गुरुवार, 14 अगस्त 2025

दो ठग निराले-


अधिक  नहीं थे सिर्फ़ दोही थे हेराफेरी वाले ।
बाज़ीगर थे नजर बन्द कर  करते नित्य घोटाले।।

तानाशाही का दौर गौर न  करती जनता।
महगाई की मार  रास्ता भटके गन्ता।।

लोकतन्त्र के बड़े यन्त्र षडयन्त्रों में।
जादू टोना फरेव भगत के मन्त्रों में।

अन्ध भक्त हैं कदम कदम पर
बैठे सडक गली गलियारों में ।
घूम रहे अब  छात्र छात्रा 
गलबहियाँ डाले कारों  में ।।

लोकतन्त्र पर कब्जा है बस 
ढ़ोगी दम्भी गद्दारों का।
उन्ही की रत्ती उन्हीं का तोला।
और तराजू यारों का ।।



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