महोबा। लगन और कड़ी मेहनत से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है विकासखंड पनवाड़ी के गांव दादरी के मेहनती किसानों ने। कभी दलहन और तिलहन फसलों की बुवाई कर खेत में पसीना बहाने के बाद सामान्य उत्पादन करने वाले किसान नई तकनीक और मेहनत के बल पर आर्टीमीशिया की खेती से खुशहाल हो गए हैं। तीन माह तक खाली पड़े रहने वाले खेतों में औषधीय फसल की खेती से सोना उगल रही है। महज तीन माह में अधिक उत्पादन देख जिले के किसान इसे अपनाने में रुचि लेने लगे हैं।
औषधीय आर्टीमीशिया की खेती ने जिले के किसानों की तकदीर बदल दी है। पनवाड़ी विकास खंड के किसानों ने गर्मियों में खाली पड़े खेतों में इसका उत्पादन शुरु कर दिया है। रबी और खरीफ की फसल के बीच के समय में कम समय वाली यह खेती कर किसान मालामाल हो रहे हैं। पनवाड़ी विकास खंड के ग्राम दादरी, ब्यारजौ, कुनेटा, परा, रजौनी सहित कई गावों में रबी की फसल की कटाई के बाद किसानों ने कम समय और कम लागत में अधिक पैदावार देने वाली आर्टीमीशिया औषधीय खेती को अपना लिया है। माह मार्च में बुवाई होने के बाद यह फसल जून में कटने को तैयार हो जाती है।
दादरी गांव में आर्टीमीशिया की खेती की शुरुआत दो साल पहले किसान खूब सिंह और राजू कुशवाहा ने की। किसानों ने बताया कि इसकी खेती में एक एकड़ में 5,000 रुपए का खर्च आता है और तकरीबन 50,000 रुपए कीमत की पैदावार होती है। एक एकड़ आर्टीमीशिया के उत्पादन के बाद सभी प्रकार के खर्च घटाने पर 35,000 रुपए तक का मुनाफा मिल जाता है। किसान ध्वजपाल सिंह और गुलाब चंद्र ने बताया कि रबी की फसल के बाद मार्च माह में खेत खाली होते ही इसकी बुवाई की जाती है। जो जून में काट ली जाती है। इस औषधीय फसल में अधिक पानी की भी जरूरत नहीं पड़ती। इसका प्लांटेशन मार्च माह में ही कर दिया जाता है।
इस फसल की शुरुआत जिले में हो जाने के बाद अन्य गांवों के किसानों का रुझान इस फसल की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। हालत यह है कि दो साल पहले 50 बीघा में होने वाली फसल अब 500 बीघा में उगाई जा रही है। दो साल पहले मामूली उत्पादन देने वाले खेत इस फसल की बुवाई होने के बाद सोना उगल रहे हैं। अन्य फसलों में बुवाई की लागत के सापेक्ष महज तीन या चार गुना उत्पादन होता है। लेकिन आर्टीमीशिया की फसल में लागत के सापेक्ष दस गुना उत्पादन किसान कर रहे हैं। नतीजतन कभी छोटे खेतों में सामान्य पैदावार करने वाले किसान आज बड़े किसानों में गिने जा रहे हैं।
खाद और उर्वरक की जरूरत नहीं
महोबा। जिला उद्यान अधिकारी अनीश कुमार श्रीवास्तव ने किसानों को औषधीय खेती के लिए बीज और मार्केट भी उपलब्ध कराया है। उनका कहना है कि जिले में किसान के अंदर आलसी प्रवृत्ति के चलते अन्य लाभ वाली खेती करने की तरफ रुझान नहीं बढ़ता। जबकि कम लागत और कम मेहनत से कम समय में होने वाली आर्टीमीशिया की खेती ने लोगों की तकदीर बदल दी है। ग्रामीण औषधीय खेती से दस-दस लाख रुपए वार्षिक कमा रहे हैं। इसमें खाद और उर्वरक की भी अधिक जरुरत नहीं पड़ती। पनवाड़ी के दादरी, ब्यारजौ और अन्य गांवों का किसान हरियाणा और पंजाब की तरह खुशहाल हो गया है।
इंसेट
5,000 खर्च और 50,000 की पैदावार
फसल खर्च प्रति एकड़ उत्पादन प्रति एकड़
गेहूं, चना, लाही आदि 6,000 रुपए 15,000 रुपए
तिल, मूंग, उड़द, ज्वार आदि 3,000 रुपए 20,000 रुपए
आर्टीमीशिया 5,000 रुपए 50,000 रुपए
पिपरमेंट 20,000 रुपए 80,000 रुपए
तैयार होती है मलेरिया की दवा
जिला उद्यान अधिकारी अनीश श्रीवास्तव ने बताया कि आर्टीमीशिया एक औषधीय खेती है। यह सामान्य बुखार के साथ-साथ मलेरिया के बुखार के लिए दवा बनाने के काम आती है। इसलिए आयुर्वेदिक कंपनियां इसकी बड़ी मात्रा में खरीद करती हैं। जिससे किसान को घर बैठे ही कम लागत और कम मेहनत के बावजूद फसल की अच्छी कीमत मिल जाती है।
कैसा है आर्टीमीशिया का मार्केट
औषधीय खेती आर्टीमीशिया का मार्केट भी अलग है। अन्य फसलों में मेहनत कर कटाई करने के बाद उत्पादन को बाजार ले जाकर सस्ती कीमतों पर बेचना पड़ता है। जिससे किसान फसल बाजार तक ले जाने में किराया और खर्च भी अदा करते हैं। लेकिन आर्टीमीशिया की बिक्री घर बैठे ही हो जाती है। इसे किसी बाजार में ले जाने की जरूरत नहीं। किसान प्रमोद कुमार और प्रेमवती ने बताया कि आयुर्वेदिक कंपनियों के एजेंट गांव में आकर किसानों की फसल खरीद लेते हैं। यहां तक कि फसल तैयार होने से पहले ही इसकी एडवांस बुकिंग तक हो जाती है। फसल तैयार होते ही एजेंट इसे खरीदकर ले जाते हैं। आर्टीमीशिया की खेती से यहां के किसान ने दिनरात मेहनत कर कम समय में लाखों रुपए का मुनाफा कमा रहे हैं।
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