सोमवार, 25 सितंबर 2017

मेरे गीत --

महादेवी वर्मा » सांध्यगीत » चिर सजग आँखे उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना! जाग तुझको दूर जाना! अचल हिमगिरि के हृदय में आज चाहे कम्प हो ले, या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले; आज पी आलोक को डोले तिमिर की घोर छाया, जाग या विद्युत्-शिखाओं में निठुर तूफान बोले! पर तुझे है नाश-पथ पर चिह्न अपने छोड़ आना! जाग तुझको दूर जाना! बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बन्धन सजीले? पन्थ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रँगीले? विश्व का क्रन्दन भुला देगी मधुप की मधुर-गुनगुन, क्या डुबा देंगे तुझे यह फूल के दल ओस-गीले? तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना! जाग तुझको दूर जाना! वज्र का उर एक छोटे अश्रुकण में धो गलाया, दे किसे जीवन-सुधा दो घूँट मदिरा माँग लाया? सो गई आँधी मलय की वात का उपधान ले क्या? विश्व का अभिशाप क्या नींद बनकर पास आया? अमरता-सुत चाहता क्यों मृत्यु को उर में बसाना? जाग तुझको दूर जाना! कह न ठंडी साँस में अब भूल वह जलती कहानी, आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी; हार भी तेरी बनेगी मानिनी जय की पताका, राख क्षणिक् पतंग की है अमर की निशानी! है तुझे अंगार-शय्या पर मृदुल कलियाँ बिछाना! जाग तुझको दूर जाना!
१- तेरी अदाओं के नहीं, हम तेरे जज्बातों के दिवानों हैं
तेरी दिलेरी को हमने अब जाना है एक मुद्दत से अनजाने है।२- हमने उन मुकामों की ज़ियारत की है ,
जहाँ मुश्तकिल मञ्जिलें अक्सर हासिल होती हैं |३-आप हमारे आदर्श आप हम तुम्हारे हमक़दम हैं ,
आप कहीं हों आपकी प्रेरणाऐं हैं हमारे साथ
आपके मार्ग-दर्शन में आज भी हम हैं ।४-आपकी अदाओं का कोई तोड़ नहीं
हम दिल बडे़ सलीके से ज़ियारत की ए बसीम उम्हाँ आसान हो जाता है हर मुश्किल !५-एक नादरिया है जिन्द़गी ए! बसीम उम्र है सफ़ी ना मेरा नाख़ुदा है मेरा साहिल है महज जिसकने मेरा दिल ना ।६- जज्बातों के हम मसीहा मेरी वाजिद से आ़रजू है ।
हम उसका ही सज्दा करेगें रोहि जो हमारा  वजूह है ।७-

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