रविवारे च सन्डे, फाल्गुने चैत्र फरवरी षष्टश्च सिक्सटी ज्ञेया तदुदाहरण मीदृषम ” भविष्य पुराण -सर्ग 1 अध्याय 5 श्लोक 37.
इस श्लोक से साबित होता है कि, अंगरेजी शब्द पुराण में बाद में जोड़े गए हैं, क्योंकि व्यास के समय न तो अंगरेज थे और न अंगरेजी थी और यह पुराण भी किसी ने बाद में बनाया है. अतः हमें पुराणों की जगह वेदों, उपनिषदों को प्रमाणिक मानना चाहिए. वर्ना हम इन धूर्तों के जल में फस सकते हैं.
7 – पद्म पुराण में धूम्रपान की निंदा —
एक समय था जब गावों में हुक्का पीना और रखना इज्जत की बात समझी जाती थी. और यदि कोई अपराध करता था तो उसका हुक्का पानी बंद कर दिया जाता था. इसे सबसे बड़ी सजा माना जाता था. मुग़ल दरबार में और नवाबों की महफिलों में हुक्का रखना शान मणि जाती थी. मुसलमानों के दौर में पान तमाखू का रिवाज शुरू हुआ था. हरेक मुसलमान के घर में पानदान,पीकदान जरुर होते हैं .
जब पोर्चुगीज लोग भारत में आये तो वह अपने साथ टोमेटो,पोटेटो, टोबेको लेकर आये. सन 1605 के बाद से धुम्रपान का रिवाज सरे देश में फ़ैल गया.यह देखकर किसी ने धूम्रपान करने वाले ब्राहमण को दान देने वाले को नरक जाने, गाँव के सूअर बनने की बात लिख दी होगी –
“धूम्रपान रतं विप्रं ददाति यो नरः, दातारो नरकं यान्ति ब्राह्मणं ग्राम शूकरम “पद्म पुराण 1 :36.
यद्यपि इस श्लोक में धुम्रपान की निंदा की गयी है, परन्तु यह साबित होता है कि यह श्लोक सन 1605 के बाद यानि पोचुगीज के आने के बाद लिखा होगा. यानि पद्म पुराण में काफी बाद में जोड़ा गया है.
इस से यह भी साबित होता है कि विधर्मियों ने हिन्दू धर्म ग्रंथों को प्रदूषित किया था. चाहे अर्थ का अनर्थ किया हो चाहे ग्रंथों में नए नए श्लोक जोड़ दिए हों.
आज भी मुस्लिम मुल्ले और ब्लोगर हिन्दू ग्रंथों में मुहम्मद को अवतार साबित करने की कोशिश करते रहते हैं. जैसे जकारिया नायक. इस समय हिन्दी में करीब 200 ब्लॉग है, जो हिन्दू ग्रथो को प्रदूषित कर रहे हैं. हमें इन से सावधान रहने की जरुरत है. और सभी हिन्दुओं को चाहिए कि
धूम्राक्षं धूम्रपानं च राक्षसा यात मे पुरीम्। .पुरीम्। . धूम्रपानं च राक्षसा यात मे पुरीम्।३८।
.नरसिंह पुराण 52 वाँ अध्यल
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