शनिवार, 13 फ़रवरी 2021

ततो लब्धवरा प्रीता स्त्रीभावगुणभूषिता।जगाम सह संसर्गमृषिणाऽद्भुतकर्मणा।। 1-64-123

पुराणों ऋषि लोग असम्भव को सम्भव और सम्भव को असम्भव तो कर देते थे परन्तु अपनी कामवासनाओं पर नियन्त्रण नहीं कर पाते थे ।
ये कितना सत्य है ?

  
ततो लब्धवरा प्रीता स्त्रीभावगुणभूषिता।
जगाम सह संसर्गमृषिणाऽद्भुतकर्मणा।। 1-64-123

तस्यास्तु योजनाद्गन्धमाजिघ्रन्त नरा भुवि।। 1-64-124
तस्या योजनगन्धेति ततो नामापरं स्मृतम्।
इति सत्यवती हृष्टा लब्ध्वा वरमनुत्तमम्।। 1-64-125

पराशरेण संयुक्ता सद्यो गर्भं सुषाव सा।
जज्ञे च यमुनाद्वीपे पाराशर्यः स वीर्यवान्।। 1-64-126।

स मातरमनुज्ञाप्य तपस्येव मनो दधे।
स्मृतोऽहं दर्शयिष्यामि कृत्येष्विति च सोऽब्रवीत्।1-64-127

एवं द्वैपायनो जज्ञे सत्यवत्यां पराशरात्।
न्यस्तोद्वीपे यद्बालस्तस्माद्द्वैपायनःस्मृतः।। 1-64-128

जैसे एक बार  मत्स्य यौनि रूप में  अद्रि नामक अप्सरा के मत्स्य और  मत्स्या  (सत्यवती ) का जन्म जुड़वां रूप में हुआ मत्स्य को राजा उपरिचर ने ग्रहण किया और मत्स्या रूप में सत्यवती को मल्लाहों के मुखिया ने पुत्री रूप में ग्रहण किया ।
 सत्यवती पिता के साथ यमुना नदी में नाव चलाया करती थी ।

(एक बार तीर्थ यात्रा के उद्देश्य से विचरते हुए पाराशर मुनि ने उस कन्या को देखा तो परम बुद्धि मान पाराशर ने उस कन्या के साथ मैथुन करने की इच्छा की दूसरे लोगों से बचने के लिए पाराशर मुनि ने कुहरे (नीहार) की सृष्टि कर 
ऋषि ने उस कन्या के साथ खूब रमण ( मैथुन ) किया कि तत्काल ही  एक शिशु को जन्म दिया उसका व्यास नाम  हुआ !


(महाभारत आदिपर्व अंशावतरण नामक उपपर्व का तिरेसठवाँ अध्याय )

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