में वर्णित किया गया है।

सैन्य कर्तव्य व्यक्ति की सैन्य प्रवृत्ति को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया जाना चाहिए। अहिरों का पारंपरिक व्यवसाय पशुपालन और कृषि है।और ये दोनों ही कब्जे किसी सैन्य कार्रवाई से कम नहीं हैं। और इस मायने में किसान सबसे बड़ा योद्धा है। -जो एक किसान के जीवन की विषमताओं के खिलाफ जीवन भर संघर्ष करते हुए अपना जीवन व्यतीत करता है। वह कोई शक्तिशाली योद्धा नहीं है। जो न सर्दी से डरता था, न गर्मी से डरता था, और जो बारिश से भी नहीं डरता था। उसकी उल्लादेन भी इसी सांचे में ढलकर लोहे से फूल जाती हैं 'वह तो पत्रा है।लेकिन जो बैठे हैं, लेटे नहीं हैं, वे खाते हैं। ये हैं बनिए या सेठ महाजन- जो सिर्फ बैठकर खाते हैं।जिसके मुंह से बीमारी के कारण बाहर आ रहा हो। 
वे कभी-कभी युद्ध नहीं कर सकते, और बामनों (ब्राह्मणों) द्वारा युद्ध नहीं लड़ा जाना चाहिए लेकिन वे यही बात कर रहे हैं! 

अहिरों के लिए रेजिमेंट एक सामयिक अनिवार्यता है। अहिरों का स्वभाव युद्धप्रिय और हत्यारा है। तो ऐसे वीर और कातिलों को दुश्मनों से लड़ने का मौका तो मिलना ही चाहिए! गुर्जर : विश्व इतिहास के पन्नों में अहीर और जाट सबसे बड़े बदमाश हैं. युद्धप्रिय भी सबसे आम कहा जाता है।
इनके खून में जंगी प्रवृत्ति आज भी बहती है।इनका आनुवंशिक तंत्र भी साहसी, स्वाभिमानी और उत्साह से भरा होता है। भारत में कई जनजातियां ऐसी हैं। 
उनमें से अधिकांश राजपूतों के अधीन हैं और "राजपूत-रेजिमेंट" में भर्ती होते हैं। लेकिन - जो जातियाँ इस दायरे से बाहर हैं वे भी रेजीमेंट की हकदार हैं! 
भारतीय सेना में "जाट रेजिमेंट" की तरह होना भी चाहिए क्योंकि वे भी युद्धप्रिय प्रवृत्ति से ओत-प्रोत हैं क्योंकि उनके पूर्वजों ने ब्राह्मण विवादों के रूप में जाति व्यवस्था में अनेक क्रूर यातनाओं को सहकर अपना जीवन जीवित रखा था। और लगातार अपने प्रतिद्वंद्वियों से लड़े।
 -- जो एक योद्धा ही कर सकता है। दलितों के मसीहा डॉ अम्बेडकर महार थे। महार रेजिमेंट हालांकि महारों के लिए आरक्षित है।

महार ब्राह्मण व्यवस्था में दलित/शूद्र अनिवार्य हैं।लेकिन उस महार रेजीमेंट में जाट शामिल नहीं हैं।इसलिए जाटव रेजीमेंट को अलग बनाया जाए।एक रूढ़िवादी ब्राह्मण कैसे निर्धारित कर सकता है कि एक क्षत्रिय वीर है या योद्धा ? क्योंकि - जो लोग सुविधा और आराम के नाम पर सदियों तक भीख और धर्म के नाम पर खर्च करते हैं! ' वह एक नायक या योद्धा के गुणों की परीक्षा ले सकती है।________________________________________ 
लेकिन दुर्भाग्य से या शायद दुष्ट आत्माओं से प्रेरित होकर, सत्ताधारी शासक इससे सहमत नहीं हैं। क्योंकि ऊपर-अप्रत्यक्ष रूप से: ब्राह्मण-धर्म सदियों से अन्धकार में पली-बढ़ी रूढ़िवादी परम्पराओं के अनुरूप ही उनकी सोच की छाया है लेकिन यही स्थितियाँ देश के लिए दुर्भाग्य का कारण बनी हैं और यही स्थितियाँ गुलामी के लिए जिम्मेदार हैं देश की।
अहीरों का रेजीमेंट भी आज के युग की आवश्यकता है। 
जब भारत की सीमाएं दुश्मनों से सुरक्षित नहीं हैं। 
फिर ऐसे वीर और जालिमों को दुश्मनों से लड़ने का मौका देना जरूरी है। सभी ब्राह्मणों के शास्त्रों में अहीर शूद्र हैं। 
दस्युओं और नीच जातियों को कहकर बताया गया है। उन्हें हीन बनाने के लिए इन लोगों ने कई पागल कहानियां गढ़ीं, लेकिन जो कातिल हैं उनमें सरफरोशी की भावना हो की भावना है. उसकी प्रवृत्ति नहीं बदली जा सकती। ________________________________________ 
हालांकि ब्राह्मणों की ये पुस्तकें पूर्वाग्रह और घृणा से ही लिखी गई थीं। और इसे सच्चा इतिहास कहना अंधविश्वास ही है। यदि कोई शूद्र है, तो ब्राह्मण व्यवस्था दंड और संस्कार से वंचित रह जाएगी।
लेकिन उनकी प्रवृत्ति नहीं बदली जा सकती  रुझान सी.पी. यू. सिस्टम-सॉफ्टवेयर प्रकार आनुवंशिक है जबकि प्रकृति अनुप्रयोग-सॉफ्टवेयर की तरह परिवर्तनशील है। लेकिन समय के साथ इसका परिणाम जन्म प्रणाली के रूप में बदल गया।
ब्राह्मण किसी को भी शूद्र बना देते थे और यह फरमान पारित करते थे कि उन्हें ज्ञान और दंड से वंचित कर दिया जाए। 
वैदिक भाष्य की एक पुस्तक परिष्कार दर्पण में लेखक:- व्याकरण सिरोमणि पंडित वेणिमाधव शुक्ल ने वैदिक कथनों पर अपनी भाष्य में उद्धृत किया है कि 'जाति है' 

अतः उन्हें शूद्रों के अधीन रहने से ज्ञान और वैदिक दंड के लिए निषिद्ध (मन) किया जाता है।क्योंकि वेदों के अनुसार स्त्री और शूद्रों को ज्ञान नहीं देना चाहिए, निषादों के स्वामी यज्ञ करना चाहिए ! इति विशेष "श्रुतियाजन्यथानुपत्त्यैव यागमात्रोप्युकमध्यायन निषादस्य कल्पय। वास्तव में किसी व्यक्ति को अशिक्षित और संस्कृति से वंचित करने का कथन करके उसे दंड और संस्कृति से वंचित करना बहुत आसान है।और शक्ति के बिना व्यक्ति केवल गुलाम बनकर ही जीता है  ____________________________________

अहीर कभी अपराधी गोत्र नहीं होता बल्कि विद्रोही गोत्र अवश्य होता है; वह दमनकारी शासन के भी खिलाफ है। क्योंकि इतिहास भी सरकार के प्रभाव में लिखा गया था। और कोई भी शासक विद्रोहियों को संत नहीं कहेगा क्योंकि शत्रुओं की अच्छाई भी बुराई के रूप में देखी जाती है। बस इतिहास भी इसी भावना से प्रेरित होकर लिखा गया है। लेकिन लोग इस बात को क्यों मान लेते हैं कि ये सारी काल्पनिक बातें समझ में ही नहीं आतीं? आजादी के बाद जाति व्यवस्था के पैरोकारों ने पहले से मौजूद पूर्वाग्रहों से ग्रसित यादवों के बारे में इस तरह के फालतू बयानों को फिर से लिखा। लेकिन वास्तविक सच्चाई यह है कि यादवों ने कभी भी अपने स्वार्थ या अनुचित मांगों को पूरा करने के लिए कोई आपराधिक कृत्य नहीं किया है! शायद यह संभव है, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं! और गरीबों या बहनों को मत सताओ। ________________________________________
 केवल अपराधियों, व्यभिचारियों के खिलाफ विद्रोह करना चाहिए, वह भी सशस्त्र होकर, इसलिए रूढ़िवादी उन्हें डाकू कहते थे।यादवों का विद्रोह हमेशा सरकार और समाज का शोषण करने वाले शासक के खिलाफ था। 
हमारे लोगों के खिलाफ नहीं! लोगों को सोचना और समझना चाहिए! ब्राह्मणों की बात माननी चाहिए अंधभक्तों की नहीं। आज के समाज में अहीरों के खिलाफ कैसे सभी रूढ़िवादी समुदाय एकजुट हो गए हैं। इस प्रकार यह बदले की घृणा से प्रेरित भावनाओं के लिए हानिकारक है।
समाज के लिए, जन ​​व्यवस्था के लिए और राष्ट्र के लिए! यह उन लोगों के लिए भी भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है जो इसे सार्वजनिक व्यवस्था के लिए संकट बताते हैं।
तुमने सुना! मीडिया द्वारा अखिलेश यादव को परोक्ष रूप से पाइप चोर के रूप में प्रचारित किया गया। यह सब खोंटी करना है।

क्योंकि वह आदमी सांप को डस लेने से सुरक्षित नहीं रहता! फिर सर्प को भी अहिरों द्वारा विचलित किया जाना है जो उससे आगे निकल जाते हैं और सरासर दंगे को आमंत्रित करते हैं।संस्कृत भाषा में अहिरों को अभीरह कहा जिसका अर्थ है " "निडर"। ________________________________________ 
अहीरों को संस्कृत भाषा में अभीर: या आभीर: कहा जाता है। क्योंकि यह जन्म-जाति निडर लोग हैं। "अण्- प्रत्यय को जोड़ने पर आभीर शब्द बनता है। परन्तु यह व्युत्पत्ति संस्कृत के विद्वानों ने ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में अहीरों के साहस को देखकर दी थी। 
संस्कृत अभीरः शब्द का मूल तो वीर शब्दः है। जो इब्रानी भाषा में "अबीर शब्द का मूल है। वैसे, दागेस्तानी और अजरबैजान की संस्कृतियों में अभीर शब्द "अवर", स्पेन में "आवार", मध्य अफ्रीका में "अफर", हिब्रू संस्कृतियों में "अबीर" और तमिल "आइरे" स्कॉटलैंड में आइरे "" है। " प्रारंभिक यूरोपीय भाषाओं में  यह शब्द  भिन्न रूपों में है। यह प्रवृत्ति-आधारित विशेषण है। ____________________________________

संस्कृत भाषा में अहीर शब्द की व्युत्पत्ति कई प्रकार से केवल अहीरों की लड़ाकू प्रवृत्ति को देखते हुए दी गई है: - सबसे पहले अमरकोष में अमरसिंह जो चंद्रगुप्त द्वितीय (चौथी शताब्दी) के नवरत्नों में से एक थे।
 कुछ का कहना है कि अमरसिंह विक्रमादित्य (सातवीं शताब्दी) के समकालीन थे।
 कुछ भी सही ! सत्य को स्वीकार करना चाहिए  संस्कृत में अभीर: एक पुल्लिंग विशेषण शब्द है।
आभीरः- (आ समन्तात् भियं राति इति आभीर:-रा =दाने आत- इति- कः । गोपः अमरकोश ॥ आहिर इति।
  --जो हर तरफ भय का माहौल पैदा करता है। :  अभि -इरयति गच्छति इति अभीरः" अर्थात  भ्रमण करती हुई  एशिया की एक प्राचीन निर्भय जनजाति" के रूप में  अहीर ही नामांकित हैं।मिश्र के टेल अमरना में ये  हबीरू है। अभि क्रिया के आगे लगने वाला उपसर्ग है। 
और इर्- संस्कृत परस्मैपदीय धातु जिसका अर्थ है "चलना"। इस धातु में पूर्वसर्ग पदबंध में अच् प्रत्यय लगाने से जो विशेषण शब्द बनता है, वह अभीरः होता है। अभीर: शब्द में एक श्लिष्ट-श्लेष अलंकार युक्त अर्थ है।  (अ) नकारात्मक उपसर्ग और भीर: / भीरु दो शब्दों के संयोजन से बनता है: अभीर = जिसका अर्थ है जो  कायर नहीं है। रामकृष्ण गोपाल भंडारकर ने 1900 के दशक में "ए पीप इन द अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया" के रूप में अपना इतिहास लिखा था।

इतिहास की किताब में लिखा। कि अहीरों का संबंध यहूदियों की अबीर शाखा से है। -- विश्व में मार्शल आर्ट के जनक यह लोग हैं। उनहोंने यहूदियों को इस्राइल का यादव कहा। 
यहूदियों की हिब्रू भाषा में "अबीर शब्द का अर्थ नायक और जागीरदार भी होता है।
हालांकि इब्रानी बाइबिल में "ईश्वर के पांच नामों में से एक नाम "अबीर" भी है। लेकिन  हिब्रू में अबीर का मूल अर्थ "बहादुर" या "योद्धा" है।
 अर्थात् इस्राइल के यहूदी वास्तव में यदु के वंशज थे जिन्हें अबीर भी कहा जाता था। 

यद्यपि अभीरः शब्द अभीरः का शब्द बहुवचन समूह वाचक रूप है। 
यहूदियों की हिब्रू बाइबिल के उत्पत्ति 49:24 अध्याय में, "अबीर शब्द को जीवित परमेश्वर के   रूप में वर्णित किया गया है।
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अबीर नाम किसी कारण से जीवित भगवान की उपाधियों में से एक है, ----👇
 (1)----अबीर (2)---अदोन (3)---सब्त (4)--यहोवा और (5)----(इलाही)
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इब्रानी भाषा में अबीर (अभीर) शब्द का बहुत उच्च अर्थ होता है - 
वह जो रक्षक हो, इस्राइल, याकूब या इस्राइल की भूमि में सर्वशक्तिमान हो- (वह जो एल का सामना करता है) जिसने अबीर को विशेषण दिया।
इज़राइल एक देवदूत है जो भारतीय पौराणिक कथाओं में यम के समान है।

जिसे भारतीय पुराणों में ययाति यातयति- इति ययाति- कहा गया है।
ययाति भी यम का ही एक विशेषण है।
लेकिन यही कारण है कि भारतीय पुराणों में जाति व्यवस्था के तहत रूढ़िवादी पुरोहितों द्वारा यादवों को कभी भी क्षत्रिय के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है। क्यों कि ये राजतन्त्र में आस्था नहीं रखते थे ; और ये लोक तन्त्र के समर्थक थे। 

प्राचीन काल में पुरोहित समुदाय यदुओं को  या दास कहता था क्योंकि उन्होंने अपने पिता को पुरुषत्व नहीं दिया था और उन्हें श्राप दिया था इसीलिए उन्होंने एक अलग यदु वंश/यादव राज्य की स्थापना की थी।
वेदों में यदु और तुर्वसु साथ साथ ही वर्णित हैं।

"उत दासा परिविषे स्मद्दिष्टी गोपरीणसा ।
यदुस्तुर्वश्च मामहे॥१०॥ ऋ० 10/62/10


वैदिक व्याकरण में "दासा" को लौकिक संस्कृत भाषा में "दासौ" के रूप में मान्यता प्राप्त है।

ईरानी आर्यों ने "दास" शब्द का उच्चारण "दाहे" के रूप में किया  है -- ईरानी आर्यों की भाषा में दाहे का अर्थ -- उत्कृष्ट और कुशल होता है।अर्थात् दक्ष--
वैदिक काल में दास का मौलिक अर्थ दानी अथवा दाता होता था। ___________________________________ 
अंग्रेजी में क्रिया "Aberrate" का अर्थ घूमना या सही रास्ते से भटकना है।
सच तो यह है कि सदियों से  अहीर जनजाति के प्रति घृणा की दृष्टि इन तथाकथित रूढ़िवादियों की रही है। फ़ारसी मूल का आवारा शब्द भी अहीर / अभीर: का तद्भव रूप है। जिसका अर्थ होता है घुमक्कड़- 
अभीर एशिया की सबसे प्राचीन और सबसे बड़ी जाति है |
ईसा मसीह (कृष्ट:) और कृष्ण: ये दोनों महान मनुष्य इस यदु या यहूदियों से प्रभावित हैं। ऐसी पश्चिमी इतिहास की मान्यताएँ हैं।
 जैसे इस्राएल के यहूदियों की अबीर जाति जो युद्ध और पराक्रम के लिए संसार में प्रसिद्ध है। मार्शल वॉरियर्स जनरल-जाति अहीर - पश्चिमी इतिहास कारों के उद्धरण से तथ्य 👇
 "अबीर काशेथ एंड इट्स पैट्रिआर्क्स: इज़राइल की खोई ट्राइब्स ऑफ रूट्स एंड फ्यूडलिटीज" नामक पुस्तक के तथ्य: -👇
लेखक का मत है कि दो अलग-अलग संस्कृतियों के बीच समानता का एक उदाहरण है जो इंगित करता है कि उनका प्राचीन संबंध संयोग नहीं बल्कि वास्तविक है।
इस अनुकूलन का प्रभाव अबीर जाति से संबंधित हो सकता है।
हम पारंपरिक एशियाई मार्शल आर्ट की जड़ों पर तर्कसंगत रूप से चर्चा करने के ऐतिहासिक साक्ष्य और संभावनाओं से इनकार नहीं कर सकते। ____________________________________
जिसमें प्राचीन हिब्रू मार्शल आर्ट अबीर काशेथ के महत्व की अनदेखी नहीं की गई है। जैसा कि हम हिब्रू लोगों को जानते हैं, हजारों सालों से वे "मौखिक तोराह" द्वारा जीते थे, 
जिसमें कानूनी और व्याख्यात्मक परंपराएं शामिल थीं जो सिनाई से मौखिक रूप से प्रेषित की गई थीं, और तोराह (पुराने नियम) में लिखी गई थीं। 
मानना ​​​​है कि सन्दूक जापान में छिपा हुआ था।
जापानी राष्ट्रीय टेलीविजन पर प्रसारित राजदूत कोहेन का साक्षात्कार जापान के सबसे प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है (जैसा कि देखा गया है: इस ग्राफ का वीडियो अंत): भाषा समानताएं, विशेष रूप से दिलचस्प, द गेयन फेस्टिवल (祇園祭 गायेन मात्सुरी) प्रभाव के बावजूद, वास्तव में हमें इस बात से सहमत होना चाहिए कि इतिहास का सत्य एक महान रहस्य है।
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युद्ध में, अवराम और उनके अनुयायियों ने अबीर कशेथ का इस्तेमाल किया, जो एक शक्तिशाली युद्ध पद्धति थी जिसे बाद में यित्ज़ाक (इसहाक) (इक्ष्वाकु) और बाद में उनके बेटे याकोव (याकूब) (ययाति) ने सिद्ध और सिद्ध किया। इनमें इज़राइल की 12 जनजातियों के संस्थापक पिता शामिल हैं जिन्होंने अपने 12 द्वीपों में से प्रत्येक के लिए अलग-अलग प्रणालियाँ बनाईं। याकूब के पास एक पवित्र आत्मा थी जिसने उसे अपने 12 अलग-अलग पुत्रों को एक अद्वितीय युद्ध प्रणाली देने में सक्षम बनाया जो उनकी आध्यात्मिक और शारीरिक विशेषताओं के साथ-साथ कनानियों के इलाके में फिट बैठता था। डायस्पोरा के साथ जब वे इज़राइल बन गए, अबीर, अधिकांश भाग के लिए, सिल्क रोड के साथ प्रवास करते हैं जहां यह समाप्त हो जाता है और सुदूर पूर्व के विभिन्न देशों में फिर से बनाया जाता है। भारतीय मार्बल्स के रूप में। हालाँकि, यमन में ऐसा नहीं होगा जहाँ हिब्रू लोगों को अपनी पहचान बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया गया था। और प्रोत्साहित किया गया था, और बताते हैं कि पारंपरिक रीति-रिवाजों और प्रथाओं को हमेशा के लिए इतिहास से मिटा दिया गया है।
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येहोशुआ सोफ़र वर्तमान में यरूशलेम में कक्षाएं लगा रहे हैं। 👇
लेकिन कुछ अहीर मुस्लिम और बौद्ध भी हैं और कुछ सिख भी हैं और ईसाई भी। 
भारत में, अहीरों को यादव समुदाय के रूप में भी जाना जाता है।
और अहीर और यादव राव साहब और यादवों के प्रतीक हैं। हरियाणा में राव शब्द यादवों के लिए विशेषण है। हालांकि "घोष" मध्य प्रदेश में यादवों का सबसे पुराना उपनाम है। जो गोपालन की प्राचीन प्रथा से जुड़ा है।

पुराण काल ​​में यह "घोष"।
हो गया जबकि वैदिक संदर्भों में यह गोष गोषा-गां सनोति सेवयति षं(शं)धातु है।
अर्थात गाय की सेवा करने वाला। 
"नूनं न इन्द्रापराय च स्या भवा मृळीक उत नो अभिष्टौ ।
इत्था गृणन्तो महिनस्य शर्मन्दिवि ष्याम पार्ये गोषतमाः ॥५॥
सायण- भाष्य हे "इन्द्र त्वं "नूनम् अद्य “नः= अस्माकं। “स्याः =अस्मदीयो भव । ”अपराय “च अपरस्मिन्नन्यस्मिन्नपि कालेऽस्मदीयो भव ।
"उत अपि च त्वं “नः अस्माकम् “अभिष्टौ अभिगमने सति “मृळीकः सुखयिता "भव । “इत्था इत्थमनेन प्रकारेण "गृणन्तः =स्तुवन्तो वयं “गोषतमाः गवां संभक्तृतमाः सन्तः “महिनस्य महतस्तव संबन्धिनि “दिवि= द्योतमाने “पार्ये दुःखस्य पारके “शर्मन् शर्मणि सुखे “स्याम वर्तमाना भवेम ॥५॥
गोषतमा:= का अर्थ सायण आचार्य ने गायों की सेवा करने में सबसे श्रेष्ठ " यह अर्थ किया है।
शंसामि गोषणो नपात्” ऋग्वेद 4. 32. 22.
प्र ते बभ्रू विचक्षण शंसामि गोषणो नपात् ।
माभ्यां गा अनु शिश्रथः ॥२२॥

गोष: शब्द गोपों का वाचक है। जिसका वर्णन ऋग्वेद के चौथे और छठे अध्याय में मिलता है।शब्दों का भौतिक परिवर्तन भी होता है। 
लौकिक भाषाओं में यह नारा: पूर्ण फिर भी, इसकी भावना (अर्थ) अपरिवर्तित बनी हुई है।
आज कुछ घोष लोग भले ही खुद को यादव न समझें, लेकिन इतिहास ने उन्हें यादव जाति के रूप में ग्वालों के रूप में स्वीकार किया है।

वैसे दमघोष से पहले भी घोष शब्द हैहय वंश के यादवों की गोपालन मनोवृत्ति का ही पर्याय है।पुराणों में इसका वर्णन मिलता है। 

उदाहरण के लिए- यदु के चार पुत्र थे- (I) सहस्त्रजित, (II) क्रोष्टा, (III) नल और (IV) रिपु।
हैहय वंश के यदु के ज्येष्ठ पुत्र सहस्त्रजित के पुत्र का नाम षट्जित था। शतजीत के तीन पुत्र हुए- महाहय, वेणुहय और हैहय। हैहय के नाम पर ही हैहय वंश का उदय हुआ। 
हैहय का पुत्र धर्म, धर्म का नेत्र, नेत्र का कुन्ती, कुन्ती का सहजित, सहजित का पुत्र महिष्मान हुआ, जिसने महिष्मतिपुरी का निर्माण किया।महिष्मान के पुत्र भद्राश्रेय हुए।
भद्राश्रेय का दुर्दम और दुर्दम का पुत्र धनक हुआ।धनक के चार पुत्र थे- कृतवीर्य, ​​कृताग्नि, कृतवर्मा और कृतौना।कृतवीर्य का पुत्र अर्जुन था। 

अजुर्न एक प्रसिद्ध एक-छत्र- सम्राट था। उन्हें कार्तवीर्य अर्जुन और सहस्त्रबाहु अर्जुन भी कहा जाता था। हरिवंश पुराण के अनुसार, वह सहस्रजिता के पौत्र और यदु के प्रपौत्र थे।श्रीमद्भागवत महापुराण के नौवें स्कंध में अर्जुन नाम के एक कार्तवीर्य राजा का इस वंश के शासक के रूप में उल्लेख किया गया है।

पुराणों में हैहय वंश का इतिहास सोम की तेईसवीं पीढ़ी में वीतिहोत्र के समय से मिलता है। सोम सामी संस्कृतियों का भारतीय रूपांतर है।
इसके बाद उन्होंने सोम का अर्थ बदलकर चंद्रमा कर दिया और इसे चंद्र वंश में बदल दिया।

श्रीमद्भागवत के अनुसार हैहय का जन्म ब्रह्मा की बारहवीं पीढ़ी में हुआ था।
सुमेरियन पौराणिक कथाओं में ब्रह्मा अब्राहम के रूप में हैं।
हरिवंश पुराण के अनुसार ग्यारहवीं पीढ़ी में हैहय के तीन भाई थे जिनमें हैहय सबसे छोटा भाई था।

हैहय के शेष दो भाई महाहया और वेणुहया थे जिन्होंने अपने-अपने नए वंश की स्थापना की।त्रिपुरी के कलचुरी गोत्र को हैहय गोत्र भी कहा जाता है। 
यह गुजरात के सोलंकी या चालुक्य वंश के साथ लंबे समय तक संघर्ष करता रहा।
महापद्म द्वारा हटाया गया सिर राजवंशों में 'हैहय', जिसकी राजधानी माहिष्मती (महिष्मती) थी, का भी नाम है।

पौराणिक कथाओं में माहिष्मती को कार्तवीर्य अर्जुन अथवा हैहय वंश के सहस्त्रबाहु की राजधानी कहा गया है। अतः अपने वास्तविक इतिहास को जानकर अपने स्वाभिमान की रक्षा करना जीवन का अपेक्षित कर्तव्य है।

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