बुधवार, 13 सितंबर 2017

ठाकुर उपाधि -

महानुभाव ठाकुर शब्द संस्कृत भाषा के स्थायुकरः का परवर्ती रूप है | जिसका अर्थ है जिसने यायावर जीवन त्याग कर स्थायित्व प्राप्त कर लिया है कालान्तरण में यही शब्द संस्कृत भाषा में ग्राम के सरपञ्च के अर्थ में रूढ़ हो गया है संस्कृत भाषा में यह शब्द स्था धातु से उत्पन्न है | यहीं से इस शब्द का इतिहास प्रारम्भ है .....अन्वेषक ----+ योगेश कुमार रोहि ग्राम पत्रालय पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़ उ०प्र०. ---- 8445730852 सम्पर्क सूत्र व्हाट्सअप - 8979503784--ठक्कुर: रूप में अवतरित होकर ग्राम पुरोहितों का वाचक हुआ । बाँग्ला देश में आज भी टेंगौर शब्द केवल ब्राह्मणों का वाचक है । यद्यपि ठाकरे शब्द महाराष्ट्र के कायस्थों का वाचक है जिनके पूर्वजों ने कभी मगध अर्थात् वर्तमान विहार से ही प्रस्थान किया था । कायस्थों का कुछ साम्य यादवों के मराठी जाधव कबींले से है । यद्यपि इस शब्द का साम्य तमिल शब्द तेगुर से भी है । इसका सम्बन्ध -मूल भारोपीयमूल के स्था धातु हैl (Sta ) संस्कृत भाषा में इसका प्रथम पुरुष एक वचन का रूप तिष्ठति है , तथा ईरानी असुर संस्कृति के उपासक आर्यों की भाषा । हिस्तेति ग्रीक भाषा में हिष्टेमि -Histemi. लैटिन -Sistere लिथुअॉनियन भाषा में -Stojus जर्मनिक- Stall गॉथिक- Standan .... यादव योगेश कुमार रोहि की एक मान्यता के अनुसार सिंह शब्द की तर्ज पर भी भी ईरानी भाषा के टिगरा Tigra- संस्कृत तीव्र से भी ठाकुर शब्द विकसित हुआ है अवेस्ता ए जेन्द़ में टिघरी Tighgri अवेस्ता ए जेन्द़ में टिघरी वाण का वाचक है । तीर के समान गति शील बिल्ली परिवार के चीता को टाइगर कहा गया है । सिंह शब्द बुद्ध के सम्मान में शाक्य सिंह रूप मे पुराणों में प्रयुक्त हुआ है । परन्तु सिंह और ठाकुर लिखने की परम्पराऐं उन राजपूतों के लिए हैं । जो पगले शूद्र रूप में विदेशी थे । राज्यस्थान के आबू पर्वतों पर छठी सदी में जिनका ब्राह्मणों द्वारा अपने धर्म की रक्षा के लिए क्षत्रिय करण किया गया था ।जिसमे अफ़्ग़ानिस्तान के जादौन पठान भी थे जो ईरानी मूल के यहूदीयों से सम्बद्ध थे। यहूदी वस्तुत फलस्तीन के यादव ही थे । यादव शब्द से ही कालान्तरण में जाधव जादव तथा जादौन एवम् मराठी जाधव शब्द से जाटव भी विकसित हुआ । निश्चित रूप से इन में से मगध के ब्राह्मणों ने कुछ को शूद्र तथा कुछ को क्षत्रिय बना दिया , जो उनके समकक्ष बन गये वे क्षत्रिय और जो विद्रोही बन गये वे शूद्र हुए -- संस्कृत भाषा में बुद्ध के परवर्ती काल में ठक्कुर: शब्द का प्रयोग द्विज उपाधि रूप में था जैसे संस्कृत भाषा के ब्राह्मण कवि गोविन्द ठक्कुर: काव्य प्रदान के रचयिता वाचस्पत्यम् संस्कृत भाषा कोश में देव प्रतिमा जिसका प्राण प्रतिष्ठा की गयी हो , को ठाकुर कहा जाता है । परन्तु पुराणों में ठाकुर शब्द नहीं है । कृष्ण के लिए भी इस शब्द का कभी प्रयोग नहीं हुआ है । हरिवंश पुराण में वसुदेव और नन्द दौनों के लिए गोप शब्द का प्रयोग है । इति अम्बुपतिना प्रोक्तो वरुणेन अहमच्युत गवां कारणत्वज्ञ :सतेनांशेन जगतीं गत्वा गोपत्वं एष्यति । अर्थात् वरुण ने कश्यप को पृथ्वी पर वसुदेव गोप के रूप में जन्म लेने का शाप दे दिया --+ LikeShow more reactions Comment Share Yogesh Rohi

1 टिप्पणी:

  1. क्या चुतियापा है
    जादौं तो वैदिक क्षत्रिय थे रही बात आबू वाले राजपूतो की तो उनमे तो जादौन नहीं और कोई जन्मे थे

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