साथियों,
इस दुनिया में ऐसे अनेक लोग हैं जो मुझे एक सरफिरा, सनकी, बेशर्म या धूर्त व्यक्ति समझते हैं। ऐसा नहीं है कि वो लोग सिर्फ दूर के मित्र या संबंधी हैं मेरे कुछ अपने करीबी, रक्त संबंधी स्वजन भी हैं।
तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि लोग क्या सोचेंगे क्योंकि मेरा यह कदम भी मेरे बुरा इंसान होने की किताब में महज एक और अध्याय जोड़ सकेगा।
इससे पहले कि लोग कुछ कहें अच्छा है मै ही याद दिला दूं,, मुझे भी पता है और बखूबी समझता हूं,,
रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥
अर्थात्
अपने मन के दु:ख को अपने मन में ही रखना चाहिए। दूसरों को सुनाने से लोग सिर्फ उसका मजाक उड़ाते हैं कोई आपके दु:ख बांटता नहीं है।
और ऊपर से फेसबुक पे पोस्ट,,
जहां 5 हजार मित्र और कुछ सैकड़ा फॉलोवर
फिर भी,,
यकीन मानिए इससे अधिक लोगों के बीच पहुंच का अगर मेरे पास कोई माध्यम होता तो मैं यह काम निस्संदेह वहां करता यहां नहीं।
खैर मुझे घंटा फर्क नहीं पड़ता है जिसे पड़े वो मुझसे दूरी बना सकता है। इस अनंत ब्रह्मांड में मेरा अस्तित्व नगण्य है किस बात की और क्यों परवाह करूं?
हां तो आते हैं मूल विषय पर,
मित्रों,
इस समाज में कुछ ऐसे नीति नियम या रीति रिवाज सदियों से चलन में हैं जिनके प्रभाव के चलते अमूमन मनुष्य में स्वयं के सही और गलत होने की समझ ही आसानी से पनप नहीं पाती है, ऐसा ही एक रिवाज (प्रथा) है विवाह।
विवाह की प्रासंगिकता मानवीय समाज में निम्न अनेक विषयों के आधार पर बनी हुई है,
संतानोत्पत्ति (पारिवारिक)
सामाजिक जीवन
यौन इच्छा
आजीवन सहचर
आर्थिक भागीदारी
मानसिक और भावनात्मक सहयोग आदि।
हमारे समाज में ऐसी धारणा है कि विवाह के उपरांत दांपत्य जीवन में पति पत्नी उपरोक्त सभी विषयों हेतु एक दूसरे के पूरक बनकर कार्य करते हैं। विवाह के उपरांत जीवन में आमतौर पर पुरुष अपनी यौन इच्छाओं (काम वासनाओं) की पूर्ति हेतु पत्नी के ऊपर अपना पूर्ण अधिकार मानते हैं।
किसी पुरुष/ स्त्री के अंदर यौन इच्छाओं का होना या न होना नैसर्गिक है किंतु विवाह उपरांत जब युगल जोड़ी में एक के लिए यह अपरिहार्य हो और दूसरे के लिए अस्वीकार, तो ऐसी स्थिति विवाहेत्तर (अन्य से अफेयर) यौन संबंधों को जन्म देती है। किंतु यह भी बड़ी जटिल समस्या है यदि विवाह के उपरांत पुरुष / स्त्री उपरोक्त अनेक विषयों (यौन संबंध, संतानोत्पत्ति, सामाजिक, आर्थिक, मानसिक और भावनात्मक सहयोग इत्यादि) में सहयोग की अपेक्षा अपने जीवनसाथी से न रखें तो किससे रखें?
बहरहाल जीवन के करीब चार दशक और मेरी पत्नी के साथ मेरे अमधुर वैवाहिक सम्बन्धों का 1 दशक बीतने के बाद काफी आत्म मंथन के उपरांत मैं यह स्वीकार करने की स्थिति में पहुंच सका कि मेरी पत्नी में प्राकृतिक रूप से सदैव यौन संबंधों की अनिच्छा के कारण मैंने जब जब उससे यौन संबंध बनाए वो गलत ही थे। इस तरह मैने सैकड़ों बार मेरी पत्नी के साथ यौन अत्याचार किया है जिसे कानूनी भाषा में वैवाहिक बलात्कार (मैरिटल रेप) कहते हैं।
मेरी समझ में भारत में वयस्क पत्नी के साथ उसकी मर्जी के विरुद्ध सेक्स को कानूनन अपराध नहीं माना जाता है यद्यपि मैं स्वयं इसे अपराध ही मानता हूं। हालांकि कानून के जानकार साथी इस बात को कमेंट करके स्पष्ट कर सकते हैं।
सेक्स को लेकर मेरा अधिक उग्र होना मेरे संबंधों में कड़वाहट की अनेक वजहों में से एक बड़ी वजह रहा है। इसके कारण जब पत्नी से यौन तृप्ति न हुई तो मेरे अंदर अन्यत्र जाकर यौन संतुष्टि की भावनाएं बलवती हुईं। जिसके परिणाम स्वरूप जबरन यौन संबंधों की पीड़ा से आहत मेरी पत्नी के हृदय में दिन पर दिन मेरे प्रति तिरस्कार के भाव गंभीर होते गए।
शेष यदि कोई कमी थी तो वो भी दोनों परिवारों के सदस्यों के नाना प्रकार के संयुक्त प्रयासों से शत प्रतिशत पूर्ण हो गई।
खैर गुजरते वक्त के साथ मेरी समझ और मेरा नजरिया भी बदला अब मेरे नजरिए से विवाह के उपरांत भी जीवन साथी से वैवाहिक उत्तरदायित्वों का जबरन निर्वहन करवाने की चाह भी अपराध ही है। यह बात अलग है जब वैवाहिक उत्तरदायित्वों के निर्वहन में असक्षम होने पर भी वैवाहिक संबंध समाप्त करने की किसी एक की चाह न हो तो दूसरे को ऐसे अपराध करने को विवश होना ही पड़ता है।
यद्यपि मेरी पत्नी के दृष्टिकोण से सदैव उसकी इच्छा के विरुद्ध मेरे द्वारा यौन संबंध बनाने के चलते जो मुझसे जाने अंजाने अपराध हुआ है उसके परिणाम स्वरूप लंबे समय से मैं आत्मग्लानि से भरी जिंदगी जी रहा था, हां मैंने अपनी भूल मानकर इसका प्रायश्चित भी करना चाहा किंतु दुर्भाग्य से शायद बहुत देर हो चुकी थी, सामने वाले व्यक्ति का अंतर्मन इस कदर आहत है कि उसे किसी भी स्थिति में मुझसे नजदीकियां स्वीकार नहीं हैं।
आज हजारों लोगों के बीच सरेआम यह बात रखकर मैं अपने उन सभी आपराधिक कृत्यों के लिए मेरी पत्नी से क्षमा मांगता हूं जो मैंने विवाह के उपरांत सामाजिक दृष्टिकोण के अनुसार पत्नी पे अपना अधिकार मानकर अब तक किए हैं। शायद इसका कारण मेरी नासमझी थी, मैं मेरे द्वारा यौन संबंधों की पहल को मेरी पत्नी के प्रति मेरे अपार प्रेम का नाम देता रहा और वो विवाहिता होने के कारण इस अनचाही पीड़ा को झेलने को विवश होती रही।
मेरी गलतीयों की समझ आने के बाद मैंने व्यक्तिगत तौर पर माफी भी मांगी जो नाकाफी रही है, उससे झगड़े अवश्य समाप्त हुए लेकिन रिश्ते सामान्य होने की गुंजाइश अब शेष न रही तो आज यह पब्लिकली माफी मांग रहा हूं।
मेरे माफी मांगने के पीछे मेरा यह उद्देश्य कतई नहीं है कि मेरी पत्नी मेरे करीब आकर उस अनचाही पीड़ा को सहन करने को पुनः विवश हो अपितु मैं बस इतना चाहता हूं कि वो मुझे माफ करके मेरे शेष जीवन को मुझे आत्मग्लानि की पीड़ा के साथ जीने को मजबूर न करें। स्वयं भी आनंद से रहें और मुझे भी मेरी जिंदगी मेरे हिसाब से मुक्त भाव में जीने दें।
शेष, वैवाहिक जीवन की उपरोक्त समस्त आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए मै मेरी वर्तमान पत्नी के स्थान पर अन्य संभावित विकल्पों पर विचार कर लूंगा।
जीवन एक ही है उसमें भी कितने दिन या वर्ष शेष हैं कुछ ज्ञात नहीं है इसलिए जो भी पल हैं ये बहुत अनमोल हैं इन्हें स्वतंत्र और स्वच्छंद रूप से जीकर ही सही मायने में जीवन का लुत्फ उठाया जा सकता है। उम्र के इस पड़ाव पे पहुंचकर अब दशकों की संभावित प्रतीक्षा के जोखिम का कोई औचित्य नहीं बनता है।
मेरे अपराधों के लिए मुझे क्षमा करना मेरी प्रिय,, मैं आपके सुखद, सुंदर, मंगलमई जीवन की कामना करता हूं। आप मेरी विवाहिता होके भी पूर्णतः स्वतंत्र हैं, मैं भावी जीवन में एक पति के रूप में आपसे पत्नी के कैसे भी उत्तरदायित्वों के निर्वहन की जिम्मेदारी का बोझ आप पर नहीं डालूंगा।
दीपेन्द्र अकेला जी !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें