मंगलवार, 14 मार्च 2023

यदु का अर्थ -अध्याय नवम - यदुवंश-सांस्कृतिक पारिभाषिक व्युत्पत्ति कोश-


अध्याय नवम -

 यदुवंश-सांस्कृतिक पारिभाषिक व्युत्पत्ति कोश-

"यदु:= पुल्लिंग [सं०√यज्+उ -उणादि प्रत्यय, पृषोदर प्रकरण से  जस्य दत्वं अर्थात् ज वर्ण का द वर्ण में रूपान्तरण ] - यज्ञ करने वाला- यज् =देवपूजा,सङ्गतिकरण,दानेषु यज् धातु के तीन अर्थ प्रसिद्ध हैं - यजन करना- न्याय (संगतिकरण) करना और दान करना 
विदित हो की यादवों के आदि पुरुष यदु में तीनों ही प्रवृत्तियों का मौलिक समावेश था। 
ऋग्वेद की एक ऋचा में इनके दान कर्म के लिए इन्हें वैदिक सन्दर्भ के प्राचीनत्तम अर्थ में दास कह कर इनकी स्तुति और प्रशंसा भी है।

"यदोरपत्यम् " इति यादव- अर्थात् यदु शब्द के अन्त में सन्तान वाचक संस्कृत अण्- प्रत्यय लगाने से यादव शब्द बनता है।
यदु + अण् । यादव:) जिसका अर्थ है यदु की सन्तानें अथवा वंशज- यादव लोग न्यायप्रिय, युद्धप्रिय और सबसे मेलजोल( संगतिकरण) करने वाले होते हैं। ये आभीर जाति के लोग प्रवृत्ति से ही निर्भीक होते हैं अत: कोशकारों ने इन्हें आभीर लिखा-

__________

उत दासा परिविषे स्मद्दिष्टी गोपरीणसा यदुस्तुर्वश्च मामहे ॥१०॥

" -भाष्य"

(स्मद्दिष्टी) =प्रशस्त कल्याण वा दर्शनौ दृष्टौ स्मद्दिष्टीन्= प्रशस्तदर्शनान्” [ऋ० ६।६३।९] (गोपरीणसा)= गवां परीणसा बहुभावो यमो बहुगोमन्तौ  परीणसा= बहुनाम” [निघ० ३।१] (दासा)= दातारौ दासृ= दाने” [भ्वादि०] “दासं= दातारम्” [ऋ० ७।१९।२ 

(उत)= अपि तस्य =ज्ञानदातुः (परिविषे) =स्नान-सेवायै योग्यौ भवतः विष सेचने सेवायाम् च ” [भ्वादि०] (यदुः-तुर्वः-च एतयो: नाम्नो: गोपभ्याम् (मामहे)= स्तुमहे। ॥१०॥

दासा शब्द द्विवचन में "यदु और "तुर्वसु के लिए आया है। और वैदिक निघण्टु में दास का अर्थ दानी, और रक्षक ( त्राता) है ।

अत: इस शब्द का अर्थ भी निघण्टु को अधिगत करके ही करना चाहिए- नकि दास के आधुनिक सन्दर्भ में क्यों वैदिक काल में घृणा दया का वाचक थी तो आज घृणा का अर्थ नफरत है।

 उपर्युक्त ऋचा पर सम्यग्भाष्य- निम्नलिखित है।

( १-“उत = अत्यर्थेच  अपि च।

२-"स्मद्दिष्टी कल्याणादेशिनौ ।

३-“गोपरीणसा गोपरीणसौ गोभिः परिवृतौ बहुगवादियुक्तौ 

४-(“दासा =दासतः दानकुरुत: =जो दौनों दान करते हैं। 

पाणिनीय धातुपाठ में दास्=दान करना। अर्थ में है ।दास्= दाने सम्प्रदाने + अच् । दास:= दाता।अच्प्रत्यय का 'अ' लगाकर कर्तृबोधक शब्द बनाये जाते हैं।

यद्यपि दास: और असुर: जैसे शब्द वैदिक सन्दर्भों में बहुतायत से श्रेष्ठ अर्थों ते सूचक थे ।जैसे दास:= दाता/दानी। तथा असुर:= प्राणवान्/ और मेधावान्।

५-स्थितौ तेनाधिष्ठितौ “यदुः च “तुर्वश्च एतन्नामकौ राजर्षी।

६- “परिविषे =परिचर्य्यायां /व्याप्त्वौ।

७- मामहे= वयं सर्वे स्तुमहे।

आत्मनेपदी "वह्" तथा "मह्" भ्वादिगणीय धातुऐं हैं आत्मनेपदी नें लट् लकार उत्तम पुरुष बहुवचन के रूप में क्रमश:"वहामहे "और महामहे हैं महामहे का ही(वेैदिक रूप "मामहे" है।)

"अध॒ प्लायो॑गि॒रति॑ दासद॒न्याना॑स॒ङ्गो अ॑ग्ने द॒शभि॑: स॒हस्रै: । अधो॒क्षणो॒ दश॒ मह्यं॒ रुश॑न्तो न॒ळा इ॑व॒ सर॑सो॒ निर॑तिष्ठन् ॥३३।

पदपाठ-अध॑ । प्लायो॑गिः । अति॑ ।( दा॒स॒त् )। अ॒न्यान् । आ॒ऽस॒ङ्गः । अ॒ग्ने॒ । द॒शऽभिः॑ । स॒हस्रैः॑ ।अध॑ । उ॒क्षणः॑ । दश॑ । मह्य॑म् । रुश॑न्तः । न॒ळाःऽइ॑व । सर॑सः । निः । अ॒ति॒ष्ठ॒न् ॥३३। 

____   

(१-“अध =अपि च 

२"प्लायोगिः= प्रयोगनाम्नः पुत्रः “आसङ्गः नाम राजा 

३“दशभिः =दशगुणितैः “सहस्रैः सहस्रसंख्याकैर्गवादिभिः 

४“अन्यान् =दातॄन् “

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५-अति “दासत्= अतिक्रम्य ददाति । 

६-“अध= अनन्तरम् 

७-“उक्षणः = वृषभा: सेचनसमर्थाः “मह्यम् आसङ्गेन दत्ताः 

८-“रुशन्तः= दीप्यमानाः “दश दशगुणितसहस्रसंख्याकास्ते गवादयः “नळाइव । नळास्तटाकोद्भवास्तृणविशेषाः । ते यथा “सरसः तटाकात् {संघशो} निर्गच्छन्ति तथैव मह्यं दत्ता गवादयोऽस्मादासङ्गात् "निरतिष्ठन् निर्गत्यावास्थिषत । एवमेवंप्रकारेण मां स्तुहीति मेध्यातिथिं प्रत्युक्तत्वादेतासां चतसृणामृचां {प्रायोगिरासङ्ग ऋषिः स एव देवतेत्येतदुपपन्नं भवति} ॥

अनुवाद-

आसङ्ग यदुवंशी राजा सूक्त-दृष्टा मेधातिथि ऋषि को बहुत सारा धन देकर उन ऋषि को अपने द्वारा दिए गये दान के स्तुति करने के लिए प्रेरित करता है।

बहुव्रीहि समास-मेधा से युक्त हैं अतिथि जिनके वह मेधातिथि इस प्रकार-मेधातिथि ऋषि ।

आप हमारी ही प्रशंसा करो , प्रसन्न रहो उदासीनता मत करो।

 निश्चित रूप से हम सब परिवारी जन और प्रयोग नाम वाले राजा के पुत्र आसङ्ग राजा दश हजार गायों के दान द्वारा अन्य दानदाताओं का उल्लंघन कर गायों का दान करता है। 

सेचन करने में समर्थ वे ओजस्वी दश हजार बैल उक्षण:-(Oxen) आसङ्ग राजा से निकलकर  मुझ मेधातिथि में उसी प्रकार समाहित हो गये ।

जिस प्रकार तालाब में उत्पन्न तृणविशेष तालाब से निकल कर तालाब से समूह बद्ध होकर  बाहर निकल आते हैं; इन्हीं शब्दों के द्वारा तुम मेरी स्तुति करो ! ऐसा मेधातिथि से कहने वाले यादव राजा आसङ्ग हैं।

इन ३०-से३३ ऋचाओं में इन चार ऋचाओं के वक्ता आसङ्ग हैं और वही देवता हैं यहाँ  यही भाव उत्पन्न होता है ।३०। 

{प्रायोगिरासङ्ग ऋषिः स एव देवतेत्येतदुपपन्नं भवति} ॥

शब्द व्युत्पत्ति की दृष्टि से यदु शब्द हिब्रू भाषा में यथावत् मिलता है। 

जो कि हिब्रू क्रिया ( ידה) = यदा ) से सम्बन्धित है ।जिसका अर्थ है - प्रशंसा करना -स्तुति करना। 

 इसी यदा क्रिया से संबंधित नाम हैं।

•यादा ( यादा ) : अबीहुद , अबीहूद , अहिहूद , अम्मीहूद , बाले- यहूदा , एहूद , एलियुद , होद , होदवियाह ,  होदिय्याह , ईशहोद , जद्दै , यदायाह , यदूतून , येहूदी , यहूदी , यहूदा , यहूदा , यहूदा , यहूदिया , जूडिथ , 

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अभीर और आभीर संस्कृत भाषा में तो वैदिक भाषा में अभीरु शब्द है । 

कालीदास के समकालीन अमर सिंह ने आभीर शब्द की व्युत्पत्ति अहीरों की वीरता प्रवृत्ति को देखते हुए की 

आभीरः, पुल्लिंग (आ समन्तात् भियं राति । रा दाने आत इति कः )   अर्थात जो सर्वत्र विरोधीयों में भय का कारण बनता है। 

गोपालन करने से ये गोप  कहलाए अमरः कोश ॥ आहिर इति प्राकृत भाषा में

हिब्रू भाषा में ये अबीर के रूप में ईश्वर के पाँच नामों में से एक और शक्तिशाली का वाचक है।

यद्यपि मार्शल आर्ट के जनक यहूदियों के एक मूल कबीले को भी अबीर कहते हैं शक्तिशाली होने के कारण 

जूडो कराटे जैसी मार्शल आर्ट की कलाओ

 इन्हीं अहीरों ने दुनियाँ को दी बौद्ध भिक्षु श्रमण भी जूडो कराटे इन्ही अहीरों से परम्परागत रूप में प्राप्त करते हैं ।

बीर या अबीर — हिब्रू भाषा में प्राप्त शब्द है । हिब्रू से लिप्यंतरण : אביר (अबीर) जिसका अर्थ: है  "शक्तिशाली"अहीर मूलतः (Scythian origin) की आर्यन नस्ल हैं जो (Middle East)( तुर्की, इरान, इजरायल, इराक, कज़ाख़िस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, बलूचिस्तान, सिंध) के निवासी माने जाते हैं।

परन्तु ये धारणा भी एकांकी है क्यों अहीर ट्राइब अफ्रिका से लेकर एशिया और यूरोप के द्वार यूनान तक आबाद रही है ।यह सबसे प्राचीनतम मानव जातियों में सुमार है । गायत्री जो वेदों की अधिष्ठात्री देवी वह भी एक आभीर कन्या थीं ब्रह्मा ने जिसे अपनी अर्धांगनी स्वीकार कर ज्ञान और वेदों की अधिष्ठात्री देवी आभीर गोप अथवा यादव कन्या थी यह पद्मपुराण सृष्टि खण्ड के अध्याय १५-१६-१७ में विस्तार से वर्णित है।

हमारा भारतखंड बहुत विशाल हुआ करता था जो यूनान रोम से लेकर जंबुद्वीप(India) तक फैला था

हमारे महान आर्य सभ्यता के महाग्रंथों और वेदों की रचना भी भारतवर्ष के Middle East हिस्से में हुई जो यदुवंशी अभीरों का निवास स्थान माना जाता है।

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अहीर शब्द की उत्पत्ति अजरबैैैजानियन शब्द अवर (Avar) से हुई।

'अवर' से संस्कृत का शब्द बना "अभीर"।और अभीर का सामूहिक रूप आभीर है ।

अभीर कुल में यदु का जन्म होन से अभीर आगे चल यदुवंशी/यादव कहलाए।

सैमेटिक मिथकों में अबीर याकूव अथवा ययाति का एक नाम है।

अहीर एक प्राचीन नस्ल है जिसे इतिहासकार आर्य चरावाहे के रूप में वर्णित करते हैं ।

यदु के छोटे भाई तुर्वसु ने तुर्कीस्तान बसाया । हिब्रू बाइबिल मेें तुुुरबजू के रूप में  तुरवसु का वर्णन है । 

इसके अतिरिक्त अहीरों ने तुर्की, तथा  Israel में भी साम्राज्य स्थापित किए थे।

एक नज़र यहूदी ग्रंरंथों में वर्णित सनातनी अभीरों का इतिहास।

यहूदीयों की हिब्रू बाइबिल के सृष्टि-खण्ड नामक अध्याय Genesis 49: 24 पर --- अहीर शब्द को जीवित ईश्वर का वाचक बताया है ।

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The name Abhir is one of The titles of the living god for some reason it,s usually translated( for some reason all god,s in Isaiah 1:24 we find four names of

The lord in rapid succession as Isaiah

Reports " Therefore Adon - YHWH - Saboath and Abir ----  Israel declares...

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Abir (अभीर )---The name reflects protection more than strength although one obviously -- has to be Strong To be any good at protecting still although all modern translations universally translate this name with ---- Mighty One , it is probably best translated whith --- Protector --रक्षक।

हिब्रू बाइबिल में तथा यहूदीयों की परम्पराओं में ईश्वर के पाँच नाम प्रसिद्ध हैं :----

(१)----अबीर (२)----अदॉन (३)---सबॉथ (४)--याह्व्ह्

तथा (५)----(इलॉही)

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हिब्रू भाषा मे अबीर (अभीर) शब्द के बहुत ऊँचे अर्थ हैं- अर्थात् जो रक्षक है, सर्व-शक्ति सम्पन्न है

इज़राएल देश में याकूब अथवा इज़राएल-- ( एल का सामना करने वाला ) को अभीर

का विशेषण दिया था ।

अभीर और आभीर संस्कृत भाषा में तो वैदिक भाषा में अभीरु शब्द है । 

कालीदास के समकालीन अमर सिंह ने आभीर शब्द की व्युत्पत्ति अहीरों की वीरता प्रवृत्ति को देखते हुए की 

आभीरः, पुल्लिंग (आ समन्तात् भियं राति । रा दाने आत इति कः )   अर्थात जो सर्वत्र विरोधीयों में भय का कारण बनता है।

गोपालन करने से ये गोप  कहलाए अमरः कोश ॥ आहिर इति प्राकृत भाषा में । 

हिब्रू भाषा में ये अबीर के रूप में ईश्वर के पाँच नामों में से एक और शक्तिशाली का वाचक है।

यद्यपि मार्शल आर्ट के जनक यहूदियों के एक मूल कबीले को भी अबीर कहते हैं शक्तिशाली होने के कारण 

जूडो कराटे जैसी मार्शल आर्ट की कलाऐं इन्हीं अहीरों ने दुनियाँ को दी बौद्ध भिक्षु श्रमण भी जूडो कराटे इन्ही अहीरों से परम्परागत रूप में प्राप्त करते हैं ।

बीर या अबीर — हिब्रू भाषा में प्राप्त शब्द है ।

हिब्रू से लिप्यंतरण : אביר (अबीर)

 जिसका अर्थ: है  "शक्तिशाली"

अहीर मूलतः (Scythian origin) की आर्यन नस्ल हैं जो (Middle East)( तुर्की, इरान, इजरायल, इराक, कज़ाख़िस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, बलूचिस्तान, सिंध) के निवासी माने जाते हैं।

परन्तु ये धारणा भी एकांकी है क्यों अहीर ट्राइब अफ्रिका से लेकर एशिया और यूरोप के द्वार यूनान तक आबाद रही है ।

यह सबसे प्राचीनतम मानव जातियों में सुमार है। 

गायत्री जो वेदों की अधिष्ठात्री देवी वह भी एक आभीर कन्या थीं ब्रह्मा ने जिसे अपनी अर्धांगनी स्वीकार कर ज्ञान और वेदों की अधिष्ठात्री देवी आभीर गोप अथवा यादव कन्या थी यह पद्मपुराण सृष्टि खण्ड के अध्याय १५-१६-१७ में विस्तार से वर्णित है।हमारा भारतखंड बहुत विशाल हुआ करता था जो यूनान रोम से लेकर जंबुद्वीप(India) तक फैला था।

हमारे महान आर्य सभ्यता के महाग्रंथों और वेदों की रचना भी भारतवर्ष के Middle East हिस्से में हुई जो यदुवंशी अभीरों का निवास स्थान माना जाता है।

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अहीर शब्द की उत्पत्ति अजरबैैैजानियन शब्द अवर (Avar) से हुई।

'अवर' से संस्कृत का शब्द बना "अभीर"। और अभीर का सामूहिक रूप आभीर है ।

अभीर कुल में यदु का जन्म होन से अभीर आगे चल यदुवंशी/यादव कहलाए।

सैमेटिक मिथकों में अबीर याकूव अथवा ययाति का एक नाम है।

अहीर एक प्राचीन नस्ल है जिसे इतिहासकार आर्य चरावाहे के रूप में वर्णित करते हैं ।

यदु के छोटे भाई तुर्वसु ने तुर्कीस्तान बसाया । हिब्रू बाइबिल मेें तुुुरबजू के रूप में  तुरवसु का वर्णन है । 

इसके अतिरिक्त अहीरों ने तुर्की, तथा  Israel में भी साम्राज्य स्थापित किए थे।

एक नज़र यहूदी ग्रंथों में वर्णित सनातनी अभीरों का इतिहास।

यहूदीयों की हिब्रू बाइबिल के सृष्टि-खण्ड नामक अध्याय Genesis 49: 24 पर --- अहीर शब्द को जीवित ईश्वर का वाचक बताया है ।

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The name Abhir is one of The titles of the living god for some reason it,s usually translated( for some reason all god,s

in Isaiah 1:24 we find four names of The lord in rapid succession as Isaiah

Reports " Therefore Adon - YHWH - Saboath and Abir ----  Israel declares...

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Abir (अभीर )---The name reflects protection more than strength although one obviously -- has to be Strong To be any good at protecting still although all modern translations universally translate this name with ---- Mighty One , it is probably best translated whith --- Protector --रक्षक।

हिब्रू बाइबिल में तथा यहूदीयों की परम्पराओं में ईश्वर के पाँच नाम प्रसिद्ध हैं :----

(१)----अबीर (२)----अदॉन (३)---सबॉथ (४)--याह्व्ह्

तथा (५)----(इलॉही)

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हिब्रू भाषा मे अबीर (अभीर) शब्द के बहुत ऊँचे अर्थ हैं- अर्थात् जो रक्षक है, सर्व-शक्ति सम्पन्न है

इज़राएल देश में याकूब अथवा इज़राएल-- ( एल का सामना करने वाला ) को अभीर का विशेषण दिया था ।

यहूदियों के पुराने नियमों में यज्ञ और हवन जैसे धार्मिक विधान भी थे जो यहुद: अथवा यदु की यज्ञ प्रणालियों से प्रचारित थे ।

परन्तु हम इन विकृतियों का समर्थन नहीं करते हैं 

ये मूल यहूदी परम्परा नहीं अन्यथा मूसा के समय तक यहूदी गाय और बैल की पूजा करते थे ।

प्राचीन विश्व के दौरान पवित्र बैल की पूजा पश्चिमी विश्व की स्वर्ण बछड़े की प्रतिमा से सम्बंधित बाइबिल के प्रसंग में सर्वाधिक समानता रखती है, यह प्रतिमा पर्वत की चोटी के भ्रमण के दौरान यहूदी संत मोसेज़ द्वारा पीछे छोड़ दिए गए लोगों द्वारा बनायी गयी थी और सिनाइ (एक्सोडस) के निर्जन प्रदेश में यहूदियों द्वारा इसकी पूजा की जाती थी। 

मर्दुक "उटू का बैल" कहा जाता है। 

भगवान शिव की सवारी नंदी, भी एक बैल है। वृषभ राशि का प्रतीक भी पवित्र बैल है। बैल मेसोपोटामिया और मिस्र के समान चन्द्र संबंधी हो या भारत के समान सूर्य संबंधी हो, अन्य अनेकों धार्मिक और सांस्कृतिक अवतारों का आधार होता है और साथ ही साथ नवयुग की संस्कृति में आधुनिक लोगो की चर्चा में होता है।

शिव को मृडीक भी कहा गया है


 

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