मंगलवार, 12 अगस्त 2025

ब्राह्मणों की पुराणों में अप्रासंगिक प्रशंसा -

पञ्चत्रिंश (35) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: पञ्चत्रिंश अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद

ब्रह्मा जी के द्वारा ब्राह्मणों की महत्ता का वर्णन।

भीष्‍मजी कहते हैं- युधिष्ठिर! ब्राम्हण जन्‍म से ही महान भाग्‍यशाली, समस्‍त प्राणियों का वन्‍दनीय, अतिथि और प्रथम भोजन पाने का अधिकारी है। तात! ब्राम्हण सब मनोरथों को सिद्ध करने वाले, सबके सुहृद तथा देवताओं के मुख हैं। वे पूजित होने पर अपनी मंगलयुक्‍त वाणी से आशीर्वाद देकर मनुष्‍य के कल्‍याण का चिन्‍तन करते हैं। तात! हमारे शत्रुओं के द्वारा पूजित न होने पर उनके प्रति कुपित हुए ब्राम्हण उन सबको अभिशापयुक्‍त कठोर वाणी द्वारा नष्‍ट कर डालें। इस विषय में पुराणवेत्ता पुरुष पहले की गायी हुई कुछ गाथाओं का वर्णन करते हैं- प्रजापति ने ब्राम्हण, क्षत्रिय और वैश्‍यों को पूर्ववत उत्‍पन्‍न करके उनको समझाया,'तुम लोगों के लिये विधिपूर्वक स्‍वधर्मपालन और ब्राम्हणों की सेवा के सिवा और कोई कर्तव्‍य नहीं है।' ब्राम्हण की रक्षा की जाये तो वह स्‍वयं भी अपने रक्षक की रक्षा करता है; अत: ब्राम्हण की सेवा में तुम लोगों का परम कल्‍याण होगा।' ‘ब्राम्हण की रक्षारूप अपने कर्तव्‍य का पालन करने से ही तुम लोगों को ब्राम्ही लक्ष्‍मी प्राप्‍त होगी। तुम सम्‍पूर्ण भूतों के लिये प्रमाणभूत तथा उनको वश में करने वाले बन जाओगे। ‘विद्वान ब्राम्हण को शूद्रोचित कर्म नहीं करना चाहिये। शूद्र के कर्म करने से उसका धर्म नष्‍ट हो जाता है।' ‘स्‍वधर्म का पालन करने से लक्ष्‍मी, बुद्धि, तेज और प्रतापयुक्‍त ऐश्‍वर्य की प्राप्ति होती है, तथा स्‍वाध्‍याय का अत्यधिक माहात्‍म्‍य उपलब्‍ध होता है। ‘ब्राम्हण आहवनीय अग्नि में स्थित देवतागणों को हवन से तृप्‍त करके महान सौभाग्‍यपूर्ण पद पर प्रतिष्ठित होते हैं।' वे ब्राम्ही विद्या से उत्तम पात्र बनकर बालकों से भी पहले भोजन पाने के अधिकारी होते हैं। ‘द्विजगण! यदि तुम लोग किसी भी प्राणी के साथ द्रोह न करने के कारण प्राप्‍त हुई परम श्रद्धा से सम्‍पन्‍न हो इन्द्रियसंयम और स्‍वाध्‍याय में लगे रहोगे तो सम्‍पूर्ण कामनाओं को प्राप्‍त कर लोगे।' ‘मनुष्‍यलोक में तथा देवलोक में जो कुछ भी भोग्‍य वस्‍तुऍं हैं, वे सब ज्ञान, नियम और तपस्‍या से प्राप्‍त होनेवाली हैं।' ‘आप लोगों के समादर से पवित्र हुए क्षत्रिय, वैश्‍य तथा शूद्र आदि प्राणी इहलोक और परलोक में भी प्रीति एवं सम्पत्ति पाते हैं। जो आपके विरोधी हैं, वे आपसे अरक्षित होने के कारण विनाश को प्राप्‍त होते हैं। आपके तेज से ही ये सम्‍पूर्ण लोक टिके हुए हैं; अत: आप तीनों लोकों की रक्षा करें।' निष्‍पाप युधिष्ठिर! इस प्रकार ब्रम्हाजी की गायी हुई गाथा मैंने तुम्‍हें बतायी है। उन परम बुद्धिमान विधाता ने ब्राम्हणों पर कृपा करने के लिये ही ऐसा कहा है। मैं ब्राम्हणों का बल तपस्‍वी राजा के समान बहुत बड़ा मानता हूँ। वे दुर्जय, प्रचण्‍ड, वेगशाली और शीघ्रकारी होते हैं। ब्राहामणों में कुछ सिंह के समान शक्तिशाली होते हैं और कुछ व्‍याघ्र के समान। कितनों की शक्ति वाराह और मृग के समान होती है। कितने ही जल-जन्‍तुओं के समान होते हैं। किन्‍हीं का स्‍पर्श सर्प के समान होता है तो किन्‍हीं का घड़ियालों के समान। कोई शाप देकर मारते हैं तो कोई क्रोधभरी दृष्टि से ही भस्‍म कर देते हैं।

बालयोरनयोर्नॄणां जन्मना ब्राह्मणो गुरुः ॥६॥

भागवतपुराण-/१०/८/६

नन्द जी ने गर्गाचार्य से कहा-

क्योंकि ब्राह्मण जन्म से ही मनुष्यमात्र का गुरु है’ ॥ ६ ॥


ये ब्राह्मणाः सोऽहमसंशयं प्रिये तेष्वर्चितेष्वर्चितोऽहं भवेयम् ॥
तेष्वेव तुष्टेष्वहमेव तुष्टो वैरं च तैर्यस्य ममापि वैरम् ॥ ११ ॥


यश्चन्दनैः सागरुगन्धमाल्यै रभ्यर्चयेच्छैलमयीं ममार्चाम्॥
असौ न मामर्चयतेर्चयन्वै विप्रार्चनादर्चित एव चाहम् ॥ १२ ॥


यावंतः पृथिवीमध्ये चीर्णवेदव्रता द्विजाः ॥
अचीर्णव्रतवेदा वा तेऽपि पूज्या द्विजाः प्रिये॥१३॥


न ब्राह्मणान्परीक्षेत श्राद्धे क्षेत्रनिवासिनः ॥
सुमहान्परिवादोऽस्य ब्राह्मणानां परीक्षणे ॥ १४ ॥

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काणाः खञ्जाश्च कृष्णाश्च दरिद्रा व्याधितास्तथा ॥
सर्वे श्राद्धे नियोक्तव्या मिश्रिता वेदपारगैः ॥१५॥

ब्राह्मणा जातितः पूज्या वेदाभ्यासात्ततः परम् ॥
ततोर्थं हव्यकव्येषु न निन्द्या ब्राह्मणाः क्वचित् ॥ १६ ॥


यस्तु स्थितः सदाऽध्यात्मे नित्यं सद्भावभावितः ॥
ब्राह्मणो हि महद्भूतं जन्मना सह जायते ॥ ३१॥


लोके लोकेश्वराश्चापि सर्वे ब्राह्मणपूजकाः ॥
ततस्तान्नावमन्येत यदीच्छेज्जीवितं चिरम् ॥३२॥


ब्राह्मणाः कुपिता हन्युर्भस्मीकुर्युः स्वतेजसा ॥
लोकानन्यान्सृजेयुश्च लोकपालांस्तथाऽपरान् ॥ ३३ ॥

स्कन्दपुराणम्/खण्डः ७ (प्रभासखण्डः)/प्रभासक्षेत्र माहात्म्यम्/अध्यायः १०६



11. हे प्रियतम! निःसंदेह मैं ब्राह्मणों के समान हूँ। यदि उनकी पूजा की जाए, तो मैं भी पूजित हो जाऊँगा। जब वे प्रसन्न होते हैं, तभी मैं प्रसन्न होता हूँ। जो उनसे शत्रुता रखता है, वह मुझसे भी शत्रुता रखता है।
12. यदि कोई मेरी पाषाण प्रतिमा को चंदन, अगलोचना, सुगन्ध और मालाओं से पूजता है, तो वह वास्तव में मेरी पूजा नहीं करता। यदि कोई ब्राह्मणों का आदर और पूजन करता है, तो वास्तव में मेरी पूजा होती है।
13. हे मेरे प्रिय, इस संसार के सभी ब्राह्मण पूजनीय हैं, चाहे उन्होंने वेदों में वर्णित व्रतों का पालन किया हो या नहीं।
14. श्राद्ध के समय , यदि ब्राह्मण तीर्थस्थान के निवासी हों, तो उनकी कड़ी परीक्षा नहीं लेनी चाहिए। ब्राह्मणों की परीक्षा में बहुत अधिक दुर्व्यवहार होता है।
15. एक आँख वाले, लंगड़े, कुबड़े, दरिद्र और रोगी - इन सभी को वेदों को जानने वाले ब्राह्मणों के साथ मिलकर श्राद्ध करना चाहिए ।
16. ब्राह्मण केवल जन्म के कारण ही पूजनीय हैं। यदि वे वेदों और उनके आचरण में अधिक पारंगत हैं, तो हव्य और कव्य अर्पण के मामले में ब्राह्मणों की किसी भी प्रकार से निंदा नहीं की जानी चाहिए।
17. एक आँख वाले, स्थूलकाय, कुबड़े, दरिद्र और रोगी का अपमान नहीं करना चाहिए। समझदार व्यक्ति को ऐसे ब्राह्मणों का अपमान नहीं करना चाहिए, क्योंकि उनके रूप मेरे ही रूप में स्मरण किए जाते हैं।
18. बहुत से मनुष्य अज्ञानी होने के कारण यह नहीं जानते कि मैं ब्राह्मण रूप में पृथ्वी पर विचरण करता हूँ ।

31. जो ब्राह्मण सदैव आध्यात्मिक सिद्धांतों का पालन करता है, जो उत्तम भावनात्मक उत्साह से पवित्र होता है, वह जन्म से ही महान पवित्र आत्मा होता है।

32. संसार के सभी दिशापाल ब्राह्मणों के उपासक हैं। अतः यदि कोई दीर्घायु चाहता है तो उसे उनका अपमान नहीं करना चाहिए।

33. यदि ब्राह्मण क्रोधित हो जाएँ, तो वे अपने तेज से सब कुछ भस्म कर देंगे। यहाँ तक कि वे अन्य लोकों और दिशाओं के अन्य रक्षकों की भी रचना कर सकते हैं।


44. अतः ब्राह्मण पूजनीय हैं। यदि वे उपलब्ध न हों, तो मूर्तियों और चित्रों की पूजा करनी चाहिए।

45. ब्राह्मण चाहे विद्या से युक्त हो या न हो, वह मेरा देवता है, जैसे अग्नि महान देवता है, चाहे वह प्रार्थना से पवित्र हो या न हो।




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काणाः कुण्ठाश्च षण्डाश्च दरिद्रा व्याधितास्तथा |
सर्वे श्राद्धे नियोक्तव्या मिश्रिता वेदपारगैः || ३ ||

अक्षयम् तु भवेच् छ्राद्धमेतद् धर्मविदो विदुः
ब्राह्मणो हि महद्भूतम् जन्मना सह जायते |
लोका लोकेश्वराश्चापि सर्वे ब्राह्मणपूजकाः || ४ ||

ब्राह्मणाः कुपिता हन्युर्भस्म कुर्युश्च तेजसा |
लोकान् अन्यान् सृजेयुश्च लोकपालाम्स्तथापरान् || ५ ||

विष्णुधर्मः/अध्यायाः ०५१-०६०

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कव्यानि चैव पितरः किं भूतमधिकं ततः ।।
जन्मना चोत्तमोऽयं च सर्वार्चा ब्राह्मणोऽर्हति ।३।

भविष्यपुराणम् /पर्व २ (मध्यमपर्व)/भागः १/अध्यायः ०५



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