त्रिंशद्भारं सुवर्णानां भूपे भूपे ददौ मुदा ॥२७॥
द्विगुणेन यदून्सर्वान्नंदादींश्चैव भूपतिः
यशोदाद्याश्च गोप्यश्च देवक्याद्या यदुस्त्रियः॥२८॥
द्विगुणेन= तृतीय विभक्ति करण कारक एकवचन = दो गुने उपहारों से
सभी यादवों को नन्द आदि को भूपति ने ।
और भी राजा द्वारा यशोदा आदि को और सभी गोपीयों और देवकी आदि इन सबको यादव स्त्रियों को। दिव्य वस्त्र और अलंकारों द्वारा सन्तुष्ट किया गया । और
राज्ञा = ( करणकारक तृतीय कर्मवाच्य)
यशोदा आद्या:च =कर्मवाच्य रूप का प्रयोग ।
गोप्य: ( गोपी शब्द का बहुवचन कर्ता कारक = कर्मवाच्य रूप) च= और
देवकी आद्या: =
सर्वाश्च =
दिव्यांबरैरलंकारै तोषिताः =
रुक्मिण्याद्या राधिकाद्याः पट्टराज्ञो हरेरपि ॥
रुक्मिणी आद्या =रुक्मिणी आदि।
राधिका आदि पट रानीयों को ।
भगवान कृष्ण के द्वारा
हरे: +अपि =हरेरपि
(यदि विसर्ग को (र्) =यदि विसर्ग से पहले अ,आ से भिन्न कोई भी स्वर हो और बाद में कोई स्वर या वर्ग के तीसरे, चौथे , पांचवें अक्षर अथवा (य् र् ल् व् ह् ) हो तो विसर्ग के स्थान पर (र्) हो जाता है।
● मनिः + आगतः = मनिरागतः● भानुः + उदेति = भानुरूदेति
● धेनुः + इयम् = धेनुरियम
● हरे:+ अपि= हरेरपि
॥२९॥
दो गुने उपहारों से सभी यादवों को नन्द आदि को भूपति ने और भी ।
राज्ञा = राजा द्वारा ( करणकारक तृतीय कर्मवाच्य)
यशोदा आद्या:च =और यशोदा आदि को कर्मवाच्य रूप का प्रयोग ।
गोप्य: ( गोपी शब्द का बहुवचन कर्ता कारक =सभी गोपीयों को कर्मवाच्य रूप) च= और
देवकी आद्या: = देवकी आदि
सर्वाश्च = इन सबको
यदुस्त्रिय: यादव स्त्रियों को दिव्य वस्त्र और अलंकारों द्वारा सन्तुष्ट किया गया ।।
दिव्यांबरैरलंकारै तोषिताः =दिव्य वस्त्र और अलंकारों द्वारा तोषिता:= सन्तुष्ट किया गया ।
रुक्मिण्याद्या राधिकाद्याः पट्टराज्ञो हरेरपि ॥
रुक्मिणी आद्या =रुक्मिणी आदि के द्वारा ।
राधिका आदि पट रानीयों को
रुक्मिणी राधिका आदि पटरानीयों को कृष्ण के साथ लेकर राजा उग्रसेन के द्वारा
दिव्यवस्त्र 'अलंकार आदि के द्वारा सभी यादव स्त्री पुरुषों को सन्तुष्ट किया गया ।
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द्विगुणेन यदून्सर्वान्नंदादींश्चैव भूपतिः ॥
यशोदाद्याश्च गोप्यश्च देवक्याद्या यदुस्त्रियः ॥२८॥
यशोदाद्याश्च गोप्यश्च देवक्याद्या यदुस्त्रियः ॥२८॥
रुक्मिण्याद्या राधिकाद्याः पट्टराज्ञो हरेरपि ॥
दिव्यांबरैरलंकारै राज्ञा सर्वाश्च तोषिताः ॥२९॥
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पुनर्ददौ च गर्गाय राजा ग्रामशतं मुदा ॥
स सर्गो ब्राह्मणेभ्यश्च प्रददौ हि क्रमादृषिः।३०॥
पुनर्ददौ च गर्गाय राजा ग्रामशतं मुदा ॥
स सर्गो ब्राह्मणेभ्यश्च प्रददौ हि क्रमादृषिः।३०॥
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