ठाकुर एक सम्मान सूचक शब्द है, ।
जो परम्परागतगत रूप में राजपूतों का विशेषण है
संस्कृत शब्दकोशों में इसे ठाकुर नहीं लिखा गया है, अपितु ठक्कुर लिखा है ।
,जो देव मूर्ति का पर्याय है। कुछ समय तक ब्राह्मणों के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता रहा है ,और आज भी गुजरात तथा पश्चिमीय बंगाल में है ।।
अनन्त संहिता में श्री दामनामा गोपाल: श्रीमान सुन्दर ठाकुर: का उपयोग भी किया गया है, जो भगवान कृष्ण के संदर्भ में है।
ये संस्कृत भाषा में प्राप्त मध्य कालीन विवरण हैं ।
ये संहिता बाद की है ।
इसलिए विष्णु के अवतार की देव मूर्ति को ठाकुर कहते हैं।
उच्च वर्ग के क्षत्रिय आदि की प्राकृत उपाधि ठाकुर भी इसी से निकली है।
किसी भी प्रसिद्ध व्यक्ति को ठाकुर या ठक्कुर कहा जा सकता है।
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इन्हीं विशेषताओं और सन्दर्भों के रहते भगवान कृष्ण के लिए भक्त ठाकुर जी सम्बोधन का उपयोग करते हैं।
विशेषकर श्री वल्लभाचार्य जी द्वारा स्थापित पुष्टिमार्गी संप्रदाय के अनुयायी भगवान कृष्ण के लिए ठाकुर जी संबोधन देते हैं।
इसी सम्प्रदाय ने उन्हें कृष्ण जी को ठाकुर का प्रथम सम्बोधन दिया ।
परन्तु कृष्ण को यादव सम्बोधन न देना केवल आभीर (गोप) जन-जाति को हेय सिद्ध करना ही था ।
यद्यपि पुराण कारों ने कृष्ण के लिए ठाकुर सम्बोधन कभी प्रयुक्त नहीं किया ।
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क्योंकि ठाकुर शब्द संस्कृत भाषा का नहीं अपितु ये तुर्की , ईरानी तथा आरमेनियन मूल का है ।
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पुराणों में तथा महाभारत के अन्तर्गत शान्ति - पर्व से उद्धृत श्रीमद्भगवद् गीता में भी कृष्ण को यादव ही कह कर सम्बोधित किया गया है , ठाकुर नहीं ।
देखें---
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सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति। अजानता महिमानं तवेदं मया प्रमादात्प्रणयेन वापि॥११- ४१॥
(श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय ११ श्लोक संख्या ४१)
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अर्थात् हे भगवन्, आप को केवल अपना मित्र ही मान कर, मैंने प्रमादवश अथवा प्रेम वश आपको जो यह हे कृष्ण, हे यादव, हे सखा (मित्र) - कह कर सम्बोधित किया, वह आप की महिमा को न जानते हुय ही हैे।
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पुष्टिमार्गीय सम्प्रदाय में श्रीनाथजी के विशेष विग्रह के साथ कृष्ण भक्ति की जाती है।
जिसे ठाकुर जी सम्बोधन दिया गया है ।
पुष्टिमार्गीय सम्प्रदाय का जन्म पन्द्रवीं सदी में हुआ है ।
परन्तु बारहवीं सदी में तक्वुर शब्द का प्रवेश तुर्कों के माध्यम से भारतीय धरा पर हुआ ।
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और ठाकुर शब्द तुर्कों और ईरानियों के साथ आया ।
ठाकुर जी सम्बोधन का प्रयोग वस्तुत : स्वामी भाव को व्यक्त करने के निमित्त है ।
न कि जन-जाति विशेष के लिए । कृष्ण को ठाकुर सम्बोधन का क्षेत्र अथवा केन्द्र
नाथद्वारा प्रमुखत: है।
यहां के मूल मन्दिर में कृष्ण की पूजा ठाकुर जी की पूजा ही कहलाती है।
यहाँ तक कि उनका मन्दिर भी हवेली कहा जाता है।
विदित हो कि हवेली (Mansion)और तक्वुर (ठक्कुर) दौनों शब्दों की पैदायश ईरानी भाषा से है ।
कालान्तरण में भारतीय समाज में ये शब्द रूढ़ हो गये ।
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पुष्टिमार्गीय सम्प्रदाय के देशभर में स्थित अन्य मन्दिरों में भी भगवान को ठाकुर जी कहने का परम्परा है।
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महानुभाव :-. ठाकुर शब्द संस्कृत भाषा के
स्थायुकरः का सहवर्ती रूप है ।
जिसका अर्थ है:-
(जिसने यायावर जीवन त्याग ,
कर स्थायित्व प्राप्त कर लिया है )
कालान्तरण में यही शब्द संस्कृत भाषा में "ग्राम के सरपञ्च" के अर्थ में रूढ़ हो गया है, ।
परन्तु स्थायुक: शब्द से विकसित यह शब्द ईरानी , आरमेनियन तथा तुर्की भाषा से आयात है ।
संस्कृत भाषा में तक्वुर (ठक्कुर) शब्द के जन्म सूत्र
तुर्की भाषा में ही प्राप्त हैं ।
" यादव योगेश कुमार 'रोहि' की जिस पर एक नवीनत्तम विवेचना प्रमाणों के दायरे में प्रथम वार ..
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ग्राम का प्रभुत्व निस्संदेह ब्राह्मण समाज के अधीन था ही । अतः उन्हें स्थायुक: कहना उचित था ।
संस्कृत भाषा में यह शब्द (स्था )धातु से उत्पन्न है |
यहीं से इस शब्द का इतिहास भी प्रारम्भ है
इस शब्द के सूत्र इण्डो-यूरोपीयन भाषा परिवार से सम्बद्ध हैं । और इसको संस्कृत भाषा में खोजना केवल रूढ़िवादी शौच ( विचार) ही है ।
तुर्किस्तान में (तेकुर अथवा टेक्फुर )परवर्ती सेल्जुक तुर्की राजाओं की उपाधि थी ।
यहाँ पर ही इसका जन्म हुआ ।
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समीप वर्ती उस्मान खलीफा के समय का उल्लेख है, कि जो तुर्की राजा स्वायत्त अथवा अर्द्ध स्वायत्त होते थे वे ही तक्वुर अथवा ठक्कुर कहलाते थे ।
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तब निस्संदेह इस्लाम धर्म का आगमन नहीं हो पाया था मध्य एशिया में ।
वहाँ सर्वत्र ईसाई विचार धारा ही प्रवाहित थी , केवल छोटे ईसाई राजा होते थे । ये स्थानीय बाइजेण्टाइन ईसाई सामन्त (knight) अथवा माण्डलिक ही होते थे तब तुर्की भाषा में इन्हें तक्वुर (ठक्कुर) ही कहा जाता था !
उस समय एशिया माइनर (तुर्की) और थ्रेस में ही इसका इस प्रकार की शासन प्रणाली होती थी।
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Tekfur was a title used in the late Seljuk and early Ottoman periods to refer to independent or semi-independent minor Christian rulers or local Byzantine governors in Asia Minor and Thrace.
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Origin and meaning - (व्युत्पत्ति- और अर्थ )
The Turkish name, Tekfur Saray, means "Palace of the Sovereign" from the Persian word meaning "Wearer of the Crown". It is the only well preserved example of Byzantine domestic architecture at Constantinople. The top story was a vast throne room. The facade was decorated with heraldic symbols of the Palaiologan Imperial dynasty and it was originally called the House of the Porphyrogennetos - which means "born in the Purple Chamber". It was built for Constantine, third son of Michael VIII and dates between 1261 and 1291.
____________""_
From Middle Armenian թագւոր (tʿagwor), from Old Armenian թագաւոր (tʿagawor).
Attested in Ibn Bibi's works......
(Classical Persian) /tækˈwuɾ/
(Iranian Persian) /tækˈvoɾ/
تکور • (takvor) (plural تکورا__ن_ हिन्दी उच्चारण ठक्कुरन) (takvorân) or تکورها (takvor-hâ))
alternative form of
Persian
in Dehkhoda Dictionary
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tafur on the Anglo-Norman On-Line Hub
Old Portuguese ( पुर्तगाल की भाषा)
Alternative forms (क्रमिक रूप )
taful
Etymology (शब्द निर्वचन)
From Arabic تَكْفُور (takfūr, “Armenian king”), from Middle Armenian թագւոր (tʿagwor, “king”), from Old Armenian թագաւոր (tʿagawor, “king”), from Parthian. ( एक ईरानी भाषा का भेद)
Cognate with Old Spanish tafur (Modern tahúr).
Pronunciation
: /ta.ˈfuɾ/
संज्ञा -
tafurm
gambler
13th century, attributed to Alfonso X of Castile, Cantigas de Santa Maria, E codex, cantiga 154 (facsimile):
Como un tafur tirou con hũa baeſta hũa seeta cõtra o ceo con ſanna p̈ q̇ pdera. p̃ q̃ cuidaua q̇ firia a deos o.ſ.M̃.
How a gambler shot, with a crossbow, a bolt at the sky, wrathful because he had lost. Because he wanted it to wound God or Holy Mary.
Derived terms
tafuraria ( तफ़ुरिया )
Descendants
Galician: tafur
Portuguese: taful Alternative forms
թագվոր (tʿagvor) हिन्दी उच्चारण :- टेगुर. बाँग्ला टैंगॉर रूप...
թագուոր (tʿaguor)
Etymology( व्युत्पत्ति)
From Old Armenian թագաւոր (tʿagawor).
Noun
թագւոր • (tʿagwor), genitive singular թագւորի(tʿagwori)
king
bridegroom (because he carries a crown during the wedding)
Derived terms
թագուորանալ(tʿaguoranal)
թագւորական(tʿagworakan)
թագւորացեղ(tʿagworacʿeł)
թագվորորդի(tʿagvorordi)
Descendants
Armenian: թագվոր (tʿagvor)
References
Łazaryan, Ṙ. S.; Avetisyan, H. M. (2009), “թագւոր”, in Miǰin hayereni baṙaran [Dictionary of Middle Armenian] (in Armenian), 2nd edition, Yerevan: University Press !
तेकफुर एक सेलेजुक के उत्तरार्ध में इस्तेमाल किया गया एक शीर्षक था। और ओटोमन (उस्मान)काल के प्रारम्भिक चरण या समय में स्वतंत्रता या अर्ध-स्वतंत्र नाबालिग (वयस्क)ईसाई शासकों या एशिया माइनर और थ्रेस में स्थानीय बायज़ान्टिन राज्यपालों का तक्वुर (ठक्कुर) रूप में उल्लेख किया गया था।
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उत्पत्ति और अर्थ - (व्युत्पत्ति- और अर्थ)
तुर्की नाम, टेकफुर सराय, "शाही के धारक" का अर्थ है "शासक के महल" का अर्थ है इसी फ़ारसी शब्द से है । यह कांस्टेंटिनोपल में बीजान्टिन घरेलू वास्तुकला का एकमात्र अच्छा संरक्षित उदाहरण है ।
शीर्ष कहानी -. एक विशाल सिंहासन कक्ष था मुखौटे (Palaiologan) इंपीरियल राजवंश के हेरलडीक प्रतीकों से जिसे सजाया गया था ।और इसे मूल रूप से पोरफिरोगनेनेट्स हाउस कहा जाता था - जिसका अर्थ है "बैंगनी चेंबर में पैदा हुआ"।
यह कॉन्सटेंटाइन, माइकल आठवीं का तीसरा पुत्र द्वारा और 1261 और 12 9 1 के बीच की तारीखों के लिए बनाया गया था।
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मध्य आर्मीनियाई թագւոր (t'agwor) से, पुरानी अर्मेनियाई թագաւոր (टी'गवायर) रूप से
इब्न बीबी के कामों में सत्यापित ...
(शास्त्रीय फ़ारसी) / त्केवुर /
(ईरानी फारसी) / टीएकेवोर/
تکور • (takvor) (बहुवचन تکورا__n_ हिन्दी उच्चारण थाकुरन) (takvorân) या تکورها (takvor-hâ)
का वैकल्पिक रूप
फ़ारसी
(Dehkhoda )शब्दकोश में
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एंग्लो-नोर्मन ऑन-लाइन हब पर तफ़ूर
पुरानी पुर्तगाली (पुर्तगाल की भाषा)
वैकल्पिक रूप (क्रमिक रूप)
taful
व्युत्पत्ति (शब्द निर्वचनता)
पार्थियन से ओल्ड आर्मेनियाई թագաւոր (टी'गवायर, "राजा") से, अरबी तक्कीफुर (takfur, "अर्मेनियाई राजा") से, मध्य अर्मेनियाई թագւոր (t'agwor, "राजा") से, (एक इरानी भाषा का हिस्सा)
पुरानी स्पैनिश तफ़ूर (आधुनिक तहुर) के साथ संज्ञानात्मक रूप -
उच्चारण
: /ta.fuɾ/
संज्ञा -
tafurm
(जुआरी )
13 वीं शताब्दी, कैस्टिले के अल्फोंसो एक्स को जिम्मेदार ठहराया गया इस अर्थ रूप के लिए , कैंटिगास डी सांता मारिया, ई कोडेक्स, कैंटिगा 154 (प्रतिकृति):
कोमो ओन तफ़ूर टिरू कॉ हन बाएस्टा हता सीटा कोटा ओ सीओ को साना पी क्यू यू पीडीआरए।
( p q cuidaua q̇ firia a deos o.s.M )
जुआरी ने एक क्रॉसबो के साथ आकाश में एक बोल्ट कैसे गोली मार दी, क्रोधी क्योंकि वह खो गया था अपना आपा।
क्योंकि वह चाहता था - कि वह भगवान या पवित्र मरियम को घायल कर दे।
तक्वुर शब्द के अर्थ व्यञ्जकता में एक अहंत्ता पूर्ण भाव ध्वनित है।
व्युत्पन्न शर्तों के अनुसार-
तफ़ूरिया (तफ़ूरिया)
वंशज
गैलिशियन: तफ़ूर
पुर्तगाली: सख्त वैकल्पिक रूप
թագվոր (t'agvor) हिन्दी: - टेगुँरु तथा बाँग्ला- टैंगोर रूप ...
թագուոր (t'aguor)
व्युत्पत्ति (व्युत्पत्ति)
ओल्ड आर्मीनियाई թագաւոր (टी'गवायर) से
संज्ञा ।
թագւոր • (t'agwor), यौतिक एकवचन शब्द (t'agwori)
राजा के अर्थ में।
दुल्हन (क्योंकि वह शादी के दौरान एक मुकुट पहना करता है)
व्युत्पन्न शर्तों से -
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թագուորանալ (t'aguoranal)
թագւորական (t'agworakan)
թագւորացեղ (t'agworac'eł)
թագվորորդի (t'agvorordi)
वंशज
अर्मेनियाई: թագվոր (t'agvor)
संदर्भ -----
लज़ारियन, Ṙ एस .; Avetisyan, एच.एम. (200 9), "üyühsur", में Miine hayereni baaran
[मध्य अर्मेनियाई के शब्दकोश] (अर्मेनियाई में), 2 संस्करण, येरेवन: विश्वविद्यालय प्रेस!
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टक्फुर (तक्वुर) शब्द एक तुर्की भाषा में रूढ़ माण्डलिक का विशेषण शब्द है.
जिसका अर्थ होता है " किसी विशेष स्थान अथवा मण्डल का मालिक अथवा स्वामी ।
तुर्की भाषा में भी यह ईरानी भाषा से आयात है ।
इसका जडे़ भी वहीं है ।
ईरानी संस्कृति में ताजपोशी जिसकी की जाती वही तेकुर अथवा टेक्फुर कहलाता था ।
" A person who wearer of the crown is called Takvor "
यह ताज केवल उचित प्रकार से संरक्षित होता था, केवल बाइजेण्टाइन गृह सम्बन्धित उदाहरण- के निमित्त विशेष अवसरों पर इसका प्रदर्शन भी होता था ।
पुरातात्विक साक्ष्यों ने ये प्रमाणित कर दिया गया है।
कि सिंहासन कक्ष एक उच्चाट्टालिका के रूप में होता था
राजा की मुखाकृति को शौर्य शास्त्रीय प्रतीकों द्वारा. सुसज्जित किया जाता था ।
शाही ( राजकीय) पुरालेखों में इस कक्ष को राजा के वंशज व्यक्तियों की धरोहरों से युक्त कर संरक्षित किया जाता था ।
और इसे पॉरफाइरो जेनेटॉस का कक्ष कह कर पुकारा जाता था ।
जिसका अर्थ होता है :- बैंगनी कक्ष से उत्पन्न "
इसे अनवरत रूप से माइकेल तृतीय के पुत्र द्वारा बन बाया गया ।
यद्यपि व्युत्पत्ति- की दृष्टि से तक्वुर शब्द अज्ञात है परन्तु आरमेनियन ,अरेबियन (अरब़ी) तथा हिब्रू तथा तुर्की आरमेनियन भाषाओं में ही यह प्रारम्भिक चरण में उपस्थिति है ।
जिसकी निकासी ईरानी भाषा से हुई ।
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आरमेनियन भाषा में यह
शब्द तैगॉर रूप में वर्णित है ।
जिसका अर्थ होता है :- ताज पहनने वाला ।
The origin of the title is uncertain. It has been suggested that it derives from the Byzantine imperial name Nikephoros, via Arabic Nikfor. It is sometimes also said that it derives from the Armenian taghavor, "crown-bearer".
The term and its variants (tekvur, tekur, tekir, etc.
( History of Asia Minor)📍
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Identityfied of This word with Sanskrit Word Thakkur "
It Etymological thesis Explored by Yadav Yogesh kumar Rohi -
began to be used by historians writing in Persian or Turkish in the 13th century, to refer to "denote Byzantine lords or governors of towns and fortresses in Anatolia (Bithynia, Pontus) and Thrace.
It often denoted Byzantine frontier warfare leaders, commanders of akritai, but also Byzantine princes and emperors themselves", e.g. in the case of the Tekfur Sarayı , the Turkish name of the Palace of the Porphyrogenitus in Constantino
(मॉद इस्तानबुल " के सन्दर्भों पर आधारित तथ्य )
Thus Ibn Bibi refers to the Armenian kings of Cilicia as tekvur,(ठक्कुर )while both he and the Dede Korkut epic refer to the rulers of the Empire of Trebizond as "tekvur of Djanit".
In the early Ottoman period, the term was used for both the Byzantine governors of fortresses and towns, with whom the Turks fought during the Ottoman expansion in northwestern Anatolia and in Thrace, but also for the Byzantine emperors themselves, interchangeably with malik ("king") and more rarely, fasiliyus (a rendering of the Byzantine title basileus).
Hasan Çolak suggests that this use was at least in part a deliberate choice to reflect current political realities and Byzantium's decline, which between
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1371–94 and again between 1424 and the Fall of Constantinople in 1453 made the rump Byzantine state a tributary vassal to the Ottomans. 15th-century Ottoman historian Enveri somewhat uniquely uses the term tekfur also for the Frankish rulers of southern Greece and the Aegean islands.
References--( सन्दर्भ तालिका )
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^ a b c d Savvides 2000, pp. 413–414.
^ a b Çolak 2014, p. 9.
^ Çolak 2014, pp. 13ff..
^ Çolak 2014, p. 19.
^ Çolak 2014, p. 14.
शीर्षक का मूल अनिश्चित है । यह सुझाव दिया गया है कि यह बीजान्टिन शाही नाम निकेफोरोस से निकला है, अरबी निकफो के माध्यम से यह
कभी-कभी यह भी कहा जाता है कि यह अर्मेनियाई तागवर, "मुकुट-धारक" से निकला है।
शब्द और इसके विकसित प्रकार (tekvur, tekur, tekir, आदि)
(एशिया माइनर का इतिहास) 📍
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संस्कृत शब्द ठाकुर के साथ इस शब्द की पहचान "
यादव योगेश कुमार रोही द्वारा खोजा गया उत्पत्ति सम्बन्धी थीसिस -
यह शब्द 13 वीं शताब्दी में फ़ारसी या तुर्की में लिख रहे इतिहासकारों द्वारा इस्तेमाल किया जाने लगा, जिसका अर्थ है "बीजान्टिन प्रभुओं या एनाटोलिया ( तुर्की) के बीथिनीया, पोंटस) और थ्रेस में कस्बों और किले के गवर्नरों (राजपालों )का निरूपण करना।
यह प्रायः बीजान्टिन सीमावर्ती युद्ध के नेताओं, अकराति के कमांडरों, लेकिन बीजान्टिन राजकुमारों और सम्राटों को स्वयं को भी निरूपित करता है ", उदाहरण के लिए, कॉन्स्टेंटिनो में पोर्कफिरोजनीटस के पैलेस के तुर्की नाम, टेक्फुर सरायि के मामले में
( देखें--- तुर्की लेखक "मोद इस्तानबूल "के सन्दर्भों पर आधारित तथ्य)
इस प्रकार इब्न बीबी ने सिल्किया के अर्मेनियाई राजाओं को टेक्विर के रूप में संदर्भित किया है,
(थक्कुर) जबकि वे दोनों और डेड कॉर्कुट महाकाव्य ट्रेबिज़ंड के साम्राज्य के शासकों को "डीजित के टेक्क्वुर" के रूप में कहते हैं।
शुरुआती तुर्क की अवधि में, इस किले का इस्तेमाल किलों और कस्बों के दोनों राज्यों के लिए किया गया था, जिनके साथ तुर्क ने उत्तर-पश्चिम अनातोलिया और थ्रेस में तुर्क साम्राज्य के दौरान संघर्ष किया था, लेकिन साथ ही बीजान्टिन सम्राटों के लिए खुद भी, मलिक ("राजा ") और शायद ही कभी, फासीलीयस (बीजान्टिन शीर्षक बेसिलियस का प्रतिपादन किया गया हो )
हसन Çolak का सुझाव है कि इस उपयोग में कम से कम हिस्सा था एक वर्तमान चुनाव में वर्तमान राजनैतिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने और बीजान्टियम की गिरावट, जो बीच में
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1371-94 और फिर 1424 के बीच और 1453 में कॉन्सटिनटिनोप के पतन ने ओट्टोमन्स के लिए एक दमन बीजान्टिन राज्य को एक सहायक नदी बना दिया गया।
15 वीं शताब्दी के तुर्क इतिहासकार एनवेरी कुछ विशिष्ट रूप से दक्षिणी ग्रीस के फ्रैन्शिश शासकों और एजियन द्वीपों के लिए भी तकनीकी रूप से इस शब्द का उपयोग करते हैं।
संदर्भ - (संदर्भ खंड)
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^ ए बी सी डी साविवेड्स 2000, पीपी। 413-414
^ ए बी Çolak 2014, पी। 9।
^ Çolak 2014, पीपी 13ff ..
^ Çolak 2014, पी। 19।
^ Çolak 2014, पी। 14।
शीर्षक का मूल अनिश्चित है ।
यह सुझाव दिया गया है कि यह बीजान्टिन शाही नाम निकेफोरोस से निकला है, अरबी निकफो के माध्यम से, और कभी-कभी यह भी कहा जाता है कि यह अर्मेनियाई तागावर, "मुकुट-धारक" के अर्थ से निकला है।
शब्द और इसके प्रकार (tekvur, tekur, tekir, आदि)
(एशिया माइनर का इतिहास) 📍
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सातवीं से बारहवीं सदी के बीच में मध्य एशिया से तुर्कों की कई शाखाएँ यहाँ आकर बसीं। इससे पहले यहाँ से पश्चिम में आर्य (यवन, हेलेनिक) और पूर्व में कॉकेशियाइ जातियों का पढ़ाब रहा था।
तुर्की में ईसा के लगभग ७५०० वर्ष पहले मानवीय आवास के प्रमाण मिले हैं।
हिट्टी साम्राज्य की स्थापना (१९००-१३००) ईसा पूर्व में हुई थी।
ये भारोपीय वर्ग की भाषा बोलते थे ।
१२५० ईस्वी पूर्व ट्रॉय की लड़ाई में यवनों (ग्रीक) ने ट्रॉय शहर को नेस्तनाबूद (नष्ट) कर दिया और आसपास के क्षेत्रों पर अपना नियन्त्रण स्थापित कर लिया।
१२०० ईसापूर्व से तटीय क्षेत्रों में यवनों का आगमन आरम्भ हो गया।
छठी सदी ईसापूर्व में फ़ारस के शाह साईरस (कुरुष) ने अनातोलिया पर अपना अधिकार कर लिया।
इसके करीब २०० वर्षों के पश्चात ३३४ ई० पूर्व में सिकन्दर ने फ़ारसियों को हराकर इस पर अपना अधिकार किया।
ठक्कुर अथवा ठाकुर शब्द का इतिहास भारतीय संस्कृति में यहीं से प्रारम्भ होकर आज तक है ।
कालान्तरण में सिकन्दर अफ़गानिस्तान होते हुए भारत तक पहुंच गया था।
तब तुर्की और ईरानी सामन्त तक्वुर उपाधि( title)
लगाने लग गये थे ।
यहीं से भारतीय राजपूतों ने इसे ग्रहण किया ।
ईसापूर्व १३० ईसवी सन् में अनातोलिया (एशिया माइनर अथवा तुर्की ) रोमन साम्राज्य का अंग बन गया था ।
ईसा के पचास वर्ष बाद सन्त पॉल ने ईसाई धर्म का प्रचार किया और सन ३१३ में रोमन साम्राज्य ने ईसाई धर्म को अपना लिया।
इसके कुछ वर्षों के अन्दर ही कान्स्टेंटाईन साम्राज्य का अलगाव हुआ और कान्स्टेंटिनोपल इसकी राजधनी बनाई गई।
सन्त शब्द भारोपीय मूल से सम्बद्ध है ।
यूरोपीय भाषा परिवार में विद्यमान (Saint) इसका प्रति रूप है ।
रोमन इतिहास में सन्त की उपाधि उस मिसनरी missionary' को दी जाती है । जिसने कोई आध्यात्मिक चमत्कार कर दिया हो ।
छठी सदी में बिजेन्टाईन साम्राज्य अपने चरम पर था पर १०० वर्षों के भीतर मुस्लिम अरबों ने इस पर अपना अधिकार जमा लिया।
बारहवी सदी में धर्मयुद्धों में फंसे रहने के बाद बिजेन्टाईन साम्राज्य का पतन आरम्भ हो गया।
सन् १२८८ में ऑटोमन साम्राज्य का उदय हुआ ,और सन् १४५३ में कस्तुनतुनिया का पतन।
इस घटना ने यूरोप में पुनर्जागरण लाने में अपना महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
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वर्तमान तुर्क पहले यूराल और अल्ताई पर्वतों के बीच बसे हुए थे।
जलवायु के बिगड़ने तथा अन्य कारणों से ये लोग आसपास के क्षेत्रों में चले गए।
लगभग एक हजार वर्ष पूर्व वे लोग एशिया माइनर में बसे।
नौंवी सदी में ओगुज़ तुर्कों की एक शाखा कैस्पियन सागर के पूर्व बसी और धीरे-धीरे ईरानी संस्कृति को अपनाती गई।
ये सल्जूक़ तुर्क ही जिनकी उपाधि title तेगॉर थी
और ईरानियों में भी तेगुँर उपाधि प्रचलित थी )
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इसके साथ ही कैस्पियन सागर के पश्चिम में वे मध्य तुर्की के कोन्या में स्थापित हो गए।
( सन् 1071) में उन लोगों ने बिजेंटाइनों को परास्त कर एशिया माइनर पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया।
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मध्य टर्की में कोन्या को राजधानी बनाकर उन्होंने इस्लामी संस्कृति को अपनाया।
ये लगभग ग्यारह वीं सदी की घटना है ।
इससे पहले तुर्क ईरानी असुर आर्यों की संस्कृति के अनुयायी थे । ईरानी भाषा में असुर शब्द अहुर हो गया असुर का अर्थ असु राति इति असुर: कथ्यते अर्थात् जो असु जीवन अथवा प्राण दे का है ,वह असुर है ।
असीरियन संस्कृति असुरों से सम्बद्ध थी ।
वैदिक सन्दर्भों में ..
यदु और तुर्वसु को साथ-साथ वर्णित किया हैं ।
देखें---ऋग्वेद का दशम् मण्डल का ६२वें सूक्त की १० वीं ऋचा :---
" उत् दासा परिविषे स्मद्दिष्टी
गोपरीणसा यदुस्तुर्वश्च च मामहे ।।१०/६२/१०ऋग्वेद।
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असुर अथवा दास ईरानी आर्यों से सम्बद्ध थे ।
आज भी दौनों शब्दों का उच्च अर्थ विद्यमान है ।
अहुर मज्दा और दय्यु तथा दाहे रूप में --
और दएव (देव) शब्द का अर्थ पश्तो तथा ईरानी भाषा में दुष्ट अथवा धूर्त है ।
पुराणों में यदु और तुर्वसु को शूद्र ही वर्णित किया है ।
तुर्वसु ने तुर्किस्तान को आबाद किया ।
तुर्कों ने ईरानी संस्कृति के अपनाया अब
हिब्रू बाइबिल के सृष्टि-खण्ड Genesis में यहूदीयों के पूर्व-पिता यहुदह् तथा तुरबजु का वर्णन है ।
हिब्रू लेखक आब्दी - हाइबा के एक पत्र से उद्धृत अंश
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देखें---, तुर्जाजु को मार दिया गया है
जिला के द्वार में, फिर भी राजा स्वयं को वापस ले लेता है
देखिए, लकिसी के ज़िम्रिडा - नौकर,
जो हबीरु के साथ जुड़ गए हैं, ने उसे मारा है।
(अब्दी-हाइबा के पत्र, यरूशलेम के राजा के पास
फिरौन - एल अमरना पत्र को बताएँ - नंबर 4)...
See, Turazuju has been killed
In the gate of the district, the king still withdraws himself
Look, Lizzie's Zimrida - Servant,
Who has joined Habiru, has killed him.
(Letters from Abdi-Haiba, near the King of Jerusalem
Pharaoh - Tell El Ararna Letter - Number 4)...
तथा तुर्बाजु (फिलीस्तीन कबीले) का नाम तुवरजु (इंडो-हिब्रू जनजाति) भारतीय वेदों में वर्णित तुर्वसु के वंशज ।
And Turbabu (Palestinian tribe) name Tuvarju (Indo-Hebrew tribe) descendants of Tervasa described in the Indian Vedas.
प्राचीन होने से कथाओं में मान्यताओं के
व्यतिक्रम से भेद भी सम्भव है , और यह हुआ भी
अतः इतिहास के चिन्ह ही शेष रह गये हैं ।
मध्य टर्की के कन्या से सम्बद्ध साम्राज्य को 'रुम सल्तनत' भी कहते रहे हैं ।
क्योकि इस इलाके़ में पहले इस्तांबुल के रोमन शासकों का अधिकार था ।
जिसके नाम पर इस इलाक़े को जलालुद्दीन ने रुमी ही कहा था ।
यह वही समय था , जब तुर्की के मध्य (और धीरे-धीरे उत्तर) भाग में ईसाई रोमनों (और ग्रीकों) का प्रभाव घटता जा रहा था ।
इसी क्रम में यूरोपीयों का उनके पवित्र ईसाई भूमि, अर्थात् येरुशलम और आसपास के क्षेत्रों से सम्पर्क टूट गया - क्योकि अब यहाँ ईसाइयों के बदले मुस्लिम शासकों का राज हो गया था।
अपने ईसाई तीर्थ स्थानों की यात्रा का मार्ग सुनिश्चित करने और कई अन्य कारणों की वजह से यूरोप में पोप ने धर्म युद्धों का आह्वान किया।
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यूरोप से आए धर्म योद्धाओं ने यहाँ पूर्वी तुर्की पर अधिकार बनाए रखा पर पश्चिमी भाग में सल्जूक़ों का साम्राज्य बना रहा ये सेल्जुक तक्वुर सामन्त (knight)
होते थे ।
लेकिन इनके दरबार में फ़ारसी (ईरानी) भाषा और संस्कृति को बहुत महत्व दिया गया।
अपने समानान्तर के पूर्वी सम्राटों, गज़नी के शासकों की तरह, इन्होंने भी तुर्क शासन में फ़ारसी भाषा को दरबार की भाषा बनाया।
सल्जूक़ दरबार में ही सबसे बड़े सूफ़ी कवि रूमी (जन्म 1215) को आश्रय मिला और उस दौरान लिखी शाइरी को सूफ़ीवाद की श्रेष्ठ रचना माना जाता है।
सन् 1220 के दशक से मंगोलों ने अपना ध्यान इधर की तरफ़ लगाया।
कई मंगोलों के आक्रमण से उनके संगठन को बहुत क्षति पहुँची और 1243 में साम्राज्य को मंगोलों ने जीत लिया।
यद्यपि इसके शासक 1308 तक शासन करते रहे पर साम्राज्य बिखर गया।
ये शासक अपने लिए तक्वुर (ठक्कुर) उपाधि ही लगाते थे । अतः हिन्दू शब्द के समान ठाकुर शब्द भी फारसी मूल का है ।
इसी शब्द के वंशज शब्दों को भी देखें---
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Surname (STEGER)
SOURCE: indo- European language family
USAGE: German & sanskrit
PRONOUNCED: SHTEGER
OTHER FORMS: Steiger, Stöger, Stieger, Stoger ...
अर्थात् जर्मनिक जन-जातियाँ में
स्तेगर ,स्तॉगर तथा स्तीगर रूप में यह शब्द है ।
Means "head miner" or "overman" from the German verb "steigen" meaning "to climb" or in this case "to lead a climb".
और रूसी परिवार की लिथुअनियन भाषा में -सटोजस जर्मन भाषा (स्टाल) गौथिक- स्टैंडन
स्थगित: --- हिंदी रूप लगना, आच्छाच्छा करना आदि
Stig (भी वर्तनी Stieg): --- एक आम मर्दाना स्कैंडिनेवियाई दिया नाम है। इसका नाम डेनिश मूल (पुराने पश्चिम नॉर्सः स्ट्रिड) है और शब्द स्गागा से निकला है, जिसका अर्थ है "भटक्या"। संस्कृत रूप वेंड: - गमने भ्रमने च,
घूमना यात्रा करना आदि।
मूल रूप से एक उपनाम, यह बाद में एक दिया नाम बन गया।
Stickan और Stikkan उपनाम Stig से प्राप्त ....
संस्कृत भाषा में प्रचलित शब्द स्थलीय: और वास्तविक
जर्मनिक भाषाओं में इसका अर्थ भी वही है ,जो ईरानी असुर संस्कृति के उपासक आर्यों की भाषा में है ।
तुर्की भाषा में मंगोल ईश्वरीय सत्ता अथवा स्वर्ग को टैंगुर
कहते हैं :- *
जिसका मूल तुर्की शब्द तक्वुर ही है ।
"Tengri also means "God" or "Heaven" in Mongolian." क्रियात्मक रूप में इसका अर्थ है ।
मञ्च पर चढ़कर नैतृत्व करना !
इस शब्द का प्रयोग समाज के मार्ग - दर्शक के अर्थ में ही रूढ़ था ।
भारतीय आर्यों का सम्बन्ध पूर्ण रूपेण जर्मनिक आर्यों और ईरानी असुर संस्कृति के आर्यों से भी रहा है , क्योंकि विदेशी आक्रमणों के क्रम में ईरानी प्रथम हैं ।
जिन्हें भारतीय पुराणों में असुर कह कर कोसा गया है ये तो ईरानी आर्यों के धर्म-ग्रन्थ
अवेस्ता ए झन्द से सिद्ध है ।
देव सूची भी समान है और भाषाओं में भी साम्य है ।
यद्यपि देव संस्कृति के उपासक आर्यों का आगमन ईरानी आर्यों से भी पूर्व ई०पू० १५०० तक रहा यह क्रम ई०पू० २५०० से प्रारम्भ होता है ।
संस्कृत ठक्कुर: का पूर्व रूप स्थायुक: तथा स्थायुकर: है
देखें--- एक विवेचना :--
कहीं कहीं त्साकुर शब्द भी रूसी भाषाओं में विद्यमान है ।
ये लोग रूसी ईरानी क्षेत्र दाहिस्तान (Dagestan)
में आबाद रहे हैं । यह रूस का उत्तरी अजरवेज़ान और दक्षिणीय दाहिस्तान है ।
दास जन-जाति का आवास होने से यह दाहिस्तान है ।
गुलाम अर्थ तो भारतीय संस्कृति में बहुत बाद में रूढ़ हुआ । इसी दास शब्द के समानान्तर दष्यु तथा दक्ष भी रहे हैं ।
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The Tsakhur (or Caxur) (Russian: цахурский) people are an ethnic group of northern Azerbaijan and southern Dagestan (Russia). They number about 30,000 and call themselves yiqy (pl. yiqby), but are generally known by the name Tsakhur, which derives from the name of a Dagestani village, where they make up the majority.
History
Tsakhurs are first mentioned in the 7th-century Armenian and Georgian sources where they are named Tsakhaik. After the conquest of Caucasian Albania by the Arabs, Tsakhurs formed a semi-independent state (later a sultanate) of Tsuketi and southwestern Dagestan. By the 11th century, Tsakhurs who had mostly been Christian, converted to Islam. From the 15th century some began moving south across the mountains to what is now the Zaqatala District of Azerbaijan. In the 18th century the capital of the state moved south from Tsakhur in Dagestan to İlisu and came to be called the Elisu Sultanate. West of the Sultanate Tsakhurs formed the Djaro-Belokani free communities. The sultanate was in the sphere of influence of the Shaki Khanate. It became part of the Russian Empire by the beginning of the 19th century.
Geography
Tsakhurs live in Azerbaijan's Zaqatala region, where they make up 14% of the population, and in Gakh, where they constitute less than 2%. In Dagestan, they live in the mountainous parts of the Rutulsky district. According to Wolfgang Schulze, there are 9 villages in Azerbaijan, where Tsakhurs make up the majority of the population, all of them in Zaqatala. 13 more villages in Zaqatala and Gakh have a significant Tsakhur minority.[3]
Language ---( भाषा )
Most Tsakhurs speak the Tsakhur language as their native language. The rate of bilingualism in Tsakhur and Azeri is high. Other languages popular among Tsakhurs include Russian and Lezgian.
References
Russian Census 2010: Population by ethnicity (in Russian)
State statistics committee of Ukraine - National composition of population, 2001 census (Ukrainian)
The Sociolinguistic Situation of the Tsakhur in Azerbaijan by John M. Clifton et al. SIL International, 2005
External links
http://geo.ya.com/travelimages/az-tsakhur.html
Shakasana (site maintained by Tsakhur about their language, culture, history, et.c
Tsakhur (also spelled Tsaxur or Caxur ; Azerbaijani : Saxur dili ; Russian : Цахурский , Tsakhurskiy) is a language spoken by the Tsakhurs in northern Azerbaijan and southwestern Dagestan ( Russia ). It is spoken by about...
हिन्दी भाषा में अनुवाद निम्न देखें---
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उपनाम (STEGER)
स्रोत: इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार
उपयोग: जर्मन और संस्कृत
प्रशंसा की गई: SHTEGER
अन्य रूप :--- स्टीगर, स्टॉगर, स्टीजर, स्टॉगर ...
अर्थात् जर्मनिक जन-जातिओं में
स्टेगर, स्टॉगर और स्तिगर रूप में यह शब्द है
जर्मन शब्द "स्टीगें" से " खान में काम करनेवाले" या "अतिप्रवाह" का अर्थ है "चढ़ाई करने के लिए" या इस मामले में "एक चढ़ाई का नेतृत्व करने के लिए"
जर्मनिक भाषाओं में इसका अर्थ भी वही है जो इरानी असुर संस्कृति का उपासक आर्यों की भाषा में है
तुर्की भाषा में मंगोल ईश्वरीय सत्ता या स्वर्ग को टैंगूर
कहते हैं: - *
जिसका मूल तुर्की शब्द तक्खुर ही है।
"टेंगरी का भी मतलब मंगोलियाई में" भगवान "या" स्वर्ग "है।" क्रियात्मक रूप में इसका अर्थ है
मञ्च पर चढ़कर राजनैतिकता का संञ्चालन करना!
इस शब्द का प्रयोग समाज के पथ-दर्शक के अर्थ में ही रूढ़ा था
भारतीय आर्यों का सम्बन्ध पूरी तरह से जर्मनिक आर्यों और ईरानी असुर संस्कृति के आर्यों से भी रहा है, क्योंकि विदेशी आक्रमणों के क्रम में इरानी पहले हैं
जिनके ग्रन्थ भी ईरानी आर्यों का धर्म-ग्रन्थ के समान थे ।
यह तथ्य अवेस्ता ए झांद से सिद्ध हैं।
देव सूची में भी समान है और भाषाओं में भी समानता है
यद्यपि देव संस्कृति के उपासक आर्यों का आगमन ईरानी आर्यों से भी पूर्व ई 0 पू। 1500 तक रहा, यह क्रम ई 0 पू 0 2500 से प्रारंभ करना होता है।
संस्कृत थाक्कुर: का पूर्व रूप स्थायुकः और स्थायक: है
देखें --- एक विवेचना: -
कहीं भी त्सेकुर शब्द भी रूसी भाषा में मौजूद है
ये लोग रूसी ईरानी क्षेत्र दाहिस्तान (डागेस्टान)
में आबाद हो रहे थे , और इनके वंशज आज भी हैं । यह रूस का उत्तर अज़रवेज़न और दक्षिणी दहिस्तान है।
दास जन-जाति का आवास होने से यह दहिस्तान है।
गुलाम अर्थ तो भारतीय संस्कृति में बहुत बाद में रूढ़ हुआ । इसी दास शब्द के समानांतर दश्यु और दक्ष (कुशल ) शब्द भी हैं
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सेखुर (या कक्सूर) (रूसी: цахурский) ये लोग उत्तरी अजरबेजान और दक्षिणी दागेस्टान (रूस) के एक जातीय समूह हैं।
वे 30,000 के बारे में हैं और खुद को यिक़ी
(प्लयिक्वे) कहते हैं, लेकिन आम तौर पर नाम से जाना जाता है, सखुर, जो एक डागेस्टानी गांव के नाम से प्राप्त होता है, जहां वे बहुमत को बनाते हैं।
इतिहास -----
7 वीं शताब्दी के आर्मीनियाई और जॉर्जियाई स्रोतों में इनका सबसे पहले उल्लेख किया गया है । जहाँ उनका नाम तशाखिक है। अरबों द्वारा कोकेशियान अल्बानिया की विजय के बाद, तख्खुर ने एक अर्ध-स्वतंत्र राज्य (बाद में एक सल्तनत) का गठन किया । जो सुकुती और दक्षिण-पश्चिमी डागेस्टेन था।
इन पश्चिमीय एशिया तथा एशिया माइनर( तुर्की)
में आबाद दास( दाहे) के सुल्तानों तथा छोटे राजाओं को भी तक्वुर कहा जाता था ।
11 वीं शताब्दी तक, जो ज्यादातर ईसाई थे, वे इस्लाम में परिवर्तित हुए। 15 वीं शताब्दी से कुछ लोग दक्षिण की ओर पहाड़ के पार चले गए, जो अब अज़रबैजान के जक्कताला जिले हैं। 18 वीं शताब्दी में राज्य की राजधानी दगटेस्तान से लेकर इलिसु तक सखुर से दक्षिण चले गए और इसे एलिसू सल्तनत कहा जाने लगा। सल्तनत सख्खुस के पश्चिम ने डर्जो-बलोकोनी मुक्त समुदायों का गठन किया। सल्तनत शाकी खानते के प्रभाव के क्षेत्र में था। यह 1 9वीं शताब्दी की शुरुआत से रूसी साम्राज्य का हिस्सा बन गया।
भूगोल
Tsakhurs अज़रबैजान के जकातला क्षेत्र में रहते हैं, जहां वे 14% आबादी बनाते हैं, और गख में, जहां वे 2% से कम का गठन करते हैं। दगेस्टान में, वे रूटलस्की जिले के पहाड़ी इलाकों में रहते हैं। वोल्फगैंग स्कुलज़ के मुताबिक, अजरबैजान के 9 गांव हैं, जहां सैकुरस जनसंख्या में अधिकतर हैं, उनमें से सभी जक्कलला में हैं। जकातला और गख के 13 और गांव में एक महत्वपूर्ण सैकुर अल्पसंख्यक हैं। [3]
भाषा --- (भाषा)
सबसे अधिक (Tsakhurs )अपनी मूल भाषा के रूप में सखुर भाषा बोलते हैं। सेखुर और अजेरी में द्विभाषावाद की दर उच्च है साख़ख़्स में लोकप्रिय अन्य भाषाएं रूसी और लेज़िअन में शामिल हैं
संदर्भ
रूसी जनगणना 2010: जातीयता द्वारा जनसंख्या (रूसी में)
यूक्रेन की राज्य सांख्यिकी समिति - आबादी की राष्ट्रीय रचना, 2001 की जनगणना (यूक्रेनी)
जॉन एम। क्लिफटन एट अल द्वारा अज़रबैजान में सखाखोरी की सामाजिक आबादी की स्थिति एसआईएल इंटरनेशनल, 2005
बाहरी कड़ियाँ
http://geo.ya.com/travelimages/az-tsakhur.html
शकना (साइट को उनकी भाषा, संस्कृति, इतिहास, एट
सेखुर (अस्ज़ानी: सक्षुर डीली; रूसी: Цахурский, सेखुरस्की) एक भाषा है जो उत्तरी अज़रबैजान और दक्षिण-पश्चिमी डैगेस्टान (रूस) में तख्खुर द्वारा बोली जाने वाली एक भाषा है। इसके बारे में बात की जाती है ...
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दाहिस्तान (Dagestan) वस्तुत: दासों का स्थान था । जो ईरानी असुर संस्कृति के उपासक आर्यों से सम्बद्ध थे । यदु और तुर्वसु इसके प्रबल उदाहरण- हैं ।
संस्कृत में वाचस्पत्यम् कोश में तक्वुर मूलक स्थायुक: शब्द की आनुमानिक रूप व्युत्पत्ति- करने की चेष्टा की गयी है ।
और संस्कृत में भट्टि काव्य का सन्दर्भ भी दिया है ।
जिसका एक अवलोकन दृष्टव्य है।
(स्थायुकर शब्द)एक विश्लेषण:
(स्थातुं शीलमस्य । स्था + “ लसपतपदेति । “ ३ । २ । १५४ । इति उकञ् । ) एकग्रामाधिकृतः एकस्मिन् ग्रामे नियोजितः ।
इत्यमरः कोश २ । ८ । ७ ॥
(स्थितिशीले त्रि । यथा भट्टिः । २ । २२ । “ आयोधने स्थायुकमस्त्रजातममोघमभ्यंर्णमहाहवाय । ददौ वधाय क्षणदाचराणां तस्मै मुनिः श्रेयसि जागरूकः
देवता । ठाकुर इति ख्यातः । यथा “श्रीदामनामगोपालः श्रीमान् सुन्दरटक्कुरः ।। ” इत्यनन्तसंहिता इति ब्राह्मणानाम् उपाधय: --
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ठक्कुर:
देवपतिमायां, २ द्विजोपाधिभेदे च । यथा गोविन्द- ठक्कुरः काव्यप्रदीपकर्त्ता । ३ देवतायाञ्च । “सुदामा नाम गोपालः श्रीमान् सुन्दरठक्वुरः” अनन्तसंहिता । इति वाचस्पत्ये ठकारादिशब्दार्थसङ्कलनम् ।
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ठक्कुर: रूप ही ठाकुर में अवतरित होकर
ग्राम पुरोहितों का वाचक हुआ , यह स्थायुकर: शब्द ।
बाँग्ला देश में आज भी टेंगौर शब्द के रूप में केवल ब्राह्मणों का वाचक है ।
गुजरात में भी ठाकुर ब्राह्मण समाज की उपाधि है ।
यद्यपि ठाकरे शब्द महाराष्ट्र के कायस्थों का वाचक है, जिनके पूर्वजों ने कभी मगध अर्थात् वर्तमान विहार से ही प्रस्थान किया था ।
कायस्थों का कुछ साम्य यादवों के मराठी जाधव कबींले से है । जो जादव तथा जादौन के रूप में है ।
यद्यपि इस ठाकुर शब्द का साम्य तमिल शब्द (तेगुँर )से भी प्रस्तावित हैै ।
तमिल की एक बलूच शाखा है बलूच ईरानी और मंगोलों के सानिध्य में भी रहे है । जो वर्तमान बलूचिस्तान की ब्राहुई भाषा है ।
संस्कृत स्था धातु का सम्बन्ध भारोपीयमूल के स्था (Sta )धातु से है ।
संस्कृत भाषा में इस धातु प्रयोग --प्रथम पुरुष एक वचन का रूप तिष्ठति है ,
तथा ईरानी असुर संस्कृति के उपासक आर्यों की भाषा में हिस्तेति तथा ग्रीक भाषा में हिष्टेमि ( Histemi ) लैटिन -Sistere ।
तथा रूसी परिवार की लिथुअॉनियन भाषा में -Stojus जर्मन भाषा (Stall) गॉथिक- Standan ।
स्थग् :--- हिन्दी रूप ढ़कना, आच्छादित करना आदि
Stig (also spelled Stieg) :--- is a common masculine Scandinavian given name. The name has Danish origins (Old West Norse: Stígr) and derives from the word stiga, meaning "wanderer". संस्कृत रूप वण्ड् :- गमने भ्रमणे च ,
घूमना भ्रमण करना आदि ।
Originally a nickname, it later became a given name.
The nicknames Stickan and Stikkan derive from Stig....
संस्कृत भाषा में प्रचलित शब्द स्थविर: तथा स्थावर:
स्था (तिष्ठ) धातु से ही सम्बद्ध हैं ।
संस्कृत में स्थावर का एक अर्थ :--चलायमान अथवा गतिशील भी है ।
स्थावर: अथवा स्थविर: शब्द समाज के मार्ग दर्शक व उसके लिए नियम आचार-विचार बनाने वाले व्यक्ति के लिए रूढ़ थे ।
भाषा में विकास एक सतत क्रिया है , मनुष्यों की मनोवृत्ति एवम् जल-वायु का प्रभाव इसके परिवर्तन के कारण हैं।
भारोपीय मूल के थ्यॉरी शब्द का अवलोकन भी करलें
जाे स्था धातु से सम्बद्ध है । :-
stair (n.)
Old English stæger "stair, flight of steps, staircase," from Proto-Germanic *staigri (source also of Middle Dutch stegher, Dutch steiger "a stair, step, quay, pier, scaffold;" German Steig "path," Old English stig "narrow path"), from PIE *steigh- "go, rise, stride, step, walk" (source also of Greek steikhein "to go, march in order," stikhos "row, line, rank, verse;" Sanskrit stighnoti "mounts, rises, steps;" Old Church Slavonic stignati "to overtake," stigna "place;" Lithuanian staiga "suddenly;" Old Irish tiagaim "I walk;" Welsh taith "going, walk, way"). Originally also a collective plural; stairs
-------sty ( स्था )---------
"pen for pigs," Old English sti, stig "hall, pen" (as in sti-fearh "sty-pig"), from Proto-Germanic *stijan (source also of Old Norse stia "sty, kennel," Danish sti, Swedish stia "pen for swine, sheep, goats, etc.," Old High German stiga "pen for small cattle"). Meaning "filthy hovel" is from .
sty (n.2):--संज्ञा रूप
"inflamed swelling in the eyelid," 1610s, probably a back-formation from Middle English styany (as though sty on eye), mid-15c., from Old English stigend "sty," literally "riser," from present participle of stigan "go up, rise," from Proto-Germanic *stigan, from PIE root *steigh- "to stride, step, rise" (see stair).
sty :----क्रिया रूप
"go up, ascend" (obsolete), Old English stigan (past tense stah, past participle stigun, common Germanic (Old Norse, Old Frisian stiga, Middle Dutch stighen, Old Saxon, Old High German stigan, German steigen, Gothic steigan), from PIE root *(steigh- "go, rise, stride, step, walk)
" अनुवाद निम्न देखें---सीढ़ी (एन।)
पुरानी अंग्रेज़ी सीढ़ी, "स्टेयर, स्टेप्स की उड़ान, सीढ़ी", प्रोटो-जर्मनिक * स्टैग्री से (मध्य डच स्टीगर के स्रोत, डच स्टीगर "एक सीढ़ी, कदम, घाट, घाट, पाड़;" जर्मन स्टीग "पथ," पुरानी अंग्रेज़ी पीआईई * स्टीघ - "जाओ, उदय, प्रगति, कदम, चलना"
(ग्रीक स्टीकहेन का स्रोत भी जाने के लिए, क्रम में मार्च, "स्टाइज़ोस" पंक्ति, रेखा, रैंक, कविता,
"संस्कृत स्टिघ्नोटी "माउंट, उगता है, कदम;" पुराना चर्च स्लावोनिक स्नेग्नाटी
"आगे निकल जाने के लिए," स्टिग्ना "स्थान," लिथुआनियाई स्टेगा "अचानक," पुरानी आइरिश तिगैम "मैं चल रहा हूं," वेल्श ताथ "चलना, चलना, रास्ता")। मूल रूप से एक सामूहिक बहुवचन भी; सीढ़ियों
------- स्टाई (स्था) ---------
"सूअरों के लिए कलम," पुरानी अंग्रेज़ी स्ति, स्टिग "हॉल, पेन" (जैसा कि स्टी-डरह में "स्टे-डुब" के रूप में), प्रोटो-जर्निनिक * स्टिजेन (पुराने नॉर्स स्तिया के स्रोत भी "स्टाइल, केनेल," डेनमार्क एसटीआई , स्वीडिश स्तिया "सूअर, पेन, बकरी, आदि के लिए कलम" पुरानी उच्च जर्मन स्तिगा "छोटे मवेशियों के लिए पेन")।
अर्थ "गंदा होल" से है
sty (n.2): - संज्ञा रूप
"पलक में सूजन सूज," 1610s, शायद मध्य अंग्रेजी स्ट्यानी (आंखों पर नुकीला, हालांकि आंखों पर नुकीला), मध्य 15 सी।
से एक बैक-फॉर्मेशन, पुरानी अंग्रेज़ी से "स्टाइल", "शालीन" पीईई रूट से 'प्रोबो-जर्निनिक * स्टिगन,' से बढ़ो, बढ़ो, 'स्टीइड, स्टेप, उदय' (सीढ़ी देखें) से।
स्टाइल: ---- क्रिया रूप
पुरानी अंग्रेजी स्टिगन, पिछले कृदंत stigun, आम जर्मनिक (पुराने नॉर्स, पुरानी फ्रांसिसी स्गागा, मध्य डच stighen, पुरानी सक्सोन, पुरानी उच्च जर्मन स्टिगन, जर्मन steigen, गॉथिक steigan) "ऊपर जाना, चढ़ना" (अप्रचलित) , पीआईई रूट से * (steigh- "जाओ, वृद्धि, छलनी, कदम, चलना)
"
इस प्रकार यह विशाल विश्लेषण इस पृष्ठ पर भूमि - लिए प्रकाशित किया गया था।
इस प्रकार यह वृहद विश्लेषण इस ठक्कुर शब्द के पृष्ठ-भूमि पर प्रकाशन हेतु किया गया । इतिहास के इस तथ्य को भी जाने ।
"- एक मान्यता के अनुसार जो पश्तो संस्कृति से सम्बद्ध है । उसमें यह भाव ध्वनित है कि सिंह शब्द की तर्ज पर भी ईरानी भाषा के टिगरा (Tigra )से यह शब्द विकसित हुआ।
जो संस्कृत शब्द रूप तीव्र है ।
इससे भी ठाकुर शब्द विकसित हुआ है यह मान्य कर की भी चेष्टा की गयी ।
अवेस्ता ए जेन्द़ में टिघरी (Tighgri) वाण का वाचक है ।
तीर के समान गति शील बिल्ली परिवार के चीता को टाइगर कहा गया है ।
और सिंह शब्द बुद्ध के सम्मान में शाक्य सिंह रूप में पुराणों में सबसे पहले प्रयुक्त हुआ है ।
पुराणों का समय ई०पू० १८४ के समकक्ष है ।
भागवत पुराण बारहवीं सदी की रचना है ।
शाक्यसिंहः, पुं, (शाक्यः सिंह इव ।) शाक्य- मुनिः । इत्यमरः ॥
अमरकोशः
शाक्यसिंह पुं।
शाक्य:- कोल जन जाति से सम्बद्ध एक जन जाति है
चीन तथा जापान में ये साकॉय (Sakoy)रूप हैं ।
शक तथा सीथियन Scythian इन्हीं से सम्बद्ध
जिनके रूप संस्कृत भाषा में हुए (शाक्य और शाक्त )
पुष्य-मित्र सुंग के अनुयायी ब्राह्मणों ने चतुराई के साथ
बुद्ध को पुराणों में तथा महाभारत एवम वाल्मीकि-रामायण आदि में स्थापित कर दिया ।
वाल्मीकि-रामायण अयोध्या काण्ड १०९ वें सर्ग का ३४ वाँ श्लोक प्रमाण रूप में है ।
"- According to a belief that is related to Pashto culture, the expression in this sense implies that the word evolved from the Tigra of the Iranian language even on the lines of the word lion.
The Sanskrit word form is intense.
Apart from this, the word 'Thakur' has been developed.
Avesta is a reader of Tighgri varieties in A jend.
Like the arrow, the cheetah of the cat family has been called a tiger.
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And the word lion has been used first in the Puranas( पुराणों) in the form of Shakya(शाक्य) lion in honour of Buddha.
The time of Puranas is equivalent to E. Po. 184.
Bhagavat Purana is the composition of the twelfth century.
Shakya Singh, (Puran.)., (Shakya: Singh Iv.) Shakya - Muni: Antimour:
Amarksha:
Shakya Singh Pun
Shakya: - Cole is a mass race belonging to the masses.
These are Sakoy forms in China and Japan.
Sussex and Scythian Scythian related to these
Whose form was in Sanskrit language (Shakya and Shakt)
Pushy-buddha Sung's followers bravely with cleverness
Buddha was established in the Puranas and in Mahabharata and Valmiki-Ramayana etc.
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यथा ही चौर स: तथा ही बुद्धस्तथागतं नास्तिकमत्र विद्धि ।
परन्तु बुद्ध के प्रभाव से सभी अभिभूत थे ।
अब इन्हें कृष्ण के समान पुराणों में कथाओं के रूप में समायोजित किया गया ।
कहीं विवश हो कर अपशब्द कह गये तो कीं स्तुतियों का प्रयोग । परन्तु श्रृद्धा पूर्वक नहीं केवल प्रभाव वश
इन्हें सूर्य का वंशज भी बनाया गया देखें---
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शाक्य शब्द की व्युत्पत्ति पुष्यमित्र सुंग काल के ब्राह्मण मान्यताओं के अनुसार ।
शक--थञ् तत्र साधुः यत् ।
बुद्धे ।
शाक्यशब्दनिरुक्तिरन्यथोक्ता यथा “शाकवृक्षप्रतिच्छन्नं वासं यस्मात् प्रचक्रिरे । तस्मादि- क्ष्वाकुवंश्यास्ते भुवि शाक्या इति श्रुताः” भरतधृतवच- नम् । अर्थात् शाक ( वनस्पति तरकारी फल फूल आदि के प्रवेश में विलास करने से इक्ष्वाकु वंश शाक्य वंश कहलाया "
इयमत्राख्यायिका पितृशप्ताः केचिदिक्ष्वाकुवंश्या गोतमवंशजकपिलमुनेराश्रमे योगाभ्यासाय शाकवृक्षे कृतवासाः शाक्या इति ख्यातिमापन्नाः ।
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संस्कृत पुराणेषु... समानार्थक:शाक्यमुनि,शाक्यसिंह,
सर्वार्थसिद्ध,शौद्धोदनि,
गौतम,अर्कबन्धु,मायादेवीसुत
1।1।15।1।1
स शाक्यसिंहः सर्वार्थसिद्धः शौद्धोदनिश्च सः। गौतमश्चार्कबन्धुश्च मायादेवीसुतश्च सः॥
(भागवत पुराण)
वाचस्पत्यम् संस्कृत भाषा कोश
'''शाक्यसिंह''' :--- पु॰ शाक्यवंशे सिंह इव अर्थात् शाक्य वंश में सिंह के समान महात्मा बुद्ध का विशेषण ।
बुद्धभेदे अमरःकोश
शब्दसागरः संस्कृत भाषा कोश
शाक्यसिंह¦ m. (-हः) A name of BUDD'HA. E. शाक्य the name of his tribe, and सिंह chief.
Monier-Williams
शाक्यसिंह/ शाक्य--सिंह m. " शक्यlion " , N. of गौतमबुद्ध .
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परन्तु सिंह और ठाकुर लिखने की परम्पराऐं उन राजपूतों के लिए हैं , जो पहले शूद्र रूप में विदेशी थे ,अर्थात् शक और सीथियन (Scythian) हूण जो ईरानी मूल के थे । और तुर्कों के लिए भी ब्राह्मण ने ठाकुर सम्बोधन किया ।
उनकी दृष्टि में ये शूद्र ही थे ।
क्योंकि तुर्की सरदार स्वयं को तक्वुर कहते ही थे ।
राज-स्थान के आबू पर्वत पर छठी सदी ईसवी में जिनका ब्राह्मणों द्वारा अपने धर्म की रक्षा के लिए क्षत्रिय करण किया गया था ।
वे हूण , कुषाण ,तुर्क आदि थे ...
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ये लोग ठाकुर अथवा क्षत्रिय उपाधि से विभूषित किये गये थे ।
जिसमे अधिकतर अफ़्ग़ानिस्तान के जादौन पठान भी थे, जो ईरानी मूल के यहूदीयों से सम्बद्ध थे।
यहुदह् ही यदु: रूप है । एेसा वर्णन ईरानी इतिहास में मिलता है ।
जादौन पठानों की भाषा प्राचीन अवेस्ता ए झन्द से निकली भाषा थी , जो राजस्थानी पिंगल डिंगल के रूप में विकसित हुई है।
,क्योंकि संस्कृत भाषा का ही परिवर्तित निम्न रूप फ़ारसी है ।
अत: सभी संस्कृत भाषा के ही शब्द हैं ।
इस्लाम धर्म तो बहुत बाद में सातवीं सताब्दी में आया ।
यहूदी वस्तुतः फलस्तीन के यादव ही थे ।
ईसवी सन् ५७१ में तो इस्लाम मत के प्रवर्तक सलल्लाहू अलैहि वसल्लम शरवर ए आलम मौहम्मद साहिब का जन्म हुआ है ।
इजराइल में अबीर (Abeer)इन यहूदीयों की ही एक युद्ध -प्रिय शाखा है ।
जिसका मिलान भारतीय अहीरों से है ।
भारतीय जादौन समुदाय अहीरों को अपने समुदाय में नहीं मानता है , जो अज्ञानता जनक भ्रान्तपूर्ण मान्यता है । जाधव, जादव, तथा जादौन सभी यादव शब्द से विकसित हुए ।
जो यहूदीयों में जूडान (Joodan )है ।
मराठी शब्द जाधव भी इसी से विकसित हुआ तथा इससे (जाटव शब्द बना , यह घटना सन् १९२२ समकक्ष की है ।
साहू जी महाराज का वंश जादव (जाटव) था ।
ये शिवाजी महाराज के पौत्र तथा शम्भु जी महाराज के पुत्र थे ।
निश्चित रूप से इनमें से मगध के पुष्य-मित्र सुंग के अनुयायीे ब्राह्मणों ने कुछ को शूद्र तथा कुछ को क्षत्रिय बना दिया , जो उनके संरक्षक बन गये , वे क्षत्रिय बना दिये गये ।
और जो विद्रोही बन गये , वे शूद्र बना दिये --
संस्कृत भाषा में बुद्ध के परवर्ती काल में ठक्कुर: शब्द का प्रयोग द्विज उपाधि रूप में था ।
जो ब्राह्मण क्षत्रिय तथा वैश्य वर्ग का वाचक था ।
परन्तु ब्राह्मणों ने इस शब्द का प्रयोग द्विज उपाधि के रूप में स्वयं के लिए किया ।
जैसे संस्कृत भाषा के ब्राह्मण कवि गोविन्द ठक्कुर: --- काव्य प्रदीप के रचयिता ।
वाचस्पत्यम् संस्कृत भाषा कोश में देव प्रतिमा जिसका प्राण प्रतिष्ठा की गयी हो , उसको ठाकुर कहा जाता है । ध्यान रखना चाहिए कि पुराणों में ठाकुर शब्द प्रयोग कहीं नहीं है ।
हरिवंश पुराण में वसुदेव और नन्द दौनों के लिए केवल गोप शब्द का प्रयोग है ।
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इति अम्बुपतिना प्रोक्तो वरुणेन अहमच्युत गवां कारणत्वज्ञ :सतेनांशेन जगतीं गत्वा गोपत्वं एष्यति
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अर्थात् वरुण ने कश्यप को पृथ्वी पर वसुदेव गोप के रूप में जन्म लेने का शाप दे दिया --
कृष्ण के लिए ठाकुर जी सम्बोधन का प्रयोग प्रथम वार वैष्णव पुष्टी-मार्गीय सम्प्रदाय के संस्थापक आचार्य वल्लभाचार्य के अनुयायी ब्राह्मण समाज ने किया था
श्री नाथ जी के विशेष निग्रह के साथ कृष्ण भक्ति की जाती है ; और पुष्टी-मार्गीय सम्प्रदाय द्वारा कृष्ण जी के निग्रह को ठाकुर जी कहा जाता है ।
स्था--उकञ् ।१ स्थितिशीले २एकग्रामाधिकृते पुल्लिंग विशेषण शब्द (अमरकोशः)
स्थावर: शब्द से ठाकरे शब्द विकसित हुआ ।
ठाकुर शब्द की यह ऐैतिहासिक गवेषणा पूर्ण रूपेण प्रबल प्रमाणों के दायरे में है । जिसमें सन्देह की कोई गुँजायश नहीं है ।
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यहाँ एक तथ्य और स्पष्ट कर दें ! कि इतिहास वस्तुतः एकदेशीय अथवा एक खण्ड के रूप में नहीं होता है , बल्कि अखण्ड और सार -भौमिक तथ्य होता है ।
छोटी-मोटी घटनाऐं इतिहास नहीं, ••• ..तथ्य- परक विश्लेषण इतिहास कार की आत्मिक प्रवृति है , और निश्पक्षता उस तथ्य परक पद्धति का कवच है
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सत्य के अन्वेषण में प्रमाण ही ढ़ाल हैं ।
जो वितण्डावाद के वाग्युद्ध हमारी रक्षा करता है ।
अथवा हम कहें कि विवादों के भ्रमर में प्रमाण पतवार हैं ,~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
🏄🏄🏂🏄🏂🏄 अथवा पाँडित्यवाद के संग्राम में सटीक तर्क "रोहि " किसी अस्त्र से कम नहीं हैं।
मैं दृढ़ता से अब भी कहुँगा कि ...
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक ,गतिविधियाँ कभी भी एक-भौमिक नहीं होती है , अपितु विश्व-व्यापी होती है !
क्यों कि इतिहास अन्तर्निष्ठ प्रतिक्रिया नहीं है ।
इतिहास एक वैज्ञानिक व गहन विश्लेषणात्मक तथ्यों का निश्पक्ष विवरण है ""
सम्पूर्ण भारतीय इतिहास का प्रादुर्भाव महात्मा बुद्ध के समय से है ।
प्राय: इतिहास के नाम पर ब्राह्मण समुदाय ने जो केवल कर्म-काण्ड में विश्वास रखता था । उसने काल्पनिक रूप से ही ग्रन्थ रचना की है ।
जिसमें ब्राह्मण स्वार्थों को ध्यान में रखा गया ।
केवल वेदों को छोड़ कर सब बुद्ध के समय का उल्लेख है । वेदों में यद्यपि पुरुष सूक्त की प्राचीनता सन्दिग्ध है ,
क्योंकि इसकी भाषा पाणिनीय कालिक ई०पू० ५०० के समकक्ष है ।
भारतीय इतिहास एक वर्ग विशेष द्वारा पूर्व- आग्रहों से ग्रसित होकर ही लिखा गया । आज आवश्यकता है इसके पुनर्लेखन की ।
विद्वान् इस तथ्य पर अपनी प्रतिक्रियाऐं अवश्य दें ... ------------------------------------------------------------
यह एक शोध - लिपि है जिसके समग्र प्रमाण ।
यादव योगेश कुमार 'रोहि' के द्वारा
अनुसन्धानित है ।
"This is a research paper( Script) whose overall ratio is
Yadav Yogesh Kumar 'Rohi' by
Is researched."
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Jay Shree Radhe
जवाब देंहटाएंJay shree Ram
जवाब देंहटाएंराधे राधे। सही जानकारी
जवाब देंहटाएंवास्तव में ठाकुर शब्द सिर्फ किसी के द्वारा दिया गया पद, सम्मान हैं, न कि किसी विशेष जति क्षेत्र समूह से कोई तलूक नहीं हैं।
जवाब देंहटाएंपर कुछ लोग ठाकुर शब्द को जति समूह में समेट के सीना ठोकते हैं जिसे क्या कहेंगे?
अहीर और यादव शब्द में कोई संबंध नहीं है।
जवाब देंहटाएंअहीर व यादव दोनों पर्यायवाची शब्द हैं
जवाब देंहटाएंYah Jankari bahut acchi prashansa yukt hai
जवाब देंहटाएंIn bhi sab ka dimag h ruko jara
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