सोमवार, 11 सितंबर 2017

मुकरियाँ ---

मुकरियाँ पहेलियों एवं मुकरियों का हिंदी साहित्य में विशेष स्थान है ।मुकरियाँ एक ऐसी साहित्यिक विधा है जिसे शृंगार परक ताने-बाने से बुना /गढ़ा जाता है । इसमें सहेलियों साजन को लेकर आपसी हँसी-मजाक करती हैं ।पहेलियों की मानिंद मुकरियों में भी एक विशेष अर्थ ध्वनित होता है।जिसमें मनोरंजन ,जिज्ञासा एवं कौतूहल का पुट स्वत: ही शामिल हो जाता है। मुकरी का शाब्दिक अर्थ है ——-बात को कहकर मुकर जाना । इसमें कुल चार चरण होते हैं ,पहले तीन चरण साजन//पति//प्रिय को व्यंग्य करते हुये कहे जाते हैं पर चौथा चरण विशेष संदर्भगत अर्थ प्रकट करता है संक्षेप रूप में कहें तो ..चौथे चरण तक आते ही सखी अपनी बात से मुकर जाती है ।जिससे हासोहीनी स्थिति उत्पन्न हो जाती है और पाठक /श्रोता ठगा सा रह जाता है ।ध्यातव्य है कि पहले तीन चरणों का संबंध चौथे चरण से भाव एवं शिल्प अनुसार सटीक होना चाहिये।इसमें दो-दो पंक्तियों में तुकांत का निर्वाह होता है।मुकरियों के जन्मदाता हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध आदिकालीन कवि अमीर खुसरो जी हैं जिनका समयकाल (3 मार्च 1253—27 सितम्बर 1335 माना जाता है। आपका जन्म एटा जिले के पटियाली गाँव में हुआ था।अमरी खुसरो का वास्तविक नाम अबुल हसन था,वे निजामुद्दीन औलिया के शीष्य थे।आपका साहित्य पहेलियों,मुकरियों,ढकोसले एवं दो सखुने आदि के रूप में प्राप्त होता है एवं यह साहित्य मनोरंजनात्मक प्रवृति का समर्थक है। उदाहरण—साहित्यकार अमीर खुसरो जी (1) ऊंची अटारी पलंग बिछायो मैं सोई मेरे सिर पर आयो खुल गई अखियाँ भयी आनंद ऐ सखि साजन? ना सखि चँद! (2) रात समय वह मेरे आवे भोर भये वह घर उठि जावे यह अचरज है सबसे न्यारा ऐ सखि साजन? ना सखि तारा! ******************************************** 2* रेखराज स्वामी (1) जब नयनों में वो रम जाता सबकी नजरों को है भाता कर देता है मन को पागल क्या सखि साजन ? ना सखि काजल!! (2) रोम रोम में बसा हुआ है मुझे नाम का नशा हुआ है उसे पुकारूँ सुबह- ओ- शाम क्या सखि साजन ? ना सखि राम!! (3) मधुर मधुर हैं जिसके बोल कानों में रस देता घोल सबका दिल भी लेता जीत क्या सखि साजन ? ना सखि गीत!! (4) आगे पीछे घूमे मेरे गालों को भी चूमे मेरेे मस्त बहुत नीयत ना खोटी क्या सखि साजन?ना सखि चोटी!! ******************************************* 3* मोनिका शारदा,अमृतसर (1) मधुर अदा से मुझे रिझाता, प्रेम से मुझको गले लगाता। इक पल जुदा न होने देता, क्या सखि साजन?ना सखि बेटा! (2) उसके बिना न चले यह जिंदगानी, हर दिन हो खुशनुमा और नूरानी। उसके बिना है जिंदगी वीरानी, क्या सखि साजन?ना सखी नौकरानी!! ******************************************** 4* अनीला पाहवा,जालन्धर पर पीड़ा को गले लगाता हृदय भार भी कम कर जाता सदा भिगोता मेरा तन मन क्या सखि साजन?ना सखि लेखन ******************************************** 5* डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर रात दिवस की नींद उड़ाता अखियों को बस वही लुभाता कभी पराया कभी है अपना क्या सखि साजन?ना सखि सपना (2) दुबला पतला सैर है करता नहीं किसी से वैर है रखता भाते उसको बहुत हैं आड़ू क्या सखि साजन?ना सखि झाड़ू!! ******************************************** 6*सुवर्णा पतरानी ,हैदराबाद (1) दूर हूँ उनसे पर जुदा नही तन्हा हूँ पर गुमशुदा नही सोचूँ तो हो मन में सिहर क्या सखि साजन?ना सखि पीहर ******************************************** 7* राजन,अमृतसर (1) जब जब आता वो मेरे पास तब तब ही जगती मन में आस उससे होता दिन शुरु हर बार क्या सखि साजन? ना सखि अखबार।। (2) हरदम करता मीठी बातें वो ना हो तपती है रातें उसके बिन ये साँसें कैसी क्या सखि साजन ? ना सखि ऐ. सी.।। ********************************************संकलित

1 टिप्पणी: