अंशेन त्वं पृथिव्यां वै प्राप्य जन्म यदोः कुले ।
भार्याभ्यां संयुतस्तत्र गोपालत्वं करिष्यसि ॥१६॥
-व्यास उवाच-
तथा दित्यादितिः शप्ता शोकसन्तप्तया भृशम्।
जाता जाता विनश्येरंस्तव पुत्रास्तु सप्त वै ॥१८॥
अनुवाद:-अतएव मर्यादाकी रक्षा के लिये ब्रह्माजी ने भी अपने परमप्रिय पौत्र मुनिश्रेष्ठ कश्यपको शाप दे दिया कि तुम अपने अंशसे पृथ्वीपर यदुवंश में जन्म लेकर वहाँ अपनी दोनों पत्नियों के साथ गोप जाति में जन्म लेकर गोपालन का कार्य करोगे ।। 15-16 ।।
व्यासजी बोले- इस प्रकार अंशावतार लेने तथा पृथ्वीका बोझ उतारनेके लिये वरुणदेव तथा ब्रह्माजीने उन महर्षि कश्यपको शाप दे दिया था ॥ 17 ॥
उधर कश्यपकी भार्या दिति ने भी अत्यधिक शोकसन्तप्त होकर अदितिको शाप दे दिया कि क्रमसे तुम्हारे सातों पुत्र उत्पन्न होते ही मृत्यु को प्राप्त हो जायँ ॥ 18 ॥
सन्दर्भ:-
(देवीभागवत महापुराण चतुर्थ स्कन्ध अध्याय तृतीय)
इसके अतिरिक्त
हरिवंशपुराण हरिवंश पर्व के (55) वें अध्याय में भी वसुदेव को गोप कहा गया है ।
ये सभी आभीर शब्द के पर्याय हैं।
येनांशेन हृता गावः कश्यपेन महर्षिणा
स तेनांशेन जगतीं गत्वा गोपत्वमेष्यति।३३।
अनुवाद :- अच्युत ! जल के स्वामी वरुण के ऐसा कहने पर गौओं के कारण तत्व को जानने वाले मुझ ( ब्रह्मा ) ने कश्यप को शाप देते हुए कहा-।३२।
हे कश्यप तुमने जिस अंश के द्वारा वरुण की गायों का हरण किया गया है तुम उसी अंश से पृथ्वी पर जाकर गोपत्व को प्राप्त कर गोप होंगे।३३।
गोपायनं यः कुरुते जगतां सार्व्वलौकिकम्।
स कथं गां गतो विष्णुर्गोपमन्वकरोत्प्रभुः ।।१२।। (वायुपुराण- 97)
गोपायनं यः कुरुते जगतः सार्वलौकिकम् ।
स कथं गां गतो देवो विष्णुर्गोपत्वमागतः ।।१२।।
(हरिवंश पुराण हरिवंशपर्व अध्याय-40)
गोपायनं यः कुरुते जगतः सार्वलौकिकम् ।
स कथं भगवान्विष्णुः प्रभासक्षेत्रमाश्रितः ॥२६॥
स्कन्द पुराण-7/1/9/26
उपर्युक्त श्लोक तीन अलग अलग पुराणों वायुपुराण हरिवंशपुराण और स्कन्द पुराण से उद्धृत हैं।
जिनका अर्थ है - जो प्रभु जगत के सभी जीवों अथवा लोगों की रक्षा करने में समर्थ है । वह गोपों के घर गोप बनकर आते हैं।
अब कोई यदि यही राग अलाप रहा है। कि कृष्ण गोप( अहीर) नहीं हैं। तो वह महाधूर्त और वज्र मूर्ख ही है।
प्रस्तुतिकरण- यादव योगेश कुमार रोहि
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