रविवार, 1 अगस्त 2021

राजपूत यादव नहीं हो सकते हैं !

भारतीय धरा पर अनादिकाल से अनेक जनजातियों का आगमन हुआ।
छठी सातवीं ईस्वी में भी अनेक जन -जातीयाँ का भारत में आगमन हुआ। 
जो या तो यहाँ व्यापार करने के लिए आये अथवा इस देश को लूटने के लिए आये । 
कुछ चले भी गये तो कुछ अन्त में यहीं के होकर रह गये ।
 वास्तव में भारतीय प्राचीन पौराणिक ग्रन्थों में उन मानव जातियों का वर्णन भी नहीं मिलता है ।                              
कालान्तर में जब भारतीय संस्कृति में अनेक विजातीय तत्वों का समावेश हुआ परिणाम स्वरूप  उनके वंशावली निर्धारण किस प्रकार भारतीयता से सम्बद्ध किया जाये  अथवा इन वंशों को प्राचीनता का पुट देने के लिए सूर्य और चन्द्र वंश की कल्पना कर ली गयी ।
जो कि हिब्रू संस्कृति के साम और हां का रूपान्तरण ही है ।
भारतीय धरा पर उभरती नवीन जातियों ने भी राजपूतों के रूप में कभी अपने को सूर्य वंश से जोड़ा तो कभी चन्द्र वंश से  यद्यपि यादवों को सोम वंश और राम के  वंशजो को सूर्य वंश से सम्बन्धित होना तो भारतीय पुराणों में वर्णित किया गया है ।
परन्तु राम का वंश और जीवन चरित्र प्रागैतिहासिक है ।
उनके जीवन और जन्म तथा वंश का कोई कालक्रम भारतीय सन्दर्भ में समीचीन या सम्यक्‌ नहीं हैं ।
अनेक पूर्वोत्तर और पश्चिमी देशों की संस्कृति में राम का वर्णन उनकी सांस्कृतिक परम्पराओं के अनुरूप है ।
राम के चरित्र पर पूरी दुनियाँ में तीन सौ से अधिक ग्रन्थ लिखे जा चुके हैं ।
मिश्र थाइलैंड खेतान ईरान ईराक (मेसोपोटामिया) पश्चिमी अमेरिका इण्डोनेशिया तथा भारत में भी राम कथाओ का विस्तार अनेक रूपों में हुआ है ।
भले ही भारत में आज कुछ लोग स्वयं को राम का वंशज कह कर सूर्य वंश से जोड़े परन्तु यह सब निराधार ही है।
हाँ चन्द्र वंश या कहें सोम वंश जिसके  सबसे प्राचीन वंश धारक यादव लोग हैं ।

वे आज भी अहीरों, गोपों और घोष आदि के रूप में गोपालक से अब तक पशुपालन में संलग्न हैं ।
पौराणिक सन्दर्भों से प्राप्त जानकारी के अनुसार वेदों की अधिष्ठात्री देवी  गायत्री एक आभीर परिवार से सम्बन्धित कन्या थी । 

जिसका पुष्कर क्षेत्र में ब्रह्मा से पाणिग्रहण संस्कार विष्णु भगवान के द्वारा सम्पन्न कराया गया और अन्त में विदाई के समय समस्त अहीरों को आश्वस्त करते हुए भगवान विष्णु  ने  अहीरों के यदुवंश में द्वापर युग में  अपने अवतरण देने की बात कहीं ।

और कश्यप को वसुदेव गोप के रूप में मथुरा नगरी में जन्म लेने के लिए कहा ।

आज जो जनजातियाँ पौराणिक सन्दर्भों में वर्णित नहीं हैं । वे स्वयं को कभी सूर्य वंश से जोड़ती हैं तो कभी चन्द्र वंश से और पतवार विहीन नौका के समान इधर से उधर भटकते हुए किनारों से परे हैं । 
ये जनजातियाँ स्वयं को राजपूत मानती हैं और यदुवंश से सम्बन्धित करने के लिए पूरा जोर लगा रहीं हैं परन्तु हम आपके संज्ञान में यह तथ्य प्रेषित कर दें कि ययाति के शाप के परिणाम स्वरूप यदु वंश में कभी भी कोई पत्रक या वंशानुगत रूप से राजा नहीं हुआ  राजतन्त्र प्रणाली को यादवों ने कभी नही आत्मसात् किया चाहें वह त्रेता युग का सम्राट सहस्रबाहू अर्जुन हो अथवा शशिबिन्दु  ये सम्राट अवश्य बने परन्तु लोकतन्त्र प्रणाली से अथवा अपने पौरुषबल से
पिता की विरासत से नही 
इसी प्रकार वर्ण -व्यवस्था भी यादवों ने कभी नहीं स्वीकार की ।

अत: राजा सम्बोधन यादवों के लिए कभी नहीं रहा कृष्ण को कब राजा कहा गया 

1 टिप्पणी:

  1. Kya bkwaas kr rhe ho..???
    Kisi purabiye/bihari ko guru bna liya hai kya??? Aheer Abhira ko vanshaj hai...na ki gop,ghosh,gwala ke smjhne.Ye saare occupation hai hai na ki koi tribe.Abhira ek ladaku jati thi jo baad me aayi smjhe.
    Jab bahut se Aheero ne kheti, pashupalan shuru kiya tab yaha ke brahmano ne Aheer shabd ko ek occupation se tag kar diya aur bahut se gair Aheer ghosh gwala bhi apne aap ko Aheer smjhne lage.Aaj bhi golla,gwala ghosh alag jati hai na ki aheer smjhe.👍

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