प्रवाह
धनञ्जय प्रताप यादव और यदु यादव 1
सूर्य या सूरज हमारे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। वह हमें
रोशनी और गर्मी देता है जिससे यह धरती रहने के लिए एक सुखद और रोशन जगह बनती हैं।
सूरज के बिना धरती बिल्कुल ठंडी और अंधेरी होती। यहाँ कोई
पशु-पक्षी और पेड़-पौधे नहीं होते क्योंकि पेड़-पौधों को अपना भोजन बनाने के
लिए सूरज की रोशनी की जरूरत होती है क्योंकि जानवर पौधे खाते हैं या दूसरे
जानवरों को खाते हैं जो कि पौधे खाते हैं। मतलब यह कि सूरज के बिना पौधे ज़िन्दा
नहीं रह सकते और पौधों के बिना जानवर जी नहीं सकते।
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चन्द्रमा पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह है। यह सौर मंडल का पाचवाँ,सबसे विशाल प्राकृतिक
उपग्रह है।
पृथ्वी के मध्य से चन्द्रमा के मध्य तक कि दूरी ३८४,४०३किलोमीटर है। यह दूरी पृथ्वी कि परिधि के ३०
गुना है। चन्द्रमा पर गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी से १/६ है। यह प्रथ्वी कि परिक्रमा
२७.३ दिन मे पूरा करता है और अपने अक्ष के चारो ओर एक पूरा चक्कर भी २७.३ दिन में
लगाता है। यही कारण है कि चन्द्रमा का एक हिस्सा या फेस हमेंसा पृथ्वी की ओर होता
है। यदि चन्द्रमा पर खड़े होकर पृथ्वी को देखे तो पृथ्वी साफ़ साफ़ अपने अक्ष पर
घूर्णन करती हुई नजर आएगी लेकिन आसमान में उसकी स्थिति सदा स्थिर बनी रहेगी अर्थात
पृथ्वी को कई वर्षो तक निहारते रहो वह अपनी जगह से टस से मस नहीं होगी | पृथ्वी- चन्द्रमा-सूर्य ज्यामिति के
कारण "चन्द्र दशा" हर २९.५ दिनों में बदलती है। आकार के हिसाब से अपने
स्वामी ग्रह के सापेक्ष यह सौरमंडल में सबसे बड़ा प्राकृतिक उपग्रह है जिसका व्यास
पृथ्वी का एक चौथाई तथा द्रव्यमान १/८१ है। बृहस्पति के उपग्रह lo के बाद चन्द्रमा दूसरा सबसे अधिक घनत्व
वाला उपग्रह है। सूर्य के बाद आसमान में सबसे अधिक चमकदार निकाय चन्द्रमा है।
समुद्री ज्वार और भाटा चन्द्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण आते है। चन्द्रमा
की तात्कालिक कक्षीय दूरी, पृथ्वी के
व्यास का ३० गुना है इसीलिए आसमान में सूर्य और चन्द्रमा का आकार हमेशा सामान नजर
आता है। वह पथ्वी से चंद्रमा का 59 % भाग दिखता है जब चन्द्रमा अपनी कक्षा
में घूमता हुआ सूर्य और पृथ्वी के बीच से होकर गुजरता है और सूर्य को पूरी तरह ढक
लेता है तो उसे सूर्यग्रहण कहते है।
अन्तरिक्ष मे मानव सिर्फ चन्द्रमा पर ही कदम रख सका है। सोवियत राष्ट् का
लूना-१ पहला अन्तरिक्ष यान था जो चन्द्रमा के पास से गुजरा था लेकिन लूना-२ पहला
यान था जो चन्द्रमा की धरती पर उतरा था। सन् १९६८ में केवल नासा अपोलो कार्यक्रम
ने उस समय मानव मिशन भेजने की उपलब्धि हासिल की थी और पहली मानवयुक्त ' चंद्र परिक्रमा मिशन ' की शुरुआत अपोलो -८ के साथ की गई। सन्
१९६९ से १९७२ के बीच छह मानवयुक्त यान ने चन्द्रमा की धरती पर कदम रखा जिसमे से
अपोलो-११ ने सबसे पहले कदम रखा | इन मिशनों ने वापसी के दौरान ३८० कि. ग्रा. से ज्यादा चंद्र चट्टानों को
साथ लेकर लौटे जिसका इस्तेमाल चंद्रमा की उत्पत्ति, उसकी आंतरिक संरचना के गठन और उसके बाद
के इतिहास की विस्तृत भूवैज्ञानिक समझ विकसित करने के लिए किया गया। ऐसा माना जाता
है कि करीब ४.५ अरब वर्ष पहले पृथ्वी के साथ विशाल टक्कर की घटना ने इसका गठन किया
है।
सन् १९७२
में अपोलो-१७ मिशन के बाद से चंद्रमा का दौरा केवल मानवरहित अंतरिक्ष यान के
द्वारा ही किया गया जिसमें से विशेषकर अंतिम सोवियत लुनोखोद रोवर द्वारा किया गया
है। सन् २००४ के बाद से, जापान, चीन, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय
अंतरिक्ष एजेंसी में से प्रत्येक ने चंद्र परिक्रमा के लिए यान भेजा है। इन
अंतरिक्ष अभियानों ने चंद्रमा पर जल-बर्फ की खोज की पुष्टि के लिए विशिष्ठ योगदान
दिया है। चंद्रमा के लिए भविष्य की मानवयुक्त मिशन योजना सरकार के साथ साथ निजी
वित्त पोषित प्रयासों से बनाई गई है। चंद्रमा ' बाह्य अंतरिक्ष संधि ' के तहत रहता है जिससे यह शांतिपूर्ण
उद्देश्यों की खोज के लिए सभी राष्ट्रों के लिए मुक्त है।
धनञ्जय प्रताप यादव और यदु यादव
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