शनिवार, 25 मार्च 2023

कामसूत्र-

९५२ वात्स्यायन-कामसूत्न 


एक लक्ष्य बनाकर शेष स्त्रियों को भी अपनी ओर तोड़ लें । एक दूसरे को दूषित कर जब सबके 
ही चरित्र एक से हो जाये, तो कोई किसी का रहस्योद्घाटन नहीं करती ओर सभी अभीष्ट फल 
प्राप्त करती हैँ ॥ २८॥ 
तत्र राजकुलचारिण्य एव लक्षण्यान्‌ पुरुषानन्तःपुरं प्रवेशयन्ति, नातिसुरक्ष- 
त्वादापरान्तिकानाम्‌॥ २९॥ 
रानियों के भोगविलास : अपरान्त देश की प्रवृत्ति-अपरान्त देश में राजकुलो में 
आने वाली स्त्रियाँ ही सुन्दर ओर चण्डवेग पुरुषों को अन्तःपुर में प्रविष्ट करा देती है; क्योकि 
वहां के अन्तःपुर अत्यधिक सुरक्षित नहीं होते ॥ २९॥ 
क्षत्रियसंज्ञकैरन्तःपुररक्षिभिरेवार्थं साधयन्त्याभीरकाणाम्‌॥ ३०॥ 
` आभीर की प्रवृत्ति- आभीर राजा के अन्तःपुर में रानिया वहाँ के क्षत्रिय-रक्षकों को ही 
फेसाकर अपना प्रयोजन सिद्ध कर लेती है ॥ ३०॥ 
प्रेष्याभिः सह तद्वेषान्नागरकपुत्रान्‌ प्रवेशयन्ति वात्सगुल्मकानाम्‌॥ ३९॥ 
वत्सगुल्म की प्रवृत्ति-- वत्सगुल्म देश के राजकुल में दासियों के साथ दासीवेश में रानी 
तरुण नागरको को प्रवेश करा लेती हैँ ॥ ३१॥ 
स्वैरेव पुत्रैरन्तःपुराणि कामचारैर्जननीवर्जमुपयुज्यन्ते वैदर्भकाणाम्‌॥ ३२॥ 
विदर्भं की प्रवृत्ति- विदर्भ के राजवंश में तो अपने ओरस पुत्रों को छोडकर रानियां 
सभी राजकुमारो से सम्भोग करा लेती है ॥ २२॥ 
तथा प्रवेशिभिरेव ज्ञातिसम्बन्धिभिर्नान्यैरुपयुज्यन्ते स्त्रैराजकानाम्‌॥ ३३॥ 
स्त्रीराज्य की प्रवृत्ति- स्त्रीराज्य की रानियां केवल सजातीय सम्बन्धियों से ही 
सम्भोगकर्म कराती हँ, अन्यो से नहीं ॥ ३३॥ 
ब्राह्मणैर्मित्नैर्भत्येदसिचेटेश्च गौडानाम्‌॥ ३४॥ 
गौड़ देश की प्रवृत्ति- गौड़ देश को रानियां ब्राह्मण, मित्र, भृत्य, दास ओर चेटों से भी 
सम्भोग कर लेती ह ॥ ३४॥ 
परिस्यन्दाः कर्मकराश्चान्तःपुरेष्वनिषिद्धा अन्येऽपि तद्रूपाश्च सैन्धवानाम्‌॥ ३५॥ 
सिन्ध देश की प्रवृत्ति- सिन्ध देश मेँ जिन नौकरों ओर नागरिकों का राजभवन में 
प्रवेश निषिद्ध नहीं है, उन सबके साथ रानियां सम्भोग कर लेती है ॥ ३५॥ 
अर्थेन रक्षिणमुपगृह्य साहसिकाः संहताः प्रविशन्ति हैमवतानाम्‌॥ ३६॥ 
हैमवतो की प्रवृत्ति-हैमवतों मे साहसी एवं तरुण व्यक्ति सुरक्षाकर्मियों को धन से 
अनुकूल बनाकर, एकत्र होकर, राजभवन में प्रवेश कर जाते हँ ॥ ३६॥ 
पुष्यदाननियोगान्नगरन्राह्यणा राजविदितमन्तःपुराणि गच्छन्ति। पटान्तरित- 
श्यैषामालापः। तेन प्रसङ्खेन व्यतिकरो भवति वङ्काङ्कलिङ्ककानाम्‌॥ ३७॥ 
अंग-वंग ओर कलिङ्क- अंग, वंग ओर कलिङ्ग देशों मे नगर के ब्राह्मण पूजा के फूल 
देने राजभवनों मेँ आते है । रानियां उनसे परदे के पीछे से बाते करती हँ ओर इसी प्रसंग में अवैध 
सम्बन्ध भी हो जाते हँ ॥ ३७॥ 


५. पारदारिक अधिकरण ९५३ 


संहत्य नवदशेत्येकैकं युवानं प्रच्छादयन्ति प्राच्यानामिति। एवं परस्त्रियः 
प्रकुर्वीत । इत्यन्तःपुरिकावृत्तम्‌॥ ३८ ॥ 
प्राच्यो की प्रवृत्ति-नौ-दस स्त्रियां मिलकर एक चण्डवेग पुरुष को छिपाकर अन्तःपुर 
मे रख लेती है- यह प्राच्यो कौ प्रवृत्ति हे । (यदि अन्तःपुर कौ स्त्रियों के पास जाना ही पड़े तो 
इस प्रकार जाना चाहिये ।) इस प्रकार अन्तःपुरिकावृत्त पूर्ण हुआ ॥ ३८॥ 
एभ्य एवं च कारणेभ्यः स्वदारान्‌ रक्चेत्‌॥ ३९॥ 
स्त्रीरक्षा का उपाय--इन्दीं कारणों से अपनी स्त्री को रक्षा करे॥ ३९॥ 
कामोपधाशुद्धान्‌ रक्षिणोऽन्तःपुरे स्थापयेदित्याचार्याः ॥ ४०॥ 
जो व्यक्ति कामविषयक परीक्षा में सफल हुए हो, उन्हीं को अन्तःपुर का रक्षक नियुक्त 
करना चाहिये- यह कामशास्त्र के आचार्यो का मत हे ॥ ४०॥ 
ते हि भयेन चार्थन चान्यं प्रयोजयेयुस्तस्मात्‌ कामभयार्थोपधाशुद्धानिति 
गोणिकापुत्रः ॥ ४९॥ 
कामविषयक परीक्षा में उत्तीर्णं व्यक्ति भी भय ओर लोभ से दूसरों को अन्तःपुर में प्रविष्ट 
करा सकते हैँ, इसलिये काम, भय ओर धन-इन तीनों कौ परीक्षा में उत्तीर्ण व्यक्ति को ही 
अन्तःपुर में रक्षक नियुक्त करना चाहिये-यह गोणिकापुत्र का मत हे ॥ ४१॥ 
अद्रोहो धर्मस्तमपि भयाज्जह्यादतो धर्मभयोपधाशुद्धानिति वात्स्यायनः ॥ ४२॥ 
स्वामिद्रोह करना अधर्म है, लेकिन व्यक्छि भय के कारण उसे भी छोड़ सकता है, अतएव 
जो निर्भीक ओर धर्मात्मा हों, उन्हें ही अन्तःपुर में रक्षक नियुक्त करे यह आचार्य वात्स्यायन 
कामत हे॥४२॥ | 
परवाक्याभिधायिनीभिश्च गृूढाकाराभिः प्रमदाभिरात्मदारानुपदध्याच्छोचा- 
शौचपरिज्ञानार्थमिति बाभ्रवीयाः ॥ ४२३ ॥ 
परपुरुष के कहे गये वाक्यों का बहाना करके कहने वाली ओर अपना अभिप्राय छिपा 
लेने वाली स्त्रियो से अपनी स्त्रियों कौ परीक्षा करा ले कि उनमें कितनी सदाचारिणी हँ ओर 
कितनी दुराचारिणी-एेसा आचार्य बाभ्रव्य के अनुयायियों (शिष्यो ) का मत हे ॥ ४३॥ 
दुष्टानां युवतिषु सिद्धत्वान्नाकस्माददुष्टदूषणमाचरेदिति वात्स्यायनः ॥ ४४॥ 
दुष्ट व्यक्ति तो स्त्री को फंसाया ही करते है, इसलिये अकारण सदाचारियों को दूषित न 
किया जाये- यह आचार्य वात्स्यायन का मत हे ॥ ४४॥ 
अतिगोष्टी निरङ्कशत्वं भर्तुः स्वैरता पुरुषैः सहानियन्त्रणता प्रवासेऽवस्थानं 
विदेशे निवासः स्ववृत्त्युपघातः स्वैरिणीसंसर्गः पत्युरीर््यालुता चेति स्त्रीणां 
विनाशकारणानि 1 ४५॥ 
विनाश के कारण- अत्यधिक गप्पे मारना, निरंकुशता, स्वेच्छाचारिता, पुरुषों के साथ 
खुला व्यवहार, पति के विदेशगमन पर एकाक रहना, घर से बाहर विदेश में रहना, जीविका- 
विहीन होना, कुलटा सियो का संसर्गं ओर पति से ईर्ष्या रखना-ये स्रियो के विनाश के .. 
कारण है ॥ ४५ ॥ 


१५४ ` वात्स्यायन-कामसूत्र 

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